आप अपने क्षेत्र की हलचल को चित्रों और विजुअल समेत नेटप्रेस पर छपवा सकते हैं I सम्पर्क कीजिये सेल नम्बर 0 94165 57786 पर I ई-मेल akbar.khan.rana@gmail.com दि नेटप्रेस डॉट कॉम आपका अपना मंच है, इसे और बेहतर बनाने के लिए Cell.No.09416557786 तथा E-Mail: akbar.khan.rana@gmail.com पर आपके सुझाव, आलेख और काव्य आदि सादर आमंत्रित हैं I

8.5.10

आतंकवाद

दुनिया में वाद की कमी नहीं है - क्षेत्रवाद, जातिवाद, सम्प्रदायवाद। इस तरह के बहुत सारे निकृष्ट वाद हैं; लेकिन कुछ उत्तम वाद भी हैं या यूं कहिए कि विचारात्मक वाद हैं जैसे समाजवाद, साम्यवाद, गांधीवाद, पूंजीवाद और फिर इन्हीं वाद के बीच में उत्पन्न हुआ और पनपा आतंकवाद। अपने किसी वाद को दूसरों पर थोपने या मनवाने के लिए जिस हठधर्मी और बल का प्रयोग किया जाता है यही तो है आतंकवाद। आतंक क्या है, अपने सामने वाले को डराना, भय या दहशत में डालना। शब्दकोषों में आतंक की जो परिभाषा दी गई है वह है भय और दहशत। जो हर युग में रही है, अपने-अपने रूप में।

आज मैं अपने देश में फैले आतंकवाद पर विचार करने बैठा हूं। अंग्रेजों ने भारत पर कब्जा किया, उसे गुलाम बनाया और भारत का सब कुछ लूटकर अपने देश पहुंचाया और जब अंग्रेजों के इस लूट का विरोध हुआ तो विरोध करने वालों को ब्रिटिश साम्राज्य ने आतंकवादी और उनके द्वारा किये जा रहे कार्य को आतंक की संज्ञा दिया। हमारे देश की लड़ाई ने साम्राज्यवाद को समाप्त किया लेकिन समाप्त हुए साम्राज्य ने देश को खण्डित आजादी दिया। उसके लिए हम दोषी किसी को भी माने लेकिन दोष तो ब्रिटिश साम्राज्यवाद का जिसने हमारे नेतृत्व को सम्प्रदाय के नाम पर बांट कर देश का खण्डित किया और खण्डित आजादी पाकर भी हम खुश रहे और उस खुशी में उस साम्राज्य को गुणगान आज भी हम करते नहीं थकत, वह जो हमारा अधिनायक ठहरा।

अगस्त 1947 में हमने आजादी पाई लेकिन मिली हुई आजादी हमको नहीं भायी और हम भारतीयों के एक गिरोह ने जो देश की आजादी के सिपाहियों का विरोध कर अंग्रेजों की दलाली करता था सिर उठाया और 30 जनवरी, 1948 को देश में पहली आतंकवादी घटना घटित हुई। आजादी के बाद से ही वह गिरोह देश में आतंक का माहौल बनाये रखने के लिए प्रयत्नशील रहा, देश को खण्डित करने का दोषी कोई भी रहा हो लेकिन उस गिरोह ने इस देश के शान्तिप्रिय मुसलमानों को देश के बंटवारे का दोषी होने का प्रचार करके उन्हें आतंकित करने का कार्य किया। आतंक का माहौल इस हद तक पैदा किया कि मुसलमान भी अपने को बंटवारे का दोषी मानकर उस गिरोह के दुष्प्रचार को रोकने की हिम्मत नहीं जुटा पाया। यही दुष्प्रचार जो और आरम्भ किया गया कि मुसलमान चाहे जितना योग्य हो उसे इस देश में नौकरी पाने का अधिकार नहीं रह गया और इस दुष्प्रचार को भी स्वीकार करके मुसलमानों ने अपने को पीछे कर लिया। नतीजा हुआ कि मुसलमान शिक्षा में, नौकरियों में, उद्योग में और खेती में पीछे होता गया और इस हद तक पीछे हुआ कि तमाम आयोगों की रिपोर्ट उसे दलितों से भी पीछे मानती है।

देश का विकास चाहने वाले लोगों की समझ में यह बात आयी और नतीजे में मुस्लिम बुद्धिजीवियों ने भी मुसलमानों की पढ़ाई पर जोर देना शुरू किया और उन्हें धार्मिक शिक्षा के साथ-साथ वैज्ञानिक, तकनीकी, चिकित्सीय तथा प्रशासनिक शिक्षा की ओर अग्रसर किया। कुण्ठित बुद्धि खुली और देश की मुख्य धारा में जुड़कर मुसलमानों ने भी देश की सेवा का व्रत लिया और देश को विकसित करने के लिए बढ़कर आगे आये लेकिन देश की आजादी के विरूद्ध साजिश रचने वाले गिरोह ने उसे स्वीकार नहीं किया और हर शासन के खिलाफ मुसलमानों के तुष्टिकरण की नीति का दुष्प्रचार जोरो शोर से किया और मुसलमानों के तुष्टिकरण के दुष्प्रचार को हर आयोग की रिपोर्ट ने झुठलाया है।

यह मानना होगा कि कांग्रेस विरोधियों से कहीं कहीं भूल हुई कि उन्होंने देश की आजादी विरोधी गिरोह को अपना साथी बनाया, जिसका भरपूर लाभ उस गिरोह ने उठाया। 1977 में जनता पार्टी की सरकार बनी जिसमें कई प्रमुख मंत्रालय उस गिरोह के मुखिया लोगों के पास रहा, उन सीधे-साधे लोगों ने देश विरोधी गिरोह की साज़िश नहीं समझा और उस समय उस गिरोह के मुखिया लोगों ने शासन के हर तंत्र में अपने लोगों को फिट किया, जिसकी भनक देर में ही सही तत्कालीन समाजवादी नेता राजनरायण को लगी और उन्होंने दोहरी सदस्यता का प्रश्न उठाकर गिरोह को शासन तंत्र से अलग करने का प्रयास किया लेकिन गिरोह की साज़िश कामयाब हुई और सरकार टूट गई। राष्ट्रीय एकता, अखण्डता और भाईचारा पर कुठाराघात हुआ और फिर एक समय आया जब साम्प्रदायिक भावना भड़काकर देश की आजादी का विरोधी गिरोह शासन में आया। उत्तर प्रदेश में उस गिरोह का शासन स्थापित हुआ और केन्द्र के शासन पर भी उसका वर्चस्व कायम हुआ। जिसका नतीजा 6 दिसम्बर, 1992 की देश की सबसे बड़ी आतंकवाद घटना, उस घटना से पहले और बाद में गिरोह की सोच ने हजारों देशवासियों की जान ली, देश की सम्पत्ति को नुकसान पहुंचाया और देश में आतंक का माहौल पैदा हुआ और बढ़ता रहा।

मुसलमानों ने हिम्मत नहीं हारी, देश के संविधान के अनुसार धार्मिक शिक्षा प्राप्त कर अपने चरित्र का निर्माण और आधुनिक शिक्षा प्राप्त कर देश के विकास में आगे बढ़े, जिसे यह गिरोह सहन नहीं कर सका और केन्द्र तथा राज्य में एक साथ शासन में आने के बाद देश के मुसलमानों के साथ षड़यन्त्र रचने में लगा रहा। धार्मिक शिक्षा देने वाली संस्थाओं चाहे वह नदवद उल उलमा लखनऊ हो या दारूल उलूम देवबंद हर एक के खिलाफ यह गिरोह आतंकवादी शिक्षा देने और आतंकवादी तैयार करने का दुष्प्रचार करने लगा, मदरसों पर छापे डलवाये, साज़िश के तहत कोई छोटी-मोटी घटना कारित कर केन्द्र में तत्कालीन गृहमंत्री और उत्तर प्रदेश में तत्कालीन नगर विकासमंत्री मीडिया पर चिल्लाना शुरू करते थे कि अमुक घटना में लश्करे तोयबा और सिमी (स्टूडेन्ट स्लामिक मूवमेन्ट आॅफ इण्डिया) का हाथ है और नतीजतन 27 सितम्बर, 2001 को सिमी पर पाबन्दी लगा दी गई, जिसका खुलासा ट्रिब्यूनल के फैसले से होता है। ट्रिब्यूनल के उस फैसले पर माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने रोक लगा दी और नये सिरे से सरकार ने सिमी पर पाबन्दी लगाई और सरकार के इसी फैसले से तंग आकर शाहिद बद्र फलाही ने नई पाबन्दी के खिलाफ ट्रिब्यूनल में जाने का इरादा तर्क कर दिया। एक आतंकवादी हो तो गिनाया जाए, गुजरात को मुसलमानों के सामूहिक वध का वर्कशाप बनाकर वहां पर गिरोह के मुखिया ने आतंक का माहौल पैदा किया जो धीरे-धीरे पूरे देश में फैल गया और यह गिरोह जो ब्रिटिश साम्राज्य का समर्थक रहा था अमरीकी साम्राज्यवाद का समर्थक बन बैठा और अपने देश में अमरीका का वर्चस्व कायम करने में कोर कसर नहीं रखा। खूफिया तंत्र में अमरीा, इसराइल और ब्रिटेन का साझा फौजी प्रशिक्षण में अमरीका का हाथ, देश के अर्थतंत्र में अमरीका और इसराइल का हस्तक्षेप बढ़ा है।

26/11 की जांच का नतीजा बताता है कि मुम्बई हमले में डेविड कोलमैन हेडली का पूरा हाथ रहा है जो खुला हुआ सी0आई0ए0 और एफ0बी0आई का एजेन्ट होने के साथ-साथ सी0आई0ए0 और आई0एस0आई0 की बीच की कड़ी है लेकिन हमारी सरकार बेबस और मजबूर उससे पूछताछ भी नहीं कर सकती। अमेरिका जब चाहेगा पाकिस्तानी आतंकी को पाकिस्तान भारत के हवाले करेगा और उसके खुद के लिए इससे अधिक कहना क्या? मालेगांव ब्लास्ट में अभिनव भारत और सनातन संस्था ऐसे संगठनों से सम्बन्धित लोगों का नाम आया है साथ ही संघ परिवार के एक प्रमुख का नाम आया है, आई0एस0आई0 के साथ उनके अच्छे प्रगाढ़ रिश्ते का। संघ परिवार की छत के नीचे पलने वाले अनेक संगठन हैं और इन्हीं संगठनों का नाम आया है। गोआ और मक्का मस्जिद हैदराबाद के ब्लास्ट में। हमारी जांच एजेन्सियां पहले से ही तय कर लेती हैं कि हर ब्लास्ट में मुसलमानों का शामिल होना और तफ्तीश का रूख हर दिशा में न करके सिर्फ एक दिशा में मोड़ दिया करती हैं जिसके कारण सही नतीजा सामने नहीं आता है।

पहले आतंकवादी पैदा करने में मदरसों का नाम आया और उसे सच साबित करने के लिए हमारी जांच एजेन्सियों ने उन मदरसों से पढ़कर निकलने वाले या फिर उनमें पढ़ने वाले नौजवान को निशान बनाया और जब देखा कि मुसलमान नौजवान आधुनिक शिक्षा में भी रूचि रखता है और आगे बढ़ने के लिए शिक्ष ग्रहण कर रहा है तो ऐसे नौजवानों को मुल्जिम बनाया, साथ ही 2006 से 2008 तक वह समय रहा है जब पूरे देश के मुसलमानों को विदेशी आतंकवादी संगठनों से भी जोड़ने का प्रयास किया गया जिसके नतीजे में बंगाल और कश्मीर के कम पढ़े-लिखे नौजवानों को भी अभियुक्त बनाया गया लेकिन उन सब की बेगुनाही के सबूत चिल्ला-चिल्लाकर बोल रहे हैं और कह रहे है कि सारे के सारे नौजवान बेगुनाह हैं। 23 जून, 2007 को लखनऊ में पकड़े गये जलालुद्दीन और नौशाद के तथाकथित बयान पर उ0प्र0 एस0टी0एफ0 द्वारा अली अकबर हुसैन और शेख मुख्तार की गिरफ्तारी हो या 26 जून, 2007 को अलीपुर प0बंगाल के ज्यूडीशियल मजिस्टेªट की अदालत से अजीजुर्रहमान को कस्टडी में लिया जाना, जो 22 जून, 2007 से 26 जून, 2007 तक मजिस्ट्रेट के आदेश से एस0ओ0जी0/सी0आई0डी0 प0 बंगाल की कस्टडी में था। 12 दिसम्बर, 2007 और 16 दिस्मबर, 2007 को क्रमशः गिफ्तार किये गये मो0 तारिक कासमी और मो0 खालिद मुजाहिद की गिरफ्तारी 22 दिसम्बर, 2007 को दिखाई गई है। राजस्थान से गिरफ्तार किये गये नौशाद नगीना जिला बिजनौर से गिरफ्तार किये गये, याकूब और उत्तरांखण्ड के हरिद्वार से गिरफ्तार किये गये नासिर की गिरफ्तार लखनऊ से दिखाई गई। फर्जी कार्यवाही फर्जी होती है और वह फर्जी साबित होगी, ऐसा मेरा विश्वास है। हर मुकदमे और हर मुल्जिम को गिना पाना यहां सम्भव नहीं है और न ही यहां उसकी आवश्यकता है, यह तो कुछ उदाहरण उद्धृत किये गये हैं। आफताब आलम अंसारी बेगुनाह साबित हुआ, शेख मुबारक की बेगुनाही ने उन्हे जेल की सलाखों से बाहर किया, मक्का मस्जिद हैदराबाद के मामले में बनाये गये अभियुक्त छोड़े गये और सच्चाई धीरे-धीरे सामने आ रही है यानी कि जो गिरोह गुलाम भारत में देश के खिलाफ साज़िश में लगा हुआ था आज भी उसकी साजिशें रूकी नहीं हैं और पहले वह ब्रिटिश साम्राज्य की दलाली करता था आज अमरीकी साम्राज्य की दलाली में लगा है। देश पर फिर से साम्राज्य स्थापित न हो और देश की सम्प्रभुता बरकरार रहे इसलिए हमें असली आतंकवादी को पहचान करके आतंकवाद से बचाने के लिए अपने को चैकस रखना होगा और आतंकवादी गिरोह बेगुनाहों को आतंकवादी कहकर खुद आतंकवाद फैला रहा है, समझना होगा यही है असली आतंकवाद।

मुहम्मद शुऐब एडवोकेट

7.5.10

अभी-अभी दिन था, अभी-अभी रात है

चंचल, चपल, नटखट तो आपने बहुत देखे सुने होंगे, मगर हमारे बाराबंकी शहर वाली में जो बात है, बखान कैसे करें ?
गिरा अनयन, नयन बिन्तु बानी इस चंचल का कहीं ठिकाना नहीं, राणा प्रताप के घोड़े के समान यहाँ है तो वहाँ नहीं वहाँ है तो यहाँ नहीं। एक दिन वह आई मन प्रफुल्लित हो गया। ऐसा लगा किअबू बिन अदहसवाला फ़रिशता गये। चारों ओर रोशनी ही रोशनी दिल खुश हुआ, हाथ में क़लम उठाया, फिर क्या हुआ।
ज़रा सी आँख जो झपकी तो फिर शबाब था तुरन्त चम्पत हो गई, नौ दो ग्यारह भी कह सकते है। उसका जाना बहुत नागवार गुज़रा।
अभी अभी दिन था, अभी अभी रात है।
दिल जल उठा, तन बदन में आग लग गई, आँखों के आगे अंधेरा छा गया, इस विरह के कारण अबबिरहाभी तो नहीं गा सकता था, उस कारण कि मूड ख़राब हो चुका था। कहाँ लिखनें का मन बनाया था, अब विचार भी पलायन कर गये, इस परेशानी में कलम जो टटोला, वह नहीं मिला, लगा कि वह भी कहीं सरक गया।
ग़ालिब ने कहा था कि मौत का दिन मुक़र्रर है, लेकिन क्या बतायें जनाब। इस चंचल का तो एक क्षण भी मुक़र्रर नहीं।
वैसे तो इसका हर धर से संबंध का़यम है, ‘हरजाईसमझाये। रूकती कहीं नहीं। आप ने आसमान में बिजली चमकती देखी होगी, वह किस प्रकार आती है और कैसे तुरन्त गा़यब हो जाती है। लगता हैं इस चंचल ने उसी से टेªनिंग ली है। एक साहब नें उपमा में कहा कि यह हमारे शहर वाली, उसी की छोटी बहन है। मैं नें इसका विरोध करते हुए कहा कि श्रीमान यह छोटी नहीं, बड़ी बहन है। रात भर ग़ायब, बस करवट बदलते रहिये।
इस चंचल को कोई काबू में नहीं कर पाया, यहाँ तक कि हमारे प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती जी, जो बड़ांे बड़ों को क़ाबू में कर लेती है, इसको आज तक दुरूस्त कर सकीं।
मैनें तो अपने शहर की बिज़ली के बारे में बता दिया, आप के यहाँ क्या हाल है ? कुछ बताइये ना
यह चुपसी क्यों लगी है, अजी मुँह तो खोलिये।

डॉक्टर एस.एम हैदर

ना मारो और ना मरो ...

क्या कभी ऐसा भी दिन आएगा कि कोई कसाब जेल में नहीं होगा और किसी ऐसे व्यक्ति को सज़ा-ए-मौत भी न होगी???

हाँ ऐसा दिन ज़रूर आ सकता है. जब ऐसे लोगों को मौत की सज़ा बिना किसी देरी के दे दी जाया करेगी.

यह दुनिया बहुत खूबसूरत है, भाई ! खुद भी मज़े से जियो और दूसरों को भी जीने दो !!!

ना किसी को मारो और ना ही खुद मरो !!!

Mission India Foundation Meets at Narnaul, Haryana


अप्रैल 26 , 2010 को नारनौल , हरियाणा में मिशन  इंडिया फौन्देशन (Mission India Foundation, वेब साईट लिंक: www.MIFusa.org) की बैठक आयोजित हुयी. इस दौरान इस स्वयम सेवी संस्था द्वारा संचालित टीकाकरण कार्यक्रम का ब्यौरा लिया गया.
मीडिया में मिली कवरेज़ के लिए कृपया इन प्रेस क्लिप्पिंग्स पर क्लिक कीजिये.

6.5.10

मानव अधिकार सुरक्षा संघ की टीम ने कैराना (उत्तरप्रदेश ) का दौरा किया

शिक्षा ही उन्नति का मार्ग है : खान
कैराना, (उत्तरप्रदेश) : देश की अग्रणी सामाजिक संस्था मानव अधिकार सुरक्षा संघ की टीम ने कैराना का दौरा किया। कैराना कस्बे के लोगों ने संघ की टीम का जोरदार स्वागत किया। इसके बाद कैराना के गण्यमान्य व बुद्धिजिवियों बातचीत करते हुए संघ के अध्यक्ष अकबर खान ने कहा कि यह संगठन पूरी तरह से गैरराजनीतिक है तथा इसका मुख्य मकसद निःस्वार्थ भाव से लोगों की सेवा करना है। वैसे तो संघ विभिन्न प्रकार के सामाजिक कार्य करता है, लेकिन किरण क्षेत्र में उनका मुख्य ध्यान शिक्षा के क्षेत्र में ही रहेगा, क्योंकि वह समझते हैं कि शिक्षा ही उन्नति का मार्ग है। अगर व्यक्ति गरीब है और पढ़ालिखा है तो भी वह तरक्की कर सकता है, लेकिन अनपढ़ आमतौर पर जीवन में कामयाब नहीं हो पाता। सरकार ने शिक्षा का अधिकार कानून पास किया है। इस कानून की सार्थकता तभी सिद्ध होगी जब इसको पूरे देश में अच्छे ढंग से लागू किया जाएगा। भारत अपने आप में कितना ही आगे क्यों ना चला गया हों, लेकिन शिक्षा के मामले में वह पिछड़ा हुआ है। इसी पिछड़ेपन को दूर करने का बीड़ा "मानव अधिकार सुरक्षा संघ" ने उठाया है। संघ ने शिक्षा के स्तर को ऊंचा उठाने के लिए रोशनी नामक प्रोजेक्ट हाथ में लिया है। इसी प्रोजेट को लेकर संघ की टीम कैराना में आई है। उन्होंने कैराना को इसलिए चुना है यह क्षेत्र शिक्षा के दृष्टिकोण से बिल्कुल पिछड़ा हुआ है। यहां के शिक्षा के मामले में पिछड़ेपन का इसी से अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि कैराना तहसील के काकोर गांव में आज तक भी कोई सरकारी या गैर सरकारी स्कूल नही है। उन्होंने बताया कि जल्द भविष्य में संघ कैराना में एक एकल स्कूल स्थापित करने की योजना बना रहा है जिसमे ओउप्चारिक व अनौपचारिक दोनों तरह की शिक्षा दी जाएंगी। इस मौके पर कैराना के पार्षद सुनील धीमान, रियासत अली काबिस, पत्रकार अंसार सिद्दकी व पत्रकार ताराचंद सैनी सहित अन्य काफी मौजिज लोगों ने संस्था की शिक्षा के प्रति सोच के प्रति भूरी-भूरी प्रसंसा करते हुए कहा कि कैराना के लिए यह बड़े सौभाग्य की बात है कि कोइ संस्था इतनी दूर से चलकर कुछ करने के लिए खुद उनके कस्बे में आई है। कैराना के लोगों ने संघ केपदाधिकारियों को आश्र्वासन दिलाया कि यहां पर संघ द्वारा किए जाने वाले हर कार्य में कस्बे के लोग उनकी पूरी मदद करेंगे।
बाद मै मशहूर ब्लॉगर उमर कैरानवी ने संघ की टीम का उन तालाबों व महलों का दौरा करवाया जिनका जिक्र बादशाह जहांगीर ने अपनी किताब में किया है। संघ के सदस्य कैराना के उस स्थान पर भी गए जहां पर मुस्लिमधर्म में
पवित्र माने जाने वाला खजूर का पेड़ तथा हिंदू धर्म में पवित्र माने जाने वाला पीपल का पेड़ आपस में आलिंगनबद्ध हैं। कैराना के लोग इस स्थान को हिंदू व मुस्लिम एकता का प्रतीक मानने के साथ-साथ बहुत ही पवित्र मानते हैं। इस स्थान पर एक मजार भी बनी हुई है। कैराना में गई संघ की टीम में संघ के अध्यक्ष अकबर खान के साथ प्रवीण शुक्ला, विनोद पांडेय, विपिन चौधरी, विनोद वर्मा व सुमेर मलिक शामिल थे।

दिल मिले या न मिले, हाथ मिलाते रहिये

वाशिंगटन में अमेरिका ने जो परमाणु सुरक्षा शिखर सम्मेलन अप्रेल 10 के दूसरे सप्ताह में आयोजित किया, उसमें शरीक होकर स्वदेश वापसी से पूर्व हमारे प्रधानमंत्री ब्राजील की राजधानी ब्राजीलिया, ब्रिक (ब्रिक) सम्मेलन में भाग लेने हुतु पहुँचे, इस सम्मेलन में ब्राजील, रूसा, भारत एँव चीन के सुपर लीडरों ने भाग लिया। इस अवसर पर भारत एँव चीन ने सहयोग एँव मित्रता बढ़ाने के एक दूसरे से वादे किये, मनमोहन सिंह और चीन राष्ट्रपति हू जितांओ गर्मजोशी से हाथ मिलाते हुए दिखाये गये।
दूसरी ओर लगभग इसी समय हमारे विदेशमंत्री एस0एम0 कृष्णा, चीन से राजनयिक संबधों के दो दशक पूरे होने पर खुशी जाहिर करने बीजिंग गये। संबंधो को मजबूती हेतु गुलाम कश्मीर, वीजा विवाद और अरूणाचल प्रदेश में दखल अदांजी आदि मसलों को उठाया गया, परन्तु चीन नें कोई तवज्जो नहीं दी।
इसी समय चीनी दूतावास की ओर से विवादित नत्शी वीजा अरूणचल प्रदेश निवासी पेंबा तमांग को जारी किया गया जो राष्ट्रमंडल खेलो में निशानेबाजी का स्वर्ण पदक प्राप्त-करता रहे थे। जाहिर है कि भारत नत्थी वीजा के खिलाफ है, इसी हेतु निशाने बाज नें जाने से इन्कार किया।
हमारे प्रधानमंत्री विदेशी-मामलों के माहिर नहीं हैं, वे प्रख्यात अर्थ-शास्त्री हैं, ये और बात है कि भारतीय अर्थ-व्यवस्था को वह आश्वासनों के बावजूद अभी तक पटरी पर नहीं ला सके और उनकी अर्थ-नीति धनवानों को लाभ पहुँचाने वाली और अमेरिका द्युरी पर नाचने वाली है।
जहाँ तक विदेश-नीति की बात है, इस मोर्चे पर मनमोहन सिंह ने दो अपरिपक्क ब्यक्रियों को लगा दिया। थुरूर नें तो कई विवाद पैदा किये और निकाले गये। कृष्णा जी हर मोर्चे पर असफ़ल रहे। वर्तमान असफ़लता बीजिंग यात्रा की रही। तथा उनके सतकक्ष यंग नियामी नें कृष्णा की बातें दरकिनार कर दीं। यह वही समय था जब ब्राजीलिया में मनमोहन जी जिताओ से हाथ मिला रहे थे।
दिल मिले या न मिले, हाथ मिलाते रहिये।
किसी शायर द्वारा कही हुई पंक्ति में अगर इस प्रकार संशोधन कर दें, तो कैसा रहेगा ? दिल तो मिलता नहीं, बस हाथ हिलाते रहिये।

डॉक्टर एस.एम हैदर

5.5.10

मज़ा तो जब है कि गिरतों को थाम ले साक़ी

राजनैतिक एँव समसामयिक विषयों पर बातें कहाँ तक हों, आइये कुछ गंभीर विषयों पर सैधांतिक चर्चा भी करें। आध्यात्मिकता नैतिकता एवं धार्मिकता पर आज कल के नौजवान, जो ‘‘ईट, ड्रिंक एण्ड बी मेरी‘‘ पर विश्वास रखते हैं, नाक भौं सिकोड़ते हैं, सोचने की बात है कि मौज-मस्ती शराब, जुआ, मारफिया का सेवन, नाचगाना एवं धूम्रपान आदि चाहे ऐसा आता है जब इन में लिप्त व्यक्ति अपने को संतुष्ट महसूस कर सके ?
शायर ग़ालिब चाहे जितने बड़े दार्शनिक हों, उन्हों नें अपने कृत्यों के शायद बचाव के लिये ही ये शेर कहा होगा।
अगले वक़तो के हैं ये लोग इन्हें कुछ न कहो जो मय व नग़मा को अन्दोह रूबा कहते हैं उन्होंनें शराब व संगीत को बर्बाद करने वाली चीजें नहीं माना, उल्टे पुराने लोगों की हंसी उड़ाई। नौजवान वर्ग नें इस ‘लाजिक‘ को ‘बक-अप‘ भी खूब किया, लेकिन मज़हब नें इन चीजों पर जो पाबंदी लगाई आप उसका चाहे जितना मजा़क उड़ाये, ज़माना बदलने से बहुत सी बुनियादी वास्तविकतायें कभी नहीं बदलती। कोई भी समझदार व्यक्ति नशे में कही गई ग़ालिब की इस भड़काऊ बात से सहमत नहीं हो सकता, हाँ शेर के अन्दाज़ को पसंद कर सकता है।
अब रही बात धर्म की, उसका जा़हिरी रूप इतना विकृत है, और उसमें आडम्बरों को इतना सम्मान दे दिया कि इसकी आत्मा पूरी तरह ओझल हो गई। जो व्यक्ति इसका वर्तमान चेहरा देखता है, वह या तो इससे नफ़रत करता है या इसी रंग में रंग जाता है। कुछ दशिनिकों ने इसे ‘अफ़ीन‘ हैं, जिनके नशे में नौजवान वर्ग खूब मस्त है।
समाज में दिखाने के धर्म और मूल धर्म जिसमें आहयामिकता एँव नैतिकता समाहित है, इन दोनों में अन्तर न कर पाने के कारण धर्म आधारित जो भी बात होती है उसको पढ़ालिखा कह कर नकार देता है, इस प्रतिक्रिया में उसके आधुनिकता के नशे का भी प्रभाव होता है जो पश्चिम से उस तक पहुँचा है।
धूम्रपान की मिसाल ही लीजिये, धर्म जब इसे निषिघ्द करते हैं तो इस पर कोई तवज्जो नहीं देता लेकिन जब इससे डाक्टर स्वास्थ के अधार पर रोकते हैं, या पंजाब में सिख लड़केे इस कि खिलाफ़ आन्दोलन चलाते हैं, या सिगरेट एँव पाउच पर सावधानी लिख दी जाती है ता वैज्ञानिक सलाह की कोई आलोचना नहीं करता भले उसके आधार पर आचारण में परिवर्तन हो या न हो।
शराब अगर बुरी न समझी जाती तो मद्य निषेध विभाग की कोई आवश्यकता ही न रहती। अब ‘खुमार‘ का ये शेर कहाँ तक प्रासंगिक है, आप खुद सोचिये, बहैसियत साहित्यक खूबी के मुझे भी पसंद है। शेख़, सुनी सुनाई पर आप यकी़न न लाइये मय है हराम या हलाल, पी कर ज़रा बताइये।
अब जुए और सट्टेबाजी़ पर नज़र डालिये, जिसमें गारिब अपनी सम्पति खोते हैं, और धनी इनका शोषण करके और मोटे होते जाते है, ग़रीब की ज़मीन, छप्पर, गहने यहाँ तक कि बीबी तक बिक जाती है। सट्टे में आई0पी0एल0 तथा बी0सी0आई0 की कहानी अभी ताजी़ है, सुनन्दा नें मुफ़त में 70 करोड़ मारे, ललित मोदी, थुरूर या अन्य बड़ों ने क्या किया, यह भी सभी को आभास है। बेचारे क्रिकेट प्रेमी अपनी पेब कटवाते हैं।
अब शराब व नाच गाने पर मुर्शरफ़ की खबर अभी अभी अखबारों में छपी है। सभी धर्मो, मुख्य रूप से इस्लाम में यह बातें पूर्णतयः वर्जित हैं। एक इस्लाम का दम्म मरने वाला तथा इस्लामिक देश का पूर्ण रहनुमा यह हरकतें करेगा, कम से कम इस्लामी दुनिया का सर इन बातों से ज़रूर झुकेगा। पूरी बात आप नें देखी सन्दर्भ हेतु मैं यहाँ इसका उल्लेख करूँगा-शीर्षक यह छपा है- ‘‘खूब नाचे परवेज‘‘ वह अमेरिका के एक रेस्तराँ में ज़ोरदार ठुमके लगाते देखे गये, उनके सिर पर जाम था, लेकिन मजाल थी कि मुशर्रफ़ के ठुमकों से कोई बूंद छलक जाती।
वाशिंगटन में अमेरिका नें जो परमाणु सुरक्षा शिखर सम्मेलन अप्रेल 10 के दूसरे सप्ताह में आयोजित किया, उसमें शरीक होकर स्वदेश वापसी से पूर्व हमारे प्रधानमंत्री ब्राजील की राजधानी ब्राजीलिया, ब्रिक (ब्रिक) सम्मेलन मुर्शरफ नें सेना हयक्ष या पाकिस्तानी प्रशासक के तौर पर चाहे जितने तमगे़ बटोरे हों ़-उन्होंने अपने स्र्वाथ में पाकिस्तान को नीचा दिखाने में कोई ओर कसर नहीं छोड़ी, मुल्क को अमरिका के हाथों गिरवा रक्खा, कैरगिंल काण्ड द्वारा भारत को धोकर दिया, नवाज़ शरीफ़, बेनज़ीर और इफ़़तरवार चैधरी को खूब नाच नचाया, अब खुद भी नाचे नाचे फिर रहे हैं।
इस नाचने को अगर ग़लत न समभल जाता तो मेडिया में तिरस्कार के नहीं बल्कि गर्व के अन्दाज़ में यह ख़बर छापी जाती।
समाज-सुधारक या धर्म या इस्लाम धर्म विलासिता, नाच गाने या शराब के विरूद्ध जब अपनी आवाज़ उठाते हैं तो बहुत से लोग आधुनिकता के दबाव में इन बातों या उपदेशों की आलोचना यह कह कर करते हैं कि ये बातें हमारी आज़ादी पर अकुश लगाती हैं। परन्तु जब समाज के विद्धान यह कहते है कि अत्यधिक विलासिता, नृत्य एवं संगीत या स्वतंत्र यौन-क्रियामें आप को गहरी खाइयें में ढकेल देंगी या जब डाक्टर यह कहता है कि शराब पीना छोड़ दीजिये इससे आप का स्वास्थ्य या फेफडे़ ख़राब हुए जा रहे हैं तब इन बातों को हम हयान से सुनते हैं, और यदि इन पर अमल नहीं करते है तो बहुत जल्द ख़मियाज़ा भी भुगतते हैं। अतः धर्म यदि कुछ कहे-शर्त यह हैं कि वह पाखण्ड के तहत न हो, और वह बातें नैतिकता या आहयानिकता को बढ़ावा देने वाली हों तो उन से भडकना नहीं चाहिये। नशे के बारे में ग़ालिब का शेर आप ने सुना, अब इक़बाल का भी सुन लीजिये-
नशा पिला के गिराना तो सब को आता है। मज़ा तो जब है कि गिरतों को थाम ले साक़ी।
-डा0 एस0 एम0 हैदर