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26.2.10

जेहाद का अभिप्राय

"जेहाद का अभिप्राय इस्लामी आतंकवादी संगठनों द्वारा भारत राष्ट्र के विरूद्ध इस राष्ट्र के नौजवानों को गुमराह कर भारत में आतंकवादी उपायों द्वारा इस्लामिक राष्ट्र की स्थापना करना है। "
यह कथन उत्तर प्रदेश के एस.टी.ऍफ़ के पुलिस उपाध्यक्ष श्री चिरंजीव नाथ सिन्हा का है। यह कथन उनका व्यक्तिगत नहीं है अपितु उत्तर प्रदेश की सरकार की सोंच का प्रतीक है और इसी आधार पर उत्तर प्रदेश में विभिन्न वादों की विवेचना की जा रही है श्री सिन्हा का यह कथन न्यायलय में सशपथ बयान के रूप में दर्ज हुआ है।
-सुमन

25.2.10

बुढ़ापा देखकर रोया : ताबूत घोटाले वाले


बीमारी, बुढ़ापा और मृत्यु पर महात्मा बुद्ध ने जो भी चिंतन किया हो और निर्वाण या मोक्ष का हल तलाश किया हो, वास्तव में अब भी हम को यह सोचना है कि यह अभिशाप है या वरदान? प्रकृति, प्रबंधन के एक बड़े चैखटे में रखकर अगर हम देखें तो कह सकते हैं कि विनाश भी विकास या निर्माण का एक सोपान है। यह एक सतत् प्रक्रिया है।
जार्ज फर्नाडिस पूर्व केन्द्रीय रक्षा मंत्री तथा पूर्व राजग संयोजक इस समय उपरोक्त तीनों से संघर्षरत हैं। जार्ज ने अपने जीवन में बड़े संघर्ष किये हैं, एक समय तक ईमानदार कहे जाने वाले, ताबूत घोटाले के संदर्भ में बहुत बेईमान भी कहे गये, जो भी हो। कहा गया कि इस समय 25 करोड़ की सम्पत्ति के मालिक हैं और 25 वर्ष बाद पत्नी लैला कबीर तथा इकलौते बेटे शान फर्नाडिस उनकी सेवा के लिये आ गये हैं। अल्जाइमर्स से ग्रस्त होने के कारण जार्ज अपनी याददाश्त पूरी तरह से खो चुके हैं। जार्ज के भाई, मित्र और शुभचिंतक जिनमें पूर्व केन्द्रीय मंत्री अजय सिंह तथा सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश वेंकट चैलैया भी हैं कहते हैं कि उनके आवास का मुख्य दरवाजा बन्द है, कोई नहीं जानता वह कहां और कैसे हैं पत्नी ने इनका खण्डन किया है।
इस समाचार को देखकर मुझे याद आया कि अनेक वर्षो पूर्व काशीराम की भी यही स्थिति थी जब उनकी माँ, भाईयों से मायावती का विवाद हुआ था तथा बात कोर्ट कचहरी तक पहुंची थी।
जार्ज फर्नाडिस अपनी जवानी में एक बड़े तेज तर्रार नेता थे, लेकिन जीवन के सत्य से कोई मुंह चुरा नहीं सकता, जो आया है वह जायेगा, जो स्वस्थ्य है वह बीमार भी होगा, जो आज जवान है वह कल बूढ़ा भी होगा, फिर अकड़ घमण्ड कब तक? धन बल कब तक साथ रहेगा, अतः विकास हेतु प्रयास अवश्या जारी रखे, साफ सुथरा जीवन व्यतीत करें अगर जवानी की नींद में ज्यादा मस्त न हो तो बुढ़ापे में डरेंगे भी नहीं, ऐसा न करें जवानी नींद भर सोया, बुढ़ापा देखकर रोया।
डॉक्टर एस.एम हैदर

24.2.10

आधुनिक भगवान को सेक्स गिफ्ट

मानव धर्म की सेवा करने वालों के अधर्मी कार्य

मेडिकल कौंसिल आफ इण्डिया द्वारा निर्णय लिया गया है कि अब दवा कम्पनियों द्वारा डाक्टरों को रिश्वत के तौर पर अपनी दवा की सेल प्रमोशन के लिए दिए जाने वाले तोहफों पर रोक लगाई जायेगी।
यह देर से उठाया जाने वाला एक अच्छा कदम है क्योंकि सफेदपोश कहलाए जाने वाले समाज के इस सम्मानित तबके के अंदर व्यवसायिक प्रवृत्ति इस दर्जे तक हो गई थी कि वह अपने धर्म व फर्ज को भूलकर हर समय दवा कम्पनियों के इशारें पर चलने लगा था। दवा कम्पनियों के इशारे पर चलने लगा था। दवा कम्पनियों ने परस्पर पनपती अपनी प्रतिस्पर्धाता के चलते गिरावट के सारे पैमाने तोड़ डाले हैं। डाक्टरों को गिफ्ट देने का सिस्टम तो बहुत पुराना है अब तो इससे भी एक कदम आगे बढ़ते हुए डाक्टरों को उनकी सैर तफरीह व शौक के सभी संसाधन दवा निर्माता मुहैया कराते हैं।
नाम न छापने की शर्त पर एक बड़ी दवा कम्पनी के एक बड़े सेल्स अधिकारी ने बताया कि उनको सेल्स लाइन में ट्रेनिंग देते समय 3 सी फार्मूला बताया जाता है जिसके मुताबिक पहले वह किसी भी डाक्टर को अपनी दवा के बारे में बताकर उसे कन्वेन्स करने का प्रयास करते हैं यदि इस सी के प्रयोग किया जाता है जिसके अंतर्गत डाक्टर को कामर्फिनस किया जाता है, अर्यात उस यह समझाने का प्रयास किया जाता है कि जो दवा उसके पेन पर इसरा किसी कम्पनी की चढ़ी हुई है उससे यह केमिकल र्फामूले में बेहतर है। र्याद यह दोनों सी के र्फामूले काम न आए तो फिर अन्तिम सी र्फामूले का प्रयोग किया जाता है। उसका अर्थ यह है कि डाक्टर को कमपीलीट बनाना यानि उसे भ्रस्टाचार में लित्त कर देना। अब यह भ्रष्टाचार भी कई प्रकार का होजा है। एक भ्रस्टाचार यह है कि डाक्टर को उसके क्लिीनिक या घर उपयोग के आनेवाली वस्तओं को गिफ्ट में उसे मेंटकर के उससे मनमाफिक सेल करवाना। दूसरा प्रकार भ्रष्टाचार का यह होता है कि डाक्टर को साल में एक या दो बार देश या विदेश के किसी शहर में सपरिवार सैर सपाटा कराने का खर्चा उपलब्ध कराना और एक और भ्रष्टाचार अब दवा कंपनियों ने यह अभी चन्द वर्षो से आजमाना प्रारम्भ किया है कि डाक्टर को जिन्दा मांस का तोहफा दिया जाता है यानि सेक्स गिफ्ट। इसी के चलते दवा कम्पनियों ने अब बड़े पैमाने पर अच्छी मोटी पगार देकर सुन्दर लड़कियों की तैनाती कर ली है ताकि डाक्टरों से मर्जी की सेल इनके माध्यम से निकलवायी जा सके।
समाज के इस सफेदपोश तबके को लोग पृथ्वी पर भगवान का दर्जा देते हैं शायद इसलिए कि जीवन बचाने में उसकी महत्वपूर्ण भूमिका होती है परन्तु अपनी डिग्री लेते समय मानवता की सेवा करने की शपथ लेने वाले यह लोग अपनी व्यवसायी प्रवृत्ति व आर्थिक हवस के चलते अपने फर्ज पेशे के धर्म व इंसानियत सभी को भुलाकर केवल दोनों हाथों से धनोपार्जन में जुट जाते हैं।
मेडिकल कौंसिल ने इस ओर कदम बढ़ाकर एक अच्छा काम किया है। सरकार को भी डाक्टरों के रवैये में तबदीली लाने के लिए दवा कम्पनियों पर अपना अंकुश और मजबूत करना चाहिए।
-मोहम्मद तारिक खान

23.2.10

हो सकता है नक्सलवाद का आन्दोलन सही हो - उच्चतम न्यायालय

'हो सकता यह आन्दोलन सही मकसद के लिए किया जा रहा होशायद यही वजह है कि इसे लोगों का भी समर्थन मिल रहा हैयदि ऐसा है तो इसमें समस्या क्या है।'
- माननीय उच्चतम न्यायालय

माननीय उच्चतम न्यायालय ने नक्सल आन्दोलन पर यह टिपण्णी करते हुए कहा कि इस पर सरकारों का रूख ठीक नहीं हैमाननीय उच्चतम न्यायालय ने छत्तीसगढ़ के गोपाढ गाँव में 10 आदिवासियों की हत्या सुरक्षा बालों द्वारा करने की जनहित याचिका की सुनवाई कर रहे माननीय न्यायमूर्ति बी.सुदर्शन रेड्डी तथा माननीय न्यायमूर्ति सुरेन्द्र सिंह निज्जर की खंडपीठ ने व्यक्त किये
उत्तर प्रदेश में पुलिस प्रमुख श्री करमवीर सिंह अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक श्री ब्रजलाल (कानून व्यवस्था ) अपराधियों का कुछ कर नहीं पा रहे हैंथानों में पुलिस पिटाई से मौते हो रही हैंवर्तमान में पुलिस की कार्यप्रणाली अपराधी गिरोहों जैसी हो गयी है तो दूसरी तरफ मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारियां भी व्यापक रूप से की जा रही हैमानव अधिकार कार्यकर्ता इनके गलत कार्यों का विरोध करते हैं इसलिए इनके मुख्य निशाने पर हैं । नक्सली साहित्य को उत्तर प्रदेश सरकार अभी परिभाषित नहीं कर पायी है किन्तु नक्सली साहित्य की बरामदगी के आधार पर आए दिन गिरफ्तारियां हो रही हैंजिन मानव अधिकार कार्यकर्ताओं के ऊपर फर्जी देशद्रोह के मुक़दमे कायम किये जा रहे हैं वही जनता की निगाहों में असली देशप्रेमी हैंभ्रष्टाचारी, रिश्वतखोर, आर्थिक अपराधों के संगठित स्वरूप में दिखने वाले सुसंगठित निकाय क्या वास्तव में देश प्रेमी हैं ?
-सुमन

22.2.10

मरगे आशिक पर फ़रिश्ता मौत का बदनाम था

देश-विदेश में भौतिक विकास तो हुआ, लोग शिक्षित भी हुए, सुख-सुविधायें बढ़ी परन्तु मानवता न जाने कहाँ सो गई, इधर तबड़तोड़ कई हृदय-विदारक घटनायें घट गई, डेढ़ सौ वर्ष पूर्व की गालिब की यह पंक्ति अब भी फरयाद कर रही है:-
आदमी को भी मयस्सर नहीं इनसां होना ?
अब घटनाओं पर जरा नजर डलिये-
पुणे में आतंकी हमला-11 मरे, 40 जनवरी-यह हमला कोरे गाँव स्थित जर्मन बेकरी पर हुआ- शक इण्डियन मुजाहिद्दीन पर भी और हेडली पर भी- मेरा यह कहना है कि अत्याचार, जुल्म, हत्याएं किसी की भी हों, कहीं भी हों, किसी ने की हों, इन पर दुख करना चाहिये तथा इनकी अत्याधिक र्भत्सना की जानी चाहिये, परन्तु दुख इस बात का है कि जिम्मेदार वर्ग से जो प्रतिक्रियाएं आनी चाहिए वह नहीं आईं।
दूसरी घटना-झाण ग्राम व लालगढ़ के धर्मपुर में सुरक्षा बलों के तीन शिविरों पर पुलिस कैम्प पर पहले-30 जवान शहीद-पांच दिन बाद फिर-बिहार के जमुई जिले के फुलवारिया गाँव में नक्सलियों ने 12 लोगों को मौत के घाट उतारा-इन घटनाओं में भी इंसान मारे गये, परन्तु प्रतिक्रियाएं सुनने को नहीं मिलीं।
आतंकवादी घटना पर चार दिन बाद यह कहा गया है कि इस धमाके में डेविड हेडली का हाथ होने के सुराग मिले हैं, उसने इससे पूर्व पुणे का दौरा भी किया था। अब पाकिस्तान की भी एक खबर पर गौर करें-पाकिस्तान की एक अदालत ने पांच अमेरिकी मुस्लिमों की अपील खारिज कर दी। इन पांचों पर इण्टरनेट के माध्यम से आतंकियों से सम्पर्क करने और हमलों की साजिश रचने का आरोप है। वर्जीनिया के इन आरोपियों को सरगोधा इलाके से गिरफ्तार किया गया था। आप को याद होगा कि सी0बी0आई0 की एक विशेष टीम अमेरिका इसलिये गई थी कि हेडली से पूछताछ करे परन्तु उसे हेडली से मिलने की इजाजत नहीं दी गई टीम बैरंग वापस आई। बुद्धजीवी इन सब बातों पर समग्र रूप से विचार करें और इस शेर पर राय दें कि कहीं ऐसा तो नहीं है कि:-

मरगे आशिक पर फ़रिश्ता मौत का बदनाम था।
वह हँसी रोके हुए बैठा था जिसका काम था।
-डा0एस0एम0 हैदर

अजय झा जी के साथ होली की तैयारी

'' हो्ली आई रे! होली आई रे!''
ललित जी का बिंदास व्यक्तित्व जितना ज़बरदस्त है उससे ज़्यादा श्रीमान जी का व्यक्तित्व. होली पर उनका आलेख
ज़रूर देखिये. हाँ तो आदरणीय साथियो साथिनियो, मित्रों,सबको मेरा प्रणाम एक पोस्ट इस ब्लॉग पर पेश करना मेरी नैतिक ज़िम्मेदारी है तो एक पाड कास्ट चिपका देता हूँ . अजय झा जी से हुई बात चीत पर आपकी नज़र-हो तो मज़ा आ जाएगा.

21.2.10

अमेरिकी साम्राज्यवाद-1

अमेरिका के राजनीतिक कलैंडर में राष्ट्पतियों द्वारा स्टेट आँफ यूनियन का संबोधन परंपरागत रूप से बड़े पैमाने पर उत्साह के साथ सुना जाता है। टेलीविजन एवं अन्य माध्यमों से इसका व्यापक प्रचार किया जाता है। इस सम्बोधन में राष्ट्पति अपनी प्राथमिकताएं घोषित करते है। इसमें अन्तराष्ट्रीय मुद्दे प्रधान होते है। इस बार राष्ट्पति बराक ओबामा ने जब 27 जनवरी 2010 को स्टेट्स आँफ यूनियन को संबोधित किया तो वे काफी उत्तेजित दिखें। उन्होने अन्तराष्ट्रीय मुद्दो की चर्चा तक नहीं की। उन्होने अपना जोशीला भाषण घरेलू मुद्दों तक सीमित रखाः
’’मैं अमेरिका के लिये दूसरा स्थान स्वीकार नहीं कर सकता। चाहे जितनी मेहनत करनी पड़ें। चाहे यह जितना भी असुविधाजनक हो, यह समय उन समस्याओं के हल के लियें गंभीर होने का है, जो हमारे विकास में बाधा पैदा करते है।’’
उन्होने भारत, चीन और जर्मनी का नाम लेते हुए कहा कि ये देश किसी का इंतजार किये बगैर आगे बढ़ रहे हैं। इसलिये अमरिका को भी दूनिया में अपना शिखर स्थान कायम रखने के लिये इंतजार किये बगैर आगे बढ़ना होगा।
ओबामा अपने संबोधन में नौकरियों की आउटसोर्सिग करने वाली अमेरिकी कंपनियों को चेताया कि टैक्सों में की गयी उनकी रियायतें खत्म कर दी जायेंगीं। उन्ही कंपनियों को रियायतें दी जायेंगी जो अमेरिका में ही नौकरियों का सृजन करती हैं।
अमेरिका दुनिया में दूसरा स्थान स्वीकार नहीं कर सकता। अमेरिका दुनिया में अपना शिखर स्थान कायम रखने के लिये कुछ भी कर सकता है। राष्ट्पति बराक ओबामा ने जिस भाव-भंगिमा के साथ भाषण दिया उससे जान फिस्के (1842-1901) की याद एकबार फिर ताजा हो गयी। जान ओजस्वी भाषणकर्ता और तेजस्वी लेखक थे। जिसने अमेरिकी इतिहास में प्रकट नियति (Manitest Destiny) का सिधांत निरूपित किया। उसने कहा संयुक्त राज्य अमेरिका के लिये केवल पश्चिमी गोलार्द्ध में ही नहीं, बल्कि संपूर्ण विश्व में प्रभुत्वपूर्ण नेतृत्व एवं शासन करने की नियति है। फिस्के अपने भाषण के प्रारम्भ में किसी भोज के मौके पर प्रस्तावित किये गये टोस्ट का यह किस्सा सुनाता था-यह टोस्ट संयुक्त राज्य अमेरिका के लिये है, जो उत्तर में उत्तरी ध्रुव से, दक्षिणी ध्रुव से, पूर्व में उदय होते सूर्य में और पश्चिम में अस्त होते सूर्य से अपनी सीमायें बनाता हैं। श्रोताओं द्वारा इस महत्वाकांक्षा की जोर दार तालियों से स्वागत होता था। यह जान फिस्के था, जिसने सर्वप्रथम आंग्ल-सैक्शन सर्वश्रेष्ठता का सिद्वांत विकसित किया।
यह ध्यान देने की बात है कि जार्ज वाशिंगटन से लेकर थियोडोर रूजबेल्ट तक जो राष्ट्पति हुए, उनमें आठ फौजी जनरल थे। जार्ज वाशिंगटन स्वाधीनता संग्राम में अमेरिकी सेना के प्रधान सेनापति थे। वे अमेरिका के प्रथम राष्ट्पति बने और लगातार देा बार पद पर रहे। बाद के दिनो में ऐंड्यू जैक्सन, टेलर, फैंकलिन, रूजबेल्ट, आर्थर, बैंजालिमि, काकिनली, आइजनआवर आदि बड़े सैनिक अफसर थे, जो राष्ट्पति बनें। इन लोगों ने बड़े-बडे़ सैनिक अभियानों का नेतृत्व किया था।
संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा दूसरे देशों की भूमि दखल करना और उनके घरेलू मामले में हस्तक्षेप करने की लंबी परम्परा है। सन् 1776 में जब संयुक्ता राज्य अमेरिका की स्वतंत्रता की घोषणा हुई थी तो अतलांतिक महासागर के तट पर 133 उपनिवेशों का क्षेत्रफल केवल 386,000 वर्ग मील थां। सैनिक कार्रवाई के बाद वार्सेल्स संधि (1783) और लूईसियाना पर कब्जा कर लेने के बाद 1803 में क्षेत्रफल दुना हो गया। फलोरिडा को 1818 में, टेक्सास को 1836 में एकतरफा संयुक्त राज्य में मिला लिया गया। टेक्सास मैक्सिको का अंग था। अमेरिका ने इस देश की आधी भूमि अर्थात 558,400 वर्ग मील की विशाल भूमि हथिया ली। 1847 में ओरगान के विशाल भू-भाग 285,000 पर कब्जा कर लिया। 1867 में अलास्का को खरीदने की संधि हुई जिसके जरिये 577,400 वर्ग मील का विशाल भूखंड अमेरिका को मात्र 72 लाख डालर में मिल गया। इस तरह 1776 के मुकाबले 1880 में संयुक्त राज्य अमेरिका की जमीन दस गुना बढ़ गयी थी।
यही नहीं औद्योगिक क्षेत्र में भयंकर विकास हुआ। 1870 के मुकाबले शताब्दी के अन्तिम दशक आते-आते लोहे का उत्पादन आठ गुना, इस्पात का उत्पादन 150 गुना और कोयले का उत्पादन आठ गुना बढ़ गया। हर प्रकार के औद्योगिक उत्पादन का स्तर चार गुना उचां हो गया 1,40,000 मील रेलवे लाइन बिछायी गयी। इसी भांति खेती का भी तेज विकास हुआ। दो मूल अनाजों गेहूँ और मक्का की उपज दूनी हो गयी। अमेरिका अनाज और माँस की आपूर्ति करने वाला दूनिया का प्रथम देश बन गया। 1870 से 1900 इस्वी की बीच विज्ञान और औद्योगिक तकनीकी अविष्कार के 6,76,000फरमूले निबंधित किये गये थे। यूरोप की विशाल पूंजी संयुक्त राज्य अमेरिका में जमा हो रही थी।
1882 में अधिक उत्पादन का संकट पैदा हुआ है। इससे 30 लाख मजदूर बेकार हो गए। पुरुष मजदूरों को कार्यदिवस 15 घंटे प्रतिदिन था। महिलाओं के लिए यह 10 से 12 घंटे प्रतिदिन था। किन्तु पुरुषों के मुकाबले महिलाओं की मजदूरी आधी थी। मजदूरों की औसत आयु मात्र 30 वर्ष थी एक मजदूर की वार्षिक आय मात्र 559 डॉलर था, जबकि जीव-निर्वाह व्यय उन दिनों 735 डॉलर था। पूंजीपतियों के विशाल मुनाफे के सामने मजदूरों की यह दर्दनाक स्तिथि थी।
इस प्रकार अमेरिका को विशाल भूखंड और अपार अतिरिक्त पूँजी प्राप्त हुई। इस अतिरिक्त पूँजी और उन्नत तकनीक ने साम्राज्यवादी मंसूबे को जन्म दिया। थियोडोर रूजवेल्ट ने कहा: "हम अपनी सीमाओं के अंतर्गत एक बड़ी भीड़ के रूप में बैठे नहीं रह सकते और अपने को केवल धनी कबाडियों की भीड़ नहीं बना सकते, जो इस बात की परवाह नहीं करते कि बहार क्या हो रहा है ?"(शिकागो हैमिल्टन क्लब में १० अप्रैल १८९९ को दिया गया भाषण )
यह अतिरिक्त पूँजी के निर्यात का उछाल का समाये था। इसके साथ ही समुद्री शक्ति (SEA POWER) का सिधांत का चला। नौसेना + मालवाहक जहाज + सैनिक अड्डा=समुद्र्शक्ति (N+MM+NB=SP) Navy+Merchant Marine+ Naval Bases= Sea Power
-सत्य नारायण ठाकुर