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1.6.10

हिन्दु मैरिज एक्ट मे संशोधन होना जरूरी : फरमाणा

सफीदों, (हरियाणा) : देश की संस्कृति को बचाए रखने के लिए हिन्दु मैरिज एट मे संशोधन होना जरूरी है। यह बात पूर्व विधायक एवं राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी वरिष्ठ नेता सुखबीर सिंह फरमाणा ने पत्रकारों से बातचीत में कहीउन्होंने बताया कि यदि सरकार ने हिन्दु मैरिज एट मे सर्वखाप पंचायतों की मांग के अनुसार संशोधन नहीं किया तो सभी खापों के लोग संसद को घेरने के तैयारी करेंगे। इसके लिए उन्होंने आगामी २१ जून को अनेक खाप नेताओं की सहमति पर सोनीपत में प्रदेश स्तरीय बैठक बुलाई है जिसमे समीपवर्ती राज्यों राजस्थान, उत्तरप्रदेश दिल्ली के भी अनेक खाप नेता भाग लेंगे। फरमाणा ने कहा कि एक ही गोत्र गांव में शादी के विरोध में जन आंदोलन तैयार कि या जाएगा और अब तक के प्रयासों मे लोग इस दिशा मे अत्यंत उत्साहित हैं क्योंकि गैर जिमेदाराना अनैतिक संबंधों को न्यायपालिका पुलिस प्रशासन द्वारा दिया जा रहा संरक्षण हिन्दु समाज के लिए गंभीर चुनौती बनता जा रहा है। उन्होंने कहा कि ऐसे नाजायज संरक्षण के चलते युवा पीढ़ी के अनेक लोग भ्रमित होकर हमारी संस्कृति को मिटाने पर तुले हैं लेकिन सर्वखाप पंचायतों के आंदोलन का यह सुखद पहलू है कि खाप पंचायतों के आंदोलन को युवा पीढ़ी का भी बड़े पैमाने पर समर्थन हासिल हो रहा है। उन्होंने कहा कि हमारें समाज मे संबंधों की पवित्रता को कायम नहीं रखा गया तो कयामत ज्यादा दूर नहीं है।

पुलिस ने किया गांव स्तर पर क्राइम फ्री कमेटी का गठन

ग्रामीण क्षेत्रों को क्राइम मुक्त बनाने की कवायद
सफीदों, (हरियाणा) : सफीदों पुलिस क्षेत्र से क्राइम के खातमें को लिए हर दिन नएनए प्रयोग कर रही है। इसी कड़ी में सफीदों पुलिस ने ग्रामीण क्षेत्र को क्राइम मुक्त करने के लिए एक नई पहल की है। इस पहल में सबसे पहले पुलिस ने निकटवर्ती रामपुरा गांव को चुना। पुलिस ने रामपुरा गांव को क्राइम फ्री बनाने के लिए बारह सदस्यीय कमेटी गठित की है। सबसे अहम बात यह है कि इस कमेटी में गांव के हर वर्ग के लोगों को शामिल किया गया है। यह कमेटी न सिर्फ गांव में क्राइम को रोकेगी, बल्कि गांव के विकास में भी अहम भूमिका निभाएगी। सफीदों थाना प्रभारी दलीप सिंह ने बताया कि पुलिस हमेशा समाज में शांति एवं व्यवस्था बनाए रखने के लिए प्रयासरत रहती है, लेकिन फिर भी गांवों में क्राइम बढ़ता ही जा रहा है। उन्होंने बताया कि ग्रामीण क्षेत्र को क्राइम फ्री बनाने के लिए पुलिस विभाग ने विशेष पहल की है, जिसमें हलके के सभी गांवों में क्राइम फ्री कमेटियों का गठन किया जाएगा। इसी के मद्देनजर रामपुरा गांव में बारह सदस्यीय कमेटी का गठन किया गया है। उन्होंने बताया कि इस कमेटी में पूर्व सरपंच हरभजन सिंह, सुरेंदर सिंह, रणजीत सिंह, जसवंत सिंह, गुरभजन सिंह, जिलाराम, धर्मा, हरभजन सिंह, रोशनलाल, रमेश सैनी, इकबाल व कुशदीप सिंह को शामिल किया गया है। उन्होंने बताया ये कमेटी पुलिस और पलिक के बीच तालमेल बनाने के लिए अहम भूमिका निभाएगी। जल्द ही क्षेत्र के सभी गांवों में इन कमेटियों का गठन किया जाएगा।

राईस सैलर में आग लगने से चावल व बारदाना जलकर राख

सफीदों, (हरियाणा) : सफीदों के एक राईस सैलर में अचानक भयंकर आग लगने से लाखों रूपए का चावल बारदाना जलकर स्वाहा हो गया। मिली जानकारी के अनुसार सफीदों के हाट रोड़ पर स्थित आर.एस.एस.के. राईस सैलर में हर रोज की भांति कार्य चल रहा था कि अचानक एक मजदूर ने सैलर मालिकों को सूचना दी कि गोदाम से धूआ निकल रहा है। धुंआ निकलने की बात सुनकर सैलर मालिकों की पैरों तले की जमीन खिसक गई। वे आननफानन में गोदाम की तरफ दौड़े तथा गोदाम खोलकर देखा तो पाया कि गोदाम से धुंए के गुबार उठ रहे थे।सैलर मालिकों ने इसकी सूचना सफीदों फायर बिग्रेड को दी। सूचना मिलते ही सफीदों फायर बिग्रेड मौके पर पहुंची। आग बुझाने के काफी प्रयास किए लेकिन आग पर काबू नहीं पाया जा सका। आग पर काबू ना आता देखकर असंध अन्य स्थानों पर फायर ब्रिगेड को सूचित किया गया। सूचना मिलने पर असंध अन्य स्थानों से फायर ब्रिगेड ने मौके पर पहुंची। संयुक्त प्रयासों से कई घंटों की मशक्कत के बाद आग पर काबू पाया जा सका। राईस सैलर के मालिक अशोक कुमार ने बताया कि इस घटना में उनका लाखों रूपए का चावल बारदाना जलकर राख हो गया है। आग लगने का कारण गोदाम में बिजली का सार्ट सर्किट होना बताया जाता है।

लो क सं घ र्ष !: ब्लॉग उत्सव 2010

सम्मानीय चिट्ठाकार बन्धुओं,

सादर प्रणाम,

आज दिनांक 31.05.2010 को परिकल्पना ब्लोगोत्सव-2010 के अंतर्गत बीसवें दिन के कार्यक्रम का लिंक -

ब्लोगोत्सव की आखिरी परिचर्चा : क्या आत्मा अमर है ?

http://www.parikalpnaa.com/2010/05/blog-post_31.html

ुमन सिन्हा की कविता : तुम्हारे नामhttp://utsav.parikalpnaa.com/2010/05/blog-post_4302.html

मैं पुनर्जन्म नही मानता : कर्नल अजय कुमार http://www.parikalpnaa.com/2010/05/blog-post_607.html

बसंत आर्य की लघुकथा : खिडकियाँ

http://utsav.parikalpnaa.com/2010/05/blog-post_31.html

कई उदहारण भी हैं....जिससे यह प्रमाणित होता हैं कि पुनर्जन्म है : नवीन कुमार

http://www.parikalpnaa.com/2010/05/blog-post_4928.html

दिविक रमेश की दो

http://utsav.parikalpnaa.com/2010/05/blog-post_943.html

मेरे विचार से पुनर्जन्म होता है : वंदना श्रीवास्तव http://www.parikalpnaa.com/2010/05/blog-post_7060.html

रजिया मिर्ज़ा का संस्मरण : सलाम एक ग़रीब की महानता को

http://utsav.parikalpnaa.com/2010/05/blog-post_6910.html

हाँ कुछ है जिसे हम पुनर्जन्म कह सकते है...क्या आप मानते है??" : नीता

http://www.parikalpnaa.com/2010/05/blog-post_9978.html

मंजू गुप्ता की कविताएँ

http://utsav.parikalpnaa.com/2010/05/blog-post_1803.html

मेरे लिए मेरा अनोखा बंधन ही पुनर्जन्म है ... प्रीती मेहता http://www.parikalpnaa.com/2010/05/blog-post_3367.html

कारगिल के शहीदों को नमन :पवन चन्दन की कविता

http://utsav.parikalpnaa.com/2010/05/blog-post_3928.html


utsav.parikalpnaa.com

अंतरजाल पर परिकल्पना के श्री रविन्द्र प्रभात द्वारा आयोजित ब्लॉग उत्सव 2010 लिंक आप लोगों की सेवा में प्रेषित हैं।

-सुमन
loksangharsha.blogspot.com

31.5.10

लो क सं घ र्ष !: बुलबुल-ए-बे-बाल व पर -2

(पंखहीन बुलबुल)

जैसा कि ऊपर बताया गया ज़फ़र को मुल्क व दौलते-बादशाही बस नाम को ही मिली थी, वे सूरत ए हाल से बखूबी वाकिफ़ थे लेकिन उनके पास करने को कुछ नहीं था क्योंकि उस अहद में ज़माने ने ख़ासतौर पर हिन्दुस्तान के लिए और आमतौर पर आलमे मशरिक़ के लिए कुछ ऐसी करवट पलटी थी जैसा कि आजकल मौजूदा दौर में फिर पलटने लगा है। उसको सँभालना उन बुलबुले बे बालो पर के लिए ना मुमकिन था क्योंकि वे एक ऐसी हालत में थे कि दस्ते दुआ भी दराज़ करें कज़ाए इलाही को नहीं बदल सकते थे:-
दिखाती है जो शमशीर-ए- कज़ा अपनी जबरदस्ती।
नहीं दस्ते दुआ की काम आती, है सिपर दस्ती। (ढाल)
ज़फ़र की उल्टी क़िस्मत इतनी बिगड़ी हुई थी कि कज़ा ए इलाही के सामने उनकी दुआएँ कुछ काम न आने के साथ-साथ जिनसे उनकी उम्मीदे वाबस्ता थीं वे उनसे कह रहे थे ‘‘पहले तुम मर तो लो फिर तुम्हारी उम्मीदें पूरी हो जाएँगी।’’
मैंने कहा कहो तो मसीहा तुम्हें कहूँ।
कहने लगे कि कहना अभी पहले मर तो लो।।
दरअसल वह अपनी इस हालत पर सरापा एहतेजाज है और कभी कभार उनका यह अन्दरूनी एहतेजाज (असंतोष) यूँ जाहिर होता है और वे सोने के पिंजड़े को टुकड़े-टुकड़े करना चाहते हैं और कहते हैं:-
क़फ़स के टुकड़े उड़ा दूँ, फड़क-फड़क कर आज।
इरादा मेरा असीरान-ए-(कैदी) हम नफस यूँ हैं।
लेकिन उनके पास लब-बस्ता (बँधे होठों से) एहतेजाज के सिवा कुछ भी नहीं है और वे बस एहतेजाज-ए मख़्फ़ी (गुप्त) कर पाते हैं क्योंकि वे किसी और के यानी अंग्रेजों के बस में हैं और उनके पेंशन ख़्वार, जिसकी याद दहानी अंग्रेज हर मौके पर कराया करते हैं। ज़फ़र खून के आँसू बहाते हुए कहते हैं-
जो उनकी जान पर गुज़रे है वह वही जाने।
ख़ुदा किसी को जहाँ में किसी के बस न करे।
किसी के बस होने को न चाहने के बावजूद उनको अपनी बेचारगी का सख्त एहसास है। वैसे भी ये बे बालो पर बुलबुल अपने पिंजड़े से निकलेगा तो क्या करेगा? उसमें उड़ने तक की हिम्मत व सलाहियत बाक़ी नहीं है-
ऐ असीरों अब न पर में ताक़ते परवाज़ है
क्या करोगे तुम निकल कर दाम से, बैठे रहो।
फिर उसी मानी में कहते हैं-
खोल दे सैय्याद तू खिड़की क़फ़स की शौक़ से।
बुलबुले बे-बालो-पर ज़ालिम किधर उड़ जाएगी।
बिल्कुल इसी तरह ज़फ़र की मुन्दरजाज़ील (निम्नलिखित) खूबसूरत ग़ज़ल में उस बुलबुले बे-बालो-पर की उदासी, बेचारगी और हालते पुर मलाल की उम्दा तस्वीर कसी की गईं है, वे यूँ फरमाते हैं -
सूफियों में हूँ न रिन्दो में न मय-ख़्वारों में हूँ।
ऐ बुतो बन्दा खुदा का हूँ, गुनहगारों में हूँ।।
मेरी मिल्लत है मोहब्बत मेरा मजहब इश्क है।
ख़्वाह हूँ मैं काफ़िरों में ख़्वाहदींदारों में हूँ।
सफ-ए-आलम पे मानिन्दे नगीं मिसले क़लम।
या सियह रूयों में हूँ या सियह कारों में हूँ।
न चढँू सर पर किसी के, न, मैं पाँवों पर पड़ूँ,
इस चमन के न गुलों में हूँ न मैं ख़ारों में हूँ।
सूरत ए तस्वीर हूँ मैं मयक़दा में दहर के,
कुछ न मदहोशों में हूँ मैं और न होशियारों में हूँ।
न मेरा मोनिस है कोई और न कोई ग़मगु़सार,
ग़म मेरा ग़मख़्वार है मैं ग़म के ग़मख़्वारों में हूँ।
जो मुझे लेता है फिर वह फेर देता है मुझे,
मैं अजब इक जिन्से नाकारा खरीदारों में हूँ।
खान-ए-सैय्याद में हूँ मैं तायर-ए-दार
पर न आज़ादों में हूँ न मैं गिरफ्तारों में हूँ,
ऐ ज़फ़र मैं क्या बताऊँ तुझसे जो कुछ हूँ सो हूँ,
लेकिन अपने फ़ख्र-ए-दीं के क़फ़स बरदारों में हूँ।
जफ़र एहतेजाज और तक़दीरे ए इलाही पर रज़ा के आलम में पेंचओ ताब खाते थे कि 1857 ई0 में अचानक हिन्दुस्तान में अंग्रेज़ों के खि़लाफ़ एक तूफान बरपा हुआ। मेरठ से बग़ावत करके अपने अंग्रेज अफसरों को क़त्ल करने वाले सिपाही देहली चले आए और देहली पर काबिज होने के बाद उन्होंने बहादुर शाह ज़फ़र को अपनी तह़रीक का लीडर मुक़र्रर किया। ज़फ़र सिन रशीदा (वयोवृद्ध) थे और बाद में उड़ाने वाली अफवाहों के मुताबिक अक़्ली लिहाज से माज़ूर भी थे लेकिन उसके बावजूद वह इस तहरीक के अंजाम का अंदाजा बखूबी कर रहे थे क्योंकि उन्हें अंग्रेजों की ताक़त और अपने आसपास में मौजूद इलाही बख्श जैसे लोगों के काबिले यक़ीन न होने का इल्म था इसलिए उन्होंने शुरू में बग़ावत करने वालों को रोकने की कोशिश की लेकिन जब उन्होंने देखा कि इस सैलाब को रोकना नामुमकिन हैं तो वे भी उसमें बेअख़्तियार बहने लगे। फिर बेशुमार लड़ाइयाँ र्हुइं। बहुत सारे मासूमों का खून बहाया गया, अंग्रेजों ने देहली पर कब्जा कर लिया और मुग़ल खानदान को नेस्तानाबूद करके हिन्दुस्तान पर हुक्मरानी करने लगे और बहादुर शाह की औलाद को क़त्ल करके शहर दिल्ली को बर्बाद कर दिया।

-ख़लील तौक़आर

अनुवादक-मो0 जमील शास्त्री
साभार-चहारसू पत्रिका
प्रकाशित-रावलपिण्डी, पाकिस्तान

( क्रमश: )

लो क सं घ र्ष !: बुलबुल-ए-बे-बाल व पर -1

(पंखहीन बुलबुल)

20 जनवरी 1858ई0 को बवक़्ते सुबह दीवाने ख़ास क़िला देहली। यह हिन्दुस्तान की तारीख़ के लिए एक अहम मोड़ है। हिन्दुस्तान को गु़लामी की ज़जीरों में जकड़ने के लिए एक आख़िरी चाल चली जा रही है। आज हिन्दुस्तान की आज़ादी की आख़िरी किरन तारीकी के हाथों मिटाई जा रही है और हिन्दुस्तान ग़ुलामी के एक तवील (लम्बे) दौर में क़दम रखता है।
इस दिन क़िला-देहली के दीवाने ख़ास में देहली के आख़िरी ताजदार और मुग़ल ख़ानदान के आख़िरी चिराग़ बहादुर शाह ज़फ़र के मुक़दमे का पहला-पहला इजलास शुरू होता है। प्रेसीडेंट, मेम्बरान, वकील-सरकार मौजूद हैं। मुल्ज़िम मुहम्मद बहादुर शाह साबिक़ (भूतपूर्व) शाह देहली को लाया जाता है।
इजलास के मुजतमअ़ (इकट्ठा) करने और लेफ्टिनेन्ट कर्नल डास को प्रेसीडेंट बनाने के एहकाम पेश होते और पढ़े जाते हैं। अफसरान मुतअय्यिना (नियुक्त) के नाम मुल्जिम की मौजूदगी में पढ़े जाते हैं।
मुल्जिम से अदालत का सवाल-आपको मौजूदा मेम्बरान जेवरी (पंचगण) व प्रेसीडेंट के मुक़दमे की समाअत (सुनवाई) करने में कोई एतराज है?
जवाब-मुझे कोई एतराज नहीं है।
दुनिया की ज़िन्दगी कितनी फ़रेबदह, कितनी झूठी है कि देखिए बाबरी ख़ानदान के आखिरी चश्मो चिराग़, दिल्ली के आखिरी ताजदार और मुल्के सुखन के शहसवार बहादुर शाहज़फ़र, आज 20 जनवरी 1858ई0 को अपने महल के दीवाने खास में एक समाअ़त में एक मामूली मुल्ज़िम की हैसियत से लाए जाते हैं और उनसे सवाल किया जा रहा है कि ‘‘मौजूदा मेम्बरान जेवरी और प्रेसीडेंट के मुकदमा की समाअ़त करने में कोई एतराज है?’’
वह कैसे एतराज करते? उनसे उनका मुल्क, उनका शहर, उनकी रैय्यत, उनका महल, उनकी औलाद, उनके दोस्त-यार, मुख़्तसर उनका सब कुछ ज़बरदस्ती छीन लिया गया था और पूछा तक नहीं गया था कि आपको कोई एतराज है कि नहीं?
हिन्दुस्तान किस तरह गुलामी की ज़ंजीरों में गिरफ्तार हुआ और एक बादशाह मामूली मुल्ज़िम की हैसियत से अजनबियों की अदालत में लाया गया, यह बात किसी से मख़्फ़ी (छिपी) नहीं है, लेकिन आइए एक ज़वाल पज़ीर (अवनति की ओर अग्रसर) सल्तनत के आखिरी तख्त नशीन होने की वजह से बअज़ो (कुछ लोगों) की निगाह में पैदाइशी मुजरिम उन शायर बादशाह की ज़िन्दगी के औराक़ (पन्ने) उनकी शायरी से भी मदद लेते हुए पल्टें और देखें कि क़ज़ाए इलाही (ख़ुदाई हुक्म) इंसान को कहाँ से कहाँ पहुँचाती है।
बहादुर शाह ज़फ़र का पूरा नाम अबू ज़फ़र सिराजुद्दीन मुहम्मद बहादुर शाह था। उनकी वलादत (जन्म) 28 शाबान 1189 हिजरी मुताबिक़ 14 अक्तूबर 1775ई0 को उनके वालिद अकबर शाह सानी (द्वितीय) की वली अहदी के ज़माने में अकबर शाह की हिन्दू बीबी लालबाई के बतन (उदर) से हुई थी। ज़फ़र की परवरिश उनके दादा शाह आलम सानी के जे़रे साया (आश्रय में) हुई थी जो कि बदनसीबी में अपने पोते से कुछ कम नहीं थे। 22 अक्तूबर 1764ई0 को बक्सर के मुक़ाम पर अंग्रेजों के सामने शिकस्त खाने के बाद 1788ई0 में ग़ुलाम क़ादिर नामी एक ज़ालिम के हुक्म से शाह आलम सानी की आँखें निकाल दी गईं, फिर मरहठों के हाथों वह सालहा साल गिरफ्तार रहे, तावक़्त ये कि लार्ड लैक की फौजों ने जमुना पार करके देहली पर कब्जा किया और उनको फिर अपनी बराये नाम बादशाहत मिली। यह बादशाहत 1807ई0 में बहादुर शाह के वालिद अकबर शाह सानी को मुन्तक़िल (हस्तान्तरित) हो गई। अकबर शाह सानी का ज़माना कुछ आराम व सुकून का ज़माना था लेकिन देहली के लाल किले पर मुस्तमिल (आधारित) इस बादशाहत के लिए भी साजिशें और चपकुलशें (हड़बोंग) थीं और ज़फ़र और उनके भाई मिर्जा जहाँगीर के दरम्यान वली अहदी (उत्तराधिकार) के लिए कुछ अरसा मुक़ाबिला जारी रहा। इस मुक़ाबिले में उनके वालिद अकबर शाह, मिर्जा जहाँगीर की तरफदारी कर रहे थे। ज़फ़र अपनी जिन्दगी के इस बड़े इम्तिहान में यक व तनहा थे और आस-पास में मौजूद लोग मुख़्लिस नहीं थे। जैसा कि एक शेर में वे रक़मतराज हैं (लिखते हैं):-
अहले दुनिया तो नहीं कुछ भी मुरव्वत रखते।
मुँह पे मिलते ये हैं दिल में अदावत रखते।।
लेकिन चूँकि अंग्रेज अपने दस्तूर के मुताबिक वली अहदी बादशाह के बड़े बेटे का हक समझते थे और बहादुर शाह ज़फ़र की वली अहदी मसलहतन और बिल्खुसूस खुद अंग्रेजों के मफ़ादात (लाभ) के लिए ज्यादा मुनासिब थी लिहाजा उन्होंने वली अहदी के मामले में ज़फ़र का साथ दिया और आस पास में कोई मुरव्वत वाले शख़्स के न मिलने के बावजूद ज़फ़र अंग्रेजों के ज़रिए मुक़ाबिले में कामियाब रहे। 1253 हिजरी बामुताबिक़ 1837ई0 में अकबर शाह सानी के इन्तिक़ाल पर 25 अक्टूबर 1837ई0 को बहादुर शाह ज़फ़र तख़्त नशीन हुए।
वह तख्तनशीन होने को तो हुए थे लेकिन उनकी बादशाहत बस लाल क़िला के दीवारों के अन्दर थी। एक तरफ सर पर अंगे्रजों की तलवार और दूसरी तरफ शाही ख़जाना के खाली होने की वजह से किला के बाहर साहूकारों का घेरा और वे उस नकली सोने के क़फ़स (पिंजड़ेे) के अन्दर एक बालो पर टूटे हूए बुलबुल की सूरत अपनी ज़िन्दगी बसर करने लगे। ज़फ़र को उनके अपने मुल्क में, उनके अपने शहर में और हत्ता कि उनके अपने क़िले के अन्दर सारे काम अंग्रेजों के जे़रे अस़र (अधीन) अंजाम देने पड़ते थे। दिल्ली शहर या महल में जो कुछ भी हो अंग्रेजों के दस्तकुर्द (हस्तक्षेप) से छुटकारा हासिल नहीं कर पाता था। इस सूरत ए हाल को ज़फ़र यूँ बयान करते हैं:-

तस्मा तस्मा कर दिया बस काटकर आशिक़ की खाल।
वह फिरंगी जा़दे कलकत्ता जो सीखा नापना।।

-ख़लील तौक़आर

अनुवादक-मो0 जमील शास्त्री
साभार-चहारसू पत्रिका
प्रकाशित-रावलपिण्डी, पाकिस्तान

( क्रमश: )

29.5.10

लो क सं घ र्ष !: लोकसंघर्ष के उत्तर - २ : दूसरे गांधी की हत्या कब करोगे

प्रिय सुनील दत्त जी आप के सवालों के जवाब दिए जा रहे हैं। एक गाँधी की हत्या आप की मानसिकता के लोगो ने कर दी थी। दूसरे गांधी की हत्या कब करोगे :-


• जिस तरह का लेख हिन्दूओं को अपमानित करने के लिए लख़नऊ ब्लॉजगर्स असोसिएशन पर लिखा गया अगरहिन्दू भी उस पर उसी तरह की प्रतिक्रिया करें जैसी मुसलमानों ने सिमोगा में की कई दिनों तक हिंसा फैलाकर वसमाचार पत्रों के कार्यालयों को जलाकर की तो फिर परिणाम स्वारूप मारे गए हिन्दूओं और मुसलामानों के कत्लके लिए क्या लख़नऊ ब्लॉगर्स असोसिएशन जिम्मेवारी लेने को तैयार है?
भगवान न करे ऐसी कोई हिंसा हो लेकिन अगर होती है तो फिर इस वात की क्या गारंटी है कि लोकसंघर्ष, विस्फोटकाम उस दंगे के लिए हिन्दूओं व सुरक्षावलों को जिम्मेवार ठहराकर मुसलमानों को अगले दंगे के लिए भड़कानाशुरू कर देंगे?

उत्तर : यह आपका मानसिक दिवालियापन है लखनऊ ब्लॉगर अस्सोकोअतिओन में क्या लिखा गया मेरी जानकारी में नहीं है। कम्युनिटी ब्लॉग पर काफी लोग सदस्य होते हैं जिनका इदेन्तिफ़िकतिओन भी नहीं किया जाता है यही हाल आपका भी है। मेरी समझ से आप प्रखर राष्ट्रवाद के प्रणेता सुनील दत्त जी हैं। लेकिन इसका इदेन्तिफ़िकतिओन मेरे पास नहीं है । विर्तुअल दुनिया में बहुत सारी चीजें यथार्त नहीं होती हैं यहाँ पर कोई किसी का जमानतदार नहीं है। रहा द्रष्टिकोण का सवाल आपका द्रष्टिकोण गलत है। आप की बात तय है की हर चीज हिन्दू मुसलमान के नजरिये से देखेंगे । इंसानी भाव आपमें नहीं है। अभी तक जहाँ जहाँ दंगे हुए हैं उसका प्रेरणा स्रोत्र नागपुर मुख्यालय रहा है।


• जिस तरह आप लोग गुजरात दंगो के लिए हिन्दूओं को शूली पर टांगने की बात कर रहे हैं अगर उसी तरह हिन्दूभी हिन्दूओं को जिन्दा जलाने वाले 2000 मुसलिम आतंकवादियों ( जो वास्तविक रूप से दंगों के असली गुनाहकारहैं ठीक उसी तरह जिस तरह अनवर जमाल और सलीमखान लगातार हिन्दूओं के आस्थ केन्द्रों पर हमला कर नए दंगे की भूमिका तैयार कर रहे हैं)को सूली पर टांगने के लिए अभियान शुरू कर दें जिन्होंने ट्रेन रोककर आग लगाईथी तो ?

उत्तर : गुजरात में नर पिशाचों ने इंसानों की हत्या की। यह आपका हिन्दू मुसलमान का द्रष्टिकोण उचित नहीं है गुजरात में राज सत्ता ने धर्म आधारित स्वरूप धारण कर स्वयं दंगो में भाग लिया था इसीलिए उसके कई अधिकारी कारागार में हैं। किसी भी घटना के अपराधियों का अंतिम निष्कर्ष न्यायपालिका द्वारा सजा देना ही संभव है। जो होता रहता है। अगर किसी ब्लॉग के ऊपर कोई किसी की आस्था को धक्का पहुंचा रहा है तो पोर्न साईट मान कर उसे मत देखने जाइये। एक दुसरे की आस्था और विश्वास को डगमगाने का काम आप लोग करते रहते हैं तो कभी एक सिद्धक होता है तो दूसरा साधक ।

• अगर विस्फोट काम वास्तब में मानबता की पक्षधर हैं तो 23 बर्ष पहले हुए मेरठ दंगों जिसके लिए भी मुसलिमआतंकवादी जिम्मेवार थे का दोष हिन्दूओं व सुरक्षावलों पर डालकर मुसलिम आतंकवादियों को फिर से दंगाभड़काने के लिए भूमिका तैयार करने का क्या मतलब ?
सच्चाई पढ़ो जरा।


"The Beginning of the Tragedy


Large scale rioting began in the early hours of May 19, 1987 and the maximum damage was done just in course of a few hours. On that fateful morning, thousands of people, already incited by inflammatory speeches and slogans broadcast over public address system in mosques, barricaded the national highway, burnt 14 factories, hundreds of shops and houses, vehicles, and petrol pump, and cast scores of people into flames. The sporadic Hindu reaction was revengeful. Meerut continued in flames between May 19 and May 22, with murder, loot, explosions, and wild rumours further fuelling violence. "


उत्तर : वैसे तो यह प्रश्न विस्फोट डॉट कॉम से आप ने पुछा है लेकिन मेरठ दंगो की वास्तविकता से परचित होने के कारण आपके सेवार्थ लिख रहा हूँ मैं अपने छात्र जीवन में मेरठ शहर के इस्लामाबाद मोहल्ले में रहा हूँ। पूरे मोहल्ले में अकेला मैं गैर मुस्लिम था शाम को अक्सर वहां की चाय की दुकानों पर तमाम सारे लोगों से बात चीत होती रहती थी और कभी कभी तीखी और उग्र बातचीत हो जाती थी लेकिन कभी भी मारपीट की नौबत नहीं आई बगल में गैर मुस्लिम व्यापारियों का मोहल्ला है एकी दुसरे से जम कर कारोबार भी करते हैं लेकिन जब हिंदुत्व वाले तबके और प्रसाशन का साथ एक साथ हो जाता है तब मुस्लिम व्यापारियों को दबाने के लिए दंगे हो जाते हैं इन दंगो में व्यापक जान माल की हानि होती है लूट होती है मैं मुस्लिम्स को कोई प्रमाण पात्र नहीं जारी कर रहा हूँ जैसे हमारे धर्म में हिन्दुवात्व वादी लोग हैं जो विदेशों से संचालित होते हैं उनके बीच में भी गैर जिम्मेदाराना लोग व विदेशों से संचालित होने वाले लोग हैं। स्थानीय स्तर पर वोटों के व्यापारी इन सब कामो में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेते हैं। सुरक्षा बालों विशेष कर पी.एस.सी के जवानो ने मलियाना मेरठ दंगो के बाद अपने घ रों को जो मनी आर्डर भेजे थे वह उनकी आय से अधिक थे। भैया सुनील दत्त सी.आइ.ए का प्रचार तंत्र मत बनो ।

• जिस तरह आप लोग हत्याओं की सालगिराह मनाने का चलन चला रहे हैं ठीक उसी चलन का पालन करते हुएअगर हिन्दू आज तक मुसलिम आतंकवादियों द्वारा की गई हिन्दूओं की हत्याओं की सालगिराह मनाना सुरू करदें तो ? उसके परिमामस्वारूप पैदा हुए बातबरण की बजह से होने वाली हत्याओं के लिए क्या विस्फोट कामजिम्मेवारी लेने को तैयार है अगर नहीं तो फिर ऐसी उकसाने वाली कार्यवाही क्यों ?


उत्तर: यह प्रश्न आपका विस्फोट डॉट कॉम से है जहाँ तक मेरी जानकारी है की भारतीय समाज में हत्याओं की सालगिराह मानाने का अभी तक कोई संचार प्राप्त नहीं हुआ हाँ यह जरूर है की हत्यारों के मरने पर लोग गम जरूर मना लेते हैं।

• जिस तरह आप गुजरात दंगो में हुई कुल 1500 हत्याओं के लिए सीधे हिन्दूओं व सुरक्षावलों को जिम्मेवारठहराते हैं क्या उसी तरह आपने कभी कशमीरघाटी में हुई 100000 मौतों व उजाड़े गए 500000 लोगों के लिएमुसलमानों व उनके सेकुलर नेताओं को कभी जिम्मेवार ठहराया क्या ?

उत्तर: गुजरात के दंगो में सीधे-सीधे वहां के मुख्यमंत्री और राज्य नियोजित दंगे थे। राज्य ने नियोजित तरीके से

अपने नागरिकों की हत्या की थी और आज भी उनके तमाम अधिकारी जेलों में हैं। कश्मीर के सम्बन्ध में आप के आंकड़े गलत हैं। कश्मीर घाटी में राज्य द्वारा कभी नागरिको का नियोजित हत्या नहीं किया गया है। लेकिन आप की आँखों का चस्मा हिन्दू और मुसलमान के रूप में देखने का आदि है इसलिए आप हर हत्या में हिन्दू मुसलमान ढूंढते रहते हैं जबकि मरता एक इंसान है।


• क्या आपने कभी सोचा कि क्यों वहीं पर दंगे होते हैं जहां पर हिन्दूओं की जनशंख्या कम होती है ?


उत्तर: बहुत सीधा सा उत्तर है जहाँ पर गैर हिन्दू आबादी हिन्दू ज्यादा है वहीँ पर हिंदुत्व वादी शक्तियां उनकी हत्या, लूटपाट करने की साजिशें रचती हैं और जैसे ही प्रसाशन के किसी अफसर का साथ मिलता है हत्याएं और लूट पात हो जाती हैं अगर प्रसाशन का सहयोग न मिले तो कहीं दंगा हो ही नहीं सकता है। मारना मुसलमान को होता है तो हिन्दू आबादी में षड्यंत्र क्यों रचा जायेगा।


• क्या आपने की सोचा कि अगर हिंसा हिन्दूओं ने फैलानी हो तो वो अपने बहुमत वाले क्षेत्रों में फैलायेंगे या फिरजहां वो कम हैं वहां पर ?


उत्तर : इससे पूर्व उत्तर दिया जा चुका है।

• आपको समझना चाहिए कि आज देश के कई ऐसे राज्य हैं जहां हिन्दूओं की जनशंख्या 90% से अधिक होने केवावजूद गैर हिन्दू मुख्यामन्त्री हुए हैं क्या ऐसी ही कल्पना लगभग 50% हिन्दू अबादी वाले जम्मू कसमीर में हिन्दूमुख्यमन्त्री होने की कर सकते हैं?

उत्तर: जम्मू एंड कश्मीर का राजा हरी सिंह था । जो ब्रिटिश साम्राज्यवाद के इशारों पर कार्य करता था लेकिन जंगे आजादी का योद्धा शेख अब्दुल्ला जम्मू कश्मीर को ब्रिटिश साम्राज्यवाद से आजाद कराने की लड़ाई लड़ रहा था। इस विषय में और अधिक जानना चाहते हैं तो कर्ण सिंह की आत्मकथा पढ़ लीजिये। जो हरी सिंह के लड़के हैं।


• अगर हिन्दू और मुसलमान एक जैसे हिंसक होते तो क्या 80% हिन्दू अबादी वाले सारे भारत से मुसलामनों कासफाया उसी तरह न कर दिया जाता जिस तरह कशमीर घाटी व उतर पूर्व के कई राज्यों से हिन्दूओं का सफायाकर दिया गया ?


उत्तर: हिंसा के लिए किसी एक धर्म को जिम्मेदार ठहराना उचित नहीं है । धर्म के नाम पर महाभारत रावण वध कलिंग विजय क्या आप भूल गए हैं । भारतीय सामंत राजा रजवाड़े छोटी छोटी बातों में एक दुसरे को नीचा दिखाने के लिए हमेशा युद्धरत ही रहते थे। आज भी प्यार करुना दया का सन्देश देने वाले हजरत ईशा का अनुयायी पूरी दुनिया में अपनी साम्राज्यवादी नीतियों के लिए सम्पूर्ण मानवता को नष्ट कर देने पर उतारू हैं। इतिहास के पन्नो को जरा ध्यान से देखिये मैं कुछ नहीं लिख रहा हूँ यह सब दर्ज है।

• क्या आपने आज तक कभी इस वात का विरोध किया कि बच्चों की छात्रवृतियों का आधार सांप्रदाए नहीं होनाचाहिए जो कि इस सेकुलर सरकार द्वारा वना दिया गया?


उत्तर: इस भ्रष्ट व्यवस्था में ना जाति के आधार पर कुछ होता हैं न धर्म के आधार पर कुछ होता है सब कुछ भ्रष्टाचार के साथ होता है हमारे छात्र जीवन में अनसुचित जाति की छात्र वृत्तियाँ सबसे जयादा सवर्ण जाति के छात्र फर्जी सरिफिकाते लगा के लेते थे। आरक्षण का खेल आपस में लड़ने का खेल है। इमानदारी से अगर दस सालों के लिए आरक्षण लागू किया गया होता तो उसको आगे बढ़ने की कटाई आवश्यकता नहीं थी। लेकिन हमारी नियत में खोट रही है इसलिए ये दिक्कतें पैदा होती हैं। विश्व स्तर पर जब हमारे देश का नाम आता है तो एक तबका अथाह सम्पदा का मालिक नजर आता है तो द्सुसरी तरफ गोबर से गेंहू निकाल कर खाने वाले लोग मिलते हैं। अगर आप चाहते हैं गोबर से गेंहू निकाल कर खाने वाले लोगों को उसी दशा में रहने दिया जाए तो आप की बार उचित है अन्यथा इमानदारी से अपने दिल पर हट रखकर उनके बारे में सोचिये फिर कोई सवाल नहीं उठेगा और उनके लिए कुछ करने की तमन्ना जागेगी।

• जिन बच्चों को आप सांप्रदाए के आधार पर बंचित करेंगे क्या वो कभी सर्वघर्मसम्भाव के रास्ते पर चल सकेंगे?


उत्तर: बच्चे बच्चे हैं हर बच्चे को उचित परवरिश पाने का अधिकार है आप ऐसी व्यवस्था के पोषक हैं जिसमें धीरू भाई अम्बानी, सुब्रत राय सहारा, जैसे लोग देखते ही देखते हजारो-हजार करों के स्वामी हो जाते हैं मेरा आपसे अनुरोध है की उनके जीवन परिचय को और अर्थशास्त्र को पुश्तकों में शामिल करवाइए ताकि उसको पढ़कर हर बच्चा धीरू भाई अम्बानी, सुब्रत राय सहर जैसे विशाल आर्थिक साम्राज्यों का मालिक बन सके।


• देखो मेरे भाई आज फूट डालो और राज करो की निती अपने चर्म पर है तो क्या आपकी कलम इस फूट डालो औरराज करो की निती के विरूद्ध नहीं चलनी चाहिए?


उत्तर: आप का लेखन उसी का हिस्सा है। आप साम्राज्यवादियो की इन्ही नीतियों का अनुसरण कर रहे हैं।


• अगर आप बास्तब में समझते हैं कि आतंकवादी सही हैं और सुरक्षाबल गलत तो फिर खुल के कहो न कि तुम आतंकवादियों के समर्थक हो फिर देखो जरा परिणाम क्या होता है?


उत्तर: कोई भी आतंकवादी लोकतान्त्रिक नहीं हो सकता है उसकी जितनी भी निंदा की जाए वह कम है लेकिन आतंकवादियों के नाम पर किसी समुदाय विशेष का मान मर्दन करना उचित नहीं होता है।

• जब देश सेकुलर है तो फिर देश में धर्म आधारित पाठशालाओं व उनको सरकारी सहयता का क्या मतलब?


उत्तर: यह आप राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ द्वारा संचालित सरस्वती शिशु मंदिर के प्रबंधको से पूछिए।

• जब देश सेकुलर है तो देश के मदरसों को आतंकवाद व अलगाववाद की जड़ साऊदी अरब से आर्थिक सहायताक्यों ?


उत्तर: ये सी.आइ.ए का प्रचार है विदेशी दान और चंदे सबसे ज्यादा विश्व हिन्दू परिषद्, राष्ट्री स्वयं सेवक संघ ले रहा है और जिसका समाज के हित में कोई उपयोग नहीं हो रहा है। देश की भावनात्मक एकता और अखंडता को तोड़ने के कार्य में खर्च हो रहा है।

• जब देश के मन्दिरों पर सरकार का कब्जा है तो फिर मसजिदें और चर्च सरकार के कब्जे में क्यों नहीं ?


उत्तर: मेरी जानकारी में कोई भी मंदिर सरकार नहीं संचालित कर रही है। हाँ , ट्रस्ट अगर है तो उसके विवाद में रिसीवर बैठाने का काम कर सकती है और करती है। सरकार तीर्थ यात्रियों की सुरक्षा के लिए काफी खर्च करती है चाहे तीर्थ यात्री किसी भी धर्म या समुदाय का हो। वैसे तो आपके तमाम सारे गुरुवों की चर्चाएं ब्लॉगजगत में हुई हैं लगता है उससे आपकी भी नाक ऊँची हुई होगी।

• .. जिन लोगों को भारत की सभ्यता संस्कृति, सुरक्षावलों, नयाय प्रक्रिया व संविधान पर कोई भरोशा नहीं तो क्याउनको आतंकवादियों की पनागाह पाकिस्तान या चीन जाकर नहीं बस जाना चाहिए?

उत्तर: श्रीमान जी, सभ्यता और संस्कृति को आप परिभाषित नहीं कर पा रहे हैं जब भारत की सभ्यताएं अनेकता में एकता पैदा करती हैं लेकिन आप चाहते हैं कबीर को, रसखान को, मालिक मोहम्मद जायसी को, अमीर खुसरो को, नजीर अकबराबादी की एक विशाल जमात को स्वर्ग से आप नीचे लाकर किस देश में भेजना चाहते हैं उनको नीचे लाने के लिए कोई उपाय सोचो तभी आप दूसरे देश में उनको भेज पायेंगे। वैसे यह लोग आपकी संकुचित विचारधारा से बहुत ऊपर हैं। आपकी विचारधारा का भारतीय सभ्यता और संस्कृति में कोई भी आधार रहा है न आज है अगर आप में थोड़ी क्षमता हो तो मुझे पकिस्तान या चीन भेजवा दें तो मैं आपका व्यक्तिगत रूप से आभारी रहूँगा।



सादर

सिर्फ आपका


सुमन

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