आप अपने क्षेत्र की हलचल को चित्रों और विजुअल समेत नेटप्रेस पर छपवा सकते हैं I सम्पर्क कीजिये सेल नम्बर 0 94165 57786 पर I ई-मेल akbar.khan.rana@gmail.com दि नेटप्रेस डॉट कॉम आपका अपना मंच है, इसे और बेहतर बनाने के लिए Cell.No.09416557786 तथा E-Mail: akbar.khan.rana@gmail.com पर आपके सुझाव, आलेख और काव्य आदि सादर आमंत्रित हैं I

10.11.11

डूबकर मर जाओ आर.एस.एस. वालो !!!!!

राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ ने बेच दी जमीन
अब कहां शाखा लगाएंगे स्वयंसेवक ?
पुराने स्वयंसेवकों ने लगाए संघ उच्चाधिकारी करोड़ो के घोटाले के आरोप
विरोध में आर.एस.एस.कार्यकर्ता हुए
राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ के लिए इससे बड़ी डूब मरने वाली या बात होगी कि उसने हरियाणा प्रांत के सफीदों कस्बे में अपनी ही जमीन को ही बेच डाला। इस जमीन को बेचने के पीछे संघ को पैसे की जरूरत बताया जा रहा है। या राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ इतनी कंगाल हो गई है कि उसे अपनी कंगाली दूर करने के लिए अपनी जमीन बेच डाली? अब सफीदों कस्बे के स्वयंसेवकों के सामने यह प्रश्न खड़ा हो गया है कि वे अपनी संघ की शाखा कहां पर लगाएंगे। आर।एस.एस. यह कहती नहीं थकती कि वह हिंदू समाज के उत्थान युवाओं के चरित्र निर्माण का कार्य करती है। इस जमीन के बिक जाने के बाद यह बात साफ हो गई कि आर.एस.एस. हिंदू समाज का बंटाधार करने में लगी हुई है। सफीदों की नहर पुल के समीप खाली पड़ी जमीन को कथित तौर पर बोली करवाकर बेच दिया जाना जहां क्षेत्रवासियों के गले नहीं उतर रहा, वहीं संघ के कुछ पुराने संघ कार्यकर्ताओं ने जमीन को बेचने की प्रकिया को असंवैधानिक बताया और इस जमीन की खरीद फिखरोत में भारी गोलमाल की आशंकाएं जताई है तथा कथित तौर पर करवाई जमीन की बोली में संघ के स्थानीय कार्यकर्ताओं की नाराजगी ने संघ के उच्च पदाधिकारी को भी संदेह के कटघरें में खड़ा कर दिया है। प्राप्त जानकारी के अनुसार क्षेत्र में बढ़ रही अवैध कालोनियों की भरमार में अब राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ सफीदों शाखा की जमीन भी बली चढ़ गई। शहर के नहर पुल के पास खाली पड़ी लगभग 1600 गज जमीन पिछले कई वर्षें से क्षेत्र के भूमाफियाओं की नजरों में खटकी हुई थी। प्रोपटी बाजार के जानकारों की माने तो लगभग 15 करोड़ रूपये की यह जमीन केवल मात्र साढ़े 8 करोड़ में प्रदेश राष्ट्रीय स्तर के उच्च अधिकारियों ने स्थानीय कार्यकर्ताओं से मिलीभगत सहयोग से बेच दी गई। बताया जाता है कि शहर भर में चर्चा का विष्य बनी इस जमीन के वैसे तो खरीददार बहुत थे, लेकिन गुपचुप तरीके से संघ के अधिकारियों ने इस जमीन को महज केवल मात्र साढ़े 8 करोड़ रूपये में सफीदों शाखा को दान में मिली जमीन को बेच दिया गया। बताया जाता है कि किसी ने स्थानीय नहर पुल के समीप पड़ी खाली जमीन 1962 में शहर के ही नरसिंह दास ने तीन कनाल आठ मरले जमीन राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ सफीदों को दान दी थी। जिसको स्थानीय कुछ वरिष्ठ कार्यकर्ताओं ने मिलीभगत कर संघ की ही एक अन्य संस्था डा. हेडगेवार समिति को 2007 में इस जमीन को सुपुर्द कर दिया। तभी से इस जमीन पर काले बादल मंडराने लगे थे। इस जमीन से पहले भी लगभग दो मरले जमीन को बेच दिया गया था। इस जमीन के हुए कथित तौर पर करोड़ो के घोटाले के मामले में संघ के ही कुछ पुराने कार्यकर्ताओं ने मोर्चा खोल दिया है।
संघ के कार्यकर्ताओं ने लगाए करोड़ों के घोटाले के आरोप
इस संदर्भ में लगभग 30 साल से संघ में काम कर रहे कार्यकर्ता शिवचरण ने आरोप लगाए कि क्षेत्र के कुछ
कार्यकर्ताओं ने संघ के उच्च अधिकारियों से मिलकर इस जमीन को सौदा कर दिया और बोली कर इस जमीन को
लगभग साढ़े 8 करोड़ में बेच दिया गया। इस बोली में शहर के किसी भी व्यक्ति को सूचना नहीं दी गई। उन्होंने कहा कि इस की सूचना अगर होती तो इस जमीन की कीमत ओर बढ़ सकती थी। जिससे करोड़ो की इस जमीन में करोड़ों के ही घोटाले की बू रही है। इस बोली की प्रक्रिया भी संदेहपूर्ण है। जिसके चलते संघ कार्यकर्ता संदेह के घेरे में आते है। इस विष्य पर विरोध प्रकट करने के लिए आगामी रविवार को नाराज कार्यकर्ताओं द्वारा एक बैठक भी की जा रही है।
कैसे हुई करोड़ो की जमीन की बोली?
संघ की इस जमीन की बोली करवाने की प्रक्रिया पर उस वक्त स्वालिया निशान लग गया जब संघ द्वारा इस बोली की सूचना सार्वजनिक नहीं की गई। करोड़ो रूपये की जमीन की बोली करवाने आए अधिकारियों ने स्थानीय खांसर चौंक पर स्थित संघ के ही एक स्कूल के एक बंद कमरव् बोलीदाताओं को बैठाया गया और बताया जाता है कि बोली देने पहुंचे चुनिंदा लोगों ने आपस में ही पूल करके साढ़े 8 करोड़ में जमीन को लेने का फैसला ले लिया और संघ के अधिकारियों को खुश करने के लिए 11 लाख रूपये की राशी भी दी गई। जबकि प्रोपटी बाजार के जानकारों की माने तो लगभग इस जमीन की किमत 15 करोड़ रूपये आंकी जा रही है।
वरिष्ठ कार्यकर्ताओं को भी नहीं दी बोली की सूचना
संघ की इस जमीन की बोली करवाने की प्रक्रिया को पूरा करने के लिए संघ के उच्च अधिकारियों ने स्थानीय वरिष्ठ कार्यर्ताओं को भी बोली में बुलाना मुनासिब नहीं समझा गया। इस संदर्भ में संघ के नगर कार्य वाहक जयप्रकाश, प्रचारक संजीव शर्मा जितेन्द्र जैन सहित अनेक कार्यकर्ताओं ने अपनी दबी जुबान में बताया कि इस बोली के विष्य में वे कुछ नहीं जानते और ही उनके पास इसकी सूचना थी। इस संदर्भ में संघ के नगर कार्यवाहक जयप्रकाश ने जानकारी देते हुए कहा कि इस बोली के विष्य में पहले भी बैठक तो हो चुकी थी, लेकिन बोली के समय पर वह नहीं जा सका। जब उनसे बोली की सूचना सार्वजनिक करने के बारें में पुछा गया तो उन्होंने टालमटोल करते हुए कहा कि अधिकारियों ने फोन पर ही सूचना दे दी थी।

9.11.11

सुईं से लिखी मधुशाला""

सुईं से लिखी मधुशाला""
दादरी के पीयूष दादरी वाला ने "एक ऐसा कारनामा" कर दिखाया है कि देखने वालों कि ऑंखें खुली रह जाएगी और न देखने वालों के लिए एक स्पर्श मात्र ही बहुत है I
दादरी वाला दुनिया में भारत का नाम, "मिरर इमेज" में "श्री मदभाग्व्द कथा" यह दुनिया की अभी तक की पहली ऐसी पुस्तक (ग्रन्थ) जो शीशे में देखकर पढ़ी जाएगी अब तक दुनिया में ऐसा नहीं हुआ है दादरी वाले ने सभी १८ अध्याय ६०० शलोको दोनों भाषाओँ हिंदी व् अंग्रेजी में लिख, रोशन किया है I यू आई डी बी वर्ल्ड रिकार्ड्स ने इसे मोस्ट ७०० मिरर इमेज बर्सेज नाम से वर्ल्ड रिकार्ड्स में दर्ज किया है I इसके अलावा दादरी वाला संस्कृत में श्री दुर्गा सप्त शती, अवधि में सुन्दर कांड, आरती संग्रह , हिंदी व् अंग्रेजी दोनों भाषाओ में श्री साईं सत्चरित्र भी लिख चुके हैं I
दादरी वाला ने पूछने पर बतया कि आपने सुई से पुस्तक लिखने का विचार क्यों आया ? तो दादरी वाला ने बताया कि अक्सर मेरे से ये पूछा जाता था कि आपकी पुस्तको को पढने के लिए शीशे क़ी जरुरत पड़ती है, पदना उसके साथ शीशा, आखिर बहुत सोच समझने के बाद एक विचार दिमाग में आया क्यों न सूई से कुछ लिखा जाये सो मेने सूई से स्वर्गीय श्री हरबंस राय बच्चन जी की विश्व प्रसिद्ध पुस्तक "मधुशाला" को करीब २ से २.५ महीने में पूरा किया यह पुस्तक भी मिरर इमेज में लिखी गयीं है और इसको पदने लिए शिसे की जरुरत नहीं पड़ेगी क्योंकि रिवर्स में पेज पर शब्दों इतने प्यारे जेसे मोतियों से पेजों को गुंथा गया हो I उभरे हुए हैं जिसको पदने में आसानी है और यह सूई से लिखी "मधुशाला" दुनिया की अब तक की पहली ऐसी पुस्तक है जो मिरर इमेज व् सूई से लिखी गई है और इसका श्रेय भारत के दादरी कसबे के निवासी 'पीयूष दादरी वाला' को जाता है I
इसके अलावा दादरी वाला संग्रह के भी शोकिन हैं उनके पास माचिसों का संग्रह, सिगरेटों के पैकेटों का संग्रह, दुर्लभ डाक टिकटें, दुर्लभ सिक्कों का संग्रह, प्रथम दिवस आवरण, पेन संग्रह व् विश्व प्रसिद्ध व्यक्तियों के औटोग्राफ का संग्रह (मनमोहन सिंह जी, वी. पी. सिंह जी, चन्द्र शेखर, राजीव गाँधी जी, इंदिरा गाँधी जी, अमिताभ बच्चन, सचिन तेंदुलकर, ऋतिक रोशन, लतामंगेस्कर, अटल जी, मायावती जी, मुलायम सिंह जी) आदि संग्रह को चार चाँद लगा रहे हैं I
पीयूष दादरी वाला पेशे से यांत्रिक इंजिनियर है और एक बहु राष्ट्रीय कम्पनी में कार्यरत हैं, दादरी वाला तीन पुस्तके भी लिख चुके हैं (गणित एक अध्यन, इजी इस्पेलिंग व् पीयूष वाणी) I

--
piyushdadriwala
09654271007

2.11.11

गर्व (लघु कथा )

"माँ आज तुमने इतनी मार्मिक कविता सुनाई कि श्रोताओं की तालियां रुकने का नाम नहीं ले रही थीं. आज तुमने मेरा जन्मदिन का कार्यक्रम सफल कर दिया." आनन्द अपनी माँ को कार से उतारते हुए बोला. आनन्द की माँ प्यार से उसके सिर पर हाथ फिराते हुए बोलीं, "मेरा बेटा देश का इतना बड़ा कवि है... आगे पढ़ें

23.10.11

ठेका (लघु कथा)

अजमेर रेलवे स्टेशन के प्लेटफार्म पर इतनी भीड़ थी कि वहाँ की कोई बैंच खाली नहीं थी। एक बैंच पर एक परिवार, जो पहनावे से हिन्दू लग रहा था, के साथ बुर्के में एक अधेड़ सुसभ्य महिला बैठी थी। उसने सभ्यता से पान की पीक थूक-2 कर प्लेटफार्म पर अपने आस-पास कई चित्र बना दिये थे। बहुत देर चुपचाप बैठने के बाद जब उससे चुप्पी बर्दाश्त न हुई तो उसने बगल में बैठे युवक से पूछा, "अजमेर के रहनेवाले हैँ या फिर यहाँ घूमने आये हैं?" युवक ने बताया, "जी अपने माता पिता के साथ पुष्कर में ब्रह्मा जी के मंदिर के दर्शन करने आया था।" महिला ने बुरा मुँह बनाते हुए... आगे पढ़ें...

15.10.11

भाकपा ने अल्लामा फज़ले हक ”खैराबादी“ को श्रद्धांजलि देने आये चार केन्द्रीय नेताओं का उड़ाया मजाक


लखनऊ 15 अक्टूबर। भारत के प्रथम स्वाधीनता संग्राम के महान नायक तथा काले पानी की सजा पाने वाले पहले भारतीय अल्लामा फज़ले हक ”खैराबादी“ के जीवन से जुड़े पहलुओं पर चर्चा के लिए आज कांग्रेस के चार-चार केन्द्रीय नेताओं - दिग्विजय सिंह, सलमान खुर्शीद, श्री प्रकाश जायसवाल तथा बेनी प्रसाद वर्मा के लखनऊ पधारने का मजाक उड़ाते हुए भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के राज्य कोषाध्यक्ष प्रदीप तिवारी ने कहा है कि आसन्न विधान सभा चुनावों में अल्पसंख्यकों के वोट बटोरने के लिए कांग्रेस यह कवायद कर रही है और श्रद्धेय अल्लामा फज़ले हक ”खैराबादी“ के प्रति इन नेताओं और कांग्रेस में जरा भी सम्मान की भावना नहीं है।
भाकपा कोषाध्यक्ष प्रदीप तिवारी ने आज यहां जारी एक प्रेस बयान में कहा है प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के डेढ़ सौ वर्ष पूरे होने के पूर्व भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ने अगस्त 2006 में बाकायदा एक प्रस्ताव पारित कर संप्रग-1 सरकार से अमौसी हवाई अड्डे का नाम बेगम हजरत महल हवाई अड्डा रखने तथा अल्लामा फज़ले हक ”खैराबादी“ की स्मृति में खैराबाद अथवा सीतापुर में एक विश्वस्तरीय शैक्षिक संस्थान की स्थापना करने एवं उनकी प्रतिमा को खैराबाद रेलवे स्टेशन पर लगाने की मांग की थी। अल्लामा द्वारा प्रथम स्वाधीनता संग्राम का जो आंखों देखा हाल लिखा गया था, उसे हिन्दी और अंग्रेजी में प्रकाशित करने की भी मांग भाकपा ने की थी क्योंकि प्रथम स्वतंत्रता संग्राम का वह सबसे ज्यादा अधिकारिक दस्तावेज है। चूंकि भाकपा उस समय संप्रग-1 सरकार को बाहर से समर्थन दे रही थी, भाकपा महासचिव ए. बी. बर्धन ने एक पत्र लिख कर सोनिया गांधी और मनमोहन सिंह से भाकपा की इस मांग को पूरा करने का अनुरोध किया था परन्तु कांग्रेस के इन नेताओं ने अवध के इन बुजुर्गों के प्रति असम्मान जाहिर करते हुए भाकपा की मांग को ठुकरा दिया था। उसके थोड़े दिनों के बाद ही होने जा रहे विधान सभा चुनावों में जाट मतदाताओं को लुभाने के लिए लखनऊ हवाई अड्डे का नाम चौधरी चरण सिंह हवाई अड्डा रख दिया था।
प्रदीप तिवारी ने कहा है कि अब आसन्न विधान सभा चुनावों में मुसलमानों को अपनी ओर खींचने के लिए कांग्रेस आज की यह कवायद कर रही है और कांग्रेस के इन नेताओं को अल्लामा के जीवन, उनके सोच और उनके कामों के बारे में कुछ भी पता नहीं है।
अल्लामा फज़ले हक ”खैराबादी“ के प्रति भाकपा की श्रद्धा को दोहराते हुए प्रदीप तिवारी ने कहा है कि प्रथम स्वाधीनता संग्राम का फतवा जारी करने वाले अल्लामा शिक्षा के प्रति इतने समर्पित थे कि अंडमान जेल के तत्कालीन अधीक्षक के अनुरोध पर उन्होंने उनका उस्ताद बनना भी स्वीकार कर लिया था। प्रदीप तिवारी ने कहा कि यह अल्लामा की ही देन थी अंडमान जेल के बंदियों के पुत्र-पुत्रियों के नामों से उनके मज़हब और जाति का पता लगना बन्द हो गया था।
भाकपा कोषाध्यक्ष प्रदीप तिवारी ने भाकपा ने उन पुरानी मांगों को फिर दोहराते हुए प्रेस से अनुरोध किया है कि वे इस कार्यक्रम में आये कांग्रेस के नेताओं से इन बातों पर सवाल करें।

10.10.11

प्रसिद्ध गजल गायक जगजीत सिंह का निधन

पिछले दिनों प्रसिद्ध गजल गायक जगजीत सिंह को ब्रेन हेमरेज की शिकायत हुई। यह सुनकर बड़ा दुख हुआ। उसके बाद सुखद खबर यह आई की उनका आप्रेशन सफल रहा है और उनके स्वास्थ्य में निरतंर सुधार हो रहा है। रविवार को मै अपने वकील से एक केस के सिलसिले में उनसे विचारविमर्श करने के लिए करनाल (हरियाणा) जा रहा था कि रास्ते में राष्ट्रीय राजमार्ग पर उनके बहुचर्चित विज्ञापन टोरस कफ सिरप तो अलविदा खांसी के बड़ेबड़े बोर्ड लगे हुए थे। जिसमें उनका खिलखिलाता हुआ चेहरा दिखलाई दे रहा था। सांय को मैं करनाल से वापिस आ गया। सुबह खबर आई कि उनका अस्पताल में निधन हो गया। यह सुनकर मुझे व्यक्तिगत तौर बड़ा दुख हुआ। उनके निधन की खबर समाचार चैनलों पर देखकर मुझे उनका वहीं बोर्ड पर मुस्कुराता हुआ चेहरा रहरहकर याद आया। उनके निधन पर केवल मुझे ही नहीं अपितू पूरव् भारतवर्ष के लोगों को दुःख है। दुख हो भी यों ना योंकि जगजीत सिंह इस देश की अजीम हस्ती थे तथा उनकी क्षतिपूर्ति कभी भी नहीं हो सकती। जगजीत सिंह एक महान गायक थे तथा उनकी गायकी में श्रोता पूरी तरह से डूब जाया करता था। इन महान गायक को कभी भी नहीं भुलाया जा सकता। मैं उनकी गजलों का फैन रहा हुं। उनकी गजल कि तुम जो इतना मुस्कुरा रहे हो या गम है के तुम छुपा रहे हो, होश वालों को खबर या बेखुदी या चीज है, ये दौलत भी ले लो ये शोहरत भी ले लो तथा ना चिट्ठी ना संदेश ना जाने वो कौन सा देश जहां तुम चले गए? अब भी मेरे दिलोदीमाग व कानों में बज रही हैं। मेरा श्री जगजीत सिंह को कोटीकोटी वंदन!!!!!!!! मै भगवान से प्रार्थना करता हुं कि उनकी आत्मा को अपने चरणों में स्थान दे तथा शोक सतृंप्त परिवार को इस दुख को सहने की शक्ति प्रदान करें।

9.10.11

बाजरे की सिर्टियों पर गुबरैले का बसेरा




बीते कल किसी काम से जींद शहर में किसी के घर गया था। चाय पीना लाजिमी था और इससे भी लाजमी था चाय बनाने में समय का लगना। इसी समय मेरी नजर पड़ी उत्तरी भारत के सम्पूर्ण अख़बार दैनिक ट्रिब्यून पर। मुझे तो स्थानीय खबरे ही ज्यादा भाती हैं, भावें वे सतही क्यों ना हों। आज भी इस अख़बार का सीधे दूसरा ही पन्ना खोल लिया। ध्यान गया सीधे एक शीर्षक पर," बाजरे की फसल पर अज्ञात बीमारी का प्रकोप।" पूरी खबर पढ़ कर खोपड़ी घूम गयी। अक बाजरे की सिर्टियों पर बैठा तो सै एक चमकीले हरे रंग का कीड़ा। पर बतान लागरे सै अज्ञात बीमारी। वा! रे, म्हारे हरियाणा अर म्हारी संस्कृति। इसमें किसका के खोट? मै खुद मेरी बहु नै के बेरया कितनी बार बात-बात पै बीमारी कह दिया करूं। जिब मेरा यू हाल सै अक बहु अर बीमारी में फर्क नही कर पांदा तो फेर इनका के खोट जै कीड़े अर बीमारी में फर्क नही कर पावै तो?
ख़ैर ना तो किसानों को परेशान होण की जरुरत अर ना अधिकारीयों को अनजान रहने की जरुरत। यू कीड़ा जो बाजरे की सिर्टियों पर बैठा दूर तै एँ नजर आवै सै चर्वक किस्म का एक शाकाहारी गुबरैला सै। बाजरे की सिर्टियों पर यह गुबरैला तो काचा बुर(पराग) खाने के लिए आया है। आवै भी क्यों नही? इसनै तो भी अपना पेट भरना सै अर वंश वृद्धि का जुगाड़ करना सै। बाजरे की फसल में तो बीज पराये पराग से पड़ते हैं। अ: इस कीट द्वारा बाजरे की फसल में पराग खाने से कोई हानि नही होगी। बल्कि जमीन में रहने वाले इसके बच्चे तो किसानों के लिए लाभकारी सै क्योंकि जमीन में वे केंचुवों वाला काम करते हैं। अत: इस कीड़े को बाजरे की सिर्टियों पर देखकर किसे भी किसान नै अपना कच्छा गिला करण की जरुरत नही अर ना ऐ किते जा कर इसका इलाज़ खोजन की।
आपने हरियाणा में ज्युकर बहुत कम लोगाँ नै मोरनी पै मोर चढ्या देखा सै न्यू ऐ यू कीड़ा भी शायद बहु ही कम किसानों व् कीट वैज्ञानिकों नै ज्वार की सिर्टियों पर देखा सै। असली बात तो या ऐ सै अक यू कीड़ा सै भी ज्वार की फसल का कीड़ा। पर कौन देखै ध्यान तै ज्वार की सिर्टीयाँ नै।
इस कीड़े को खान खातिर म्हारे खेताँ में काबर, कव्वे व् डरेंगो के साथ-साथ लोपा मक्खियाँ भी खूब सैं। बिंदु-बुग्ड़े, सिंगू-बुग्ड़े व् कातिल-बुग्ड़े भी नज़र आवैं सैं। हथ्जोड़े तो पग-पग पर पावे सै। यें भी इसका काम तमाम करे सै। गाम कै गोरे से इतनी लिखी नै बहुत मानन की मेहरबानी करियो।