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15.4.10

ब्लॉग उत्सव 2010 का शुभारम्भ

सम्मानीय चिट्ठाकार बन्धुओं,

सादर प्रणाम,

अंतरजाल पर परिकल्पना के श्री रविन्द्र प्रभात द्वारा आयोजित ब्लॉग उत्सव 2010 का शुभारम्भ आज बजे दिन में प्रारंभ हो गया है जिसके लिंक आप लोगों की सेवा में प्रेषित हैं।

-सुमन
loksangharsha.blogspot.com


परिकल्पना ब्लोगोत्सव गीत


कला दीर्घा में आज : अक्षिता(पाखी) की अभिव्यक्ति


हिन्दी ब्लोगिंग में अपने अनुभवों से रूबरू करा रहे हैं श्री ज्ञान दत्त पाण्डेय


हिन्दी चिट्टाकारी की समृद्धि हेतु एक अच्छे चिट्टाचर्चा-मंच की जरूरत है : उन्मुक्त


पंकज सुबीर जी का कविता पाठ : दर्द बेचता हूं मैं


दुष्यंत के बाद हिंदी के बहुचर्चित गज़लकार श्री अदम गोंडवी का पत्र परिकल्पना ब्लॉग उत्सव के नाम


ग़ज़ल प्रस्तुति : फूल जैसे बचपने में खेली पली है जिन्दगी॥


utsav.parikalpnaa.com

सात समुन्दर पार : लेखिका - कमलेश चौहान -समीक्षा -ज्ञान दर्पण -रतन शेखावत

चंडीगढ़ के यूनिस्टार पब्लिकेशन ने "सात समन्दर पार " हिंदी उपन्यास प्रकाशित किया है जिसे लिखा है अमेरिका में रहने वाली भारतीय महिला कमलेश चौहान ने

कमलेश चौहान पंजाब साहित्य सभा द्वारा प्रेस्टीयस एन आर आई एकेडमी अवार्ड जनवरी २००९ से भी सम्मानित है

उपन्यास अमेरिका में रहने वाले एक एनआरआई से शादी करने वाली महिला के जीवन की सच्ची घटना पर आधारित है

इस उपन्यास की मुख्य किरदार सुन्दरी नामक एक महिला है
जो कि साधारण परिवार में जन्मी स्वतंत्र विचारों वाली ,बहादुर,चतुर ,वाक्पटु और सुन्दर महिला है
अपनी दो बहनों की शादी के खर्च के वित्तीय बोझ से दबे परिवार पर सुंदरी कभी बोझ नहीं बनना चाहती इसीलिए वह अपनी शादी की बजाए अपनी पढाई को प्राथमिकता देती है साथ ही गलत सामाजिक अवधारणाओं के खिलाफ आवाज उठाती है

सुन्दरी आकाश नाम के एक लड़के जिसे वह अपने सपनो का राजकुमार समझती है से बेइन्तहा प्यार करती है लेकिन उसके इस प्यार के रिश्ते को उसके घर वाले कभी स्वीकार नहीं करते और उसकी शादी एक एन आर आई से कर दी जाती है

अपने परिवार की आर्थिक व सामाजिक परिस्थितियों के चलते सुन्दरी उस एनआरआई से शादी कर लेती है और इस तरह शुरू होती है सुन्दरी की सात समंदर पार यात्रा

सुन्दरी एक पढ़ी लिखी महिला होने के बावजूद उसे महसूस कराया जाता है कि वह विदेशी वातावरण के लायक नहीं है उसका पति उसे अहसास करता है कि वह सामाजिक तौर पर उसकी बराबरी की नहीं है और वह उसकी भावनात्मक व वास्तविक इच्छाएँ कभी पूरी नहीं करता
वह हमेशा अपनी नौकरानी की तरह आज्ञाओं का पालन करवाना चाहता है 

लेकिन सुन्दरी इन सबके खिलाफ आवाज उठाती है और अपना एक अलग अपने खुद के उसूलों वाला व्यक्तित्व तैयार करती है
वह विदेशी कानून की मदद से तलाक़ लेकर खुद को अपने पति से अलग कर लेती है और समाज में अपनी पहचान बनाने का संघर्ष शुरू करती है इसी संघर्ष को इस पुस्तक में उकेरा गया है

इसके अलावा इस पुस्तक में भावनात्मक विषयों को छुआ गया है
जो भारतीय महिलाऐं शादी करके पश्चिमी देशो में पंहुच हिंसा, भावनात्मक व शारीरिक शोषण का शिकार बनती है उनके अनगिनत किस्से इस पुस्तक में संजोये गए है

और शोषण का शिकार बनी महिलाओं को उपन्यास के माध्यम से उनके अधिकारों से परिचित कराना व उनकी शक्ति को बढ़ाना है

उपन्यास में एक नारी के अरमानो व भावनाओं को गंभीरता से दर्शाने का प्रयत्न किया गया है

उपन्यास की किरदार सुन्दरी अपने प्यार से वंचित हो एक प्रेमरहित विवाह करती है ताकि वह अपने परिवार की वित्तीय सहायता व सामजिक प्रतिष्ठा बना सके लेकिन लेकिन इन प्रेमरहित बांहों के दलदल से निकलने के लिए वह जो संघर्ष कर एक ऐसी नारी बनती है जो समाज में अपना एक अलग निशान छोड़ती है

कमलेश चौहान एनआरआई से शादी करने के चक्कर में ठगी गयी भारतीय महिलाओं पर एक और उपन्यास लिख रही है " धोखा सात फेरों का "

14.4.10

कुत्ता


मुझे जानवरों का कोई शौक नहीं है और न ही जानवरों में कोई दिलचस्पी। वे इसलिए कि जानवर पालने के लिए जानवर बनना जरूरी है, चाहे वह थोड़ी ही देर के लिए। यह जरूर है कि जानवरों से पैदा होने वाली चीज़ का इस्तेमाल करता हूं। जानवरों से एक सीख जरूर मिली है कि एक जानवर दूसरे जानवर को कभी कुछ देता नहीं है, शायद इसीलिए मैथिली शरण गुप्त ने लिखा हैः

यही पशु प्रवृत्ति है कि आप-आप ही चरे,
मनुष्य
है वही जो मनुष्य के लिए मरे।

आज अगर मैथिलीशरण गुप्त जीवित होते तो हर पल जीवित रहते हुए मरते रहते, वो इसलिए कि मनुष्य ने भी पशुता को चरितार्थ कर लिया है। एक मनुष्य दूसरे मनुष्य को खाते हुए नहीं देख पाता अच्छा खाना देखकर चाहता है कि सामने वाले का खाना ऐन केन प्रकारेण उसकी प्लेट में आ जाए। बिना परिश्रम के वह धनवान बन जाए। अपनी सेवा के लिए सेवक भी रखे और सेवा के बदले सेवक को कुछ न देना पड़े तो फिर कहना क्या।
लगता है कि विषय से भटक गया हूं मैं। लिखने बैठा कुत्ते के विषय में और लिख डाला पशु और मनुष्य के विषय में और शायद मैंने ऐसा इसलिए किया कि अपन आदत के अनुसार मैंने कभी कुत्ता भी नहीं पाला। हां, मैं अपने बड़े भाई के साथ जब रहता था तो उन्होंने जरूर एक बार कुतिया पाली थी। कुत्तों के विषय में जानकारी न रखते हुए भी मैंने विषय कुत्ता चुना और इसीलिए इस विषय पर बहुत ज्यादा लिख नहीं पाऊंगा, फिर भी जितना ज्ञान है उसको यहां उड़ेलने की कोशिश में हूं।
मैं गांव में पैदा हुआ पला-बढ़ा, इसलिए गांव की गलियों में घूमने वाले कुत्तों की जानकारी जरूर रखता हूं। मेरे गांव में एक डूंडा कुत्ता रहता था लेकिन था बहुत तेज। उसका उसके क्षेत्र में इतना आतंक था कि बच्चे हाथ में रोटी लेकर बाहर नहीं निकलते थे, बड़े खुले में बैठकर खाना नहीं खा सकते थे, वो इसलिए कि वह झपट कर लोगों से खाना छीन लेता था। ऐसे भी कुत्ते थे जो आदमियों से डरे सहमे रहते, एक बार एक डण्डा पटकने से भाग खड़े होते और अपने से मजबूत कुत्ते को देखकर दुम दबाकर दांत निपोर देते थे। अगर अपने से मजबूत कुत्ता उनकी तरफ झपटा तो झपटने वाले कुत्ते की मंशा भांप कर ही वो लेट जाते। अब देखिए अपना समाज, क्या अपना समाज इन कुत्तों के समाज से भिन्न है। मनुष्य समाज भी अपने से कमजोर को दबाकर रखता है। कोशिश करता है कि उसका हिस्सा भी खुद खा जाए और दूसरा समाज जो उससे डरता है उसी कमजोर और डरपोक कुत्ते की तरह अपने से मजबूत के सामने दांत निपोरता रहता है। उसका जूठन पाने के लिए झूठी तारीफें करता और क्रोध की मुद्रा में आने पर उस मुद्रा को भांपने के बाद चित पड़ जाता है।
गांव से निकलकर कस्बे में आया। मैंने अपने बड़े भाई को देखा उन्होंने कुतिया पाल रखी थी और लोगों को बड़े गर्व से बताते थे कि ये कोई मामूली नस्ल की नहीं है और पहली बार उनकी ही जबान से सुना कि वह अलसीशियन नस्ल की है, भेड़िये की नस्ल से मिलती-जुलती। बड़े भाई का शौक देखकर उनके कहते रहने से मुझे भी उस कुतिया का ध्यान रखना पड़ता था। उसके लिए रातिब का इंतजाम करना पड़ता था, दूध और रोटी तो रोज ही खिलाया जाता। जब तक वो कुतिया नहीं थी मेरे भतीजों के लिए घर में दूध खरीदकर आता था, लेकिन कुतिया पालने से अपने को प्रतिष्ठित होने के एहसास से घर में एक गाय भी पाल ली गई। मैं आज भी सोचता हूं कि गाय पालनी थी तो अपने और बच्चों के लिए क्यों नहीं पाली गई और पाली गई भी तो कुतिया के लिए। उस वक्त भी मेरे अन्दर कुतिया से छोटे होने का एहसास जागा था, लेकिन वो एहसास मन्द पड़ जाता था, जब सोचता था कि शायद वो शिकार में कुछ मददगार साबित हो। कभी-कभी मैं उस कुतिया को लेकर नदी की तरफ चला जाता था, जहां झाड़ी में बहुत सारे छोटे-छोटे जानवर रहते थे और मैं उस कुतिया से उम्मीद रखता था कि वह उन छोटे जानवरों को पकड़ लेगी, लेकिन मुहावरा गलत नहीं है, शिकार के वक्त कुतिया ...........................। कुतिया को शिकार की तरफ ललकारने के लिए हमेशा मैं उससे आगे रहा और वो कभी पुचकारने पर भी मुझसे आगे नहीं हो सकी, इस लिए इस मुहावरे को मैंने तजुर्बे के बाद कहा गया मुहावरा समझा।
एक आदत मैंने और देखी कुत्तों में कि अगर आप एक हड्डी फेंकिये तो कोई कुत्ता अपने सामने वाले कुत्ते को उस हड्डी तक नहीं पहुंचने देना चाहता। इसीलिए शायद यह मुहावरा भी कहा गया - कुत्ते के सामने हड्डी डालना। इस मुहावरे का इस्तेमाल समर्थ लोग खूब करते हैं। हड्डी डालकर लड़ाते और तमाशा देखते हैं और जब लोगों की नजर हड्डी पर होती है तब हड्डी डालने वाला अपने लिए मांस के प्रबंध में लग जाता है। मांस खाता है और हड्डी के लिए लड़ाता है।
कहा जाता है कि कुत्ता एक वफादार जानवर है और अपने मालिक से वफादारी करने में अपनी जान तक की बाजी लगा देता है। समझदार लोग कुत्ते की वफादारी की जानकारी रखने के कारण कुत्ता पालते हैं, उन्हें दूध और मांस खिलाते हैं। यही सब देखकर पं0 सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ के कलम से स्वर फूटे:

श्वानों को मिलता दूध-वस्त्र, भूखे बालक अकुलाते हैं,
मां की छाती से चिपक, ठिठुर जाड़े की रात बिताते हैं।

यह श्वानों को जो दूध-वस्त्र मिलता है वह उनकी हैसियत बढ़ाने या उनकी भूख ठीक से मिटाने के लिए मानवतावादी दृष्टिकोण से नहीं होता। उन्हें दूध-वस्त्र मिलता है उनकी सेवाओं के बदले। अक्सर बात चली है कि अमुक घर में ऐसे मोटे और तन्दुरूस्त कुत्ते हैं जो किसी को फाटक से अन्दर नहीं जाने देते। अगर कोई हिम्मत करके आना भी चाहे तो उसकी बोटियां नोच डालते हैं और इस प्रकार उनके घर में कुत्ते रहने से वो और उनका घर सुरक्षित रहता है। इसके अतिरिक्त कुछ ऐसी नस्ल के कुत्ते हैं जो देखने में सुन्दर लगते हैं और उनकी सुन्दरता इतनी अधिक होती है कि कहीं-कहीं उन कुत्तों के मुकाबले उनके बच्चे नहीं आकर्षक लगते। इसी कारण ऐसे लोगों की गोद में उनके बच्चों की जगह ये कुत्ते पाये जाते हैं। इतना सब होते हुए भी कोई व्यक्ति अपने को कुत्ता कहलवाना नहीं पसंद करता। वह चाहे जिस कुत्ते के चरित्र का हो, अगर कोई उसे कुत्ता कह दे तो कुत्ते की तरह उसका मुंह नोंच लेता है।

हम मनुष्य हैं, मनुष्य रहें, मानवता के लिए अपने को समर्पित कर दें, स्वयं में मानवता लायें, कुत्ते के चरित्र से अपने को दूर रखें तो यह मानव समाज, मानव समाज बन जाएगा और इस समाज को हम कुत्ता समाज से अलग कर सकेगें। इसलिए हम अपने लिए जब कुत्ता शब्द उचित नहीं समझते तो आवश्यक है कि कुत्ता चरित्र छोड़कर मानव चरित्र अपनायें। बस इतने मात्र के लिए मैंने आज कुत्ता विषय पर कुछ पंक्तियां लिख डालीं।

-मोहम्मद शुऐब एडवोकेट

13.4.10

या रब, न वह समझें हैं, न समझेंगे मेरी बात

खाना, कपड़ा, मकान, रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य की समस्यायें ही क्या कम है, अब पानी, बिजली और एल0 पी0 जी0 का हाहाकार भी आम जनता के मन को मथे डाल रहा है, जल निगम गाँव-गाँव नलों का जाल बिछा रहा हैं मगर लगभग सभी जगह से कुछ ही दिन में यह शिकायत मिलती है कि नलों नें पानी देना बन्द कर दिया। विद्युत विभाग नें सुदूर ग्रामों, पुरवों तक खम्बे गाड़ दिये, तार दौड़ा दिये बिजली आज तक न आई। वित्तीय वर्ष खत्म होते ही ठेकेदारों के भुगतान हो जाते है, अफसरों की जेबें कमीशन से गर्म हो जाती हैं, आँकडे़ आ जाते हैं-देश-प्रदेश का विकास हो रहा है, जनता सुखी होती जा रही है।
शूल-त्रिशूल की यह कहानी आगे बढ़ती है, पेट्रोलियम मंत्रालय अब ग्रामीण जनता पर (डीज़ल के मंहगा करने के बाद) गैस सिलेन्डर देने हेतु इनायत की नज़र डालने जा रहा है-दाम वही लिये जायेंगे जो शहरी उपभोक्ताओं से लिये जाते हैं-इस सुविधा का उद्देश्य ग्रामीण महिलाओं को लकड़ी, कंडों के सुलगाने की परेशानी को दूर करना है।
शहरों का हाल सभी जान रहे हैं कि गैस मिलने में इतनी दिक़क़तें आ गई है कि अनेक लोग फिर लकड़ी कोयला जलाने के लिये मजबूर हो गये।
इधर पेट्रोलियम मंत्री मुरली देवड़ा बेचारे तेल कम्पनियों के हित में ही मुरली बजाते हैं-उनके भी कुछ हित होंगे।
खबर यह है कि दाम बढ़ाने के लिये किरीट पारेख समिति की रिपोर्ट ढूँढी जा रही है। ताकि पेट्रोल पर लगभग 7 रूपये, ड़ीजल पर 5 रूपये, मिटटी के तेल पर 19 रूपये प्रति लीटर तथा रसोई गैस पर 275 रूपये प्रति सिलेन्डर का जो घाटा तेल कम्पनियों का हो रहा है उसकी भरपाई की जा सके।
मज़ेदार खबर यह भी है कि दाम बढ़ाने से पहले ‘समझाओं अभियान‘ पर कम्पनियाँ 20 करोड़ रूपये खर्च करेंगी। जनता बेचारी जो पहले ही से हौलाई हुई है, क्या समझ पायेगी-कोई मुझको यह तो समझा दें,कि समझायेगें क्या।
तेल कम्पनियों और देवड़ा जी को जनता के लिये ग़ालिब की ज़बान में यह ‘कोरस‘ पढ़ना चाहिये-

या रब, न वह समझें हैं, न समझेंगे मेरी बात,
दे और दिल उनको, जो न दे मुझको जु़बाँ और।

मेरे खयाल से यही शेर जनता को देवड़ा के लिये भी पढ़ना चाहिये। देवड़ा जी की समझ में आखिर यह क्यों नहीं आता कि वह गरीब जनता को कब तक कसेंगे ? कब तक खून के आँसू रूलवायेंगे? और तेल कम्पनियों से दोस्ती कब जारी रखेंगे? यह भी समझाना चाहिये कि चुनाव में कम्पनी चंदा तो जरूर देगी लेकिन वोट जनता के हाथ में होगा-
रहिमन देख बड़ेन को, लघु न दीजिये डारि।
जहाँ काम आवै सुई, कहा करै तलवारि॥

- डा0 एस0 एम0 हैदर

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जिला योजनाकार विभाग ने गिराए अवैध निर्माण

सफीदों, (हरियाणा) : जिला योजनाकार विभाग जींद ने सफीदों में कई स्थानों पर से अवैध निर्माणों को हटवाया। इस कार्रवाई में ड्यूटी मैजिस्ट्रेट सफीदों के तहसीलदार ज्ञानप्रकाश बिश्नोई रहे तथा कार्रवाई की अगुवाई डी.टी.पी. बसंत हुड्डा ने की। किसी भी अप्रिय घटना से बचने के लिए एस.एच.ओ. दलीप सिंह के नेतृत्व में व्यापक पुलिस बल तैनात था। अवैध निर्माणों को हटवाने की कार्रवाई को चलाने के लिए जिला योजनाकार विभाग के अधिकारी सुबह ही सफीदों पहुंच गए थे। सबसे पहले सफीदों बाईपास पर बनी अवैध छोटीछोटी दुकानों को ढ़हाया गया। उसके बाद नगर में कई स्थानों पर से अवैध निर्माण हटवाए गए। पत्रकारों से बातचीत में डी.टी.पी. बसंत हुड्डा ने बताया कि विभाग ने अवैध निर्माण करने वालों के खिलाफ अभियान चलाया हुआ है। इस अभियान के तहत सभी अवैध निर्माणों को हटवाया जाएगा। उन्होंने बताया कि उनको सफीदों में कई स्थानों पर अवैध निर्माण की जानकारी मिली थी तथा अवैध निर्माण करने वालों को पहले नोटिस दिए गए थे। नोटिस जारी होने के बावजूद भी अवैध निर्माणकर्ताओं ने अपने निर्माणों को नहीं हटवाया तो विभाग को यह कारवाई करनी पड़ी है। उन्होंने अवैध निर्माणकर्ताओं को चेतावनी देते हुए कहा कि जिन लोगों अवैध निर्माण का रखे हैं वे उन निर्माणों को खुद हटा लें अन्यथा जिला योजनाकार विभाग उन अवैध निर्माणों को खुद हटवाएगा तथा अवैध निर्माण करने वाले लोगों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई अमल में लाई जाएगी। उन्होंने भविष्य में भी इस तरह की कार्रवाई जारी रखने की बात कही।

स्वदेशी परिंदों पे.........

                                        -डॉ० डंडा लखनवी    

स्वदेशी     परिंदों    पे   परदेसी    पर   हैं ।
मगर    अपने   अंजाम    से    बेख़बर  हैं ॥


कल     "ईस्ट इंडिया  कंपनी"  ने  चरा था,
अब  उससे  भी  शातिर बहुत  जानवर  हैं॥


उधर   उसने    कल-कारखाने     हैं    खाए,
इधर   कामगारों     की    टूटी   कमर  हैं॥


सियासत   के   गहरे  समन्दर   में    देखो-
गरीबों    को    चारा    बनाते    मगर   हैं॥


ठगी,    चोरी,     मक्कारी,   वादाखिलफ़ी,
बचे  रहबरों    के   यही   अब    हुनर   हैं?


लगी    करने   सरकारें   भी   अब   डकैती,
कि  इंसाफ़ो-आईन  सभी   ताक़   पर  हैं॥


शहीदों    के    आँसू   उन्हें     खोजते   हैं,
नएयुग के आशफ़ाको-बिस्मिल किधर हैं॥ 
  

12.4.10

जहाँ काम आवै सुई, कहा करै तलवारि

अपने विद्यार्थी-जीवन में, मैंने ‘स्काईर्लाक‘ नाम की दो अंग्रेजी कवितायें पढ़ी थी, एक ‘वर्डस्र्वथ‘ की ‘स्काईलार्क‘ नामक चिड़िया आसमान में उड़ती थी परन्तु ज़मीन की खबर भी रखती थी परन्तु ‘शेली की ‘स्काइर्लाक‘ की उड़ान बहुत ऊँची थी, धरातल से उसका कोई नाता न था।
हमारे मीडिया कर्मी चाहे वे प्रिंट के हों, इलेक्ट्रानिक के या अन्य के हों, मुझे माफ करें, ऊँची उड़ान भरने के बड़े माहिर होते है। ख़बरो को चटपता बनाना, बड़ी बात को छोटी करना, छोटी को ‘इनर्लाज‘ करना उनके दाहने हाथ का खेल हैं। चौथे स्तम्भ के हमारे यह मित्र, पाठकों, दर्शकों को पतंग की तरह उड़ाते हैं, उनमें सनसनी पैदा कर देते हैं, उनकी सोच को जिधर चाहें मोड़ देते हैं- पेपर खूब बिकते हैं, दर्शक खाना-पीना भूलकर टी0 वी0 से चिपक जाते हैं, एक बच्चा जो टयूब वेल के गडढे में गिर गया था उसकी दास्तान, महीनों चली थी।
हमारें नौजवान शायद मुझ से सहमत न हों कि भारतीय टेनिस खिलाड़ी सानिया मिर्जा और पाकिस्तानी क्रिकेटर शोएब की आगामी शादी के मामले को ‘शेली‘ की ‘स्काईर्लाक‘ का रूप दिया गया। बच्चों को ही दोष क्यों दें, बूढ़ो की बासी कढ़ीं में भी खूब उबाल आते देखे गये।
मीडिया वाले भी कमरों में बैठकर चुपके-चुपके हंसते होंगे कि उनके हथकंडे काम आये।
दोनो की शादी के आखि़र ‘इशूज़‘ क्या थे? जितने मुंह उतनी बाते, पहले आयशा से शादी हुई थी या नही। तलाक़ होना चाहिये या नहीं, आयशा और शुएब में कौन सच्चा था कौन झूठा? ये मसला तो अब हल भी हो गया। अब बात यह रह गई कि पाकिस्तानी-हिन्दुस्तानी के बीच रिश्ता होना चाहिये या नहीं ? कुछ लोगों ने इसे साम्प्रदायिक्ता से जोड़ दिया। मौलाना कल्बे सादिक़ मेरी ही उम्र के होंगे (मैं सत्तर के पेटे में हूँ) वह भी पाजामा संभाल कर इस में फाँद पडे़, कुछ छींटे शेरवानी पर भी आये। मैं उनका बहुत सम्मान करता हुँ, वह विहदान हैं परन्तु उन्होंने इसे वतन परस्ती से जोड़ दिया। मैं भी वतन-परस्त हुँ परन्तु जर्मन-नेशनलिज़्म को पसंद नहीं करता मानवता-वादी पूरे संसार को कुटुम्बके समान समझता है। द्वेष-भाव त्याग कर अगर हम देखें तो दो मुल्कों के बीच सद्मावना की यह एक अच्छी शुरूआत मानी जा सकती है। क्या इससे पहले दो देशोंके नागरिकों के बीच ऐसे रिश्ते नहीं क़ायम हुए, क्या नेपल के राज़घराने से भरतीय रिश्ते नहीं रहे? क्या राजीव नें इटली की सोनिया से रिश्ता करके कोई जुर्म किया था। अतः कृपया ऐसा न करें-राई को र्पबत करें, र्पबत राई माहिं।

डॉक्टर एस.एम हैदर