आप अपने क्षेत्र की हलचल को चित्रों और विजुअल समेत नेटप्रेस पर छपवा सकते हैं I सम्पर्क कीजिये सेल नम्बर 0 94165 57786 पर I ई-मेल akbar.khan.rana@gmail.com दि नेटप्रेस डॉट कॉम आपका अपना मंच है, इसे और बेहतर बनाने के लिए Cell.No.09416557786 तथा E-Mail: akbar.khan.rana@gmail.com पर आपके सुझाव, आलेख और काव्य आदि सादर आमंत्रित हैं I

29.5.10

लो क सं घ र्ष !: ब्लॉग उत्सव 2010

सम्मानीय चिट्ठाकार बन्धुओं,

सादर प्रणाम,


आज दिनांक 28.05.2010 को परिकल्पना ब्लोगोत्सव-2010 के अंतर्गत उन्नीसवें दिन के कार्यक्रम का लिंक -

तीन दिवसीय प्रथम अन्तराष्ट्रीय हिंदी ब्लॉग उत्सव लखनऊ में ....

http://www.parikalpnaa.com/2010/05/blog-post_28.html

यह प्रस्ताव केवल ब्लोगोत्सव-२०१० से जुड़े रचनाकारों एवं शुभचिंतकों हेतु है http://www.parikalpnaa.com/2010/05/blog-post_6266.html

मेरा व्यापार, यह अख़बार : डा. सुभाष राय

http://utsav.parikalpnaa.com/2010/05/blog-post_8411.html

राजेन्द्र स्वर्णकार की कविताएँ

http://utsav.parikalpnaa.com/2010/05/blog-post_3461.html

समान्तर मीडिया की दृष्टि से कितनी सार्थक है हिन्दी ब्लोगिंग ....... http://www.parikalpnaa.com/2010/05/blog-post_9843.html

मयंक सक्सेना की कविता

http://utsav.parikalpnaa.com/2010/05/blog-post_1140.html

कौन बनेगा वर्ष का श्रेष्ठ ब्लोगर ?

http://www.parikalpnaa.com/2010/05/blog-post_4332.html

बागवानी की एक शाम....

http://utsav.parikalpnaa.com/2010/05/blog-post_3173.html


utsav.parikalpnaa.com

अंतरजाल पर परिकल्पना के श्री रविन्द्र प्रभात द्वारा आयोजित ब्लॉग उत्सव 2010 लिंक आप लोगों की सेवा में प्रेषित हैं।

-सुमन
loksangharsha.blogspot.com

28.5.10

लो क सं घ र्ष !: और कुछ लोग भी अफ़साना बना देते हैं

कुछ तो होता हैं मुहब्बत में जुनूं के आसार
और कुछ लोग भी अफ़साना बना देते हैं।

आज कल ‘एलियन्स‘ को लेकर लोग ऊँची उड़ाने भर रहे हैं। जितने मुंह उतनी बातें कुछ जानना चाहते हैं, कुछ कहानियाँ बनाने और सुनाने में मज़ा ले रहे हैं। किसी भी प्रतिकूल स्वभाव वाले को या परदेशी को ‘एलेयिन‘ कह सकते हैं। लेकिन जब से इस मामले में विख्यात वैज्ञिानिक स्टीफन हाकिंस ने दख़ल दिया है, कल्पनावादियों को अपनी बातों को साबित करने का वैज्ञानिक आधार हाथ लग गया है।
हाकिंस ने तो केवल इतना कहा कि पृथ्वी से बाहर श्रभी जीवन मौजूद है। परन्तु हम को उनसे सम्पर्क के अभियान नही चलाना चाहिये। इतनी सी बात पर समाचार छपने शुरू हुए। एक उड़ान तश्तरी विशेषज्ञ जर्मनी के हार्टविग हासडार्फ ने तो एक किताब ही लिख दी जिसमें से दावा भी कर बैठे कि अमेरिका अतंरिक्ष एजेन्सी ‘नासा के एक अंतरिक्ष-यान का दूसरे ग्रह के प्राणियोें ने अपहरण कर लिया है।
आप जानते हैं मनुष्य जाति दो भागों-बुद्धि-प्रधान एवं भावना प्रधान में विभाजित हैं। हम बहुत समय से ये दुआ करते रहे हैं ‘तमसो या ज्योर्तिगमय‘ परन्तु यह अभी तक पूरी नहीं हुई, क्योंकि भावनाओं में बहने वालों की संख्या अब भी बहुत हैं। यही वह लोग हैं जिनको रहस्य व रोमांच में मज़ा आता है, यही ‘मुँहनोचवा‘ जैसी अफ़वाहों मे पंख लगते हैं। यही भूत-प्रेत, चुड़ैल, जिन, शैतान की कहानियाँ गढ़ते और सुनाते हैं। यही तंत्र-मंत्र, दुआ तावीज़ करने वालों के चक्कर में फंसते हैं।
चाँद एँव मंगल पर अनुसनंधान हेतु अनेक देशों नें बड़े-बड़े अंतरिक्ष अभियान चला रक्खे हैं, परन्तु अब भी उन पर सुक्ष्म जीवों के अस्तित्व की संभावना की चांच तक हम नहीं पहुँच सके हैं। यहाँ तक कि हम अभी यह भी सुनिश्चित नहीं कर पाये हैं कि वहाँ पानी है भी या भी नहीं ? पिछले ज़माने में अगर काल्पनिक उड़ानों में लोग तल्लीन थे, वे दास्ताने अमीर हमज़ा, क़सानये आज़ाद तथा चन्द्रकांता की कहानियों में विश्वास करते थे तब कोई हर्ज नहीं था परन्तु अब इस विज्ञान के युग में यदि लोग उसी स्तर पर रहें तो आश्चर्य की बात ज़रूर है।
अन्त में हम आपका थोड़ा सा ध्यान मोड़ते हैं। शायरी के क्षेत्र में कल्पना एँव अतिश्योक्रि चल सकती है, परन्तु सुपर अतिश्योक्रि कि लिये ‘पदमावत‘ में जायसी का एक दोहा देखिये ये मान्यता है युद्ध में इतनी धूल उड़ी कि पृथ्वी छै रह गई, आसमान आठ हो गये- सत खंड धरती भई खंडा-ऊपर अष्ट भए ब्रम्हांड।


-डा0 एस0एस0 हैदर

27.5.10

लो क सं घ र्ष !: लोकसंघर्ष से पूछे गए सवालों का जवाब

• जब भारत सेकुलर देश है तो फिर कानून सांप्रदाए के आधार पर क्यों?

भारत एक बहुजातीय, बहुधर्मीय देश है। संविधान इस बात की इजाजत देता है की आप अपने धार्मिक रीति रिवाजो के अनुसार अपनी जीवन शैली निर्धारित कर सकते हैं इसीलिए प्रत्येक धर्म वालों को अपने धार्मिक रीति रिवाजों के अनुसार रहने की स्वतंत्रता है। जब कोई धर्म के मानने वाले सरकार से अनुरोध करते हैं कि उनके समाज में यह कुरीतियाँ है और इनको हटाने के लिए कानून बनाया जाए तो सरकार कानून बनाती है। जैसे सती प्रथा, बाल विवाह और दहेज़ प्रथा जैसी कुरीतियों पर सरकार ने कानून बनाये।

• जब संविधान धर्म के आधार पर आरक्षण की मनाही करता है तो फिर मुसलमानों को धर्म के आधार पर आरक्षण की मांग क्यों ?

श्रीमान जी, भारत लोकतान्त्रिक देश है। लोकतान्त्रिक ढांचे के तहत हर समुदाय, हर धर्म वाले को अपनी बात कहने का हक़ है कोई जरूरी नहीं है कि वह मांग मानी ही जाए। वास्तव में संविधान पत्थर की लकीर नहीं है की जिसको संशोधित न किया जा सके भारतीय संविधान में कई बार संशोधन किये जा चुके हैं और भविष्य में होते रहेंगे। समाज जैसे जैसे आगे बढ़ता है आवश्यकताएं बदलती रहती हैं। समय और काल के अनुरूप संशोधन होते रहेंगे।


• जब भारत धर्म आधारित राज्य नहीं तो फिर अलपसंख्यकवाद का नारा क्यों?

क्या आप इसको मानने के लिए तैयार हैं। आप तो हिंदुत्व वादी विचारधारा के तहत इसको हिन्दू राष्ट्र बनाना चाहते हैं जबकि बहुसंख्यक हिन्दू आपके खिलाफ है क्योंकि हिन्दू धर्म में घृणा और द्वेष का कोई समावेश नहीं है सिर्फ नागपुर मुख्यालय से संचालित होने वाले लोग तरह-तरह के किस्से गढ़ा करते हैं। मर्यादा पुरषोत्तम राम और कर्मयोगी कृष्ण ने कहीं भी जो सवाल आप उठाते हैं उन्होंने उठाये हैं। आप तो सिर्फ घृणा और द्वेष फैला कर इस देश के नागरिको में परस्पर मारपीट कराकर देश को अस्थिर करना चाहते हैं। अगर कोई अल्पसंख्यकवाद या बहुसंख्यकवाद का नारा देता है तो वह देश का भला नहीं चाहता है।


• अगर गुजरात में आतंकवादियों द्वारा हिन्दूओं को जिन्दा न जलाया जाता तो गुजरात में दंगे होते क्या?

गुजरात में नर पिशाचों ने लोगो को जलाने का काम किया नर पिशाचों में हिन्दू मुसलमान, सिख, इसी ढूंढना मेरा काम नहीं है । इसके लिए अमेरिकन साम्राज्यवाद के पिट्ठू नागपुर मुख्यालय से संचालित होने वाले लोग ही काफी हैं।

• जब मक्का मदीना के लिए प्रति मुसलमान 60000 रूपए की सहायता सरकार देती है तो फिर हिन्दूओं की धार्मिक यात्राओं(बाबा अमरनाथ गुफा यात्रा,महाकुंभ यात्रा...) पर विशेष टैक्स क्यों?

बड़े नासमझ हैं आप अभी हरिद्वार में कुम्भ मेला चल रहा था ज्सिकी व्यवस्था करने में करोनो व अरबों रुपये खर्च किये गए है। जिसमें हिंदुत्व वाले ठेकेदारों ने काफी घोटाले भी किये हैं। राम की पवित्र नगरी अयोध्या में सरकार करोनो रुपये खर्च करती है। इस देश के नागरिक कहीं भी अपनी संस्कृति के अनुसार कोई भी आयोजन करते हैं तो सरकार का दायित्व है की वह आपने नागरिको के स्वास्थ्य, सुरक्षा की व्यवस्था करे। अमरनाथ की यात्रा का भारत सरकार ही कराती है अगर सिख भाई पकिस्तान में अपने धार्मिक तीर्थ स्थानों की यात्रा करते है तो सरकार थोडा ही सही कुछ न कुछ करती है।


• जब आतंकवादियों द्वार लगातार देश को लहुलुहान किया जा रहा है तो फिर उनके मानबधिकारों का रोना क्यों?

जब तक निर्धारित न्याय व्यवस्था के अनुसार किसी को सजा नहीं हो जाती है। तब तक आतंकवादी कहना ही गलत है। सजा हो जाने के बाद भी न्याय व्यवस्था के अनुसार उसकी सजा उसको दी जाती है लेकिन आप जैसे लोग हर समय गाली गलौज करते हैं। यह अधिकार आपको न संविधान न न्याय व्यवस्था देती है। जज की एक योग्यता होती है यदि वह योग्यता आप में होती तो आप जज होते और उस समय भी आप व्यवस्था तोड़ कर कोई कार्य नहीं कर पाते।

• क्या आम जनता व आम जनता की सुरक्षा के लिए लड़ रहे सुरक्षावलों के कोई मानबाधिकार नहीं?

श्रीमान जी, सबसे पहले उन्ही के मानव अधिकार है और उनका ही प्रमुख कार्य है कि वह मानव अधिकारों की सुरक्षा करें हमारा काम नहीं है लेकिन जब वह व्यवस्था तोड़ते हैं तो ऊँगली उठती है । और जो लोग आम जनता के खिलाफ विधि व्यवस्था का उल्लंघन करते हैं वह अपराधी होते हैं और उसकी सजा विधि के अनुसार मिलती है और मिलनी चाहिए।

• जब आप बार-बार कहते हैं कि हमारी न्यायप्रक्रिया कमजोर है तो फिर आम जनता के जानमाल को खतरे में डालने वाले आतंकवादियों को मुठभेड़ में मारे जाने पर हाए-तौवा क्यों?

शायद आप को जानकार नहीं है की इस देश के अन्दर मुठभेड़ के नाम पर लाखो नवजवानों का क़त्ल किया जा चुका है। लेकिन आप तो जानबूझ कर अनजान बनते हैं। आप को अनजान बनाने के लिए नागपुर मुख्यालय सक्रीय रहता है। आये दिन अखबारों में आप भी पढ़ते होंगे की फर्जी मुठभेड़ में मारे गए नवजवानों के सशक्त परिवार वालों द्वारा सजायें भी करवाई जा रही हैं। सनातन हिन्दू संस्था, श्री राम सेना, प्रज्ञा ठाकुर एंड कंपनी को यदि फर्जी मुठभेड़ में मार दिया जाये तो आप को कैसा महसूस होगा। विधि व्यवस्था द्वारा निर्धारित मौत के अतिरिक्त कोई भी मौत दुखद है।

• जब आपलोग भारत माता व हिन्दू देवीदेवताओं का अपमान करने वाले एम एफ हुसैन का समर्थन करते हैं तो फिर हजरत मुहम्मद का अपमान करने वाले डैनिस कलाकार का विरोध क्यों?

यह सवाल आप का हिन्दू देवताओं का अपमान करने वालों से है। उन्ही से उत्तर ले लीजिये ज्यादा अच्छी बात होगी। हमारे लिए चाहे हजरत मोहम्मद हों या हिन्दू देवी देवता हम लोग किसी का अपमान नहीं करते है। रही एम.ऍफ़ हुसैन का वह कलाकार है कृपया कला को रहने दीजिये हमारे घर के पास लोधेस्वर महादेव का धार्मिक स्थल है जहाँ पर लाखो कावांरथी आते हैं जो आदि देवता शिव और पार्वती के सम्बन्ध में गन्दी-गन्दी गालियाँ देते हैं । कवितायेँ कहते हैं हमारे यहाँ के लोग उनको रोक रोक कर जगह जगह नाश्ता पानी करते हैं और वह लोग अपने को शिव का बाराती कहते हैं तो कुछ लोग पार्वती की तरफ होते हैं जो उसका उसी भाषा में जवाब देते हैं। इसका क्या करोगे।


• जब अधिकतर दंगे मुसलिमबहुल क्षेत्रों में आतंकवादियों द्वारा शुरू किए जाते हैं तो फिर उनका दोष हिन्दूओं पर क्यों?

आप ही लोग जानबूझ कर उनकी आर्थिक सम्रधता को लूटने के लिए लड़ने जाते हैं। हमारा शहर मुस्लिम बाहुल्य है कभी दंगा नहीं हुआ है। लेकिन हिन्दुवात्व वाले लोग जबरदस्ती उनसे भिड़ने की कशिश करते हैं उसके बाद भी लड़ाई नहीं होती है। हमर जनपद बाराबंकी हिन्दू-मुस्लिम एकता के लिए पूरी दुनिया में मशहूर है। हमारे जनपद के श्री काशिम शाह ने 18 वी शताब्दी में हंस जवाहर नाम से पूरा राम चरित्र उर्दू भाषा में लिखा था वहीँ हाजी वारिस अली शाह की दरगाह भी प्यार मोहब्बत का सन्देश देती है दुनिया में सतनाम पीठ बाराबंकी से ही शुरू हुई है जिसके संस्थापक जगजीवन साहब हैं। कबीर की भी शिक्षाओं को बाराबंकी जनपद ने नई दिशा दी है । आप की हिंदुत्व वाली विचारधारा के पास सिर्फ एक काम है की हल्दी में राम राज, पीसी धनिया में घोड़े की लीद , नकली खादें व नकली दवाएं बेचने का ही काम है। अक्सर गिरफ्तार होकर जेल भी जाते रहते हैं।

• जब संविधान हर नागरिक को अपनी रक्षा करने का अधिकार देता है तो फिर आतंकवादियों द्वारा हमला किए जाने पर हिन्दूओं द्वारा इस संबैधानिक अधिकार का प्रयोग करने पर आपको आपती क्यों?

कोई भी हिन्दू या मुसलमान कोई यह रोक नहीं है की विधि व्यवस्था के विरुद्ध काम करने वाले लोगों को गिरफ्तार न करे। सी.आर.पि.सी में प्राइवेट व्यक्तियों द्वारा गिरफ्तारी की व्यवस्था है। अपराधी-अपराधी है उसको हिन्दू मुसलमान में मत बांटो।


• जब आपको भारत की सभ्यता संस्कृति,सुरक्षावलों,नयाय प्रक्रिया व संविधान पर कोई भरोशा नहीं तो फिर आपको आतंकवादियों की पनागाह पाकिस्तान या चीन जाकर बसने पर दिक्कत क्या?

ये आप से किसने कह दिया। भारतीय सभ्यता और संस्कृति की आप की कोई अलग व्याख्या होगी। भारतीय सभ्यता और संस्कृति में बहुत कुछ समाहित है। आपके पास घृणा और द्वेष के अतिरिक्त कुछ नहीं है।

यदि कोई उत्तर समझ में न आवे तो फिर सवाल पूछ लेना। आप जो लिखते हैं वह एडोल्फ हिटलर की जेर्मन नाजी विचारधारा है फिर ब्रिटिश साम्राज्यवाद के आप समर्थक हुए और अब अमेरिकन साम्राज्यवाद से संचालित होते हैं। आप को इस देश में किसानो की आत्महत्याएं , भूख प्यास, महंगाई, भ्रष्टाचार आदि कुछ नहीं दिखाई देता है। अमेरिकन साम्राज्यवाद इस देश की एकता और अखंडता को नष्ट कर देना चाहता है इसलिए ऐसी बातों का प्रचार किया जाता है ।

सादर
सुमन
loksangharsha.blogspot.com

लो क सं घ र्ष !: ब्लॉग उत्सव 2010

सम्मानीय चिट्ठाकार बन्धुओं,

सादर प्रणाम,


आज दिनांक 26.05.2010 को परिकल्पना ब्लोगोत्सव-2010 के अंतर्गत अठारहवें दिन प्रकाशित पोस्ट का लिंक-

एक सीमा तक करें शैतानियाँ, ना किसी का दिल दुखाना चाहिए।

http://www.parikalpnaa.com/2010/05/blog-post_1497.html

अजित कुमार मिश्र की दो कविताएँ

http://utsav.parikalpnaa.com/2010/05/blog-post_844.html

हल्ला हुआ गली दर गल्ली। तिल्ली सिंह ने जीती दिल्ली।।

http://www.parikalpnaa.com/2010/05/blog-post_7061.html

कविता रावत की दो कविताएँ

http://utsav.parikalpnaa.com/2010/05/blog-post_2453.html

अंग्रेज तो हिन्दुस्तान को आज़ाद छोड़ कर चले गए, लेकिन अपने पीछे हिंदी भाषा को अंग्रेजी का गुलाम बना कर गए!

http://www.parikalpnaa.com/2010/05/blog-post_4631.html

सुरेश यादव की दो कविताएँ

http://utsav.parikalpnaa.com/2010/05/blog-post_9870.html

मैं तुम्हारा हूँ !

http://www.parikalpnaa.com/2010/05/blog-post_7471.html

गोपाल जी की दो कविताएँ

http://utsav.parikalpnaa.com/2010/05/blog-post_5523.html

उनके बच्चे कैसे पँख निकलते ही आकाश मे उड़ान लेते हैं.........

http://www.parikalpnaa.com/2010/05/blog-post_7016.html

प्रताप सहगल दो कविताएँ

http://utsav.parikalpnaa.com/2010/05/blog-post_9459.html

आओ, मेरे लाडलों, लौट आओ !!!

http://www.parikalpnaa.com/2010/05/blog-post_5794.html

अमित केशरी की कविता : पंख

http://utsav.parikalpnaa.com/2010/05/blog-post_7682.html

ब्लोगोत्सव-२०१० की आखिरी शाम हिंदी ब्लॉग जगत के लिए एक यादगार शाम होने जा रही है !

http://www.parikalpnaa.com/2010/05/blog-post_26.html

आजादी के लिये लड़ने वाले दीवानों ने क्या इसी स्वतन्त्र भारत की कल्पना की थी?

http://utsav.parikalpnaa.com/2010/05/blog-post_26.html


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अंतरजाल पर परिकल्पना के श्री रविन्द्र प्रभात द्वारा आयोजित ब्लॉग उत्सव 2010 लिंक आप लोगों की सेवा में प्रेषित हैं।

-सुमन
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26.5.10

लो क सं घ र्ष !: पुलिस में सुधार की ज़रूरत

पुलिस के ज़ुल्म के किस्से सबने ही सुने हैं। उनकी कार्यप्रणाली पर भी अक्सर सवाल उठते रहते हैं। पुलिस का काम क़ानून व्यवस्था को बनाए रखना है। वो ऐसा करती भी है पर फिर भी उसकी छवि कोई खास अच्छी नहीं है। इसके दरअसल कई कारण है। पहले हम आपको पुलिस की पृष्ठभूमि के बारे में बता दें ब्रिटिश काल में वर्दीधारियों को लाट साहबों की कठपुतली कहा जाता था। अंग्रेजों ने पुलिस का गठन इसीलिए किया था की वो सत्ताधारियों का हुक्म बजा सकें। स्वतंत्रता से पहले तक पुलिस का काम अंग्रेजों का हुक्म बजने से ज्यादा कुछ नहीं था। अंग्रेज़ पुलिस का इस्तेमाल इस तरह से करते थे की आम जनता के बीच ब्रितानी हुकूमत का खौफ बना रहे।
देश आजाद होने के बाद एक उम्मीद थी कि शायद पुलिस में कुछ परिवर्तन आएगा पर इस रवैये में कुछ खास अंतर नहीं आया। पहले अंग्रेज़ इसका दरुपयोग करते थे, अब राजनेता राजनेता गाहे -बगाहे इसका दुरूपयोग अपने राजनीतिक लाभ के लिए करते हैं। निचले स्तर से राजनीति का दखल शुरू होता है जो शीर्ष स्टार तक जरी रहता है पुलिस कमिश्नर या महानिदेशक वही बनता है जिसकी ट्यूनिंग सरकार से अच्छी हो इसके लिए सरकार वरीयता क्रम को भी नकार देती है जिसका सबसे बड़ा उदाहरण किरण बेदी का ही ले लीजिये राजनीतिक संरक्षण पा कर पुलिस और निरंकुश हो जाती है पुलिस एकमात्र ऐसा विभाग है जिस पर सब अपना अधिकार चाहते हैं यही नहीं स्थानीय स्तर के नेता भी पुलिस पर दबाव बनाए रखना चाहते हैं पर इसके लिए मोटे तौर पर सरकार ही ज़िम्मेदार हैद्यदरअसल 1861 एक्ट के अनुसार जिस पुलिस बल का गठन किया गया था उसके पीछे अवधारणा यही थी की पुलिस राजनीतिक दृष्टि से उपयोगी हो और सत्ता के हर आदेश का पालन करे चाहे आदेश कुछ भी क्यों न होंद्यपरन्तु आज़ादी मिलने के बाद भी यही व्यवस्था कायम रही हालांकि आज़ादी के बाद भारतीय पुलिस का गठन किया गया पर मूल ढांचा वही रहा जो ब्रिटिश सरकार ने दिया थाद्यजैसे जैसे राजनीति भ्रष्ट होती गयी पुलिस का दुरूपयोग भी बाधा बाद में शाह आयोग का गठन हाजिसने पुलिस के दुरूपयोग को रोकने की वकालत की परन्तु संस्तुति को नहीं माना गयाद्यसरकार का स्वार्थ इसमें निहित थाद्यहालांकि बाद में राष्ट्रीय पुलिस आयोग के गठन से ये उम्मीद जगी थी की अब शायद कुछ सुधार हो परन्तु वो भी मर गयीद्यउसके केवल कुछ कम ज़रूरी सुझाव माने गए
जानकार कहते हैं की सरकार कोई भी आये पर कोई इन सिफारिशों पर अमल नहीं करना चाहताद्यइसके बाद भी कई कमेटियां बनी मसलन रिबेरो कमेटीएपद्मनाभैया कमेटी एमनिमाथ कमेटीएसोली सोराबजी कमेटी परन्तु हर बार नतीजा वही धाक के तीन पात वाला रहा वेद मारवाह जो 1956 बैच के आईपीएस अधिकारी हैं और दिल्ली के पुलिस आयुक्त के अलावाएझारखण्डएमणिपुर और मिजोरम के राज्यपाल भी रह चुके हैं कहते हैं किराज्नीतिक दल पुलिस सुधार में सबसे बड़ी बाधा हैं वे चाहते हैं कि पुलिस उनके इशारे पर काम करे 1981 की आयोग कि रिपोर्ट को ठन्डे बसते में डाल दिया गया और सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद भी इसे लागू नहीं किया गया बल्कि एक मोनिटरिंग कमेटी बना दी गयी राजनेता पुलिस को अपना पर्सनल नौकर समझते हैं जब किसी राज्य का महानिदेशक मुख्यमंत्री के लिए दरवाजा खोलता हो तो निचले स्तर के पुलिसवालों के मनोबल पर इसका क्या असर पड़ेगा इसका अंदाज़ा लगाना मुश्किल नहीं
वेद मारवाह के अनुसार वे पुलिस के पास अत्याधुनिक हथियारों और बाकी चीज़ों कि कमी भी मानते है जिस से पुलिस आतंकियों का मुकाबला करने में परेशानी महसूस करती हैद्यपुलिस वालों का वेतन भी कम होना उनके काम को प्रभावित करता हैद्यखासकर निचले कर्मचारियों के वेतन तो बढ़ने ही चाहियें उन पर काम का दबाव ज्यादा है और 1861 का ही पुलिस एक्ट अब भी चल रहा है उन्होंने राज्यपाल रहने के दौरान कई तरह के राजनीतिक दबावों का ज़िक्र अपनी पुस्तकष्इंडिया इन टार्मोइलष्में किया है
किरण बेदी ने भी पुलिस सुधार कि काफी वकालत की और वे हमेशा इसके लिए लडती रही। इनका इमानदार होना भी राजनेताओं को खटकता था। यही कारण है की उन्हें दिल्ली का पुलिस आयुक्त नहीं बनाया गया। इसकी भर्त्सना पूरे देश में हुई थी और सरकार की थू-थू भी पर सरकार बेशर्मों का कारवां जो होती है, उसे इसकी भला क्या परवाह?
हर पुलिस वाला भ्रष्ट नहीं होता और दोषी या भरष्ट अधिकारी को सजा मिलनी ही चाहिए चे वो पुलिस में हो या बाहरद्यबड़ा हो या निचले स्तर काद्यसबकी ज़िम्मेदारी अगर तय कर दी जाये और राजनेता पुलिस सुधार में दिलचस्पी दिखाएँ तो निशी ही तस्वीर बदल सकती है। हमें और आपको उम्मीद का दामन नहीं छोड़ना चाहिए क्योंकि जब तक सांस है तब तक आस है"

मुकेश चन्द्र

25.5.10

लो क सं घ र्ष !: देश हित में ....

भारतीय जनता पार्टी अपनी नीति और कार्यक्रम के अनुसार सब कुछ तय करती है राष्ट्र हित में क्योंकि वह एक राष्ट्रवादी पार्टी है और उसकी अपनी राष्ट्र की परिभाषा है भारतीय जनता पार्टी की परिभाषा के अनुसार राष्ट्र किसी भूभाग में बसने वाले लोगों का वह समूह है जो एक पंथ को मानने वाला और उसमें विश्वास रखने वाला है। भारतीय जनता पार्टी इसीलिए भारत को हिन्दू राष्ट्र बनाने के लिए प्रयासरत रहती है और उससे जुड़े हुए सामाजिक और धार्मिक लोग हिन्दू राष्ट्र स्थापित करने का राग अलापते रहते हैं। भारतीय जनता पार्टी के योगी आदित्य नाथ जो गोरखपुर से सांसद हैं कहते नहीं थकते कि वह हिन्दू राष्ट्र स्थापित करने के लिए भारत को फिर विभाजित करने के लिए तत्पर हैं। इसी प्रकार भाजपा से जुड़े हुए तमाम संगठन के लोग भारत भूमि से मुसलमानों को निकालकर हिन्दू राष्ट्र स्थापित करने की घोषणा करते रहते हैं और इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए वह भारत का एक भाग मुसलमानों को देने के पक्ष में हैं। जैसे कि भारत एक देश नहीं भाजपा के लोगों को विरासत में मिली हुई सम्पत्ति हो।

गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भारतीय जनता पार्टी की लाइन पर काफी कुछ काम भी किया। आपराधिक विधि विज्ञान का सिद्धान्त है कि जान लेने के उद्देश्य से हमला करने वालों के विरूद्ध उतनी शक्ति का उपयोग करो जितना अपनी जान बचाने के लिए आवश्यक है, यदि उससे अधिक शक्ति का उपयोग किया जाएगा तो वह खुद हमलावर की श्रेणी में समझा जाएगा। गुजरात में इस सिद्धान्त का खुलकर मज़ाक उड़ाया गया। गोधरा काण्ड में जिनपर हमला किया गया बताया जाता है उन्होंने तो अपनी जान बचाने के लिए शक्ति का प्रयोग किया नहीं, लेकिन उनकी जान के बदले जान लेने का जो खुला नाच पूरे प्रदेश में हुआ वह शर्मनाक था लेकिन मोदी जैसा व्यक्ति उसका पक्षधर बनकर उसे सही बताता रहा है। यही नहीं कि उसने उसे सही करार दिया बल्कि पूरे गुजरात में नरसंहार के प्रायोजक के रूप में अपना किरदार निभाया।

आज एक गलत आदमी ने एक सही बात का समर्थन किया है। सम्भव है कि इस सही काम को समर्थन देने के पीछे उसका अपना कोई छिपा हुआ उद्देश्य हो क्योंकि गलत काम करने वाला जल्दी सही काम को समर्थन नहीं देता, जब तक कि उससे उसको स्वयं कोई लाभ न उठाना हो। फिर भी मोदी द्वारा सरकारों को माओवादियों के साथ संवाद का रास्ता निकालकर मसले को हल करना, बताया जाना उचित है। माओवादी कुछ भी हो हमारे देश का अंग हैं और अगर देश को राष्ट्रवाद के नाम पर तोड़ने वाला पक्षधर माओवादियों से बात करके देश को एक रखने की बात करे, खुशी की बात है। देश हित में राष्ट्रवाद के नाम पर देश को तोड़ने वाला व्यक्ति अगर कोई फैसला लेता है तो वह फैसला अच्छा और सराहनीय है क्योंकि फैसला देश हित में है और देश हित से बड़ा कोई हित नहीं होता।

मोहम्मद शुऐब

लो क सं घ र्ष !: ब्लॉग उत्सव 2010

सम्मानीय चिट्ठाकार बन्धुओं,

सादर प्रणाम,

आज दिनांक 24.05.2010 को परिकल्पना ब्लोगोत्सव-2010 के अंतर्गत सत्रहवें दिन प्रकाशित पोस्ट का लिंक-

ब्लोगोत्सव-२०१० : ..मॉल , यानी.....शोखियों में घोला जाये,फूलों का शबाब http://www.parikalpnaa.com/2010/05/blog-post_24.html

बाघों को बेच कमा रहे अपना नाम : देवेन्द्र प्रकाश मिश्र

http://utsav.parikalpnaa.com/2010/05/blog-post_24.html

यार ये कैसी है इज्जत कांच की ?

http://www.parikalpnaa.com/2010/05/blog-post_6459.html

चिराग जैन की कविता : अनपढ़ माँ

http://utsav.parikalpnaa.com/2010/05/blog-post_21.html

बजट का क्या? देख लेंगे बाद में और फिर क्रेडिट कार्ड किस मर्ज़ की दवा है ? http://www.parikalpnaa.com/2010/05/blog-post_1970.html

अरुण चन्द्र राय की दो कविताएँ

http://utsav.parikalpnaa.com/2010/05/blog-post_8746.html

उदारीकरण की प्रक्रिया ने हमारे देश में एक नव धनाढ्य मध्यमवर्ग को जन्म दिया है http://www.parikalpnaa.com/2010/05/blog-post_7203.html

अशोक कुमार पाण्डेय की कविता : माँ की डिग्रियाँ

http://utsav.parikalpnaa.com/2010/05/blog-post_3377.html

सबल और निर्बल के बीच की खाई को और चौड़ा करने की साजिश आज की मॉल संस्कृति http://www.parikalpnaa.com/2010/05/blog-post_2482.html

कवि कुलवंत सिंह की कविता

http://utsav.parikalpnaa.com/2010/05/blog-post_5962.html

हमारे देश की अधिकाँश जनता की बुनियादी जरूरतें नहीं पूरी हो पातीं http://www.parikalpnaa.com/2010/05/blog-post_3210.html

शील निगम की कविता

http://utsav.parikalpnaa.com/2010/05/blog-post_5962.html

यह मॉल है या कि अजायबघर है.. ?

http://www.parikalpnaa.com/2010/05/blog-post_1394.html

ब्लोगिंग को विचारों का साझा मंच बनाएं, गुणवत्ता का ध्यान रखें : देवमणि पाण्डेय

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पढ़िए और सुनिए श्री राजेन्द्र स्वर्णकार के द्वारा रचित और स्वरबद्ध रचना :मन है बहुत उदास रे जोगी !

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अंतरजाल पर परिकल्पना के श्री रविन्द्र प्रभात द्वारा आयोजित ब्लॉग उत्सव 2010 लिंक आप लोगों की सेवा में प्रेषित हैं।

-सुमन
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