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27.2.10

मोयली - किसान हितेषी सम्भीरका

खानदानी परिचय:
निडाना इगराह के किसानों द्वारा मोयली के नाम से जानी जाने वाली इन परजीव्याभ सम्भीरकाओं की जाति को कीट वैज्ञानिक Aphidius के नाम से पुकारते हैं| जीवों के नामकरण की द्विपद्धि प्रणाली के मुताबिक़ इनके वंशक्रम का नाम Hymenoptera तथा कुणबे का नाम Aphiidae होता है| इस परिवार में Aphidius नाम की तीस से ज्यादा जातियां तथा तीन सौ से ज्यादा प्रजातियाँ पाई जाती हैं| जो कुल मिलाकर अल की चालीस से ज्यादा प्रजातियों को अपनाशिकार बनाती हैं|
जीवन यात्रा:
मोयली नामक इस सम्बीरका का जीवनकाल सामान्यतौर पर 28 से 30 दिन का होता है| सहवास के बाद मोयली मादा अपनी 14 -15 दिवसीय प्रौढ़ अवस्था में एक-एक करके 200 से ज्यादा अंडे देती है| दूधो नहाओ-पूतो फलन के लिए मोयली मादा को ये अंडे चेपों के शरीर में देने होते हैं| अंड-निक्षेपण के लिए उपयुक्त 200 से ज्यादा चेपे ढूंढ़ लेना ही मोयली मादा की प्रजनन सफलता मानी जाती है| पर यह काम इतना आसान भी नही है| इसके लिए मोयली मादा को चेपा खूब उल्ट-पुलट कर पुष्टता परजीव्याभिता के लिए जाचना-परखना होता है| अंड-निक्षेपण के लिए उपयुक्त पाए जाने पर ही अपने अंड-निक्षेपक के जरिये एक अंडा चेपे के शरीर में रख देती है| अंड-विस्फोटन के बाद मोयली का नन्हा लार्वा चेपे के शरीर को अन्दर से खाना शरू करता है| चेपे के शरीर को अन्दर ही अन्दर खाते-पीते रहकर यह लार्वा पूर्ण विकसित होकर प्युपेसन भी चेपे के शरीर में करता है| पेट में पराया पाप पड़ते ही चेपे का रंग हाव-भाव बदलने लगता है| इसका रंग बादामी या सुनैहरा हो जाता है तथा शरीर फूलकर कुप्पा हो जाता है| इसी कुप्पे में गोल सुराख़ करके एक दिन मोयली का प्रौढ़ स्वतंत्र जीवन जीने के लिए बाहर आता है| अंडे से प्रौढ़ के रूप में विकसित होने के लिए इसे 14 -15 दिन का समय लगता है| इस प्रक्रिया में चेपे को नसीब होती है सिर्फ मौत और किसान को भरपूर उत्पादन|
हरियाणा
प्रान्त में भी विभिन्न फसलों पर चेपे / अल का आक्रमण अमूमन आये साल की आम बात है| इसमें अगर खास बात है तो वो यह है कि कीट नियंत्रण रूपी फल की आस में किसान केवल कीटनाशकों के छिडकाव का कर्म ही करते हैं| पर काला सच यह भी है कि स्थानीय पारिस्थितिक तंत्र का थोड़ा सा भी ज्ञान रखने वाला इंसान इस चेपे / अल के प्रबंधन में मोयली नामक सम्भीरकाओं की महत्ती भूमिका को नही नकार सकता| मोयली आकार में बहुत छोटे तथा बनावट में भीरड़नुमा कीट होते हैं जिनके शरीर की लम्बाई एक से तीन मिलीमीटर होती है| इन मोयली नामक परजीव्याभ सम्भीरकाओं को अपनी लार्वल एवं प्यूपल अवस्थाएं चेपे के शरीर में बितानी पड़ती हैं| मोयली के लार्वा का बसेरा एवं भोजन चेपे का शरीर ही होता है| "त्वमेव भोजनं त्वमेव आवास:" मोयली का लार्वा चेपे के शरीर को अन्दर ही अन्दर खा-पीकर पलता-बढ़ता है तथा पूर्ण विकसित होकर चेपे के शरीर में ही प्युपेसन करता है| इस प्रक्रिया में चेपे को नशीब होती है सिर्फ मौत यानि कि वही सज़ा जो किसान इस चेपे को कीटनाशकों का इस्तेमाल करके देना चाहता है|

अमेरिकन साम्राज्यवाद : अंतिम भाग

महायुद्ध
यूरोप में लड़ी गयी दो लड़ाइयों को विश्वयुद्ध संज्ञा दी जाती है- प्रथम विश्वयुद्ध और द्वितीय विश्वयुद्ध। किंतु ज्यादा सही बात यह है कि दुनियां का प्रथम महायुद्ध सं0 रा0 अमेरिका ने पश्चिमी गोलार्द्ध में शुरू किया। यह युद्ध लातिन अमेेरिका कब्जाने के लिये स्पेन से लड़ा गया। स्पेन-अमेरिका युद्ध 1898 हुआ, जिसमें जीर्णशीर्ण स्पेन का राजतंत्र हार गया। फिर तो लातिन अमेरिका में यूरोप का प्रभाव घटता गया और वह धीरे-धीरे पूरी तरह सं0 रा0 अमेरिका के प्रभाव में गया। इसने प्रशांत महासागर के हवाई द्वीप पर कब्जा किया और फिलीपींस को भी दबाया। इस तरह पश्चिमी गोलार्द्ध से यूरो को निकाल बाहर कर अमेरिका ने उसे अपना गलियारा बनाया।
लातिन अमेरिकी देशों का शोषण-दोहन करने के लिये उसने एक मनरो सिद्धांत अपनाया, जिसके अंतर्गत वहां यूरोपियन देशों का हस्तक्षेप अवांछित करार दिया गया। सर्वविदित है, यूरोप के दोनों ही विश्वयुद्धों में अमेरिकी नीति मुनाफा कमाने की रही।
अलबत्ता द्वितीय विश्वयुद्ध के उपरांत सोवियत यूनियन जब विश्वशक्ति के रूप में उभरा और समाजवादी अर्थव्यवस्था समानांतर विश्वव्यवस्था के रूप में सामने आयी तो अमेरिका के साम्राज्यवादी मंसूबो पर पाबंदी लगी।
सोवियत कम्यूनिस्ट पार्टी की 19वीं कांग्रेस में समाजवादी निर्माण की समस्याओं पर प्रस्तुत अपने आलेख में स्तालिन ने स्पष्ट कियाः ’’ अब दुनिया में युद्ध नहीं होगा।’’ इसका कारण बताते हुए स्तालिन ने कहाः ’’सोवियत यूनियन युद्ध नहीं करेगा, क्योंकि वह शांति का पक्षधर है और अमेरिका सोवियत पर हमला करने का साहस नहीं करेगा, क्योंकि तब उसके सामने उसका अस्तित्व मिट जाने का वास्तविक खतरा उपस्थित होगा। स्तालिन की यह भविष्यवाणी सोवियत यूनियन की अमोध सामरिक ताकत पर आधारित थी। हमने देखा कि जब तक सोवियत यूनियन अस्तित्व में था तब तक सिर्फ शीतयुद्ध चलता रहा, किंतु वास्तविक युद्ध कभी नहीं हुआ।
सोवियत यूनियन के विघटन के बाद ही खाड़ी युद्ध प्रारंभ हुआ और योगोस्लाविया, इराक और अफगानिस्तान में वास्तविक युद्धों का अटूट सिलसिला चल पड़ा। अमेरिकी साम्राज्यवादी मंसूबा इस कदर बढ़ा कि उसने एकधू्रवीय विश्व अर्थव्यवस्था बनाने की एकतरफा घोषणा कर दी। वाशिंगटन कंसेंशन वास्तविक रूप में विश्व अर्थव्यवस्था का अमेरिकीकरण अभियान है। अंधाधुंध सट्टेबाजी के चलते वित्तीय संस्थानों का फेल होना और व्याप्त मौजूदा विश्वमंदी ने इस अभियान पर प्रश्न चिन्ह लगाया है और दुनिया को इसके दुष्परिणामों से सावधान किया है। राष्ट्रपति ओबामा के स्टेट आफ यूनियन को संबोधित ताजा संबोधन में अमेरिकी प्रभुत्व पुर्नस्थापित करने की छटपटाहट झलकती हैं। ओबामा को नोबल शांति पुरस्कार से नवाजा गया है, पर यह तो उसकी घोषणाओं के महज आश्वासनों पर आधारित पाक मंशा है।ओबामा ने राष्ट्रपति पद संभालने के साथ प्रिज्म कैम्प बंद करने, इसरायल, फिलिस्तीनी वार्ता प्रारंभ करने, अलकायदा आतंक के अलावा क्यूबा के साथ संबंध सुधारनें की इच्छा प्रकट की थीं। ओबामा की इन घोषणाओं से दुनियां के शांतिकामी लोगों में आशा का संचार हुआ था। लगता है, ओबामा यह सब भूलते जा रहे है।
पूँजीवाद युद्ध केा जन्म देता है। गुजरी सदी के सभी युद्ध अतिरिक्त माल का बाजार ढूढ़ने के निमित्त लड़े गयो। वर्तमान वैश्वीकरण माल खपाने और मुनाफा कमाने की साम्राज्यवादी योजना का नाम है। तीसरी दुनिया के नवआजाद देशों ने अपनी राष्ट्रीय आवश्यकताओं के अनुरूप आत्मनिर्भर स्वावलंबी राष्ट्रीय अर्थतंत्र का निर्माण किया। फलतः साम्रज्यवादी देशों का बाजार सिकुड़ गया। 1980 आते-आते उन देशों में मंदी छा गयी। इस मंदी से निबटने के लिये नव आजाद देशों के स्वावलंबी राष्ट्रीय अर्थतंत्र को तोड़ना जरूरी था। तभी उनके मालों की लिये नया बाजार मिल सकता था। इसके लिये अंतर्राष्ट्रीय मुद्राकोष और विश्वबैंक की मार्फत विकासमान देशों पर उदारीकरण और निजीकरण की शर्त थोपी थी। यहां यह भी ध्यातव्य है कि पूँजी और माल के बेरोकटोक मुक्त वैश्विक प्रवाह की वकालत की गयी, वहीं दूसरी तरफ श्रमिकों की आवाजाही पर रोक लगायी गयी। अमेरिका और यूरोपियन देशों में भारतीय श्रमिकों पर हमले हुएं। उन्हें देश निकाला गया। इस तरह विकसित औद्योगिक देशों के हित में पक्षपातपूर्ण साम्राज्यवादी वैश्वीकरण चलाया गया, जिसके परिणामस्वरूप देश के अन्दर और देशों के बीच गरीबी और अमीरी का फासला विस्फोटक सीमा तक फैल गया।
यद्यपि विकसित देशों में व्याप्त मौजूदा मंदी और वित्तीय संकट ने एकध्रुवीय दुनिया बनाने के मसूबे को तोड़ दिया है, फिर भी संयुक्त राज्य अमेरिका की आर्थिक-सामरिक ताकत का विश्वव्यापी प्रभुत्व बरकरार है। और यह भी कि यूरोपियन यूनियन, शंघाई कोआपरेशन, ब्रिक वार्ता, (ब्राजील$रशिया$इ्रडिया$चायना) एवं अन्य क्षेत्रीय संगठनों ने दुनिया की बहुध्रुवीय बना दिया है, फिर भी मिलिटरी फैक्ट से बंधा मौजूदा अन्तराष्ट्रीय बाजार और विश्व अर्थ व्यवस्था का वास्तविक नियामक समूह-7 बना हुआ हैं। समूह-7 के देश असमान पक्षपातपूर्ण परमाणु अप्रसार संधि (एन पी टी) के माध्यम से स्वयं तो परमाणु हथियारो का जखीरा रखते है, किंतु दूसरों को परमाणु विकसित करने के अधिकार से रोकते है। जलवायु परिवर्तन की मसले पर कोपनहेगन सम्मलन में अमेरिका सहित विकसित देशों ने एकतरफा कार्बन उत्सर्जन कम करने की कानूनी बाध्यता से अपने को मुक्त कर लिया है, वहीं दूसरी तरफ इसने विकासमान देशों के कार्बन उत्सर्जन की मानिटरिंग और नियमन करने का अधिकार प्राप्त कर लिया है। जाहिर है, ऐसे उपायों से अमेरिका को आर्थिक चुनौती देनेवालो की धार कुंद हुई हैं।
ऐसे में पूँजी के वैश्विक आक्रमण से मानवता की हिफाजत की जिम्मेदारी मजदूर वर्ग पर आती है। विश्व पूँजी के बढ़ते आक्रमण को श्रमिकों की एकजुट अंतराष्ट्ीय कार्रवाई लगाम दे सकती है। भारत के प्रमुख केन्द्रीय ट्रेड यूनियन संगठनों ने हाल के दिनों में तात्कालिक महत्व के पाँच मुद्दों पर संयुक्त कार्रवाईयां की है। यह ट्रेड यूनियनों की नयी एकता का सुखद संदेश हैं। 14 सितम्बर का दिल्ली संयुक्त कनवेंशन, 28 अक्टूबर की राष्ट्व्यापी संयुक्त रैलियां और 16 दिसम्बर को संसद के समक्ष विराट धरना ने मजदूर वर्ग में एकता का नया उत्साह पैदा किया है। सभी संकेत बताते हैं कि 5 मार्च को होनेवाला राष्ट्व्यापी सत्याग्रह ऐतिहासिक होगा। उस दिन दस लाख से ज्यादा मजदूर एवं कर्मचारी सत्याग्रह करके अपनी गिरफतारी देंगे। हमें आशा करनी चाहिए कि विश्व साम्राज्यवाद के विरूद्ध यह मजदूर वर्गीय कार्यवाई आगे आनेवाले दिनों में और भी ज्यादा व्यापक होगी।
-सत्य नारायण ठाकुर

26.2.10

जेहाद का अभिप्राय

"जेहाद का अभिप्राय इस्लामी आतंकवादी संगठनों द्वारा भारत राष्ट्र के विरूद्ध इस राष्ट्र के नौजवानों को गुमराह कर भारत में आतंकवादी उपायों द्वारा इस्लामिक राष्ट्र की स्थापना करना है। "
यह कथन उत्तर प्रदेश के एस.टी.ऍफ़ के पुलिस उपाध्यक्ष श्री चिरंजीव नाथ सिन्हा का है। यह कथन उनका व्यक्तिगत नहीं है अपितु उत्तर प्रदेश की सरकार की सोंच का प्रतीक है और इसी आधार पर उत्तर प्रदेश में विभिन्न वादों की विवेचना की जा रही है श्री सिन्हा का यह कथन न्यायलय में सशपथ बयान के रूप में दर्ज हुआ है।
-सुमन

25.2.10

बुढ़ापा देखकर रोया : ताबूत घोटाले वाले


बीमारी, बुढ़ापा और मृत्यु पर महात्मा बुद्ध ने जो भी चिंतन किया हो और निर्वाण या मोक्ष का हल तलाश किया हो, वास्तव में अब भी हम को यह सोचना है कि यह अभिशाप है या वरदान? प्रकृति, प्रबंधन के एक बड़े चैखटे में रखकर अगर हम देखें तो कह सकते हैं कि विनाश भी विकास या निर्माण का एक सोपान है। यह एक सतत् प्रक्रिया है।
जार्ज फर्नाडिस पूर्व केन्द्रीय रक्षा मंत्री तथा पूर्व राजग संयोजक इस समय उपरोक्त तीनों से संघर्षरत हैं। जार्ज ने अपने जीवन में बड़े संघर्ष किये हैं, एक समय तक ईमानदार कहे जाने वाले, ताबूत घोटाले के संदर्भ में बहुत बेईमान भी कहे गये, जो भी हो। कहा गया कि इस समय 25 करोड़ की सम्पत्ति के मालिक हैं और 25 वर्ष बाद पत्नी लैला कबीर तथा इकलौते बेटे शान फर्नाडिस उनकी सेवा के लिये आ गये हैं। अल्जाइमर्स से ग्रस्त होने के कारण जार्ज अपनी याददाश्त पूरी तरह से खो चुके हैं। जार्ज के भाई, मित्र और शुभचिंतक जिनमें पूर्व केन्द्रीय मंत्री अजय सिंह तथा सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश वेंकट चैलैया भी हैं कहते हैं कि उनके आवास का मुख्य दरवाजा बन्द है, कोई नहीं जानता वह कहां और कैसे हैं पत्नी ने इनका खण्डन किया है।
इस समाचार को देखकर मुझे याद आया कि अनेक वर्षो पूर्व काशीराम की भी यही स्थिति थी जब उनकी माँ, भाईयों से मायावती का विवाद हुआ था तथा बात कोर्ट कचहरी तक पहुंची थी।
जार्ज फर्नाडिस अपनी जवानी में एक बड़े तेज तर्रार नेता थे, लेकिन जीवन के सत्य से कोई मुंह चुरा नहीं सकता, जो आया है वह जायेगा, जो स्वस्थ्य है वह बीमार भी होगा, जो आज जवान है वह कल बूढ़ा भी होगा, फिर अकड़ घमण्ड कब तक? धन बल कब तक साथ रहेगा, अतः विकास हेतु प्रयास अवश्या जारी रखे, साफ सुथरा जीवन व्यतीत करें अगर जवानी की नींद में ज्यादा मस्त न हो तो बुढ़ापे में डरेंगे भी नहीं, ऐसा न करें जवानी नींद भर सोया, बुढ़ापा देखकर रोया।
डॉक्टर एस.एम हैदर

24.2.10

आधुनिक भगवान को सेक्स गिफ्ट

मानव धर्म की सेवा करने वालों के अधर्मी कार्य

मेडिकल कौंसिल आफ इण्डिया द्वारा निर्णय लिया गया है कि अब दवा कम्पनियों द्वारा डाक्टरों को रिश्वत के तौर पर अपनी दवा की सेल प्रमोशन के लिए दिए जाने वाले तोहफों पर रोक लगाई जायेगी।
यह देर से उठाया जाने वाला एक अच्छा कदम है क्योंकि सफेदपोश कहलाए जाने वाले समाज के इस सम्मानित तबके के अंदर व्यवसायिक प्रवृत्ति इस दर्जे तक हो गई थी कि वह अपने धर्म व फर्ज को भूलकर हर समय दवा कम्पनियों के इशारें पर चलने लगा था। दवा कम्पनियों के इशारे पर चलने लगा था। दवा कम्पनियों ने परस्पर पनपती अपनी प्रतिस्पर्धाता के चलते गिरावट के सारे पैमाने तोड़ डाले हैं। डाक्टरों को गिफ्ट देने का सिस्टम तो बहुत पुराना है अब तो इससे भी एक कदम आगे बढ़ते हुए डाक्टरों को उनकी सैर तफरीह व शौक के सभी संसाधन दवा निर्माता मुहैया कराते हैं।
नाम न छापने की शर्त पर एक बड़ी दवा कम्पनी के एक बड़े सेल्स अधिकारी ने बताया कि उनको सेल्स लाइन में ट्रेनिंग देते समय 3 सी फार्मूला बताया जाता है जिसके मुताबिक पहले वह किसी भी डाक्टर को अपनी दवा के बारे में बताकर उसे कन्वेन्स करने का प्रयास करते हैं यदि इस सी के प्रयोग किया जाता है जिसके अंतर्गत डाक्टर को कामर्फिनस किया जाता है, अर्यात उस यह समझाने का प्रयास किया जाता है कि जो दवा उसके पेन पर इसरा किसी कम्पनी की चढ़ी हुई है उससे यह केमिकल र्फामूले में बेहतर है। र्याद यह दोनों सी के र्फामूले काम न आए तो फिर अन्तिम सी र्फामूले का प्रयोग किया जाता है। उसका अर्थ यह है कि डाक्टर को कमपीलीट बनाना यानि उसे भ्रस्टाचार में लित्त कर देना। अब यह भ्रष्टाचार भी कई प्रकार का होजा है। एक भ्रस्टाचार यह है कि डाक्टर को उसके क्लिीनिक या घर उपयोग के आनेवाली वस्तओं को गिफ्ट में उसे मेंटकर के उससे मनमाफिक सेल करवाना। दूसरा प्रकार भ्रष्टाचार का यह होता है कि डाक्टर को साल में एक या दो बार देश या विदेश के किसी शहर में सपरिवार सैर सपाटा कराने का खर्चा उपलब्ध कराना और एक और भ्रष्टाचार अब दवा कंपनियों ने यह अभी चन्द वर्षो से आजमाना प्रारम्भ किया है कि डाक्टर को जिन्दा मांस का तोहफा दिया जाता है यानि सेक्स गिफ्ट। इसी के चलते दवा कम्पनियों ने अब बड़े पैमाने पर अच्छी मोटी पगार देकर सुन्दर लड़कियों की तैनाती कर ली है ताकि डाक्टरों से मर्जी की सेल इनके माध्यम से निकलवायी जा सके।
समाज के इस सफेदपोश तबके को लोग पृथ्वी पर भगवान का दर्जा देते हैं शायद इसलिए कि जीवन बचाने में उसकी महत्वपूर्ण भूमिका होती है परन्तु अपनी डिग्री लेते समय मानवता की सेवा करने की शपथ लेने वाले यह लोग अपनी व्यवसायी प्रवृत्ति व आर्थिक हवस के चलते अपने फर्ज पेशे के धर्म व इंसानियत सभी को भुलाकर केवल दोनों हाथों से धनोपार्जन में जुट जाते हैं।
मेडिकल कौंसिल ने इस ओर कदम बढ़ाकर एक अच्छा काम किया है। सरकार को भी डाक्टरों के रवैये में तबदीली लाने के लिए दवा कम्पनियों पर अपना अंकुश और मजबूत करना चाहिए।
-मोहम्मद तारिक खान

23.2.10

हो सकता है नक्सलवाद का आन्दोलन सही हो - उच्चतम न्यायालय

'हो सकता यह आन्दोलन सही मकसद के लिए किया जा रहा होशायद यही वजह है कि इसे लोगों का भी समर्थन मिल रहा हैयदि ऐसा है तो इसमें समस्या क्या है।'
- माननीय उच्चतम न्यायालय

माननीय उच्चतम न्यायालय ने नक्सल आन्दोलन पर यह टिपण्णी करते हुए कहा कि इस पर सरकारों का रूख ठीक नहीं हैमाननीय उच्चतम न्यायालय ने छत्तीसगढ़ के गोपाढ गाँव में 10 आदिवासियों की हत्या सुरक्षा बालों द्वारा करने की जनहित याचिका की सुनवाई कर रहे माननीय न्यायमूर्ति बी.सुदर्शन रेड्डी तथा माननीय न्यायमूर्ति सुरेन्द्र सिंह निज्जर की खंडपीठ ने व्यक्त किये
उत्तर प्रदेश में पुलिस प्रमुख श्री करमवीर सिंह अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक श्री ब्रजलाल (कानून व्यवस्था ) अपराधियों का कुछ कर नहीं पा रहे हैंथानों में पुलिस पिटाई से मौते हो रही हैंवर्तमान में पुलिस की कार्यप्रणाली अपराधी गिरोहों जैसी हो गयी है तो दूसरी तरफ मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारियां भी व्यापक रूप से की जा रही हैमानव अधिकार कार्यकर्ता इनके गलत कार्यों का विरोध करते हैं इसलिए इनके मुख्य निशाने पर हैं । नक्सली साहित्य को उत्तर प्रदेश सरकार अभी परिभाषित नहीं कर पायी है किन्तु नक्सली साहित्य की बरामदगी के आधार पर आए दिन गिरफ्तारियां हो रही हैंजिन मानव अधिकार कार्यकर्ताओं के ऊपर फर्जी देशद्रोह के मुक़दमे कायम किये जा रहे हैं वही जनता की निगाहों में असली देशप्रेमी हैंभ्रष्टाचारी, रिश्वतखोर, आर्थिक अपराधों के संगठित स्वरूप में दिखने वाले सुसंगठित निकाय क्या वास्तव में देश प्रेमी हैं ?
-सुमन

22.2.10

मरगे आशिक पर फ़रिश्ता मौत का बदनाम था

देश-विदेश में भौतिक विकास तो हुआ, लोग शिक्षित भी हुए, सुख-सुविधायें बढ़ी परन्तु मानवता न जाने कहाँ सो गई, इधर तबड़तोड़ कई हृदय-विदारक घटनायें घट गई, डेढ़ सौ वर्ष पूर्व की गालिब की यह पंक्ति अब भी फरयाद कर रही है:-
आदमी को भी मयस्सर नहीं इनसां होना ?
अब घटनाओं पर जरा नजर डलिये-
पुणे में आतंकी हमला-11 मरे, 40 जनवरी-यह हमला कोरे गाँव स्थित जर्मन बेकरी पर हुआ- शक इण्डियन मुजाहिद्दीन पर भी और हेडली पर भी- मेरा यह कहना है कि अत्याचार, जुल्म, हत्याएं किसी की भी हों, कहीं भी हों, किसी ने की हों, इन पर दुख करना चाहिये तथा इनकी अत्याधिक र्भत्सना की जानी चाहिये, परन्तु दुख इस बात का है कि जिम्मेदार वर्ग से जो प्रतिक्रियाएं आनी चाहिए वह नहीं आईं।
दूसरी घटना-झाण ग्राम व लालगढ़ के धर्मपुर में सुरक्षा बलों के तीन शिविरों पर पुलिस कैम्प पर पहले-30 जवान शहीद-पांच दिन बाद फिर-बिहार के जमुई जिले के फुलवारिया गाँव में नक्सलियों ने 12 लोगों को मौत के घाट उतारा-इन घटनाओं में भी इंसान मारे गये, परन्तु प्रतिक्रियाएं सुनने को नहीं मिलीं।
आतंकवादी घटना पर चार दिन बाद यह कहा गया है कि इस धमाके में डेविड हेडली का हाथ होने के सुराग मिले हैं, उसने इससे पूर्व पुणे का दौरा भी किया था। अब पाकिस्तान की भी एक खबर पर गौर करें-पाकिस्तान की एक अदालत ने पांच अमेरिकी मुस्लिमों की अपील खारिज कर दी। इन पांचों पर इण्टरनेट के माध्यम से आतंकियों से सम्पर्क करने और हमलों की साजिश रचने का आरोप है। वर्जीनिया के इन आरोपियों को सरगोधा इलाके से गिरफ्तार किया गया था। आप को याद होगा कि सी0बी0आई0 की एक विशेष टीम अमेरिका इसलिये गई थी कि हेडली से पूछताछ करे परन्तु उसे हेडली से मिलने की इजाजत नहीं दी गई टीम बैरंग वापस आई। बुद्धजीवी इन सब बातों पर समग्र रूप से विचार करें और इस शेर पर राय दें कि कहीं ऐसा तो नहीं है कि:-

मरगे आशिक पर फ़रिश्ता मौत का बदनाम था।
वह हँसी रोके हुए बैठा था जिसका काम था।
-डा0एस0एम0 हैदर