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25.4.10

लो क सं घ र्ष !: इन्साफ हो किस तरह कि दिल साफ नही है

परमाणु अस्त्रों के सम्बन्ध में अनेक मंचों पर जब चिंता जताई जाती है तब हमकों एक कहानी याद आ जाती है-कुछ लोग एक मुर्दा उठायें हुए शमशान की ओर जा रहे थे, मोटा ताजा होने के कारण जब उसके भारीपन का एहसास हुआ तो उपाय सोचने हेतु उसे उतारा गया, फिर मुंह की ओर से कफ़न खोला, बड़ी बड़ी मूँछे देखकर एक सज्जन ने राय यह दी कि इसकी मूँछें उखाड़ लो।
अस्त्रों के अप्रसार, निरस्त्रीकरण आदि के अनेक समझौते हुए, एन0 पी0 टी0, सी0 टी0 बी0 टी0 की संधियाँ काफी पहले की हैं, परन्तु समस्या जहाँ थी वही अब भी हैं। बात यह है कि हुल्लड़ वही देश मचाते है जिनके पास विश्व भर के परमाणु हथियारों का 95 ज़खीरा मौजूदा है। यह हुल्लड़ भी इसलिये होता है कि वे दुसरो पर निशाना साधते रहें और किसी को उनकी ओर उंगली उठाने का मोका ने मिले।
आप ग़ौर करें कि चीन के पास 200, इस्राईल के पास 200, भारत, पाकिस्तान के पास 100-100 परन्तु अमेरिका व रूस के मिला कर 22 हजार से अधिक परमाणु हथियार हैं।
अप्रेल 10 के दुसरे सप्ताह में इस मामलें पर दो स्थानों पर र्वातायें हुईं।
सप्ताह के आरम्भ में चेकोस्लोवाकिया की राजधानी प्राग में अमेरिका राष्ट्रपति ओबामा तथा रूसी राष्ट्रपति मेदवेदेन ने परमाणु हथियारों में 30 कटौती के समझौते पर हस्ताक्षर किये। यह संधि 1991 की स्र्टाट संधि (स्ट्राटेजिक आर्म्स रिडक्शन ट्रीटी ) की जगह लेगी।
सप्ताह के अंत में नाभिकीय सुरक्षा सम्मेलन अमेरिका ने आयोजित किया, जिसमें भारत समेत 47 देशों नें परमाणु प्रौद्योगिकी था सूचना के गलत हाथों में न पड़ने देने का संकल्प लिया। ताकि सामग्री सूचना एवं तकनीक आतंकियों तक न पहुंचे। इस सम्मेलन से कुछ दिन पूर्व अमेरिकी विदेशी मंत्री हिलेरी किलंटन ने एक अमेरिकी यूनिवर्सिटी में भाषण देते हुए भारत पाकिस्तान को धमकाया यह कहते हुए कि इन्हीं देशों ने परमाणु संतुलन बिगाड़ा है। इसके लिये यह मुहावरा है उल्टे चोर कोतवाल को डांटे। इस भाषण में उन्होंने एक महत्वपूर्ण बात यह जरूर कही कि परमाणु अप्रसार संधि के तीन छोर हैं, पहला निरस्त्रीकरण, दूसरा अप्रसार, तीसरा परमाणु ऊर्जा का शांतिपूर्ण इस्तेमाल।
हथियारों को घटाना, उनका अप्रसार, गलत हाथों में न पड़ना, इन सब बातों से बेहतर तो यही था कि मूल मुद्दे निरस्त्रीकरण पर दो टूक बाते की जाती। 1945 में इसकी भयावह तस्वीर सामने आई थी, जब अमेरिका ने नागासाकी शहर पर बम छोड़ा जिससे 90 हजार लोग मरे, फिर हिरोशियमा पर बम ब्लास्ट में एक लाख चालीस हजार जाने गई तथा 69 फीसदी इमारते नष्ट हो गई।
यह सच मानिये कि परमाणु प्रसार के मामले में अमेरिका की सब से बड़ा अपराधी है, 1945 के बाद से आज तक 65 वर्ष हो चुके हैं परन्तु मुख्य मुद्दे से ध्यान हटाने की बाते होती रहती हैक्ं। यदि पूर्ण निरस्त्रीकरण लागू हो जाये तो सभी समस्यायें सुलझ जायें। अब उत्तर कोरिया और ईरान यदि अपराधी हैं तो उन्हें सजा जरूर दीजिये लेकिन इस्राईल का दोष क्यों नजर नहीं आता?

इस दहर में सब कुछ है पा इन्साफ नहीं है।
इन्साफ हो किस तरह कि दिल साफ नही है।

डॉक्टर एस.एम हैदर

हम बचपन में...

मेरी ग़ज़ल अमर उजाला कोम्पेक्ट में  ( जो कविता के नाम से छप गई है )
बड़े आकार में देखने के लिए मैटर पर किल्क करें.

 
















 
प्रबल प्रताप सिंह

24.4.10

असुरक्षित रेल यात्रा

एक समय था जब रेल यात्रा सुरक्षित हुआ करती थी। धीरे-धीरे एक समय ऐसा आया जब रेलवे की टिकट खिड़कियों से लेकर टेª के अन्दर गिरहकटी हुआ करती थी। टिकट खिड़कियों पर लिखा रहता था गिरहकटों से सावधान। गिरहकटों से सावधान पर निगाह पड़ते ही लोग अपनी-अपनी जेब देखने लगते थे और इसी में गिरहकट भांप जाते थे कि उन्हें किस जेब पर हाथ साफ करना है। टिकट हाथ में आने के जब बचा हुआ पैसा टिकट खरीदने वाला अपनी जेब में डालता था तब वह अवाक रह जाता था क्योंकि उस वक्त तक उसकी जेब साफ हो चुकी थी। लम्बी दूरी के मुसाफिर के पीछे ट्रेन में भी गिरहकट लगे रहते थे और जेब साफ कर पाने की स्थिति में एक गिरहकट दूसरे गिरहकट के हाथ मुसाफिर को बेच दिया करता था और पूरे रास्ते में कहीं कहीं उसकी जेब साफ हो जाती या सामान गायब हो जाता था। ट्रेनों में टपके बाजी भी जोरों पर होती थी। प्लेटफार्म से ट्रेन के चलने के समय खिड़कियों से हाथ की घड़ियां, कान के झुमके वगैरह भी खींचने का चलन एक जमाने में जोरों पर था।

चोरी, गिरहकटी और टपकेबाजी के बाद टेª डकैतियों का युग आया। अक्सर टेª डकैतियां समाचार-पत्रों की खबरें बनी रहतीं और आज भी कभी-कभी टेª डकैती हो जाती है। टेª डकैती एक बड़ी घटना हुआ करती थी जिस पर सरकार तथा रेल विभाग का ध्यान गया और टेªनों में मुसाफिरों की हिफाज़त के लिए गार्ड भी तैनात किये गये और इस तरह डकैतियों का सिलसिला काफी हद तक थमा, अगर वह किसी पुलिस वाले के द्वारा डाली गयी हो क्योंकि ऐसी खबरें भी अक्सर आती रहती हैं।

राजनीति में भी आने वाले लोग ट्रेनों का दुरूपयोग करने से नहीं चूकते और नारा लगाते हुए चलते हैं - ‘‘एक पैर रेल में एक पैर जेल में’’ और इन रेल पर बिना टिकट चलने वालों के पैर जेल तो कभी नहीं गये लेकिन रेल में चढ़ने के बाद टिकट रखने वाले मुसाफिरों को तकलीफ जरूर पहुंचाया। स्लीपर क्लास वालों को बैठने का मौका देकर उनकी सीटें छीन लेते रहे, ये हैं राजनीतिक लोग; लेकिन वो लोग भी इन राजनीतिक लोगों से कम नहीं जिनकी जिम्मे देश की सुरक्षा सौपी गयी है। अक्सर फौजी लोग ट्रेन से आम मुसाफिरों को बाहर फेंक दिया करते हैं क्योंकि वह अपना अधिकार समझते हैं कि देश की सुरक्षा के बदले वे किसी भी आम नागरिक को चोट पहुंचायें।

इतना सब कुछ मैंने सिर्फ इसलिए कहा क्योंकि भाजपा की एक महारैली दिल्ली में थी, जिसमें पूरे देश के भाजपाई, देशभक्त उमड़ पड़े, एक बहुत बड़ा जत्था मुगलसराय से भी गया था। 20 अप्रैल, 2010 को 730 बजे ट्रेन- 2397 महाबोधी एक्सप्रेस मुगलसराय पहुंची, जिसके कोच नम्बर एस 5 में बर्थ नम्बर 1, 9, 10, 11, 12, 13 और 14 और एस 13 एस 14 में क्रमशः बर्थ नम्बर 13 और 23 अल्लाह की गाय के नाम से जाने जाने वाले तबलीग़ी जमात के लोग जाने को थे जो टेª पर सवार हुए जहां देखा कि उनकी सीटों पर दूसरे लोग बैठे हुए थे। उन लोगों ने अपनी सीट पर बैठे लोगों से सीट खाली करने को कहा, तो उन लोगों ने सीट नहीं खाली की जिसकी शिकायत सिक्योरिटी गार्ड से की गई। शिकायत करने पर भाजपाइयों ने नारेबाजी शुरू कर दी और कहा कि वे उस ट्रेन में कठमुल्लाओं को नहीं जाने देंगे और यह भी कहा कि अगर उनसे बल प्रयोग करके सीट खाली करा ली गई तो वे आगे जाकर कठमुल्लाओं को ट्रेन से बाहर फेंक देंगे। इसी के साथ ट्रेन के दूसरे डिब्बों में बैठे अपने दूसरे साथियों को बुलाने के उद्देश्य से नारेबाजी तेज कर दी, जिनकी मंशा भांप कर तबलीग़ी जमात के लोग ट्रेन से उतर गये और जाकर टिकट वापस कर दिया। ऐसी स्थिति में कौन हिम्मत करेगा, टेª से सफर करने की। जब वैध टिकट रखकर सफर करने वालों की सुरक्षा की कोई गारन्टी नहीं है और बिना टिकट चलने वालों के खिलाफ या बिना टिकट चलने वालों को सफर से रोकने के जिम्मेदार लोगों के खिलाफ कोई उचित कार्यवाही की जाए। है यह असुरक्षित रेल यात्रा, क्या आप इसके लिए तैयार हैं।

-मोहम्मद शुऐब एडवोकेट

23.4.10

साइबर का सबसे बड़ा घोटाला

भारतीय रेल के कर्मचारियों आई.आर.सी ( टिकट जारी करने वाली एजेंसी) ने मिलकर भारतीय साइबर अपराध में कीर्तिमान स्थापित किया हैभारतीय रेल के कर्मचारी ट्रेन को कुछ समय के लिए कंप्यूटर नेटवर्क पर गलत तरीके से ट्रेन को रद्द होना दिखा देते थेट्रेन रद्द होने से स्वतः टिकट बुक करने वाली एजेंसी के अकाउंट में बुक कराये गए टिकटों का रुपया वापस चला जाता था और वास्तव में ट्रेन रद्द नहीं होती थी जारी टिकट के यात्री उसी टिकट पर यात्रा भी करते थेसूत्रों के अनुसार एक वर्ष में 310 ट्रेनों को कई कई दिन कुछ समय के लिए रद्द दिखाया गया हैरद्द दिखाते ही जारी -टिकट का रुपया घपलेबाज एजेंसियों के पास चला जाता था-टिकट का रुपया अकाउंट में वापस होते ही ट्रेन को चलता हुआ दिखाया जाता था जिससे यात्री अपना सफ़र कर सके इस तरह से अरबों रुपयों का घोटाला किया जा चुका हैरेलवे में हर साल कई सौ करोड़ रुपयों का घोटाला मंत्रालय स्तर से लेकर निचले स्तर तक होता रहता हैइससे पूर्व रिलायंस टेलीफ़ोन कंपनी ने भारत संचार निगम के अधिकारीयों से मिलकर अंतर्राष्ट्रीय कालों को लोकल काल में दिखा कर कई सौ करोड़ रुपयों का घोटाला किया थाकई सौ करोड़ के घोटाले बाजों को कानून दण्डित करने में असमर्थ है लेकिन छोटे-मोटे चोर उच्चकों को जनता से लेकर पुलिस पीट-पीट कर मार डालती है
अंत में,
बंगलुरु स्टेडियम के बाहर हुए बम ब्लास्ट के सिलसिले में गिरफ्तार किये गए मेरठ के इमरान, काशिम तथा बिजनौर के सुनील मामूली अटैची चोर निकले

मेरी तस्वीर लेकर क्या करोगे...

22.4.10

प्रधानमंत्री की दोस्ती

अभी ताज़ा बयान है हमारे प्रधानमंत्री श्री मनमोहन सिंह कि उनकी दोस्ती ईरान के साथ है और ये दोस्ती अक्षुण रखने के लिए वह हर हाल में ईरान के साथ हैं। ऐसा ही दावा भारत के भूतपूर्व प्रधानमंत्री स्व0 चन्द्रशेखर ने भी इराक के साथ किया था और इराक के साथ दोस्ती बनाये रखने का दम भरते रहते थे। आज से नहीं सदैव से भारत फिलिस्तीन के साथ रहा है और फिलिस्तीन की हर सम्भव सहायता करने का दम भरता रहा है। कुछ ऐसा ही चरित्र अमेरिका का फिलिस्तीन के साथ रहा है और वह बराबर कहता रहा है कि फिलिस्तीन को वह इजराइल के हाथों बर्बाद नहीं होने देगा; लेकिन नतीजा सबका सामने है।

जिस वक्त इजराइल फिलिस्तीन बर्बरतापूर्ण हमले करता है, आम नागरिकों का संहार करता है, अस्पतालों और नागरिक क्षेत्रों पर हमले करके बेगुनाह और जिन्दगी से जूझ रहे बीमारों का संहार करता है, कुल मिलाकर खून की होली खेलता है। ऐसे वक्त पर अमेरिका बोल उठता है कि इजराइल गलत कर रहा है और वह उसे ऐसा नहीं करने देगा, लेकिन मामला ज्यों का त्यों बना रहता है। इजराइल की बर्बता बढ़ने पर अमेरिका भाषा बदली हुई है और वह फिलिस्तीन को इंसाफ दिलाने की बात कर रहा है।

अब देखिये भारत सरकार का व्यवहार, कथनी और करनी का अन्तर। दोस्ती फिलिस्तीन के साथ है लेकिन मदद इजराइल की। फिलिस्तीन कमजोर पड़ता है इसलिए मदद इजराइल से। भारत सरकार इधर काफी दिनों से फिलिस्तीन के साथ दोस्ती समाप्त करके इजराइल के साथ दोस्ती बढ़ाए हुए है। सुरक्षा हथियारों की खरीदारी देश के लिए घातक टेक्नोलाॅजी (चाहे वह किसी क्षेत्र में ही क्यों न हो), इजराइल की खूफिया एजेन्सी मोसाद की मदद, उससे प्रशिक्षण, सैनिक प्रशिक्षण प्राप्त करना भी भारत सरकार के एजेण्डे में है लेकिन दोस्ती और हमदर्दी फिलिस्तीन के साथ ही है।

देखा है भारत सरकार की दोस्ती इराक के साथ भी। भारत के प्रधानमंत्री कहते नहीं थकते थे कि भारत पूरी तरह इराक के साथ है। एक तरफ अमेरिका इराक की ताकत की जांच रासयनिक हथियारों की जांच के बहाने करके तत्कालीन इराक के राष्ट्रपति सद्दाम हुसैन के बड़बोलेपन की हकीकत जानना चाहता था और एशिया में अपना एक ठिकाना बनाने के लिए प्रयासरत था। इसमें वह कामयाब हुआ और हमारे भूतपूर्व प्रधानमंत्री बराबर यह कहने के बावजूद कि वह अमेरिका की सैन्य सहायता नहीं करेंगे, वह चाहे किसी भी प्रकार की क्यों न हो अमेरिकी लड़ाका विमानों को ईंधन देते रहे, इसे क्या कहा जाए, अमेरिका के दबाव में काम करना या और कुछ!

अब परखना है अपने वर्तमान प्रधानमंत्री के दावे को, मनमोहन सिंह जी ने अभी कहा है कि वह पूरी तरह ईरान के साथ हैं और ईरान के साथ किसी प्रकार का प्रतिबंध लगाने के खिलाफ हैं। अभी बार-बार डेविड कोलमैन हेडली को अपनी कस्टडी में लेने का उनका दावा सफल नहीं हो सका है, अमेरिका के बुलावे पर वह हाजिरी देकर वापस आ गये हैं, अपनी बात मनवाने का दम उनके अन्दर नहीं है (हां, अमेरिका की हर बात मानने को वह तत्पर रहते हैं)। अमेरिका के साथ यह दोस्ती, दोस्ती तो नहीं कही जा सकती, उसे तावेदारी का नाम अवश्य दिया जा सकता है। एक तावेदार अपनी दोस्ती उस देश के कब तक कायम रख सकता है जबकि वह जिसके साथ दोस्ती का दम भरता है उस देश का दुश्मन नम्बर एक है, जिसका कि भारत के प्रधानमंत्री तावेदार हैं। मेरी नेक सलाह है कि प्रधानमंत्री जी ईरान के साथ दोस्ती का दावा करने के बजाय अपने देश की सम्प्रभुता बचाये रखें। यही देश के प्रति वफादारी है और दोस्ती भी।

मोहम्मद शुऐब एडवोकेट

21.4.10

केक को खा के सिवइयों का मजा भूल गये

हम ने सुना है कि यात्रियों केा गिरहकट एक दूसरे के हाथ बेच लिया करते थे, बोलियाँ लगवाकर नीलाम करते थे, बेचारे मुसाफिर को खबर तक होती थी। अब क्रिकेट प्रेमियों की भी जेब किसी किसी रूप में प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से कटती है। आप कहेंगे कि हम यह नहीं मानते, मानिये, यह तो मानेंगे कि आई0पी0एल0 (इण्डियन प्रीमियर लीग) जो बी0सी0सी0आई0 की एक उप समिति है, ने बड़ी बड़ी बोलियों पर मैचों की नीलामी की है। अब आप खुद सोचिये कि नीलामी छुड़ाने वाले घाटे का सौदा तो करेंगे नहीं, जितना खर्च करेंगे, उससे ज्यादा कहीं कहीं से प्राप्त करेंगे।
इतनी सी बात से आप यह सूत्र पा गये होंगे कि आई0पी0एल0 के कमिश्नर ललित मोदी और विदेश राज्यमंत्री शशि थुरूर के बीच झगड़ा किस बात का था और सुनंदा पुष्कर का क्या किस्सा है। सभी अपनी अपनी बचत में एक दूसरे की पोल खोल रहे थे और यह जनता है कि सब जानती है।
इस संक्षेप को अगर विस्तार दिया जाय तो कहानी लम्बी हो जायेगी काफी खुलासा हो चुका है।
बात पूछोगे तो बढ़ जायगी फिर बात बहुत।
बस थोड़ा और स्पष्ट कर दूं।
टवेंटी-20 मैंचेों को लोकप्रिय बनाने का श्रेय आई0पी0एल0 को मिला। तीन वर्ष पहले जब आई0पी0एल0 की आठ टीमों की नीलामी हुई, क्रिकेट जगत के साथ साथ कार्पोरेट जगत में भी हलचल मची। नई दो टीमों पुणे और कोच्चि की नीलामी पिछली आठ से भी अधिक थी।
अब थुरूर के विदेश राज्यमंत्री पद से जब इस्तीफा ले लिया गया तो मोदी के आरोपों का और भी खुलासा हो गया। सुनन्दा ने भी रेंदेयु से इस्तीफा दिया तथा यह भी सच्चाई सामने गई कि थुरूर ही के कारण उन्हें 19 प्रतिशत भागीदारी तथा 70 करोड़ की धनराशि मिली थी। जब आई0पी0एल0 की ब्राण्ड वैल्यू 4 अरब डालर से अधिक बढ़ी तो इससे ऐसे ऐसे राजनेताओं ने दिलचस्पी ली, जिनको क्रिकेट का ककहरा तक ज्ञात नहीं है। आई0पी0एल0 की फ्रेंचाइजी टीमों ने पूँजी बाजार का रूख किया और सट्टेबाजी भी खूब की, क्रिकेट व्यापार बन गया और क्रिकेट प्रेमियों के क्रेज़ को भुनाया गया।
सरकार ने इस्तीफ़ा लेने से पूर्व अपनी एजेन्सियों द्वारा सरकारी पता करा लिया, बी0 सी0 आई0 पर भी दाग़ देखे गये, अब वह भी जाँच के घेरे में है।
अब इसका दूसरा पहलू भी देखियों, क्रिकेट प्रेमी होना भीस्टेट्स सिम्बलबन चुका है, इनके कई वर्ग हैं, एक वर्ग उन बडे़ आदमियों या अभिजात्य वर्ग के युवाओं का है जो विलासिताओं के लिये अपने बड़ों द्वारा अर्जित धन को लुटाने के बहाने ढूढ़ते रहते हैं, दूसरा वर्ग उन छुटभैय्ये युवाओं का है जो धनी युवाओं की चाटुकारिता हेतु अपनी छोटी सम्पत्तियों का वारा न्यारा करके अपने को धनियों जैसा दिखाना चाहते हैं और उन्हीं की बगल में बैठना चाहते हैं। तीसरा वर्ग उन बेरोजागार ग्रामीण तथा शहरी युवाओं का है जो अपनी देशी बातों पर गर्व के बजाय हीनता का भाव रखता है। तथा विदेशी चीजों का दीवाना है। वह कबड्डी के बजाय अपने का क्रिकेट प्रेमी दिखाना पसन्द करता है। अकबर इलाहाबादी के सुपुत्र जब इंगलैण्ड पढ़ने गये तो उनमें यही भावना गई थी, अतः अकबर ने कविता रूप में एक पत्र भेज, जिसकी एक पंक्ति इस समय मुझे याद गई-

केक को खा के सिवइयों का मजा भूल गये

यदि मुझे दकियानूसी समझे तो क्या मैं यह कहने की हिम्मत करूं कि भारतीय गरीब बच्चों के लिये तो इस झूठे क्रेज से बेहतर तो मुंशी प्रेम चन्द का गुल्ली डण्डा था, जिसमें खर्च भी नहीं था और खुली हवा भी मिलती, अब तो बच्चे बंद कमरों में टी0वी0 से चिपके रहते हैं, स्वास्थ्य बनने के बजाय बिगड़ता है, तथा पढ़ाई लिखाई एवं घर के कामकाज भी कई कई दिन तक प्रभावित होते हैं सरकार खिलौना पकड़ा देती है या यूं कहिये कि नशे की गोली दे देती है जिससे वह मस्त होकर अपनी समस्याये भूल जाते हैं वे ऐसे आलसी बनते हैं कि तो काम करते हैं, ही सड़क पर निकल कर सरकार से काम मांगते हैं उल्टे सरकार की जय जय कार करते हैं क्रिकेट प्रेमी कृपाया मुझे क्षमा करें।
-डॉक्टर एस.एम हैदर