कुछ दिन पहले ही हम सब दण्डकारण्य घूम कर लौटे हैं, अरुंधती रॉय के साथ, भूमकाल में कॉमरेडों के साथ-साथ घूमते हुए. दण्डकारण्य के ग्राम स्वराज्य को देखते हुए, आउटलुक, समयांतर और फिलहाल, पत्रिकाओं के पन्ने पलटते हुए. भारत सरकार के असुरक्षा की महसूसियत को खारिज होती जा रही थी, जंगलों में चलते हुए, पहाड़ों पर चढ़ते हुए. हमे ऐसा ही लग रहा था कि जमीन पर पेड़ों से टूटकर गिरे सूखे पत्ते हमारे ही पैरों के नीचे दब रहे हैं और उनकी चरमराहट हमारे कानों में किसी संगीत की तरह बज रही है. संगीत, जिसे भारत सरकार और उसकी दलाली करने वाली कार्पोरेट मीडिया भय के रूप में हमारे जेहन में भरते रहने का लगातार प्रयास करती रहती है. इंद्रावती नदी के पार जो “पाकिस्तान” है (पुलिस की भाषा में) वहाँ के किस्से सी.वेनेजा, रुचिरगर्ग और कई पत्रकार पहले भी ला चुके हैं. जब हम आजादी की बात करते हैं तो उसके क्या मायने होते हैं? अरुंधती इस अवधारणा को ही एक वाक्य में ही बताती हैं “वहाँ मुक्ति का मतलब असली आजादी था”, वे उसे छू सकते थे, चख सकते थे, इसका मतलब भारत की स्वतंत्रता से कहीं ज्यादा था. यह नकली आजादी को पेपर्द करने वाला वाक्य है और यह भी कि नकली आजादी जैसी चीज बहुतायत पायी जाती हैं, मसलन हमारी आजादी और हमारे देश की आजादी. सरकार और पूजीपतियों की आजादी से अलग. ये “जनताना सरकार” के क्षेत्र में रहने वाली महिलायें हैं जिन्हें रात और दिन का फर्क सिर्फ रोशनी का फर्क होता है, असुरक्षा और भय का नहीं, एक पहाड़ी से दूसरी पहाड़ी को वे कभी भी पार कर सकती हैं. इसके लिये आखों में इतनी ही रोशनी की जरूरत है कि आप उससे रास्ता बना सकें. दिल्ली को भी भारत सरकार ऐसा नहीं बना पायी और शायद संसद भवन को भी. “ये लोग अपने सपनों के साथ जीते हैं, जबकि बाकी दुनिया अपने दुरूस्वप्नों के साथ” इस पूरे लेखन को यात्रा वृतांत कहें, कविता कहें, रिपोर्ताज कहें या इन विधाओं से अलग एक दस्तावेज, जहाँ भूमकाल साल में एक दिन मनाया जाता है और भूमकाल के विद्रोह की आवाजें दशकों से वहाँ की हवाओं में और वेग के साथ प्रवाहित होती जा रही हैं. इतिहास जरूरी नहीं कि सफेद पन्नों पर काली रोशनाई से लिखे जायें वे जंगलों की हलचल में रोज-रोज घटित होकर पीढ़ीयों के व्यवहारों में शामिल हो सकते हैं, उनके बच्चों की रगों में, उनके गाँवों के घरों की दीवारों पर. इस लेखन के बाद अरुंधती को अतिवादी घोषित करने की होड़ सी लगी रही, उनके तर्कों को ख़रिज करने की जहमत न उठाते हुए. जिसका खारिज किया जाना शायद मुमकिन भी नहीं था एक उग्रता और उन्माद में कुछ कह देने की व्यग्रता ही दिखी. आखिर यह अतिवाद ही तो था जो संसदीय लोकतंत्र के खतरे को इस तरह प्रस्तुत कर रहा था कि लोकतंत्र हमे घुटन की तरह लग रहा था और भूमकाल में शामिल न हो पाने का क्षोभ भी. फिर तो यह ऐसा अतिवाद है जो हमे व्यग्र कर देता है. एक “अतिवादी” की डायरी के विचार यदि हमे व्यग्र करते हैं, तो क्या सरकार के हर रोज के दमन से आदिवासीयों को उग्र नहीं होना चाहिये. परिवर्तन सबसे पहले स्वप्न में आता है. रात की नींद के सपनों में नहीं, जीवन के बेहतरी की लालसा के स्वप्न में, और कहीं अपने भीतर एक बना बनाया ढांचा टूटता है, अपने समय के मूल्य ढहते हुए दिखते हैं. यह ढांचा पहले आदमी के विचार से टूटता है फिर व्यवहार से फिर वह आदमी के दायरे को ही तोड़कर, संरचना के दायरे को तोड़ने की प्रक्रिया में शामिल हो जाता है. वे हर बार आतिवादी ठहरा दिये गये होंगे जिन्होंने समय के मूल्यों को तोड़ा होगा क्योंकि किसी भी समय में व्यवस्था के संरचना की एक सीमा रही है, उसके एक मूल्य रहे हैं उसी के भीतर सोचने की इजाजत होती है, पर दुनिया में हर बार संरचना और सत्ता के बाहर की सोच पैदा हुई. यह परिस्थिति की देन मात्र नहीं थी बल्कि चिंतन की व्यापकता थी जो व्यापक आजादी के लिये हर समय विद्रोह करती रही और अपने समय में समय के आगे का विचार पैदा होते रहे. किसी भी समय का अतिवाद यही होता है जो समय की संरचना से विद्रोह करता है, एक नये संरचना की तलास करता है लिहाजा हर दौर में नये समाज बनाने के सपने रहे हैं और हर समय में वे लोग जो अपने समय की संरचना को नकारने का साहस रखते हों. जबकि इतिहास से वे नयी संरचना को बिम्बित करने में असफल भी होते हैं फिर भी उम्मीद और मूल्यों ने उनके विचारों को आगे बाढ़ाया और भविष्य के समाज उन्हीं के विचारों की निर्मिति रहे हैं. शायद दुनिया का अंत किसी प्रलय या दैवीय शक्ति से नहीं, बल्कि उस दिन होगा जब ये नकार के साहस खत्म हो जायेंगे. जो जैसा है उसी रूप में स्वीकार्य होगा तो बदलाव की प्रक्रियायें रुक जायेंगी और दुनिया की सारी घढ़ियां और कलेंडर अर्थ विहीन हो जायेंगे. समय का ठहराव यही होगा कि नये चिंतनकर्म समाप्त हो जायें और सब सत्ता के आगे नतमस्तक दिखेंगे, पर मानवीय प्रवृत्तियां इन्हें अस्वीकार करती रही हैं कि इंसान है तो सोचना जारी रहेगा.
फतेहाबाद : जिला फतेहाबाद गाव बीराबदी से दो किलोमीटर दूर पंजाब की सीमा के पास गाव भगवानपुर के पास स्थित देशी शराब के ठेके की छत पर सोए कारिदे 50 वर्षीय सत्यवान उर्फ सत्ता निवासी वार्ड 1 सरदूलगढ पंजाब की गंडासे से काटकर हत्या कर देने का सनसनीखेज समाचार है। रतिया थाने के तहत पड़ने वाली नागपुर पुलिस चौकी ने मृतक सत्यवान के भाई शमशेर सिंह की शिकायत पर गाव भगवानपुर हींगणा पंजाब निवासी लाडो के विरुद्ध हत्या के आरोप में धारा 302 के तहत केस दर्ज किया है। प्राप्त जानकारी के अनुसार श्रवण सिंह निवासी आदमके पंजाब ने फतेहाबाद जिले के गाव मढ का शराब का ठेका ले रखा है। जिस ठेके पर कारिदे सत्यवान की हत्या हुई वह गाव मढ़ की ब्राच है। इस ठेके पर मृतक सत्यवान शराब का ठेका संचालित करता था जबकि उसका भाई शमेशर सिंह वहा अंडे की रेहड़ी लगाता था व तीसरा भाई भी रेहड़ी पर काम करता है। शराब ठेकेदार श्रवणसिंह ने बताया कि सत्यवान व उसके भाई उत्तरप्रदेश के रहने वाले है व कई वर्षो से उसके शराब के ठेकों पर काम कर रहे है। उसने बताया कि शनिवार शाम को हत्यारोपी लाडो का कारिदे सत्यवान से झगड़ा हुआ था। लाडो ने उधार में शराब मागी थी, सत्यवान ने मना कर दी। इसके बाद लाडो उसे देख लेने की धमकी देकर भाग गया। श्रवण ने बताया कि मृतक सत्यवान के दोनों भाई रात को दस बजे के लगभग गाव सरदूलगढ लौट जाते थे व सत्यवान ठेके पर ही सोता था। उसने बताया कि सोमवार सुबह बीराबदी निवासी भल्लासिंह जिसके खेत में शराब का ठेका बना हुआ है, ने मोबाईल पर सूचना दी कि उसका कारिदा धूप निकलने के बावजूद छत पर सोया है, नीचे नहीं उतर रहा। शराब ठेकेदार श्रवणसिंह ने मौके पर पहुंचकर देखा तो पाया कि सत्यवान की हत्या की जा चुकी है। श्रवणसिंह ने तुरत गाव के सरपंच व पंचों को मौके पर बुलाया व नागपुर पुलिस चौकी को घटना की सूचना दी। सूचना मिलते ही नागपुर पुलिस चौकी इचार्ज रघुबीर सिंह एसआई, रतिया एसएचओ अजायब सिंह मौके पर पंहुच गए। बाद में एसपी जगवंत सिंह लाम्बा, डीएसपी रमेश यादव भी मौके पर पंहुच गए व मृतक के भाईयों व शराब ठेकेदार श्रवणसिंह से पूछताछ की। रतिया पुलिस ने तुरत सीन ऑफ क्राईम के इचार्ज डा. जोगेंद्र व पुलिस डॉग स्कवायर्ड इचार्ज प्रदीप कुमार को सिरसा से मौके पर बुलाया। दोनों ने मौके पर पंहुचकर घटना की जाच शुरु कर दी। रतिया पुलिस ने श्रवणसिंह से मिली जानकारी के बाद गाव भगवानपुर हींगना में हत्यारोपी लाडो के घर छापा मारकर वहा से खून से सने लाडो के कपड़े बरामद कर लिए, जबकि लाडो अपने घर से गायब मिला। पुलिस टीम ने लाडो के घर से बरामद किए खून से सने कपड़ों को घटनास्थल पर लाकर डाग स्क्वायर्ड के कुत्ते को सुंघाया तो कुत्ता कपड़ों को सुंघकर समीप के धान के खेत के पास जाकर रुक गया। रतिया पुलिस मामले की पूरी सरगर्मी के साथ जाच कर रही है। पुलिस अधीक्षक ने मौके पर पत्रकारों से बातचीत करते हुए कहा कि शीघ्र ही हत्यारोपी को गिरफ्त में ले लिया जाएगा।
फतेहाबाद: शहर फतेहाबाद से दस किलोमीटर दूर फतेहाबाद-भट्टूकला मार्ग पर स्थित गाव मानावाली के पास मानावाली-सरवरपुर में सोमवार तड़के 2 बजे के लगभग आई दरार से काफी बड़े क्षेत्र में कृषि भूमि जलमग्न हो गई। पानी के भारी जमाव से कपास की फसल को भारी नुकसान पहुंचा है। माईनर से निकला पानी गाव मानावाली तक भी जा पहुंचा। गाव के लोगों ने बताया कि माइनर टूटने के बाद रात को ही सिंचाई विभाग के एसडीओ जयपाल सिंह को सूचना दे दी गई थी, लेकिन प्रात: 7 बजे ही सिंचाई विभाग के अधिकारी मौके पर पहुंचे जिससे माईनर से निकला पानी खेतों से होता हुआ गाव तक जा पहुंचा। ग्रामीणों ने बताया कि वे खुद गाव बनावाली के पास जाकर खुद हैड पर माईनर में पानी का बहाव रोककर आए, जिससे पानी और ज्यादा क्षेत्र में नहीं फैल पाया। मौके पर पहुंचे सिंचाई विभाग के एसडीओ जयपाल सिंह ने बताया कि माईनर टूटना कोई खास बात नहीं है, माईनर टूटते ही रहते है। बाद में सिंचाई विभाग के अधिकारियों ने जेसीबी मशीन फतेहाबाद शहर से बुलाकर माईनर में आई दरार को पाटा। सूचना के पाच घटे बाद पंहुचे सिंचाई विभाग के रवैये को लेकर ग्रामीणों में भारी रोष व्याप्त था। पूर्व सैनिक रामसिंह फौजी ने बताया कि यह माईनर पहले भी टूट चुकी है जिससे कई ट्यूबवैलों को भारी नुक्सान पंहुचा था। उन्होंने कहा कि माईनर के बार-बार टूटने का मामला उपायुक्त के नोटिस में लाया जाएगा।
मोहम्मद आतिफ अमीन को लगभग सारी गोलियाँ पीछे से लगी है। 8 गोलियाँ पीठ में लग कर सीने से निकली हैं। एक गोली दाहिने हाथ पर पीछे से बाहर की ओर से लगी है जबकि एक गोली बाँईं जाँघ पर लगी हैं और यह गोली हैरत अंगेज तौर पर ऊपर की ओर जाकर बाएँ कूल्हे के पास निकली है। पुलिस ने पोस्टमार्टम रिपोर्ट के सम्बंध में प्रकाशित समाचारों और उठाये जाने वाले प्रश्नों का उत्तर देते हुए यह तर्क दिया कि आतिफ गोलियाँ चलाते हुए भागने का प्रयास कर रहा था और उसे मालूम नहीं था कि फ्लैट में कुल कितने लोग हंै इसलिए क्रास फायरिंग में उसे पीछे से गोलियाँ लगीं लेकिन इन्काउन्टर या क्रास फायरिंग में कोई गोली जाँघ में लगकर कूल्हे की ओर कैसे निकल सकती है। आतिफ के दाहिने पैर के घुटने में 1.5 x 1 सेमी0 का जो घाव है उस के बारे में पुलिस का कहना है कि वह गोली चलाते हुए गिर गया था। पीठ में गोलियाँ लगने से घुटने के बल गिरना तो समझ में आ सकता है किन्तु विशेषज्ञ इस बात पर हैरान है कि फिर आतिफ के पीठ की खाल इतनी बुरी तर कैसे उधड़ गई? पोस्मार्टम रिपोर्ट के अनुसार आतिफ के दाहिने कूल्हे पर 6 से 7 सेमी0 के भीतर कई जगह रगड़ के निशानात भी पाए गए। साजिद के बारे में भी पुलिस का कहना है कि साजिद एक गोली लगने के बाद गिर गया था और वह क्रास फायरिंग के बीच आ गया। इस तर्क को गुमराह करने के अलावा और क्या कहा जा सकता है साजिद को जो गोलियाँ लगी हैं उन में से तीन पेशानी (Fore head) से नीचे की ओर आती हैं। जिस में से एक गोली ठोढ़ी और गर्दन के बीच जबड़े से भी निकली है। साजिद के दाहिने कन्धे पर जो गोली मारी गई है वह बिल्कुल सीधे नीचे की ओर आई है। गोलियों के इन निशानात के बारे में पहले ही स्वतन्त्र फोरेन्सिक विशेषज्ञ का कहना था कि या तो साजिद को बैठने के लिए मजबूर किया गया या फिर गोली चलाने वाला ऊँचाई पर था। जाहिर है दूसरी सूरत उस फ्लैट में सम्भव नहीं है। दूसरे यह कि क्रास फायरिंग तो आमने सामने होती है ना कि ऊपर से नीचे की ओर। साजिद के पैर के घाव के बारे में रिपोर्ट में यह कहा गया है कि यह किसी गैर धारदार वस्तु ;(Blunt Force By object or surface) से लगा है। पुलिस इसका कारण गोली लगने के बाद गिरना बता रही है। लेकिन 3.5 x 2 सेमी0 का गहरा घाव फर्श पर गिरने से कैसे आ सकता है पोस्टमार्टम रिपोर्ट से इस आरोप की पुष्टि होती है कि आतिफ व साजिद के साथ मारपीट की गई थी। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के आदेशानुसार इस प्रकार के केस में पोस्टमार्टम की वीडियो ग्राफी को पोस्टमार्टम रिपोर्ट के साथ उसे भी आयोग के कार्यालय भेजा जाए। लेकिन एम0 सी0 शर्मा की रिपोर्ट में केवल यह लिखा है कि घावों की फोटो पर आधारित सी0 डी0 सम्बंधित जाँच अफसर के सुपुर्द की गई। बटाला हाउस की घटना के बाद सरकार, कार्यपालिका और मीडिया ने जो रोल अदा किया है वह न कि तशवीश-नाक है बल्कि इससे देश के मुसलमानों व अन्य लेागों के मन में यह प्रश्न उठ रहा है कि आखिर सरकार इस मामले की न्यायिक जाँच से क्यों कतरा रही है? न्यायिक जाँच के लिए जज भी सरकार ही नियुक्त करेगी। वर्ष 2008 में होने वाले सीरियल धमाकों के बारे में विभिन्न रायें पाई जाती हैं। कुछ लोग इन तमाम घटनाओं को हेडली की भारत यात्रा से जोड़ कर देखते हैं। जबकि भारतीय जनता पार्टी की नेता सुषमा स्वराज ने अहमदाबाद धमाकों के बाद संवाददाताओं से कहा था कि यह सब कांग्रेस करा रही है क्योंकि न्युकिलियर समझौता के मुद्दे पर लोकसभा में नोट की गड्डियों के पहुँचने से वह परेशान है और जनता के जेहन को मोड़ना चाहती है। समाजवादी पार्टी से निष्कासित सांसद अमर सिंह के अनुसार सोनिया गाँधी बटाला हाउस इन्काउन्टर की जाँच कराना चाहती थीं लेकिन किसी कारण वह ऐसा नहीं कर सकीं, लेकिन उन्होंने इसका खुलासा नहीं किया कि वह कारण क्या है? बटाला हाउस इन्काउन्टर की न्यायिक जाँच की माँग केन्द्रीय सरकार के अलावा न्यायालय भी नकार चुके हैं। सब का यही तर्क है कि इससे पुलिस का मारल गिरेगा। केन्द्रीय सरकार और न्यायालय जब इस तर्क द्वारा जाँच की माँग ठुकरा रही थीं उसी समय देहरादून में रणवीर नाम के एक युवक की इन्काउन्टर में मौत की जाँच हो रही थी और अंत में पुलिस का अपराध सिद्ध हुआ। आखिर पुलिस के मारल का यह कौन सा आधार है जिस की रक्षा के लिए न्याय और पारदर्शिता के नियमों को त्याग दिया जा रहा है।
फतेहाबाद। यहां से करीब चार किलोमीटर दूर गांव हमीरगढ़ के बस स्टैड के नजदीक रविवार देर सायं दो कारों की आमने-सामने की टक्कर में पंाच लोगों की मौत हो गई और आठ अन्य घायल हो गए। इनमें में चार की हालत गंभीर बनी हुई है, जिनको हिसार, टोहाना व पटियाला के सरकारी अस्पतालों को रेफर कर दिया गया। हादसे में दो वर्षीय बच्चा बाल-बाल बच गया। कुछ लोग नजदीकी गांव फूलद में विवाह कार्यक्रम में हिस्सा लेने के बाद एक स्विफ्ट कार से राजपुरा लौट रहे थे। इसी दौरान एक टाटा इंडिगो कार पातड़ां की तरफ से आ रही थी, जिसमें रतिया का एक परिवार सवार था, जो चंडीगढ़ में जागरण में शामिल होकर वापस जा रहा था। हमीरगढ़ गांव के नजदीक दोनों कारों में टक्कर हो गई। हादसे में तीन लोगों 28 वर्षीय मंजू, 30 वर्षीय मनोज व 12 वर्षीय डिंपी की मौके पर ही मौत हो गई, जबकि रतिया जा रही कार के ड्राइवर बबली की हिसार के अस्पताल ले जाते हुए रास्ते में मौत हो गई। दोनों कारों से मृतकों व घायलों को निकालने के लिए मौके पर पहुंची पुलिस पार्टी व गांववासियों को भारी मशक्कत करनी पड़ी। कारों के दरवाजे आदि काट कर घायलों संजू, कृष्ण, अंजली, साक्षी, निखिल, श्रेया समेत आठ लोगों को बाहर निकाला गया। मामूली तौर पर घायल हुए कई दूसरे लोगों को टोहाना के निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया, जहां से गंभीर घायलों को पटियाला व टोहाना के अस्पतालों को रेफर कर दिया गया। टोहाना सरकारी अस्पताल में श्रेया ने दम तोड़ दिया। मूनक के डीएसपी हरप्रीत सिंह एवं एसएचओ जसविंदर सिंह ने मौके पर पहुंचकर घटना का जायजा लिया।
बटाला हाउस इन्काउन्टर के डेढ़ वर्ष बाद पोस्टमार्टम रिपोर्ट के सार्वजनिक होने से इन्काउन्टर के न्यायिक जाँच की माँग में फिर तेजी आ गई है। मानवाधिकार के विभिन्न संगठन और आम लोग इस इन्काउन्टर पर लगातार प्रश्न उठाते रहे हैं और अब पोस्टमार्टम रिपोर्ट ने उनके सवालों को अधिक गंभीर बना दिया है।
जामिया मिल्लिया इस्लामिया के छात्र अफरोज आलम साहिल ने इस तथाकथित इन्काउन्टर से सम्बंधित विभिन्न दस्तावेजों की प्राप्ति के लिए सूचना के अधिकार (RTI) के तहत लगातार विभिन्न सरकारी एवम् गैर सरकारी कार्यालयों का दरवाजा खटखटाया किन्तु पोस्टर्माटम रिपोर्ट की प्राप्ति में उन्हें डेढ़ वर्ष लग गए।
अफरोज आलम ने सूचना के अधिकार के अन्तर्गत राष्ट्रीय मानवाधिकर से उन दस्तावेजों की माँग की थी जिनके आधार पर जुलाई 2009 में आयोग ने अपनी रिपोर्ट दी थी। ज्ञात रहे कि राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने अपनी रिपोर्ट में दिल्ली पुलिस को क्लीन चिट देते हुए पुलिस का यह तर्क मान लिया था कि उसने गोलियाँ अपने बचाव में चलाई थीं।
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग द्वारा भेजे गए दस्तावेजों में पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अलावा पुलिस द्वारा कमीशन और सरकार के समक्ष दाखिल किए गए विभिन्न कागजात के अलावा खुद आयोग की अपनी रिपोर्ट भी है।
पोस्मार्टम रिपोर्ट के अनुसार आतिफ अमीन (24 वर्ष) की मौत तेज दर्द (Shock & Hemorrhage)से हुई और मुहम्मद साजिद (17 वर्ष) की मौत सर में गोली लगने के कारण हुई है। जबकि इन्स्पेक्टर मोहन चन्द्र शर्मा की मृत्यु का कारण गोली से पेट में हुए घाव से खून का ज्यादा बहना बताया गया है। रिपोर्ट के अनुसार तीनों (आतिफ, साजिद और एम0 सी0 शर्मा) को जो घाव लगे हैं वे मृत्यु से पूर्व ( Antemortem in Nature)के हैं।
रिपोर्ट के अनुसार मोहम्मद आतिफ अमीन के शरीर पर 21 घाव हैं जिसमें से 20 गोलियों के हैं। आतिफ को कुल 10 गोलियाँ लगी हैं और सारी गोलियाँ पीछे से मारी गई हैं। 8 गोलियाँ पीठ पर, एक दाएँ बाजू पर पीछे से और एक बाँई जाँघ पर नीचे से। 2 x 1 से0 मी0 का एक घाव आतिफ के दाएँ पैर के घुटनों पर है। रिपोर्ट के अनुसार यह घाव किसी धारदार चीज से या रगड़ लगने से हुआ है। इसके अलावा रिपोर्ट में आतिफ की पीठ और शरीर पर कई जगह छीलन है जबकि जख्म न0 20 जो बाएँ कूल्हे के पास है से धातु का एक 3 सेमी0 का टुकड़ा मिला है।
मोहम्मद साजिद के शरीर पर कुल 14 घाव हैं। साजिद को कुल 5 गोलियाँ लगी हैं और उनसे 12 घाव हुए हैं। जिसमें से 3 गोलियाँ दाहिनी पेशानी के ऊपर, एक गोली पीठ पर बाँई ओर और एक गोली दाहिने कन्धे पर लगी है। मोहम्मद साजिद को लगने वाली तमाम गोलियाँ नीचे की ओर निकली हैं जैसे एक गोली जबड़े के नीचे से (ठोड़ी और गर्दन के बीच) सर के पिछले हिस्से से और सीने से। साजिद के शरीर से 2 धातु के टुकड़े (Metalic Object)मिलने का रिपोर्ट में उल्लेख है जिस में से एक का साइज 8 x 1 सेमी0 है। जबकि दूसरा Metalic Object पीठ पर लगे घाव (GSW -7)से टीशर्ट से मिला है। इस घाव के पास 5ग1.5 सेमी0 लम्बा खाल छिलने का निशान है। पीठ पर बीच में लाल रंग की 4 x 2 सेमी0 की खराश है। इसके एलावा दाहिने पैर में सामने (घुटने से नीचे) की ओर 3.5 x 2 सेमी0 का गहरा घाव है। इन दोनों घावों के बारे में रिपोर्ट का कहना है यह घाव गोली के नहीं हैं। साजिद को लगे कुल 14 घावों में से रिपोर्ट में 7 घावों को बहुत गहरा (Cavity Deep) कहा गया है।
इनस्पेक्टर मोहन चन्द्र शर्मा के बारे में रिपोर्ट का कहना है कि बाएँ कन्धे से 10 सेमी0 नीचे घाव के बाहरी हिस्से की सफाई की गई थी। मोहन चन्द्र शर्मा को 19 सितम्बर 2008 को एल-18 में घायल होने के बाद निकटतम अस्पताल होली फैमली में भर्ती कराया गया था। उन्हें कन्धे के अलावा पेट में भी गोली लगी थी। रिपोर्ट के अनुसार पेट में गोली लगने से खून का ज्यादा स्राव हुआ और यही मौत का कारण बना। इन्काउन्टर के बाद यह प्रश्न उठाया गया था कि जब शर्मा को 10 मिनट के अन्दर चिकित्सकीय सहायता मिल गई थी और संवेदनशील जगह (Vital Part) पर गोली भी नहीं लगी थी तो फिर उनकी मौत कैसे हो गई? यह भी प्रश्न उठाया गया था कि शर्मा को गोली किस तरफ से लगी, आगे से या पीछे से? क्योंकि यह भी कहा जा रहा था कि शर्मा पुलिस की गोली का शिकार हुए हैं किन्तु पोस्टमाटम रिपोर्ट इसकी व्याख्या नहीं कर पा रही है क्योंकि होली फैमली अस्पताल जहाँ उन्हें पहले लाया गया था और बाद में वहीं उनकी मौत भी हुई, में उनके घावों की सफाई की गई, लिहाजा पोस्टमार्टम करने वाले डाक्टर यह नहीं बता सके कि यह गोली के घुसने की जगह है या निकलने की। दूसरा कारण यह है कि शर्मा को एम्स (AIIMS) में सफेद सूती कपड़े में ले जाया गया था और उनके घाव यहीं (Adhesive Lecoplast) से ढके हुए थे। रिपोर्ट में लिखा है कि जाँच अफसर (IO) से निवेदन किया गया था कि वह शर्मा के कपड़े लैब में लाएँ। ज्ञात रहे कि शर्मा का पोस्टमार्टम 20 सितम्बर 2008 को 12 बजे दिन में किया गया था और उसी समय यह रिपोर्ट भी तैयार की गई थी।