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8.1.12

शोभना वैलफेयर ने बाँटे गर्म कपड़े



दिल्ली शहर में ठण्ड का भयानक रूप देखते हुए शोभना वैलफेयर सोसाइटी ने गरीबों को गर्म कपड़े वितरित करने की योजना बनाई तथा आज दिनांक ८ जनवरी, २०११ को गरीबों को गर्म कपड़े वितरित किये ताकि ठण्ड से किसी गरीब की जान न जा पाए. 

7.1.12

आधे घंटे में प्यार..!

फोन पर मैसेज आया, “तुझे कभी आठ घंटों में प्यार हुआ है?” प्रिया समझ गई फैसल को फिर किसी से प्यार हो गया है। उसने जवाब भेजा, “नहीं...पर जानती हूं तुझे हुआ है।”

प्रिया का मन फिर काम में नहीं लगा। जैसे-तैसे खानापूर्ति करके वो ऑफिस से जल्दी निकल तो आई लेकिन इतनी जल्दी घर जाने का न ही उसका मन था और न ही आदत। काफी देर बस स्टॉप पर खड़े रहने के बाद प्रिया को एक खाली बस आते हुए दिखाई दी। हालांकि वो बस उसके घर की तरफ नहीं जा रही थी लेकिन प्रिया को लगा जैसे ये बस सिर्फ उसी के लिए आई है। प्रिया बस में चढ़ गई और खाली सीटों में से अपनी पसंदीदा बैक सीट पर खिड़की के पास बैठ गई। फैसल और प्रिया कॉलेज के दिनों में अक्सर इसी तरह खाली बसों में शहर के चक्कर लगाया करते थे। टिकट की कोई चिंता ही नहीं रहती थी क्योंकि बैग के कोने में स्टूडेंट बस पास पड़ा होता था।

फोन फिर वाइब्रेट हुआ। इस बार मैसेज संदीप का था। संदीप प्रिया का कलीग था। ऑफिस से दोनों अक्सर साथ आते-जाते थे। प्रिया जानती थी संदीप उसे पसंद करता है लेकिन प्रिया जानकर अनजान बने रहना ही ठीक समझती थी। फैसल के जाने के बा उसने अपने आपको एक दायरे में सीमित कर लिया था। मैसेज में संदीप ने लिखा था कि वो कहां है? प्रिया को याद आया कि जल्दबाज़ी में वो संदीप को बताकर आना भूल गई है। प्रिया ने जवाब दिया, “तबियत ठीक नहीं थी, जल्दी चली आई।” अब प्रिया ने फोन बैग में रख दिया। इस वक्त उसकाकिसी से बात करने का मन कर रहा था।

खिड़की से शाम की ठंडी हवा आ रही थी। प्रिया आंखे बंद कर सीट से टिक गई। प्रिया को अजीब सी बेचैनी महसूस हो रही थी। रह रह कर वह फैसल के “आठ घंटे के प्यार” के बारे में सोच रही थी। हालांकि वो काफी पहले अपने आपको समझा चुकी थी कि अब फैसल की ज़िंदगी में अब चाहे जो कुछ हो उसे फर्क नहीं पड़ेगा। अपने इस फैसले पर वो काफी खुश भी थी लेकिन फैसल का ये नया प्यार प्रिया को चैन नहीं लेने दे रहा था। प्रिया लगातार सोच रही थी कि फैसल उसके दो साल के प्यार को इस तरह कैसे भुला सकता है? क्या उसे एक बार भी प्रिया की याद नहीं आई? आठ घंटों का प्यार वाकई कोई प्यार हो सकता है?

सोचते सोचते प्रिया की आंखों से आंसू बह निकले। खुद को संभालते हुए वो अपने अपना रूमाल ढूंढने लगी। आदतन आज भी वो अपना रूमाल ऑफिस में ही भूल आई थी। प्रिया कुछ सोच ही रही थी कि इतने में किसीने एक सफेद रंग का जैंट्स रूमाल उसके आगे कर दिया। प्रिया ने नज़रे उठाकर देखा तो एक लड़का बेहद आकर्षक मुस्कान चेहरे पर लिए उसे देख रहा था। उसने रूमाल लेने से इनकार किया तो लड़ने ने “प्लीज़” कहकर उससे अपनी बात मनवा ली। प्रिया ने आंसू पोंछकर उसे “थैंक्स” करते हुए रूमाल वापस दे दिया। वो लड़का उसकी बगल वाली सीट पर ही बैठ गया। आधे घंटे की औपचारिक बातों के बाद दोनों ने एक दूसरे को अपना फोन नंबर दिया। लड़के का स्टॉप आया तो वो बाय करके चले गया। उसके जाते ही प्रिया ने तुरंत बैग से अपना फोन निकाला और फैसल को मैसेज किया, “आधे घंटे मेंप्यार हो सकता है क्या?”
(शबनम ख़ान)

5.1.12

भोले से डाक बाबू विनोद पाराशर





प्रिय मित्रो

सादर ब्लॉगस्ते!

प्राचीन काल से ही लोगों के संदेश को लाने और ले जाने के लिए विभिन्न प्रकार के उपाय किये जाते रहे हैं. पहले घोड़ों के द्वारा डाक इधर से उधर पहुँचाई जाती थी. प्रेमी अपनी प्रेम पातियों को अपने प्रीतम तक पहुंचाने के लिए कबूतरों का प्रयोग भी करते थे. गुप्त संदेशों को शीघ्रता से भेजने के लिए समय-समय पर बाजों की सहायता भी ली जाती रही. धीरे-धीरे प्रगति हुई और संदेशों को हवाई जहाज में भी उड़ना पड़ा.फिर कंप्यूटर महाराज आये और इन्टरनेट का जाल फैंका और अब पत्रों का स्थान कम्प्यूटरी पत्रों ने ले लिया.किन्तु आज भी पारंपरिक डाक व्यवस्था का महत्त्व कम हुआ है और न ही डाकिया बाबू का.


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4.1.12

1.1.12

ब्लॉग जगत के मंगल पांडे ठाकुर पद्म सिंह




प्रिय मित्रो 

सादर ब्लॉगस्ते!

      अंग्रेजी नव वर्ष का आगमन हो चुका है इसलिए अंग्रेजी में ही शुभकामनाएं  स्वीकारें "हैप्पी न्यू इयर टु यू" वैसे हम हिन्दुस्तानियों का नव वर्ष 22 मार्च, 2012 से आरम्भ होगा शक संवत, जो कि 78 ईसवी से आरंभ माना जाता है, को कुषाण सम्राट कनिष्क ने आरम्भ किया था किन्तु शक शासकों द्वारा अधिक प्रयोग किये जाने के कारण इसे शक संवत के नाम से जाना जाने लगा  इसमें चैत्र, बैशाख, ज्येष्ठ, आसाढ़, श्रावण, भाद्रपद, आश्विन, कार्तिक, मार्गशीर्ष, पौष, माघ व फाल्गुन नामक बारह मास होते हैं इसलिए आनेवाले शक संवत, 1934 की शुभकामनाएं भी आपको स्वीकार करनी पड़ जायेंगी आगे पढ़ें...

30.12.11

साहित्यकार संसद के स्पीकर डॉ. हरीश अरोड़ा


प्रिय मित्रो 

          सादर ब्लॉगस्ते!

                    ये लो जी संसद का शीतकालीन सत्र भी समाप्त हो गया और बीमारी के कारण महात्मा अन्ना का अनशन भी ख़त्म हुआ. ठंडी फूफी अपने शीत अस्त्रों से उत्तर भारत, ख़ास तौर पर दिल्ली वासिओं का  हुलिया टाईट किये हुए हैं. इन सब घटनाओं से बिना व्यथित हुए  डॉ. हरीश अरोड़ा फेसबुक पर साहित्यकार संसद को चलाने में व्यस्त और मस्त हो रखे हैं. मित्रो आप भली-भाँति समझ गए होंगे कि आज मैं आप सभी का परिचय कराने जा रहा हूँ एक और ब्लॉगर डॉ. हरीश अरोड़ा से. 
उनके परिचय में क्या कहूँ... उनकी रचनाधर्मिता उनके जीवन को खुद बयां करती है..
मैं किसी के सांस की अंतिम घडी हूँ
मैं किसी के गीत की अंतिम कड़ी हूँ.
जिंदगी घबरा के बूढी हो गयी है,
मैं सहारे के लिए अंतिम छड़ी हूँ.
यह फिलहाल दिल्ली विश्वविद्यालय के पी.जी.डी.ए.वी. कॉलेज (सांध्य) के हिंदी विभाग में असिस्टेंट प्रोफ़ेसर के पद पर कार्यरत हैं. वर्ष १९८७ से साहित्य लेखन के क्षेत्र में आये. विद्यालयी शिक्षा के दौरान इनकी  रूचि साहित्य में नहीं थी. लेकिन 12 कक्षा के दौरान कविता लेखन में रूचि जागृत हुयी.  कॉलेज की शिक्षा के दौरान कुछ युवा रचनाकारों के साथ मिलकर वर्ष १९८८ में 'युवा साहित्य चेतना मंडल' संस्था का निर्माण किया.  यह संस्था आज साहित्यिक गतिविधियों में सक्रिए योगदान देने के साथ साथ प्रकाश के क्षेत्र में भी आ चुकी है. आगे पढ़ें... 

28.12.11

प्रेम का भात पकाते रवीन्द्र प्रभात




प्रिय मित्रो

सादर ब्लॉगस्ते!

   पुराना साल रोते-हँसते, खोते-पाते बीतने वाला है और नया साल मुस्कुराते हुए आने वाला है। जहाँ पूरा जग नए साल के स्वागत में अपनी पलकें बिछा रहा है वहीं  रवीन्द्र  प्रभात जी हिंदी ब्लॉगरों को अगले साल होनेवाले ब्लोगोत्सव में खिलाने के लिए प्रेम का भात पका रहे हैं। भात पकाने के लिए चावल की बोरी अविनाश वाचस्पति जी ने नुक्कड़ नामक सुपर फास्ट ट्रेन से भेजी है। इस साल ५१ लोगों को भात खिलाया गया था अबकी बार देखते हैं कि कितने लोग इस प्रेम भात को खाने का सौभाग्य पाते हैं। हालांकि   रवीन्द्र प्रभात जी अभी हाल ही में थाईलैंड से थके-मांदे लौटे हैं और वहां चलते-फिरते उनकी थाई भी थक गयी हैं फिर भी उन्हें प्रेम भात पकाने का इतना चाव है कि आते ही लग गए अपने काम-काज में। तो मित्रो आप सब समझ ही गए होंगे कि आज मैं आपकी मुलाक़ात करवाने जा रहा हूँ परिकल्पना पर हम सबकी राष्ट्रभाषा हिंदी की प्रगति का कल्पना को साकार रूप देने में लगे हुए श्री   रवीन्द्र प्रभात जी से.  आगे पढ़ें...