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3.4.10

कानून निर्माताओं का संविधान के साथ खिलवाड़

उत्तर प्रदेश विधान मण्डल ने ‘‘उत्तर प्रदेश राज्य विशेष सुरक्षा बल विधेयक 2010’’ को राज्यपाल के पास मंजूरी हेतु भेजा था। किन्तु उ0प्र0 के राज्यपाल ने उस विधेयक को अभी तक मंजूरी नहीं दी। जिस पर उ0प्र0 सरकार ने राज्यपाल को अपमानित करते हुए कैबिनेट सचिव ने सरकार द्वारा राज्य विशेष सुरक्षा बल में भूतपूर्व सैनिकों की भर्ती की घोषणा कर दी है। जिससे संवैधानिक आराजकता का माहौल पैदा हो गया है। जब संविधानिक निकाय ही संविधानिक व्यवस्था को नहीं मानेंगे तो उनके द्वारा निर्मित कानून का पालन कैसे होगा। इस दौर में अक्सर यह देखा जा रहा है कि मुख्यमंत्री की अपनी इच्छा पर कानून बनाने का कार्य हो रहा है और राज्यपालों द्वारा संविधानिक व्यवस्था का उल्लंघन कर विधेयक रोकने का भी चलन प्रारम्भ हो चुका है जबकि होना यह चाहिए कि राज्य व जनता के हित में अच्छे कानूनों का निर्माण होना चाहिए। राज्य की भलाई में जनता की भलाई मौजूद होनी चाहिए। किन्तु चाहे शिक्षा का सवाल हो, स्वास्थ्य का सवाल हो, बिजली का सवाल हो, हर क्षेत्र में सरकार जनता के हितों को दरकिनार कर मनमानी करने पर तुली है। इस समय उत्तर प्रदेश में सरकार संवैधानिक मुखिया को अपमानित करने के लिए कोई कोर कसर छोड़ना नहीं चाहती है।
-सुमन

2.4.10

सिगरेट की फिल्टर में सूअर के खून का इस्तेमाल

उद्योगिक उत्पादन में सिगरेट सहित एक सौ पचासी उद्योगिक कार्यो में सूअर का इस्तेमाल होता है कुछ वर्षों पूर्व यह भी समाचार आया था कि चाय की पत्ती को और स्वादिष्ट बनाने के लिए रक्त का इस्तेमाल होता हैकृषि उत्पादन में भी इस तरह की मिलावट जारी हैकद्दू, लौकी, खीरा आदि सब्जियों में भैंस को दूध उतारने वाले इन्जेक्सन का प्रयोग किया जाता है जिससे उनकी लम्बाई, चौड़ाई रातों-रात बढ़ जाती हैइस तरह की सब्जियां मानव स्वास्थ्य पर प्रतिकूल स्वभाव डालती हैंभारतीय समाज का एक बहुत बड़ा हिस्सा अल्कोहोल (शराब) से परहेज करता है अब सब्जियों की पैदावार बढ़ाने के लिए कच्ची शराब का इस्तेमाल किया जाने लगा हैजिससे अल्कोहोल युक्त सब्जियां हम लोग प्रयोग करने लगे हैंयह पूँजीवाद का संकट हैमुनाफा इनका धर्म हैमानव जाति बचे या बचे इससे इनका कोई लेना देना नहीं हैमुनाफा होना चाहिए
आज भारतीय समाज में प्रयुक्त होने वाली खाद्य सामग्री विभिन्न अखाद्य पदार्थों के सम्मिश्रण से बिक्री की जा रही है, जिससे बहुसंख्यक आबादी मधुमेह, तपेदिक, पथरी, कैंसर जैसी बीमारियों की चपेट में हैसमाज में काफी लोग गलत तरीके से रूपया कमाने की होड़ में लगे हुए हैंउन्ही को सम्मान दिया जा रहा है पहले ऐसा नहीं थाऐसे लोगों की निंदा होती थीहमारे जनपद का सबसे बड़ा मार्फीन तस्कर उत्तर प्रदेश सरकार में मंत्री है और जब 26 जनवरी को पुलिस लाइन ग्राउंड में वह सलामी लेता है तो देश भर के सारे मार्फीन तस्कर अपने आप सम्मानित हो जाते हैं

सुमन
loksangharsha.blogspot.com

1.4.10

इंसाफ की देवी को शर्मिन्दा करते इंसाफ के देवता

देश के कानून मंत्री वीरप्पा मोयली ने न्यायालयों की जवाबदेही बनाए जाने का कानून बनाने का जिक्र करके एक लाईलाज और अति घातक बीमारी का दर्द उठाया है।
सभ्य समाज को पाप व दुराचार से पाक रखने के लिए ही न्यायिक व्यवस्था का गठन किया गया था पहले जब देश आजाद नहीं था तो अंग्रेजों के दो सौ वर्षों से ऊपर के शासनकाल और उससे पूर्व मुस्लिम शासकों के साढे़ पांच सौ साल व उससे पूर्व के हिन्दू राजा-महाराजाओं के शासनकाल में दरबार, शरई अदालते व कोर्ट में लार्डशिप जनता को न्याय देने का कार्य किया करते थे। इंसाफे जहांगीरी की चर्चा की खूब प्रशंसा इतिहासकारों ने की।
परन्तु प्रशंसा का आधार सदैव निष्पक्ष न्याय पर आधारित होता था जो बादशाह सलामत या राजाराम ने अपने दौरे हुकूमत या रामराज्य में किया। उस समय फरियादी व अपराधी के बीच वकील की भूमिका नहीं हुआ करती थी। फरियादी की फरियाद तथ्यों साझों के आधार पर न्याय की कुर्सी पर बैठकर हाकिमे वक्त सुनते थे और खून के रिश्तों, ऊँच नीच से ऊपर उठकर न्याय किया करते थे। जहांगीर ने तो अपने महल के बाहर एक घण्टा लटका कर चैबीसों घण्टे फरियादी को अपनी फरियाद दर्ज कराने की व्यवस्था की थी।
फिर मुस्लिम काल में शरई अदालतों का भी जाल पूरे देश में बिछा हुआ था और शहर काजी न्याय की कुर्सी पर बैठकर पवित्र कुरआन में दिए गये कानूनी प्राविधानों को ध्यान में रखकर इंसाफ किया करते थे।
न्यायिक प्रक्रिया में परिवर्तन अंग्रेजों के दौरे हुकूमत में शुरू हुए और आई0पी0सी0, सी.आर0पी0सी0 व सी0पी0सी0 जैसे अनेक कानून बनाकर सम्पूर्ण न्यायिक ढांचा तैयार किया गया जिसका केन्द्र प्रिवी कौंसिल के रूप में इंग्लैण्ड में होता था और देश के हर प्रान्त में उच्च न्यायालय व हर जिले में न्यायालयों के माध्यम से न्यायिक प्रक्रिया प्रारम्भ हुई। अंग्रेजों के ही दौर में वकील की भूमिका प्रारम्भ न्यायालयों में हुआ लोग बार एट लॉ
की सर्वोच्च पदवी लेने इंलैण्ड जाते और उच्च न्यायालयों में वकालत करते।
फिर देश आजाद हुआ। देश का संविधान बना और वर्तमान न्याययिक व्यवस्था स्थापित हुई। न्यायालयों में न्यायिक अधिकारियों व जजों की प्रतिष्ठा पर कोई प्रश्न चिन्ह काफी लम्बे समय तक नहीं रहा परन्तु चूंकि सर्वोच्च न्यायालयों में जजों व चीफ जस्टिस आफ इण्डिया की नियुक्ति पर जैसे-जैसे राजनीतिक दलों की स्वार्थ से ओत प्रोत बदनीयती का काला साया पड़ना प्रारम्भ हुआ इंसाफ के मंदिरों के इन देवताओं के चरित्र पर सवालिया निशान लगने प्रारम्भ हुए। राष्ट्रीय एवं संवैधानिक मुद्दों पर सर्वोच्च न्यायालयों की भूमिका पर प्रश्न उठे। न्यायालयों की धर्मनिरपेक्ष छवि पर सवाल खड़े हुए परन्तु बात देश वासियों के दिलों के भीतर ही कैद रही क्योंकि अवमानना का खौफ प्रश्न उठाने वालों को बेबस किये रहा।
न्यायालयों में भ्रष्टाचार का कीटाणु नीचे की अदालत से दाखिल हुआ। जिला स्तर पर जिलाधिकारी, उपजिलाधिकारी व अन्य मजिस्ट्रेटों के न्यायालयों में न्याय की खरीद फरोख्त का कार्य प्रारम्भ हुआ। फिर यह बीमारी जिला जजी व मुंसिफ मजिस्ट्रेटों, मुंसिफ व जज की आंखों के सामने उनकी बगल में बैठा कोर्ट का अहलकार वकील के माध्यम से मुटठी गर्म करने लगा फिर कोर्ट साहबान पेनेल लायर्स के माध्यम से इंसाफ का सौदा होना शुरू हुआ। हालत अब यहां तक आ पहुंचे है कि ईमानदार जजों व मजिस्ट्रेटों पर अदालतों में वकील साहबान की ओर से हमले इस बात पर किये जाने लगे कि वह उनसे सेट नहीं हो रहे उनके साथ चैम्बरिंग नहीं कर रहे।
अदालतों में निर्दोषों को सजाएं और दोषियों को आजादी मिलने लगी। विशेष अदालतों में तो न्याय की जगह केवल सजा ही मिलने लगी। इन सब के बीच फिल्मों में जज साहबान की कुर्सी के पीछे आंखों पर पट्टी बांधे इंसाफ का तराजू लिए खड़ी इंसाफ की देवी शर्मिंदा व रूसवा होती नजर आ रही है और लोग यह कहने को मजबूर हैं कि कानून अंधा होता है।

-मोहम्मद तारिक खान

राष्ट्रमंडल खेलों में गोमांस परोसने के फैसले का चौतरफा विरोध शुरू

सफीदों (हरियाणा) : देश की राजधानी दिल्ली में होने वाले राष्ट्रमंडल खेलों के आयोजन में आयोजक समिति द्वारा विदेशी खिलाड़ियों को गोमांस परोसने के फैसले का प्रदेश में चौतरफा विरोध होना शुरू हो गया है। आर्य प्रतिनिधि सभा हरियाणा के उपमंत्री ओमकुमार आर्य ने जींद में प्रेस वार्ता करके सरकार के इस फैसले पर आपत्ति जताई है। इसी कड़ी में आर्य समाज सफीदों ने भी सरकार के इस फैसले के प्रति अपना रोष् जताया है। आर्य समाज सफीदों के संरक्षक एवं वयोवृद्ध आर्य समाजी नेता लाला फुलचंद आर्य ने पुरानी अनाज मंडी में पत्रकार समेलन को संबोधित करते हुए कहा कि राष्ट्रमंडल खेलों में विदेशी खिलाड़ियों को गोमांस परोसने का सरकार का निर्णय अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है। इस निर्णय की जितनी निंदा की जाए कम है। सरकार का यह निर्णय देश के हिंदू समाज की भावनाओं के साथ सरासर खिलवाड़ है। उन्होंने कहा कि यदि सरकार अपने इस निर्णय को वापिस नहीं लिया तो देश में हिंदूओं की भावनाएं भड़क सकती हैं। सरकार इस मामले में दो भाष बोल रही है। एक तरफ तो दिल्ली सरकार ने कृषि पशु संरक्षण अधिनियम के तहत दिल्ली में गाय की हत्या करने, गोमांस का किसी भी रूप में उपयोग करने तथा दिल्ली में बाहर से गोमांस लाने पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा रखा है तथा नियमों को ना मानने वालों के खिलाफ इसे दंडनीय अपराध मानते हुए एक वर्ष् के कारावास का प्रावधान भी रखा गया है लेकिन दूसरी ओर दिल्ली के मुख्य सचिव राकेश मेहता तथा राष्ट्रमंडल खेलों की आयोजन समिति के महासचिव ललित भनोट विदेशी खिलाड़ियों को गोमांस परोसने का यान दे रहे हैं। उन्होंने सरकार से सवाल किया है कि सरकार को विदेशी खिलाड़ियों को खिलाने के लिए गोमांस के अलावा अन्य कोई खाध्य पदार्थ नहीं मिला? उन्होंने कहा कि सरकार का अपने देश की राजधानी में राष्ट्रमंडल खेल कराए जाने का निर्णय स्वागत योग्य है लेकिन खिलाड़ियों को गोमांस परोसे जाने की बात कहना बिल्कुल गलत है।सरकार को चाहिए कि वे राष्ट्रमंडल खेलों में भारतीय संस्कृति का प्रचार करते हुए विदेशियों को गाय के गुणों से अवगत करवाए ताकि वे भी गाय को अपनाकर लाभान्वित हो सकें। उन्होंने कहा कि गोरक्षा को लेकर आर्य समाज बेहद सजग है। अगर सरकार ने समय रहते अपना निर्णय वापिस नहीं लिया तो आर्य समाज सड़कों पर आ जाएगा। इस दौरान कोई अनहोनी घटना घट जाती है तो उसकी सारी जिमेवारी सरकार की होगी। उन्होंने बताया कि इसके विरोध में आर्य प्रतिनिधि सभा हरियाणा के तत्वावधान में आगामी दो अप्रैल को डीसी जींद को ज्ञापन दिया जाएगा।

31.3.10

'गत्‍यात्‍मक ज्‍योतिष' की खोज : ग्रहों के बुरे प्रभाव को दूर करने के उपाय

हजारो वर्षों से विद्वानों द्वारा अध्ययन-मनन और चिंतन के फलस्वरुप मानव-मन-मस्तिष्‍क एवं अन्य जड़-चेतनों पर ग्रहों के पड़नेवाले प्रभाव के रहस्यों का खुलासा होता जा रहा है , किन्तु ग्रहों के बुरे प्रभाव को दूर करने हेतु किए गए लगभग हर आयामों के उपाय में पूरी सफलता न मिल पाने से अक्सरहा मन में एक प्रश्न उपस्थित होता है,क्या भविष्‍य को बदला नहीं जा सकता ? किसी व्‍यक्ति का भाग्यफल या आनेवाला समय अच्छा हो तो ज्योतिषियों के समक्ष उनका संतुष्‍ट होना स्वाभाविक है, परंतु आनेवाले समय में कुछ बुरा होने का संकेत हो तो उसे सुनते ही वे उसके निदान के लिए इच्छुक हो जाते हैं। हम ज्योतिषी अक्सर इसके लिए कुछ न कुछ उपाय सुझा ही देते हैं लेकिन हर वक्त बुरे समय को सुधारने में हमें सफलता नहीं मिल पाती है। उस समय हमारी स्थिति कैंसर या एड्स से पीड़ित किसी रोगी का इलाज कर रहे डॉक्टर की तरह होती है ,जिसने बीमारी के लक्षणों एवं कारणों का पता लगाना तो जान गया है परंतु बीमारी को ठीक करने का कोई उपाय न होने से विवश होकर आखिर प्रकृति की इच्छा के आगे नतमस्तक हो जाता है ।

ऐसी ही परिस्थितियों में हम यह मानने को मजबूर हो जाते हैं कि वास्तव में प्रकृति के नियम ही सर्वोपरि हैं। हमलोग पाषाण-युग, चक्र-युग, लौह-युग, कांस्य-युग ................ से बढ़ते हुए आज आई टी युग में प्रवेश कर चुकें हैं, पर अभी भी हम कई दृष्टि से लाचार हैं। नई-नई असाध्य बीमारियॉ ,जनसंख्या-वृद्धि का संकट, कहीं अतिवृष्टि तो कहीं अनावृष्टि, कहीं बाढ़ तो कहीं सूखा ,कहीं भूकम्प तो कहीं ज्वालामुखी-विस्फोट--प्रकृति की कई गंभीर चुनौतियों से जूझ पाने में विश्व के अव्वल दर्जे के वैज्ञानिक भी असमर्थ होकर हार मान बैठे हैं। यह सच है कि प्रकृति के इन रहस्यों को खुलासा कर हमारे सम्मुख लाने में इन वैज्ञानिकों की महत्वपूर्ण भूमिका रही है, जिससे हमें अपना बचाव कर पाने में सुविधा होती है। प्रकृति के ही नियमो का सहारा लेकर कई उपयोगी औजारों को बनाकर भी हमने अपनी वैज्ञानिक उपलब्धियों का झंडा गाडा है , किन्तु वैज्ञानिकों ने किसी भी प्रकार प्रकृति के नियमों को बदलने में सफलता नहीं पायी है।

पृथ्वी पर मानव-जाति का अवतरण भी अन्य जीव-जंतुओं की तरह ही हुआ। प्रकृति ने जहॉ अन्य जीव-जंतुओं को अपना अस्तित्व बनाए रखने के लिए कुछ न कुछ शारिरिक विशेषताएं प्रदान की वहीं मनुष्‍य को मिली बौद्धिक विशेषताएं , जिसने इसे अन्य जीवों से बिल्कुल अलग कर दिया। बुद्धिमान मानव ने सभी जीव जंतुओं का निरिक्षण किया, उनकी कमजोरियों से फायदा उठाकर उन्हें वश में करना तथा खूबियों से लाभ लेना सीखा। जीव-जंतुओं के अध्ययन के क्रम में जीव-विज्ञान का विकास हुआ। प्राचीनकाल से अब तक के अनुभवों और प्रयोगों के आधार पर विभिन्न प्रकार के जीवों ,उनके कार्यकाल ,उनकी शरिरीक बनावट आदि का अध्ययन होता आ रहा है। आज जब हमें सभी जीव-जंतुओं की विशेषताओं का ज्ञान हो चुका है , हम उनकी बनावट को बिल्कुल सहज ढंग से लेते हैं । कौए या चिड़ियां को उड़ते हुए देखकर हम बकरी या गाय को उड़ाने की भूल नहीं करतें। बकरी या गाय को दूध देते देखकर अन्य जीवों से यही आशा नहीं करते। बकरे से कुत्ते जैसी स्वामिभक्ति की उम्मीद नहीं करतें। घोड़े की तेज गति को देखकर बैल को तेज नहीं दौड़ाते। जलीय जीवों को तैरते देखकर अन्य जीवों को पानी में नहीं डालते। हाथी ,गधे और उंट की तरह अन्य जीवों का उपयोग बोझ ढोने के लिए नहीं करते।

इस वैज्ञानिक युग में पदार्पण के बावजूद अभी तक हमने प्रकृति के नियमों को नहीं बदला । न तो बाघ-शेर-चीता-तेदुआ-हाथी-भालू जैसे जंगली जानवरों का बल कम कर सकें , न भयंकर सर्पों के विष को खत्म करने में सफलता मिली , और न ही बीमारी पैदा करनेवाले किटाणुओं को जड़ से समाप्त किया। पर अब जीन के अध्‍ययन में मिलती जा रही सफलता के बाद यह भी संभव हो सकता है कि किसी एक ही प्राणी को विकसित कर उससे हर प्रकार के काम लिया जा सके। पर इस प्रकार की सफलता के लिए हमें काफी समय तक विकास का नियमित क्रम तो रखना ही होगा।

जीव-जंतुओं के अतिरिक्त हमारे पूर्वजों ने पेड-पौधों का बारीकी से निरिक्षण किया। पेड़-पौधे की बनावट , उनके जीवनकाल और उसके विभिन्न अंगों की विशेषताओं का जैसे ही उसे अहसास हुआ, उन्होने जंगलो का उपयोग आरंभ किया। हर युग में वनस्पति-शास्त्र वनस्पति से जुड़े तथ्यो का खुलासा करता रहा ,जिसके अनुसार ही हमारे पूर्वजों ने उनका उपयोग करना सीखा। फल देनेवाले बड़े वृक्षों के लिए बगीचे लगाए जाने लगे। सब्जी देनेवाले पौधों को मौसम के अनुसार बारी-बारी से खाली जमीन पर लगाया जाने लगा। इमली जैसे खट्टे फलों का स्वाद बढ़ानेवाले व्यंजनों में इस्तेमाल होने लगा। मजबूत तने वाली लकड़ी फर्नीचर बनाने में उपयोगी रही। पुष्‍पों का प्रयोग इत्र बनाने में किया जाने लगा। कॉटेदार पौधें का उपयोग बाड़ लगाने में होने लगा। ईख के मीठे तनों से मीठास पायी जाने लगी। कडवे फलों का उपयोग बीमारी के इलाज में किया जाने लगा, आगे पढें ।

सत्ता की डोली का कहार, बुखारी साहब आप जैसे लोग हैं

दिल्ली की जामा मस्जिद के इमाम अहमद उल्ला बुखारी ने कहा कि धर्मनिरपेक्षता का ढोंग रचने वाली सियासी पार्टियों ने आजादी के बाद से मुसलमानों को अपनी सत्ता की डोली का कहार बना दिया है।
बुखारी जी आपका बयान बिल्कुल ठीक है परन्तु क्या आप इस बात से इत्तेफाक़ करेंगे कि सियासी पार्टियों को यह मौका फराहम कौन करता है? आप और आपके बुज़रगवार वालिद मोहतरम जो हर चुनाव के पूर्व अपने फतवे जारी करके इन्हीं राजनीतिक पार्टियों, जिनका आप जिक्र कर रहे हैं, को लाभ पहुँचाते थे। लगभग हर चुनाव से पूर्व जामा मस्जिद में आपकी डयोढ़ी पर राजनेता माथा टेक कर आप लोगों से फतवा जारी करने की भीख मांगा करते थें। वह तो कहिए मुस्लिम जनता ने आपके फतवों को नजरअंदाज करके इस सिलसिले का अन्त कर दिया।
सही मायनों में राजनीतिक पार्टियों की डोली के कहार की भूमिका तो मुस्लिम लीडरों व धर्मगुरूओं ने ही सदैव निभाई जो कभी भाजपा के नेतृत्व वाली जनता पार्टी या एन0डी0ए0 के लिए जुटते दिखायी दिये तो कभी गुजरात में नरेन्द्र मोदी का प्रचार करने वाली मायावती की डोली के कहार।
मुसलमानो की बदहाल जिन्दगी पर अफसोस करने के बजाए उसकी बदहाली की विरासत पर आप जैसे लोग आजादी के बाद से ही अपनी रोटियाँ सेकते आए हैं। शायद यही कारण है कि हर राजनीतिक पार्टी अब अपने पास एक मुस्लिम मुखौटे के तौर पर मुसलमान दिखने वाली एक दाढ़ी दार सूरत सजा कर स्टेज पर रखता है और मुसलमानों की धार्मिक भावनाओं का शोषण राजनीतिक दल इन्हीं लोगों के माध्यम से कराते आए हैं। लगभग हर चुनाव के अवसर पर आप जैसे मुस्लिम लीडरों की बयानबाजी ही मुसलमानों की धर्मनिरपेक्ष व देश प्रेम की छवि को सशंकित कर डालती है और अपने विवेक से वोट डालने के बावजूद उसके वोटों की गिनती जीतने वाला उम्मीदवार अपने पाले में नहीं करता।

-मोहम्मद तारिक खान

इनकी नम्बरदारी.......(-डॉ० डंडा लखनवी )


इनकी नम्बरदारी.......
                  -डॉ० डंडा लखनवी


भाँति-भाँति के माउस  जगमें सबकी जयजयकारी।
दुनिया  के  कोने - कोने  मे  इनकी   नम्बरदारी।।
                              साधो इनकी नम्बरदारी।।


माउस  मेलों  -  ठेलों  में  हैं,
गुरुओं  में  हैं,   चेलों   में  हैं,
मिलते   माउस  रेलों   में  हैं,
कुछ  बाहर, कुछ  जेलों में हैं,
कुछ माउस घोषित आवारा, कुछ माउस सरकारी।
दुनिया  के  कोने - कोने  में   इनकी  नम्बरदारी।।


कम्प्यूटर  का माउस  - नाटा,
इधर से   उधर  करता  डाटा,
फ्री    कराता  सैर  -  सपाटा,  
नए समय का  बिरला   टाटा,
नाचे इनके  आगे दुनिया  ये  हैं  महा - मदारी। 
दुनिया  के  कोने - कोने मे  इसकी नम्बरदारी।।


माउस  सभी मकानों  में  हैं,
खेतों  में  खलिहानों  में  हैं,
गोदामों  -  दूकानों   में  हैं,
कोर्ट - कचहरी  थानों में हैं,
सदनों के  भीतर  बैठे  कुछ  माउस  खद्दरधारी।
दुनिया  के  कोने - कोने मे  इनकी नम्बरदारी।।


जनता  को  ये  डाट  रहे   है,
मालपुआ   खुद  काट  रहे  है,
माउस  जो  खुर्राट  रहे     हैं,
भ्रष्ट   प्रशासन   बाट  रहे  हैं,
कुछ डंडा अधिकारी माउस कुछ  माउस  पटवारी।  
दुनिया  के   कोने - कोने मे  इनकी  नम्बरदारी।।


माउस  थल में, माउस  जल में,
माउस  बसते हैं दल - दल   में,
माउस सबके  अगल - बगल  में,
माउस युग  की  हर हलचल में,
वैसे  नहीं  चुना गण-पति ने अपनी इन्हें  सवारी। 
दुनिया  के  कोने - कोने मे  इनकी  नम्बरदारी।।