2.6.11
31.5.11
बड़ा पत्रकार बनना है...!?
मुचकुंदीलाल को आज पूरे शहर में विश्व तम्बाकू निषेध दिवस पर होने वाले कार्यक्रमों को कवर करने का निर्देश मिला है. मीटिंग ख़त्म होते ही रोजमर्रा की तरह मुचकुंदीलाल ऑफिस के पीछे पप्पू पानवाले की दुकान पर हिक१ भर धुंए के कुंए में डूब रहा है. फिर फील में जाएगा. उसके सिगरेट पीने के पीछे एक बड़ा रहस्य है. जिसे वह जनता है, मैं जनता हूँ और उसका चीफ ( चीफ रिपोर्टर ) और अब उसकी पत्नी जानती है. क्योंकि शादी के बाद उसने पत्नी को बताया था की वो सिगरेट पीता है.
आइये अब तफ़सील से आप भी उसके रहस्य से रू-ब-रू होइए. वैसे मुचकुंदीलाल नशेबाज़ नहीं है. मैं भी उसे नशेबाज़ नहीं मानता. यहाँ तक की उसकी पत्नी भी उसे नशेबाज़ नहीं मानती. हम दोनों ने साथ स्नातक किया. उसे पत्रकार बनने का शौक था. सो वह शहर के एक प्रतिष्ठित अखबार में जुगाड़ लगाकर एंट्री कर गया. जुगाड़ इसलिए कि आज तक कोई भी पत्रकार बिना जुगाड़ के उस संस्थान में प्रवेश नहीं कर सका है.
जब मुचकुंदीलाल की एंट्री हुई थी तो वह ट्रेनी रिपोर्टर था. कुछ साल बाद वह तरक्की पाकर रिपोर्टर की श्रेणी में आया. ट्रेनी से रिपोर्टर तक के दरम्यां वह कोई नशा नहीं करता था. जब वह रिपोर्टर की श्रेणी में आया तो उसके तन-मन में " बड़ा पत्रकार " बनने का "वाइरस" घुस गया. यह वाइरस उसके चीफ ने उसके मन पर छोड़ा था. जो मुचकुंदीलाल के आंतों तक फ़ैल गया. बड़ा पत्रकार बनने की पहली शर्त ये थी कि सिगरेट पीना चाहिए. उच्च कोटि का पत्रकार बनने के लिए चेन स्मोकिंग के साथ-साथ अव्वल दर्जे का शराबी, कबाबी, चरसी, भंगेड़ी, गंजेड़ी और जितने भी प्रतिबंधित नशे हैं, उसका अनुभव होना जरूरी है. वाही वह बड़ा पत्रकार बन सकता है.
बड़ा पत्रकार बनने की शर्त सुनकर मुचकुंदीलाल को रातभर नींद नहीं आई. दूसरे दिन जब वह फील्ड में गया तो उसके दिमाग में बड़ा पत्रकार बनने का वाइरस उमड़ने लगा. फिर क्या था, मुचकुंदीलाल ने मोतीझील चौराहे पर शर्मा पान वाले की दुकान जाकर एक सिगरेट खरीदा. सुलगाने के बाद जैसे ही उसने मुंह में लगाया तो मनो उसे दमा का अटैक पड़ गया हो. पहला दिन तो किसी तरह गुज़र गया. धीरे-धीरे मुचकुंदीलाल सिगरेट के छल्ले उड़ने लगा. अब वह जब भी ऑफिस आता तो ऑफिस की सीढ़ियाँ चढ़ने से पहले पीछे जाकर पप्पू पानवाले की दुकान पर हिक भर सिगरेट का धुंआ अपने फेंफड़े में उतार लेता. रात में घर जाने से पहले मॉडल शॉप जाकर सबसे महंगी दारू तब तक पीता जब तक उसे नशा न चढ़ जाए. क्योंकि उसे बड़ा पत्रकार बनना था. वह सारा नशा ऑफिस टाइम में ही करता. जब घर में होता तो इलायची का एक दाना मुंह में नहीं डालता. उसकी नशेबाज़ी की पत्रकारिता सुबह १० बजे से रात १२ बजे तक चलती थी. जिस दिन उसका वीकली ऑफ़ होता था उसके पहली रात वो अगले दिन का कोटा भी पूरा कर लेता था. उसकी पत्नी भी उसे कुछ नहीं बोलती थी. आखिर कौन पत्नी नहीं चाहेगी कि उसका पति बड़ा पत्रकार न बने?
बारह साल हो गए मुचकुंदीलाल को बड़ा पत्रकार बनने की शर्तें पूरी करते. जिसका परिणाम यह हुआ कि उच्च रक्तचाप, ह्रदय रोग, डाईबीटीज, अस्थमा जैसी तमाम घातक बीमारियों ने उसके शरीर पर कब्ज़ा कर लिया. फिर भी मुचकुंदी बड़ा पत्रकार बनने के शर्तों को पूरा करने में लगा है. जिसने ये वाइरस फेंका था वो चीफ साहब चार साल पहले अधिक दारु पीने से उनकी आंतो ने जवाब दे दिया और वे परलोक सिधार गए. मुचकुंदी की आधी पगार बड़ा पत्रकार बनने की शर्तों में खर्च हो रही है और आधी पगार घातक बीमारियों को कण्ट्रोल करने में. उसकी पत्नी प्राइवेट स्कूल से मिलने वाली पगार से घर चला रही.
...................मुचकुंदीलाल पप्पू पानवाले की दुकान पर फेंफड़ों में धुंआ भर रहा है...उसे विश्व तम्बाकू निषेध दिवस पर कार्यक्रम कवर करने जाना है.
अफ़सोस...!!! मेरा प्रिय मित्र न जाने कब बड़ा पत्रकार बनेगा...!?
१-- मन भर
प्रबल प्रताप सिंह
28.5.11
वो दिन !
मेरे मित्र श्री सतीश मंगला ने मुझे एक कविता भेजी है। मुझे वह कविता काफी पंसद आई। यह कविता मै आपके समक्ष रख रहा हुं। शायद आपको भी पसंद आए। कृप्या गौर फरमाएं..........
आज भी नही हूँ भुला ...........................
वो दोस्तो के साथ की हुई मस्ती ............
वो छोटी सी गलियों वाली अपनी प्यारी सी बस्ती .................
वो किसी को सताना वो किसी को मानना .....................
वो किसी के इन्तेजार मे जब निगाहें थी तरसती
जब भी बैठ के सोचता हूँ वो पुरानी बातें ,
वो बीते हुए लम्हे, वो गुजरी राते ..........
न जाने कहाँ आ फंसा हूँ ये कैसा है समंदर
है उस पार जाना और न मांझी है न कश्ती.......................
आज भी नही हूँ भुला वो की हुई मस्ती ..........................
आज भी नही हूँ भुला वो की हुई मस्ती .................
आज भी नही हूँ भुला ...........................
वो दोस्तो के साथ की हुई मस्ती ............
वो छोटी सी गलियों वाली अपनी प्यारी सी बस्ती .................
वो किसी को सताना वो किसी को मानना .....................
वो किसी के इन्तेजार मे जब निगाहें थी तरसती
जब भी बैठ के सोचता हूँ वो पुरानी बातें ,
वो बीते हुए लम्हे, वो गुजरी राते ..........
न जाने कहाँ आ फंसा हूँ ये कैसा है समंदर
है उस पार जाना और न मांझी है न कश्ती.......................
आज भी नही हूँ भुला वो की हुई मस्ती ..........................
आज भी नही हूँ भुला वो की हुई मस्ती .................
टाटा (लघु कथा)
मासूम ने देखा कि बस में बहुत देर से एक महिला अपने बच्चे को गोद में लिए खड़ी थी तथा कठिनाई अनुभव कर रही थी .उसने दया कर उसे अपनी सीट दे दी. अगले स्टैंड पर दूसरी सीट भी खाली हो गई व मासूम उस महिला के बगल में ही बैठ गया. महिला मासूम द्वारा सीट देने के लिए उसके प्रति आभारी थी. बातों का सिलसिला शुरू हो गया. उस महिला के नैन -नक्श आकर्षित करने वाले थे. मासूम उसके रूप के आकर्षण में आगे पढ़ें..
21.5.11
अपहरण (लघु कथा)
18.5.11
मेरी बहना चली गई
15.5.11
अपने और पराये (लघु कथा)