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23.3.10

यह लोहिया की सदी हो -वेदप्रताप वैदिक

डॉवेदप्रताप वैदिक जी ने यह आलेख हमे -मेल से भेजा है, जो यहाँ आपके लिए प्रस्तुत हैI

यह
लोहिया की सदी हो

जन्म शताब्दियां तो कई नेताओं की मन रही हैं, लेकिन प्रश्न यह है कि स्वतंत्र भारत में क्या राममनोहर लोहिया जैसा कोई और नेता हुआ है? इसमें शक नहीं कि पिछले 63 सालों में कई बड़े नेता हुए, कुछ बड़े प्रधानमंत्री भी हुए, लेकिन लोहिया ने जैसे देश हिलाया, किसी अन्य नेता ने नहीं हिलाया।
उन्हें कुल 57 साल का जीवन मिला, लेकिन इतने छोटे से जीवन में उन्होंने जितने चमत्कारी काम किए, किसने किए? जवाहरलाल नेहरू और इंदिरा गांधी से लोहिया का अपने युवाकाल में कैसा आत्मीय संबंध था, यह सबको पता है। लेकिन यदि लोहिया नहीं होते तो क्या भारत का लोकतंत्र शुद्ध परिवारतंत्र में नहीं बदल जाता?
वे लोहिया ही थे, जो नेहरू की दो-टूक आलोचना करते थे। चीनी हमले के बाद लोहिया ने ही नेहरू सरकार कोराष्ट्रीय शर्म की सरकारकहा था। उन्होंने हीतीन आनेकी बहस छेड़ी थी। यानी इस गरीब देश का प्रधानमंत्री खुद पर 25 हजार रुपए रोज खर्च करता है, जबकि आम आदमीतीन आने रोजपर गुजारा करता है। लोहिया ने ही उस समय की अति प्रशंसित गुट-निरपेक्षता की विदेश नीति पर प्रश्नचिह्न् लगाए थे और नेहरूजी कीविश्वयारीपर तीखे व्यंग्य बाण चलाए थे।
उन्होंने सरकारी तंत्र के मुगलिया ठाठ-बाट की निंदा इतने कड़े शब्दों में की थी कि सारा तंत्र भर्राने लगा था। उन्होंने देश के हजारों नौजवानों में सरफरोशी का जोश भर दिया था। सारे देश में तरह-तरह के मुद्दों पर सिविल नाफरमानी के आंदोलन चला करते थे। राजनारायण, मधु लिमये, रवि राय, किशन पटनायक, एसएम जोशी, लाडली मोहन निगम, जॉर्ज फर्नाडीज जैसे कई छोटे-मोटे मसीहा लोहिया ने सारे देश में खड़े कर दिए थे। कहीं जेल भरो, कहीं रेल रोको, कहीं अंग्रेजी नामपट पोतो, कहीं जात तोड़ो, कहीं कच्छ बचाओ, कहीं भारत-पाक एका करो जैसे आंदोलन निरंतर चला करते थे।
लोहिया के आंदोलनों में अहिंसा का ऊंचा स्थान था, लेकिन वे वस्तु की हिंसा यानी तोड़-फोड़ को हिंसा नहीं मानते थे। उन्होंने प्राण की हिंसा करने वाली यानी प्रदर्शनकारियों पर गोली चलाने वाली अपनी ही केरल की सरकार को गिरवा दिया था। लोहिया ने भारत के नेताओं और राजनीतिक दलों को यह सिखाया कि सशक्त विपक्ष की भूमिका कैसे निभाई जाती है? लोकसभा में लोहियाजी की संसोपा के दर्जनभर सदस्य भी नहीं होते थे, लेकिन वहां बादशाहत संसोपा की ही चलती थी। जब लोहिया और मधु लिमये सदन में प्रवेश करते थे तो वह समां देखने लायक होता था। एक करंट-सा दौड़ जाता था। मंत्रिमंडल के सदस्य लगभगअटेंशनकी मुद्रा में जाते थे और स्वयं प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के चेहरे पर बेचैनी छा जाती थी।
दर्शक दीर्घा में बैठे लोग कहते सुने जाते थे, वो लो, डॉक्टर साहब गए। डॉक्टर लोहिया ने अपनी उपस्थिति से लोकसभा को राष्ट्र का लोकमंच बना दिया। जिस दबे-पिसे इंसान की आवाज सुनने वाला कोई नहीं होता, उसकी आवाज को हजार गुना ताकतवर बनाकर सारे देश में गुंजाने का काम डॉ लोहिया करते। कोई मामूली मजदूर हो, कोई सफाई कामगार हो, कोई भिखारी या भिखारिन हो- डॉ लोहिया उसे न्याय दिलाने के लिए अकेले ही संसद को हिला देते थे। लोकसभा अध्यक्ष सरदार हुकुम सिंह कई बार बिल्कुल पस्त हो जाते थे। मई 1966 में जब डॉ लोहिया ने मेरा अंतरराष्ट्रीय राजनीति का पीएचडी का शोध-प्रबंध हिंदी में लिखने का मामला उठाया तो इतना जबर्दस्त हंगामा हुआ कि सदन में मार्शल को बुलाना पड़ा। डॉ लोहिया और उनके शिष्यों के तर्क इतने प्रबल थे कि सभी दलों के प्रमुख नेताओं ने मेरा समर्थन किया। इंदिराजी के हस्तक्षेप पर स्कूल ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज ने अपना संविधान बदला और मुझे यानी प्रत्येक भारतीय को पहली बार स्वभाषा के माध्यम सेडॉक्टरेटकरने का अधिकार मिला।
डॉ लोहिया के व्यक्तित्व में चुंबकीय आकर्षण था। वे देखने में सुंदर नहीं थे। उनका कद छोटा और रंग सांवला था। उनके खिचड़ी बाल प्राय: अस्त-व्यस्त रहते थे। उनके खादी के कपड़े साफ-सुथरे होते थे, लेकिन उनमें नेहरू या जगजीवनराम या सत्यनारायण सिंह जैसी चमक-दमक नहीं रहती थी। वे सादगी और सच्चई की प्रतिमूर्ति थे। वे जिस विषय पर भी बोलते थे, उसमें मौलिकता और निर्भीकता होती थी। वे सीता-सावित्री पर बोलें, शिव-पार्वती पर बोलें, हिंदू-मुसलमान या नर-नारी समता पर बोलें, अंग्रेजी हटाओ या जात तोड़ो पर बोलें- उनके तर्क प्राणलेवा होते थे। जो एक बार डॉ लोहिया को सुन ले या उनको पढ़ ले, वह उनका मुरीद हो जाता था।
डॉ लोहिया ने अपने भाषण और लेखन में जितने विविध विषयों पर बहस चलाई है, देश के किसी अन्य राजनेता ने नहीं चलाई। सिर्फ डॉ भीमराव आंबेडकर और विनायक दामोदर सावरकर ही ऐसे दो अन्य विचारशील नेता दिखाई पड़ते हैं, जो डॉ लोहिया की श्रेणी में रखे जा सकते हैं। डॉ लोहिया ने जर्मनी से डॉक्टरेट की थी। इस खोजी वृत्ति के कारण वे हर समस्या की जड़ में पहुंचने की कोशिश करते थे। सप्रू हाउस में उस समय रिसर्च कर रहे डॉ परिमल कुमार दास, प्रो कृष्णनाथ और मेरे जैसे कई नौजवान उनके अवैतनिक सिपाही थे। इसी का परिणाम था कि 1967 में डॉ लोहिया देश में गैर कांग्रेसवाद की लहर उठाने में सफल हुए। जनसंघियों और कम्युनिस्टों ने भी उनका साथ दिया और देश के अनेक प्रांतों में पहली बार गैर कांग्रेसी सरकारें बनीं। यदि डॉक्टर लोहिया 10-15 साल और जीवित रहते तो उन्हें प्रधानमंत्री बनने से कौन रोक सकता था? अब से 30-35 साल पहले ही भारत का चमत्कारी रूपांतरण शुरू हो जाता और अब तक वह दुनिया की ऐसी अनूठी महाशक्ति बन जाता, जिसका जोड़ इतिहास में कहीं नहीं मिलता।
जो भी हो, डॉ लोहिया असमय चले गए हों, लेकिन उनके विचार इस इक्कीसवीं सदी के प्रकाश-स्तंभ की तरह हैं। सप्त-क्रांति का उनका सपना अभी भी अधूरा है। जाति-भेद, रंग-भेद, लिंग-भेद, वर्ग-भेद, भाषा-भेद और शस्त्र-भेद रहित समाज का निर्माण करने वाले नेता अब ढूंढ़ने से भी नहीं मिलते। इस समय सभी दल चुनाव की मशीन बन गए हैं। वे सत्ता और पत्ता के दीवाने हैं। यदि डॉ लोहिया का साहित्य व्यापक पैमाने पर पढ़ा जाए तो आशा बंधेगी कि शायद आदर्शवादी नौजवानों की कोई ऐसी लहर उठ जाए, जो इस भारत को नए भारत में और इस दुनिया को नई दुनिया में बदल दे। लोहिया को गए अभी सिर्फ 43 साल ही हुए हैं। उनका शरीर गया है, विचार नहीं, विचार अमर हैं। विचारों को परवान चढ़ने में कई बार सदियों का समय लगता है। अभी तो सिर्फ पहली सदी बीती है। हम अपना धैर्य क्यों खोएं? क्या मालूम आने वाली सदी लोहिया की सदी हो?

लो क सं घ र्ष !: वीर भगत सिंह आज अगर, उस देश की तुम दुर्दशा देखते


शहीद दिवस के अवसर पर विशेष

जिस पर अपना सर्वस्व लुटाया, जिसके खातिर प्राण दिए थे।
वीर भगत सिंह आज अगर, उस देश की तुम दुर्दशा देखते॥
आँख सजल तुम्हारी होती, प्राणों में कटु विष घुल जाता।
पीड़ित जनता की दशा देखकर, ह्रदय विकल व्यथित हो जाता ॥
जहाँ देश के कर्णधार ही, लाशों पर रोटियाँ सेकते।
वीर भगत सिंह आज अगर........
तुम जैसे वीर सपूतों ने, निज रक्त से जिसको सींचा था।
यह देश तुम्हारे लिए स्वर्ग से सुन्दर एक बगीचा था॥
अपनी आँखों के समक्ष, तुम कैसे जलता इसे देखते ।
वीर भगत सिंह आज अगर........
जिस स्वाधीन देश का तुमने, देखा था सुन्दर सपना।
फांसी के फंदे को चूमा था, करने को साकार कल्पना॥
उसी स्वतन्त्र देश के वासी, आज न्याय की भीख मांगते।
वीर भगत सिंह आज अगर........
अपराधी, भ्रष्टों के आगे, असहाय दिख रहा न्यायतंत्र।
धनपशु, दबंगों के समक्ष, दम तोड़ रहा है लोकतंत्र।
जहाँ देश के रखवालों से, प्राण बचाते लोग घुमते॥
वीर भगत सिंह आज अगर........
साम्राज्यवाद का सिंहासन, भुजबल से तोड़ गिराया था
देश के नव युवकों को तुमने, मुक्ति मार्ग दिखाया था॥
जो दीप जलाये थे तुमने, अन्याय की आंधी से बुझते।
वीर भगत सिंह आज अगर........
जिधर देखिये उधर आज, हिंसा अपहरण घोटाला है।
अन्याय से पीड़ित जनता, भ्रष्टाचार का बोल बाला है॥
लुट रही अस्मिता चौराहे पर, भीष्म पितामह खड़े देखते।
वीर भगत सिंह आज अगर........
साम्राज्यवाद के प्रतिनिधि बनकर, देश लुटेरे लूट रहे।
बंधुता, एकता, देश प्रेम के बंधन दिन-दिन टूट रहे॥
जनता के सेवक जनता का ही, आज यहाँ पर रक्त चूसते।
वीर भगत सिंह आज अगर........
बंधू! आज दुर्गन्ध आ रही, सत्ता के गलियारों से।
विधान सभाएं, संसद शोभित अपराधी हत्यारों से।
आज विदेशी नहीं, स्वदेशी ही जनता को यहाँ लूटते।
वीर भगत सिंह आज अगर........
पूँजीपतियों नेताओं का अब, सत्ता में गठजोड़ यहाँ।
किसके साथ माफिया कितने, लगा हुआ है होड़ यहाँ ॥
अत्याचारी अन्यायी, निर्बल जनता की खाल नोचते।
वीर भगत सिंह आज अगर........
शहरों, गाँवों की गलियों में, चीखें आज सुनाई देती।
अमिट लकीरें चिंता की, माथों पर साफ़ दिखाई देती॥
घुट-घुट कर मरती अबलाओं के, प्रतिदिन यहाँ चिता जलते।
वीर भगत सिंह आज अगर........
घायल राम, मूर्छित लक्ष्मण, रावण रण में हुंकार रहा।
कंस कृष्ण को, पांडवों को, दुःशासन ललकार रहा॥
जनरल डायर के वंशज, आतंक मचाते यहाँ घूमते।
वीर भगत सिंह आज अगर, उस देश की तुम दुर्दशा देखते॥


-मोहम्मद जमील शास्त्री
( सलाहकार लोकसंघर्ष पत्रिका )
शहीद दिवस के अवसर पर भगत सिंह, राजगुरु सहदेव को लोकसंघर्ष परिवार का शत्-शत् नमन

22.3.10

दो युवक इंडिका कार छिनकर फरार

सफीदों, (हरियाणा) : हलके के हाटरामनगर गांव के बीच दो अज्ञात युवक एक युवक से कार छिनकर फरार हो गए। मिली जानकारी के अनुसार सोनीपत निवासी अनिल कुमार अपने एक साथी के साथ इंडिका कार में सवार होकर गंगाना गांव से रामनगर बारात में जा रहा था। हाटरामनगर गांव के बीच रास्ते में उसके साथी को लघुशंका हुई। अनिल का साथी लघुशंका के लिए कार से उतरकर दूसरी तरफ चला गया। इतने में दो युवक चेतक स्कूटर पर उसी रास्ते से आए और स्कूटर को कार के आगे डाल दिया। उसके बाद उन दोनों युवकों ने अनिल के साथ हाथापाई की तथा उसका पर्स व मोबाइल छिनकर लिया। ततपश्चात वे युवक अनिल से कार छिनकर रामनगर गांव की तरफ भाग गए। मामले की सूचना पुलिस को दी गई। सूचना मिलते ही पुलिस मौके पर पहुंची तथा मौके का मुआयना किया। समाचार लिखे जाने तक कार छिनने वाले युवकों का कोई पता नहीं चल पाया था।

नरेंद्र मोदी ने कानून-संविधान न मानने की कसम खा रखी है

गुजरात दंगो की जांच के लिए नियुक्त विशेष जांच दल के सामने गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को पेश होना था किन्तु वह जांच दल के सामने उपस्थित नहीं हुए। फरवरी 2002 में गुजरात में हजारों अल्पसंख्यकों का नरसंहार धर्म के आधार पर किया गया था। माननीय उच्चतम न्यायलय ने जाकिया की शिकायत पर विशेष जांच दल नियुक्त किया था। जाकिया का आरोप था कि मोदी उनकी सरकार के मंत्री पुलिस प्रशासनिक अधिकारीयों से मिलकर गुजरात में दंगे भड़काए थे और कत्लेआम कराया था। जब संविधानिक पदों के ऊपर बैठे हुए लोग इस तरह का कृत्य करेंगे और जांच एजेंसियों के समक्ष उपस्थित नहीं होंगे तो किसी साधारण आदमी से क्या उम्मीद की जा सकती है लेकिन अगर साधारण व्यक्ति को जांच एजेंसी के सामने उपस्थित होना होता और वह उपस्थित नहीं हुआ होता तो उसे होमगार्ड के जवान डंडे बाजी कर के उपस्थित होने के लिए मजबूर कर देतेहमारे लोकतंत्र में नरेंद्र मोदी, राज ठाकरे, बाल ठाकरे जैसे कानून तोडक, संविधान तोडक व्यक्तियों का कोई इलाज नहीं हैयह लोग संविधान न्याय से ऊपर के व्यक्ति हैं गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने तो लगता है कसम खा ली है कि संविधान लोकतान्त्रिक मूल्यों से उनका कोई लेना देना नहीं है
-सुमन

सातवां हनुमान जागरण आयोजित




हनुमान कलियुग के देवता हैं : निगमबोध
सफीदों, (हरियाणा) : श्री हरि संकीर्तन एवं जागरण मंडल के तत्वावधान में नगर की पुरानी अनाज मंडी में सातवां विशाल हनुमान जागरण का आयोजन किया गया। हनुमान जागरण में दण्डी स्वामी निगमबोध तीर्थ महाराज का सानिध्य प्राप्त हुआ। दण्डी स्वामी निगमबोध तीर्थ महाराज ने अखंड ज्योति प्रज्ज्वलित करके जागरण का शुभारंभ किया। जागरण में आए हुए गायकों निशा, किरण शर्मा, अरविंद कौशिक व देवेंद्र शर्मा ने अपनी मधुर गायकी के माध्यम से प्रस्तुत हनुमान भजनों से समा बांध दिया। वहीं मोंटी नटराजन द्वारा प्रस्तुत झांकियों ने दर्शकों का मन मोह लिया। लोग भजनों में इतना सराबोर हुए कि सारी रात जहां पर बैठे से वहीं पर बैठे रहे। वहीं लोगों ने भजनों की धुनों पर थिरकर जागरण का रसास्वादन किया। श्रृद्धालुओं को संबोधित करते हुए दण्डी स्वामी निगमबोध तीर्थ महाराज ने कहा कि सफीदों नगरी एक धार्मिक नगरी है। इस पवित्र धरा की गाथा इतिहास के पन्नों में भरी पड़ी है। इस तरह के धार्मिक कार्यक्रम समयसमय पर यहां पर होते रहने चाहिए। बेहद खुशी का विष्य है कि श्री हरि संकीर्तन एवं जागरण मंडल के तत्वावधान में हर साल आयोजित हो रहा यह हनुमान जागरण सातवें वर्ष् में प्रवेश कर गया है। उन्होंने कहा कि सांसारिक मनुष्य अपने जीवन को व्यर्थ के क्रियाकलापों में उलझाने की बजाए समय का सदुपयोग करते हुए अपना ध्यान भगवान की भति में लगाना चाहिए। मानव जीवन संसार की चिंताएं करने के लिए नहीं अपितु प्रभु का चिंतन करने के लिए मिला है। मनुष्य को हनुमान जी के जीवन चरित्र से सिख लेते हुए अपने जीवन को आगे बढ़ाना चाहिए। उन्होंने कहा कि कलियुग के देवता केवल हनुमान ही हैं जो अपने भतों की हर समस्या में मदद करते हैं। उन्होंने कहा कि आज मनुष्य भोगविलास में पड़ गया है। घर व घर से बाहर देखा जा रहा है कि बड़ों का कोई समान नहीं रह गया है। आज का युवा अपने पथ से भटकर पश्चिमी रंग में रंग गया है। पहले समय में युवा अपने मातापिता की समस्याओं में हाथ बंटाते थे लेकिन आज मातापिता की सबसे बड़ी समस्या खुद युवा वर्ग बन गया है। उन्होंने लोगों खासकर युवाओं से आह्वान किया कि वे अपने पथ से ना भटकते हुए अपने परिवारों को संभाले तथा बड़ों का समान करे। इस मौके पर भारी तादाद में लोग मौजूद थे।

आयुष् विभाग द्वारा निःशुल्क चिकित्सा शिविर आयोजित




आयुर्वेद पद्घति ऋषि मुनियों की खोज : इंदौरा
सफीदों, (हरियाणा) : आयुष् विभाग द्वारा कस्बे के आर्य समाज मंदिर में निःशुल्क चिकित्सा शिविर का आयोजन किया गया। कैंप में मुख्यातिथि एसडीएम सत्यवान इंदौरा व विशिष्ट अतिथि जिला आयुर्वेद अधिकारी डा. महेंद्र सोनी होंगे। चिकित्सा शिविर से पूर्व यज्ञ का आयोजन किया गया। मुख्यातिथि एसडीएम सत्यवान इंदौरा ने कहा कि आयुर्वेद द्वारा जरूरतमंदों की सेवा करना सबसे बड़ा पुण्य का कार्य है। आयुर्वेदिक पद्घति से किया गया इलाज सर्वोतम है। यह पद्घति बड़ेबड़े ऋषि मुनियों की खोज है, जिनका हमें आजतक फायदा मिल रहा है। आयुर्वेदिक इलाज सस्ता व सहज है। आयुर्वेदिक दवाईयों से इलाज धीरेधीरे जरूर होता है, लेकिन मरीज की बीमारी पूर्ण रूप से ठीक हो जाती है। इन दवाईयों का कोर्ई विपरित प्रभाव भी मनुष्य के शरीर पर नहीं पड़ता है। उन्होंने लोगों से आह्वान किया कि वे आयुर्वेदिक विभाग की ज्यादा से ज्यादा सेवाएं ले। विशिष्ट अतिथि जिला आयुर्वेद अधिकारी डा। महेंद्र सोनी ने कहा कि हरियाणा सरकार पूरे प्रदेश में आयुर्वेदे चिकित्सा पद्घति पर पूरा ध्यान दे रही है तथा जगहजगह पर आयुर्वेदिक डिस्पेंसरियों की स्थापना कर रही है। सफीदों के अलावा गांव बुढ़ाखेड़ा, कुरड़ व सिंघाना में भी आयुर्वेदिक डिस्पेंसरी सरकार द्वारा खोली गई है। कोई भी व्यति इनमें जाकर अपना इलाज करवा सकता है। जनता की सेवा के लिए आयुष् विभाग दिनरात तत्पर है। इस शिविर में सैकंड़ो मरीजों ने अपने स्वास्थ्य की जांच करवाई तथा सभी को मौके पर ही दवाईयां भी मुत में दी गई। शिविर में आए हुए अतिथियों को समानित किया गया। शिविर में आयुर्वेद चिकित्सा अधिकारी डा। उपेंद्र खटकड़, डा। जयदीप सिवाच, डा। राममेहर मलिक, डा. सुरेखा व डा. संदीप के पैनल ने मरीजों का ईलाज किया। इस मौके पर आर्य समाज के संरक्षक फूलचंद आर्य, प्रधान यादविंद्र बराड़, उपाध्यक्ष संजीव मुआना, मंत्री सुरेंद्र वत्स व कोषध्यक्ष महाबीर प्रसाद सहित समाज के अन्य लोग मौजूद थे।

सावधान!: कहीं आप पेट्रोल-घटतौली के शिकार तो नहीं

                                              -डा० डंडा लखनवी
छः माह पूर्व मेरा स्कूटर एक लीटर पेट्रोल में चालीस से पैतालीस कि0 मी0 प्रति लीटर एवरेज देता था। दो माह से यह एवरेज घट पच्चीस से तीस किलोमीटर प्रति लीटर रह गया। मैंने स्कूटर का ब्लाक, पिस्टन, इंजन आयल, गेयर आयल, हवा आदि चेक कराये उस स्तर पर सब कुछ सामान्य था। अब यह चेक करने की बारी थी पेट्रोल पंप पर भराए जा रहे पेट्रोल में कोई मिलावट अथवा उसमें घटतौली तो नहीं है। उस स्तर पर जाँच के बाद पिट्रौल में घटतौली पकड़ में आई।


कैसे होती है घटतौली ?


लखनऊ के पेट्रोल पंपों पर जब आप अपने वाहन में पेट्रोल भराने जाएंगे तो हर फिलिंग प्वाइंट आपको दो कर्मचारी मिलेंगे। इसमें से एक कर्मचारी वाहन में पेट्रोल भरेगा और दूसरा कर्मचारी रकम वसूलेगा। यही दोनों कर्मचारियों की मिली जुली साजिस के कारण जितनी कीमत आप चुकाएगे उतनी कीमत का पेट्रोल आपको नहीं मिलेगा। आपको पता भी नहीं चल पाएगा आप ठगे जा चुके हैं। जब यह सब पता चलेगा तब तक बहुत देर हो चुकी होगी।


होता यह है कि पिट्रोल-पंप पहुँचने पर कर्मचारी कितना पेटोल भरा जाय यह आपसे पूछेगा। आप उसे वाहन में भरने हेतु पेटोल की मा़त्रा बताएंगे। इसके बाद वह आपसे मीटर का शून्य देखने को कहेगा। आप मीटर पर शून्य देखेंगे और ओ0के0 कहेंगे। अब वह पेटोल भरना शुरू कर देगा। अभी आपके वाहन में पूरी कीमत का पेटोल भर नहीं पाया है। आप मीटर की ओर  देख रहे हैं। इस बीच दोनों कर्मचारियों में से कोई एक ऐसी बात कहेगा जिससे आपका ध्यान मीटर की ओर से हट जाएगा। इधर आपका ध्यान मीटर से हटा उधर रकम वसूलने वाले वाले कर्मचारी ने सप्लाई आफ की और मीटर जीरो पर पुनः आ गया। आप सोचेंगे कि पूरी मात्रा में पेटोल भरे जाने के बाद जीरो हुआ है परन्तु वास्तव में ऐसा नहीं होता है। आप घटतौली के शिकार हो चुके होतें हैं। पेटोल पंपों पर ऐसी ठगी शाम-सुबह जब भीड़ का दबाव अधिक होता है, ज्याद होती है। इस ठगी से बचने का उपाय यह है कि आप जितनी कीमत का पेट्रोल लेना हो उतनी कीमत मीटर में फीड करा कर पेट्रोल भराएं।


पिछले कई महीनों से मैं इस ठगी का शिकार हो रहा था। कई पेट्रोल पंपों पर कर्मचारियों को रंगे हाथों पकड़ा और पूरी कीमत का पूरा माल लिया। उपभोक्ता गण सावधान! कहीं आप भी तो ऐसी ठगी के शिकार तो नहीं हो रहे हैं ?