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27.6.11

एक पत्र कबाड़ी चाचू के नाम

प्यारे कबाड़ी चाचू
सादर धूर्तस्ते

तुमने हम सब के लिए इतना कुछ किया है की उन कार्यों का सम्मान करते हुए तुम्हें यह पत्र लिख रहे हैं. हमें याद है कि जब हम बचपन और जवानी के पलों को जी रहे थे तब तुम हमारे जीवन में पधारे थे. जब घर का छोटा-मोटा कबाड़ा तुम्हें बेचने के लिए हम आते थे तो तुम अपनी मधुर मुस्कान, जो वास्तव में बहुत कुटिल थी, से हमारा स्वागत करते थे..आगे पढ़ें

23.6.11

आज की महाभारत...!!





















































( स्रोत---मुंबई हैंग आउट )


प्रबल प्रताप सिंह

एक पत्र प्रधानमंत्री के नाम

प्यारे प्रधानमंत्री जी
सादर अनभिग्यस्ते
आपको यह पत्र पढ़ने का कष्ट उठाना पड़ रहा है इसके लिए क्षमा चाहते हैं. किन्तु क्या करें हमारी विवशता थी सो आपको यह पत्र लिखना पड़ा. वैसे तो हमें खेती के कार्यों से ही समय नहीं मिलता जो किसी को पत्र लिखें परन्तु यह भी अंत्यंत आवश्यक था कि आपकी आँखों पर पड़े पर्दे को इस पत्र द्वारा हटाने का प्रयास किया जाये. प्रधानमंत्री जी हालांकि अपना देश भारत एक कृषि प्रधान देश है किन्तु फिर भी इस देश में हम किसानों की स्थिति दिन-प्रतिदिन ख़राब होती जा रही है...
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19.6.11

पापा जाने कहां तुम चले गए...

जून का तीसरा इतवार... दुनियाभर केबच्चों के लिए फादर्स डे.. लेकिन इसी जून की पहली तारीख मेरे पप्पा को मुझसे छीनकर ले गई। एकपल को ऐसा लगा जैसे सबकुछ ताश के पत्तों की तरह बिखर गया। ऐसा लगा जैसे पैरों के नीचे से ज़मीन खिसक गई हो। शायद मेरे घर को किसी की नज़र लग गई.. हमेशा मुस्कुराने वाले मेरे पप्पा बड़े चुपके से हमें छोड़कर चलते बने। ग़म तो यह कि हमसे कुछ कहा भी नहीं। मेरे प्यारे पप्पा जब मेरे सिर सेहरा सजाने का ख्वाब देख रहे थे, तभी मौत आई और ज़िंदगी को धोखा देकर पप्पा को मुझसे छीनकर ले गई। पप्पा की गोद में सोने वाले अब पप्पा से मीलों दूर थे। पप्पा अब भी खुश थे.. लेकिन अब उनकी आंखे नम थीं.. क्योंकि बच्चे अब सचमुच बड़े हो गए थे... और उनसे बहुत दूर भी हो गए थे। और मेरे प्यारे पप्पा फिर से अकले हो गए।

http://abyazk.blogspot.com/2011/06/blog-post.html

16.6.11

एक पत्र भारतीय किसान के नाम

प्यारे भारतीय किसान
सादर क़र्ज़स्ते!

कल तुम्हारा किसान साथी छज्जू राम पेड़ पर फ़ासी लगा कर क्या मरा पूरे सूबे में ही मानो फ़ासी झूलने की बीमारी छूत की भांति फ़ैल गई. प्रशासन भी सकते में आ गया और आला अधिकारियों में भी हडकंप सा मच गया तो मन किया कि एक पत्र लिखकर तुम्हारे दुखों पर मरहम लगाने का कुछ प्रयास कर लूं. हम सभी का दिल बहुत दुखता है जब तुम्हारे किसान बंधु एक झटके में ही अपनी जान दे देते हैं. अब तुम जो अपनी दुःख भरी कहानी सुनाओगे उसे मै...आगे पढ़ें...

10.6.11

चिंतन मेरे मन का: मैं राहुल बाबा

चिंतन मेरे मन का: मैं राहुल बाबा: "अगर राहुल जी से आज सच बोलने को कहा जाये और वे आंखे बंद करके सच कहने का फैसला करें तो कुछ इस तरह सच सामने आएगा - एक चिंतन कांग्रेसियों का..."

9.6.11

एक पत्र जाति प्रथा के नाम

आदरणीय जाति प्रथा

सादर बाँटस्ते

आज की परिस्थितियों को स्वीकार करते हुए आपको यह पत्र लिख रहा हूँ. ऋग्वेद के दसवें मंडल के पुरुष सूक्त में विराट द्वारा आपकी उत्पति की गयी थी. जिसमें कहा गया था की ब्राम्हण परम-पुरुष के मुख से, क्षत्रिय उनकी भुजाओं से, वैश्य उनकी जंघाओं से तथा शूद्र उनके पैरों उत्पन्न हुए थे तथा इन सभी के कार्य भी क्रमश शिक्षा देना, युद्ध करना, खेती करना तथा चौथे वर्ण का कार्य तीनों वर्णों की सेवा करना था. सही मायने में देखा जाए तो आर्यों ने ऋग्वेदिक काल में सामाजिक व्यवस्था को सुचारू रूप से चलाने के लिए कार्यों का वैज्ञानिक आधार पर...आगे पढ़ें