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5.6.10

लो क सं घ र्ष !: नये मनुष्य, नये समाज के निर्माण की कार्यशाला: क्यूबा-4


क्यूबा का इंकलाबः एक अलग मामला

क्यूबा की क्रान्ति न रूस जैसी थी न चीन जैसी। वहाँ क्रान्तिकारी कम्युनिस्ट पार्टियाँ पहले से क्रान्ति के लिए प्रयासरत थीं और उन्होंने निर्णायक क्षणों में विवेक सम्मत निर्णय लेकर इतिहास गढ़ा। उनसे अलग, क्यूबा में जो क्रान्ति हुई, उसे क्यूबा की कम्युनिस्ट पार्टी का भी समर्थन या अनुमोदन हासिल नहीं था। उस वक्त क्यूबा की कम्युनिस्ट पार्टी फिदेल के गुरिल्ला युद्ध का समर्थन नहीं करती थी बल्कि बटिस्टा सरकार के ऊपर दबाव डालकर ही कुछ हक अधिकार हासिल करने में यकीन करती थी। लेकिन वक्त के साथ न केवल फिदेल ने क्यूबाई इंकलाब को सिर्फ एक देश के इंकलाब से बाहर निकालकर उसे एक अंतर्राष्ट्रीय कम्युनिस्ट आंदोलन की अहम तारीख बनाया बल्कि अंतर्राष्ट्रीय कम्युनिस्ट बिरादरी ने भी क्यूबा के इंकलाब को साम्राज्यवाद से बचाये रखने में हर मुमकिन भूमिका निभाई।
चे ग्वेवारा का प्रसिद्ध लेख ’क्यूबाः एक्सेप्शनल केस?’ क्यूबा की क्रान्ति की अन्य खासियतों पर और समाजवाद की प्रक्रियाओं पर विलक्षण रोशनी डालता है।
करिष्मा दर करिश्मा जनता की ताकत से
1961 की 1 जनवरी को 1 लाख हाई स्कूल पास लोगों के साथ पूरे मुल्क को साक्षर बनाने का अभियान शुरू किया गया और ठीक एक साल पूरा होने के 8 दिन पहले ही क्यूबा को पूर्ण साक्षर करने का करिश्मा कर दिखाया। दिसंबर 22, 1961 को क्यूबा निरक्षरता रहित क्षेत्र घोषित कर दिया गया। ऐसे करिश्मे क्यूबा ने अनेक क्षेत्रों में दिखाए और अभी भी जारी हैं। इंकलाब के तत्काल बाद जमीन पर से विदेशी कब्जे खत्म किए गए और बड़े किसानों व कंपनियों से जमीनें लेकर छोटे किसानों व खेतिहर मजदूरों को बाँटी गईं। इंकलाब के बाद के करीब बीस-पच्चीस वर्षों तक क्यूबा ने तरक्की की अनेक छलाँगें भरीं। बेशक सोवियत संघ व अन्य समाजवादी देशों के साथ सामरिक-व्यापारिक संबंधों की इसमें अहम भूमिका रही। गन्ने की एक फसल वाली खेती से शक्कर बनाकर क्यूबा ने सोवियत संघ से शक्कर के बदले पेट्रोल और अन्य आवश्यक वस्तुएँ हासिल कीं। उद्योगों का ही नहीं खेती का भी राष्ट्रीयकरण करके खेतों में काम करने वाले मजदूरों को सामाजिक सुरक्षा, छुट्टियाँ, मुफ्त शिक्षा, इलाज की सुविधाएँ और बच्चों के लिए झूलाघर खोले गए। क्रान्ति के महज 7 वर्षों के भीतर क्यूबा की 80 फीसदी कृषि भूमि पर सरकार का स्वामित्व था। निजी स्वामित्व वाले जो छोटे किसान थे, उनके भी सरकार ने जगह-जगह कोआॅपरेटिव बनाए और उन्हें प्रोत्साहित किया। सबके लिए भोजन, रोजगार, शिक्षा और सबके लिए मुफ्त इलाज की सुविधा ने क्यूबा को मानव विकास के किसी भी पैमाने से अनेक विकसित देशों से आगे लाकर खड़ा कर दिया था।

मुश्किल दौर का मुकाबला क्रान्ति के औजारों से

सोवियत संघ के विघटन से निश्चित ही क्यूबा की अर्थव्यवस्था पर बहुत प्रतिकूल असर पड़ा। भीषण मंदी ने क्यूबा को अपनी चपेट में ले लिया। सोवियत संघ केवल क्यूबा की कृषि उपज का खरीददार ही नहीं था बल्कि क्यूबा की ईंधन और रासायनिक खाद की जरूरतों का भी बड़ा हिस्सा वहीं से ही पूरा होता था। सोवियत संघ के ढहने से क्यूबा में रासायनिक खाद और कीटनाशकों की उपलब्धता 80 फीसदी तक गिर गई और उत्पादन में 50 फीसदी से ज्यादा गिरावट आई। क्यूबा के प्रति व्यक्ति प्रोटीन और कैलोरी खपत में 30 फीसदी कमी दर्ज की गई। लेकिन क्यूबा इन सभी समस्याओं से बगैर किसी बाहरी मदद के जिस तेजी से फिर सँभला, वह क्यूबाई करिश्मों की गिनती को ही बढ़ाता है। अपने दक्ष व प्रतिबद्ध वैज्ञानिकों और लोगों के प्रति ईमानदार, दृढ़ राजनैतिक इच्छाशक्ति ने 1995 के मध्य तक अपनी कृषि को पूरी तरह बदल कर नये हालातों के अनुकूल ढाल लिया। रासायनिक खाद के बदले जैविक खाद से खेती की जाने लगी। एक फसल के बदले विविधतापूर्ण फसल चक्र अपनाए गए। आज क्यूबा सारी दुनिया में जैविक खेती और जमीन का सही तरह से इस्तेमाल करने वाले देशों में सबसे आगे है।
यही स्थिति ऊर्जा के क्षेत्र में भी हुई। सोवियत संघ से पेट्रोलियम की आपूर्ति बंद हो जाने के बाद क्यूबा के वैज्ञानिकों व इंजीनीयरों ने बड़े पैमाने पर सौर ऊर्जा और पनबिजली के संयंत्रों पर काम किया। कम बिजली खपत वाले रेफ्रीजरेटर, हीटर, बल्ब इत्यादि बनाए गए और आज क्यूबा वैकल्पिक व प्रकृति हितैषी ऊर्जा उत्पादन में भी दुनिया की अग्रिम पंक्ति में है।
पश्चिमी यूरोप में प्रत्येक 330 लोगों की देखभाल के लिए एक डाॅक्टर है; अमेरिका में प्रत्येक 417 लोगों की देखभाल के लिए एक डाक्टर है, जबकि क्यूबा में प्रत्येक 155 लोगों की देखभाल के लिए एक डाॅक्टर है। क्यूबा जैसा छोटा सा देश 70 हजार से ज्यादा डाक्टर्स को प्रशिक्षित कर रहा है और उन्हें दुनिया के हर हिस्से में मानवता की मदद के लिए भेज रहा है जबकि उससे कई गुना बड़ा अमेरिका करीब 64 से 68 हजार डाक्टरों का ही प्रशिक्षण कर पा रहा है।

-विनीत तिवारी
मोबाइल : 09893192740

(क्रमश:)

लो क सं घ र्ष !: सपने देखना और सपने बुनना.......


सपने देखना और सपने बुनना , हमे भी आता है प्रजापति ..
सिर्फ तुम्हे नहीं .
फूटपाथ पर
होने का अर्थ
ये नहीं है न्याय कई देवता ,
की हमे सपने नही आते .
सपने देखना सिर्फ तुम्हारी मिलकियत नहीं .
तिजोरियो के स्वामी .
हमे भी हासिल है हक़ .
की सपने देखू
बेहतर दुनिया और बेहतर मनुष्य होने के सपने .
उजाडो तुम बार -बार /उजाडो मेरे सपनों के
घोश्लो को
कभी प्रदूषण निवारण के नाम पर
कभी सहर की खूबसूरती के नाम पर .
कभी न्याय के देवताओ के हुक्म पर
कभी विकाश की गंगा बहाने के बहाने
सत्ता ,शासन और तिजोरी का मिलन पर्व
भले ही मनाया जा रहा हो पूरी दुनिया में .
भले ही दुनिया का सबसे बड़ा हैवान .
सभ्यताओ का पाठ पढ़ा रहा हो हमे .
हमे सपने देखने और सपने बुनने से
नहीं रोक सकता वो
कयू की मेरा सपना सिर्फ अपना सपना नहीं है .
पूरी कायनात का है मेरा सपना
मनुष्यता की हिफाज़त में ...........

-सुनील दत्ता

4.6.10

लो क सं घ र्ष !: पत्नी बचाना मुश्किल है

(आरोप यदि सही हैं तो शर्मनाक है)

ईजराइल के सरकारी दौरे पर गए लेफ्टिनेंट जनरल ए.के नंदा ने साथ में गए कर्नल रैंक के अधिकारी की पत्नी से छेड़-छाड़ की। यह आरोप कर्नल रैंक के अधिकारी की पत्नी ने सेना प्रमुख की पत्नी व आर्मी वाईव्स से मिलकर लगाया। इसके पूर्व भी सेना के पांच बड़े अफसरों ने अपने मातहत अफसरों की पत्नियों का यौन उत्पीडन का मामला प्रकाश में आया था। समय-समय पर उच्च पदस्थ सैन्य अधिकारियो के खिलाफ अपने अधीनस्थ अधिकारियो की पत्नियों से छेड़-छड के मामले प्रकाश में आते रहे हैं। पूर्वोत्तर भारत में सेना का पूर्णतया नियंत्रण है। मणिपुर में सेना के खिलाफ औरतों का निवस्त्र प्रदर्शन तक हो चुका है। समाज में हमारी सेना के अदम्य साहस और शौर्य की गाथाएं जन-जन में प्रचलित हैं किन्तु दूसरा पक्ष यह भी है कि सेना में यौन उत्पीडन, भ्रष्टाचार के मामले जब प्रकाश में अक्सर आते रहते हैं तो एक तबका इस बात की वकालत करने लगता है कि इसकी चर्चा मत करो सेना का मनोबल टूटेगा। हमारी सेना में अब इस तरह की हरकतें ज्यादा संख्या में होने लगी हैं और भ्रष्टाचार भी अन्य विभागों की तरह चरम पर हैं। पुलिस वालों की भांति फर्जी एनकाउंटर भी होने लगे हैं। कुछ वर्ष पूर्व जब रक्षा मंत्री जार्ज फर्नांडीज हुआ करते थे तो देश के विभिन्न आयुध भण्डारो में विस्फोट हो गए थे और सारा हिसाब किताब बराबर कर लिया गया था। सेवानिवृत्ति सैन्य अधिकारियो की भी कारनामें देश भक्ति पूर्ण नहीं हैं। आज जरूरत इस बात की है कि सैन्य समुच्चयों को लोकतान्त्रिक करण किया जाए और उनमें उच्च आदर्श, उच्च मापदंड स्थापित करने की परंपरा की आवश्यकता है। मनोबल कम न होने पावे इसलिए उनके हर अपराधिक कृत्य को माफ़ करने का कोई औचित्य नहीं है अगर सेना बाबा आदम जमाने की सोच रखकर लूट और खसोट पर आधारित व्यवस्था पर चलती है तो भारत की रक्षा भी नहीं हो सकती है। एक सेवानिवृत्ति सैनिक ने बताया कि सेना में पत्नियों को सुरक्षित रखना आसान नहीं है। कठोर नियमो और उपनियमो के तहत सैन्य अधिकारी अपने अधीनस्थ कर्मचारी को कुसित इच्छा न पूरी होने पर दण्डित भी कर देते हैं।

सुमन
loksangharsha.blogspot.com

लो क सं घ र्ष !: नये मनुष्य, नये समाज के निर्माण की कार्यशाला: क्यूबा-3


हम कम्युनिस्ट नहीं हैं: फिदेल (1959)

1 जनवरी 1959 को क्यूबा में बटिस्टा के शोषण को हमेशा के लिए समाप्त करने के बाद अप्रैल, 1959 में फिदेल एसोसिएशन आॅफ न्यूजपेपर एडिटर्स के आमंत्रण पर अमेरिका गये जहाँ उन्होंने एक रेडियो इंटरव्यू में कहा कि ’मैं जानता हूँ कि दुनिया सोचती है कि हम कम्युनिस्ट हैं पर मैंने बिल्कुल साफ तौर पर यह कहा है कि हम कम्युनिस्ट नहीं हैं।’ उसी प्रवास के दौरान फिदेल की साढ़े तीन घंटे की मुलाकात अमेरिकी उप राष्ट्रपति निक्सन के साथ भी हुई जिसके अंत में निक्सन का निष्कर्ष यह था कि ’या तो कम्युनिज्म के बारे में फिदेल की समझ अविश्वसनीय रूप से बचकानी है या फिर वे ऐसा कम्युनिस्ट अनुशासन की वजह से प्रकट कर रहे हैं।’ लेकिन फिदेल ने मई में क्यूबा में अपने भाषण में फिर दोहरायाः ’न तो हमारी क्रान्ति पूँजीवादी है, न ये कम्युनिस्ट है, हमारा मकसद इंसानियत को रूढ़ियों से, बेड़ियों से मुक्त कराना और बगैर किसी को आतंकित किए या जबर्दस्ती किए, अर्थव्यवस्था को मुक्त कराना है।’
बहरहाल न कैनेडी के ये उच्च विचार क्यूबा के बारे में कायम रह सके और न फिदेल को ही इतिहास ने अपने इस बयान पर कायम रहने दिया। जनवरी 1959 से अक्टूबर आते-आते जिस दिशा में क्यूबा की क्रान्तिकारी सरकार बढ़ रही थी, उससे उनका रास्ता समाजवाद की मंजिल की ओर जाता दिखने लगा था। मई में भूमि की मालिकी पर अंकुश लगाने वाला कानून लागू कर दिया गया था, समुंदर के किनारों पर निजी स्वामित्व पहले ही छीन लिया गया था। अक्टूबर में चे को क्यूबा के उद्योग एवं कृषि सुधार संबंधी विभाग का प्रमुख बना दिया गया था और नवंबर में चे को क्यूबा के राष्ट्रीय बैंक के डाइरेक्टर की जिम्मेदारी भी दे दी गई थी। बटिस्टा सरकार के दौरान क्यूबा के रिश्ते बाकी दुनिया के तरक्की पसंद मुल्को के साथ कटे हुए थे, वे भी 1960 में बहाल कर लिए गए। सोवियत संघ और चीन के साथ करार किए गए तेल, बिजली और शक्कर का सारा अमेरिकी व्यवसाय जो बटिस्टा के जमाने से क्यूबा में फल-फूल रहा था, सरकार ने अपने कब्जे में लेकर राष्ट्रीयकृत कर दिया। जुएखाने बंद कर दिए गए। पूरा क्यूबाई समाज मानो कायाकल्प के एक नये दौर में था।
यह कायाकल्प अमेरिकी हुक्मरानों और अमेरिकी कंपनियों के सीनों पर साँप की तरह दौड़ा रहा था। आखिर 1960 की ही अगस्त में आइजनहाॅवर ने क्यूबा पर सख्त आर्थिक प्रतिबंध लगा दिए। क्यूबा को भी इसका अंदाजा तो था ही इसलिए उसने मुश्किल वक्त के लिए दोस्तों की पहचान करके रखी थी। रूस और चीन ने क्यूबा के साथ व्यापारिक समझौते किए और एक-दूसरे को पँूजीवाद की जद से बाहर रखने में मदद की।
उधर अमेरिका में आइजनहाॅवर के बाद कैनेडी नये राष्ट्रपति बने थे जिन्होंने पहले आइजनहाॅवर की नीतियों की आलोचना और क्यूबाई क्रान्ति की प्रशंसा की थी। उनके पदभार ग्रहण करने के तीन महीनों के भीतर ही क्रान्ति को खत्म करने का सीआईए प्रायोजित हमला किया गया जिसे बे आॅफ पिग्स के आक्रमण के नाम से जाना जाता है। चे, फिदेल और क्यूबाई क्रान्ति की प्रहरी जनता की वजह से ये हमला नाकाम रहा। सारी दुनिया में अमेरिका की इस नाकाम षड्यंत्र की पोल खुलने से, बदनामी हुई। तब कैनेडी ने बयान जारी किया कि यह हमला सरकार की जानकारी के बगैर और क्यूबा के ही अमेरिका में रह रहे असंतुष्ट नागरिकों का किया हुआ है, जिसकी हम पर कोई जिम्मेदारी नहीं है।

कम्युनिस्ट कहलाना हमारे लिए गौरव की बात हैः फिदेल (1965)

उधर, दूसरी तरफ फिदेल को भी 1961 में बे आॅफ पिग्स के हमले के बाद यह समझ में आने लगा था कि अमेरिका क्यूबा को शांति से नहीं रहने देगा। पहले जो फिदेल अपने आपको कम्युनिज्म से दूर और तटस्थ बता रहे थे, दो साल बाद एक मई 1961 को फिदेल ने अपनी जनता को संबोधित करते हुए कहा कि ’हमारी शासन व्यवस्था समाजवादी शासन व्यवस्था है और मिस्टर कैनेडी को कोई हक नहीं कि वे हमें बताएँ कि हमें कौन सी व्यवस्था अपनानी चाहिए, हम सोचते हैं कि खुद अमेरिका के लोग भी किसी दिन अपनी इस पूँजीवादी व्यवस्था से थक जाएँगे।’
1961 की दिसंबर को उन्होंने एक साक्षात्कार में कहा कि ’मैं हमेशा माक्र्सवादी-लेनिनवादी रहा हूँ और हमेशा रहूँगा।’
तब तक भी फिदेल और चे वक्त की नब्ज को पहचान रहे थे। चे ने इस दौरान सोवियत संघ, चीन, उत्तरी कोरिया, चेकोस्लावाकिया और अन्य देशों की यात्राएँ कीं। चे को अमेरिका की ओर से इतनी जल्द शांति की उम्मीद नहीं थी इसलिए क्यूबा की क्रान्ति को बचाये रखने के लिए उसे बाहर से समर्थन दिलाना बहुत जरूरी था। क्यूबा तक आने वाली जरूरी सामग्रियों के जहाज रास्ते में ही उड़ा दिए जाते थे और क्यूबा पर अमेरिका के हवाई हमले कभी तेल संयंत्र उड़ा देते थे तो कभी क्यूबा के सैनिक ठिकानों पर बमबारी करते थे। बेहद हंगामाखेज रहे कुछ ही महीनों में इन्हीं परिस्थितियों के भीतर अक्टूबर 1962 में सोवियत संघ द्वारा आत्मरक्षा के लिए दी गई एक परमाणु मिसाइल का खुलासा होने से अमेरिका ने क्यूबा पर अपनी फौजें तैनात कर दीं। उस वक्त बनीं परिस्थितियों ने विश्व को नाभिकीय युद्ध के मुहाने पर ला खड़ा किया था। आखिरकार सोवियत संघ व अमेरिका के बीच यह समझौता हुआ कि अगर अमेरिका कभी क्यूबा पर हमला न करने का वादा करे तो सोवियत संघ क्यूबा से अपनी मिसाइलें हटा लेगा।
अंतर्राष्ट्रीय घटनाक्रम और परिस्थितियों के भीतर अपना कार्यभार तय करते हुए अंततः 3 अक्टूबर 1965 को फिदेल ने साफ तौर पर पार्टी का नया नामकरण करते हुए उसे क्यूबन कम्युनिस्ट पार्टी का नया नाम दिया और कहा कि कम्युनिस्ट कहलाना हमारे लिए फ़ख्ऱ और गौरव की बात है।

-विनीत तिवारी
मोबाइल : 09893192740

(क्रमश:)

3.6.10

लो क सं घ र्ष !: नये मनुष्य, नये समाज के निर्माण की कार्यशाला: क्यूबा -2

दूसरे विश्वयुद्ध के बाद हालात और खराब हुए। बटिस्टा ने क्यूबा को अमेरिका से निकाले गए अपराधियों की पनाहगाह बना दिया। बदले में अमेरिकी माफिया ने बटिस्टा को अपने मुनाफों में हिस्सेदारी और भरपूर ऐय्याशियाँ मुहैया कराईं। उस दौर में क्यूबा का नाम वेश्यावृत्ति, कत्ले आम, और नशीली दवाओं के कारोबार के लिए इतना कुख्यात हो चुका था कि 22 दिसंबर 1946 को हवाना के होटल में कुख्यात हवाना कांफ्रेंस हुई जिसमें अमेरिका के अंडर वल्र्ड के सभी सरगनाओं ने भागीदारी की। यह सिलसिला बेरोक-टोक चलता रहा।
1955 में बटिस्टा ने ऐलान किया कि क्यूबा किसी को भी जुआघर खोलने की इजाजत दे सकता है बशर्ते कि वह व्यक्ति या कंपनी क्यूबा में होटल उद्योग में 10 लाख अमेरिकी डालर का या नाइट क्लब में 20 लाख डाॅलर का निवेश करे। इससे अमेरिका में कैसिनो के धंधे में नियम कानूनों से परेशान कैसिनो मालिकों ने क्यूबा का रुख किया। जुए के साथ तमाम नये किस्म के अपराध और अपराधी क्यूबा में दाखिल हुए। अमेरिका के प्रति चापलूस रहने में बटिस्टा का फायदा यह था कि अपनी निरंकुश सत्ता कायम रखने के लिए उसे अमेरिका से हथियारों की अबाध आपूर्ति होती थी। यहाँ तक कि अमेरिकी राष्ट्रपति आइजनहाॅवर के जमाने में क्यूबा को दी जाने वाली पूरी अमेरिकी सहायता हथियारों के ही रूप में होती थी। एक तरह से ये दो अपराधियों का साझा सौदा था।
आइजनहाॅवर की नीतियों का विरोध खुद अमेरिका के भीतर भी काफी हो रहा था। आइजनहाॅवर के राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी और उनके बाद अमेरिका के राष्ट्रपति बने जाॅन एफ0 कैनेडी ने आइजनहाॅवर की नीतियों की आलोचना करते हुए कहा थाः ’सारी दुनिया में जिन देशों पर भी उपनिवेशवाद हावी है, उनमें क्यूबा जितनी भीषण आर्थिक लूट, शोषण और अपमान किसी अन्य देश का नहीं हुआ है, और इसकी कुछ जिम्मेदारी बटिस्टा सरकार के दौरान अपनाई गई हमारे देश की नीतियों पर भी है।’ इसके भी आगे जाकर आइजनहाॅवर की नीतियों की आलोचना करते हुए कैनेडी ने क्यूबा की क्रान्ति का व फिदेल और उनके क्रान्तिकारी साथियों का समर्थन भी किया।
लेकिन यह समर्थन वहीं खत्म भी हो

गया जब उन्हें समझ आया कि क्यूबा की क्रांति सिर्फ एक देश के शासकों का उलटफेर नहीं, बल्कि वह एक नये समाज की तैयारी है और पूँजीवाद के बुनियादी तर्क शोषण के ही खिलाफ है, और इसीलिए उस क्रान्ति को समाजवाद के भीतर ही अपनी जगह मिलनी थी।
बटिस्टा सरकार के दौरान जो हालात क्यूबा में थे, उनके प्रति एक ज़बर्दस्त गुस्सा क्यूबा की जनता के भीतर उबल रहा था। फिदेल कास्त्रो के पहले भी बटिस्टा के तख्तापलट की कुछ नाकाम कोशिशें हो चुकी थीं। विद्रोही शहीद हुए थे और बटिस्टा और भी ज्यादा निरंकुश। खुद अमेरिका द्वारा माने गये आँकड़े के मुताबिक बटिस्टा ने महज सात वर्षों के दौरान 20 हजार से ज्यादा क्यूबाई लोगों का कत्लेआम करवाया था। इन सबके खिलाफ फिदेल के भीतर भी गहरी तड़प थी। जब फिदेल ने 26 जुलाई 1953 को मोंकाडा बैरक पर हमला बोल कर बटिस्टा के खिलाफ विद्रोह की पहली कोशिश की थी तो उसके पीछे यही तड़प थी। अगस्त 1953 में फिदेल की गिरफ्तारी हुई और उसी वर्ष उन्होंने वह तकरीर की जो दुनिया भर में ’इतिहास मुझे सही साबित करेगा’ के शीर्षक से जानी जाती है। उन्हें 15 वर्ष की सजा सुनायी गई थी लेकिन दुनिया भर में उनके प्रति उमड़े समर्थन की वजह से उन्हें 1955 में ही छोड़ना पड़ा। 1955 में ही फिदेल को क्यूबा में कानूनी लड़ाई के सारे रास्ते बन्द दिखने पर क्यूबा छोड़ मैक्सिको जाना पड़ा जहाँ फिदेल पहली दफा चे ग्वेवारा से मिले। जुलाई 1955 से 1 जनवरी 1959 तक क्यूबा की कामयाब क्रान्ति के दौरान फिदेल ने राउल कास्त्रो, चे और बाकी साथियों के साथ अनेक छापामार लड़ाइयाँ लड़ीं, अनेक साथियों को गँवाया लेकिन क्यूबा की जनता और जमीन को शोषण से आजाद कराने का ख्वाब एक पल भी नजरों से ओझल नहीं होने दिया।

-विनीत तिवारी
मोबाइल : 09893192740

(क्रमश:)

Hum Do : Abhi Na Jao Chhod Kar Ke Dil Abhi Bhara Nahi

2.6.10

लो क सं घ र्ष !: नये मनुष्य, नये समाज के निर्माण की कार्यशाला: क्यूबा -1

1959 में जब क्यूबा में सशस्त्र संघर्ष द्वारा बटिस्टा की सरकार को अपदस्थ करके फिदेल कास्त्रो, चे ग्वेवारा और उनके क्रान्तिकारी साथियों ने क्यूबा की जनता को पूँजीवादी गुलामी और शोषण से आजाद कराया तो उसके बाद मार्च 1960 में माक्र्सवाद के दो महान विचारक और न्यूयार्क से निकलने वाली माक्र्सवादी विचार की प्रमुखतम् पत्रिकाओं में से एक के संपादकद्वय पॉल स्वीजी और लिओ ह्यूबरमेन तीन हफ्ते की यात्रा पर क्यूबा गए थे। अपने अध्ययन, विश्लेषण और अनुभवों पर उनकी लिखी किताब ’क्यूबाः एनाटाॅमी आॅफ ए रिवाॅल्यूशन’ को वक्त के महत्त्व के नजरिये से पत्रकारिता, और गहरी तीक्ष्ण दृष्टि के लिए अकादमिकता के संयोग का बेहतरीन नमूना माना जाता है। आज भी क्यूबा को, वहाँ के लोगों, वहाँ की क्रान्ति और हालातों को समझने का यह एक ऐतिहासिक दस्तावेज है। बहरहाल, अपनी क्यूबा यात्रा की वजह से उन्हें अमेरिकी सरकार और गुप्तचर एजेंसियों के हाथों प्रताड़ित होना पड़ा था। ऐसे ही मौके पर दिए गए एक भाषण के कारण 7 मई 1963 को उन्हें अमेरिका विरोधी
गतिविधियों में लिप्त होने और क्यूबा की अवैध यात्रा करने और कास्त्रो सरकार के प्रोपेगंडा अभियान का हिस्सा होने के इल्जाम में एक सरकारी समिति ने जवाब-तलब किया था। वह पूछताछ स्मृति के आधार पर प्रकाशित की गई थी। उसी के एक हिस्से का हिन्दी तर्जुमाः
सवालः यह मंथली रिव्यू में 1960 से 1963 के दौरान क्यूबा पर प्रकाशित लेखों की एक सूची है। क्या यह सही है?
जवाबः यह सही तो है, लेकिन अधूरी है। हमने क्यूबा पर इससे ज्यादा लेख छापे हैं।
सवालः क्या इन लेखों को छापने के लिए आपको क्यूबाई सरकार ने कहा था?
जवाबः हर्गिज नहीं। हमने ये लेख अपने विवेक से प्रकाशित किए क्योंकि हमारी दिलचस्पी लम्बे समय से इस बात में है कि गरीबी, बेरोजगारी, बीमारी, अशिक्षा, रिहाइश के खराब हालात और अविकसित देशों में महामारी की तरह मौजूद असंतुलित अर्थव्यवस्था से उपजने वाली जो बुराइयाँ हैं, उनसे किस तरह निजात पाई जा सकती है। क्यूबा में क्रान्ति की गई और इन समस्याओं को हल किया गया। लैटिन अमेरिका के दूसरे देशों में ये बुराइयाँ अभी भी मौजूद हैं। सारे अविकसित लैटिन अमेरिकी देशों में सिर्फ एक ही देश है जहाँ ये बुराइयाँ खत्म की जा सकीं, और वह है क्यूबा।
सवालः क्या आप लैटिन अमेरिका के देशों में कम्युनिस्ट कब्जे/ तख्तापलट की हिमायत कर रहे हैं?
जवाबः मैंने ऐसा नहीं कहा बल्कि आपने कहा। मैंने कहा कि ये सारी बुराइयाँ सभी अविकसित देशों के लिए बड़ी समस्याएँ हैं, जिनमें लैटिन अमेरिका के देश भी शामिल हैं, और मेरे खयाल से इन समस्याओं का हल उस तरह के इंकलाब से निकलेगा, जो फिदेल कास्त्रो ने क्यूबा में किया है।
प्रसंगवश मैं ये भी बता दूँ कि लैटिन अमेरिका के लिए इस तरह के इंकलाब की तरफदारी मैं तब से कर रहा हूँ जब फिदेल कास्त्रो की उम्र सिर्फ करीब 10 बरस रही होगी।
सवालः क्या आप क्यूबा की कम्युनिस्ट सरकार के प्रोपेगैंडिस्ट (प्रचारक) हैं?
जवाबः मैं क्यूबा की ही नहीं, किसी भी सरकार का, या किसी पार्टी का या किसी और संगठन का प्रोपेगैंडिस्ट नहीं हूँ, लेकिन हाँ, मैं प्रोपेगैंडिस्ट हूँ-सच्चाई का।
इसके भी पहले लिओ ह्यूबरमैन ने जून 1961 में दिए एक भाषण में जो कहा था, वह आज भी प्रासंगिक है।
’’मैं एक क्षण के लिए भी स्वतंत्र चुनावों, अभिव्यक्ति की आज़ादी या प्रेस की आज़ादी के महत्त्व को कम नहीं समझता हूँ। ये उन लोगों के लिए बेहद जरूरी और सबसे महत्त्वपूर्ण आज़ादियाँ हैं जिनके पास खाने के लिए भरपूर है, रहने, पढ़ने-लिखने और स्वास्थ्य की देखभाल करने के लिए अच्छी सुविधाएँ हैं, लेकिन इन आजादियों की जरूरत उनके लिए सबसे पहली नहीं है जो भूखे हैं, निरक्षर हैं, बीमार और शोषित हैं। जब हममें से कुछ भरे पेट वाले खाली पेट वालों को जाकर यह कहते हैं कि उनके लिए मुक्त चुनाव सबसे बड़ी जरूरत हैं तो वे नहीं सुनेंगे; वे बेहतर जानते हैं कि उनके लिए दुनिया में सबसे ज्यादा जरूरी क्या है। वे जानते हैं कि उनके लिए सबसे ज्यादा और किसी भी और चीज से पहले जरूरी है रोटी, जूते, उनके बच्चों के लिए स्कूल, इलाज की सुविधा, कपड़े और एक ठीक-ठाक रहने की जगह। जिंदगी की ये सारी जरूरतें और साथ में आत्म सम्मान-ये क्यूबाई लोगों को उनके समूचे इतिहास में पहली बार हासिल हो रहा है। इसीलिए, जो जिंदगी में कभी भूखे नहीं रहे, उन्हेें ताज्जुब होता है कि वे (क्यूबा के लोग) कम्युनिज्म का ठप्पा चस्पा होने से घबराने के बजाय उत्साह में ’पैट्रिया ओ म्यूर्ते’ (देश या मौत) का नारा क्यों लगाते हैं।’’
जुल्म जब हद से गुजर जाए तो
1959 में क्यूबा में क्रान्ति होने के पहले तक बटिस्टा की फौजी तानाशाही वाली अमेरिका समर्थित सरकार थी। बटिस्टा ने अपने शासनकाल के दौरान क्यूबा को वहशियों की तरह लूटा था। अन्याय के खिलाफ आवाज उठाने पर ही नहीं, शासकों के मनोरंजन के लिए भी वहाँ आम लोगों को मार दिया जाता था। अमेरिका के ठीक नाक के नीचे होने वाले इस अन्याय को अमेरिकी प्रशासन देखकर भी अनदेखा किया करता था क्योंकि एक तो क्यूबा के गन्ने के हजारों हेक्टेयर खेतों पर अमेरिकी कंपनियों का कब्जा था, चारागाहों की लगभग सारी ही जमीन अमेरिकी कंपनियों के कब्जे में थी, क्यूबा का पूरा तेल उद्योग और खनिज संपदा पर अमेरिकी व्यावसायिक घराने ही हावी थे। वे हावी इसलिए हो सके थे क्योंकि फौजी तानाशाह बटिस्टा ने अपने मुनाफे के लिए अपने देश का सबकुछ बेचना कबूल कर लिया था।

-विनीत तिवारी
मोबाइल : 09893192740

(क्रमश:)