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9.10.11

बाजरे की सिर्टियों पर गुबरैले का बसेरा




बीते कल किसी काम से जींद शहर में किसी के घर गया था। चाय पीना लाजिमी था और इससे भी लाजमी था चाय बनाने में समय का लगना। इसी समय मेरी नजर पड़ी उत्तरी भारत के सम्पूर्ण अख़बार दैनिक ट्रिब्यून पर। मुझे तो स्थानीय खबरे ही ज्यादा भाती हैं, भावें वे सतही क्यों ना हों। आज भी इस अख़बार का सीधे दूसरा ही पन्ना खोल लिया। ध्यान गया सीधे एक शीर्षक पर," बाजरे की फसल पर अज्ञात बीमारी का प्रकोप।" पूरी खबर पढ़ कर खोपड़ी घूम गयी। अक बाजरे की सिर्टियों पर बैठा तो सै एक चमकीले हरे रंग का कीड़ा। पर बतान लागरे सै अज्ञात बीमारी। वा! रे, म्हारे हरियाणा अर म्हारी संस्कृति। इसमें किसका के खोट? मै खुद मेरी बहु नै के बेरया कितनी बार बात-बात पै बीमारी कह दिया करूं। जिब मेरा यू हाल सै अक बहु अर बीमारी में फर्क नही कर पांदा तो फेर इनका के खोट जै कीड़े अर बीमारी में फर्क नही कर पावै तो?
ख़ैर ना तो किसानों को परेशान होण की जरुरत अर ना अधिकारीयों को अनजान रहने की जरुरत। यू कीड़ा जो बाजरे की सिर्टियों पर बैठा दूर तै एँ नजर आवै सै चर्वक किस्म का एक शाकाहारी गुबरैला सै। बाजरे की सिर्टियों पर यह गुबरैला तो काचा बुर(पराग) खाने के लिए आया है। आवै भी क्यों नही? इसनै तो भी अपना पेट भरना सै अर वंश वृद्धि का जुगाड़ करना सै। बाजरे की फसल में तो बीज पराये पराग से पड़ते हैं। अ: इस कीट द्वारा बाजरे की फसल में पराग खाने से कोई हानि नही होगी। बल्कि जमीन में रहने वाले इसके बच्चे तो किसानों के लिए लाभकारी सै क्योंकि जमीन में वे केंचुवों वाला काम करते हैं। अत: इस कीड़े को बाजरे की सिर्टियों पर देखकर किसे भी किसान नै अपना कच्छा गिला करण की जरुरत नही अर ना ऐ किते जा कर इसका इलाज़ खोजन की।
आपने हरियाणा में ज्युकर बहुत कम लोगाँ नै मोरनी पै मोर चढ्या देखा सै न्यू ऐ यू कीड़ा भी शायद बहु ही कम किसानों व् कीट वैज्ञानिकों नै ज्वार की सिर्टियों पर देखा सै। असली बात तो या ऐ सै अक यू कीड़ा सै भी ज्वार की फसल का कीड़ा। पर कौन देखै ध्यान तै ज्वार की सिर्टीयाँ नै।
इस कीड़े को खान खातिर म्हारे खेताँ में काबर, कव्वे व् डरेंगो के साथ-साथ लोपा मक्खियाँ भी खूब सैं। बिंदु-बुग्ड़े, सिंगू-बुग्ड़े व् कातिल-बुग्ड़े भी नज़र आवैं सैं। हथ्जोड़े तो पग-पग पर पावे सै। यें भी इसका काम तमाम करे सै। गाम कै गोरे से इतनी लिखी नै बहुत मानन की मेहरबानी करियो।

बी.टी.कपास का जहर- पक्षपाती जहर


आज सुबह डांगर-ढोर की कर कै अर नीता कै हाथ क़ी चाय पीकर घूमने लिकड़ा था अक गाम कै गोरै तानु लम्बरदार से हेट-फेट हो गयी। नाम तो तानू का महा सिंह की माँ नै बड़े चाव से अपने पोते का कप्तान धरा था। टेमसर सरकारी स्कूल में भी घाल्या। बात-बात पे सवाल अर बाल की खाल तारण पै लाग्या रहा। सवाल दर सवाल करन आला बालक किसनै सुहावै था। स्कूल में अध्यापकों अर घर पै घरआलाँ तै कप्तान भी नही ओटा गया। नतीजा यू लिकड़ा अक कप्तान फौज में कप्तान भर्ती होना तो दूर का सपना सिपाही भर्ती होन जोगा भी नही पढ़ पाया और इस दुनिया में चढ़ते सूरज को सलामी देने वालों नै इस कप्तान को कप्तान भी नही रहन दिया बल्कि तानू बना कर छोड़ दिया। पर समय अर स्थान की बलवानी नै तानू को लम्बरदार बनने का मौका तो दे दिया। इतना कुछ खो कर भी तानू नै सवाल पूछन अर बहस करन की बाण नही छोड़ी। आज तड़के ऐ भी भिड़ते ही न्यूं बोल्या," रै कीट-ज्ञानियों न्यू तो बताओ अक इस बी.टी.कपास कै कण-कण में मौजूद यू जहर रस चूसक कीड़ों को क्यों नही ख़त्म करता? जै चर्वक कीटों की तरह चूसक कीटों को भी मार देता तो जमा ऐ जीस्सा आ जाता।"
तानू की सुन कै, मैं कहन लगा अक तानू यू जहर तो सुंडियों को ही मारता है जबकि कपास में चर्वक कीड़े तो और भी घने ऐ सै।
इतनी तानू पै कीत उट्टे थी। झट टाड कै पड़ा, "रै बोलीबुच्चो, बी.टी.के इस जहर नै तो आपनी पुराणी कहावत(भैंस बड़ी की अक्ल) भी झूठी गेर दी। भैंस तो इतनी सयानी हो गयी कि बी.टी.कपास के बिनौले को खुश होकर नही खाती। बालकों कि तरह भलो-भलो कर खुवाना पड़ता है। घरां सोपे में रखी बी.टी.कपास में लोट मारण तै तो चूहे भी परहेज़ रखते हैं। फेर थाम क्यों सुंडियों अर चर्वक कीटों के फेर में पड़ रे सो।"
इतनी सुन कै मेरी तो खोपड़ी घूम गी अर माफ़ी मांग कै जंगल-पानी तै निफराम होन ताहि खेताँ क़ी तरफ सरक लिया।गामाँ में इब बणी तो रही नही। निफराम होण का ठिकाना भी बी.टी.कपास कै खेत तै न्यारा कित पावै था।समय सही था अर स्थान भी माकूल था ऊपर तै बीड़ी पीन का हरियाणवी फार्मूला भी ला कै देख लिया पर आज तो तानू के ताने आगै सब फेल होगा। लींड जमा सीकर में चढ़ग्या। सारे बाणे बजा कै निराश हो घरां पहुँच कै चुपचाप बैठक में लेट गया।
रह-रह कै तानू की बात ध्यान में आवै। पड़े-पड़े कपास कीटतंत्र के पिछले चार साल पर नजर मारी तो पाया अक इन चार सालों से शहद की देशी मक्खियों ने बी.टी. कपास के फूलों पर नही बैठने का पंचायती फैसला कर लिया हैइटालियन मक्खियों के नेतृत्व ने भी गणतंत्री सरकारों की तर्ज़ पर अपनी प्रजाति को इन बी.टी.कपास के फूलों से दूर रहने की चेतावनी जारी कर राखी हैपहाड़ी म्हाल की मक्खी जरुर नज़र आई सै पर इनकी संख्या भी लगातार कमी होती देखी जाने लगी है। कहने वाले तों न्यूँ भी कह दे सै अक माल की मक्खी तो वैसे ही कम हो रही सै। इनका बी.टी.कपास तै के लेना-देना। पर हमने तो कपास के खेत में ही सांठी के छोटे-छोटे फूलों पर इन मक्खियों को परागकण व् मधुरस के लिए मेहनत करते खूब देखा है। तेलन, चैफर बीटल, भूरी पुष्पक बीटल व् स्लेटी भुंड जैसे शाकाहारी चर्वक कीटों की संख्या भी लगातार घट रही सै। कुबड़े कीड़े अर अर्ध-कुबड़े कीड़े भी बी.टी.कपास की फसल में जमा ऐ कम पावै सै। जिब विचारों की चैन नै क्यूकर ऐ भी थमन का नाम नही लिया तो इगराह गाम में मनबीर धोरै फोन मारा अर आप बीती सुनाई। मनबीर नै पूरी तस्सली तै बात सुनी अर न्यूं बोला, "रणबीर, जमीनी तथ्यों पर आधारित हकीकत को जितनी जल्दी मान लो उतना ही अच्छा, बेमतलब उधेड़बुन में रहन की जरूरत नही दोस्त। कपास की फसल में कीटों का अपने किसानों द्वारा त्यार पिछला पाँच साला लेखा-जोखा तो तानू अर तेरी बात नै जायज ठहराव सै। सही सै अक यू बी.टी.प्रोटीन रस पीकर गुज़ारा करने वाले कीड़ों को तो कुछ नही कहता पर चबा कर खाने वाले कीड़ों के लिए तो जहर ही है। पर यू आपां नै जरुर याद रखना चाहिए अक जहर के घातक प्रभावों का कम-फालतू असर जहर की मात्रा और शारीरिक वजन के हिसाब से ही होता है।" फोन काट्या ऐ था अक बालका नै रोटी खान खातिर आवाज़ मारली। हालाँकि रोटी पौन में नीता मेरी माँ का मुकाबला करती है पर आज तो टूक हलक तै नीचै उत्तरण का नाम नही लेन लागरे। जैसे-तैसे दो-एक रोटी पेट में सुड़ी अर फेर बैठक में आ कर लेटगा। भतेरी सोची अक कुण-कड़े की बी.टी.अर किसा जहर? तू क्यों सोच ठारया सै। जो देश गेल बनेगी-वा तेरी गेल बन जागी। खा-पी अर चादर तान कर सो। पर चादर तानी तो कौन गयी। दिमाग बार-बार सीलोन आला बैंड पकड़े गया। तिनकै के आसरै की आस में डा.दलाल धौरे फोन भिड़ा लिया। यू डा.पदवी आला सै अक म्हारै महा सिंह के कप्तान की ज्यूँ कप्तान सै- इस बात का मनै भी नही बेरया।
फोन ठाते ही डा.बोला, " हाँ! रनबीर बोल। के बात सै।"
बात के सै डा.साहब, मै तो इस बी.टी.नै बांस दिया। या के बीमारी पलै पड़गी, कुछ समझ नही आंदा।
दूसरी साईड तै डा का जवाब आया, "रनबीर इसमें समझन आली के बात सै। हमारी जमीन में टी.बी.आले बैक्टीरिया की जात बेसिलस म्ह की प्रजात थिरुंजिनेंसिस आला
बैक्टीरिया पाया जाता है. इसी बैक्टीरिया से जहर का निर्माण करने वाला एक विशेष खरना-अणु निकाल कर कपास के पौधे में डाल दिया गया है। इस जहरी खरना-अणु का नाम धरा गया-- cry1. अब तो बहुत सारे ढूंढ़ लिए गये पर नाम कै आगै सबकै cry ही लगता है। अब इसनै बनाने अर बेचने वाले रोहा-रूहाट करेंगे या बरतनिये किसान धुहाथड़ मारकै रोवेंगे- इसका मनै भी नही बेरया।"
मैं या कौन पुछदा डॉ.साहब, मैं तो न्यूँ पुछू था अक यू बी.टी.जहर पक्षपाती क्यूँ सै?

6.10.11

सभी को विजय दशवीं की हार्दिक शुभकामनाएं !!!!!!!

5.10.11

एक पत्र लंकाधीश रावण के नाम

प्यारे लंकाधीश रावण

सादर दहनस्ते!

बहुत दिनों से मेरे भोले से मन में एक प्रश्न खलबली मचाये हुए है. यही कि आपके सिर तो पूरे दस हैं और हाथ केवल दो. जब कभी मौसम बदलता होगा और आपको जुकाम होता होगा तो कैसे व्यवस्थित करते होंगे अपने दो हाथों से दस नाकों को. रावण जी इश्माइल...आगे पढ़ें...

3.10.11

ड्यूटी के समय पुलिस वाले खेलते हैं ताश

हरियाणा पुलिस सेवा, सुरक्षा सहयोग का नारा देते नहीं थकती है। चित्र में ड्यूटी के समय ताश खेल रहे इन पुलिस वालों को देखकर या ऐसा लगता है कि ये जनता की सेवा, सुरक्षा सहयोग कर रहे हैं ?

29.9.11

सरकारी सैटर भी कालाबाजारी व लैकमेलिंग में पीछे नहीं

प्राईवेट सैटर में कालाबाजारी लैकमेलिंग के किस्से समाज के सामने आते रहते हैं लेकिन अब सरकारी सैटर भी कालाबाजारी लैकमेलिंग से अछूता नहीं रह गया है। सरकारी सैटर में कालाबाजारी लैकमेलिंग का एक किस्सा हरियाणा प्रांत के सफीदों नगर में सामने आया है। सफीदों की अनाज मंडी में हैफेड का खाद का विक्रय केंद्र है। इस केंद्र पर हजारों बैग डी..पी. खाद के पड़े हुए थे लेकिन कालाबाजारी की नियत से वहां के अधिकारी किसानों को खाद देने को तैयार नहीं थे। बताया जाता है कि डी..पी. खाद के रव्ट बढ़ाए जाने की संभावना हैं। रेट बढ़ने की बात का पता चलते ही क्षेत्र के सैंकड़ों किसान खाद को लेने के लिए विक्रय केंद्र पर गए। उन्होंने जब अधिकारियों से खाद देने की बात कही तो उन्होंने टका सा जवाब दे दिया कि खाद नहीं है। जब किसानों ने ज्यादा जोर दिया तो अधिकारियों ने कहा कि खाद का बैग अब 600 रुपए की बजाए 760 रुपए का मिलेगा। अधिकारियों ने किसानों के सामने यह भी शर्त भी रख दी कि प्रति 5 बैग खाद के साथ एक खल (पशुओं का चारा) का बैग या एक चीनी का बैग अवश्य ही लेना होगा। अधिकारियों ने यह शर्त रखनी थी कि किसान आग बबूला हो गए। आक्रोशित आधा दर्जन गांवों के किसानों ने सहकारी खाद विक्रय केंद्र पर ताला जड़ दिया। किसानों ने सरकार प्रशासन के खिलाफ जमकर नारेबाजी की। किसानों का कहना था कि पहले तो खाद नहीं देना और साथ में सामान अवश्य लेने की शर्त रखना उनके साथ सरासर नाइंसाफी है। वे डी..पी. खाद लेने के लिए पिछले कई दिनों से विक्रय केंद्र के चकर काट रहे हैं लेकिन अधिकारी उन्हे टरकाते रहे मजबूरन उन्हे यह कदम उठाना पड़ा। किसानों का कहना था कि सहकारी दुकान के कर्मचारी सरेआम कालाबाजारी लैकमेलिंग रहे हैं। दुकान पर ताला जड़ने की बात का पता चलते ही प्रशासनिक अधिकारी पुलिस मौके पर पहुंची। प्रशासन की तरफ से आए तहसीलदार महेंद्र सिंह ने कहा कि इस मामले की गहनता से जांच करके दोषिओं के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी। उन्होंने किसानों को बताया कि सहकारी खाद विक्रय केंद्र में पुराना स्टॉक में लगभग 60 हजार डी..पी. के बैग है, जिन्हें किसानों को पुराने भाव में ही दिए जाएंगे और उन बैग के साथ कोई भी चीनी अन्य सामान नहीं दिया जाएगा। उनके आश्र्वासन के बाद सहकारी खाद विक्रय केंद्र का ताला खुल पाया।

27.9.11

पत्रकार को पितृशोक

समाजसेवी लाला परमेश्र्वरीदास गुप्ता का निधन
सफीदों (हरियाणा) : सफीदों के महाभारतकालीन महत्व के नागक्षेत्र मंदिर सरोवर तथा स्वामी गौरक्षानंद गौशाला के प्रति समर्पित रहे समाजसेवी परमेश्र्वरीदास गुप्ता ( 81 ) का आज निधन हो गया। वह लंबे समय से बीमार थे। कई दशकों तक यहां की नागक्षेत्र सुधार समिति के अध्यक्ष रहे गुप्ता ने स्वामी गौरक्षानंद गौशाला राजकीय कॉलेज की स्थापना मे भी अहम भूमिका निभाई। नगर के अनेक सार्वजनिक कार्यों में उनकी सराहनीय भागीदारी रही। उनके अंतिम संस्कार मे क्षेत्र भर के अनेक गण्यमान्य लोगों ने भाग लिया। समाजसेवी परमेश्र्वरीदास गुप्ता सफीदों के वरिष्ठ पत्रकार राजीव गुप्ता के पिता थे।