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21.6.10

दो कारों के बीच टक्कर, पांच की मौत

फतेहाबाद। यहां से करीब चार किलोमीटर दूर गांव हमीरगढ़ के बस स्टैड के नजदीक रविवार देर सायं दो कारों की आमने-सामने की टक्कर में पंाच लोगों की मौत हो गई और आठ अन्य घायल हो गए। इनमें में चार की हालत गंभीर बनी हुई है, जिनको हिसार, टोहाना व पटियाला के सरकारी अस्पतालों को रेफर कर दिया गया। हादसे में दो वर्षीय बच्चा बाल-बाल बच गया।
कुछ लोग नजदीकी गांव फूलद में विवाह कार्यक्रम में हिस्सा लेने के बाद एक स्विफ्ट कार से राजपुरा लौट रहे थे। इसी दौरान एक टाटा इंडिगो कार पातड़ां की तरफ से आ रही थी, जिसमें रतिया का एक परिवार सवार था, जो चंडीगढ़ में जागरण में शामिल होकर वापस जा रहा था। हमीरगढ़ गांव के नजदीक दोनों कारों में टक्कर हो गई।
हादसे में तीन लोगों 28 वर्षीय मंजू, 30 वर्षीय मनोज व 12 वर्षीय डिंपी की मौके पर ही मौत हो गई, जबकि रतिया जा रही कार के ड्राइवर बबली की हिसार के अस्पताल ले जाते हुए रास्ते में मौत हो गई।
दोनों कारों से मृतकों व घायलों को निकालने के लिए मौके पर पहुंची पुलिस पार्टी व गांववासियों को भारी मशक्कत करनी पड़ी। कारों के दरवाजे आदि काट कर घायलों संजू, कृष्ण, अंजली, साक्षी, निखिल, श्रेया समेत आठ लोगों को बाहर निकाला गया। मामूली तौर पर घायल हुए कई दूसरे लोगों को टोहाना के निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया, जहां से गंभीर घायलों को पटियाला व टोहाना के अस्पतालों को रेफर कर दिया गया। टोहाना सरकारी अस्पताल में श्रेया ने दम तोड़ दिया।
मूनक के डीएसपी हरप्रीत सिंह एवं एसएचओ जसविंदर सिंह ने मौके पर पहुंचकर घटना का जायजा लिया।

20.6.10

बटाला हाउस इन्काउन्टर - 1

फोटो सोर्स : hardnewsmedia.com
बटाला हाउस इन्काउन्टर के डेढ़ वर्ष बाद पोस्टमार्टम रिपोर्ट के सार्वजनिक होने से इन्काउन्टर के न्यायिक जाँच की माँग में फिर तेजी आ गई है। मानवाधिकार के विभिन्न संगठन और आम लोग इस इन्काउन्टर पर लगातार प्रश्न उठाते रहे हैं और अब पोस्टमार्टम रिपोर्ट ने उनके सवालों को अधिक गंभीर बना दिया है।
जामिया मिल्लिया इस्लामिया के छात्र अफरोज आलम साहिल ने इस तथाकथित इन्काउन्टर से सम्बंधित विभिन्न दस्तावेजों की प्राप्ति के लिए सूचना के अधिकार (RTI) के तहत लगातार विभिन्न सरकारी एवम् गैर सरकारी कार्यालयों का दरवाजा खटखटाया किन्तु पोस्टर्माटम रिपोर्ट की प्राप्ति में उन्हें डेढ़ वर्ष लग गए।
अफरोज आलम ने सूचना के अधिकार के अन्तर्गत राष्ट्रीय मानवाधिकर से उन दस्तावेजों की माँग की थी जिनके आधार पर जुलाई 2009 में आयोग ने अपनी रिपोर्ट दी थी। ज्ञात रहे कि राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने अपनी रिपोर्ट में दिल्ली पुलिस को क्लीन चिट देते हुए पुलिस का यह तर्क मान लिया था कि उसने गोलियाँ अपने बचाव में चलाई थीं।
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग द्वारा भेजे गए दस्तावेजों में पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अलावा पुलिस द्वारा कमीशन और सरकार के समक्ष दाखिल किए गए विभिन्न कागजात के अलावा खुद आयोग की अपनी रिपोर्ट भी है।
पोस्मार्टम रिपोर्ट के अनुसार आतिफ अमीन (24 वर्ष) की मौत तेज दर्द (Shock & Hemorrhage) से हुई और मुहम्मद साजिद (17 वर्ष) की मौत सर में गोली लगने के कारण हुई है। जबकि इन्स्पेक्टर मोहन चन्द्र शर्मा की मृत्यु का कारण गोली से पेट में हुए घाव से खून का ज्यादा बहना बताया गया है। रिपोर्ट के अनुसार तीनों (आतिफ, साजिद और एम0 सी0 शर्मा) को जो घाव लगे हैं वे मृत्यु से पूर्व ( Antemortem in Nature) के हैं।
रिपोर्ट के अनुसार मोहम्मद आतिफ अमीन के शरीर पर 21 घाव हैं जिसमें से 20 गोलियों के हैं। आतिफ को कुल 10 गोलियाँ लगी हैं और सारी गोलियाँ पीछे से मारी गई हैं। 8 गोलियाँ पीठ पर, एक दाएँ बाजू पर पीछे से और एक बाँई जाँघ पर नीचे से। 2 x 1 से0 मी0 का एक घाव आतिफ के दाएँ पैर के घुटनों पर है। रिपोर्ट के अनुसार यह घाव किसी धारदार चीज से या रगड़ लगने से हुआ है। इसके अलावा रिपोर्ट में आतिफ की पीठ और शरीर पर कई जगह छीलन है जबकि जख्म न0 20 जो बाएँ कूल्हे के पास है से धातु का एक 3 सेमी0 का टुकड़ा मिला है।
मोहम्मद साजिद के शरीर पर कुल 14 घाव हैं। साजिद को कुल 5 गोलियाँ लगी हैं और उनसे 12 घाव हुए हैं। जिसमें से 3 गोलियाँ दाहिनी पेशानी के ऊपर, एक गोली पीठ पर बाँई ओर और एक गोली दाहिने कन्धे पर लगी है। मोहम्मद साजिद को लगने वाली तमाम गोलियाँ नीचे की ओर निकली हैं जैसे एक गोली जबड़े के नीचे से (ठोड़ी और गर्दन के बीच) सर के पिछले हिस्से से और सीने से। साजिद के शरीर से 2 धातु के टुकड़े (Metalic Object) मिलने का रिपोर्ट में उल्लेख है जिस में से एक का साइज 8 x 1 सेमी0 है। जबकि दूसरा Metalic Object पीठ पर लगे घाव (GSW -7) से टीशर्ट से मिला है। इस घाव के पास 5ग1.5 सेमी0 लम्बा खाल छिलने का निशान है। पीठ पर बीच में लाल रंग की 4 x 2 सेमी0 की खराश है। इसके एलावा दाहिने पैर में सामने (घुटने से नीचे) की ओर 3.5 x 2 सेमी0 का गहरा घाव है। इन दोनों घावों के बारे में रिपोर्ट का कहना है यह घाव गोली के नहीं हैं। साजिद को लगे कुल 14 घावों में से रिपोर्ट में 7 घावों को बहुत गहरा (Cavity Deep) कहा गया है।
इनस्पेक्टर मोहन चन्द्र शर्मा के बारे में रिपोर्ट का कहना है कि बाएँ कन्धे से 10 सेमी0 नीचे घाव के बाहरी हिस्से की सफाई की गई थी। मोहन चन्द्र शर्मा को 19 सितम्बर 2008 को एल-18 में घायल होने के बाद निकटतम अस्पताल होली फैमली में भर्ती कराया गया था। उन्हें कन्धे के अलावा पेट में भी गोली लगी थी। रिपोर्ट के अनुसार पेट में गोली लगने से खून का ज्यादा स्राव हुआ और यही मौत का कारण बना। इन्काउन्टर के बाद यह प्रश्न उठाया गया था कि जब शर्मा को 10 मिनट के अन्दर चिकित्सकीय सहायता मिल गई थी और संवेदनशील जगह (Vital Part) पर गोली भी नहीं लगी थी तो फिर उनकी मौत कैसे हो गई? यह भी प्रश्न उठाया गया था कि शर्मा को गोली किस तरफ से लगी, आगे से या पीछे से? क्योंकि यह भी कहा जा रहा था कि शर्मा पुलिस की गोली का शिकार हुए हैं किन्तु पोस्टमाटम रिपोर्ट इसकी व्याख्या नहीं कर पा रही है क्योंकि होली फैमली अस्पताल जहाँ उन्हें पहले लाया गया था और बाद में वहीं उनकी मौत भी हुई, में उनके घावों की सफाई की गई, लिहाजा पोस्टमार्टम करने वाले डाक्टर यह नहीं बता सके कि यह गोली के घुसने की जगह है या निकलने की। दूसरा कारण यह है कि शर्मा को एम्स (AIIMS) में सफेद सूती कपड़े में ले जाया गया था और उनके घाव यहीं (Adhesive Lecoplast) से ढके हुए थे। रिपोर्ट में लिखा है कि जाँच अफसर (IO) से निवेदन किया गया था कि वह शर्मा के कपड़े लैब में लाएँ। ज्ञात रहे कि शर्मा का पोस्टमार्टम 20 सितम्बर 2008 को 12 बजे दिन में किया गया था और उसी समय यह रिपोर्ट भी तैयार की गई थी।

(क्रमश: )

-अबू ज़फ़र आदिल आज़मी
मोबाइल: 09540147251

19.6.10

अपसंस्कृति


दुनिया की आप़ा धापी में शामिल लोग
भूल चुके है अलाव की संस्कृति
नहीं रहा अब बुजुर्गों की मर्यादा का ख्याल
उलझे धागे की तरह नहीं सुलझाई जाती समस्याएं
संस्कृति , संस्कार ,परम्पराओं की मिठास को
मुंह चिढाने लगी हैं अपसंस्कृति की आधुनिक बालाएं
अब वसंत कहाँ ?
कहां ग़ुम हो गयीं खुशबू भरी जीवन की मादकता
उजड़ते गावं -दरकते शहर के बीच
उग आई हैं चौपालों की जगह चट्टियां
जहाँ की जाती ही व्यूह रचना
थिरकती हैं षड्यंत्रों की बारूद
फेकें जाते हैं सियासत के पासे
भभक उठती हैं दारू की गंध -और हवाओं में तैरने लगती हैं युवा पीढ़ी
गूँज उठती हैं पिस्टल और बम की डरावनी आवाज़
सहमी-सहमी उदासी पसर जाती हैं
गावं की गलियों ,खलिहानों और खेतों की छाती पर
यह अपसंस्कृति का समय हैं

-सुनील दत्ता
मोबाइल- 09415370672

कलह के चलते पति ने की पत्नी की गला रेतकर हत्या


पत्नी को मौत की नींद सुलाकर पति ने खुद भी किया आत्महत्या का प्रयास
सफीदों, (हरियाणा) : आज व्यक्ति मानसिकरूप से इतना परे शान हो चुका है कि उसमेंधैर्य नाम की कोई चीज नहीं रह गई है।परेशानी के कारण चाहे जो भी हो लेकिनपरे शानी धैर्य की कमी के चलते वह कुछभी कर बैठता है। ठीक इसी तरह का उदाहरणहरियाणा के सफीदों क्षेत्र में घटित हुई एकदर्दनाक घटना के रूप में सामने आया है।सफीदों की आदर्श कालोनी में घरेलू कलह केचलते पति ने अपनी ही पत्नी का चाकू से गलारेतकर मौत की नींद सुला दिया। पत्नी कीहत्या करने के बाद पति ने भी खुद को चाकूमारकर अपनी जीवनलीला समाप्त करने कीकोशिश की लेकिन वह इस कोशिश मेंनाकामयाब रहा। इस घटना ने पूरे क्षेत्र कोहिलाकर रख दिया है। मिली जानकारी केअनुसार कस्बे की आदर्श कालोनी निवासीबलबीर तथा उसकी पत्नी धनपति के बीचपिछले कई दिनों से घरेलू कलह चला रहाथा। सुबह बलबीर घर आया और कमरे में सोयी अपनी पत्नी धनपति का चाकूसे गला रेत दिया। जिससे धनपतिकी मौके पर ही मौत हो गई।बाद में बलबीर ने स्वयं को भी चाकूमारकर आत्महत्या करने का प्रयास किया। कमरेमें चिल्लाने की आवाज सुनकर बलबीर का बेटा ऋषिपाल मौके पर पहुंच गया और उसने देखा कि उसके मांबापखून से लथपथ कमरें में पड़े हैं। बेटे ऋषिपाल ने घायल अपने पिता बलबीर को अस्पताल पहुंचाया और घटना कीसूचना पुलिस को दी। सूचना मिलते ही पुलिस मौके पर पहुंच गई और मृतका के शव को कजे में ले सामान्यअस्पताल ले आई। ऋषिपाल ने पुलिस को दी शिकायत में बताया कि उसका पिता बलबीर दर्जी का कार्य करता है।सुबह उसका पिता घर आया और कमरे में सोयी उसकी मां के गले पर चाकूसे वार कर दिया। जब तक वह मौके परपहुंचता तब उसकी मां धनपति की मौके पर ही मौत हो चुकी थी। इस दौरान उसके पिता ने स्वयं को भी चाकूमारकर आत्महत्या करने का प्रयास किया। पुलिस ने ऋषिपाल की शिकायत पर बलबीर के खिलाफ हत्या कामामला दर्ज कर छानबीन शुरू कर दी है।

अमेरिकी साम्राज्यवाद का रूप व एशिया - (अंतिम भाग)

वास्तव में इन सबके पीछे अमेरिका की वह रणनीति है जिसके अन्तर्गत वह ईरान जैसे कई देशों के प्राकृतिक संसाधनों पर अपना प्रभुत्व कायम करना चाहता है ताकि वह विश्व में स्वयं को सिरमौर बना सके। ‘‘जिस तरह यह तथ्य सभी जानते हैं कि सारी दुनिया के ज्ञात प्राकृतिक तेल भण्डारों का 60 प्रतिशत पश्चिम एशिया में मौजूद हैं, अकेले सऊदी अरब में 20 प्रतिशत, बहरीन, कुवैत, ओमान, कतर और संयुक्त अरब अमीरात में मिलाकर 20 प्रतिशत और इराक ईरान में 10-10 प्रतिशत तेल भण्डार हैं। ईरान के पास दुनिया की प्राकृतिक गैस का दूसरा सबसे बड़ा भण्डार है, उसी तरह लगभग सारी दुनिया में अमेरिका के कारनामों से परिचित लोग इसे एक तथ्य की तरह स्वीकारते हैं कि अमेरिका की दिलचस्पी लोकतंत्र में है, आतंकवाद खत्म करने में, दुनिया को परमाणु हथियारों के खतरों से बचाने में, बल्कि उसकी दिलचस्पी तेल पर कब्जा करने और इसके जरिये बाकी दुनिया पर अपना वर्चस्व बढ़ाने में है। अमेरिका की फौजी मौजूदगी ने उसे दुनिया के करीब 50 फीसदी प्राकृतिक तेल के स्रोतों पर प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष कब्जा दिला दिया है और अब उसकी निगाह ईरान के 10 प्रतिशत पर काबिज होने की है। दरअसल मामला सिर्फ यह नहीं है कि अगर अमेरिका को 50 फीसदी तेल हासिल हो गया है तो वह ईरान को बख्श क्यों नहीं देता। सवाल यह है कि अगर 10 फीसदी तेल के साथ ईरान अमेरिका के विरोधी खेमे के साथ खड़ा होता है तो दुनिया में फिर अमेरिका के खिलाफ खड़ा होने की हिम्मत कोई कोई करेगा।’’
इसी तरह क्यूबा के पूर्व राष्ट्रपति
फिदेल कास्त्रों का भी मानना है कि अमेरिका अपनी इन खतरनाक नीतियों के छद्म द्वारा विश्व के कई देशों की सार्थक शक्तियों सुविधाओं का प्रयोग अपने हित हेतु कर रहा है। चाहे वह प्राकृतिक संसाधन हो अथवा मानव शक्ति। ‘‘उन्होंने सम्पूर्ण विश्व को लूटकर, उसका शोषण करके, बहुत सारा धन इकट्ठा किया है, जिससे वह पूरी दुनिया के प्राकृतिक संसाधनों को, कारखानों को, पूरी की पूरी संचार व्यवस्थाओं सेवाओं आदि को खरीद लेते हैं। .........अपने शानदार आर्थिक नियमों के चलते वह तीसरी दुनिया के देश के लोगों के साथ क्या कर रहे हैं? वह बहुत सारे लोगों को उनके अपने ही देशों में विदेशी बना रहे हैं। अपने देश में एक वैज्ञानिक, डाक्टर, इंजीनियर अथवा शिक्षक तैयार करने पर उनको बहुत भारी खर्च करना पड़ता है। इसलिए वह तीसरी दुनिया के देशों की जनता की खून पसीने की कमाई से तैयार किए गए वैज्ञानिकों, डाॅक्टरों, इंजीनियरों आदि को अपने यहाँ बुला लेते हैं। बात अपना खर्च बचा लेने दूसरे देशों के संसाधन लूट लेने की ही नहीं है, बात यह है कि निरंतर नई तकनीक से निर्मित व्यापार को चलाने के लिए स्वयं उनमें योग्यता नहीं है।’’
अमेरिका की इस पूँजीवादी व्यवस्था ने वातावरण में ज़हर भर दिया है और वह उन प्राकृतिक संसाधनों को
धीरे-धीरे नष्ट कर रहा है, जो कि एक बार प्रयोग कर लेने के पश्चात पुनः पैदा नहीं किए जा सकते, जबकि भविष्य में उनकी आवश्यकता ज्यादा होगी। इन संसाधनों के प्रयोग से अमेरिका को कोई रोके इसलिए वह भिन्न-भिन्न नीतियों का सहारा लेकर विश्व पटल पर ऐसा वातावरण सृजित कर रहा है कि सभी का ध्यान उसी ओर रहे और वह अपने उद्देश्य की पूर्ति बिना किसी अंकुश के कर सके।
भारत द्वारा अमेरिका के साथ किए गए समझौतों से हमारी संप्रभुता पर एक खतरा मण्डरा रहा है, जिससे बचाव के लिए हमें कोई कोई ठोस कदम उठाना होगा। यह तो स्पष्ट ही है कि एशिया के प्राकृतिक संसाधनों मानव शक्ति के उत्पादन पर अमेरिका नजर गड़ाए हुए है परन्तु जिस मनमानी से वह यह सब हासिल करना चाहता है वह इन देशों के लिए अत्यन्त हानिकारक साबित हो सकता है। अमेरिका की इन सभी साम्राज्यवादी नीतियों से दो-दो हाथ करने उसका हल ढूँढने का सार्थक प्रयास यही हो सकता है कि उसके विरुद्ध खड़ी तमाम शक्तियों को एकत्र किया जाए। जैसा कि पिछले समय में बेनेजुएला के राष्ट्रपति ह्यगो चावेज के साथ मिलकर अहमदीनेजाद ने एक वैकल्पिक कोष का निर्माण कर लिया है इससे छोटे देशों को सार्थक सहयोग मिलेगा और वह भी अमेरिकी शक्तियों का विरोध करते हुए इनसे जुड़े रहेंगे। विश्व स्तर पर अमेरिका के डाॅलर को चुनौती देने के प्रयास भी इसी ओर संकेत करते हैं। इसी तरह एशिया के सभी देश आपसी खींच तान भुलाकर यदि एक मंच पर एकत्र हों तो वे सब अपनी संप्रभुता को कायम रखते हुए अमेरिका का विरोध बड़े तीव्र रूप में कर सकते हैं। कुछ अमेरिका परस्त देशों को यदि इस एकत्रता से निकाल भी दिया जाए तो भी एक सार्थक प्रयास किया जा सकता है। मैं तो कहूँगा कि भारत जैसे देश केवल इसका विरोध करें बल्कि इस नये एकता सूत्र को बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएँ, वहीं चीन भी इसमें महत्वपूर्ण रोल अदा कर सकता है। जिस प्रकार आज भूमण्डलीय साम्राज्यवाद की बात की जा रही है उसी तरह भूमण्डलीय विरोध को भी पैदा किया जा सकता है बस जरूरत इन देशों की आपसी एकता की है।

-डा0 विकास कुमार
मोबाइल: 09888565040

18.6.10

अमेरिकी साम्राज्यवाद का रूप व एशिया - 1

आज इस भूमण्डलीयकरण के युग में जहाँ विश्व को एक ग्राम के रूप में देखने की बात स्वीकारी जा रही है वहीं इस बात को भी नकारा नहीं जा सकता कि विभिन्न देशों में सामाजिक स्थिरता, समरसता और अखण्डता को तोड़ने हेतु साम्राज्यवादी शक्तियाँ भिन्न-भिन्न हथकण्डों का प्रयोग कर रही हैं। जहाँ वे एक ओर जन कल्याण की नई-नई सुविधाओं और स्कीमों का प्रचार प्रसार कर रही हैं वहीं दूसरी ओर अपने उद्देश्य की पूर्ति हेतु इसी जन के शोषण को घिनौना रूप देती द्रष्टव्य होती हैं। हम इस बात से भली-भाँति परिचित हैं कि अमेरिका ही इन सब रणनीतियों षडयंत्रों का सूत्रधार है। वस्तुतः आज विश्व धरातल पर अमेरिका की जो छवि बनी हुई है उसे सुधारने हेतु अपने घिनौने कार्यों पर पर्दा डालने हेतु ही इन जन कल्याण की सुविधाओं का छद्म रचा जा रहा है। वास्तविकता यह है कि अमेरिका अपनी इन्हीं रणनीतियों की आड़ में अपने वर्चस्व को कायम रखने का जो षडयंत्र रच रहा है, वह आतंकवाद का असल जनक है। यह बात ध्यान देने योग्य है कि उसके निशाने पर एशिया अफ्रीका के देश ही प्रमुख रूप से हैं, जिसका प्रमुख कारण इन देशों के प्राकृतिक संसाधन माल बेचने हेतु उपलब्ध बाजार का होना मान लिया जाए तो कदाचित् यह गलत होगा।
बीसवीं सदी में बहुत ही नाटकीय ढंग से एशिया के कई देशों में घटनाएँ घटित हुईं हैं, जिसने केवल एशिया बल्कि सम्पूर्ण विश्व को प्रभावित किया है। जिसके अन्तर्गत विश्व सभ्यताओं के टकराव की बात को तूल देकर मुस्लिम समाज को आतंकी घोषित करने का प्रयास भी प्रमुख रूप से सम्मिलित है। वास्तव में अमेरिका अपनी निश्चित रणनीति के अन्तर्गत भिन्न-भिन्न देशों में वहाँ की सरकारों को अस्थिर करने के प्रयास करता है और इस प्रयास को सफल बनाने हेतु वह धर्म, जाति, क्षेत्र, भाषा, सम्प्रदाय नस्ल आदि का सहारा लेकर कई प्रकार के दुष्प्रचारों को फैलाता है ताकि मनोवैज्ञानिक ढंग से उस देश के वातावरण में खण्डित होने की भावना को बढ़ावा दिया जा सके और उसकी अस्थिरता का लाभ उठाया जा सके। अमेरिका के साम्राज्यवादी नीतिकार पहले पहल इन देशों में आर्थिक, सामाजिक पिछड़ेपन पर विशेष रूप से फोकस करते हैं, फिर उसमें छिपी संभावनाओं को एक हथियार की तरह प्रयोग करते हैं और इन्हीं देशों को धन, हथियार आदि देकर अपना काम निकलवाते हैं तथा फिर अपने ही प्रचार तंत्र द्वारा इन्हें बदनाम कर सुधारने का ठेका अपने जिम्मे ले लेते हैं। नोम चोमस्की के आलेख इस संबन्ध में विस्तृत जानकारी उपलब्ध करवाते हैं। यह मात्र एक रणनीति है परन्तु ऐसी ही कई अन्य रणनीतियाँ भी हैं जो अमेरिका अपना हित साधने हेतु प्रयोग में लाता है।
आज यदि एशिया पटल पर दृष्टिपात किया जाए तो ज्ञात होता है कि अमेरिका के निशाने पर जो देश हैं उनमें मुस्लिम देशों की संख्या अधिक है। यह सत्य है कि इराक को तबाह करने के पश्चात् भी अमेरिका अपने उद्देश्य में पूरी तरह सफल नहीं हो पाया है परन्तु हाँ इस बात को कतई नहीं नकारा जा सकता कि इराक से युद्ध के बहाने अमेरिका ने एशिया के कई हिस्सों में अपनी सेना की संख्या कई गुना बढ़ा ली है। वहीं पश्चिम एशिया पर दृष्टिपात किया जाए तो ज्ञात होता है कि यहाँ के कुछ देशों में अमेरिका परस्त सरकारें ही कार्यरत हैं और ये देश अमेरिका की हर बुरी हरकत में बराबर के साझीदार हंै। ‘‘इज्राइल, कुवैत, जाॅर्डन और सऊदी अरब में पहले से ही अमेरिका परस्त सरकारें मौजूद थीं, लेबनान के प्रतिरोध को अमेरिकी शह पर इज्राइल ने बारूद के गुबारों से ढाँप दिया है और सीरिया, ओमान, जाॅर्जिया, यमन जैसे छोटे देशों की कोई परवाह अमेरिका को है नहीं, भले ही तुर्क जनता में अमेरिका द्वारा इराक पर छेड़ी गई जंग का विरोध बढ़ा है लेकिन अपनी राजनैतिक, व्यापारिक, व भौगोलिक स्थितियों की वजह से तुर्की की सरकार यूरोप और अमेरिका के खिलाफ ईरान के साथ खड़ी होगी, इसमें संदेह ही है। कुवैत में अमेरिकी पैट्रियट मिसाइलें तनी हुई हैं, संयुक्त अरब अमीरात और बहरीन के पानी में अमेरिका नौसेना का पाँचवा बेड़ा डाले हुए है। कतर ने इराक और अफगानिस्तान पर हमलों के दौर में अमेरिकी वायुसेना के लिए अपनी जमीन और आसमान मुहैय्या कराये ही थे।’’
यदि एशिया की विगत कुछ दशकों की स्थितियों का मूल्यांकन किया जाए और भविष्य सम्बंधी अमेरिका की रणनीति की बात को उससे मिलाकर देखा जाए तो ज्ञात होता है कि इराक और फिलिस्तीन की साम्राज्यवाद विरोधी नीतियों को कुचलने के पश्चात अब अमेरिका के निशाने पर ईरान ही है। छद्म रूप में विश्व से आतंकवाद मिटाने का संकल्प लेने वाला अमेरिका अपनी सूची में ईरान और उत्तर कोरिया को प्रमुख रूप से शामिल किये हुए हैं। 9/11 के पश्चात अमेरिकी पश्चिमी मीडियाइस्लामी आतंकवादका मिथ खड़ा कर, इन मुस्लिम देशों में नरसंहार को अपने मनमाने ढंग से क्रियान्वित करना चाहता है परन्तु ईराक को उसकी बेगुनाही के पश्चात भी लाशों के आवरण में ढकने का जो कार्य अमेरिका ने किया है वह विश्व पटल पर अमेरिका के झूठ, छद्म उसकी खतरनाक नीतियों की कलई खोलकर रख देता है। उत्तरी कोरिया ने अमेरिकी रणनीतियों को पहचान लिया था, जिससे बचने हेतु उसने स्वयं को एक परमाणु शक्ति के रूप में स्थापित कर लिया परन्तु ईरान ऐसा नहीं कर सका। अब अमेरिका का विशेष ध्यान ईरान पर है। इसी कारण पाकिस्तान, अफगानिस्तान, सऊदी अरब और इराक आदि में अमेरिकी सेना की उपस्थिति को बनाये रखा गया है।

-डा0 विकास कुमार
मोबाइल: 09888565040

हिंसा और उपभोक्तावाद के दौर में सूफियों की प्रासंगिकता (अंतिम भाग)

आधुनिक वैज्ञानिक दृष्टि में आमतौर पर रहस्यवादी दर्शन को सृजनात्मक नहीं माना जाता। उसे जीवन के यथार्थ को अनदेखा कर एक वायवी संसार में पलायन करने का रास्ता माना जाता है। लेकिन मनुष्य के मन को उदारता, प्रेम और समता की भावभूमि की ओर उन्मुख और प्रेरित करने के लिए रहस्यवादी प्रवृत्ति आधुनिक मनुष्य के काम की हो सकती है। आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी ने सूफियों के बारे में लिखा है: ‘‘हमारे देश के भक्तों और संतों की भाँति सूफी साधकों ने भी इसी अंतरतम के प्रेम पर आश्रित भाव-जगत की साधना को अपनाया है। यह साधना जितनी ही मनोरम है उतनी ही गंभीर भी। हमारे देश के अनेक सूफी कवियों ने इस प्रेम साधना को अपने काव्यों का प्रधान स्वर बनाया है। मलिक मुहम्मद जायसी का ‘पदमावत’ इस प्रेम साधना का एक अनुपम काव्य है। साधक के हृदय में जब प्रेम का उदय होता है तब सांसारिक वस्तुएँ उसके लिए तुच्छ हो जाती हैं, लेकिन संसार के जीवों के लिए उसका हृदय दया और प्रेम से परिपूर्ण रहता है। दूसरों के कष्ट का निवारण करने के लिए वह सब प्रकार से प्रयत्नशील रहता है और उसके लिए सभी प्रकार के कष्टों का स्वागत करता है। छोटे से छोटे से प्राणी लेकर बड़े से बड़े प्राणी तक उसकी दृष्टि में अपना महत्व रखते हैं। चूँकि सर्वत्र सभी प्राणियों में वे परमात्मा के दर्शन करते हैं अतः उन्हें सुख पहुँचा कर वे परम सुखी होते हैं। उनके लिए सब प्रकार का त्याग करने के लिए वे प्रस्तुत रहते हैं। बायजीद ने कहा है कि परमात्मा जिससे प्रेम करता है उसे तीन गुणों से विभूषित करता है - ‘‘उसमें समुद्र जैसी उदारता, सूर्य की तरह पर दुख का तरता और पृथ्वी की तरह विनम्रता पाई जाती है।’’
सूफी दार्शनिकों और साधकों के अलावा सूफी साहित्यकारों की भी कट्टरता के बरक्स उदारता के विस्तार में अहम भूमिका रही है। यूँ तो दुनिया का ज्यादातर श्रेष्ठ साहित्य मनुष्य के हृदय में निहित प्रेम, उदारता और परदुखकातरता की अनंत संभावनाओं के प्रकाशन का ही उद्यम है, लेकिन सूफियों का प्रेम काव्य इस मायने में अपनी अलग महत्ता और सार्थकता रखता है। अपनी लोकसंवेदना के चलते वह आम जीवन के ज्यादा नजदीक आता है। सूफी प्रेम काव्यों में लोक भाषा में लोक कथाओं को आधार बना कर लोकरंजन किया गया है। सांप्रदायिक और बाजारवादी कट्टरता दोनों मिल कर प्रेम और उदारता से संवलित सूफी साहित्य की संवेदना का अवमूल्यन करती हैं। आधुनिकतावादी और उसी की एक अभिव्यक्ति (मेनीफेस्टेशन) प्रगतिवादी बुद्धि की अपनी कट्टरताएँ जगजाहिर हैं। वह समस्त मध्ययुगीनता को अंधकार और बर्बरता का पर्याय मान कर चलती है। उसके मुताबिक आधुनिक युग से पूर्व मानव सभ्यता में कुछ भी ऐसा सारगर्भित नहीं हुआ है जिसे आज की विचारणा में केंद्रीय स्थान दिया जा सके। यह दरअसल बाजार की धुरी पर चढ़ी हुई बुद्धि है जो स्वतंत्रता के छद्म दावे में जीती है। मलिक मुहम्मद जायसी केपदमावतमें एक प्रसंग काबिलेगौर है, जिसे हमने अन्यत्र भी उद्धृत किया है। चित्तौड़गढ़ के व्यापारियों का एक काफिला व्यापार करने के लिए सिंहलद्वीप की यात्रा पर निकलता है। उनके साथ थोड़ा-बहुत कर्ज लेकर एक गरीब ब्राह्मण भी व्यापार की लालसा में चल देता है। जायसी ने व्यापार स्थल पर लगे बाजार की विशालता और भव्यता का चित्रण किया है जहाँ लाखों-करोड़ों में वस्तुएँ बिकती हैं। व्यापारी अपना-अपना व्यापार करते हैं लेकिन थोड़ी-सी पूँजी लेकर आया ब्राह्मण उस बाजार में कुछ भी खरीद नहीं पाता। व्यापारी लौटने लगते हैं। ब्राह्मण निराशा से भर जाता है। तभी बाजार के एक कोने में उसकी नजर पिंजड़े में बंद एक तोते पर पड़ती है जिसे व्याध वहाँ बेचने के लिए ले आया है। ब्राह्मण तोते से वार्तालाप करता है। उससे पूछता है कि वह गुणी पंडित है या केवल छूँछा है। अगर पंडित है तो ज्ञान की बात बता। तोता पीड़ा से भर कर कहता है कि हे ब्राह्मण मैं तभी तक गुणी और ज्ञानी था जब तक इस पिंजड़े में कैद नहीं हुआ था। अब तो मैं पिंजड़े में कैद हूँ और बाजार में बिकने के लिए चढ़ा दिया गया हूँ। ऐसी स्थिति में अपना सारा ज्ञान भूल गया हूँ। जायसी तोते की मर्मांतक वेदना को इस तरह व्यक्त करते हैं: ‘‘पंडित होई सो हाट चढ़ा। चहउँ बिकाई भूलि गा पढ़ा।।’’ अर्थात जो ज्ञानी होता है वह बाजार में नहीं चढ़ता। मैं तो बिक रहा हूँ लिहाजा सब पढ़ाई भूल गया हूँ।
बाजार और विचार का द्वंद्व हमेशा से चला रहा है। इस प्रसंग में जायसी ने मध्यकालीन बुद्धिजीवी की बाजार के हाथों बिकने की वेदना को अभिव्यक्ति दी है। यानी वे बताते हैं कि पंडित, ज्ञानी या बुद्धिजीवी वही है जो बाजार की ताकत से स्वतंत्र है। आज हम देखते हैं कि दुनिया का ज्यादातर बौद्धिक कर्म बाजारवाद की सेवा में लगा हुआ है और बुद्धिजीवियों को इसकी कोई पीड़ा नहीं है। बल्कि वे अपनी बुद्धि को बाजार की सेवा में लगाने को आतुर नजर आते हैं ताकि ज्यादा से ज्यादा बाजार लूटा जा सके। अध्यापक से लेकर आध्यात्मिक गुरु तक बाजारवाद की ताल पर नाचते नजर आते हैं। सिद्धांतकारों और साहित्यकारों-कलाकारों का भी वही हाल है। बुद्धिजीवियों के मार्फत दुनिया पर अपना वर्चस्व जमाने वाले बाजारवाद के प्रतिरोध की चेतना सूफी वाड्।मय में मिलती है। साहित्य के नित नए पाठ के आग्रहियों को इस तरफ भी थोड़ा ध्यान देना चाहिए।

-डॉक्टर प्रेम सिंह
(समाप्त)
लोकसंघर्ष पत्रिका के जून २०१० अंक में प्रकाशित