10:52 am
निर्मला कपिला
( कविता )
मृ्ग अभिलाशा
हम विकास की ओर !
किस मापदंड मे?
वास्तविक्ता या पाखन्ड मे !
तृ्ष्णाओं के सम्मोहन मे
या प्रकृ्ति के दोहन मे
साईँस के अविश्कारों मे
या उससे फलिभूत विकारों मे
मानवता के संस्कारो मे
या सामाजिक विकारों मे
धर्म के मर्म या उत्थान मे
या बढ्ते साम्प्रदायिक उफान मे
पूँजीपती के पोषण मे
या गरीब के शोषण मे
क्या रोटी कपडा और मकान मे
या फुटपाथ पर पडे इन्सान मे
क्या बडी बडी अट्टालिकाओं मे
या झोंपड पट्टी कि बढती सँख्याओं मे
क्या नारीत्व के उत्थान मे
या नारी के घटते परिधान मे
क्या ऊँची उडान की परिभाषा मे
या झूठी मृ्ग अभिलाषा मे
ऎ मानव कर अवलोकन
कर तर्क और वितर्क
फिर देखना फर्क
ये है पाँच तत्वोँ का परिहास
प्राकृ्तिक सम्पदाओँ का ह्रास
ठहर 1 अपनी लालसाओँ को ना बढा
सृ्ष्टि को महाप्रलय की ओर ना लेजा
10:38 pm
Akbar Khan Rana
पाकिस्तानी प्रधान मंत्री युसूफ रजा गिलानी ने शनिवार को काबुल पहुंच कर अपनी प्रथम औपचारिक अफगानिस्तान यात्रा शुरू की ।
उस दिन अफगान राष्ट्रपति हमिद करजई के साथ आयोजित संयुक्त पत्रकार वार्ता में गिलानी ने कहा कि आतंकवाद अफगानिस्तान व पाकिस्तान के समान दुश्मन है। पाकिस्तान आतंकवाद के विरोध में अफगानिस्तान के साथ पूरा सहयोग करेगा। उन्होंने बल देकर कहा कि पाकिस्तान के समर्थन के बिना अफगानिस्तान में चिरस्थाई शांति स्थापित नहीं होगी ।
भारत की बाबत पाकिस्तान का ऐसा रवय्या क्यों नहीं होता?
9:36 pm
Akbar Khan Rana
दि नेटप्रेस डोट कॉम से जुड़े लोगों से निवेदन है कि कृपया अपनी पोस्टें इस ब्लॉग पर भी अवश्य पेस्ट कर दिया कीजिये। आखिर तो ये आप ही का मंच है। धन्यवाद!
5:46 pm
gpalgoo

PIYUSH CONSTANTअद्भुत नौ नंबर, (लगातार पीयूष).यह बहुत दिलचस्प है, यह मेरी अपनी खोज, भविष्य बहुत जल्द ही अपने गणित पर अपने स्वयं बुक मैथ्स प्रकाशित करेंगे --- एक अध्ययन (में हिन्दी) में मैं प्यार गणित, है, या वेबसाइट के रूप में हो सकता.अंकों की किसी भी संख्या में ले, यहाँ मैं 25 और 32 के ले जा रहा हूँ अब,तुम इस तरह चार तरह से उन्हें लिख सकते
हैं
25*32=800
25*23=575
52*23=1196
52*32=1664
अब बहुत अद्भुत, किसी भी कम करने के लिए एक के बाद एक बड़ा एक,
1664-1196 = 468 = 4 +6 +8 18 = 1 +8= 9
1664-575 = 1089 = 1 +0 +8 + 9= 18=1+8 =9
1664-800 =864= 8 +6 +4 = 18 = 1 +8=9
1196-800=396=3+9+6=18=1+8=9
1196-575=621=6+2+1=9
800-575=225=2+2+5=9
नौ हमेशा, किसी भी अंकों के लिए, नहीं, शरीर के सभी PIYUSHDADRIWALA के लिए आरक्षित कॉपी कर सकते हैं,
10:34 am
Sumit Pratap Singh
मंच पर अपनी दुल्हन के संग स्थान ग्रहण किए लल्लू भइया बड़े मुस्कुरा रहे थे। आसपास बाराती व घराती अपने आप में मस्त थे । लल्लू भइया के चेहरे पर इतना मेकअप थोपा गया था कि जब-जब भी वह हँसते थे तो कुछ-कुछ रावण जैसे प्रतीत होते थे । लल्लू भइया को देखते-देखते पुरानी यादो में खो गया ।उन् दिनों लल्लूजी ने सोलहवें वसंत में प्रवेश किया था । हर कन्या को देखकर उनका मन का मयूर बन कर नृत्य करने लगता था । अपने ही मोहल्ले में रहने वाली एक कन्या पर लल्लू लट्टू हो गए थे । अब उसके घर के आस-पास ही उनका समय व्यतीत होने लगा । उनके घरवालों को उनका घर से बाहर रहना खला नहीं क्योंकि उन्होंने लल्लू जी को कई महीनों पहले ही आवारा घोषित कर दिया था । कन्या का नाम कम्मो था । वह दसवीं कक्षा की छात्रा थी । लल्लू भइया भी दसवीं कक्षा में थे । बस एक बार ही तो फेल हुए थे । आख़िर एक दिन उनकी मेहनत रंग लायी । लल्लू भइया ने कम्मो को फंसा लिया । अब लल्लू जी अपने गोल-मटोल शरीर वाले व्यक्तित्व पर अभिमान करने लगे तथा अपने साथियों के साथ किसी जीते हुए योद्धा की भांति हाथी जैसी मस्तानी चाल में चलते थे । कम्मो भी प्रसन्न थी उसे लल्लू के रूप में उसे एक व्यक्तिगत सहायक जो मिल गया था । वह उनसे अपना हर प्रकार का कार्य करवाती थी। लल्लू भइया भी कम्मो के प्रेमपाश में जकडे हुए उसकी प्रत्येक आज्ञा का पालन करते रहते। उन्होंने अपनी पढाई को संन्यास देकर कम्मो के गृह कार्य में अपना पूरा समय देना आरम्भ कर दिया था। कम्मो की सहेलियां कम्मो से ईर्ष्या भाव रखने लगीं थीं तथा अपने लिए भी लल्लू जैसे सुयोग्य बॉय-फ्रेंड खोजने का प्रयास करने लगीं थीं। लल्लू भइया कम्मो के प्रेम में खो कर प्रेम गीत लिखने लगे थे। एक दिन उनके पिता जी ने उनका लिखा प्रेम गीत पढ़ लिया और उनकी जमकर मरम्मत की। किन्तु लल्लू भइया के शरीर में भी राँझा,मजनूं व फरहाद जैसे महान प्रेमियों जैसा रक्त भरा था सो वे अपने प्रेम-पथ से तनिक भी विचलित नहीं हुए। एक दिन कम्मो छत पर लल्लू जी द्वारा दिए गए उपहार संग खेल रही थी। तभी उसके पड़ोस में रहने वाली उसकी सखी ने उस उपहार को भेंट करने वाले के विषय में कम्मो से पूछा। कम्मो ने मासूमियत से सबकुछ बता दिया। यह सुनते ही वह लड़की भड़क गई तथा कम्मो से बोली कि वह पंडित होकर एक नीच जाति के लड़के से कैसे मित्रता कर सकती है? कम्मो को जैसे सदमा सा लग गया उसने गुस्से में लल्लू द्वारा दिया गया उपहार छत से नीचे फैंक दिया । उस दिन लल्लू भइया का पहली बार ह्रदय टूटा था । वह ऋग्वेद के दसवें मंडल में वर्णित पुरूष सूक्त में विराट द्वारा चार वर्णों की उत्पत्ति को कोस रहे थे । कितने दुखी थे वह उस दिन । मित्रों के लाख समझाने के बावजूद भी उनका दुःख कम नही हुआ । उन्होंने गुटखा खाकर आत्महत्या करने का प्रयास किया और नशे में पार्क में कई घंटे चक्कर खाकर पड़े कम्मो से अपना ध्यान बंटाने के लिए लल्लू जी मुंह-तोड़ खेल मुक्केबाजी सीखना प्रारंभ कर दिया। वह स्टेडियम में अत्यधिक परिश्रम करने लगे। यह क्रम भी अधिक दिनों तक न चल सका । एक दिन उनके साथी मुक्केबाज़ ने उन्हें रिंग में ऐसा धोया कि उनका मुंह टमाटर जैसा लाल कर दिया । कई दिन शर्म के मारे वह घर से नहीं निकले । अब उन्होंने कई कन्यायों से एक साथ नैना मिलाने आरंभ कर दिये परन्तु सभी ने उन्हें भाई बनाना ही पसंद किया । एक कन्या की माँ ने तो लल्लू जी के कालर पकड़कर दो चार झापड़ भी रसीद दिये। पर लल्लू भइया हिम्मत नहीं हारते थे। यदि कोई कन्या उन्हें गलती से भी देख लेती वह उससे राखी या थप्पड़ ही लेकर लौटते थे। समय बीता और उन्होंने एक छोटी-मोटी नौकरी ढूँढ ली। सड़कों पर दौड़ लगाते और बसों में धक्के खाते-२ उनका "कन्या पटाऊ अभियान" चालू रहा। उनके प्रत्येक मित्र के पास गर्ल-फ्रेंड थी। अब उनके लिए यह प्रतिष्ठा का प्रश्न बन चुका था। किंतु कमबख्त किस्मत ऐसी थी कि कोई लड़की उन्हें घास नहीं डालती थी। अपनी इज्ज़त बचाने का उन्होंने एक उपाय खोजा। उन्होंने एक-दो कन्याओं को बहन बना लिया व कभी-२ उनके साथ घूमने-फिरने निकल जाते। जब कोई मित्र उन कन्यायों के विषय में पूछता तो वह आँख मार के मुस्करा देते। मित्र यह समझता कि वे सब लल्लू भइया कि गर्ल-फ्रेंड हैं। एक दिन उनके माता-पिता ने उनकी शादी पक्की कर दी। माँ-बाप कि चिंता जायज थी। क्योंकि लल्लू भइया कि उम्र काफ़ी हो गई थी तथा जो कोई भी रिश्ता लेकर आता था लल्लू जी के व्यक्तित्व को देख कर भाग खड़ा होता था। आख़िर एक लड़की का बाप एक दिन फंस ही गया। लल्लू जी के माँ-बाप ने चट मंगनी पट ब्याह की नीति अपनाई और उनके फेरे पडवा दिये। मित्रों ने पकड़कर हिलाया तो होश में आया। आशीर्वाद समारोह आरम्भ हो चुका था। हम सबने भी लल्लू भइया को बधाई दी व उनके संग कैमरे में कैद हो गए। मंच से उतरते हुए लल्लू जी के पिता जी पर दृष्टि गई तो उन्हें देखकर ऐसा लगा कि जैसे वे ईश्वर से कह रहे हों कि भला हो उसका जो उसने उनके लड़के की उम्र निकलने से पहले ही शादी करवा दी। लल्लू भइया को मुड़कर देखा तो प्रतीत हुआ कि वह भी कुछ ऐसा ही सोच रहे थे। रात को घर लौटते हुए मैं और मेरे मित्र पहले और अब के लल्लू भइया में तुलना करते हुए उनके सुखी विवाहित जीवन की कामना कर रहे थे।