10:32 am
Pardeep Dhaniya
बहादुरगढ़: नया गांव के नवनिर्वाचित सरपंच राकेश उर्फ काला की मंगलवार की सुबह हमलावरों ने निजी अस्पताल के अंदर गोलियों से भूनकर हत्या कर दी। सरपंच बीती सांय तबीयत बिगड़ने के बाद यहां दाखिल हुए थे। घटना से गुस्साएं ग्रामीणों ने पहले अस्पताल में तोड़फोड़ की फिर बाद में राष्ट्रीय राजमार्ग को जाम कर दिया। बाद में गुस्सा और भड़का तो अनेक वाहनों में तोड़फोड़ की गई। हरियाणा रोडवेज की एक बस को आग के हवाले कर दिया गया। बहादुरगढ़ के अलावा रोहतक-झज्जारसे भारी पुलिस बल ने पहुंचकर स्थिति को संभाला। पुलिस महानिरीक्षक वी. कामराजा भी स्थिति का जायजा लेने पहुंचे। उन्होंने दोषियों को शीघ्र पकड़ने और सख्त कार्रवाई की बात कही।
दस दिन पहले संपन्न हुए पंचायती चुनाव में नया गांव में सरपंच चुने गए राकेश उर्फ काला की बीती सांय तबीयत खराब होने के बाद उन्हे शहर के दिल्ली अस्पताल में दाखिल कराया गया था। वे अस्पताल के डीलक्स रूम नम्बर 2 में भर्ती थे। सुबह 11 बजे के आसपास जब सरपंच अकेले थे उसी समय बदमाश अंदर दाखिल हुए और उन्हे गोलियों से भूनकर कर मौत के घाट उतार दिया। गोलियों की आवाज के बाद हमलावर जब भागे तब अस्पताल के स्टाफ को पता लगा। बाद में सूचना मिलने के बाद मृतक सरपंच के परिजन व अन्य ग्रामीण भी पहुंच गए। अस्पताल में हत्या की इस वारदात से ग्रामीणों का गुस्सा भड़क गया। आक्रोशित भीड़ ने राष्ट्रीय राजमार्ग जाम कर दिया और अस्पताल के अंदर तोड़फोड़ शुरू कर दी। वहां मौजूद पुलिस बल ने किसी तरह भीड़ को काबू किया। बाद में गांव के लोगों ने जाम खोल दिया और सभी गांव का रुख किए। स्थानीय लोगों के गुस्से को देख पुलिस ने गांव में पहुंचकर स्थिति को संभाला। पुलिस जब कार्रवाई में जुटी हुई थी। तभी घंटे भर बाद गांव के लोग फिर से वाहनों में सवार होकर अस्पताल के बाहर पहुंच गए। इस बार ग्रामीणों का गुस्सा और भी ज्यादा भड़का हुआ था। पहले तो राजमार्ग को जाम किया गया उसके बाद सड़क पर लगी कतार में खड़े वाहनों पर लोगों ने पथराव शुरू कर दिया। लगभग दर्जन भर वाहनों में तोड़फोड़ की गई। इसके बाद हरियाणा रोडवेज की एक बस को आग के हवाले कर दिया गया। अग्निशमन दस्ता के पहुंचने से पहले बस जल चुकी थी। स्थिति काबू होती न देख झज्जार व रोहतक से भी पुलिस बल बुलाया गया। घटना सुबह हुई थी और शाम तक पुलिस बल के पहुंचने का दौर जारी था। आक्रोशित ग्रामीण जब एक के बाद एक वाहनों में तोड़फोड़ कर रहे थे तो भगदड़ मच गई। सभी आसपास की दुकानें बंद हो गई। यहां तक कि थाना सदर के दरवाजे पर भी पुलिसकर्मियों ने डर के मारे ताला लगा लिया। कई वाहनों पर गुस्सा निकालने के बाद ग्रामीण सड़क पर जाम लगाकर बैठ गए। इसी बीच रोहतक से पुलिस महानिरीक्षक वी. कामराजा भी पहुंचे। उन्होंने पूरी स्थिति का जायजा लिया और परिजनों व ग्रामीणों को दोषियों के विरुद्ध सख्त कार्रवाई का भरोसा दिलाया। उन्होंने कहा कि अपराधियों को बख्शा नहीं जाएगा।
पुलिस उप अधीक्षक महाबीर सिंह दलबल के साथ पहुंचे तो उन्होंने सबसे पहले अस्पताल में लगे सीसीटीवी कैमरों की रिकार्डिग खंगाली। कैमरे की फुटेज में पुलिस को हमलावरों के बारे में पता चल गया। मृतक सरपंच राकेश के परिजनों से कैमरे में कैद हुए हमलावरों की पहचान कराई गई। पुलिस के मुताबिक फुटेज में 11 बजकर 6 मिनट पर चार हमलावर अंदर दाखिल होते साफ दिख रहे है। इनमें से बाद में तीन ने अपने-अपने हथियार भी निकाले। उसके बाद सरपंच पर दनादन गोलियां बरसाकर हमलावर भाग निकले।
आईजी के आश्वासन पर खोला जाम
पुलिस महा निरीक्षक वी. कामराजा ने मौके पर पहुंचकर जब स्थिति का जायजा लिया और पीड़ितों को आरोपियों के विरुद्ध सख्त कार्रवाई का भरोसा दिलाया तब जाकर ग्रामीणों का गुस्सा शांत पड़ा और करीब 4 बजे राष्ट्रीय राजमार्ग का जाम खोल दिया गया। उधर, पुलिस ने हमलावरों की पहचान के बाद कई टीमें उनकी गिरफ्तारी के लिए गठित करके भेज दी है।
9:36 am
sureda
आज महिला खेत पाठशाला का पहला सत्र निडाना गावँ में डिम्पल पत्नी विनोद के खेत में शुरू हुआ | सुबह आठ बजे ही महिलाओं का पहला जत्था कपास की खेती के प्रशिक्षण हेतु इस खेत में पहुच चूका था | महिलाओं का यह पहला जथा अपने साथ पिने के पानी का भी जुगाड़ करके लाया था | महिलाएं इस नई किस्म की पाठशाला के लिए आज गीत गाते हुए खेत में पहुंची थी | गीत के बोल थे, " बगड़ो-मनियारी हे! मनै लगै प्यारी हे!! हमनै खेत में बैठी पाईये हे! म्हारी बाड़ी के कीड़े खाईये हे!!!!" डा सुरेन्द्र दलाल के लिए भी यह एक नये किस्म का अनुभव था| पुरुषों में तो किसी भी पाठशाला में इतना हौंसला व चाव उसने नहीं देखा था| डा.दलाल ने उपस्तिथ महिलाओं को इस पाठशाला के उदेश्य विस्तार से बताये| इसके राजनितिक मायने महिलाओं को समझाते हुए किसान और कीटों की इस अंतहीन जंग में बेहतर सैनिकों के रूप में विकसित होने कि अपील की| उन्होंने हरियाणा में लड़ी गई सबसे भयंकर जंग महाभारत व इस किट्टीया जंग की तुलना करते हुए महिलाओं को बताया की महाभारत की लड़ाई इतनी भयावह थी कि आज भी हिन्दू इस जंग कि किताब को अपने घर में रखते हुए डरते हैं| लेकिन फिर भी यह लड़ाई सिर्फ अठारह दिन में अपने मुकाम पर पहुँच गई थी| पर यह किसान -कीटों की जंग पिछले पच्चीस सालों से रुकने का नाम नही ले रही| इन दोनों जंगों के मुख्य अन्तरो पर चर्चा करते हुए डा.दलाल ने बताया कि महारत की लड़ाई में दोनों पक्षों को एक दुसरे का पूरा भेद था| पांडवों को कौरवों की पूरी पहचान, पुरे भेद व एक-एक कमजोरियों का इल्म था| इसीतरह कौरवों को भी पांडवों के बारे में ज्ञात था| जबकि इस कीटों व किसानों की आधुनिक जंग में किसानों व इनके नेतृत्व को कीटों की पूरी पहचान व भेद मालूम नही है|दूसरा मुख्य फर्क हथियारों को लेकर है|महाभारत में हर योद्धा के पास दो तरह के हथियार थे- एक तरह के वो जो दुश्मन को मारने के लिए तथा दुसरे अपना खुद का बचाव करने के लिए| लेकिन आज हमारे किसानों के पास तो सिर्फ कीटों को मारने के हथियार भर ही हैं अर् वो भी बेगाने| इसीलिए तो यह जंग ख़त्म होने का नाम नही ले रही| अत: हमारी इस पाठशाला में मिलजुल कर सारा जोर कीटों की सही पहचान व इनके भेद जानने पर रहेगा| डा.दलाल ने महिलाओं को मांसाहारी व शाकाहारी कीटों के बारे में बताया| चुसक व चर्वक किस्म के कीटों बारे बताया| इसके बाद महिलाये अवलोकन व निरिक्षण के लिए पांच-पांच की टोलियों में कपास के खेत में उतरी| हरेक टोली के पास छोटे-छोटे कीट देखने के लिए मैग्नीफाईंग-ग्लास था| एक घंटे की माथा-पच्ची के बाद महिलाओं ने रिपोर्ट दी कि आज के दिन इस कपास के खेत में हरे-तेले, सफ़ेद-मक्खी, चुरड़े व मिलीबग देखे गये हैं परन्तु इनकी संख्या काफी कम है|
5:19 pm
Randhir Singh Suman
कुछ दिन पहले ही हम सब दण्डकारण्य घूम कर लौटे हैं, अरुंधती रॉय के साथ, भूमकाल में कॉमरेडों के साथ-साथ घूमते हुए. दण्डकारण्य के ग्राम स्वराज्य को देखते हुए, आउटलुक, समयांतर और फिलहाल, पत्रिकाओं के पन्ने पलटते हुए. भारत सरकार के असुरक्षा की महसूसियत को खारिज होती जा रही थी, जंगलों में चलते हुए, पहाड़ों पर चढ़ते हुए. हमे ऐसा ही लग रहा था कि जमीन पर पेड़ों से टूटकर गिरे सूखे पत्ते हमारे ही पैरों के नीचे दब रहे हैं और उनकी चरमराहट हमारे कानों में किसी संगीत की तरह बज रही है. संगीत, जिसे भारत सरकार और उसकी दलाली करने वाली कार्पोरेट मीडिया भय के रूप में हमारे जेहन में भरते रहने का लगातार प्रयास करती रहती है. इंद्रावती नदी के पार जो “पाकिस्तान” है (पुलिस की भाषा में) वहाँ के किस्से सी.वेनेजा, रुचिरगर्ग और कई पत्रकार पहले भी ला चुके हैं. जब हम आजादी की बात करते हैं तो उसके क्या मायने होते हैं? अरुंधती इस अवधारणा को ही एक वाक्य में ही बताती हैं “वहाँ मुक्ति का मतलब असली आजादी था”, वे उसे छू सकते थे, चख सकते थे, इसका मतलब भारत की स्वतंत्रता से कहीं ज्यादा था. यह नकली आजादी को पेपर्द करने वाला वाक्य है और यह भी कि नकली आजादी जैसी चीज बहुतायत पायी जाती हैं, मसलन हमारी आजादी और हमारे देश की आजादी. सरकार और पूजीपतियों की आजादी से अलग. ये “जनताना सरकार” के क्षेत्र में रहने वाली महिलायें हैं जिन्हें रात और दिन का फर्क सिर्फ रोशनी का फर्क होता है, असुरक्षा और भय का नहीं, एक पहाड़ी से दूसरी पहाड़ी को वे कभी भी पार कर सकती हैं. इसके लिये आखों में इतनी ही रोशनी की जरूरत है कि आप उससे रास्ता बना सकें. दिल्ली को भी भारत सरकार ऐसा नहीं बना पायी और शायद संसद भवन को भी. “ये लोग अपने सपनों के साथ जीते हैं, जबकि बाकी दुनिया अपने दुरूस्वप्नों के साथ” इस पूरे लेखन को यात्रा वृतांत कहें, कविता कहें, रिपोर्ताज कहें या इन विधाओं से अलग एक दस्तावेज, जहाँ भूमकाल साल में एक दिन मनाया जाता है और भूमकाल के विद्रोह की आवाजें दशकों से वहाँ की हवाओं में और वेग के साथ प्रवाहित होती जा रही हैं. इतिहास जरूरी नहीं कि सफेद पन्नों पर काली रोशनाई से लिखे जायें वे जंगलों की हलचल में रोज-रोज घटित होकर पीढ़ीयों के व्यवहारों में शामिल हो सकते हैं, उनके बच्चों की रगों में, उनके गाँवों के घरों की दीवारों पर. इस लेखन के बाद अरुंधती को अतिवादी घोषित करने की होड़ सी लगी रही, उनके तर्कों को ख़रिज करने की जहमत न उठाते हुए. जिसका खारिज किया जाना शायद मुमकिन भी नहीं था एक उग्रता और उन्माद में कुछ कह देने की व्यग्रता ही दिखी. आखिर यह अतिवाद ही तो था जो संसदीय लोकतंत्र के खतरे को इस तरह प्रस्तुत कर रहा था कि लोकतंत्र हमे घुटन की तरह लग रहा था और भूमकाल में शामिल न हो पाने का क्षोभ भी. फिर तो यह ऐसा अतिवाद है जो हमे व्यग्र कर देता है. एक “अतिवादी” की डायरी के विचार यदि हमे व्यग्र करते हैं, तो क्या सरकार के हर रोज के दमन से आदिवासीयों को उग्र नहीं होना चाहिये.
परिवर्तन सबसे पहले स्वप्न में आता है. रात की नींद के सपनों में नहीं, जीवन के बेहतरी की लालसा के स्वप्न में, और कहीं अपने भीतर एक बना बनाया ढांचा टूटता है, अपने समय के मूल्य ढहते हुए दिखते हैं. यह ढांचा पहले आदमी के विचार से टूटता है फिर व्यवहार से फिर वह आदमी के दायरे को ही तोड़कर, संरचना के दायरे को तोड़ने की प्रक्रिया में शामिल हो जाता है. वे हर बार आतिवादी ठहरा दिये गये होंगे जिन्होंने समय के मूल्यों को तोड़ा होगा क्योंकि किसी भी समय में व्यवस्था के संरचना की एक सीमा रही है, उसके एक मूल्य रहे हैं उसी के भीतर सोचने की इजाजत होती है, पर दुनिया में हर बार संरचना और सत्ता के बाहर की सोच पैदा हुई. यह परिस्थिति की देन मात्र नहीं थी बल्कि चिंतन की व्यापकता थी जो व्यापक आजादी के लिये हर समय विद्रोह करती रही और अपने समय में समय के आगे का विचार पैदा होते रहे. किसी भी समय का अतिवाद यही होता है जो समय की संरचना से विद्रोह करता है, एक नये संरचना की तलास करता है लिहाजा हर दौर में नये समाज बनाने के सपने रहे हैं और हर समय में वे लोग जो अपने समय की संरचना को नकारने का साहस रखते हों. जबकि इतिहास से वे नयी संरचना को बिम्बित करने में असफल भी होते हैं फिर भी उम्मीद और मूल्यों ने उनके विचारों को आगे बाढ़ाया और भविष्य के समाज उन्हीं के विचारों की निर्मिति रहे हैं. शायद दुनिया का अंत किसी प्रलय या दैवीय शक्ति से नहीं, बल्कि उस दिन होगा जब ये नकार के साहस खत्म हो जायेंगे. जो जैसा है उसी रूप में स्वीकार्य होगा तो बदलाव की प्रक्रियायें रुक जायेंगी और दुनिया की सारी घढ़ियां और कलेंडर अर्थ विहीन हो जायेंगे. समय का ठहराव यही होगा कि नये चिंतनकर्म समाप्त हो जायें और सब सत्ता के आगे नतमस्तक दिखेंगे, पर मानवीय प्रवृत्तियां इन्हें अस्वीकार करती रही हैं कि इंसान है तो सोचना जारी रहेगा.
(क्रमश: )
-चन्द्रिका
स्वतंत्र लेखन व शोध
10:39 am
Pardeep Dhaniya
फतेहाबाद : जिला फतेहाबाद गाव बीराबदी से दो किलोमीटर दूर पंजाब की सीमा के पास गाव भगवानपुर के पास स्थित देशी शराब के ठेके की छत पर सोए कारिदे 50 वर्षीय सत्यवान उर्फ सत्ता निवासी वार्ड 1 सरदूलगढ पंजाब की गंडासे से काटकर हत्या कर देने का सनसनीखेज समाचार है। रतिया थाने के तहत पड़ने वाली नागपुर पुलिस चौकी ने मृतक सत्यवान के भाई शमशेर सिंह की शिकायत पर गाव भगवानपुर हींगणा पंजाब निवासी लाडो के विरुद्ध हत्या के आरोप में धारा 302 के तहत केस दर्ज किया है। प्राप्त जानकारी के अनुसार श्रवण सिंह निवासी आदमके पंजाब ने फतेहाबाद जिले के गाव मढ का शराब का ठेका ले रखा है। जिस ठेके पर कारिदे सत्यवान की हत्या हुई वह गाव मढ़ की ब्राच है। इस ठेके पर मृतक सत्यवान शराब का ठेका
संचालित करता था जबकि उसका भाई
शमेशर सिंह वहा अंडे की रेहड़ी लगाता था व तीसरा भाई भी रेहड़ी पर काम करता है। शराब ठेकेदार श्रवणसिंह ने बताया कि सत्यवान व उसके भाई उत्तरप्रदेश के रहने वाले है व कई वर्षो से उसके शराब के ठेकों पर काम कर रहे है। उसने बताया कि शनिवार शाम को हत्यारोपी लाडो का कारिदे सत्यवान से झगड़ा हुआ था। लाडो ने उधार में शराब मागी थी, सत्यवान ने मना कर दी। इसके बाद लाडो उसे देख लेने की धमकी देकर भाग गया। श्रवण ने बताया कि मृतक सत्यवान के दोनों भाई रात को दस बजे के लगभग गाव सरदूलगढ लौट जाते थे व सत्यवान ठेके पर ही सोता था। उसने बताया कि सोमवार सुबह बीराबदी निवासी भल्लासिंह जिसके खेत में शराब का ठेका बना हुआ है, ने मोबाईल पर सूचना दी कि उसका कारिदा धूप निकलने के बावजूद छत पर सोया है, नीचे नहीं उतर रहा। शराब ठेकेदार श्रवणसिंह ने मौके पर पहुंचकर देखा तो पाया कि सत्यवान की हत्या की जा चुकी है। श्रवणसिंह ने तुरत गाव के सरपंच व पंचों को मौके पर बुलाया व नागपुर पुलिस चौकी को घटना की सूचना दी। सूचना मिलते ही नागपुर पुलिस चौकी इचार्ज रघुबीर सिंह एसआई, रतिया एसएचओ अजायब सिंह मौके पर पंहुच गए। बाद में एसपी जगवंत सिंह लाम्बा, डीएसपी रमेश यादव भी मौके पर पंहुच गए व मृतक के भाईयों व शराब ठेकेदार श्रवणसिंह से पूछताछ की। रतिया पुलिस ने तुरत सीन ऑफ क्राईम के इचार्ज डा. जोगेंद्र व पुलिस डॉग स्कवायर्ड इचार्ज प्रदीप कुमार को सिरसा से मौके पर बुलाया। दोनों ने मौके पर पंहुचकर घटना की जाच शुरु कर दी। रतिया पुलिस ने श्रवणसिंह से मिली जानकारी के बाद गाव भगवानपुर हींगना में हत्यारोपी लाडो के घर छापा मारकर वहा से खून से सने लाडो के कपड़े बरामद कर लिए, जबकि लाडो अपने घर से गायब मिला। पुलिस टीम ने लाडो के घर से बरामद किए खून से सने कपड़ों को घटनास्थल पर लाकर डाग स्क्वायर्ड के कुत्ते को सुंघाया तो कुत्ता कपड़ों को सुंघकर समीप के धान के खेत के पास जाकर रुक गया। रतिया पुलिस मामले की पूरी सरगर्मी के साथ जाच कर रही है। पुलिस अधीक्षक ने मौके पर पत्रकारों से बातचीत करते हुए कहा कि शीघ्र ही हत्यारोपी को गिरफ्त में ले लिया जाएगा।
10:21 am
Pardeep Dhaniya
फतेहाबाद: शहर फतेहाबाद से दस किलोमीटर दूर फतेहाबाद-भट्टूकला मार्ग पर स्थित गाव मानावाली के पास मानावाली-सरवरपुर में सोमवार तड़के 2 बजे के लगभग आई दरार से काफी बड़े क्षेत्र में कृषि भूमि
जलमग्न हो गई। पानी के भारी जमाव से कपास की फसल को भारी
नुकसान पहुंचा है। माईनर से निकला पानी गाव मानावाली तक भी जा पहुंचा। गाव के लोगों ने बताया कि माइनर टूटने के बाद रात को ही सिंचाई विभाग के एसडीओ जयपाल सिंह को सूचना दे दी गई थी, लेकिन प्रात: 7 बजे ही सिंचाई विभाग के अधिकारी मौके पर पहुंचे जिससे माईनर से निकला पानी खेतों से होता हुआ गाव तक जा पहुंचा। ग्रामीणों ने बताया कि वे खुद गाव बनावाली के पास जाकर खुद हैड पर माईनर में पानी का बहाव रोककर आए, जिससे पानी और ज्यादा क्षेत्र में नहीं फैल पाया। मौके पर पहुंचे सिंचाई विभाग के एसडीओ जयपाल सिंह ने बताया कि माईनर टूटना कोई खास बात नहीं है, माईनर टूटते ही रहते है। बाद में सिंचाई विभाग के अधिकारियों ने जेसीबी मशीन फतेहाबाद शहर से बुलाकर माईनर में आई दरार को पाटा। सूचना के पाच घटे बाद पंहुचे सिंचाई विभाग के रवैये को लेकर ग्रामीणों में भारी रोष व्याप्त था। पूर्व सैनिक रामसिंह फौजी ने बताया कि यह माईनर पहले भी टूट चुकी है जिससे कई ट्यूबवैलों को भारी नुक्सान पंहुचा था। उन्होंने कहा कि माईनर के बार-बार टूटने का मामला उपायुक्त के नोटिस में लाया जाएगा।
4:47 pm
Randhir Singh Suman
मोहम्मद आतिफ अमीन को लगभग सारी गोलियाँ पीछे से लगी है। 8 गोलियाँ पीठ में लग कर सीने से निकली हैं। एक गोली दाहिने हाथ पर पीछे से बाहर की ओर से लगी है जबकि एक गोली बाँईं जाँघ पर लगी हैं और यह गोली हैरत अंगेज तौर पर ऊपर की ओर जाकर बाएँ कूल्हे के पास निकली है। पुलिस ने पोस्टमार्टम रिपोर्ट के सम्बंध में प्रकाशित समाचारों और उठाये जाने वाले प्रश्नों का उत्तर देते हुए यह तर्क दिया कि आतिफ गोलियाँ चलाते हुए भागने का प्रयास कर रहा था और उसे मालूम नहीं था कि फ्लैट में कुल कितने लोग हंै इसलिए क्रास फायरिंग में उसे पीछे से गोलियाँ लगीं लेकिन इन्काउन्टर या क्रास फायरिंग में कोई गोली जाँघ में लगकर कूल्हे की ओर कैसे निकल सकती है। आतिफ के दाहिने पैर के घुटने में 1.5 x 1 सेमी0 का जो घाव है उस के बारे में पुलिस का कहना है कि वह गोली चलाते हुए गिर गया था। पीठ में गोलियाँ लगने से घुटने के बल गिरना तो समझ में आ सकता है किन्तु विशेषज्ञ इस बात पर हैरान है कि फिर आतिफ के पीठ की खाल इतनी बुरी तर कैसे उधड़ गई? पोस्मार्टम रिपोर्ट के अनुसार आतिफ के दाहिने कूल्हे पर 6 से 7 सेमी0 के भीतर कई जगह रगड़ के निशानात भी पाए गए।
साजिद के बारे में भी पुलिस का कहना है कि साजिद एक गोली लगने के बाद गिर गया था और वह क्रास फायरिंग के बीच आ गया। इस तर्क को गुमराह करने के अलावा और क्या कहा जा सकता है साजिद को जो गोलियाँ लगी हैं उन में से तीन पेशानी (Fore head) से नीचे की ओर आती हैं। जिस में से एक गोली ठोढ़ी और गर्दन के बीच जबड़े से भी निकली है। साजिद के दाहिने कन्धे पर जो गोली मारी गई है वह बिल्कुल सीधे नीचे की ओर आई है। गोलियों के इन निशानात के बारे में पहले ही स्वतन्त्र फोरेन्सिक विशेषज्ञ का कहना था कि या तो साजिद को बैठने के लिए मजबूर किया गया या फिर गोली चलाने वाला ऊँचाई पर था। जाहिर है दूसरी सूरत उस फ्लैट में सम्भव नहीं है। दूसरे यह कि क्रास फायरिंग तो आमने सामने होती है ना कि ऊपर से नीचे की ओर।
साजिद के पैर के घाव के बारे में रिपोर्ट में यह कहा गया है कि यह किसी गैर धारदार वस्तु ;(Blunt Force By object or surface) से लगा है। पुलिस इसका कारण गोली लगने के बाद गिरना बता रही है। लेकिन 3.5 x 2 सेमी0 का गहरा घाव फर्श पर गिरने से कैसे आ सकता है पोस्टमार्टम रिपोर्ट से इस आरोप की पुष्टि होती है कि आतिफ व साजिद के साथ मारपीट की गई थी।
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के आदेशानुसार इस प्रकार के केस में पोस्टमार्टम की वीडियो ग्राफी को पोस्टमार्टम रिपोर्ट के साथ उसे भी आयोग के कार्यालय भेजा जाए। लेकिन एम0 सी0 शर्मा की रिपोर्ट में केवल यह लिखा है कि घावों की फोटो पर आधारित सी0 डी0 सम्बंधित जाँच अफसर के सुपुर्द की गई।
बटाला हाउस की घटना के बाद सरकार, कार्यपालिका और मीडिया ने जो रोल अदा किया है वह न कि तशवीश-नाक है बल्कि इससे देश के मुसलमानों व अन्य लेागों के मन में यह प्रश्न उठ रहा है कि आखिर सरकार इस मामले की न्यायिक जाँच से क्यों कतरा रही है? न्यायिक जाँच के लिए जज भी सरकार ही नियुक्त करेगी।
वर्ष 2008 में होने वाले सीरियल धमाकों के बारे में विभिन्न रायें पाई जाती हैं। कुछ लोग इन तमाम घटनाओं को हेडली की भारत यात्रा से जोड़ कर देखते हैं। जबकि भारतीय जनता पार्टी की नेता सुषमा स्वराज ने अहमदाबाद धमाकों के बाद संवाददाताओं से कहा था कि यह सब कांग्रेस करा रही है क्योंकि न्युकिलियर समझौता के मुद्दे पर लोकसभा में नोट की गड्डियों के पहुँचने से वह परेशान है और जनता के जेहन को मोड़ना चाहती है। समाजवादी पार्टी से निष्कासित सांसद अमर सिंह के अनुसार सोनिया गाँधी बटाला हाउस इन्काउन्टर की जाँच कराना चाहती थीं लेकिन किसी कारण वह ऐसा नहीं कर सकीं, लेकिन उन्होंने इसका खुलासा नहीं किया कि वह कारण क्या है?
बटाला हाउस इन्काउन्टर की न्यायिक जाँच की माँग केन्द्रीय सरकार के अलावा न्यायालय भी नकार चुके हैं। सब का यही तर्क है कि इससे पुलिस का मारल गिरेगा। केन्द्रीय सरकार और न्यायालय जब इस तर्क द्वारा जाँच की माँग ठुकरा रही थीं उसी समय देहरादून में रणवीर नाम के एक युवक की इन्काउन्टर में मौत की जाँच हो रही थी और अंत में पुलिस का अपराध सिद्ध हुआ। आखिर पुलिस के मारल का यह कौन सा आधार है जिस की रक्षा के लिए न्याय और पारदर्शिता के नियमों को त्याग दिया जा रहा है।
-अबू ज़फ़र आदिल आज़मी
मोबाइल: 09540147251
(समाप्त)