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18.2.11

में शमा हूँ तो क्या ............

Friday, February 18, 2011

में शमां हूँ
तो क्या
तुम परवाने हो
मेरा क्या
में तो बस
एक रात
में ही जल कर
बुझ जाउंगी
फिर नई रात आएगी
नई शमा आएगी
उढ़ते हुए परवानों को
पास बुलाएगी
और फिर
उन्हें
तडपा तडपा कर
जलायेगी
तुम तो खुदा हो
रोक सकते हो तो रोक लो
बरसों से
चल रहे इस सिलसिले को
नहीं ना
नहीं रुकता हे
यह सिलसिला
तो फिर क्यूँ
यूँ ही मुझे
दोष देते हो
रात के अंधेरों में
मुझे जला कर
जिंदगी खुद की रोशन यूँ क्यूँ करते हो ............ । अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

तुम मेरे लियें .....

हाँ तुम मेरे लियें
झिलमिलाते
आसमां के तारे हों
उन्हें भी बस
टक टक निहारा जा सकता हे
तुम्हें भी बस यूँ ही
निहारा और देखा
जा सकता हे
जेसे तारे मुझे
कभी मिल नहीं सकते
वेसे ही
तुमने भी
मुझ से
नहीं मिलने की
ठान ली हे
तो बस
तुममें और आसमान के चमकते झिलमिलाते
तारों में क्या फर्क हे
तारे भी
रात में झिलमिलाते हें
तुम्हारी याद भी
बस रात को ही आती हे
तो फिर सही कहा ना मेने
तुम मेरे लियें
तारे सिर्फ तारे हो .................. । अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

धारीवाल के कारतूसों पर धारीवाल का कारतुस

Thursday, February 17, 2011

राजस्थान के गृह मंत्री शान्ति कुमार धारीवाल हाल ही में एयरपोर्ट पर तलाशी के दोरान बेग से निकले कथित कारतूस प्रकरण में विपक्ष पर जमकर बरसे विपक्ष ने इस मामले को लेकर हंगामा किया तब धारीवाल ने विपक्ष को उनकी ओकात याद दिलाई ।
शांति कुमार धारीवाल ने सधी हुई भाषा में बार बार सद्भाविक भूल की चुटकी ली और चोर को ही थानेदार बना दिया आरोप लगा कर इस मामले में ६ माह की सजा का प्रावधान बताने वाले राजस्थान के पूर्व गुलाब चंद कटारिया से शांति धारीवाल ने कहा के चलो इस मामले की पूरी जांच आप ही कर डालो और इस जांच के अधिकारी भी आप बन जाओ फिर अगर आप मुझे दोषी मानते हें तो कार्यवाही करें नहीं तो इस मामले को शांत करे धारीवाल के इस कथन के बाद हंगामा करता विपक्ष एक दम खामोश हो गया और विधान सभा का शोर थम सा गया जब आरोप लगाने वाले को ही जांच की ज़िम्मेदारी दे गयी तो बस विपक्ष को सांप सूंघ गया क्योंकि विपक्ष भी जानता हे के वोह तुच्छ आरोपों को अनावश्यक तूल दे रहा था , धारीवाल के इस एलन के बाद विधान सभा का हंगामा खामोश और धारीवाल सभी झूंठे आरोपों से बरी कोटा में आज देनिक अख़बार कोटा ब्यूरों ने इस मामले में एक अख़बार सहित विपक्ष के खिलाफ सोदेबाज़ी का आरोप लगते हुए तल्ख टिप्पणी की हे और फिर इस मामले में ब्लेक मेल नहीं होने पर शांति धारीवाला की पीठ भी थपथपाई हे । अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

अमीन खान दास्ताँ अपनी कहते कहते रो पढ़े...

राजस्थान के एक मंत्री अमीन खान जो हाल ही में महा महीम राष्ट्रपति जी के खिलाफ कथित अपमानकारी टिप्पणी के लियें मंत्रिमंडल से निकाले गये हें वोह अब इचंस्भा में मोका मिलते ही फुट पढ़े ।
कोंग्रेस के विधायक के मामले में भाजपा के घनश्याम तिवारी ने पूंछा के अमीन खान ने कोनसी टिप्पणी की थी जिससे उन्हें निकलाना पढ़ा इसका जवाब देने खुद अमीन कहां खड़े हुए उन्होंने कहा में गाँव का शुद्ध गंवार आदमी मुझे बोलना नहीं आता गाँव का होने के नाते माननीय सोनिया जी और इंदिरा जी के प्रति में अपनी और कार्यकर्ताओं की वफादारी पली में अपने शब्दों में समझा रहा था और उस वक्त मेने राष्ट्रपति जी वाली बात कही मेरे मन में कभी कोई दुर्भावना नहीं रही लेकिन मेरे ही अपने लोगों ने इस बात को तूल दिया मुझे लगा की मेरी इस भावना का प्रदर्शन गलत किया गया हे और महामहिम राष्ट्रपति मुझ से नाराज़ हे इसलियें मेने खुद इस्तीफा दे दिया ।
अमीन खान ने गहलोत और गहलोत सरकार की जम कर तारीफ़ की लेकिन उनके चेहरे पर हंसी और नम आँखें उनके अंदर क्या गुजर रही हे उस भावना को झलका रही थी अमीन खान ने भाजपा के तस्करी के आरोपों के बारे में जवाब दिया के बाजपा विधायक गुलाब कटारिया की अध्यक्षता में एक समिति बना लें और वोह खुद जाँच कर लें अगर उन्हें लगे के वोह दोषी हें तो उन्हें फिर फांसी पर चढा दें । विधानसभा में अमीन खान के इस आक्रामक रुख से राजस्थान भाजपा सकते में हे और खुद विपक्ष के नेता घनश्याम तिवारी सदमे में हे के आखिर उन्होंने यह प्रश क्यूँ पूंछा । अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

निगम हाउस टेक्स पर ओम बिरला बरसे

राजस्थान विधान सभा में कोटा के विधायक ओम बिरला कल अचानक नगर निगम कोटा द्वारा हाउस टेक्स वसूली के नाम पर सख्ती बरतने और व्यापारियों की उपेक्षा बरतने के मामले में खूब भडके और इस वसूली को रोकने की मांग की ।
कोटा में भाजपा के काल में जब जब हाउस टेक्स लगाने की कोशिश की तब तब कोंग्रेस ने इस हाउस टेक्स का विरोध कर इसकी वसूली रुकवा दी अब फिर कोंग्रेस की सरकार आई और कोंग्रेस की महापोर कुर्सी पर बेठी बस जिस बात का विरोध कोंग्रेस ने किया वही वसूली कोंग्रेस ने शुरू कर दी और वसूली भी ऐसी सख्ती जिसने टेक्स जमा नहीं कराया नगर निगम में उनके फ़ूड लाइसेंस अन्य स्विक्र्तिया बंद कर दीं बस निगम की इस कार्यवाही पर ओम बिरला खूब जम कर बरसे और उन्होंने इस अवेध वसूली को तुरंत रोकने की मांग की जिस पर विधान सभा में कई विधायकों ने खूब तालियाँ बजा कर स्वागत किया । । अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

इंजीनियर से बने मुनि महाराज ..................... .

मध्य प्रदेश के बुढार के रहने वाले अमित जेन लाखों खर्च कर इंजीनियर बने और लाखों रूपये प्रतिमाह के पैकेज को तय कर मुनि महाराजों के सम्पर्क में आने के बाद वोह सब कुछ त्याग कर मुनि महाराज बन गये लेकिन कल कोटा में छात्रों को देखा तो उनकी जानकारी फिर से ताज़ी होगयी ।
मुनि महाराज अमित जेन जिनका समाज में अपना नाम अपनी प्रतिष्ठा हे समाज उनके पीछे उमढ रहा था लेकिन कुछ कोचिंग के बच्चों को देख कर महाराज ठिठके उन्होंने उन बच्चों के तोर तरीकों को देखा भाला जाना और फिर मुनि महाराज उन्हें इंजीनियर की पढाई के टिप्स देने लगे बस ऐसा लगा के मुनि महाराज अपने बचपन अपने पढाई के दिनों में खो गये लेकिन इधर कोचिंग के बच्चे सोचते रहे के आखिर एक इंजीनियर पढ़ कर भी अपना सब कुछ त्याग कर मुनि महाराज बन सकते हें तो फिर दुनिया में क्या रखा हे ............... सही हे ना दुनिया दरी से समाज सेवा भली और समाज सेवा से इश्वर सेवा भली लेकिन यह सब दुनिया दारी .समाजसेवा के साथ भी अगर की जाए तो आज आदमी के भेस में जो जानवर घूम रहे हें वोह खालिस इंसान बन जाएँ हमें इंसान भी अगर मिल जाएँ तो समाज का काम चल जाए फिर मुनि और अवतार तो बहुत बढ़ी बात हे शायद इसीलियें इंसान को इन्सान बनाने के लियें मुनि महाराज ने बच्चों को कोचिंग टिप्स के साथ साथ कुछ टिप्स दिए ............. । अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

यह आग केसी केसी .........

मेरे दिल में
तेरे
प्यार की आग
क्या
तेरे मिलन की
ठंडक से मिटेगी
मेरे तन की
यह आग
क्या
तेरे मिलन से
मिटेगी
लेकिन
मेरे जज्बात की आग
जो तुने भड़काई हें
न तेरे मिलन से
ना तेरे अश्कों से मिटेगी
बस सोच लो
इसके लियें तो
जो सियासत हे
मेरे देश की
जो बदली कहावत हे
मेरे देश की
जिसमे लिखते थे
मजबूरी का नाम महात्मा गाँधी
अब लिखना पढ़ रहा हे
मजबूरी का नाम मनमोहन सिंह
यह नई मजबूरी
इस देश से
हब हटेगी
बस अब तो
दिल में लगी यह आग
तब ही बुझेगी ................ ।
अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

16.2.11

...अय धूप की किरन!!!!!




तूं
हर सुबह मेरे घर की खिड़की पर दस्तक देती थी।.

छोटी-छोटी किवाडों से मेरे घर में चली आया करती थी।

मैं चिलमन लगा देती फिर भी तू चिलमनो से झांक लिया करती।

तेरी रोशनी चुभती थी मेरी आंखों में,मेरे गालों पर,मेरी पेशानी पर।

मैं तुझे छुपाने कि कोशिश करती थी कभी किताबों के पन्नों से तो

कभी पुरानी चद्दरों से.लेकिन…..

ऎ किरन ! तू किसी न किसी तरहां आ ही जाती.

ना जाने तेरा मुजसे कैसा नाता था?

क्यों मेरे पीछे पड गई है तूं ?

आज मुझे परदेश जाने का मौका मिला है.मै बहोत खुश हुं।

ऎ किरन ! चल अब तो तेरा पीछा छुटेगा !

दो साल बाद वापस लौटने पर…..

जैसे ही मैने अपने घर का दरवाज़ा खोला !

मेरा घर मेरा नहीं लगा मुझे,

क्या कमी थी मेरे घर मैं?

क्या गायब था मेरे घर से?…..

अरे हां ! याद आया ! वो किरन नज़र नहीं आती !

बहोत ढुंढा ऊसे,पर कहीं नज़र नहीं आई,वो किरन,

खिड़की से सारी चिलमनें हटा दी मैने,फिर भी वो नहीं आई,

क्या रुठ गई है मुझ से?

घर का दरवाज़ा खोलकर देखा तो,

घर की खिड़की के सामने बहोत बडी ईमारत खडी थी.

उसी ने किरन को रोके रखा था।

आज मैं तरसती हुं, ऊस किरन को, जो मेरे घर में आया करती थी।.

कभी चुभती थी मेरी आंखों में..मेरे गालों पर…

आज मेरा घर अधूरा है, ऊसके बिना.ऊसके ऊजाले से मेर घर रोशन था.

पर आज ! वो रोशनी कहां? क्यों कि ….!

वो धूप की किरन नहीं..

दो गीत सिर्फ आपके लियें

दो प्रासंगिक गीत हे महरबानी करके कुच्छ कहिये ..... जरुर ....

Tuesday, February 15, 2011

आदरणीय भाईयों आदाब ,
अभी पिछले दिनों कोटा में एक साहित्यिक सम्मेलन में शमशेर ऐतिहासिक साह्तिय्कार पर परिचर्चा थी इस दोरान कोटा के कवि ठाडा राही की कविता से कार्यकम का आगाज़ हुआ और होना भी था क्योंकि मिस्र की तख्ता पलट क्रांति के बाद कई वर्षों पहले लिखी कविता और गीत प्रासंगिक बन गये यकीन मानिए इस गीत को कोटा के प्रसिद्ध साहित्यकार और चित्रकार जनाब शरद तेलंग ने साज़ के साथ जो आवाज़ दी उस आवाज़ ने इन बेजान अल्फाजों को ज़िंदा कर दिया और भारतेंदु समिति कोटा के साहित्यिक होल में बेठे सभी आगंतुकों को देश के हालातों पर सोचने के लियें मजबूर कर दिया इसलियें यह दो गीत हू बहू पेश हें .................................. ।
जाग जाग री बस्ती
अब तो जाग जाग री बस्ती ।
जीवन महंगा हुआ यहाँ पर
म़ोत हुई हे सस्ती । ।
श्रमिक क्रषक तो खेत मिलों में
अपना खून बहाते ,
चंद लुटेरे जबरन सारा
माल हजम कर जाते ,
बंगलों में खुलकर चलती हे
आदमखोर परस्ती । ।
जाग जाग री बस्ती .......
गूंगे बहरे बन जन युग में
पशुओं जेसे जीते ,
आक्रोशों को दबा दबा कर
अपने आंसू पीते
संघर्षों से क्यूँ डरते हो
सहते फाका मस्ती । ।
जाग जाग री बस्ती ............ ।
काली पूंजी का हे संसद
शासन से गठबंधन ,
मेहनत कश जनता जिनको
लगती हे जानी दुश्मन
घूम रहे हें बेदर्दों से
खाकी दस्ते गश्ती । ।
जाग जाग री बस्ती .....
तुमें ही हिटलर नदिरशाहों को धूल चटाई
शोषण के पंजों से
आधी दुनिया मुक्त कराई
उठो मुर्दनी क्यूँ छाई हे
छोडो हिम्मत पस्ती । ।
जाग जाग री बस्ती ॥
टूट गये मस्तूल ढेर ये
फटे हुए पालों को
जिसके चारों और घिरा हे
घेरा घड़ियालों का
खुद पतवार सम्भालो राही
डूब रही हे कश्ती । ।
जाग जाग री बस्ती ...
जमना प्रसाद ठाडा राही ...
एक दुसरा गीत हे जो भी पेश हें ॥
यह वक्त की आवाज़ हे मिल के चलो
यह जिंदगी का राज़ हे मिलके चलो
मिलके चलो मिलके चलो मिलके चलो रे
चलो भाई .........
आओ दिल की रंजिशें मिटा के आ ,
आओ भेदभाव सब भुला के आ ,
देश से हो प्रेम जिनको जिंदगी से प्यार
कदम कदम से और दिल से दिल मिला के आ
यह भूख क्यूँ यह ज़ुल्म का हे जोर क्यूँ
यह जंग जंग जंग का हे शोर क्यूँ ?
हर इक नजर बुझी बुझी हर इक नजर उदास
बहुत फरेब खाए अब फरेब क्यूँ ।
जेसे सुर से सुर मिले हों राग के
जेसे शोले मिल के बढ़े आग के
जिस तरह चिराग से जले चिराग
वेसे बढो भेद अपना त्याग के । ।
दोस्तों यकीन मानिए यह दो गीत जिनके हर अलफ़ाज़ ने मेरे दिल की गहराइयों को छू लिया था और मेने उसी वक्त प्रण किया था के इन दो गीतों से में मेरे साथियों की मुलाक़ात जरुर कराउंगा लेकिन बस वक्त की तंगी इंटरनेट की खराबी ने बेवफा बना दिया ओर में तुरंत खुद से आपके लियें क्या वायदा निभा नहीं सका लेकिन देर से ही सही अब प्रस्तुत हे दोस्तों अगर यह गीत इनके बोल आपको वर्तमान परिस्थितयों में प्रासंगिक और जीवित होने का एहसास दिलाएं और आप के हाथ खुद बा खुद कोई टिप्पणी करने के लियें मजबूर हो जाएँ तो इसके पहले हकदार गीतकार साहित्यकार शरद तेलंग हें और फिर इसका श्रेय भाई दिनेश राय द्विवेदी अनवरत और तीसरा खम्बा के ब्लोगर भाई के साथ महेंद्र नेह जी हें , .... अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

क्या देश में गहलोत सा हे कोई दुसरा मुख्यमंत्री

Tuesday, February 15, 2011

दोस्तों आप इतिहास छानिये भविष्य के गर्भ में जाइए और बताइए क्या देश में हमारे राजस्थान जेसा कोई मुख्यमंत्री हे नहीं ना अब में इन मुख्यमंत्री जी की लोकप्रियता का कारण बताता हूँ राजस्थान के मुख्यमंत्री गहलोत जी खुद के पास तो कोई विभाग नहीं रखते हें खुद बिना विभाग के मुख्यमंत्री हें लेकिन कंट्रोल पूरा का पूरा हे छोटी सी भी फ़ाइल हो मुख्यमंत्री भवन से गुजरेगी , अल्पमत हो तो यह जादूगर हें सरकार फिर भी बहुमत साबित कर बना लेते हें असंतुष्ट हो तो उसे अपना बना लेते हें लेकिन कोई गद्दार हो तो फिर उसे सबक भी सिखा देते हें ।
ऐसे कामयाब मुख्यमंत्री जिन्होंने ने विरोधियों को नाकों चने चबा दिए हों कल उनके निवास पर जब जनसुवाई के दोरान जनसुनवाई के दोरान आया और उसने मुख्यमंत्री गहलोत के गिरेबान पर हाथ डालना चाहा एक बार नहीं दो बार नहीं कई बार उसने ऐसा किया लेकिन मुख्यमंत्री गहलोत ने अपना राजधर्म निभाया उन्होंने इस विक्षिप्त युवक से खुद ने कारण जानना चाहा और एक सन्वेदनशील राजा की तरह उन्होंने अपना राजधर्म निभाते हुए इस विक्षिप्त युवक को उसके गाँव चंव्दिया नागोर भिजवाया ।
मुख्यमंत्री का करिश्मा उनकी संवेदनशीलता इस हद तक तो ठीक थी लेकिन कल तो उन्होंने सभी हदें पार कर कीर्तिमान स्थापित कर दिया मुख्यमंत्री गहलोत इस विक्षिप्त युवक के ससुराल रह रहे पत्नी और बच्चों का हाल जानने पहुंच गये उन्होंने वहां इस युवक की पत्नी को पचास हजार की सहायता की घोषणा की और उसक युवक के पुत्र पुत्री मनीषा व् किरन की पढाई का खर्चा खुद उठाने की बात कही हमने किताबों में पढ़ा था किस्सों में सुना था के पहले राजा महाराजा रात को बहस बदल कर बाहर निकला करते थे और लोगों के दुःख दर्द छुप कर पता लगते थे फिर उन दुःख दर्द का समाधान उन तक पहुंचा कर राज धर्म अपनाते थे हमारे देश में किसी मुख्यमंत्री ने तो ऐसा नहीं किया था लेकिन जब हमारे राजस्थान के मुख्मंत्री अशोक गहलोत ने ऐसा कर दिखाया तो बस मुझ सहित राजस्थान की जनता का सीना गर्व से ऊँचा हो गया ...................... । अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

साहित्य की दुश्मन हें सरकारें

Tuesday, February 15, 2011

दोस्तों अव्वल तो इन दिनों साहित का अर्थ ही बदल गया हे जो कल लुटेरे हुआ करते थे आज वोह साहित्य के दूकानदार बने बेठे हें पहले साहित्य लिखने समझने और सुनने के लियें बहुत बढा कलेजा चाहिए था में मेरी बात बताता हूँ प्रारम्भ काल यानि बचपन में में भी पत्रकारिता के साथ साथ लोटपोट,चम्पक,चंदामामा ,नन्दन और लोकल समाचारों में कहानी कविताएँ छपवाकर तीसमारखां समझता था .।
मेने उर्दू साहित्य में एम ऐ करने का मन बनाया मेरे और साथी भी थे हमारे गुरु भी विख्यात शायर थे एम ऐ के दोरान जब बढ़े शायर,उर्दू साहित्यकारों को पढ़ा तो लगा हम इनका मुकाबला कभी नहीं कर सकेंगे रदीफ़ काफिया,प्लाट किरदार और भी साहित्य शायरी की बहुत बहुत विधाओं को जान्ने का अवसर मिला उर्दू केसे पैदा हुई फिर उर्दू को केसे ज़िंदा रखने का प्रयास किया फिर अब उर्दू को केसे खत्म किया जा रहा हे पढ़ा फिर एल एल बी के बाद निठल्ले तो सोचा हिंदी साहित्य भी पढ़ डालें सो हिंदी में एम ऐ बात वही साहित्य लिखने के फार्मूले वही बस लेखक अलग तरीके अलग अलफ़ाज़ शब्द अलग विचार एक श्र्गार रस, वीर रस ,सभी रसों ने साहित्य को सरोबार कर दिया फिर मुझे पत्रकारिता क्षेत्र में पहले पत्रकार फिर सम्पादक का काम करने को अवसर मिला इस दोरान साहित्यकारों,रचनाकारों,कवि,शायरों और घसियारों से मिलने का मोका मिला कोटा मेले दशहरे में सिफारिशें केसे लगती थीं केफ भोपाली कोटा में क्या करते थे अपनी गजलों को केसे बेच कर जाते थे सब जानते हें ।
मुम्बई भी कई बार किसी सिलसिले में जाना हुआ वहां देखा एक लेखक कई दर्जन लोगों को नोकर रखता हे एक खानी की थीम देता हे सब अलग अलग लिखते हें और मुख्य लेखक उन्हें भुगतान करता हे उस कहानियों के समूह में से काट छांट कर अपनी कहानी बनाता हे फिल्म वालों को बेच देता हे खेर यह तो साहित्य विक्रेताओं की बात हुई लेकिन टी वी ने अब साहित्य को चाहे आम कर दिया हो लेकिन लिखा जाने वाला साहित्य कम पढ़ा जाने लगा और पढ़ा जाने वाला साहित्य सुना जाने लगा इस बिगड़ी और बदली परिस्थिति को बदलने कोई भी आगे नहीं आया जो जानते हें साहित्य किया हे जो लिखते हें कविता,गजल,कहानी,लेख रिपोर्ताज क्या हें उनका हाल आप और हम सब जानते हें आज की जनता का टेस्ट क्या हे आप और हम देखेंगे तो शर्म के मारे मर जायेंगे आज मुन्नी बदनाम हो गयी ,पप्पू पास हो गया , शीला जवान हो गयी,ऐ बी सी डी छोडो ,एक दो तीन ,मुन्ना बाही मोटर चली जेसे गाने हिट होते हें तो जनता की सोच पर अफ़सोस होता हे ना गीत हे न संगीत हे ना अलफ़ाज़ हें ना विचार हें ना फलसफा हे लेकिन गीत सुपर हिट हे कुल मिला कर अगर मेरे शब्दों में कहा जाए के इन दिनों साहित्य गरीब की जोरू सबकी भाभी बन गयी हे और साहित्य के साथ सरे राह बलात्कार ही बलात्कार हो रहा हे यही वजह हे के आज साहित्य तार तार हे जो साहित्यकार हें उनकी एक अलग कतार हे उनकी आँखों में आंसू चेहरे पर प्यास समाज में उपेक्षा टूटा हुआ घर फटे कपडे दो रोटी की आस उसका सरमाया हे जो दूकानदार हे उनके पास चमचमाती गाडिया हे बंगले हें कई प्रकाशन हे कविसम्मेलन के मुशायरे के साहित्यिक संस्थाओं के बुलावे हें लेकिन कुछ हे जो संघर्ष कर रहे हें और उम्मीद में हें के वोह इस जंग को जीत कर रहेंगे देश में चाहे कभी लिखा जाने वाला साहित्य हो चाहे बोला जाने वाला चाहे छापा जाने वाला साहित्य हो भी साहित्यकारों को कामयाबी का इन्तिज़ार हे आज अकादमियों में सरकार का कब्जा हे अकादमी में राजनीति हो रही हे हमारे अपने राजस्थान की बात करें यहाँ उर्दू,हिंदी,सिन्धी,पंजाबी साहित्य अकादमी में अध्यक्ष पद रिक्त पढ़े हें साहित्यिक गतिविधियाँ नोकर शाहों के हवाले हें कमोबेश देश और दुसरे राज्यों में साहियिक संस्थाओं का यही हाल हे जो निजी साहित्यिक संस्ताये हें वहां संथा अधिनियम की पालना नहीं हे सियासत ने वहां की आमदनी देख कर कब्जा कर लिया हे सदस्य गेर साहित्यकार बने हें और हालात यह हें के चुनाव में गेर साहित्यकार ही संस्थाओं के मालिक बने बेठे हें । अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

15.2.11

बारावफात कहें या ईद मिलादुन्नबी , ख़ुशी मनाये या गम ... ?

Monday, February 14, 2011

जी हाँ दोस्तों कल १२ रबीउलअव्वल यानी इस्लाम के आखरी पैगम्बर हजरत मोहम्मद रज़ी अलाह ताला का जन्म दिन हे कल के ही दिन उनका जन्म हुआ था लेकिन अफ़सोस नाक बात यह हे के इसी दिन विश्व भर में नेकी और इन्साफ की शिक्षा का परचम आम करने वाले हर दिल अज़ीज़ खुदा की तरफ से आदमियों की उम्मत में से भेजे हुए इस पैगम्बर ने पर्दा लिया था यानी विसाल हुआ था अब एक दिन जिसमें ऐसी अज़ीम पैगम्बर शख्सियत के जन्म की ख़ुशी और इसी दिन इन के विसाल के दुःख की खबर क्या किया जाए गम किया जाए या ख़ुशी मनाई जाए होना क्या चाहिए इसमें कई मत हे लेकिन हम देखते हे इस दिन मोलाना लोग खूब चंदा करते हें सडकों पर प्रदर्शन करते हें जुलुस निकालते हें , कुछ मोलाना हे जो हुजुर मोहम्मद साहब की शिक्षा की चर्चा आम करते हें , सब जानते हें खुदा के सबसे अज़ीज़ पैगम्बर जिनके माध्यम से खुदा ने इस्लाम की शक्ल सूधारने के लियें कुरान के रूप में एक कानून एक आदेश एक निर्देश दिया वोह पैगम्बर हुजुर मोहम्मद सल्ललाहो अलेह वसल्लम हें लेकिन बारावफात सरकारी केलेंदरों में छपता हे जिससे से लगता हे के हम अफ़सोस मना रहे हें और १२ रबी उल अव्वल यानी पैदाइश का जश्न हम और हमारे मोलाना मनाते हें खेर यह बारीक़ बाते हें मोलाना ही जाने लेकिन कल इस दिन को कुछ लोग गरीबों को खाना खिला कर , रक्तदान कर मना रहे हें तो कुछ लोग जुलुस निकल कर खुद को घोड़े पर बग्घी पर बिठाकर निकालेंगे हुजुर मोहम्मद सल्लाहो अलेह वसल्लम के इस जुलुस में मालाएं मोलाना लोग पहनेंगे जय जय कार उनके नाम की होगी लाखों का चंदा होगा शायद उनकी यह सीख नहीं रही होगी ।
हुजुर सल्लाहो अलेह वसल्लम की शिक्षा थी के चारों तरफ दावते इस्लाम की धूम मची हो , उनकी शिक्षा थी के जो शख्स इरादे का पक्का हो वोह दुनिया को अपनी मर्जी के मुताबिक अल्लाह के हुक्म से ढाल सकता हे ,उनकी शिक्षा थी के जद्दो जहद ना करना मोहताजी का बैस होता हे और मोहताजी दिल को तंग अक्ल को खाफिफ बनाती हे ,वोह कहते थे म्सहिब से मत घबराइये क्योंकि सितारे अँधेरे में ही चमकते हें ,उनका कहना था दुनिया में थोड़े माल पर राज़ी रह ,और दूसरी की रोज़ी पर आँख मत डाल अगर तुम किसी पर अहसान करो तो उसे छुपाओ और कोई तुम पर अहसान करे तो उसे लोगों पर ज़ाहिर करों ताकि उसका होसला बढ़े, वोह कहते हें के जो अलाह के कम में लग जाता हे अल्लाह उसके काम में लग जाता हे , नसीहत करना आसान हे अम्ल करना मुश्किल हे ,जहां जबर हे वहा जूनून हे जहां सब्र हे वहा सुकून हे , बा अदब बा नसीब हे बे अदब बे नसीब हे ।
हुजुर पैगम्बर फरमाते थे जिस दिल में बर्दाश्त की कुवत होती हे वोह कभी शिकस्त नहीं खाता ,झूंठ से गुरेज़ करो ,सब्र और शुक्र से बढ़ कर को मीठी चीज़ नहीं हे ,तालीम इंसान को अखलाक सिखाती हे ,अपनी सीरत ऐसी खुशबूदार कली की तरह बनाओ जिसकी महक से सभी जगह खुशबु हो अखलाक एक ऐसा हिरा हे जो पत्थर को काट देता हे , जब पैसा बोलता आहे तो सच्चाई खामोश हो जाती हे गाली का जवाब नेकी से दो क्योंकि कबूतर और कव्वे की बोली में फर्क हे ,सबसे बढ़ा अख्तावर वोह हे जो लोगों की बुराइयों का बयान करता हे अलाह के सिवाय किसी से उम्मीद मत रखो ,कुच्छ ऐसी ही शिक्षाएं हें जिन्हें ना हम मानते हें ना हमारे मोलाना मोलाना हे के धर्म को हर हाल में पेट पालने का साधन बनाना चाहते हें और हम हे के खुद इस्लाम को पढना अपनाना नहीं चाहते केवल नामा के ही मुसलमान हे हाजी हे लेकिन हमारी हरकतें उफ्फ्फ खुदा खेर करे कोई देखे तो सोचेगा क्या ऐसा होता हे इस्लाम इसलियें दोस्तों अपने अखलाक से ऐसा माहोल बनाओ के लोगों के जहन में जो इस्लाम की गलत तस्वीर बनी हे उसे अपने अखलाक से अपने समर्पण से बदल डालो ताके वोह कहें के अगर मखलूक उम्मत ऐसी हे तो इस कोम के रसूल केसे होंगे ............ । अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

इस्तीफे की जगह मुर्गा बनने की शरारत

जोधपुर नगर निगम में एक सहवरित पार्षद आजम जिन्हें जोधपुर में पोलीथिन के खिलाफ अभियान की ज़िम्मेदारी दी थी जब वोह इस काम में नाकामयाब और फिसड्डी साबित हुए तो दुसरे विपक्षी पार्षदों के प्रकोप से बचने के लियें उन्होंने खुद को बचाने के लियें अनोखा फार्मूला निकाला और बीच बैठक में सदन के समक्ष मुर्गा बन कर प्रायश्चित किया ।
सहवरित पार्षद आज़म को खतरा था के बैठक में सभी उनके लियें मुसीबत खड़ी कर देंगे और हो सकता हे इस नाकामयाबी की वजह से उन्हें इस्तीफा देना पढ़ जाए इसलियें उन्होंने दूसरों के प्रकोप का भाजन बनने से बचने के लियें हंसी का पात्र बनना बहतर समझा और सदन की अध्यक्षता कर रहे महापोर जी से अनुमति चाही के वोह अपने कारनामों में नाकामयाब रहे हें शहर से पोलीथिन नहीं हटा सके हें इसलियें वोह अपनी इस नाकामयाबी के लियें प्रायश्चित करते हुए खुद एक सजा तजवीज़ कर रहे हें और सदन के समक्ष जोधपुरी मुर्गा बनना चाहते हें शायद पहले से ही मेच फिक्सिंग का मामला था इसलियें महापोर जी ने अनुमति दी और पार्षद आजम जी जोधपुरी मुर्गा बन गये काफी वक्त तक वोह मर्गा बने मुद्रा में खड़े रहे और लोग उन पर गुस्सा होने की जगह हंसते रहे और तालिया बजाते रहे तो ऐसे क्या पार्षद ने खुद के नाकामयाब होने पर विपक्ष के कोप भाजन से बचने के लियें ।
शायद देश के इतिहास में यह पहला वाकया हे के कोई व्यक्ति सदन के बीच खुद स्वेच्छा से मुर्गा बना हो और इस तरह से अपनी नाकामयाबी का प्रायश्चित किया हो । अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

मुख्यमंत्री गहलोत से अभद्रता

राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत कल जब मुख्यमंत्री निवास पर जन सुनवायी कर रहे थे तो अचानक एक विक्षिप्त युवक ने उनके गिरेबान पर हाथ डालना चाहा जिसे सुरक्षा कर्मियों ने पकड़ा , पीटा लेकिन मुख्यमंत्री जी के निर्देश पर इस युवक को उसके गाँव में पुलिस सुरक्षा में पहुंचा दिया गया ।
कल जोधपुर में लाईट चली जाने के बाद और अन्धेरा होने पर भी मुख्यमंत्री जी ने इस अव्यवस्था के लियें वहां किसी भी अधिकारी को ज़िम्मेदार मान कर निलम्बित नहीं किया लेकिन उन्होंने लोगों से मिलकर जन सुनवाई नहीं टाली और सिर्फ एक टोर्च की रौशनी में उन्होंने जनता की समस्याएं सुन कर उनका निदान करने का प्रयास किया जयपुर में अचानक बदले इस घटनाक्रम से मुख्यमंत्री गहलोत विचलित नहीं हुए हें उनका कहना हे के वोह तो एक सामान्य घटना हे कोई भी अपनी समस्या लेकर आता हे उसका बर्ताव कुछ भी हो सकता हे लेकिन मेरा काम जनसुनवाई करना हे इसलियें में तो समस्याएं सुनूंगा इन परिस्थितियों में मुख्यमंत्री गहलोत के इस रवय्ये ने राजस्थान की जनता का दिल जीत लिया हे इतना ही नहीं गहलोत ने इस हमलावर युवक की स्थिति जानी पुलिस सुरक्षा में उसकी सुनवाई की उससे ऐसा करने का कारण जाना और फिर इस युवक को सोडाला जयपुर पुलिस की अभिरक्षा में देकर उसे मुख्यमंत्री जी के निर्देश पर जेल भेजने के स्थान पर युवको को उसके गाँव भेजा गया जहां उसकी माँ इस युवक का इन्तिज़ार कर रही थी मुख्यमत्री की इस अदा ने तो उनकी लोकप्रियता में और चार चाँद लगा दिए हें । अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

शादी की ख़ुशी में गोली चलने से रंग में भंग पढ़ा

कोटा में प्रेमनगर बस्ती की एक शादी समारोह में बंदूक से सलामी देने के लियें ख़ुशी ज़ाहिर क्या की के दुःख का कारण बन गया और आज इस दुर्घटना में घायल चार लोग अस्पताल में भर्ती हें ।
कोटा प्रेमनगर में कल शादी समारोह में एक व्यक्ति ने रस्म के हिसाब से विदायगी के वक्त दो बार बारह बोर से फायर किये एक फायर तो ठीक चला लेकिन कारतूस पुराना ह्नोए से जब दुसरा कारतूस नहीं चला तो बंदूकची ने अपनी लाइसेंसी बंदूक को जब चेक करना चाहा तो बंदूक से अचानक फायर हो गया और छर्रे टकरा कर वहां महमानों के जा लगे जिससे एक की आँख खराब हो गयी हे तीन दुसरे लोग घायल हें जो अभी अस्पताल में भर्ती हे तो जनाब किसी भी शादी में अब बंदूक बाज़ी से रंग में भंग पढ़ सकता हे इसलियें धमाकों के लियें आतिशबाजी से ही काम चलाना अच्छा हे वरना शासी ब्याहोने में रंग में भग पढ़ सकता हे अब दुल्हा और रिश्तेदार जेल में बंद बंदूकची की जमानत के प्रयासों में जुटे हें जबकि कुछ रिश्तेदार घायलों की तीमारदारी में अस्पताल में रुके हें । अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

बिना हेलमेट के भी सडक दुर्घटनाओं में मोतें

दोस्तों कोटा सहित कुछ शहरों में हेलमेट के नाम पर अख़बार प्रचार के लियें पुलिस लूट से जनता परेशान हे जबकि कोई भी पुलिस दुर्घटनाओं के मूल कारणों पर नहीं जा रही हे और कल इसी लियें नागोर अजमेर मार्ग पर एक ही गाँव के २४ श्रद्धालुओं की अक़ल म़ोत हो गयी ।
राजस्थान में भरी वाहनों पर ओवर लोडिंग और दूसरी जांच के मामले में सख्ती इस लियें नहीं हे के इनसे अवेध चोट वसूली की बढ़ी रकम अधिकारीयों को प्राप्त होती हे और अधिकारी सरकार और संगठन में रेली वगेरा के दोरान खुद वाहनों की व्यवस्था करवाते हें इसीलियें यातायात नियम सडकों पर केवल हेलमेट तक ही सिमट कर रह गया हे बाक़ी सभी कानून नदारद हें , कल इसीलियें एक ट्रोला जो शायद अवेध रूप से ही संचालित हो रहा होगा एक पिकअप जिसमे भी शायद कानून की पालना में सवारी नहीं बेठी होगी बस इसीलियें एक बढ़ी दुखान्तिका मुक्यमंत्री के इलाके में हो गयी २४ लोग अचानक म़ोत के घात उतर गये लेकिन सरकार हे के सुधरी नहीं यातायात सूधारने और दुर्घटनाओं से लोगों को बचाने के लियें जहां सख्ती करना चाहिए वहां तो सख्ती नहीं हे और हाँ जहां सख्ती नहीं होना चाहिए वहां सख्ती हे अब भी कुछ नहीं बिगड़ा हे सरकार चाहे तो अभी से राष्ट्रिय राज मार्ग और राज्य राज मार्गों के लियें जो कानून हें उनकी सख्ती से पालना शुरू करवड़े वरना फिर नई दुखान्तिकाओं से सामना होना पढ़ सकता हे । अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

13.2.11

लोगों कों खूब भा रहा है सुरजकुण्ड मेला

सूरजकुंड मेला हथकरघे पर बुने उत्कृष्ट डिजाईनों और समोहक वर्णों के लिये याद किया जायेगा। हाथ से बुने हुए वस्त्र पर्यटकों को अपनी ओर आकृष्ति कर रहे हैं। थीम राज्य आन्ध्र प्रदेश के ऐसे ही राष्ट्रीय याति प्राप्त डिजाईनों को लोग खूब पंसद कर रहे हैं। वस्त्रों पर उकेरी गई कशीदाकारी देखते ही बनती है। उनके डिजाईनों में कला की गहराई है और वह पौराणिक शास्त्रीय कथाओं को उसके अध्यात्मिक स्वरूप में प्रस्तुत करते हैं। आन्ध्र प्रदेश के शिल्प में जो सबसे प्रभावी बात देखने को मिलती है वह यह कि कोई भी डिजाईन केवल कलाकार की चपलता से प्रभावित ना होकर साधना की परिपक्वता को दर्शाता है। यहां हर डिजाईन में कुछ उद्देश्य छिपा हुआ है जो अंतत जिज्ञासु को धर्म, कर्म और मोक्ष के चरम लक्ष्य की ओर लेकर जाता है। यह बात केवल वस्त्र डिजाईन में ही नही बल्कि उनके नृत्य और समस्त जीवन शैली में भी नजर आती है।इन्हीं में से एक प्रमुख है मंगलागिरी साड़ी। मंगलागिरी आन्ध्र प्रदेश के गुंटूर जिले का एक छोटा कस्बा है। इन साड़ियों के भारी जरी बार्डर और मोनो स्ट्रिप एवं धागों से बुनी स्ट्रिप पल्लू स्त्रियों को काफी लुभा रहे हैं। साड़ियों की डिजाईनों में चैक के साथ जरी और रंगों का संतुलित मिश्रण किया गया है।साड़ियों का कपड़ा भी महीन बुनकरी से बुना गया है। हथकरघे की दोहरी बुनाई, उचित समायोजित आकार तथा बडी ही तन्मयता से धीरव् धीरव् की जाने वाली बुनाई इन साड़ियों को अदुभूत सौंदर्य और मजबूती प्रदान करती है। इनकी खास बात यह है कि प्रत्येक साड़ी की बुनाई और हस्तशिल्पी के ज्ञान की विविधता के कारण एवं धागे की बुनावट से विशिष्ट डिजाईन रखती है। उदीता धनलक्ष्मी के स्टाल पर ऐसी विशेष् डिजाईनर साड़ियों और वस्त्र देखने को मिलते हैं। वह बताती हैं कि उनके वस्त्रों में शुद्ध सूती और सिल्क का प्रयोग होता है तथा उन्हे वर्गाकार चौखटे की रूपरव्खा में बुना जाता है। वह राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता हैं और अपनी साड़ियों को विदेशों में निर्यात भी करती हैं। एक हट के मालिक बाबू रामकहते हैं कि उनके परिधानों में प्रयोग किये जाने वाले रंग एंटी एलर्जिक हैं। उनके परिधानो को मेले में हाथों हाथ लिया जा रहा है।मंगलागिरी साड़ियों की तरह ही आन्ध्र प्रदेश की गढ़वाल साड़ियां भी लोगों के आर्कष्ण का केंद्र बना हुआ है। अदुभूत सूती बेस पर भारी सिल्क बार्डर और पल्लू इन साड़ियों की खास विशेष्ता है। सिल्क की साड़ी में छींट का काम बहुत लुभाता है। गढवाल साड़ियों की सबसे प्रमुख विशेष्ता इसकी इंटरलाकड बुनाई शैली है जिसे कूपाडम के नाम से जाना जाता है इसलिये ही इसे कूपाडम साडियों के नाम से भी जाना जाता है। सिल्क बार्डर वाले यह परिधान तुस्सार सिल्क अथवा शहतूत सिल्क कहा जाता है। इन सडियों के सूती बेस में आजकल सिल्क की चैक का काम होता है , जिसे पचास पचास प्रतिशत की मात्रा में प्रयोग किया जाता है। इस मेले की शान में चार चांद लगाते हस्तशिल्पी राष्ट्रीय स्तर राज्य स्तर के अवार्ड जीत चुके हैं। इन अवार्डियों की प्रतिभागिता ने मेले की शोभा बढ़ाकर सूरजकुंड को गौरवान्वित किया है। सूरजकुंड क्राफट मेले में सोने की वस्तुओं की भांति दिखाई देने वाली पीतल की वस्तुएं आकर्ष्ण का केंद्र बनी रही। इनमें सोने की भांति दिखने वाली पीतल की लक्ष्मीगणेश, राधा कृष्ण, शिवपार्वती देवीदेवताओं की मूर्तियां हाथीघोड़े, सूर्य, घंटी, काजलदानी, पूजा का सामान सहित अनेक कलाकृतियां मौजूद हैं। उार प्रदेश के आजाद कुमार सोनी नामकहस्तशिल्प द्वारा लगाई स्टाल में सोने की भांति दिखने वाली इन कलाकृतियों में सौ ग्राम से तीस किलोग्राम भार की इन वस्तुएं को लोग दो सौ रुपये से तीस हजार रुपये तक में खरीद रहे थे। इस सबंध में आजाद सोनी बताया कि उनका परंपरागत काम बतौर सुनार सोनेचांदी की वस्तुएं बनाना था, लेकिन पिछले काफी समय से उनके परिवार के लोग सोनेचांदी की वस्तुएं बनाने की बजाए पीतल की एक विशेष तकनीक द्वारा बनाई गई वस्तुओं का व्यापार करने लगे हैं।मेले की नाट्यशाला में गत सायं मध्य प्रदेश, छाीसगढ़ और उड़ीसा के लोकनृत्य का कार्यक्रम प्रस्तुत किया गया। कार्यक्रम में श्रीमति प्रेम शिला वर्मा ने पांडवानी गायन से किया। उन्होंने महाभारत की कथा में से उस भाग का गायन किया जब पांडव अज्ञातवास के दौरान विराट नगर में रहे थे। इसके बाद राई नृत्य प्रस्तुत किया गया। यह नृत्य बुंदेलखण्ड के इलाके में बेड़नी जाति की महिलाओं और पुरुषें द्वारा संयुत रुप से किया जाता है। मध्य प्रदेश के सागर शहर से आए इन कलाकारों ने राधाकृष्ण की लीलाओं का मनोरम मंचन किया। कार्यक्रम के दौरान उड़ीसा के आदिवासी लोकनृत्यों की प्रस्तुति की गई, जिसमें भुवनेश्वर से आए कलाकारों ने डालखाई और दूसरव् नृत्य प्रस्तुत किए। डालखाई संभलपुर इलाके की एक ऐसी परंपरा है जैसे उारी भारत में रक्षा बंधन का दृश्य होता है। वहां नवरात्रों में बहने भाइयों के लिए व्रत रखती है और अष्ठमी के दिन नए अनाज के पकवान बनाकर व्रत खोलती हैं। स्पेन से मेला देखने आये मार्को गार्शिया और ऐंजेलिना को मेला बहुत ही बहुरंगी लगा। गार्शिया ने कहा कि उनके देश में हर जगह कार्निवाल प्रसिद्ध हैं परन्तु एक साथ ही इतनी विविधता कला और संगीत में उन्होंने पहले कभी नहीं देखी। ऐंजेलिना ने कहा कि भारत की विभिन्न संस्कृतियों के बारव् में सुना जरूर था परन्तु उसका वास्तविक अनुभव यहीं पर देखने को मिला। जापान से भारत घूमने आई इिश्मीतो ने लकड़ी और बांस का सामान खरीदा और उन्हें मेले में दक्षिण भारतीय भोजन और मेले के इंतजाम बहुत अच्छे लगे।रियोडी जैनरो से आये फर्नाडिज दंपति ने कहा कि यहां के शास्त्रीय नृत्य कूचिपूड़ी और राजस्थान के लंगा गायक बूंदे खान की प्रस्तुति बेहद शानदार लगी और वह देर सांय हर रोज संगीत संध्या में रहे हैं। वे भारत के लोगों की विविधता के साथ सामान्य भाव और सौहार्द से रहने की भावना से बेहद प्रभावित नजर आये। फ्रांस के लियरव् मेले में लोक धुनों पर नाचे , कला को जाना कला को बेचने वालों को जाना और ग्राहकों को भी जाना उन्होंने हा कि भारत में संतोष् की प्रवृति से वे हैरान हैं। यहां गरीब लोग संर्घष् करते हुए भी अराजक नहीं है और शांत भाव से जीवन की चुनौतियों से जूझते हैं , योंकि यहां के हर नृत्य में हर कला में धर्म और संस्कार छिपे हुए हैं जो मानवों को अराजकता और अनैतिकता एंव हिंसा से दूर कर सामान्य और संस्कारी रखते हैं।