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12.4.10

भजन सम्राट विनोद अग्रवाल के भजनों पर झूमे श्रृद्धालु


सफीदों, (हरियाणा) : श्रीकृष्ण कृपा सेवा समिति सफीदों के तत्वावधान में महामंडलेश्वर स्वामी ज्ञानानंद महाराज की प्रेरणा से रविवार रात को कस्बे के रामलीला ग्राउंड में एक शाम राधामाधव के नाम कार्यक्रम का आयोजन किया गया। कार्यक्रम शुभारंभ मुख्य अतिथि प्रसिद्ध समाजसेवी रामनिवास शर्मा गुड़गांव तथा विशिष्ट अतिथि सैशन जज पानीपत चिमन लाल मोहील हलका विधायक कलीराम पटवारी ने दीप प्रज्ज्वलित करके किया। कार्यक्रम में भजन सम्राट विनोद अग्रवाल मुंबई तथा बलदेव कृष्ण जगाधरी ने अपनी प्रस्तुतियों के माध्यम से भक्तों को कृष्ण रस में डूबो दिया।कार्यक्रम जैसेजैसे आगे बढ़ता चला गया वैसेवैसे श्रृद्धालुओं में कृष्ण रस की खुमारी बढ़ती चली गई। विनोद अग्रवाल के भजनों मेरा आपकी कृपा से सब काम हो रहा है, सांवरिया ले चल परली पार, नंदलाल सांवरिया मेरे, श्री राधा हमारी गोरीगोरी, मेरे श्याम सलोने आजा तेरा केडा मूल लगदा ने श्रृद्धालुओं में ऐसी खुमारी चढ़ाई कि जो जहां था वहीं पर नाचने को मजबूर हो गया। कार्यक्रम की सफलता में श्रीकृष्ण कृपा सेवा समिति के अलावा सफीदों जेसीज, भारत विकास परिष्द, युवा अग्रवाल सभा, युवा पंजाबी संगठन ब्राह्मण जागृति एवं विकास मंच के पदाधिकारियों ने अपनी अहम भूमिका निभाई।

11.4.10

भाजपा की सलाह

केन्द्र में शासन भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के नेतृत्व में लोकतांत्रिक संगठन का है। भारतीय जनता पार्टी प्रमुख विपक्षी दल है और उसका काम केवल विपक्ष की भूमिका अदा करना और अपने संगठन के सदस्यों को परामर्श देना और आवश्यकता पड़े तो विप जारी करना है। हां, गोधरा काण्ड के बाद गुजरात में जो कुछ हुआ उस पर भाजपा को मुखर होना था लेकिन वह न तो नरेन्द्र मोदी के पक्ष में और न ही विपक्ष में बोली, जबकि नरेन्द्र मोदी भाजपा के थे। अगर कोई कुछ बोला तो दबे स्वर में तत्कालीन भारत के प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी बोले और वह स्वर इतना दबा हुआ था कि भीड़ में खोकर रह गया। श्री अटल बिहारी वाजपेयी ने उस समय केवल इतना कहा था कि तत्कालीन गुजरात के मुख्यमंत्री को राजधर्म का पालन करना चाहिए। राजधर्म का पालन करने का परामर्श श्री अटल बिहारी वाजपेयी ने इसलिए दिया था कि उनको पता है कि भारत एक धर्म-निरपेक्ष लोकतंत्र में विश्वास रखता है और इस देश में हिन्दु-मुस्लिम-सिक्ख-ईसाई सब को (कुछ क्षेत्रों में छोड़कर) तमाम अधिकार प्राप्त हैं। कुछ क्षेत्रों को छोड़कर, की समीक्षा इस समय नहीं कर रहा हूं क्योंकि इसके लिए काफी समय की आवश्यकता है।

देश आतंकवाद के दंश को झेल रहा है और आतंकवाद को समाप्त करने के लिए केन्द्र अथवा राज्य सरकारों द्वारा कोई कारगर कदम नहीं उठाया गया है, बल्कि आतंकवाद का हौवा खड़ाकर डराने वालों के डर से हमारी सरकार कुछ कर पाने में असमर्थ है। अमेरिकी साम्राज्यवाद अपने मित्र राष्ट्रों की मदद से पूरी दुनिया पर हावी हो चुका है, अगर वह कह देता है कि आतंकवाद अमुक देश से निकलकर भारत के लिए खतरा बना हुआ है तो हममें यह साहस नहीं कि हम अमेरिका की इस कही बात को नकार सकें जबकि हमें पता है कि लीबिया के राष्ट्रपति पर अमेरिकी हमला गलत था, ईराक में घातक हथियार रखने का आरोप लगाकर पूरी छानबीन कर लेने के बाद घातक हथियार रखने का आरोप लगाकर अमेरिका ने ईराक पर हमला किया, अफगानिस्तान में वह आज भी तबाही मचा रहा है जबकि अफगानी आतंकवाद को पैदा करने वाला स्वयं अमेरिका ही है। मदद करने के नाम पर या मदद देकर अमेरिका ही पाकिस्तान की न केवल विदेशी नीति बल्कि आन्तरिक नीति भी तय करता है। इतना सब कुछ जानते हुए हमारी खामोशी अमेरिका को मूक समर्थन देती है बल्कि और सख्त ज़ुमला अगर इस्तेमाल किया जाए तो हमारे देश के लगभग सभी राजनीतिक दल अमेरिका के एजेन्ट का काम करते हैं।

लोकतंत्र में जनता द्वारा, जनता के लिए, जनता की सरकार होती है लेकिन हमारी सरकारें जनता द्वारा चुनी अवश्य जाती हैं लेकिन न तो वह उनकी अपनी और उनके लिए यह सरकार होती है। चुनाव इतने खर्चीले हैं कि जन-साधारण चुनाव लड़ने की सोच भी नहीं सकता, जब तक कि उसकी मदद कारपोरेट स्वयं या कार्पोरेट के एजेन्ट के तौर पर काम करने वाले राजनीतिक दल उसकी मदद करें। मैं दलों को कारपोरेट का दलाल इसलिए मानता हूं कि जनता को उसके अपने देश की भूमि पर आज़ादी के साथ अपनी रोजी-रोटी कमाने का अवसर नहीं दिया जाता बल्कि उनसे उनकी जमीन छीनकर उन्हें काॅर्पोरेट के रहमोकरम पर भी नहीं रहने दिया जाता बल्कि उनको बेघर करके दर-दर के लिए भटकने को मजबूर कर दिया जाता है। 1960 की दहाई में सरकार ने जबरों को आगे बढ़ाया, दलितों को बेघर होने के लिए मजबूर किया, जबरों की सेना बनी तो उस पर अंकुश नहीं लगाया, इसीलिए नारा लगा कुछ सरफिरों की ओर से - ‘‘आमार बाड़ी तोमार बाड़ी नक्सल बाड़ी-नक्सल बाड़ी’’।

समय से बीमारी का इलाज नहीं किया गया बल्कि बीमारी को दबा देने की कोशिश की गई। नक्सलवाद बढ़ता गया और कभी पीपुल्स वार ग्रुप के नाम से चलता रहा और कभी माओवाद के नाम से और आज जो आन्दोलन 1960 की दहाई में जन्मा उसने आज विकराल रूप ले लिया क्योंकि जिन अवयवों से इसका जन्म हुआ वह अवयव समाप्त नहीं किये गये बल्कि जुल्म को बढ़ने दिया गया, सरकारें भी जालिमों का साथ देती रहीं और नतीज़ा आज सामने है। अब भी समय है जुल्म को समाप्त करने का, जालिमों का पंजा मरोड़ने का और राजनीतिक दलों को काॅर्पोरेट का एजेन्ट न बनकर जन-प्रतिनिधि बनकर जन-साधारण के कल्याण के लिए काम करने का। अगर कोई देश का भला चाहता है तो किसी नेता को, मंत्री को या दल को इस तरह की सलाह देना होगा न कि अपने ही देश की जनता का दमन करने की सलाह। भाजपा की देश के गृहमंत्री को दी गई सलाह यह प्रकट करती है कि भाजपा भी देश के जन-साधारण के दमन के लिए तत्पर है, इसमें और कांग्रेस में कोई अन्तर नहीं है इसलिए कि इससे पहले भी महिला आरक्षण विधेयक पर कांग्रेस का साथ दे चुकी है।

मुहमद शुऐब एडवोकेट

10.4.10

हैं कवाकिब कुछ नज़र आते हैं कुछ, देते हैं धोखा ये बाज़ीगर खुला

हैं कवाकिब कुछ नज़र आते हैं कुछ,
देते हैं धोखा ये बाज़ीगर खुला।

दिनांक 8.4.2010 को महाराष्ट्र विधान सभा में जो कुछ हुआ किसी से छिपा नहीं है। राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी के विधायक जितेन्द्र अव्हाड़ ने सदन को बताया कि अभिनव भारत और सनातन प्रभात जैसे अतिवादी संगठन ने राष्ट्रीय स्वयं सेवक संध के वर्तमान सर्वसंघ चालक श्री मोहन भागवत की हत्या कारित करने का कार्यक्रम बना लिया था। उन्होंने यह भी कहा कि पाकिस्तानी खूफिया एजेन्सी आई0एस0आई0 की मदद से हिन्दुत्ववादी संगठन देश में अराजकता फैलाने के लिए प्रयासरत हैं और उन्होंने ही अजमेर की दरगाह में और समझौता एक्सप्रेस में बम धमाके किये थे। ए0टी0एस0 महाराष्ट्र के स्तम्भ रहे स्वर्गीय हेमन्त करकरे ने भी श्री मोहन भागवत को इस तथ्य की जानकारी देते हुए उन्हें आगाह किया था, कारण कि वह संगठन मानते हैं कि श्री मोहन भागवत जैसे लोग हिन्दुत्व के रास्ते से भटक गये हैं।

यदि श्री मोहन भागवत की हत्या कर दी गई होती तो उसके नतीजे में आज यह देश जल रहा होता और आग बुझाने के सारे प्रयास निरर्थक सिद्ध होते। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ जो अपने को हिन्दुत्व का ध्वजावाहक बताता है, जिसके इस दावे को लोग जाने-अनजाने स्वीकार भी करते हैं। यदि इस संगठन के सर्वसंघ चालक जिनकी अपनी प्रतिष्ठा है मार दिये गये होते तो अविश्वास का कोई कारण नहीं बनता कि उनकी हत्या किसी मुसलमान या मुस्लिम संगठन ने की। 1984 अभी लोग भूल नहीं पाये हैं जब देश की प्रधानमंत्री की हत्या कर पूरे देश में पूरे सिक्ख समाज को गुनहगार मानकर उन्हें जिन्दा जलाया गया, उनका घरबार और दुकाने लूटीं गईं, कुल मिलाकर जानी-माली नुकसान पहुंचाया गया।

राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के मानस पुत्र स्वामी लक्ष्मणानन्द सरस्वती उड़ीसा के जनजातियों के बीच में चकाबाद नामक स्थान पर आश्रम बनाकर निवास करते और गुरूकुल संस्कृत विद्यालय चलाते तथा मुख्य रूप से धर्मान्तरण का आरोप लगाकर इसाइयों में दहशत पैदा करने का काम करते थे। स्वामी जी की भी हत्या कैसे हुई यह ज्यादा महत्वपूर्ण नहीं है लेकिन उनकी हत्या के बाद उत्पात मचाकर ईसाईयों की जान-माल और धर्म स्थलों को किस तरह नुकसान पहुंचाया गया, यह घटना किसी से छिपी नहीं है और कन्धमाल की यह घटना आज भी मानवता के लिए काम करने वाले लोगों के रोंगटे खड़े कर देती है।

क्या-क्या गिनाया जाए, नानदेड़ में हिन्दुत्ववादी संगठन के बाद से मुस्लिम पहचान बताने वाले कुर्ते-पायज़ामें, टोपी-दाढ़ी बरामद किया गया। हैदराबाद की मक्का-मस्जिद पर ब्लास्ट करके बेगुनाह मुस्लिम नौजवानों को फंसाया गया। उत्तर प्रदेश की कचहरियों में ब्लास्ट कराकर गुनहगारों को न पकड़कर बेगुनाहों को पकड़ा गया। बाटला हाउस में हत्या करके आजमगढ़ के बेगुनाहों को फंसाया गया, इस तरह की घटनाओं की गिनती बहुत है। इन्हें गिनाने के लिए काफी समय लगेगा, लेकिन कुछ घटनायें ऐसी भी हैं जिसमें गुनहगारों का चेहरा सामने आया। कानपुर में बजरंग दल के दो लोग अपने ही विस्फोटक से जान गवां बैठे और फाइल बंद कर दी गई। हेमन्त करकरे जैसा जांबाज़ ही था जिसनें मालेगांव ब्लास्ट के असल गुनहगारों को पकड़ा और नतीजा आपके सामने है। गोवा में भी असली चेहरे सामने आये लेकिन पूणे में विवेचना जारी है, जबकि वहां भी सबद हाउस को निशाना बनाया जाना बताया गया है।

दम है, महाराष्ट्र विधान सभा में जितेन्द्र अव्हाड़ द्वारा खुलासा किये गये तथ्यों में अगर कहीं अभिनव भारत और सनातन प्रभात अपने लक्ष्य में सफल हो जाते तो सचमुच हिन्दु-मुसलमान के बीच का तांडव रोके नहीं रूकता और हमारी भारत माता अपने सपूतों के आपसी उन्माद के नतीजों में उनके बहते खून पर विलाप कर रही होती। आज हमें सतर्क रहना है कि किये जा रहे इस तरह के षड़यन्त्रों से जिन्हें हम समझते हैं हौर हम अपनी भाषा में इसे कहते हैं ‘‘इसराइली रणनीति’’। हमला ऐसा करो कि खुद को भी नुकसान हो और लोग ये समझें कोई क्यों अपने को नुकसान पहुंचायेगा और आरोप आये उनपर जिनको हम गुनहगार साबित करें।

मुहम्मद शुऐब एडवोकेट
loksangharsha.blogspot.com

सफीदों मंडी में नहीं हो रही गेंहू की सुचारू खरीद


सफीदों, (हरियाणा) : सफीदों अनाज मंडी को पुरानी अनाज मंडियों में एशिया की दूसरी सबसे बड़ी अनाज मंडी होने का गौरव प्राप्त है लेकिन यहां पर सरकार के दानादाना खरीदने के दावों की सरकारी खरीद एजेंसियों द्वाराखुलेआम धज्जियां उड़ाई जा रही हैं। खरीद एजेंसियों के अधिकारियों द्वारा गेंहू खरीद में कोताही बरतने को लेकर आक्रोशित किसान व आढ़ती मंडी गेट पर ताला लगाकर सरकार के खिलाफ नारेबाजी कर चुके है तथा बोली का बहिष्कार चुके हैं। किसानों व आढ़तियों का आरोप है कि सरकारी खरीद एजेंसियों के अधिकारी जानबूझकर गेंहू खरीदने में आनाकानी कर रहे हैं। ये अधिकारी सूखे हुए गेंहू का गीला बताकर उसे खरीदने से मना कर रहे हैं। किसानों व आढ़तियों का कहना था कि सरकार ने यह दावा कर रखा है कि वह किसानों की फसल का एकएक दाना खरीदेगी लेकिन खरीद एजेंसियों के अधिकारी पूरे दिन में कुछ ही ढ़रियों की बोली करके अपने फर्ज की इतिश्री कर रहे हैं। उल्लेखनीय है कि सफीदों अनाज मंडी गेंहू से भरी पड़ी है। हालात यह हैं कि मंडी में गेंहू डालने के लिए कोई जगह नहीं बची है। मंडी में जगह नहीं मिलने के कारण किसान दूसरी मंडियों में अपनी फसल को ले जाने लगा है। दूसरी तरफ खरीद एजेंसियों के अधिकारियों का कहना है कि इस बार गेंहू में नमी की मात्रा अधिक है। सरकार द्वारा 12 प्रतिशत नमी निर्धारित है लेकिन नमी 14 से 16 प्रतिशत तक आ रही है। अगर गीला गेंहू भरवा लिया गया तो वह बंद कट्टों में सड़ जाएगा।

9.4.10

न्यायपालिका में भ्रष्टाचार के सवाल पर जंग

राज्यसभा में भ्रष्टाचार से आरोपित कर्नाटक उच्च न्यायलय के मुख्य न्यायधीश जस्टिस पि.डी. दिनाकरण पर महाभियोग की कार्यवाही लंबित हैउच्चतम न्यायलय चयन मंडल ने जस्टिस दिनाकरण को छुट्टी पर जाने की सलाह देकर उनकी जगह दिल्ली उच्च न्यायलय के जज जस्टिस मदन बी लोकुर को मुख्य न्यायधीश नियुक्त कर दिया थाअब जस्टिस दिनाकरण ने छुट्टी पर जाने से इनकार कर एक संविधानिक संकट खड़ा कर दिया है माननीय उच्च न्यायलय उच्चतम न्यायलय के न्यायधीशों को हटाने की प्रक्रिया वही है, जो प्रक्रिया देश के राष्ट्रपति उपराष्ट्रपति की हैमाननीय न्यायधीश चाहे जितने भ्रष्ट हो जाएँ चाहे जितना निरंकुश हो जाएँ उन्हें महाभियोग के अतिरिक्त नहीं हटाया जा सकता है इसीलिए आज तक किसी भ्रष्ट न्यायमूर्ति को हटाया नहीं जा सका है लेकिन उन भ्रष्ट न्यायमूर्तियो ने निरंकुशता का परिचय नहीं दिया था और चयन मंडल की सलाह से छुट्टी पर चले गए थे लेकिन श्री दिनाकरण ने छुट्टी पर जाने से मना कर दियाविधायिका में आए दिन की उठापठक का असर दूसरे क्षेत्रों में भी पड़ता हैएक बार उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री की कुर्सी पर श्री जगदम्बिका पाल बैठे और उनको कुर्सी से उतारने के लिए लखनऊ के जिला मजिस्टेट पुलिस अधिकारियो को हस्तक्षेप करना पड़ा थाश्री जगदम्बिका पाल को यह डर था कि जैसे वह कुर्सी से उठे की उनका मुख्यमंत्री पद चला जायेगा और हुआ भी यही था कि जैसे ही वह कुर्सी से उठे की उनका पद चला गया थान्यायपालिका में इस तरह की जंग उसकी गरिमा को नहीं बढाती है आम आदमी का आज भी विश्वास है कि कहीं से अगर न्याय नहीं मिलेगा तो हम उच्च न्यायलय ऊच्च्तम न्यालय से पा लेंगे उस आशा को यह जंग तोडती है

सुमन
loksangharsha.blogspot.com

8.4.10

मेंरे लिए भी एक शब्द लिख दो

मेरा शव लेकर भागती हुई जाबांज पुलिस


मैं जगराम सोनकर हूँ मैं करौंदिया थाना कोतवाली नगर जिला सुल्तानपुर ( उत्तर प्रदेश) का निवासी था कल मैं जब अपनी पत्नी और भाई के साथ अपना इलाज कराने के लिए सुल्तानपुर शहर जा रहा था कि उत्तर प्रदेश पुलिस के सिपाही उसके सहयोगियों ने मुझे पीटना शुरू कर दिया मैं भागकर गोमती नदी में कूद गया उन दोनों लोगो ने गोमती नदी से निकाल कर फिर मुझे इतना पीटा की मौके पर ही मेरी मौत हो गयी पुलिस लाश लेकर भागने लगी कुछ सिरफिरे नवजवान मेरी मौत का विरोध करने लगे तो पुलिस पी.एस.सी ने उनको भी जमकर मारा-पीटा मरने के बाद क्या आप मुझे कोई न्याय दिला सकते हो मुझे कौन से शहीद की श्रेणी में रख सकते हैं ? मुझे कैसे इन्साफ दोगे ? मेरे जैसे हजारो लोग प्रतिदिन पुलिस उत्पीडन का शिकार होते हैं, थानों की विभिन्न हवालातों में दम तोड़ देते हैं हमारे जैसे लोगों के हिस्से में यदि आप के पास एक भी शब्द हो तो क्या लिख सकते हो ?

सुमन
loksangharsha.blogspot.com

फोटो- हिंदुस्तान से साभार

' को अहम् '...................??

क्या मैं हिन्दू हूँ  ?
यह सब एक बहुत बड़े मतलब से कह रहा हूँ. मेरी इक पुरानी पोस्ट ' राम की व्यक्ति परीक्षा -२ ' पर भाई ' नवीन त्यागी ' की एक टिप्पणी आयी है हाल में . 

कुछ ब्लोगर्स ने आजकल हिंदू संस्कृति को बदनाम करने का ठेका ले रक्खा है वो चाहे हिंदू त्यौहार हों अथवा हिंदू देवी देवता। और इससे भी बड़ा दुख जब होता है जब हिंदू समाज के ही कुछ लोग उनके समर्थन में टिपण्णी छोड़ते है।

इसलिए मेरा सभी ब्लोगर्स से अनुरोध है कि वे किसी अध्यन हीन व बुद्धि हीन व्यक्ति की ग़लत जानकारी को सच न माने।हिंदू धर्म की बुराई करो और अपने को हिंदू कहो ,ऐसा करने से कोई हिंदू नही बन जाता।

 उसका जबाब तो मैंने वहीं दे दिया है साथ ही डा.अमर कुमार जी की मेल से मिली टिप्पणी भी चस्पां कर दी है .


फिर भी .......


अगर  'हिन्दोस्तान' कोई मायने रखता है तो मेरे लिए तो वह  राष्ट्रीयता भी है मेरी , भारतीयता भी है मेरी , नागरिकता भी है मेरी और मेरी धरोहर भी . वह न लम्बी चौड़ी परिभाषा का मोहताज है न बहस का . क्योंकि वह मेरा स्वप्न की हदों तक संतोष देने वाला अभिप्राय है .मान है . सम्मान और  प्राप्य भी .  और मैं जानता हूँ मेरे जैसे करोड़ों का है. 

जो जानते हैं वो मानते हैं कि सभ्यताओं के इतिहास में यह सिर्फ़ हमारा हक ही नहीं , हमारे जीवन दर्शन का नैतिक आधार भी है. हमारी सबसे बड़ी ताकत भी . इस लिए इतिहास के इस मोड़ पर हमें बहस नहीं जरूरी. हमारे शाश्त्रों में जरूरी बहस हो चुकी है. ' वसुधैव कुटुम्बकम ' हम कह चुके . सच्चे मन से निभाना है .
 

एक बात साफ हो जाए. ' को अहम् ? ' 

और इतना कह लेने का मेरा (व्यक्तिगत नहीं ) क्या अधिकार है ? जायज है किसी से भी ये सवाल. 

उम्मीद करता हूँ मेरे जबाब में आस्था का अति बंधन न हो न विश्वास की अति मूर्खता . न बुद्धि, ज्ञान ,तार्किकता का अंहकार हो न शक्तिहीनता की विरासत . न हार की पीड़ा , न विजय का अतिरेक . न कल ,आज या आने वाले कल्पित कल की संभावित उपलब्धि के शेखचिल्ली का नया अवतार वाद . और मेरी राष्ट्रीयता और विश्व नागरिकता में कोई द्वंद ?  नहीं . बिलकुल नहीं . हाँ सामंजस्य बेहद जरूरी है .
 

अमेरिका में जब भी किसी अमेरिकी से निकटता हुयी तो अपनी भारतीयता बताने के बाद अक्सर पूछा गया "are you a hindoo"?(क्या तुम हिन्दू हो ).जबाब ? मैंने हमेशा अगली बारी पे वादा किया और वादा हमेशा ही पूरा किया.
क्या मैं हिंदू हूँ ? हम सबसे यह सवाल कभी न कभी पूछा ही गया होगा. मेरा मतलब है कि दुनिया में हर सख्स से उसका धर्म या आस्था . और दुनिया में हर जगह हर काल में . विदित इतिहास के हर मोड़ पर . इन्सान का धर्मं क्या है ? तुम्हारा धर्मं क्या है ? और इस सवाल और उसके जबाब में ना जाने कितना खून बहा है ,इतिहास गवाह है और आज तक भी वही जारी है . 

अक्सर हमारा ' धर्म ' क्या है इसका उत्तर हम एक पल में दे देते हैं . पर उत्तर हम जानते हैं ?  इसलिए नहीं कि हमने ' को अहम् ? ' का उत्तर पाया है . हम जानते हैं. क्योंकि हमें बता दिया गया रहता है . बचपन से. और हम उस दिए गए विश्वास को ही अपनी पहचान और संबल दोनों मान लेते हैं. अक्सर उसे बचाने की जिम्मेदारी भी (खास कर अगर फायदा हो रहा हो ). वगैरह वगैरह.
तो क्या इन्हीं कारणों से मैं हिंदू हूँ. और इसीलिए मैं गर्व से कहूं कि 'मैं हिन्दू हूँ ' ? और अगर कहने का साहस करता हूँ तो वह गर्व इमानदारी होगी ? क्या इस हिन्दू होने में गर्व से ज्यादा शर्म भी  नहीं छुपी है ? और शर्म का मतलब सिर्फ़ पराजय है ? और पराजय का मतलब सिर्फ़ लड़ाई के मैदान तक ही सीमित हो ? (मैं लड़ाई के मैदानों की जय पराजय को छोटा नहीं आंक रहा ) . और जय पराजय की तो परिभाषाएं भी वक्त वक्त में बदलती रहती हैं. खास कर कौन लिख रहा है , कौन लिखा रहा है . लिखने लिखाने वाले के हाँथ तलवार थी ,या पैसा था ,या ताकत थी ,या सब कुछ . निर्णय कराने की निर्णायक औकात भी. लेकिन समझाया तो सब धर्मों में (जाता रहा) है. 


मानवता , इंसानियत . 
और हमेशा इसके लिए कानून भी रहे हैं. मैं यही सब नहीं दोहराना चाहता. हम सभी कुछ न कुछ तो इतिहास जानते ही हैं. मैं फिलहाल अपना जबाब देना चाहता हूँ.

हाँ मैं हिन्दू हूँ. औरमेरे हिंदू होने में मुझे गर्व भी है . शर्म भी . फिलहाल तो अपने गर्व के बारे में कहना चाहता हूँ . ( अगर आप शर्म को प्राथमिकता दे रहे हों तो हजारों कारन हैं , लिखे हुए हैं , छपे हुए हैं और मैं उनसे सहमत हूँ ) .
 

मैं हिन्दू हूँ कि व्यक्तिगत आस्था और विश्वास की मुझे अबाध आजादी है . मैं किसी इश्वर को चाहे तो मानूं या न मानू . मानूं भी तो चाहे एक को मानूं , कईयों को मानूं , कुछ को न मानूं या कैसे मानूं , सबकी आजादी . और इतनी वाइड चोइस कि पूरे तैंतीस करोड़ से भी ज्यादा . और सब के सब लिस्टेड भी नहीं हैं . काम पड़ते हों तो अपना भगवान् पैदा कर लो . आपमें साहस /ज्ञान/मौका या धूर्तता , इनमे से कुछ या सभी कुछ  हो तो आप ख़ुद भी भगवान्  बन सकते हैं. 

' अहम् ब्रम्हास्मि ! ' 

और इन सबसे बढ़कर यह कि आपका कोई भी इश्वर हो (या कितने ही हों ) उसके साथ मेरा वाला रह सकता है .
हाँ मैं हिन्दू हूँ . मेरी इसी परिभाषा से आप भी हिन्दू हैं . आपभी और आप भी . हम सभी हिन्दू हैं . कमसे कम पैदा तो हिंदू ही होते हैं दुनिया में चाहे जहाँ पैदा हुए हों कोई भी कहीं  भी . और हिंदुस्तान में होने का तो सौभाग्य ही काफी है हम सब के लिए हिन्दू होने के लिए.
 

और इन सब से बढ़ कर, इसलिए नहीं कि आप अगर हिंदुस्तान में पैदा हुए हैं तो आपको हिन्दू ही होना पड़ेगा. आपके भीतर अगर हिन्दोस्तान है तो आप अपने को कुछ भी कह सकते हैं . जमीन से लेकर पूरे ब्रम्हांड तक इश्वर आपका है . मिल गया हो तो लगे रहें वरना मेरी तरह (या बुद्ध से लेकर आइंस्टाइन तक न जाने कितनों की तरह ) ढूंढते रहें . या फ़िर कबीर की तरह " मोको कहाँ  रे ढूंढें  ?.......      बन्दे मैं तो...... तेरे पास में "
 

लेकिन संविधान हिंदुस्तान का है . और हम ही ने बनाया है . हमें बदल देने तक का भी अधिकार है और यह अधिकार भी हमने ही ख़ुद को दिया है . दुनिया के बहुत सारे मुल्कों की तरह . और इस संविधान की खामियों से असहमत होने और बदलने के लिए कोशिश करना हमारा जायज हक है . हक है कि हम उसके नागरिक होकर, उसकी कसम खाकर , पाने को तो सब पायें जो यह मुल्क दे सकता है , बराबरी से . हक़ यह नहीं है कि कोई इस संविधान की यह कह कर तौहीन करे की "हमसे पूछ कर बनाया था ?" तब जबाब होगा कि हाँ पूँछ कर बनाया था , और इस बात को बीते काफी अरसा हो गया है . हक़ है कि मुल्क के लिए हथियार उठाओ सभी की तरह ( या न उठाओ ) हक़ ये नहीं है कि इसी मुल्क में रह कर , इसी की जमीन से , इसी के खिलाफ हथियार उठाओ और ये नारा लगा कर कि ' गजनी की वापसी है ' . आज का हिंदुस्तान गज़नवी का वैसे ही इस्तकबाल करेगा जैसे करना चाहिए था . यह आगे कहूँगा कि कैसा करना चाहिए था . अभी तो हिंदुस्तान को ही नहीं मालूम . करोड़ों एक दूसरे से ही पूँछ रहे हैं .
 

और जितना लिखा है , मैंने लिखा है . हिंदुस्तान को जितना जाना है उसकी बिना पर . दावा नहीं करता. दावा तो यह भी नहीं करता कि हिंदुस्तान का सबसे बड़ा नहीं तो क्या सबसे नालायक बेटा भी मैं नहीं हूँ . हाँ जो भी जो रंग मुझमे देखना चाहे सब है . जितने रंग हैं मैं सभी को प्यार करता हूँ . हिंदुस्तान भी . हाँ सभी रंगों में हमारे पास झंडे तो हैं पर हमारे झंडे में सब रंग नहीं आ पाते . आप मुझे सिर्फ़ भगवा भी देखेगे तो मैं आपको कलर ब्लाईंड  ( रंग अन्धांग  )  नहीं समझूंगा !

लेकिन जैसा कि डा. अमर कुमार जी ने कहा " बात बात में  ' हिंदुत्व '  खतरे में है " जो नारे लगा रहे हैं  तो हम भी ' गैर मजहबियों , से अलग नहीं लगेंगे धर्मांध .
नवीन त्यागी जी के इक ब्लॉग  ' हिन्दू , हिन्दी , हिन्दुस्तान ' की अद्यतन पोस्ट पर अपनी , 'टिप्पणी ' भी कर आया हूँ . शायद उभें मुझे और खुद को भी पहचानने में मदद मिले .

जय हिंद !