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15.3.10

जन प्रतिनिधियों की शैक्षिक आर्हता व चरित्र का सत्यापन जरूरी हो

0 प्र0 पंचायत चुनावों में इस बार प्रधान बनने के लिए शैक्षिक योग्यता अनिवार्य कर दी गई है। अब हाईस्कूल फेल व्यक्ति प्रधानी की कुर्सी पर नहीं पहुंच सकेंगे। देर से सही परन्तु सही दिशा में बढ़ाया गया यह एक अच्छा कदम कहा जायेगा यही काम अगर विधान सभा, विधान परिषद, लोक सभा, राज्य सभा, में भी कर दिया जाए तो कम से कम इन पदों पर जाहिल दिमाग बैठ सकेंगे और कुछ तो गरिमा इन पदों की वापस लौटेंगी।
0प्र0 में पंचायत के चुनावों में प्रधान के पद पर अब वही व्यक्ति अपनी उम्मीदवारी का दावा कर सकेंगे जो कम से कम हाईस्कूल पास हो। इस फैसले से भले ही अंगूठा टेक प्रधानों को अघात लगा हो कि अब वह प्रधान बन सकेंगे परन्तु इसके परिणाम अच्छे आयेंगे। लोकतंत्र की सबसे निचली इकाई ग्राम पंचायत होती है और पंचायती राज अधिनियम के द्वारा पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने ग्रामीण स्तर पर स्थित ग्राम पंचायतों को विकास के लिए केन्द्र से भेजे जाने वाले धन का उपयोग करने का जिम्मेदार बताया था। उसके बाद से प्रधानी के चुनाव की अहमियत काफी बढ़ गई है और जो चुनाव बगैर धन खर्चा किए पहले हो जाया करता था वह अब लाखों रूपये में होने लगा है। अब ग्राम प्रधानी के पद पर प्रत्याशियों की होड़ सी मच गई है कारण वही पैसा, परन्तु इस पैसे को खर्च करने के लिए प्रधान का अशिक्षित होना काफी दिक्कते पैदा करता था और इसका लाभ सरकारी प्रशासनिक मशीनरी उठाती थी और प्रधानों को भ्रष्टाचार के जाल में फंसाकर जेल तक यही सरकारी तंत्र के बाबू, पंचायत सेक्रेटरी अधिकारी पहुंचा देते थे।
इन्ही सब पर विचार करके शायद प्रधान की शिक्षित अनिवार्यता को रखा गया है। इससे जहाँ ग्राम पंचायतों की कार्यक्षमता गुणवत्ता में सुधार आयेगा वहीं शिक्षा की ओर भी रूचि में इजाफा होगा।
अब यही कदम देश के सबसे बड़े लोकतंत्र के मंदिर लोकसभा राज्य सभा तथा प्रदेश की विधान सभा विधान परिषद के सदस्यों के लिए भी उठाना चाहिए और कम से कम स्नातक की शैक्षिक योग्तया अवश्य इनके लिए रखी जानी चाहिए। साथ ही यदि एम0एल0सी0 एम0पी0 के पदों के लिए उम्मीदवारी का दावा करने वालों के चरित्र का सत्यापन भी पुलिस खुफिया विभाग से करा लिया जाये तो फिर काफी गुणात्मक सुधार हमारे लोकतंत्र के ढांचे में देखने को मिलेगा वरना अपराधियों देश की धार्मिक सौहार्दता अखण्डता उसकी अस्मिता के लिए खतरा उत्पन्न करने वाले सांसद विधायक देश के उच्च पदों पर बैठकर ऐसे कारनामों करते रहेंगे जिसे अक्सर मीडिया कर्मी अपने स्टिंग आप्रेशन से बेनकाब करती रहती है। जब हज यात्रा पर जाने वाले, पत्रकारिता जगत में मान्यता प्राप्त सनद हासिल करने वाले और अपनी सुरक्षा के लिए शस्त्र लाइसेंस या विकास का कार्य करने वाले ठेकेदारों के चरित्र का सत्यापन देश में होता है तो देश के सबसे जिम्मेदार पदों पर बैठने वाले व्यक्तियों की शैक्षिक योग्यता की अनिवार्यता और उनके चरित्र के अच्छे होने का प्रमाण पत्र की आवश्यकता अनिवार्य क्यों नहीं।
-मोहम्मद तारिक खान

14.3.10


न नौ मन तेल होगा, न राधा नाचेगी...!!!

















बहुप्रतीक्षित महिला आरक्षण विधेयक काफी जद्दोज़हद के बाद आखिर संसद का राज्यसभा में पेश हो गया. कुछ सहयोगी विपक्षी पार्टियों के हो हल्ला और वाकआउट के बावजूद यूपीए की सरकार चौदह साल बाद संसद उच्च सदन में बिल के पक्ष में १८६ मत और विरोध में १ मत हासिल कर महिला आरक्षण विधेयक का पहला बैरियर पार कर लिया. लेकिन सहयोगी विपक्षी पार्टियों के नेताओं की जाति आधारित महिलाओं ला आरक्षण की मांग पर किए जा रहे हंगामे से पता चलता है कि यूपीए की सरकार इस बिल को लोकसभा में अभी लाने के मूड में नहीं है. महिला आरक्षण विधेयक को अपनी मंजिल तक पहुंचने में अभी काफी लम्बा सफ़र और बैरियर्स का सामना करना पड़ेगा. सरकार के ढुलमुल रवैए से साफ हो जाता है कि " न नौ मन ताल होगा न राधा नाचेगी." न महिला आरक्षण विधेयक पर राजनीतिक आम सहमती बनेगी और न यह बिल अपनी परिणति को प्राप्त होगा.
 अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस ( ८ मार्च ) को पूरे विश्व ने अपने तरीके से मनाया. भारत ने भी कुछ अनूठे अंदाज़ में इसे मनाया. देश की आधी आबादी ( ४९.६५ करोड़ ) के अरसे से लंबित लोकसभा व राज्यसभा में ३३ प्रतिशत आरक्षण की मांग के बिल को राज्यसभा में पेश कर मनाया. ये और बात है कि सरकार को इस बिल को अमली जामा पहनाने में पूरी कामयाबी हासिल नहीं हुई है. आम जनता महंगाई की आग में जल ही रहि थी कि उस आग को नज़रअंदाज़ कर सरकार ने महिला आरक्षण विधेयक का शिगूफ़ा छोड़ दिया. जैसा कि हम सभी जानते हैं कि देश में जब भी कोई घोटाला, आम जनता से जुड़ी कोई घटना या दुर्घटना होती है तो सरकार लोगों को भरमाने के लिए एक जांच समिति गठित कर देती है. जांच शुरू हो जाति है. उस जांच में एक पीढ़ी जवान हो जाति है और एक पीढ़ी का अवसान हो जाता है. फिर भी जांच चलती रहती है. कोई कमी रह जाने पर दूसरी जांच समिति गठित कर दी जाती है. जनता की मेहनत की गाढ़ी कमाई को जांच समिति की सुविधा सेवा में खर्च कर दिया जाता है. वैसे भी हम भावुक भारतीय लोग प्रवृत्ति से काफी भरमशील और भूलनशील होते हैं. इसलिए, कौन सी समिति कब बनी ? उसने क्या किया ? उस पर कितना धन खर्च हुआ ? आम लोगों को उससे कितना फायदा पहुंचा ? समय बीतने पर सब भूल जाते हैं. सरकार जांच समिति का खेल खेलती रहती है. 
आम जनता अभी इसी सवाल के जवाब ढूढ़ने में उलझी थी कि एनडीए शासनकाल में हर तीसरे दिन गैस सिलिंडर वाला कहाँ से गैस लेकर आ धमकता था. और वर्तमान सरकार समय में ऐसा क्या हो गया कि महीनों बुकिंग के बाद भी गैस नहीं मिलती. आम आदमी की जरूरत की चीज़ें उसकी पहुँच से दूर होती जा रहि है. कमरतोड़ महंगाई ने आम आदमी के चाय की चुस्कियों के स्वाद " शुगर फ्री "  कर दिया है. ऐसे समय में महंगाई की धूप से ध्यान हटाने के लिए सरकार ने ३३ प्रतिशत के जिन्न को जनता के बीच छोड़ दिया. 
३३ प्रतिशत आरक्षण को पेश करने के लिए राज्यसभा को ६ बार स्थगित करना पड़ा. आरक्षण बिल की प्रतियों को विरोधियों ने द्रौपदी के चीरहरण की मानिंद फाड़कर चिंदी-चिंदी कर दिया. बिल की पार्टियों को फाड़ने वाले पुरुषों ने अपने कृत्य से आधी आबादी को संकेत दे दिया कि- " अबला जीवन हाय तुम्हारी यही कहानी, आँचल में है दूध और आंखों में पानी."  वे कभी आधी आबादी को पूरी आबादी में तब्दील होने देना नहीं चाहते. हालाँकि इस अमर्यादित कृत्य के लिए उन सात सांसदों को निलंबित कर दिया गया. लेकिन क्या निलंबन से आधी आबादी के आँचल पर उछाले गए कीचड़ के दाग साफ हो पायेगा ? शायद, हो भी जाए, क्योंकि भारत की आधी आबादी में भावुकता ३३ प्रतिशत से ज्यादा पायी जाति है. तभी तो कबीर ने कहा है कि- " नारी की झाईं परत, अंधा हॉट भुजंग, कबिरा तिन की कौन गति, नित नारी को संग." 

जिन्हें अपना आधार खिसक जाने का डर सता रहा है वे महिला आरक्षण विधेयक को हरसंभव पारित नहीं होने देंगे. उन्हें यह भय सताता है कि जिस दी आधी आबादी उनके समक्ष अपने बहुमत के साथ बैठेगी तो अपने बातों के बेलन से छुद्र राजनेताओं की बोलती बंद कर देगी. इसलिए, बिल के विरोधी नेताओं ने जाति आधारित आरक्षण का पासा फेंककर ३३ फीसदी के बिल को बिलबिलाने पर मजबूर कर रहे है.
जिस मुल्क में दुनिया की सर्वाधिक योग्य पेशेवर महिलाएं हैं. जहां अतिविकसित अमेरिका से ज्यादा महिलाएं डाक्टर, सर्जन्स, वैज्ञानिक और प्रोफेसर्स हैं. दुनिया की सबसे ज्यादा कामकाजी महिलाएं जिस मुल्क में हैं, वह भारत देश अपने पड़ोसी मुल्कों से बहुत पीछे है. ११५ करोड़ आबादी वाले हम भारतियों के लिए यह निहायत शर्म की बात है. हम भारत को इक्कीसवीं सदी का भारत बनने का सपना देखते हैं. जब हम ३३ प्रतिशत स्थान तक महिलाओं को नहीं दे पा रहे तो इक्कीसवीं सदी के भारत का सपना कैसे पूरा होगा ? 
इस व़क्त मुझे मुनव्वर  राना साहब द्वारा रचित कुछ पंक्तियाँ याद आ रही हैं. आपकी पेशे-नज़र करता चलूँ...
' धूप से मिल गए हैं पेड़ हमारे घर के
मैं समझती थी कि काम आएगा बेटा अपना.'
' मुकद्दर में  लिखाकर आए हैं हम दरबदर फिरना
परिंदे, कोई मौसम हो परेशानी में राहते हैं.'
' बोझ उठाना शौक कहाँ है, मजबूरी का सौदा है
राहते-राहते लोग स्टेशन पर कुली हो जाते हैं.'
     प्रबल प्रताप सिंह 

कृषि उपनिदेशक की किसानों द्वारा भावविनी - विदाई



गत दिवस जिला के गावं निडाना में कृषि विभाग के उपनिदेशक डा.रोहताश सिंह को किसानों द्वारा भावभीनी विदाई दी गई. इस अवसर पर किसानों ने उन्हें पगड़ी पहना कर सम्मानित किया. उल्लेखनीय है कि गत दिनों डा.रोहताश का तबादला जींद से हिसार हो गया है. निडाना वासी किसानों के साथ-साथ इगराह,रूपगढ, ललित खेडा गावं के किसानों ने उन द्वारा यहा कार्यरत रहते दी गई उत्कृष्ट सेवाओं से प्रसन्न हो कर इस विदाई समारोह का आयोजन किया. . काबिले गौर है कि जिले में पहली बार किसी कृषि उपनिदेशक को उनकी सराहनीय सेवाओं के लिए किसानों द्वारा सम्मानित किया गया. निडाना गावं के भू.पु.सरपंच रत्तन सिंह ने उपनिदेशक महोदय द्वारा निडाना गावं के किसानों के लिए किये कार्यो व् मार्ग दर्शन को याद करते हुए डा.रोहताश के व्यक्तित्व के अनमोल व् अनूठे आयामों के बारे में उपस्थित किसानों व् कृषि अधिकारियों को अवगत कराया तथा किसानों की तरफ से शाल उढ़ा कर सम्मानित किया. राजेन्द्र सिंह ने उपनिदेशक महोदय को डायरी व् पेन भेंट करते हुए अपने चहेते उपनिदेशक से मांग कि साहिब आपके मोबाइल कि तरह से यह पेन व् डायरी भी किसानों के हित निरंतर इस्तेमाल होनी चाहिए. राजकुमार सिंह ने कृषि उपनिदेशक महोदय को किसानों कि तरफ से स्मृति चिन्ह भेंट किया.स्मृति चिन्ह भी अपने आप में अनूठा था जिसके ऊपर मिलीबग के विरुद्ध जंग में किसानों के हीरो-अंगीरा का जीवन-चक्र अंकित था.मनबीर ने इस मौके पर उपनिदेशक से मुखातिब होते हुए बताया कि आपके कार्यकाल में तो हम किसान अपने आप को उपनिदेशक ही समझते थे. इस मौके पर डा.सुरेन्द्र दलाल ने भी विचार रखे. इस विदाई समारोह की विशेष बात यह थी की इसमें महिला-किसानों की भी उलेखनीय भागेदारी थी. कृषि विभाग की तरफ से डा.बलजीत, डा.सुभाष, डा.राजेश व् डा.कमल सैनी ने अपननी उपस्थिथि दर्ज करवाई.इस अवसर पर डा.रोहतास द्वेअ भी इस जिले के किसानों से मिले अथाह प्यार को शब्द देने की भरपूर कोशिश की. कार्यक्रम के अंत में रणबीर सिंह ने इस समारोह के सफल आयोजन के लिए डा.रोहतास सिंह व् कृषि अधिकारियों के साथ-साथ किसानों का भी धन्यवाद किया तथा यहाँ पधारे अधिकारियों व् डा.रोहतास सिंह के लिए दोहपहर के भोज का आयोजन किया.

13.3.10

सत्यमेव जयते

एक अच्छी खबर देश के सभी राज्यों के सरकारी कार्यालयों को ‘सत्यमेव जयते’ का प्रयोग करने के निर्देश दिये गये हैं, इसीक्रम में उ0प्र0 सरकार ने इसके अनुपालन के निर्देश जारी किये।
भौतिकता की बुराईयों से बचने के लिये हल निकालना ही चाहिये। पहले भी इस तरफ ध्यान दिया गया था, जब हर दफतर में गांधी जी की शांति स्थापना वाली मुद्रा की फोटो लगायी गई थी, उनके उठाये हुए हाथ की पांचो उंगुलियां सामने थीं। सभी जानते हैं कि पहले बाबू लोग (सभी नहीं) दो रूपया शर्माकर ले लेते थे, बाद में महंगाई आई तो मांग भी बढ़ी, शर्माते सकुचाते गांधी की तस्वीर का सहारा लेने लगे।
सरकारें अपनी जिम्मेदारियों से बचने के लिये कुछ टोटके करती हैं। यूरोप में तो कुछ दूसरे ही उपाय किये जाते हैं, जब बुराई हद से आगे बढ़ जाती है तो कानून बनाकर उसे जायज करार दे देते हैं, यह देश, सभ्य देश है?
अगर बुराई को समाप्त करने का दृढ़ संकल्प न हो तो विधि विधान या शासनादेशों से कुछ भी होने वाला नहीं है, इसे ‘फेस-सेविंग’ ही कहा जायेगा।
आदर्श वादिता बड़ी अच्छी चीज है अगर यह अपने स्थान पर न रूक जाये, इसके आगे भी एक लम्बा सफर है। मनसा, वाधा कर्मणा तक जाते हैं विचार तथा शब्दों की सीढियां हम को व्यवहार परिवर्तन की मंजिल तक ले जाती हैं। राष्ट्रीय त्यौहारों पर भारत माता की जय बोलने की आवाजे गगन भेंदी होती हैं बन्दे मातरम बोलने में भी किसी से कम नहीं। बड़े बड़े भ्रष्ट अफसर इन मौकों पर अपने भाषणों के द्वारा मातहतों को उपदेश की खुराके पिलाते हैं परन्तु व्यवहार परिवर्तन की किसी को फिक्र नहीं है।
पर उपदेश कुशल बहुतेरे
जो व्यवरहिं ते नर न घनेरे।

डॉक्टर एस एम हैदर

12.3.10

वादा लपेट लो, जो लंगोटी नहीं तो क्या ?

अर्थशास्त्रियों ने हमारी जरूरतों को तीन भागों आवश्यक आवश्यकताओं, आरामदायक तथा विलासिताओं में बांटा है। आवश्यक में खाना, कपड़ा, मकान मुख्य है। मैं अक्सर शहरी एवं ग्रामीण बस्तियों से गुजरा और देखा कि झोपड़ियों से टी0वी0, रेडियों द्वारा प्रसारित प्रोग्राम की आवाजे आ रही हैं तथा युवाओं के हाथों में मोबाइल सेट हैं मेरे मन में इस प्रगति के प्रति कोई विरोध नहीं है, मानवता के आधार पर अमीर गरीब समान हैं, परन्तु आश्चर्य इस बात पर हुआ कि इन आदमियों में खेलने वाले बच्चे अधिकतर कुपोषित थे तथा कपड़े तक मयस्सर नहीं थें, शायद ये लोग ग्लैमरस जिन्दगी की चकाचौंध का शिकार हो गये, इनकी जेब कम्पनियों ने काट ली और ये प्राथमिकताएं तय करने में गलती कर बैठे।
आवश्यकताओें में खाने का पहला नम्बर है, इनमें अनाज सब से मुख्य है। गरीब को रोटी चाहियें, परन्तु हमारी खाद्य नीति ने गरीब को भूखा मरने पर मजबूर कर दिया। लगता है हमारे केन्द्रीय खाद्य मंत्री शरद पवार के भी कुछ निहित स्वार्थ थे जिसके कारण उन्होंने आयात निर्यात का मकड़जाल फैलाकर कुछ बड़ों को शायद फायदा पहुंचाने की कोशिश की। उन्होंने अक्सर ऐसे विरोधाभासी बयान दिये जिससे एक तरफ अनाजों के दाम बढ़े जिस से उपभोक्ता प्रभावित हुए परन्तु दूसरी तरफ उत्पादकों तक फायदा नहीं पहुंचने दिया गया। यह फायदा बिचौलिए ले उड़े। कभी कहा गया अनाज आयात किया जायेगा, कभी कहा गया गोदामों में अनाज इतना भरा हुआ है कि उनको आगे के लिये खाली करना जरूरी हो गया है। शक्कर के सम्बंध में भी गलती से या जानबूझकर उलटफेर वाली नीतियाँ अपनाई गईं। उपभोक्ता ऊँचे दामों पर शक्कर खरीदने पर मजबूर हुआ, दूसरी तरफ आयातिति खांडसरी बन्दरगाहों पर पड़ी सड़ती रही।
गरीब की कोई सुनता नहीं, मौका आने पर उससे सिर्फ वोट लिया जाता है तथा जो वादे किये जाते हैं उनकी तरफ से कोई मुड़कर नहीं देखता, एक शेर शमसी मीनाई का देखिये-
सब कु है अपने देश में, रोटी नहीं तो क्या ?
वादा लपेट लो, जो लंगोटी नहीं तो क्या ?
-डॉक्टर एस.एम.हैदर

11.3.10

हम डाक्टर भेजते हैं, सैनिक नहीं

हैती में प्राकृतिक आपदा, जिसने हमारे इस पड़ोसी देश को तबाह कर दिया, के दो दिन बाद 14 जनवरी 2010 को मैंने लिखा था, “स्वास्थ्य एवं अन्य क्षेत्रों में हैती के लोगों को क्यूबा का सहयोग मिला है यद्यपि वह एक छोटा सा और प्रतिबंधित देश है। हमारे करीब 400 डाक्टर और स्वास्थ्यकर्मी निःशुल्क हैती के लोगों की मदद कर रहे हैं। हमारे डाक्टर उस दे के 237 में 227 कम्यूनों में प्रति दिन काम कर रहे हैं। इसके अलावा हैती में 400 युवाओं को हमारे देश ने मेडिकल ग्रेज्युएट बना कर भेजा है। वे अब अपने देश में लोगों की जान बचाने के लिए काम करेंगे। इस प्रकार एक हजार डाक्टर और स्वास्थ्य कर्मी बिना किसी विशेष प्रयास के वहां तैनात किये जा सकते हैं तथा उनमें से अधिकांश पहले से वहां हैं जो किसी भी अन्य देश के साथ सहयोग करने के लिए तैयार हैं जो हैती के लोगों की जान बचाना चाहते हैं।
हमारे मेडिकल ब्रिगेड के प्रधान ने सूचित किया है कि वहां स्थिति कठिन है लेकिन हम लोगों की जान बचा रहे हैं।
क्यूबा के स्वास्थ्यकर्मी दिन रात घंटों जो भी सुविधाएं वहां उपलब्ध हैं - शिविरों में या पार्कों में खुले आसमान के नीचे बिना रूके लगातार काम कर रहे हैं चूंकि वहां के लोगों को फिर भूकंप आने की आशंका थी। जितना पहले सोचा गया था, स्थिति उससे कहीं ज्यादा भयावह है। पोर्ट-ओ-प्रिंस की सड़कों पर हजारों घायल लोग सहायता के लिए गुहार लगा रहे हैं। अनगिनत लोग जिंदा या मुर्दा ढह गये मकानों के मलबे में दबे हुए हैं। बहुत ठोस मकान भी धराशायी हो गये।
संयुक्त राष्ट्र के कुछ अधिकारी भी अपने कमरों में फंस गये तथा दसियों लोगों की जानें चली गयी जिनमें संयुक्त राष्ट्र दल की टुकड़ी मिनुस्था के अनेक प्रमुख अधिकारी भी शामिल थे। संयुक्त राष्ट्र के अन्य सैकड़ों कर्मचारियों का कोई अता-पता नहीं है।
हैती के राष्ट्रपति का महल ढह गया तथा अनेक अस्पताल और अन्य सार्वजनिक दफ्तर नष्ट हो गये।
इस अभूतपूर्व प्राकृतिक आपदा को देखकर सारा विश्व स्तब्ध रह गया। दुनिया भर के लोगों ने प्रमुख अंतर्राष्ट्रीय टीवी नेटवर्कों पर वहां की तबाही का मंजर देखा। विश्व भर की सरकारों ने बचाव दलों, खाद्य सामग्रियों, दवाइयों, उपकरण एवं अन्स संसाधन भेजने की घोषणा की। क्यूबा द्वारा की गयी सार्वजनिक रूप से घोषणा के अनुरूप स्पेन, मेक्सिको, कोलम्बिया एवं अन्य देशों के मेडिकल स्टाफ ने हमारे डाक्टरों के साथ मिलकर कड़ी मेहनत की। पीएएचओ जैसे संगठनों तथा वेनेजुएला जैसे दोस्ताना देशों ने दवा एवं अन्य समान भेजे। क्यूबा के पेशेवरों एवं उनके नेताओं ने बिना किसी प्रचार और ताम-झाम के काम किया।
क्यूबा ने ऐसी ही परिस्थिति में जब न्यू ओर्लीन्स शहर में भयंकर तूफान आया था और हजारों अमरीकी नागरिकों की जान खतरे में थी, तो वहां के लोगों के साथ सहयोग करने के लिए अमरीका जैसे देश में जो अपने विशाल संसाधनों के लिए जाना जाता है, एक पूरा मेडिकल ब्रिगेड भेजने की पेशकश की थी। उस समय प्रशिक्षित एवं साज समानों से परिपूर्ण डाक्टरों की जरूरत थी ताकि लोगों की जान बचायी जा सके। न्यू ओर्लीन्स की भौगोलिक स्थिति को देखते हुए “हेनरी रीव“ टुकड़ी के एक हजार से अधिक डाक्टरों को तैयार रखा गया जो अपने साथ जरूरी दवाइयां एवं अन्य उपकरणों के साथ किसी भी वक्त वहां जाने के लिए तैयार थे। हमने कभी सोचा भी नहीं था कि उस देश के राष्ट्रपति हमारी पेशकश को ठुकरा देंगे और अनेक अमरीकी नागरिकों को मरने देंगे, जिन्हें बचाया जा सकता था। उस देश की सरकार ने शायद यह गलती की कि वह यह नहीं समझ पायी कि क्यूबा के लोग अमरीका के लोगों को अपना दुश्मन नहीं मानते और न ही क्यूबा पर हमले के लिए उन्हें दोषी समझते हैं। वहां की सरकार यह नहीं समझ पा रही थी कि हमारा देश उन लोगों से कुछ पाने की इच्छा नहीं रखता है जो आधी शताब्दी से हमें झुकाने का व्यर्थ प्रयास कर रहे हैं। हैती के संबंध में भी हमारे देश ने अमरीकी अधिकारियों के इस अनुरोध को कि सहयता सामग्रियों एवं जरूरी अन्य चीजों को यथासंभव हैती पहुंचाने के लिए क्यूबा के पूर्वी हिस्से के ऊपर से उड़ने दिया जाये, तुरन्त मान लिया ताकि अमरीका के और हैती के लोगों को जो तबाही से प्रभावित हुए है मदद पहुंच सके।
हमारे लोगों का इस तरह का शानदार नृजातीय चरित्र रहा है।
धीरज के साथ दृढ़ता, यह हमारी विदेश नीति का हमेशा ही विशेषता रही है और अंतर्राष्ट्रीय क्षेत्र में जो लोग हमारे विरोधी रहे हैं उन्हें भी यह अच्छी तरह मालूम है। क्यूबा इस राय से पूरी तरह एवं दृढ़ता पूर्वक सहमत है कि दक्षिण गोलार्ध के सबसे गरीब देश हैती में जो त्रासदी हुई है वह विश्व के सबसे शक्तिशाली एवं धनी देशों के लिए एक चुनौती है।
हैती विश्व में थोपी गयी औपनिवेशिक, पूंजीवादी और साम्राज्यवादी व्यवस्था की उपज है। हैती की गुलामी तथा बाद की गरीबी बाहर से थोपी गयी है। यह भयंकर भूकंप कोपेनहेगन शिखर सम्मेलन के बाद हुआ जहां संयुक्त राष्ट्र के 192 सदस्य देशों के सर्वाधिक मूलभूत
अधिकारों को कुचल दिया गया। इस त्रासदी के बाद हैती में जल्दबाजी में गैर कानूनी ढंग से लड़के-लड़कियों को गोद लेने की स्पर्धा चल रही है। इसे देखते हुए यूनिसेफ को इन बच्चों को बचाने के लिए निरोधात्मक कदम उठाने के लिए मजबूर होना पड़ा ताकि ये बच्चे अपनी जड़ों से इस तरह न उखड़ें और अपने अधिकारों को अपने सगे-संबंधियों से पाने से वंचित न हो जायंे। इस त्रासदी में एक लाख से अधिक लोग मारे गये। बड़ी संख्या में लोगों के हाथ, पैर टूट गये या फ्रैक्चर हो गये जिन्हें पुनर्वास की जरूरत है ताकि वे फिर से काम शुरू कर सके।
देश के 80 प्रतिशत हिस्से को फिर से बसाने की जरूरत है। हैती को ऐसी अर्थव्यवस्था की जरूरत है जो उत्पादन क्षमता के अनुसार इतनी विकसित हो कि अपनी जरूरतों को पूरा कर सके। हैती में जिन प्रयासों की जरूरत है उनकी तुलना में यूरोप और जापान का पुनर्निर्माण जो कि उत्पादन क्षमता और लोगों के तकनीकी स्तर पर आधारित था, आसान था। हैती तथा अधिकांश अफ्रीकी देशों और अन्य विकासशील देशों में स्थायी विकास के लिए हालात पैदा करना बहुत जरूरी है। केवल 40 सालों में दुनिया की आबादी नौ अरब हो जायेगी जिसे अभी वायुमंडल परिवर्तन की चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। वैज्ञानिकों की राय में जलवायु परिवर्तन एक ऐसी वास्तविकता है जिससे बचा नहीं जा सकता।
हैती में आयी त्रासदी के बीच, किसी को पता नहीं क्यों और कैसे अमरीकी नौसेना के हजारों सैनिकों, 82वां एयरबोर्न डिविजन सैनिकों एवं अन्य सैनिकों ने हैती पर कब्जा कर लिया। इससे भी बदतर बात यह है कि न तो संयुक्त राष्ट्र ने और न ही अमरीकी सरकार ने सैनिकों की तैनाती के बारे में विश्व को कुछ बताया।
अनेक सरकारों ने शिकायत की है कि उनके विमानों को हैती में उतरने नहीं दिया गया जो मानवीय एवं तकनीकी संसाधनों को लेकर गये थे।
कुछ देशों ने घोषणा की है कि वे वहां अतिरिक्त सैनिक एवं सैनिक उपकरण भेजेंगे। मेरे विचार में ऐसी घटनाओं से अंतर्राष्ट्रीय सहयोग में जटिलता और अराजकता पैदा होगी जो कि पहले से ही जटिल है। इस मुद्दे पर गंभीरता से विचार करने की जरूरत है। संयुक्त राष्ट्र को ऐसे नाजुक मामलों में अग्रणी भूमिका निभाने की जिम्मेदारी सौंपी जानी चाहिए।
हमारा देश बिल्कुल एक मानवीय मिशन को पूरा करने में लगा हुआ है। यथासंभव हमारा देश मानवीय एवं अन्य संसाधन वहां भेजेंगा। हमारे लोगों की इच्छा काफी मजबूत हे जिन्हें अपने डाक्टरों और अन्य कर्मियों पर जो वहां काफी महत्वपूर्ण सेवाएं दे रहे हैं, नाज है। हमारे देश को यदि किसी महत्वपूर्ण सहयेाग की पेशकश की जायेगी तो उसे अस्वीकार नहीं किया जायेगा बशर्ते कि वह बिना किसी शर्त के और महत्वपूर्ण हो तथा जिसके लिए हमारे यहां से अनुरोध किया गया हो।
यह कहना उचित होगा कि अभी तक क्यूबा ने जो भी अपने विमान एंव अन्य मानवीय संसाधन हैती के लोगों की सहायता के लिए भेजे वे वहां बिना किसी कठिनाई के पहुंच गये हैं। हम डाक्टर भेजते हैं, सैनिक नहीं।
(23 जनवरी, 2010)
-फिडेल कास्ट्रो रूज

10.3.10

देश की अस्मिता पर भारी व्यवसायिकता

हाकी के जादूगर मेज़र ध्यानचंद

कुंवर दिग्विजय सिंह

देश के राष्ट्रीय खेल की वर्तमान में क्या दशा है इसका आंकलन वर्तमान में देश की सरजमीं पर चल रही विश्व कप प्रतियोगिता से भली-भांति लगाया जा सकता है जब उसके सातवें स्थान पर आने की आशा पर हांकी संघ के पदाधिकारी खिलाड़ी गर्व की अनुभूति प्रदर्शित करते दिखलाई दे रहे हैं। हांकी के लिए हमारी सरकार के दिल में क्या जगह है और इसका क्या सम्मान है इसका एक उदहारण यह है कि दिल्ली में आयोजित विश्व कप प्रतियोगिता के प्रसारण अधिकार टेन स्पोर्ट्स चैनल को बेंच दिया गया है जो बड़े घरों की जीनत है।
किसी भी खेल की लोकप्रियता की अलख जगाने के लिए उसके प्रचार प्रसार का महत्वपूर्ण योगदान रहता है और यह गौरव हो और यह पतन की ओर जा रहा हो। जी हाँ हम बात कर रहे हैं अपने राष्ट्रीय खेल हाकी की जिसके स्वर्णिम इतिहास का कीर्तिमान पूरे विश्व में स्थापित करने में हाकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद कुंवर दिग्विजय सिंह का महत्वपूर्ण योगदान अथाह परिश्रम रहा है।
वर्ष 1980 के मास्को ओलंपिक में स्वर्ण पदक जीतने के पश्चात एक भी ऐसा अवसर नहीं आया जिस पर देशवासी गर्व कर सकें। वह चाहे एशियाई खेल हो या विश्व कप वह चाहे चैंपियंस ट्राफी हो या सैफ खेल सभी प्रतियोगिताएं में हमारे राष्ट्रीय खेल की प्रतिष्ठा तार-तार होती रही और हमारा हाकी संघ के पदाधिकारी अपनी बदनीयती के कारण एक दूसरे के गिरहबान में ही झांकते रहे। एक पत्रकार आशीष खेतान ने स्टिंग ऑपरेशन कर के हाकी संघ के भीतर फैले भ्रष्टाचार के जाल को सही समय पर चक दे इंडिया नाम की अपनी रिपोर्ट के शीर्षक के माध्यम से उजागर करने का प्रयास किया था बावजूद इसके कोई सुधार हमारी कार्यप्रणाली में नहीं आया और स्तिथि अब यहाँ तक पहुंची है की टीम के खिलाड़ी ब्लैक मेलिंग पर उतर आये हैं
लोगों के दिलों में खेल के प्रति लोकप्रियता जगाने के लिए एक माहौल मीडिया द्वारा उत्पन्न कराया जाता है और खेल का सजीव प्रसारण इस का सशक्त माध्यम है परन्तु राष्ट्रीय खेल हाकी को इसके गौरवमयी इतिहास की और पुनः वापसी के लिए हमारी सरकार और उसका खेल मंत्रालय जरा सा भी चिंतित नहीं है और ही हाकी के प्रति युवाओं में अभिरुचि जाग्रत करने के लिए सरकार के पास योजना है ।अन्यथा सरकार व्यावसायिकता की दौड़ में शामिल होकर राष्ट्रीय खेल हाकी का प्रसारण अधिकार दूरदर्शन के पास ही रखती जिससे हाकी के खेल का व्यापक प्रचार-प्रसार होता
-मोहम्मद तारिक खान