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24.6.10

विशालकाय तीन ट्रालें बने चर्चा का विषय

सिरसा: गुजरात के कांडला घाट से वॉयलर लेकर बठिंडा के श्री गुरू गोबिंद सिंह रिफायनरी के लिए रवाना हुआ विशालकाय तीन ट्रालें आज 3 महीने 20 दिन का सफर तय करने के पश्चात सिरसा पहुंच गया। दिल्ली पूल पर इस विशालकाय ट्राले को देखने के लिए सिरसा वासी उमड़ पड़े। इस ट्राले के साथ चल रहे हाईड्रोलिक इंजीनियर शंकर दूदूथी ने बताया कि यह विशाल ट्राला गुजरात के कांडला घाट से बठिंडा के लिए रवाना हुआ है। उन्होंने बताया कि प्रत्येक ट्राले में 250 से 300 के करीब टायर लगे हुए हैं वहीं इस ट्राले को खीचने के लिए वोल्वों कम्पनी के दो शक्तिशाली इंजन लगे हुए हैं तथा साथ ही प्रत्येक ट्राले की देखरेख के लिए 50 से अधिक कर्मचारी जुटे हुए हैं। शंकर ने बताया कि प्रत्येक दिन वे 10 से 15 किलो मीटर का सफर तय करते हैं और इतने सफर के बाद टायरों का रखरखाव और अन्य पुर्जों की जांच की जाती है। उन्होंने बताया कि गुजरात से बठिंडा तक का 17 सौ किलो मीटर का सफर उन्हें तय करना है। जबकि सिरसा तक उन्होंने 15 सौ किलो मीटर का सफर तय कर लिया है। जब उनसे पूछा गया कि रास्तें में उन्हें किन दिक्कतों का सामना करना पडा तो उन्होंने बताया कि आंधी बारिश के इलावा शहरों में नीचे लगी बिजली की तारों के कारण उन्हें काफी परेशानी झेलनी पडती है। उन्होंने बताया कि इससे पहले भी वे मध्य प्रदेश के जिला वीणा, उत्तर प्रदेश के मथुरा, हरियाणा के पानीपत के बाद अब बठिंडा के लिए ये वायलर सप्लाई करने जा रहे हैं। 30 फुट ऊंचाई व 137 फुट लम्बाई वाले ये तीन ट्राले शहर के लोगों के लिए चर्चा का विषय जरूर बने हुए हैं।

23.6.10

अतिवाद की लड़ाई - 2

राजशाही जब खारिज की गयी जोकि एक समय तक ईश्वर प्रदत्त मानी जाती थी और यह तय हुआ कि अब राजाओं को जनता चुनेगी तो संसदीय लोकतंत्र की स्थापना, सैद्धांतिक तौर पर लोगों द्वारा ईश्वर के लिये खारिजनामा ही था, क्योंकि राजा उसके प्रतिनिधि होते थे और राजा को खा़रिज करना इश्वर को खारिज करने से कहीं कम न था बल्कि वह एक प्रत्यक्ष भय था. इस नयी व्यवस्था के बारे में प्रस्फुटित होने वाले विचार जरूरी नहीं कि वे केवल लिंकन के ही रहे हों पर ये विचार राजशाही के लिये अतिवादी ही थे. राजशाही के समय का यही अतिवाद आज हमारे समय के लोकतंत्र में परिणित हुआ. अतिवाद हमेशा समय सापेक्ष रहा है पर वह भविष्य की संरचना के निर्माण का भ्रूण विचार भी रहा जिसे ऐतिहासिक अवलोकन से समझा जा सकता है.
ज्योतिबाफुले, सावित्रीबाई फुले, राजाराम मोहनराय जैसे कितने नाम हैं जो लोग अपने समय के अतिवादी ही थे. इन्हें आज का माओवादी भी कह सकते हैं चूंकि ये संरचना प्रक्रिया में विद्रोह कर रहे थे एक दमनकारी व शोषणयुक्त प्रथा का अंत करने में जुटे थे. भविष्य में जब समाज के मूल्यबोध बदले तो इन्हें सम्मानित किया गया, क्या नेपाल में ऐसा नहीं हुआ. सत्तावर्ग ने इन शब्दों के मायने ही आरक्षित कर लिये हैं. किसी भी समय का अतिवाद, उस समय के सत्तावर्ग के लिये अपराधी और भविष्य के समाज का निर्माता होता है बशर्ते वह उन मूल्यों के लिये हो जो मानवीयता और आजादी के दायरे को व्यापक बनाये.
उन्हें उग्रवादी घोषित कर दिया जायेगा, आसानी से अराजक कह दिया जायेगा जो आवाज उठाते हैं कि घोषित करने वालों की बनी बनायी व्यवस्थायें, भले ही वह एक व्यापक समुदाय के लिये निर्मम और अमानवीय हो पर उनके लिये सुविधा भोगी है, के खिलाफ आवाज उठाना, उनकी व्यवस्थित जिंदगी व उनके जैसे भविष्य में आने वालों की जिंदगी में खलल पैदा करती है. मसलन आप असन्तुष्ट रहें पर इसे व्यक्त न करें, व्यक्त भी करें तो उसकी भी एक सीमा हो, उसके तौर-तरीके उन्होंने बना रखें हैं. इसके बाहर यदि आप उग्र हुए, गुस्सा आया तो यह उग्रवादी होना है. इस प्रवृत्ति को आपसी बात-चीत, छोटे संस्थानों से लेकर देश की बड़ी व्यवस्थाओं तक देखा जा सकता है जहाँ असंतुष्ट होना, असहमति उनके बने बनाये ढांचे से बाहर दर्ज करना, अराजक और उग्रवादी होना है और इन शब्दों के बोध जनमानस में अपराधिकृत कर दिये गये हैं.
अभिषेक मुखर्जी जिसकी बंगाल पुलिस द्वारा हाल में ही हत्या कर दी गयी क्या यह सोचने पर विवश नहीं करता कि आखिर वे क्या कारण हैं कि १३ भाषाओं का जानकार और जादवपुर विश्वविद्यालय का एक प्रखर छात्र देश की उच्च पदाधिकारी बनने की सीढ़ीयां चढ़ते-चढ़ते लौट आता है और लालगढ़ के जंगलों में आदिवासियों की लड़ाई लड़ने चला जाता है, क्या यह सचमुच युवाओं का भटकाव है जो गुमराह हो रहे हैं, जिसे सरकार बार-बार दोहराती रहती है या व्यवस्था की कमजोरी और सीमा की पहचान कर विकल्प की तलाश. अनुराधा गांधी, कोबाद गांधी, साकेत राजन, तपस चक्रवर्ती, शायद देश और दुनिया के बड़े नौकरसाह बन सकते थे, पर वर्षों बरस तक लगातार जंगलों की उस लड़ाई का हिस्सा बने रहे जिसे सरकार अतिवाद की लड़ाई मानती है और ये उसे अधिकार की. शायद समाज में जब तक अतिवाद और अतिवादि रहेंगे, स्वभाव में जब तक उग्रता बची रहेगी तमाम दुष्प्रचारों के बावजूद नये समाज निर्माण की उम्मीदें कायम रहेंगी.

( समाप्त )

-चन्द्रिका
स्वतंत्र लेखन व शोध

सरपंच की हत्या से जल उठा बहादुरगढ़

बहादुरगढ़: नया गांव के नवनिर्वाचित सरपंच राकेश उर्फ काला की मंगलवार की सुबह हमलावरों ने निजी अस्पताल के अंदर गोलियों से भूनकर हत्या कर दी। सरपंच बीती सांय तबीयत बिगड़ने के बाद यहां दाखिल हुए थे। घटना से गुस्साएं ग्रामीणों ने पहले अस्पताल में तोड़फोड़ की फिर बाद में राष्ट्रीय राजमार्ग को जाम कर दिया। बाद में गुस्सा और भड़का तो अनेक वाहनों में तोड़फोड़ की गई। हरियाणा रोडवेज की एक बस को आग के हवाले कर दिया गया। बहादुरगढ़ के अलावा रोहतक-झज्जारसे भारी पुलिस बल ने पहुंचकर स्थिति को संभाला। पुलिस महानिरीक्षक वी. कामराजा भी स्थिति का जायजा लेने पहुंचे। उन्होंने दोषियों को शीघ्र पकड़ने और सख्त कार्रवाई की बात कही।
दस दिन पहले संपन्न हुए पंचायती चुनाव में नया गांव में सरपंच चुने गए राकेश उर्फ काला की बीती सांय तबीयत खराब होने के बाद उन्हे शहर के दिल्ली अस्पताल में दाखिल कराया गया था। वे अस्पताल के डीलक्स रूम नम्बर 2 में भर्ती थे। सुबह 11 बजे के आसपास जब सरपंच अकेले थे उसी समय बदमाश अंदर दाखिल हुए और उन्हे गोलियों से भूनकर कर मौत के घाट उतार दिया। गोलियों की आवाज के बाद हमलावर जब भागे तब अस्पताल के स्टाफ को पता लगा। बाद में सूचना मिलने के बाद मृतक सरपंच के परिजन व अन्य ग्रामीण भी पहुंच गए। अस्पताल में हत्या की इस वारदात से ग्रामीणों का गुस्सा भड़क गया। आक्रोशित भीड़ ने राष्ट्रीय राजमार्ग जाम कर दिया और अस्पताल के अंदर तोड़फोड़ शुरू कर दी। वहां मौजूद पुलिस बल ने किसी तरह भीड़ को काबू किया। बाद में गांव के लोगों ने जाम खोल दिया और सभी गांव का रुख किए। स्थानीय लोगों के गुस्से को देख पुलिस ने गांव में पहुंचकर स्थिति को संभाला। पुलिस जब कार्रवाई में जुटी हुई थी। तभी घंटे भर बाद गांव के लोग फिर से वाहनों में सवार होकर अस्पताल के बाहर पहुंच गए। इस बार ग्रामीणों का गुस्सा और भी ज्यादा भड़का हुआ था। पहले तो राजमार्ग को जाम किया गया उसके बाद सड़क पर लगी कतार में खड़े वाहनों पर लोगों ने पथराव शुरू कर दिया। लगभग दर्जन भर वाहनों में तोड़फोड़ की गई। इसके बाद हरियाणा रोडवेज की एक बस को आग के हवाले कर दिया गया। अग्निशमन दस्ता के पहुंचने से पहले बस जल चुकी थी। स्थिति काबू होती न देख झज्जार व रोहतक से भी पुलिस बल बुलाया गया। घटना सुबह हुई थी और शाम तक पुलिस बल के पहुंचने का दौर जारी था। आक्रोशित ग्रामीण जब एक के बाद एक वाहनों में तोड़फोड़ कर रहे थे तो भगदड़ मच गई। सभी आसपास की दुकानें बंद हो गई। यहां तक कि थाना सदर के दरवाजे पर भी पुलिसकर्मियों ने डर के मारे ताला लगा लिया। कई वाहनों पर गुस्सा निकालने के बाद ग्रामीण सड़क पर जाम लगाकर बैठ गए। इसी बीच रोहतक से पुलिस महानिरीक्षक वी. कामराजा भी पहुंचे। उन्होंने पूरी स्थिति का जायजा लिया और परिजनों व ग्रामीणों को दोषियों के विरुद्ध सख्त कार्रवाई का भरोसा दिलाया। उन्होंने कहा कि अपराधियों को बख्शा नहीं जाएगा।
पुलिस उप अधीक्षक महाबीर सिंह दलबल के साथ पहुंचे तो उन्होंने सबसे पहले अस्पताल में लगे सीसीटीवी कैमरों की रिकार्डिग खंगाली। कैमरे की फुटेज में पुलिस को हमलावरों के बारे में पता चल गया। मृतक सरपंच राकेश के परिजनों से कैमरे में कैद हुए हमलावरों की पहचान कराई गई। पुलिस के मुताबिक फुटेज में 11 बजकर 6 मिनट पर चार हमलावर अंदर दाखिल होते साफ दिख रहे है। इनमें से बाद में तीन ने अपने-अपने हथियार भी निकाले। उसके बाद सरपंच पर दनादन गोलियां बरसाकर हमलावर भाग निकले।
आईजी के आश्वासन पर खोला जाम
पुलिस महा निरीक्षक वी. कामराजा ने मौके पर पहुंचकर जब स्थिति का जायजा लिया और पीड़ितों को आरोपियों के विरुद्ध सख्त कार्रवाई का भरोसा दिलाया तब जाकर ग्रामीणों का गुस्सा शांत पड़ा और करीब 4 बजे राष्ट्रीय राजमार्ग का जाम खोल दिया गया। उधर, पुलिस ने हमलावरों की पहचान के बाद कई टीमें उनकी गिरफ्तारी के लिए गठित करके भेज दी है।

महिला खेत पाठशाला का दूसरा सत्र








मंगलवार का दिन हिन्दुओं में हनुमान के नाम होता है| मंगलवार के दिन बरती रहना व प्रसाद बाँटना आम बात है| इस दिन ज्यादातर नाई भी अपनी दुकान बंद रखते हैं| परन्तु इनसे हटकर निडाना गावं में यह मंगलवार का दिन महिला खेत पाठशाला के नाम मुकर्र है| आज सुबह सवेरे ही महिलायें घर के काम निपटा कर आठ बजे ही डिम्पल पत्नी विनोद के खेत में पहुँच चुकी थी| उन्होंने कृषि विभाग के अधिकारियों का इंतजार किये बगैर ही पौधों के अवलोकन व् निरिक्षण का काम शुरू कर दिया था| भूमि संरक्षण अधिकारी, डा.मीना सुहाग जब डा.सुरेन्द्र दलाल व् मनबीर के साथ इस पाठशाला में पहुंची तो महिलाएं खेत में कीटों का निरक्षण कर रही थी| महिला अधिकारी को अपने बीच पाकर अर वो भी इतने सवेरे, महिलाओं की ख़ुशी का ठिकाना नही रहा| महिलाओं ने लस्सी पिलाकर अपनी इस अधिकारी, डा.मीना सुहाग का स्वागत किया | इसके बाद इन महिलाओं ने पांच-पांच के समूह बनाए| अपने साथ एक-एक उत्प्रेरक लिया| एक टोली के साथ जिले के कीट विशेषग किसान मनबीर रेड्हू, दुसरे ग्रुप के साथ डा.कमल सैनी, तीसरे समूह के साथ, डा.सुरेन्द्र दलाल, चौथे समूह के साथ रणबीर मालिक व् पांचवे समूह के साथ मीना मालिक थी| सभी समूहों ने दस-दस पौधों का बारीकी से निरिक्षण किया व् इन पौधों पर कीटों की गिनती की| इसके बाद हर समूह ने अपनी-अपनी प्रस्तुति दी| आज कपास के इस खेत में हानिकारक कीटों के रूप में सफ़ेद मक्खी, ह्ऱा-तेला, चुरडा व् मिलीबग की उपस्तिथि तो सभी समूहों ने दर्ज कराई पर इनमेसे कोई भी कीट आर्थिक- दहलीज़ को पार करते हुए नही पाया गया| महिला-समूहों की इस प्रस्तुति का निचोड़ पेश करते हुए डा.कमल सैनी ने बताया की आज के दिन इस फसल पर किसी भी कीटनाशक का छिडकाव करने की कोई आवश्यकता नही है| लाभदायक कीटों के रूप में अभी तक इस खेत में सिवाय मकड़ियों के कोई कीट नही देखा गया| पर इस बात मीणा मलिक ने सैनी सर को याद दिलाया की आज हमने मिलीबग को परजीव्याभीत करने वाला अंगीरा भी तो देखा है| डा.दलाल ने भी इस छात्रा की हाँ में हाँ मिलाई और मौके पर सभी को अंगीरा से परजीव्याभित मिलीबग दिखाए जिनके शरीर से आटानूमा पाउडर उड़ चुका था तथा इनका शरीर लाली लिए भूरा पड़ चुका था|इस ख़ुशी की सुचना पर सभी महिलाओं ने तालियाँ बजाई| मनबीर रेड्हू ने मिलीबग की जानकारी महिलाओं को देते हुए इसकी दो खास कमजोरियों को उजागर किया| एक तो मिलीबग की मादा पंखविहीन होती है तथा दुसरे यह अपने अंडे थैली में देती है. इन दो कमजोरियों के चलते मिलीबग नाम का यह भस्मासुर आसानी से परभक्षियों का शिकार हो जाता है| राजवंती मलिक ने अपनी रिपोर्ट पेश करते हुए बताया कि हमारे ग्रुप ने तो आज पौधों की ऊँचाई भी नापी है| इस खेत में औसतन पौधों की उचाई आठ-नौ इंच पाई गई है| कार्यक्रम के अंत में डा.मीना सुहाग ने भूमि संरक्षण विभाग द्वारा चलाई जा रही विभिन्न स्किम्मों बारे विस्तार से जानकारी दी व महिलाओं से वादा किया कि जब भी निडाना गावँ की महिलाएं उनके कार्यालय किसी भी कार्य से आएँगी वे हमेशा उनकी सेवा में तैयार पाएंगी| इस खेत पाठशाला के कार्य को नजदीक से समझने के लिए भू.पु.सरपंच बसाऊ राम के साथ रागनी गायक व लेखक राजबीर सिंह ने भी इस खेत में तीन घंटे बिताये|
पाठशाला के कार्य से निपट कर अनीता मलिक ने प्रशिक्षकों क़ी इस पूरी टीम को अपने घर पर जल-पान करवाया|

महिला खेत पाठशाला का पहला सत्र


आज महिला खेत पाठशाला का पहला सत्र निडाना गावँ में डिम्पल पत्नी विनोद के खेत में शुरू हुआ | सुबह आठ बजे ही महिलाओं का पहला जत्था कपास की खेती के प्रशिक्षण हेतु इस खेत में पहुच चूका था | महिलाओं का यह पहला जथा अपने साथ पिने के पानी का भी जुगाड़ करके लाया था | महिलाएं इस नई किस्म की पाठशाला के लिए आज गीत गाते हुए खेत में पहुंची थी | गीत के बोल थे, " बगड़ो-मनियारी हे! मनै लगै प्यारी हे!! हमनै खेत में बैठी पाईये हे! म्हारी बाड़ी के कीड़े खाईये हे!!!!" डा सुरेन्द्र दलाल के लिए भी यह एक नये किस्म का अनुभव था| पुरुषों में तो किसी भी पाठशाला में इतना हौंसला व चाव उसने नहीं देखा था| डा.दलाल ने उपस्तिथ महिलाओं को इस पाठशाला के उदेश्य विस्तार से बताये| इसके राजनितिक मायने महिलाओं को समझाते हुए किसान और कीटों की इस अंतहीन जंग में बेहतर सैनिकों के रूप में विकसित होने कि अपील की| उन्होंने हरियाणा में लड़ी गई सबसे भयंकर जंग महाभारत व इस किट्टीया जंग की तुलना करते हुए महिलाओं को बताया की महाभारत की लड़ाई इतनी भयावह थी कि आज भी हिन्दू इस जंग कि किताब को अपने घर में रखते हुए डरते हैं| लेकिन फिर भी यह लड़ाई सिर्फ अठारह दिन में अपने मुकाम पर पहुँच गई थी| पर यह किसान -कीटों की जंग पिछले पच्चीस सालों से रुकने का नाम नही ले रही| इन दोनों जंगों के मुख्य अन्तरो पर चर्चा करते हुए डा.दलाल ने बताया कि महारत की लड़ाई में दोनों पक्षों को एक दुसरे का पूरा भेद था| पांडवों को कौरवों की पूरी पहचान, पुरे भेद व एक-एक कमजोरियों का इल्म था| इसीतरह कौरवों को भी पांडवों के बारे में ज्ञात था| जबकि इस कीटों व किसानों की आधुनिक जंग में किसानों व इनके नेतृत्व को कीटों की पूरी पहचान व भेद मालूम नही है|दूसरा मुख्य फर्क हथियारों को लेकर है|महाभारत में हर योद्धा के पास दो तरह के हथियार थे- एक तरह के वो जो दुश्मन को मारने के लिए तथा दुसरे अपना खुद का बचाव करने के लिए| लेकिन आज हमारे किसानों के पास तो सिर्फ कीटों को मारने के हथियार भर ही हैं अर् वो भी बेगाने| इसीलिए तो यह जंग ख़त्म होने का नाम नही ले रही| अत: हमारी इस पाठशाला में मिलजुल कर सारा जोर कीटों की सही पहचान व इनके भेद जानने पर रहेगा|
डा.दलाल ने महिलाओं को मांसाहारी व शाकाहारी कीटों के बारे में बताया| चुसक व चर्वक किस्म के कीटों बारे बताया| इसके बाद महिलाये अवलोकन व निरिक्षण के लिए पांच-पांच की टोलियों में कपास के खेत में उतरी| हरेक टोली के पास छोटे-छोटे कीट देखने के लिए मैग्नीफाईंग-ग्लास था| एक घंटे की माथा-पच्ची के बाद महिलाओं ने रिपोर्ट दी कि आज के दिन इस कपास के खेत में हरे-तेले, सफ़ेद-मक्खी, चुरड़े व मिलीबग देखे गये हैं परन्तु इनकी संख्या काफी कम है|

22.6.10

अतिवाद की लड़ाई - 1

कुछ दिन पहले ही हम सब दण्डकारण्य घूम कर लौटे हैं, अरुंधती रॉय के साथ, भूमकाल में कॉमरेडों के साथ-साथ घूमते हुए. दण्डकारण्य के ग्राम स्वराज्य को देखते हुए, आउटलुक, समयांतर और फिलहाल, पत्रिकाओं के पन्ने पलटते हुए. भारत सरकार के असुरक्षा की महसूसियत को खारिज होती जा रही थी, जंगलों में चलते हुए, पहाड़ों पर चढ़ते हुए. हमे ऐसा ही लग रहा था कि जमीन पर पेड़ों से टूटकर गिरे सूखे पत्ते हमारे ही पैरों के नीचे दब रहे हैं और उनकी चरमराहट हमारे कानों में किसी संगीत की तरह बज रही है. संगीत, जिसे भारत सरकार और उसकी दलाली करने वाली कार्पोरेट मीडिया भय के रूप में हमारे जेहन में भरते रहने का लगातार प्रयास करती रहती है. इंद्रावती नदी के पार जो “पाकिस्तान” है (पुलिस की भाषा में) वहाँ के किस्से सी.वेनेजा, रुचिरगर्ग और कई पत्रकार पहले भी ला चुके हैं. जब हम आजादी की बात करते हैं तो उसके क्या मायने होते हैं? अरुंधती इस अवधारणा को ही एक वाक्य में ही बताती हैं “वहाँ मुक्ति का मतलब असली आजादी था”, वे उसे छू सकते थे, चख सकते थे, इसका मतलब भारत की स्वतंत्रता से कहीं ज्यादा था. यह नकली आजादी को पेपर्द करने वाला वाक्य है और यह भी कि नकली आजादी जैसी चीज बहुतायत पायी जाती हैं, मसलन हमारी आजादी और हमारे देश की आजादी. सरकार और पूजीपतियों की आजादी से अलग. ये “जनताना सरकार” के क्षेत्र में रहने वाली महिलायें हैं जिन्हें रात और दिन का फर्क सिर्फ रोशनी का फर्क होता है, असुरक्षा और भय का नहीं, एक पहाड़ी से दूसरी पहाड़ी को वे कभी भी पार कर सकती हैं. इसके लिये आखों में इतनी ही रोशनी की जरूरत है कि आप उससे रास्ता बना सकें. दिल्ली को भी भारत सरकार ऐसा नहीं बना पायी और शायद संसद भवन को भी. “ये लोग अपने सपनों के साथ जीते हैं, जबकि बाकी दुनिया अपने दुरूस्वप्नों के साथ” इस पूरे लेखन को यात्रा वृतांत कहें, कविता कहें, रिपोर्ताज कहें या इन विधाओं से अलग एक दस्तावेज, जहाँ भूमकाल साल में एक दिन मनाया जाता है और भूमकाल के विद्रोह की आवाजें दशकों से वहाँ की हवाओं में और वेग के साथ प्रवाहित होती जा रही हैं. इतिहास जरूरी नहीं कि सफेद पन्नों पर काली रोशनाई से लिखे जायें वे जंगलों की हलचल में रोज-रोज घटित होकर पीढ़ीयों के व्यवहारों में शामिल हो सकते हैं, उनके बच्चों की रगों में, उनके गाँवों के घरों की दीवारों पर. इस लेखन के बाद अरुंधती को अतिवादी घोषित करने की होड़ सी लगी रही, उनके तर्कों को ख़रिज करने की जहमत न उठाते हुए. जिसका खारिज किया जाना शायद मुमकिन भी नहीं था एक उग्रता और उन्माद में कुछ कह देने की व्यग्रता ही दिखी. आखिर यह अतिवाद ही तो था जो संसदीय लोकतंत्र के खतरे को इस तरह प्रस्तुत कर रहा था कि लोकतंत्र हमे घुटन की तरह लग रहा था और भूमकाल में शामिल न हो पाने का क्षोभ भी. फिर तो यह ऐसा अतिवाद है जो हमे व्यग्र कर देता है. एक “अतिवादी” की डायरी के विचार यदि हमे व्यग्र करते हैं, तो क्या सरकार के हर रोज के दमन से आदिवासीयों को उग्र नहीं होना चाहिये.
परिवर्तन सबसे पहले स्वप्न में आता है. रात की नींद के सपनों में नहीं, जीवन के बेहतरी की लालसा के स्वप्न में, और कहीं अपने भीतर एक बना बनाया ढांचा टूटता है, अपने समय के मूल्य ढहते हुए दिखते हैं. यह ढांचा पहले आदमी के विचार से टूटता है फिर व्यवहार से फिर वह आदमी के दायरे को ही तोड़कर, संरचना के दायरे को तोड़ने की प्रक्रिया में शामिल हो जाता है. वे हर बार आतिवादी ठहरा दिये गये होंगे जिन्होंने समय के मूल्यों को तोड़ा होगा क्योंकि किसी भी समय में व्यवस्था के संरचना की एक सीमा रही है, उसके एक मूल्य रहे हैं उसी के भीतर सोचने की इजाजत होती है, पर दुनिया में हर बार संरचना और सत्ता के बाहर की सोच पैदा हुई. यह परिस्थिति की देन मात्र नहीं थी बल्कि चिंतन की व्यापकता थी जो व्यापक आजादी के लिये हर समय विद्रोह करती रही और अपने समय में समय के आगे का विचार पैदा होते रहे. किसी भी समय का अतिवाद यही होता है जो समय की संरचना से विद्रोह करता है, एक नये संरचना की तलास करता है लिहाजा हर दौर में नये समाज बनाने के सपने रहे हैं और हर समय में वे लोग जो अपने समय की संरचना को नकारने का साहस रखते हों. जबकि इतिहास से वे नयी संरचना को बिम्बित करने में असफल भी होते हैं फिर भी उम्मीद और मूल्यों ने उनके विचारों को आगे बाढ़ाया और भविष्य के समाज उन्हीं के विचारों की निर्मिति रहे हैं. शायद दुनिया का अंत किसी प्रलय या दैवीय शक्ति से नहीं, बल्कि उस दिन होगा जब ये नकार के साहस खत्म हो जायेंगे. जो जैसा है उसी रूप में स्वीकार्य होगा तो बदलाव की प्रक्रियायें रुक जायेंगी और दुनिया की सारी घढ़ियां और कलेंडर अर्थ विहीन हो जायेंगे. समय का ठहराव यही होगा कि नये चिंतनकर्म समाप्त हो जायें और सब सत्ता के आगे नतमस्तक दिखेंगे, पर मानवीय प्रवृत्तियां इन्हें अस्वीकार करती रही हैं कि इंसान है तो सोचना जारी रहेगा.

(क्रमश: )

-चन्द्रिका
स्वतंत्र लेखन व शोध

शराब उधार न देने पर कारिदे की निर्मम हत्या

फतेहाबाद : जिला फतेहाबाद गाव बीराबदी से दो किलोमीटर दूर पंजाब की सीमा के पास गाव भगवानपुर के पास स्थित देशी शराब के ठेके की छत पर सोए कारिदे 50 वर्षीय सत्यवान उर्फ सत्ता निवासी वार्ड 1 सरदूलगढ पंजाब की गंडासे से काटकर हत्या कर देने का सनसनीखेज समाचार है। रतिया थाने के तहत पड़ने वाली नागपुर पुलिस चौकी ने मृतक सत्यवान के भाई शमशेर सिंह की शिकायत पर गाव भगवानपुर हींगणा पंजाब निवासी लाडो के विरुद्ध हत्या के आरोप में धारा 302 के तहत केस दर्ज किया है। प्राप्त जानकारी के अनुसार श्रवण सिंह निवासी आदमके पंजाब ने फतेहाबाद जिले के गाव मढ का शराब का ठेका ले रखा है। जिस ठेके पर कारिदे सत्यवान की हत्या हुई वह गाव मढ़ की ब्राच है। इस ठेके पर मृतक सत्यवान शराब का ठेका संचालित करता था जबकि उसका भाई शमेशर सिंह वहा अंडे की रेहड़ी लगाता था व तीसरा भाई भी रेहड़ी पर काम करता है। शराब ठेकेदार श्रवणसिंह ने बताया कि सत्यवान व उसके भाई उत्तरप्रदेश के रहने वाले है व कई वर्षो से उसके शराब के ठेकों पर काम कर रहे है। उसने बताया कि शनिवार शाम को हत्यारोपी लाडो का कारिदे सत्यवान से झगड़ा हुआ था। लाडो ने उधार में शराब मागी थी, सत्यवान ने मना कर दी। इसके बाद लाडो उसे देख लेने की धमकी देकर भाग गया। श्रवण ने बताया कि मृतक सत्यवान के दोनों भाई रात को दस बजे के लगभग गाव सरदूलगढ लौट जाते थे व सत्यवान ठेके पर ही सोता था। उसने बताया कि सोमवार सुबह बीराबदी निवासी भल्लासिंह जिसके खेत में शराब का ठेका बना हुआ है, ने मोबाईल पर सूचना दी कि उसका कारिदा धूप निकलने के बावजूद छत पर सोया है, नीचे नहीं उतर रहा। शराब ठेकेदार श्रवणसिंह ने मौके पर पहुंचकर देखा तो पाया कि सत्यवान की हत्या की जा चुकी है। श्रवणसिंह ने तुरत गाव के सरपंच व पंचों को मौके पर बुलाया व नागपुर पुलिस चौकी को घटना की सूचना दी। सूचना मिलते ही नागपुर पुलिस चौकी इचार्ज रघुबीर सिंह एसआई, रतिया एसएचओ अजायब सिंह मौके पर पंहुच गए। बाद में एसपी जगवंत सिंह लाम्बा, डीएसपी रमेश यादव भी मौके पर पंहुच गए व मृतक के भाईयों व शराब ठेकेदार श्रवणसिंह से पूछताछ की। रतिया पुलिस ने तुरत सीन ऑफ क्राईम के इचार्ज डा. जोगेंद्र व पुलिस डॉग स्कवायर्ड इचार्ज प्रदीप कुमार को सिरसा से मौके पर बुलाया। दोनों ने मौके पर पंहुचकर घटना की जाच शुरु कर दी। रतिया पुलिस ने श्रवणसिंह से मिली जानकारी के बाद गाव भगवानपुर हींगना में हत्यारोपी लाडो के घर छापा मारकर वहा से खून से सने लाडो के कपड़े बरामद कर लिए, जबकि लाडो अपने घर से गायब मिला। पुलिस टीम ने लाडो के घर से बरामद किए खून से सने कपड़ों को घटनास्थल पर लाकर डाग स्क्वायर्ड के कुत्ते को सुंघाया तो कुत्ता कपड़ों को सुंघकर समीप के धान के खेत के पास जाकर रुक गया। रतिया पुलिस मामले की पूरी सरगर्मी के साथ जाच कर रही है। पुलिस अधीक्षक ने मौके पर पत्रकारों से बातचीत करते हुए कहा कि शीघ्र ही हत्यारोपी को गिरफ्त में ले लिया जाएगा।