आप अपने क्षेत्र की हलचल को चित्रों और विजुअल समेत नेटप्रेस पर छपवा सकते हैं I सम्पर्क कीजिये सेल नम्बर 0 94165 57786 पर I ई-मेल akbar.khan.rana@gmail.com दि नेटप्रेस डॉट कॉम आपका अपना मंच है, इसे और बेहतर बनाने के लिए Cell.No.09416557786 तथा E-Mail: akbar.khan.rana@gmail.com पर आपके सुझाव, आलेख और काव्य आदि सादर आमंत्रित हैं I

27.5.10

लो क सं घ र्ष !: ब्लॉग उत्सव 2010

सम्मानीय चिट्ठाकार बन्धुओं,

सादर प्रणाम,


आज दिनांक 26.05.2010 को परिकल्पना ब्लोगोत्सव-2010 के अंतर्गत अठारहवें दिन प्रकाशित पोस्ट का लिंक-

एक सीमा तक करें शैतानियाँ, ना किसी का दिल दुखाना चाहिए।

http://www.parikalpnaa.com/2010/05/blog-post_1497.html

अजित कुमार मिश्र की दो कविताएँ

http://utsav.parikalpnaa.com/2010/05/blog-post_844.html

हल्ला हुआ गली दर गल्ली। तिल्ली सिंह ने जीती दिल्ली।।

http://www.parikalpnaa.com/2010/05/blog-post_7061.html

कविता रावत की दो कविताएँ

http://utsav.parikalpnaa.com/2010/05/blog-post_2453.html

अंग्रेज तो हिन्दुस्तान को आज़ाद छोड़ कर चले गए, लेकिन अपने पीछे हिंदी भाषा को अंग्रेजी का गुलाम बना कर गए!

http://www.parikalpnaa.com/2010/05/blog-post_4631.html

सुरेश यादव की दो कविताएँ

http://utsav.parikalpnaa.com/2010/05/blog-post_9870.html

मैं तुम्हारा हूँ !

http://www.parikalpnaa.com/2010/05/blog-post_7471.html

गोपाल जी की दो कविताएँ

http://utsav.parikalpnaa.com/2010/05/blog-post_5523.html

उनके बच्चे कैसे पँख निकलते ही आकाश मे उड़ान लेते हैं.........

http://www.parikalpnaa.com/2010/05/blog-post_7016.html

प्रताप सहगल दो कविताएँ

http://utsav.parikalpnaa.com/2010/05/blog-post_9459.html

आओ, मेरे लाडलों, लौट आओ !!!

http://www.parikalpnaa.com/2010/05/blog-post_5794.html

अमित केशरी की कविता : पंख

http://utsav.parikalpnaa.com/2010/05/blog-post_7682.html

ब्लोगोत्सव-२०१० की आखिरी शाम हिंदी ब्लॉग जगत के लिए एक यादगार शाम होने जा रही है !

http://www.parikalpnaa.com/2010/05/blog-post_26.html

आजादी के लिये लड़ने वाले दीवानों ने क्या इसी स्वतन्त्र भारत की कल्पना की थी?

http://utsav.parikalpnaa.com/2010/05/blog-post_26.html


utsav.parikalpnaa.com

अंतरजाल पर परिकल्पना के श्री रविन्द्र प्रभात द्वारा आयोजित ब्लॉग उत्सव 2010 लिंक आप लोगों की सेवा में प्रेषित हैं।

-सुमन
loksangharsha.blogspot.com

26.5.10

लो क सं घ र्ष !: पुलिस में सुधार की ज़रूरत

पुलिस के ज़ुल्म के किस्से सबने ही सुने हैं। उनकी कार्यप्रणाली पर भी अक्सर सवाल उठते रहते हैं। पुलिस का काम क़ानून व्यवस्था को बनाए रखना है। वो ऐसा करती भी है पर फिर भी उसकी छवि कोई खास अच्छी नहीं है। इसके दरअसल कई कारण है। पहले हम आपको पुलिस की पृष्ठभूमि के बारे में बता दें ब्रिटिश काल में वर्दीधारियों को लाट साहबों की कठपुतली कहा जाता था। अंग्रेजों ने पुलिस का गठन इसीलिए किया था की वो सत्ताधारियों का हुक्म बजा सकें। स्वतंत्रता से पहले तक पुलिस का काम अंग्रेजों का हुक्म बजने से ज्यादा कुछ नहीं था। अंग्रेज़ पुलिस का इस्तेमाल इस तरह से करते थे की आम जनता के बीच ब्रितानी हुकूमत का खौफ बना रहे।
देश आजाद होने के बाद एक उम्मीद थी कि शायद पुलिस में कुछ परिवर्तन आएगा पर इस रवैये में कुछ खास अंतर नहीं आया। पहले अंग्रेज़ इसका दरुपयोग करते थे, अब राजनेता राजनेता गाहे -बगाहे इसका दुरूपयोग अपने राजनीतिक लाभ के लिए करते हैं। निचले स्तर से राजनीति का दखल शुरू होता है जो शीर्ष स्टार तक जरी रहता है पुलिस कमिश्नर या महानिदेशक वही बनता है जिसकी ट्यूनिंग सरकार से अच्छी हो इसके लिए सरकार वरीयता क्रम को भी नकार देती है जिसका सबसे बड़ा उदाहरण किरण बेदी का ही ले लीजिये राजनीतिक संरक्षण पा कर पुलिस और निरंकुश हो जाती है पुलिस एकमात्र ऐसा विभाग है जिस पर सब अपना अधिकार चाहते हैं यही नहीं स्थानीय स्तर के नेता भी पुलिस पर दबाव बनाए रखना चाहते हैं पर इसके लिए मोटे तौर पर सरकार ही ज़िम्मेदार हैद्यदरअसल 1861 एक्ट के अनुसार जिस पुलिस बल का गठन किया गया था उसके पीछे अवधारणा यही थी की पुलिस राजनीतिक दृष्टि से उपयोगी हो और सत्ता के हर आदेश का पालन करे चाहे आदेश कुछ भी क्यों न होंद्यपरन्तु आज़ादी मिलने के बाद भी यही व्यवस्था कायम रही हालांकि आज़ादी के बाद भारतीय पुलिस का गठन किया गया पर मूल ढांचा वही रहा जो ब्रिटिश सरकार ने दिया थाद्यजैसे जैसे राजनीति भ्रष्ट होती गयी पुलिस का दुरूपयोग भी बाधा बाद में शाह आयोग का गठन हाजिसने पुलिस के दुरूपयोग को रोकने की वकालत की परन्तु संस्तुति को नहीं माना गयाद्यसरकार का स्वार्थ इसमें निहित थाद्यहालांकि बाद में राष्ट्रीय पुलिस आयोग के गठन से ये उम्मीद जगी थी की अब शायद कुछ सुधार हो परन्तु वो भी मर गयीद्यउसके केवल कुछ कम ज़रूरी सुझाव माने गए
जानकार कहते हैं की सरकार कोई भी आये पर कोई इन सिफारिशों पर अमल नहीं करना चाहताद्यइसके बाद भी कई कमेटियां बनी मसलन रिबेरो कमेटीएपद्मनाभैया कमेटी एमनिमाथ कमेटीएसोली सोराबजी कमेटी परन्तु हर बार नतीजा वही धाक के तीन पात वाला रहा वेद मारवाह जो 1956 बैच के आईपीएस अधिकारी हैं और दिल्ली के पुलिस आयुक्त के अलावाएझारखण्डएमणिपुर और मिजोरम के राज्यपाल भी रह चुके हैं कहते हैं किराज्नीतिक दल पुलिस सुधार में सबसे बड़ी बाधा हैं वे चाहते हैं कि पुलिस उनके इशारे पर काम करे 1981 की आयोग कि रिपोर्ट को ठन्डे बसते में डाल दिया गया और सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद भी इसे लागू नहीं किया गया बल्कि एक मोनिटरिंग कमेटी बना दी गयी राजनेता पुलिस को अपना पर्सनल नौकर समझते हैं जब किसी राज्य का महानिदेशक मुख्यमंत्री के लिए दरवाजा खोलता हो तो निचले स्तर के पुलिसवालों के मनोबल पर इसका क्या असर पड़ेगा इसका अंदाज़ा लगाना मुश्किल नहीं
वेद मारवाह के अनुसार वे पुलिस के पास अत्याधुनिक हथियारों और बाकी चीज़ों कि कमी भी मानते है जिस से पुलिस आतंकियों का मुकाबला करने में परेशानी महसूस करती हैद्यपुलिस वालों का वेतन भी कम होना उनके काम को प्रभावित करता हैद्यखासकर निचले कर्मचारियों के वेतन तो बढ़ने ही चाहियें उन पर काम का दबाव ज्यादा है और 1861 का ही पुलिस एक्ट अब भी चल रहा है उन्होंने राज्यपाल रहने के दौरान कई तरह के राजनीतिक दबावों का ज़िक्र अपनी पुस्तकष्इंडिया इन टार्मोइलष्में किया है
किरण बेदी ने भी पुलिस सुधार कि काफी वकालत की और वे हमेशा इसके लिए लडती रही। इनका इमानदार होना भी राजनेताओं को खटकता था। यही कारण है की उन्हें दिल्ली का पुलिस आयुक्त नहीं बनाया गया। इसकी भर्त्सना पूरे देश में हुई थी और सरकार की थू-थू भी पर सरकार बेशर्मों का कारवां जो होती है, उसे इसकी भला क्या परवाह?
हर पुलिस वाला भ्रष्ट नहीं होता और दोषी या भरष्ट अधिकारी को सजा मिलनी ही चाहिए चे वो पुलिस में हो या बाहरद्यबड़ा हो या निचले स्तर काद्यसबकी ज़िम्मेदारी अगर तय कर दी जाये और राजनेता पुलिस सुधार में दिलचस्पी दिखाएँ तो निशी ही तस्वीर बदल सकती है। हमें और आपको उम्मीद का दामन नहीं छोड़ना चाहिए क्योंकि जब तक सांस है तब तक आस है"

मुकेश चन्द्र

25.5.10

लो क सं घ र्ष !: देश हित में ....

भारतीय जनता पार्टी अपनी नीति और कार्यक्रम के अनुसार सब कुछ तय करती है राष्ट्र हित में क्योंकि वह एक राष्ट्रवादी पार्टी है और उसकी अपनी राष्ट्र की परिभाषा है भारतीय जनता पार्टी की परिभाषा के अनुसार राष्ट्र किसी भूभाग में बसने वाले लोगों का वह समूह है जो एक पंथ को मानने वाला और उसमें विश्वास रखने वाला है। भारतीय जनता पार्टी इसीलिए भारत को हिन्दू राष्ट्र बनाने के लिए प्रयासरत रहती है और उससे जुड़े हुए सामाजिक और धार्मिक लोग हिन्दू राष्ट्र स्थापित करने का राग अलापते रहते हैं। भारतीय जनता पार्टी के योगी आदित्य नाथ जो गोरखपुर से सांसद हैं कहते नहीं थकते कि वह हिन्दू राष्ट्र स्थापित करने के लिए भारत को फिर विभाजित करने के लिए तत्पर हैं। इसी प्रकार भाजपा से जुड़े हुए तमाम संगठन के लोग भारत भूमि से मुसलमानों को निकालकर हिन्दू राष्ट्र स्थापित करने की घोषणा करते रहते हैं और इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए वह भारत का एक भाग मुसलमानों को देने के पक्ष में हैं। जैसे कि भारत एक देश नहीं भाजपा के लोगों को विरासत में मिली हुई सम्पत्ति हो।

गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भारतीय जनता पार्टी की लाइन पर काफी कुछ काम भी किया। आपराधिक विधि विज्ञान का सिद्धान्त है कि जान लेने के उद्देश्य से हमला करने वालों के विरूद्ध उतनी शक्ति का उपयोग करो जितना अपनी जान बचाने के लिए आवश्यक है, यदि उससे अधिक शक्ति का उपयोग किया जाएगा तो वह खुद हमलावर की श्रेणी में समझा जाएगा। गुजरात में इस सिद्धान्त का खुलकर मज़ाक उड़ाया गया। गोधरा काण्ड में जिनपर हमला किया गया बताया जाता है उन्होंने तो अपनी जान बचाने के लिए शक्ति का प्रयोग किया नहीं, लेकिन उनकी जान के बदले जान लेने का जो खुला नाच पूरे प्रदेश में हुआ वह शर्मनाक था लेकिन मोदी जैसा व्यक्ति उसका पक्षधर बनकर उसे सही बताता रहा है। यही नहीं कि उसने उसे सही करार दिया बल्कि पूरे गुजरात में नरसंहार के प्रायोजक के रूप में अपना किरदार निभाया।

आज एक गलत आदमी ने एक सही बात का समर्थन किया है। सम्भव है कि इस सही काम को समर्थन देने के पीछे उसका अपना कोई छिपा हुआ उद्देश्य हो क्योंकि गलत काम करने वाला जल्दी सही काम को समर्थन नहीं देता, जब तक कि उससे उसको स्वयं कोई लाभ न उठाना हो। फिर भी मोदी द्वारा सरकारों को माओवादियों के साथ संवाद का रास्ता निकालकर मसले को हल करना, बताया जाना उचित है। माओवादी कुछ भी हो हमारे देश का अंग हैं और अगर देश को राष्ट्रवाद के नाम पर तोड़ने वाला पक्षधर माओवादियों से बात करके देश को एक रखने की बात करे, खुशी की बात है। देश हित में राष्ट्रवाद के नाम पर देश को तोड़ने वाला व्यक्ति अगर कोई फैसला लेता है तो वह फैसला अच्छा और सराहनीय है क्योंकि फैसला देश हित में है और देश हित से बड़ा कोई हित नहीं होता।

मोहम्मद शुऐब

लो क सं घ र्ष !: ब्लॉग उत्सव 2010

सम्मानीय चिट्ठाकार बन्धुओं,

सादर प्रणाम,

आज दिनांक 24.05.2010 को परिकल्पना ब्लोगोत्सव-2010 के अंतर्गत सत्रहवें दिन प्रकाशित पोस्ट का लिंक-

ब्लोगोत्सव-२०१० : ..मॉल , यानी.....शोखियों में घोला जाये,फूलों का शबाब http://www.parikalpnaa.com/2010/05/blog-post_24.html

बाघों को बेच कमा रहे अपना नाम : देवेन्द्र प्रकाश मिश्र

http://utsav.parikalpnaa.com/2010/05/blog-post_24.html

यार ये कैसी है इज्जत कांच की ?

http://www.parikalpnaa.com/2010/05/blog-post_6459.html

चिराग जैन की कविता : अनपढ़ माँ

http://utsav.parikalpnaa.com/2010/05/blog-post_21.html

बजट का क्या? देख लेंगे बाद में और फिर क्रेडिट कार्ड किस मर्ज़ की दवा है ? http://www.parikalpnaa.com/2010/05/blog-post_1970.html

अरुण चन्द्र राय की दो कविताएँ

http://utsav.parikalpnaa.com/2010/05/blog-post_8746.html

उदारीकरण की प्रक्रिया ने हमारे देश में एक नव धनाढ्य मध्यमवर्ग को जन्म दिया है http://www.parikalpnaa.com/2010/05/blog-post_7203.html

अशोक कुमार पाण्डेय की कविता : माँ की डिग्रियाँ

http://utsav.parikalpnaa.com/2010/05/blog-post_3377.html

सबल और निर्बल के बीच की खाई को और चौड़ा करने की साजिश आज की मॉल संस्कृति http://www.parikalpnaa.com/2010/05/blog-post_2482.html

कवि कुलवंत सिंह की कविता

http://utsav.parikalpnaa.com/2010/05/blog-post_5962.html

हमारे देश की अधिकाँश जनता की बुनियादी जरूरतें नहीं पूरी हो पातीं http://www.parikalpnaa.com/2010/05/blog-post_3210.html

शील निगम की कविता

http://utsav.parikalpnaa.com/2010/05/blog-post_5962.html

यह मॉल है या कि अजायबघर है.. ?

http://www.parikalpnaa.com/2010/05/blog-post_1394.html

ब्लोगिंग को विचारों का साझा मंच बनाएं, गुणवत्ता का ध्यान रखें : देवमणि पाण्डेय

http://shabd.parikalpnaa.com/2010/05/blog-post_24.html


पढ़िए और सुनिए श्री राजेन्द्र स्वर्णकार के द्वारा रचित और स्वरबद्ध रचना :मन है बहुत उदास रे जोगी !

http://utsav.parikalpnaa.com/2010/05/blog-post_3561.html


utsav.parikalpnaa.com

अंतरजाल पर परिकल्पना के श्री रविन्द्र प्रभात द्वारा आयोजित ब्लॉग उत्सव 2010 लिंक आप लोगों की सेवा में प्रेषित हैं।

-सुमन
loksangharsha.blogspot.com

24.5.10

लो क सं घ र्ष !: जाति न पूछो जज की


कर्नाटक हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश पीण्डी दिनाकरन पर जो भ्रष्टाचार के आरोप लगे हैं वो किसी से छुपे नहीं है। इस बाबत महाभियोग कि प्रक्रिया भी शुरू हो चुकी हैद्यउन पर 400 एकड़ ज़मीन ग़ैरक़ानूनी ढंग से हथियाने का आरोप है। तो उन्होंने ही त्यागपत्र दिया है और ही सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश बालाकृष्णन ने उन्हें हटने को कहा है। बालाकृष्णन ने तो ये जानते हुए भी कि दिनाकरन भ्रष्टाचार में लिप्त है उनके नाम की संस्तुति सुप्रीम कोर्ट के जज के लिए की, इस से न्यायपालिका की छवि धूमिल हुई है। रही सही कसर मायावती ने पूरी कर दी। उन्होंने कहा कि क्योंकि दिनाकरन दलित हैं इसलिए उनपर आरोप लगाया जा रहा है। अब भ्रष्टाचार का जात पात से क्या लेना ? जज पहले जज होता है फिर कुछ और। मैं पूछता हूँ कि अगर दिनाकरन के साथ दलित होने के कारण ये सब किया जा रहा है तो क्या वे तब दलित नहीं थे जब वे कर्नाटक के मुख्य न्यायाधीश बनाए गए थे। लोगो का विश्वास न्यायपालिका में बढ़ाने के लिए न्यायपालिका को ही उदाहरण पेश करने होंगे।

मुकेश चन्द्र

23.5.10

ईमानदारी

कहा जाता है कि हर सिद्धान्त का एक अपवाद हुआ करता है। सिद्धान्त है - इस युग का हर वह व्यक्ति ईमानदार है जिसको बेईमानी का मौका नहीं मिलता, लेकिन एक नाम अपवाद है जो है अकील ज़फर। कहते हैं -

काजल की कोठरी में कैसो हू सयानो जाए।
एक लीक काजल की लगि है सो लागि है॥

कहा जाता है कि अपने देश के हर सरकारी विभाग में भ्रष्टाचार ही फल-फूल रहा है लेकिन स्टाम्प और पंजीयन विभाग नीचे से लेकर ऊपर तक भ्रष्टाचार में डूबा हुआ विभाग है। विक्रय विलेख का पंजीयन हो या फिर मामूली से वसीयत नामे का, बिना चढ़ावा के कोई भी पंजीयन सम्भव नहीं हैं, यह एक आम राय बन चुकी है।
माननीय इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ के समक्ष महानिरीक्षक पंजीयन हिमांशु कुमार ने उपस्थित होकर बताया कि अकील ज़फर उनके विभाग का अकेला अधिकारी (अतिरिक्त महानिरीक्षक, स्टाम्प) ही ईमानदार व्यक्ति है, जिसका समर्थन के दूसरे अधिकारी श्री 0के0 द्विवेदी ने भी किया, फिर इस बयान पर हंगामा क्यों? अधिकारियों की समिति ने और विशेष करके समिति के अध्यक्ष श्री 0पी0 सिंह ने यह हंगामा क्यों खड़ा किया? जबकि श्री हिमांशु कुमार का बयान स्वयं उनके खिलाफ भी जाता है। कहीं ऐसा तो नहीं कि चोर अपनी दाढ़ी में तिनका ढूंढ रहा हो। इस औदे पर रहकर अगर एक अधिकारी सिर्फ अपने बच्चों को पढ़ा सकता है और वह अपने घर में अपनी पत्नी की इच्छा पूर्ति के लिए सोफा नहीं ला सकता और अपने से दफ्तर पैदल जाता-आता है, तो इस तरह की ईमानदारी को ईमानदारी नहीं तो फिर क्या कहें।
श्री 0पी0 सिंह जी मान जाइए आप भी ईमानदार को ईमानदार कहिए, वार्षिक प्रवृष्टि तो हर एक की अच्छी होती है बल्कि जहां सब बेईमान हों यहां तक कि वार्षिक इन्ट्री देने वाला भी तो वार्षिक इन्ट्री कैसे खराब हो सकती है। यह दुनिया, बेईमान चाहे जितने बढ़ जाएं चलती है और चलती रहेगी, लेकिन ईमानदारी और ईमानदार की तारीफ भी हमेशा होती आई है और होती रहेगी। ईमानदारी बस ईमानदारी है इसकी महत्ता को कम कीजिए।

--मोहम्मद शुऐब

22.5.10

शिक्षा का व्यापारीकरण

पढ़ता रहा हूं कल्याणकारी राज्य के बारे में और उस कल्याणकारी राज्य की स्थापना के लिए आन्दोलनों में हिस्सेदार भी रहा हूं। दवा और पढ़ाई मुफ्त में मुहैया कराना और रोज़गार की गारन्टी देना एक काल्याणकारी राज्य का कर्तव्य होता है। सिर्फ मुफ्त पढ़ाई ही नहीं बल्कि देश के नागरिकों को एक जैसी पढ़ाई की व्यवस्था करना कल्याणकारी राज्य का कर्तव्य है, लेकिन क्या हो रहा है अपने देश में संसद और विधान सभाओं में उपलब्ध कराया जाने वाला पानी कहीं उस कुंए का तो नहीं जिसमें भांग घुली हो।

आन्दोलन चलता रहा मुफ्त और समान शिक्षा व्यवस्था लागू कराने का और शिक्षा का माध्यम और सरकार का कामकाज देशी भाषाओं को बनाये जाने का, लेकिन सारे आन्दोलन ठप पड़ गये और नतीजा आया उल्टा। देश का राज-काज अपनी भाषा में नहीं किया जा रहा है, शिक्षा का माध्यम अपनी मातृ-भाषा का न बनाकर विदेशी भाषा को बना दिया गया है, ऐसा क्यों? क्या देश का स्वामी अंग्रेजी भाषा वाले देश को मान लिया गया है और हम गुलाम। उनकी भाषा को सीखने और समझने में फख्र महसूस करते हैं। वाह रे! स्वामी भक्ति।

गरीब व्यक्ति शायद प्राथमिक शिक्षा प्राप्त कर ले लेकिन उससे आगे पढ़ाने का खर्च आम आदमी बर्दाश्त कर पाने में समर्थ नहीं है। निम्न मध्यम वर्गीय व्यक्ति हाईस्कूल और इण्टर तक अपने बच्चों को पढ़ा पाने में समर्थ हो पाता है, लेकिन उससे ऊंची शिक्षा दिला पाना उसकी सामथ्र्य से बाहर है। उच्च मध्यम श्रेणी का व्यक्ति अपना श्रम बेच पाने में कुछ समर्थ सा दिखता है और यही वर्ग देश में बढ़ रहे भ्रष्टाचार में सहायक सिद्ध होता है क्योंकि यह जाने-अनजाने उच्च और ऊंची पूंजीपति वर्ग दलाली और चाटुकारिता में लगा रहता है। अगर देखा जाए तो यह वर्ग अपनी आय से ज्यादा खर्च करके भी बचत कर लेता है और अपनी आय से ज्यादा खर्च कर बचत कर पाना ही भ्रष्टाचार का धोतक है।

सरकारी कॉलेज नहीं के बराबर रह गये हैं। सहायता प्राप्त कॉलेज इक्का-दुक्का हैं, लेकिन शिक्षण-प्रशिक्षण के कारखानें और दुकाने इतनी ज्यादा खुल गई हैं कि उन्हें खरीदने के लिए होड़ सी लगी रहती है। शिक्षा के इस व्यापार में मांग और पूर्ति का भी सिद्धान्त भी नहीं लागू हो पाता है इसलिए कि पूर्ति कितनी भी बढ़ जाए उसका दर कम नहीं होने को आता और कहीं दर में कमी आती है तो शिक्षा का स्तर घट जाता है और वह केवल इस कारण कि पढ़ाने वाले ही निम्न स्तर के होते हैं।

वाह रे हमारी सरकार, मुफ्त और समान शिक्षा देकर अपने नागरिकों को समान अवसर देने के सिद्धान्त को नकार कर कुछ परिवारों तक शिक्षा को सीमित कर देना चाहती है और देश में केवल तीन वर्ग बनाने की तैयारी कर रही है पहला-शासक वर्ग जिसमें बहुराष्ट्रीय कम्पनियां (अपने देश के औद्योगिक घरानों को मिलाकर), दूसरा तबका पहले तबके का दलाल और सेवक और तीसरा तबका देश की शासित प्रजा। हमारी सरकार अपने देश में बहुराष्ट्रीय कम्पनियों को सिर्फ उद्योग में ही लाकर संतुष्टि नहीं मिली तो उसने शिक्षा जगत में भी विदेश (शैक्षिक बहुराष्ट्रीय कम्पनी) को स्थापित करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ा। इसलिए कि सरकार में शामिल लोग पीढ़ी दर पीढ़ी या तो बहुराष्ट्रीय कम्पनियों और दूसरे देशों का दलाल बनकर रहना चाहते हैं या फिर उन्हें आशा है कि वह भी एक दिन उनके साथ सहभागी बनेंगे और फिर शासक कहलाएंगे। यही कारण है कि शिक्षा का व्यापारीकरण किया जाना।
-मोहम्मद शुऐब एडवोकेट