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6.3.10

बजट नीतियाँ लीक से हटने की दरकार - 3

सुप्रसिद्ध अर्थशास्त्री श्री कमल नयन काबरा की शीघ्र प्रकाशित होने वाली पुस्तक 'आम आदमी - बजट और उदारीकरण' प्रकाशन संस्थान नई दिल्ली से प्रकाशित हो रही है जिसकी कीमत 250 रुपये है उसी पुस्तक के कुछ अंश नेट पर प्रकाशित किये जा रहे हैं
-सुमन

इस पर गर्व करने वाले यह भुला देते हैं कि लगभग 52 लाख करोड़ रूपयों की वर्तमान चालू कीमतों पर राष्ट्रीय आय का यह खर्च बमुश्किल पाँचवा हिस्सा ही है और कुछ अरसे पहले तक देखे गये तीस प्रतिशत के स्तर से गिरावट दिखाता है। वैश्विक मन्दी, भारत पर इसके कुप्रभाव, राष्ट्रीय दीर्घकालीन समस्याओं के जटिलतर और व्यापक होते आयामों , सरकारी खर्चं की घटती प्रभावशीलता तथा इसमें हो रहे बड़े-बड़े सुराख, जनाकांक्षाओं में वृद्धि तथा मूल्यगत स्तर पर स्वयं सरकारों और शासक दलों की घोषित प्रतिबद्धताएँ और नीतियाँ यह रेखांकित करती है कि सरकारी भूमिका सापेक्ष तथा निरपेक्ष दोनों स्तरों पर बढ़े। यहाँ तक कि राष्ट्रीय आय में सार्वजनिक क्षेत्र का हिस्सा गिरकर 25 प्रतिशत के 2000 के अंक से जब करीब 21 प्रतिशत रह गया है। जाहिर है निजीकरण तथा गैर-बराबरी का दायरा बढ़ा हैं। याद दिलाया जा सकता है कि हाल ही में भारत ने भी जी-20 के अन्य देशों के साथ यह माना था कि हम बाजारवादी कट्टरता से मुक्त हों तथा ग्रोथ के टिकाऊपन के लिए उसमें व्यापक भागीदारी लाएँ। सरकार और सामाजिक उद्यमिता मिलकर शैडो- बैंकिंग तथा नियमविहीन वित्तीयकरण से छुट्टी पाकर ही एक अनावश्यक उतार-चढ़ावपूर्ण आर्थिक स्थिति से बच सकते है। भारत की बजट नीतियों कके स्थायित्व, समष्टिगत सन्तुलन और वृद्धि-दर की रफ्तार बढ़ाने से कम जरूरत समावेशी विकास की नहीं मानी गयी है। पाठ्य-पुस्तकों वाले अर्थशास्त्र से बाहर आने पर यह नजर आता है कि सामाजिक यथार्थ, सरकारों और उद्देश्यों की जमीन पर महँगई, बेरोजगारी,विषमता, असमावेशीकरण तथा पर्यावरण संरक्षण- सन्तुलन आदि से निपटना ज्यादा बड़ी चुनौतियाँ हैं। हमारे नीतिकारों के आदर्श धनी देशों तथा चीन ने सरकारी खर्च में बहुत इजाफा किया है, परन्तु हमारी बाजारवादी हठधर्मिता बरकरार है। बजट के निर्माता ऐसी जरूरतों को स्वीकारते हैं। यहाँ तक कहा गया है कि समावेशी और समतापूर्ण विकास सन् 2009 के चुनावों के मुख्य जनादेश है।
क्या सरकारी खर्च तथा सम्पन्न और दिन--दिन सम्पन्न होते जा रहे तबकों से प्राप्त कर राजस्व सीमित रखकर आय तथा सम्पत्ति पुनर्वितरण को एक अस्वीकार्य नीति मानते हुए हम वास्तव में विद्यमान ढाँचें में वृद्धि-दर की तेज रफ्तार द्वारा जन-कल्याण के आंशिक कार्यक्रमों को आगे बढ़ा सकते हैं? खासकर उच्चतम आय कर दर को घटाकर हम उन समृद्ध तबकों की ही उपकृत कर रहे हैं।क्या पूरी तरह पारम्परिक लीक पीटते बजट के फलितार्थ और इसके प्रावधानो के औचित्य की परख इसी कसौटी पर की जा सकती है? वैसे आज तक, खासकर सन् 1980 के बाद हम इन दो नावों पर एक साथ सवारी कर रहे हैं। अपरिवर्तित वर्तमान आर्थिक- सामाजिक ढांचे मे हमग्रोथकी नाव के साथ-साथसमावेशीकरणकी नाव पर भी सवार होना चाहते है। ताकि आर्थिक बढ़ोतरी की नाव में बैठकर हम पिछड़ेपन, गरीबी, विषमता आदि के विकराल सैलाब को पार कर सकें। ख्याली पुलाव का सहारा सरलता से और ही जल्दी छूट पाता है। आजकल हम बजट के प्रावधानों पर कम और उसके नतीजों पर ज्यादा ध्यान देने लगे हैं। सही भी है। वित्त मंत्री ने अपनी तीसरी चुनौती के रूप में आज भी शासन-प्रबन्ध की प्रभावशीलता, खरेपन, पारदर्शिता आदि पर समुचित जोर दिया हैं।इस नजरिए से देखने पर बजट के सभी पक्षों(राजस्व, व्यय उनके क्षेत्र और प्रदर्शनवार आवंटन, सहायक नीतियों, कार्यक्रमों) पर समग्र और समन्वित रूप से विवेचन करके ही बजट के चरित्र उसकी दिशा और दशा को समझा जा सकता है।
उपरोक्त नजरिए से देख सकना बजट के तुरन्त बाद के विवेचन में पूरी तरह सम्भव नहीं हो सकता है, परन्तु एक रास्ता इस कठिन काम में थोड़ी मदद कर सकता हैं। इस साल का बजट किसी भी रूप में कोई नवीनता अथवा नवाचार से युक्त नहीं है। हाँ, आज देश के वैश्विक, आर्थिक, सामाजिक ज्वलन्त प्रश्न अवश्य नया गुणात्मक रूप धारण कर चुकें है। सारी दुनिया में बाजार और अतिवित्तीकृत, नियमनविहीन पूँजीवादी धनी और गरीब देशों के संकट और आम इंसान पर इसकी पुरजोर दोहरी मार ने खलबली मचा रखी है। विचारों, नीतियों और कार्यक्रमों के स्तर पर सरकार भारतीय अर्थव्यवस्था के अति-वैश्वीकरण (जीडीपी के 47 प्रतिशत तक) और उदारीकरण के यथार्थ को नामंजूर नही करती हैं। इन नीतियों के नतीजे बेरोजगारी,विषमता, बाहरी थपेड़ों की चपेट से नहीं बच पाने आदि के रूप में अनेक सरकारी और अन्तर्राष्ट्रीय आकलन मान चुके हैं। कुछ आधिकारिक अध्ययन तो इन मामलों में स्थिति के बदतर होने के आँकड़े भी देते हैं। सबको कुछ कुछ परोसने और किसी पर भी भारी बोझ नहीं डालने की तात्कालिक बधाइयाँ बटोरने कीसमझदारीपूर्णराजनीतिक नीति लागू की गयी है। इस तरह हम कहाँ मे सम्पन्न वर्गो की चहेती ऊँची ग्रोथ दर और आम आदमी की जरूरत समावेशीकरण की नीति के लक्ष्य को साथ-साथ पूरा कर पाएँगे?
-कमलनयन काबरा

प्राइवेट बसों को परमिट दिए जाएंगे : जैन

सफीदों, (हरियाणा) : व्यापारियों के साथ किसी भी तरह की ज्यादती नहीं होने दी जाएगी। यह बात प्रदेश के परिवहन मंत्री ओमप्रकाश जैन ने कही। वे सफीदों (हरियाणा) की पुरानी अनाज मंडी में व्यापार मंडल द्वारा आयोजित समान समारोह में बोल रहे थे। इस समेलन की अध्यक्षता पूर्व मंत्री बचन सिंह आर्य ने की। कार्यक्रम में हरियाणा प्रदेश व्यापार मंडल के सफीदों अध्यक्ष राजकुमार मिाल सहित काफी व्यापारियों ने ओमप्रकाश जैन व बचन सिंह आर्य का शाल ओढ़ाकर व स्मृति चिन्ह देकर स्वागत किया। उन्होंने कहा कि हरियाणा की भूपेंद्र सिंह हुड्डा सरकार व्यापारियों की भलाई के लिए दिनरात प्रयासरत है तथा सरकार ने व्यापारिक हितों के लिए बहुत से कार्य किए है। पिछली सरकारों में व्यापारियों के साथ बहुत जुल्म हुए थे, लेकिन आज प्रदेश में लॉ एण्ड आर्डर की स्थिति बेहद अच्छी है तथा व्यापारी को हुड्डा रकार में कोई खतरा नहीं है। चौटाला सरकार में व्यापारियों को सरेआम लूटा व पीटा जाता था लेकिन मुチयमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने प्रदेश से गुंडातत्वों को सफाया करके व्यापारियों को बिना भय के कार्य करने का मौका दिया है। भय व भ्रष्टाचार खत्म होने के कारण प्रदेश में व्यापार बढ़ा है तथा बड़ेबड़े उनोग धंधे स्थापित हुए हैं। चौटाला सरकार में जो उनोग धंधे पलायन कर गए थे वे धंधे वापिस आ रहे हैं। हुड्डा सरकार व्यापारियों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर कार्य कर रही है। हरियाणा सरकार का नजरिया व्यापारियों के प्रति बेहद अच्छा है। उन्होंने कहा कि व्यापारी वर्ग एकता के सुत्र में बंधकर रहें, योंकि एकता से ही उनके संगठन को शति मिलती है। व्यापारी ही देश, समाज व सरकार की ताकत होता है। कोई भी सरकार है, वह केवल व्यापारी के सहारे पर ही चलती है। देश में हो रहा विकास केवल व्यापारियों के दम पर ही है। उन्होंने जोर देकर कहा कि अगर किसी भी व्यापारी को कोई दिकत है तो उसके लिए उनके दरवाजें हमेशा チाुले हुए है। उन्होंने परिवहन महकमें की उपलधियों का जिक्र करते हुए कहा प्रदेश का परिवहन मंत्रालय नई बुलंदियों को छू रहा है। सरकार ने यह निर्णय लिया है कि जल्द ही ख्स्त्र०० बसों को परमिट दिए जाएंगे तथा कई सैंकड़ों बसों को परिवहन बेड़े में शामिल किया जाएगा। उन्होंने बताया कि परमिट बेरोजगार युवाओं को दिए जाएंगे तथा इन बसों को निर्धारित रूटों पर ही चलना होगा। अगर कोई बस निर्धारित रूट के बगैर चलती हुई पाई गई तो उसके खिलाफ सチत से सチत कार्रवाईअमल में लाई जाएगी। उन्होंने कहा कि प्रदेश की बसों को पूरव् भारत को विशेष्कर धार्मिक स्थलों व पर्यटन स्थलों से जोड़ा जा रहा है। राज्य परिवहन की बसों में यात्रियों को किसी भी तरह की दिक्कत नहीं आने दी जाएगी। अगर कोई ड्राईवर या कंडटर यात्रियों के साथ दुर्यव्यवहार करता पाया गया तो उसको किसी भी सूरत में बチसा नहीं जाएगा। उन्होंने विशेष्तौर पर कहा कि कुछ यूनियनों के पदाधिकारी लोगों को गुमराह करने का प्रयास कर रहे हैं कि राज्य परिवहन का नीजिकरण किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि सरकार का राज्य परिवहन को नीजिकरण करने का कोई मकसद नहीं है। सरकार का मकसद सिर्फ इतना है कि यात्रियों को यातायात की ज्यादा से ज्यादा सेवाएं उपलध करवाई जाएं। इस मौके पर व्यापारियों ने परिवहन के सामने मांगपत्र रखा। उस मांगपत्र पर गौर करते हुए उन्होंने पानीपत से सफीदों, सफीदों से पानीपत, सफीदों से गोहाना, सफीदों से रोहतक व सफीदों से हरिद्वार सीधी बस सेवा शुरू करने के आदेश दिए। इससे पूर्व उनका सफीदों के जैन समाज ने जैन धर्मशाला में भव्य स्वागत किया। परिवहन मंत्री ओमप्रकाश जैन ने वहां पर विराजमान जैन साध्वी पे्रक्षा एवं उनकी शिष्याओं से आशीर्वाद प्राप्त किया। तदोपरांत उन्होंने अपने संबोधन में कहा कि संसार में महावीर स्वामी, स्वामी दयानंद व महाराजा अग्रसैन जैसे अनेक महात्मा हुए है जिन्होंने समाज को नई दिशाएं प्रदान की है। महावीर स्वामी ने अहिंसा पर बल दिया, स्वामी दयानंद ने बाल विवाह, सतीप्रथा व अंधविश्र्वास जैसी विभिन्न बुराईयों को दूर कियातथा महाराजा अग्रसैन ने समाजवाद का नारा दिया। जैन साध्वियों ने मंगलपाठ सुनाकर परिवहन मंत्री के लिए मंगलकामना की तथा भविष्य में और आगे बढ़ने का आशीर्वाद दिया। वहीं एस.एस. जैन सभा सफीदों व जैन नवयुवक मंडल सफीदों ने परिवहन मंत्री को शाल ओढ़ाकर व स्मृति चिन्ह देकर समानित किया। इस अवसर पर मुチय रूप से समाजसेवी राकेश मिाल, सफीदों प्रधान राजकुमार मिाल, आढ़ती एसोसिशन सुपरगंज के प्रधान रमेश जैन, मार्कीट कमेटी पूर्व अध्यक्ष महेंद्र सिंह चट्ठा, उपाध्यक्ष मा. शाराम, राधेश्याम थनई, रमेश मिाल, सतीश जैन, ईश्वर जैन, बिल्लू सिंगला, रोशनलाल मिाल, ताराचंद जैन, प्रवीण जैन, इस अवसर पर पूर्व मंत्री बचन सिंह आर्य, पालिका प्रधान राकेश जैन, एस.एस. जैन सभा के प्रधान सूरजभान जैन, जैन नवयुवक मंडल के प्रधान सुशील जैन, पूर्व प्रधान सुभाष् जैन, पूर्व प्रधान कश्मीरी जैन, बोबी जैन, एम.पी. जैन एडवोकेट, रमेश जैन, गौरव जैन व मुकेश सहित काफी तादाद में लोग मौजूद थे।

5.3.10

युवक ने युवती को गोली मारकर किया घायल

सफीदों,हरियाणा (महावीर मित्तल) : कस्बे के वार्ड नंबर सात में एक युवक द्वारा एक युवती को गोली मारकर घायल कर दिए जाने का समाचार प्राप्त हुआ है। पुलिस ने लड़की के पिता की शिकायत पर चार लोगों के खिलाफ मामला दर्ज कर लिया है। लडक़ी के पिता राजिंद्र सिंह ने पुलिस में दी शिकायत में कहा कि कुछ दिन पूर्व कस्बे के वार्ड नंबर सात का गुरमुख सिंह अपने बेटे समनदीप का रिश्ता उनकी लड़की के साथ करने के लिए आया था। उस वक्त परिवार ने इस रिश्ते को नकार दिया था। शुक्रवार को उनकी लड़की घर के कमरे में बैठी पढ़ रही थी कि अचानक समनदीप सिंह उनके घर घूसा और सीधा लड़की के कमरे में जा पहुंचा। कमरे में पहुंचकर समनदीप सिंह ने लड़की पर ताबड़तोड गोलियां दागनी शुरू कर दी। गोली लगते ही उनकी लड़की की चिल्लाहट निकली। लड़की की चिल्लाहट की आवाज सुनकर जब घर के लोग कमरे में आए तो देखा कि उनकी लड़की लहुलुहान अवस्था में पड़ी थी। घर के सदस्यों को आता देखकर समनदीप सिंह मौके से फरार हो गया। गोली लगने से बुरी तरह से घायल लड़की को तुरंत सफीदों के सामान्य अस्पताल लाया गया जहां डाटरों ने लड़की की गंभीरावस्था को देखते हुए उसे रोहतक मेडिकल रैफर कर दिया। मामले की सूचना पुलिस को दी गई। सूचना मिलते ही पुलिस मौके पर पहुंची तथा घटनास्थल का जायजा लिया। घर में कमरे का सारा फर्श खून से लथपथ था। पुलिस ने लड़की के पिता राजेंद्र सिंह की शिकायत पर समनदीप सहित उसके पिता गुरमुख सिंह, दादा तारा सिंह व मां हरभजन कौर के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की विभिन्न धाराओं के तहत मामला दर्ज कर छानबीन शुरू कर दी है। बताया जाता है कि लड़की इंजीनियरिंग की छात्रा है। समाचार लिखे जाने तक किसी भी आरोपी की गिरतारी नहीं हुई थी। युवती को गोली मारने का समाचार पूरे कस्बे में आग की तरह से फैल गया तथा घटनास्थल पर लोगों को तांता लगा हुआ था।

लोकतंत्र से ‘‘लोक’’ लुप्त

देश की आजादी से पहले ‘‘लोक’’ की महत्ता नहीं थी। महत्ता थी तो मात्र शाह की। शाह यानी बादशाह और जहां बादशाहत चलती है उसे हम नाम देते हैं राजशाही का। आजादी से पहले बादशाहत थी वह चाहे ब्रिटेन की महारानी रही हों, मुगल शासक रहे हों या पूरे देश में टुकड़ों-टुकड़ों में बंटे हुए राजा। कुल मिलाकर हम यह कहेगें कि अपने देश में खण्डित राजशाही की और छोटा-छोटा राज्य लेकर पूरे देश में राजाओं की भरमार। जो अपने-अपने राज्य के विस्तार के लिए आये दिन आपस में लड़ते रहते थे। तब राजा छत्रपति बनने की आकांक्षा संजोए एक-दूसरे पर हमला करता था। इसी का लाभ उठाकर विदेशी आक्रमणकारी भी हमला करते रहते थे। कुछ हमलावर विजय प्राप्त करने के बाद इस देश को अपना देश समझकर इसके विकास के लिए और देश को एक करने के लिए प्रयासरत रहे। कुछ को सफलता मिली और वह महान कहलाए।

ईस्ट इण्डिया कम्पनी आयी पहले उसका मकसद केवल व्यापार था। कच्चा माल और बेगार करने वाले या सस्ते मजदूरों के सहारे उसने अपने को बढ़ाया और मौका पाकर अपना पैर जमाया। टीपू जैसे बहादुर अपनों के निकम्मेपन, लालच, चापलूसी करने वालों और सत्ता लोलुप लोगों के कारण अंग्रेजों के सामने टिक नहीं सके और देश अंग्रेजों गुलामी की जंजीर में जकड़ गया।

गोस्वामी तुलसीदास के कथन से उत्प्रेरित होकर कुछ संघर्षशील लोग आगे बढ़े, वो चाहे अपना राज्य बनाये रखने का संघर्ष रहा हो या फिर लोक द्वारा संचालित लोक संघर्ष रहा हो। राजाओं द्वारा किया गया संघर्ष अंग्रेजों द्वारा दबा दिया गया लेकिन लोक द्वारा संचालित लोक संघर्ष रंग लाया और 15 अगस्त 1947 को भारतीय मूल के प्रतिनिधियों अंग्रेजों द्वारा सत्ता सौंप दी गई, वह भी देश को खण्डित करके।

26 जनवरी 1950 को सिद्धान्त रूप में सत्ता लोक के हाथों सौंप दी गई और लोक का बहुमत प्राप्त करने वाले सत्ता में आये लेकिन पहले तो लगा था कि सत्ता में लोक की भागीदारी है लेकिन धीरे-धीरे लोक की भागीदारी खत्म होती सी दिखने लगी। देश को फिर खण्डित करने का प्रयास तथाकथित लोक प्रतिनिधियों द्वारा किया जाने लगा। इन तथाकथित प्रतिनिधियों ने लोक को सम्प्रदाय, जाति, क्षेत्र, भाषा, भूषा आदि के नाम पर लोक को बांट दिया। लोक को बांटने वाले लोगों ने यह सब कुछ अपने स्वार्थ सिद्धि के लिए किया। जो लोग सम्प्रदाय और धर्म के नाम पर सत्ता में पहुंचना चाहते थे या पहुंचना चाहते हैं उन्होंने साम्प्रदायिक भावना भड़का कर लोक को विभाजित किया। जो लोग जाति के नाम पर सत्ता में पहुंच सकते थे उन्होंने जाति के नाम पर लोक को विभाजित किया। कुछ ऐसे हैं जो क्षेत्रीयता के नाम पर लोक को बांटकर देश की धरती को भी बांटने के लिए प्रयासशील हैं। कुल मिलाकर हर समीकरण अपनाया जा रहा है।

देश के घटक (अवयव) को बांटकर तथाकथित लोक प्रतिनिधि अपने क्षेत्र के राजा बन बैठे हैं। लोकहित को परे रखकर स्वहित में लगे हुए हैं। लोक को असुरक्षित कर अपनी सुरक्षा के लिए कानून बनाते हैं। बड़े लोक प्रतिनिधि स्पेशल प्रोटेक्शन ग्रुप में आये और हर एक को कोई कोई सुरक्षा कवच शासन ने मुहैया कराया। यह सुरक्षा कवच में रहने वाले लोग लोक प्रतिनिधि होते हुए लोक से अलग लोक की सुविधा का ध्यान रखकर सुरक्षा कवच में रहकर लोकहित के विपरीत काम करते हैं। इन लोक प्रतिनिधियों में भू-माफिया भी हैं, शिक्षा माफिया भी हैं, एन0जी00 माफिया भी हैं, उद्योग माफिया हैं, सरकारी ठेकों पर कब्जा देने वाले हैं या पूरी-पूरी सरकारी सहायता और सरकारी धन डकार जाने वाले लोग हैं या फिर ऐसे लोगों के हित साथक बनकर उनके हिस्सेदार लोग हैं।

बड़े उद्योगों को सरकार से यही लोक प्रतिनिधि सुविधा दिलाते हैं, सस्ते दर पर भूमि और पूंजी का अंश दिलाते हैं और लोक के हिस्से में आती है तो केवल विवशता और भूख। अगर लोग अपने प्रतिनिधियों के इस कृत्य से क्षुब्ध होकर विरोध में उतरते हैं तो उन्हें अतिवादी कहकर जेलों में डाल दिया जाता है और इस लोकशाही में लोक की आवाज दबा दी जाती है। लोक की आवाज दबाने में लोक प्रतिनिधि, उद्योगपति और नौकरशाहों की सांठ-गांठ चलती है। नौकरशाह खुद सुरक्षा कवच में रहते हैं, इन्हीं लोक प्रतिनिधियों से अपनी सुरक्षा सम्बंधी कानून बनवाकर लोक प्रतिनिधियों से अपना वेतन और सुविधायें बढ़वाते हैं और ये लोक प्रतिनिधि अपने वेतन और सुविधा के लिए कानून बना लेते हैं। इस तरह पिसता है तो जग साधारण, वह भर पेट भोजन की व्यवस्था कर पाता है, वह शिक्षा में आगे बढ़ पाता है और नतीजे में बेसहारा यह बेचारा मूक होकर रह गया है। अगर इस मूकता को वाणी मिली तो लोक फिर से बेगार करेगा, जानवरों की तरह काम के बदले आधा पेट भोजन या आधा शरीर ढकने को कपड़ा मिल गया तो बहुत है वरना हमारे लोक प्रतिनिधि देश बचाओ अभियान चला कर स्वयं को बचाने में लगे हुए हैं।
मोहम्मद शुऐब
...........क्रमशः

4.3.10

बजट नीतियाँ लीक से हटने की दरकार - 2

सुप्रसिद्ध अर्थशास्त्री श्री कमल नयन काबरा की शीघ्र प्रकाशित होने वाली पुस्तक 'आम आदमी - बजट और उदारीकरण' प्रकाशन संस्थान नई दिल्ली से प्रकाशित हो रही है जिसकी कीमत 250 रुपये है उसी पुस्तक के कुछ अंश नेट पर प्रकाशित किये जा रहे हैं
-सुमन

देश में असमानताएँ, गरीबी, आजीविका विहीनता, असुरक्षा बढ़ी हैं। कारण-अकारण निजी तथा सामूहिक (भीड़) के स्तर पर आक्रोश के हिंसक धमाके-वाकये आम घटना बन गये हैं, कुछ सैकड़ो असुरक्षित नेताओं की जान की रक्षा करने पर 5 से 6 सौ करोड़ रूपए फूँके जा रहे हैं और हजारों- लाखों लोग चंद बाहरी-अन्दरूनी आतंकियों के शिकार बनते रहते हैं। पर्यावरण प्रदूषण तथा प्राकृतिक संसाधनों की घटती मात्रा तथा गिरती गुणवत्ता बजट में उधार जुटाई गयी अतिविशाल राशि के बोझ से भी ज्यादा बोझ अजन्मी भावी पीढ़ियों पर डाल रहे है।
इन सब सवालों से कन्नी काटते हुए वही बढ़त दर को बढ़ाने का खटराग लगातार हमारे बजटकारों का महँगा, अदूरदर्शी, असामाजिक शौक बना हुआ हैं। अभी एक जगह विजयदान देथा ने लिखा था कि पूरी तरह करोड़ों तारों से रोशन आसमान कि तरह धरती के अँधेरे में अपनी राह टटोलते इंसान को एक चिंगारी भर रोशनी नहीं दे पाता हैं। यह उसी आसमाँ की चर्चा है जो अमीर खुसरो की पहेली की रत्नों भरी उल्टी थाली की तरह कभी जमीन पर रोशनी का एक कतरा तक पहुँचाने में कई प्रकाश वर्ष लगा देता हैं। मुझे लगा कि हमारे अर्थशास्त्री और नीतिकार आखिर करोड़ों तारो से चमकते आसमान और पिछले कुछ दर्शकों में कई गुणा बढ़ी राष्ट्रीय आय की समरूपता, उनका सादृश्य क्यों नहीं देख पाते है। बढ़ती राष्ट्रीय आय की यह अरबों की राशि इतनी ऊपर ही अटक जाती है और दूरान्त सितारों की तरह एक टिमटिमाती ढिबरी जैसी और एक ढिबरी जितनी उपयोग भी इन करोड़ों नागरिकों के लिए नहीं बन पाती है।
हाँ, बढ़ाए उत्पादन। तेज आर्थिक वृद्धि। परन्तु उस दूरस्थ आसमान में नहीं, उन अटटालिकाओं में नहीं, जिन्हे आम आदमी केवल हसरत भरी निगाहों से देख भर सकते हैं, किन्तु उन्हें पा सकने के नादान ख्वाब तक नहीं पाल सकते हैं।
यदि इस रूपक को आगे बढ़ाएँ, तो कहा जा सकता है कि उल्कापात की तरह गरीबों और ग्रामीणों के लिए हजारों-लाखों करोड़ रूपए कि कार्यक्रमों के बजट में जगह दी गयी हैं। पुराने बजटोें से चालू कीमतों पर और कहीं अधिक मात्रा मेें, परन्तु प्रति-व्यक्ति क्या पल्ले पड़ता है? क्या अरबों रूपयों के सार्वजनिक उपक्रमों बेचने का मानस बनाकर, उसे बजट से बहरहाल बाहर रखकर, कुछ हजार परिवारों को यह जन-सम्पत्ति ’बेच’ कर, हमारे बजटकर्ता देश में व्याप्त दारूण गैर- बराबरी को दारूणतर नहीं कर देगंे? क्या ऐसा अनार्जित, राजकीय अनुकम्पा पर आधारित सम्पत्ति का केन्द्रीकरण तथाकथित सामाजिक कार्यक्रमों (जिन्हे समावेशी विकास की धुरी बताया जाता है) की मरहम से गरीबी, बेरोजगारी, बदहाली और गन्दगी के नासूरों का इलाज कर पाएगा? क्या अगले वर्ष वित्त मंत्री जब लोक सभा में बजट पेश करने खड़े होंगे, तो यह दावा कर पाएँगे कि इस साल गरीबी घटी है, रोजगार बढ़त के कारण बेरोजगारों की संख्या घटी है, उपभोक्ता कीमतों मेें कमी आयी है आदि- आदि समावेशी विकास की आड़ में दूरस्थ आसमाँ में और नये, चमकते सितारे जोड़कर क्या अँधेरी झोपड़िययों, तंग बस्तियों और गांवों की पगडंडियों पर अंधेरा कुछ कम कर पाएँगे?
विकास के विकट भ्रम में फँसे खाते-पीते अभिजात तबके व्यस्त हैं बजट के फलस्वरूप अपनी-अपनी माली हालत में आने वाले बदलाव, आमतौर पर इजाफे का हिसाब जोड़ने में। बाकी भारत के लिए ये बजट, ये बहसें आदि सब चोंचले हैं खाए- अघाए, लोगों का। क्या हम कह सकते हैं कि चलो, 2009 के जनादेश के बाद इस बजट में ’कुछ’ तो हुआ और जब इतना हो सकता है तो और ज्यादा, और शुभ, और जनपक्षीय भी हो तो सकता है। हाँ यह सम्भव है और होगा, विशेषतः हमारे नये उदीयमान युवकों की ताकत से जो न नेताओं के वंशज हैं, न जिनके जन्म के वक्त से ही उनके मुँह में चाँदी की चम्मच है और न ही उनके अग्रज हमारे अखबारो के तीसरे पन्ने की शख्सियत है। आम आदमी के बेटे-बेटियाँ ही एक नये बजट की शुरूआत कर पाएँगें।
वृद्धि और समावेशीकरण: एक म्यान में दो तलवार
एक बार एक प्रखर अन्तर्दृष्टिपूर्ण अर्थशास्त्री ने भारत की एक नयी पंचवर्षीय योजना के बारे में कहा था कि यह वहीं चली आ रही योजनाओं की नवीनतम किस्त है। हमारी संघीय सरकार के इस वर्ष के बजट के बारे भी यह उक्ति उपयुक्त नजर आती है। बजट में खर्च राष्ट्रीय आय की आम तौर पर दो अंकों में देखी गयी वृद्धि दर के असर से बढ़ जाते हैं। इस वर्ष भारत सरकार का खर्च दस लाख करोड़ रूपयों का अंक पार कर गया हैं।
-कमलनयन काबरा
(क्रमश:)

2.3.10

देश के विकास में महिलाओं का योगदान उल्लेखनीयः पहाड़िया

राज्यपाल ने किया महिला कालेज के शिलान्यास
सफीदों, (हरियाणा) : देश की आजादी एवं देश के विकास में महिलाओं ने अपनी अहम भूमिका निभाई है। यह बात प्रदेश के राज्यपाल महामहिम जगन्नाथ पहाड़िया ने कही। वे सफीदों (हरियाणा) में सरकार व इंदिरा प्रियदर्शनी महिला शिक्षा समिति के तत्वावधान में करोड़ो रूपए की लागत से बनने वाले महिला कालेज के शिलान्यास के उपरांत उपस्थित लोगों को संबोधित कर रह थे उन्होंने कहा कि महिलाओं के उत्थान का यह जीवंत उदाहरण है कि आज विश्र्व के पहले लोकतंत्र में देश की राष्ट्रपति व लोकसभा अध्यक्ष सरीखे अत्यंत महत्वपूर्ण पदों पर बेहतरीन संस्कारों की महिलाएं आसीन हैं और यह भी गौरव की बात है कि देश के विकास में पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी, मदर टरव्सा, लता मंगेसकर, सरोजनी नायडू, किरण बेदी व कल्पना चावला सरीखी महिलाओं का योगदान उल्लेखनीय है। उन्होंने कहा कि नारी शिक्षा का विशेष् महत्व है योंकि शिक्षित नारी से दो परिवारों परिजनों तथा ससुराल का उत्थान होता है। आज के पुरूष् प्रधान समाज में नारी अपनी विशेष् पहचान बना रही है। नारी किसी ाी कार्य में पुरूषें से पीछे नहीं हैं। आज इक्कीसवीं सदी के समृद्ध भारत के निर्माण में महिलाओं को आर्थिक, सामाजिक व शैक्षणिक समान प्राप्तहै तथा महिलाओं को पुरूषें के बराबर के अधिकार प्राप्त है। उन्होंने कहा कि नारी के उत्थान के लिए भारत सरकार ने महिला समृद्धि योजना लागू की है जबकि हरियाणा सरकार ने अनुसूचित जातियों की लड़कियों को शिक्षा के लिए नकद प्रोत्साहन राशि योजना शुरू की है। महिला शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए हरियाणा सरकार ने इस कड़ी में जिला सोनीपत के खानपूर गांव में भगत फूलसिंह महिला विश्वविनालय सहित अन्य कई तकनीकी शिक्षण सस्ंथानों की स्थापना की है। शिक्षकों की भर्ती में महिलाओं को फ्फ् प्रतिशत तथा पंचायती राज में पचास प्रतिशत आरक्षण देकर हरियाणा सरकार ने महिलाओं के विकास में अनुकरणीय पहल की है। उन्होंने उमीद जताई की सफीदों का ये महिलाकालेज भी क्षेत्र का शैक्षणिक विकास करव्गा। उन्होंने कालेज के निर्माण में आने वाली किसी भी कठिनाई को दूर करने का भरोसा दिलाया। उन्होंने कालेज के निर्माण में अपने एच्छिक कोष् से पांच लाख रूपए की राशी देने की घोष्णा करने के साथ इसके निर्माण के लिए हरियाणा सरकार से अतिरिक्त अनुदान दिलवाने भरोसा दिलाया। इस मौके पर अनेक सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया गया। इसके अलावा उन्होंने महाभारतकालीन नगर सफीदों की गौरवगाथा तथा सफीदों के प्राचीन इतिहास को लेकर नागक्षेत्र सरोवर के बाहर एक ऐतिहासिक शिलालेख का भी अनावरण किया। उन्होंने सफीदों के इतिहास से प्रभावित होकर इसके विकास के लिए कुरूक्षेत्र विकास बोर्ड के अंतर्गत विकास कार्य करवाए जाने के लिए एक सर्वे करवाने का आश्र्वासन दिया। इस अवसर पर मुチय रूप से राज्यपाल की धर्मपत्नी शांतिदेवी, उपायुक्त एम. शाईन, पुलिस अधीक्षक सतीश बालन, अतिरिक्त उपायुक्त बी.बी. कौशिक, एस.डी.एम. सत्यवान इंदौरा, हरियाणा टैस ट्रियुनल के सदस्य कर्मबीर सैनी, कांग्रेसी नेता रामकिशन बैरागी, समाजसेवी टी.सी. गर्ग, पालिका प्रधान राकेश जैन व उनोगपति लखमीचंद गर्ग के अलावा अनेक गण्यमान्य लोग मौजूद थे।

1.3.10

कारागार से कविता : मेरा प्यारा हिन्दुस्तान

मेरा प्यारा हिन्दुस्तान, प्यारा-प्यारा हिन्दुस्तान
हिन्दू-मुस्लिम आंखें इसकी, आर्या का दिल
गंगा-यमुना बहते-बहते, जहां पर जाते मिल
तरह-तरह के बूटे-पौधे, भांति-भांति इंसान
मेरा प्यारा हिन्दुस्तान, प्यारा-प्यारा हिन्दुस्तान।

काशी जैसी सुबह मिले है, अवध के जैसी शाम
हर कोई को लुत्फ मिले है, खास हो चाहे आम
हरियाणा हो या दिल्ली, यू0पी0 चाहे राजस्थान
मेरा प्यारा हिन्दुस्तान, प्यारा-प्यारा हिन्दुस्तान।

इल्म व हुनर का गह्वारा है, प्यार सी प्यारी धरती है
वलियों ऋषियों मुनियों की, बसती यहां पर बस्ती है
मोड़-मोड़ पर भजन-कीर्तन, गली-गली अज़-आन
मेरा प्यारा हिन्दुस्तान, प्यारा-प्यारा हिन्दुस्तान।

कुछ दिन पहले नम थी आंखें, रंज व अलम था छाया
चारों तरफ कोहराम मचा था, दहशत का था साया
मक्कारी से काबिज था गोरा, मलैच्छ शैतान
मेरा प्यारा हिन्दुस्तान, प्यारा-प्यारा हिन्दुस्तान।

टीपू ने फुंकार भरी, तो अहल-ए-वतन ललकारे
शेख अज़ीज भी फतवे से गोरों से धिक्कारे
गरम किया था दिलवालों ने शामली मैदान
मेरा प्यारा हिन्दुस्तान, प्यारा-प्यारा हिन्दुस्तान।

चन्द्रशेखर, बिस्मिल, मदनी और बढ़े आजाद
गली-गली ललकारा उनको, जनता से की फरियाद
मेरठ, दिल्ली, कानपुर, झांसी, मच उठी घमशान
मेरा प्यारा हिन्दुस्तान, प्यारा-प्यारा हिन्दुस्तान।

सबके हक का रखवाला है, सबके दिल का प्यारा
कल्चर इसका मशरिक वाला, बना है चांद-सितारा
अवामी इसका तर्ज-ए-हुकुमत, लोकतंत्र है शान
मेरा प्यारा हिन्दुस्तान, प्यारा-प्यारा हिन्दुस्तान।

- मो0 तारिक कासमी
( मेरे मोवाक्किल मो0 तारिक कासमी ने कारागार से कविता लिख कर भेजी है जिसको प्रकाशित किया जा रहा है )