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23.2.10

हो सकता है नक्सलवाद का आन्दोलन सही हो - उच्चतम न्यायालय

'हो सकता यह आन्दोलन सही मकसद के लिए किया जा रहा होशायद यही वजह है कि इसे लोगों का भी समर्थन मिल रहा हैयदि ऐसा है तो इसमें समस्या क्या है।'
- माननीय उच्चतम न्यायालय

माननीय उच्चतम न्यायालय ने नक्सल आन्दोलन पर यह टिपण्णी करते हुए कहा कि इस पर सरकारों का रूख ठीक नहीं हैमाननीय उच्चतम न्यायालय ने छत्तीसगढ़ के गोपाढ गाँव में 10 आदिवासियों की हत्या सुरक्षा बालों द्वारा करने की जनहित याचिका की सुनवाई कर रहे माननीय न्यायमूर्ति बी.सुदर्शन रेड्डी तथा माननीय न्यायमूर्ति सुरेन्द्र सिंह निज्जर की खंडपीठ ने व्यक्त किये
उत्तर प्रदेश में पुलिस प्रमुख श्री करमवीर सिंह अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक श्री ब्रजलाल (कानून व्यवस्था ) अपराधियों का कुछ कर नहीं पा रहे हैंथानों में पुलिस पिटाई से मौते हो रही हैंवर्तमान में पुलिस की कार्यप्रणाली अपराधी गिरोहों जैसी हो गयी है तो दूसरी तरफ मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारियां भी व्यापक रूप से की जा रही हैमानव अधिकार कार्यकर्ता इनके गलत कार्यों का विरोध करते हैं इसलिए इनके मुख्य निशाने पर हैं । नक्सली साहित्य को उत्तर प्रदेश सरकार अभी परिभाषित नहीं कर पायी है किन्तु नक्सली साहित्य की बरामदगी के आधार पर आए दिन गिरफ्तारियां हो रही हैंजिन मानव अधिकार कार्यकर्ताओं के ऊपर फर्जी देशद्रोह के मुक़दमे कायम किये जा रहे हैं वही जनता की निगाहों में असली देशप्रेमी हैंभ्रष्टाचारी, रिश्वतखोर, आर्थिक अपराधों के संगठित स्वरूप में दिखने वाले सुसंगठित निकाय क्या वास्तव में देश प्रेमी हैं ?
-सुमन

22.2.10

मरगे आशिक पर फ़रिश्ता मौत का बदनाम था

देश-विदेश में भौतिक विकास तो हुआ, लोग शिक्षित भी हुए, सुख-सुविधायें बढ़ी परन्तु मानवता न जाने कहाँ सो गई, इधर तबड़तोड़ कई हृदय-विदारक घटनायें घट गई, डेढ़ सौ वर्ष पूर्व की गालिब की यह पंक्ति अब भी फरयाद कर रही है:-
आदमी को भी मयस्सर नहीं इनसां होना ?
अब घटनाओं पर जरा नजर डलिये-
पुणे में आतंकी हमला-11 मरे, 40 जनवरी-यह हमला कोरे गाँव स्थित जर्मन बेकरी पर हुआ- शक इण्डियन मुजाहिद्दीन पर भी और हेडली पर भी- मेरा यह कहना है कि अत्याचार, जुल्म, हत्याएं किसी की भी हों, कहीं भी हों, किसी ने की हों, इन पर दुख करना चाहिये तथा इनकी अत्याधिक र्भत्सना की जानी चाहिये, परन्तु दुख इस बात का है कि जिम्मेदार वर्ग से जो प्रतिक्रियाएं आनी चाहिए वह नहीं आईं।
दूसरी घटना-झाण ग्राम व लालगढ़ के धर्मपुर में सुरक्षा बलों के तीन शिविरों पर पुलिस कैम्प पर पहले-30 जवान शहीद-पांच दिन बाद फिर-बिहार के जमुई जिले के फुलवारिया गाँव में नक्सलियों ने 12 लोगों को मौत के घाट उतारा-इन घटनाओं में भी इंसान मारे गये, परन्तु प्रतिक्रियाएं सुनने को नहीं मिलीं।
आतंकवादी घटना पर चार दिन बाद यह कहा गया है कि इस धमाके में डेविड हेडली का हाथ होने के सुराग मिले हैं, उसने इससे पूर्व पुणे का दौरा भी किया था। अब पाकिस्तान की भी एक खबर पर गौर करें-पाकिस्तान की एक अदालत ने पांच अमेरिकी मुस्लिमों की अपील खारिज कर दी। इन पांचों पर इण्टरनेट के माध्यम से आतंकियों से सम्पर्क करने और हमलों की साजिश रचने का आरोप है। वर्जीनिया के इन आरोपियों को सरगोधा इलाके से गिरफ्तार किया गया था। आप को याद होगा कि सी0बी0आई0 की एक विशेष टीम अमेरिका इसलिये गई थी कि हेडली से पूछताछ करे परन्तु उसे हेडली से मिलने की इजाजत नहीं दी गई टीम बैरंग वापस आई। बुद्धजीवी इन सब बातों पर समग्र रूप से विचार करें और इस शेर पर राय दें कि कहीं ऐसा तो नहीं है कि:-

मरगे आशिक पर फ़रिश्ता मौत का बदनाम था।
वह हँसी रोके हुए बैठा था जिसका काम था।
-डा0एस0एम0 हैदर

अजय झा जी के साथ होली की तैयारी

'' हो्ली आई रे! होली आई रे!''
ललित जी का बिंदास व्यक्तित्व जितना ज़बरदस्त है उससे ज़्यादा श्रीमान जी का व्यक्तित्व. होली पर उनका आलेख
ज़रूर देखिये. हाँ तो आदरणीय साथियो साथिनियो, मित्रों,सबको मेरा प्रणाम एक पोस्ट इस ब्लॉग पर पेश करना मेरी नैतिक ज़िम्मेदारी है तो एक पाड कास्ट चिपका देता हूँ . अजय झा जी से हुई बात चीत पर आपकी नज़र-हो तो मज़ा आ जाएगा.

21.2.10

अमेरिकी साम्राज्यवाद-1

अमेरिका के राजनीतिक कलैंडर में राष्ट्पतियों द्वारा स्टेट आँफ यूनियन का संबोधन परंपरागत रूप से बड़े पैमाने पर उत्साह के साथ सुना जाता है। टेलीविजन एवं अन्य माध्यमों से इसका व्यापक प्रचार किया जाता है। इस सम्बोधन में राष्ट्पति अपनी प्राथमिकताएं घोषित करते है। इसमें अन्तराष्ट्रीय मुद्दे प्रधान होते है। इस बार राष्ट्पति बराक ओबामा ने जब 27 जनवरी 2010 को स्टेट्स आँफ यूनियन को संबोधित किया तो वे काफी उत्तेजित दिखें। उन्होने अन्तराष्ट्रीय मुद्दो की चर्चा तक नहीं की। उन्होने अपना जोशीला भाषण घरेलू मुद्दों तक सीमित रखाः
’’मैं अमेरिका के लिये दूसरा स्थान स्वीकार नहीं कर सकता। चाहे जितनी मेहनत करनी पड़ें। चाहे यह जितना भी असुविधाजनक हो, यह समय उन समस्याओं के हल के लियें गंभीर होने का है, जो हमारे विकास में बाधा पैदा करते है।’’
उन्होने भारत, चीन और जर्मनी का नाम लेते हुए कहा कि ये देश किसी का इंतजार किये बगैर आगे बढ़ रहे हैं। इसलिये अमरिका को भी दूनिया में अपना शिखर स्थान कायम रखने के लिये इंतजार किये बगैर आगे बढ़ना होगा।
ओबामा अपने संबोधन में नौकरियों की आउटसोर्सिग करने वाली अमेरिकी कंपनियों को चेताया कि टैक्सों में की गयी उनकी रियायतें खत्म कर दी जायेंगीं। उन्ही कंपनियों को रियायतें दी जायेंगी जो अमेरिका में ही नौकरियों का सृजन करती हैं।
अमेरिका दुनिया में दूसरा स्थान स्वीकार नहीं कर सकता। अमेरिका दुनिया में अपना शिखर स्थान कायम रखने के लिये कुछ भी कर सकता है। राष्ट्पति बराक ओबामा ने जिस भाव-भंगिमा के साथ भाषण दिया उससे जान फिस्के (1842-1901) की याद एकबार फिर ताजा हो गयी। जान ओजस्वी भाषणकर्ता और तेजस्वी लेखक थे। जिसने अमेरिकी इतिहास में प्रकट नियति (Manitest Destiny) का सिधांत निरूपित किया। उसने कहा संयुक्त राज्य अमेरिका के लिये केवल पश्चिमी गोलार्द्ध में ही नहीं, बल्कि संपूर्ण विश्व में प्रभुत्वपूर्ण नेतृत्व एवं शासन करने की नियति है। फिस्के अपने भाषण के प्रारम्भ में किसी भोज के मौके पर प्रस्तावित किये गये टोस्ट का यह किस्सा सुनाता था-यह टोस्ट संयुक्त राज्य अमेरिका के लिये है, जो उत्तर में उत्तरी ध्रुव से, दक्षिणी ध्रुव से, पूर्व में उदय होते सूर्य में और पश्चिम में अस्त होते सूर्य से अपनी सीमायें बनाता हैं। श्रोताओं द्वारा इस महत्वाकांक्षा की जोर दार तालियों से स्वागत होता था। यह जान फिस्के था, जिसने सर्वप्रथम आंग्ल-सैक्शन सर्वश्रेष्ठता का सिद्वांत विकसित किया।
यह ध्यान देने की बात है कि जार्ज वाशिंगटन से लेकर थियोडोर रूजबेल्ट तक जो राष्ट्पति हुए, उनमें आठ फौजी जनरल थे। जार्ज वाशिंगटन स्वाधीनता संग्राम में अमेरिकी सेना के प्रधान सेनापति थे। वे अमेरिका के प्रथम राष्ट्पति बने और लगातार देा बार पद पर रहे। बाद के दिनो में ऐंड्यू जैक्सन, टेलर, फैंकलिन, रूजबेल्ट, आर्थर, बैंजालिमि, काकिनली, आइजनआवर आदि बड़े सैनिक अफसर थे, जो राष्ट्पति बनें। इन लोगों ने बड़े-बडे़ सैनिक अभियानों का नेतृत्व किया था।
संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा दूसरे देशों की भूमि दखल करना और उनके घरेलू मामले में हस्तक्षेप करने की लंबी परम्परा है। सन् 1776 में जब संयुक्ता राज्य अमेरिका की स्वतंत्रता की घोषणा हुई थी तो अतलांतिक महासागर के तट पर 133 उपनिवेशों का क्षेत्रफल केवल 386,000 वर्ग मील थां। सैनिक कार्रवाई के बाद वार्सेल्स संधि (1783) और लूईसियाना पर कब्जा कर लेने के बाद 1803 में क्षेत्रफल दुना हो गया। फलोरिडा को 1818 में, टेक्सास को 1836 में एकतरफा संयुक्त राज्य में मिला लिया गया। टेक्सास मैक्सिको का अंग था। अमेरिका ने इस देश की आधी भूमि अर्थात 558,400 वर्ग मील की विशाल भूमि हथिया ली। 1847 में ओरगान के विशाल भू-भाग 285,000 पर कब्जा कर लिया। 1867 में अलास्का को खरीदने की संधि हुई जिसके जरिये 577,400 वर्ग मील का विशाल भूखंड अमेरिका को मात्र 72 लाख डालर में मिल गया। इस तरह 1776 के मुकाबले 1880 में संयुक्त राज्य अमेरिका की जमीन दस गुना बढ़ गयी थी।
यही नहीं औद्योगिक क्षेत्र में भयंकर विकास हुआ। 1870 के मुकाबले शताब्दी के अन्तिम दशक आते-आते लोहे का उत्पादन आठ गुना, इस्पात का उत्पादन 150 गुना और कोयले का उत्पादन आठ गुना बढ़ गया। हर प्रकार के औद्योगिक उत्पादन का स्तर चार गुना उचां हो गया 1,40,000 मील रेलवे लाइन बिछायी गयी। इसी भांति खेती का भी तेज विकास हुआ। दो मूल अनाजों गेहूँ और मक्का की उपज दूनी हो गयी। अमेरिका अनाज और माँस की आपूर्ति करने वाला दूनिया का प्रथम देश बन गया। 1870 से 1900 इस्वी की बीच विज्ञान और औद्योगिक तकनीकी अविष्कार के 6,76,000फरमूले निबंधित किये गये थे। यूरोप की विशाल पूंजी संयुक्त राज्य अमेरिका में जमा हो रही थी।
1882 में अधिक उत्पादन का संकट पैदा हुआ है। इससे 30 लाख मजदूर बेकार हो गए। पुरुष मजदूरों को कार्यदिवस 15 घंटे प्रतिदिन था। महिलाओं के लिए यह 10 से 12 घंटे प्रतिदिन था। किन्तु पुरुषों के मुकाबले महिलाओं की मजदूरी आधी थी। मजदूरों की औसत आयु मात्र 30 वर्ष थी एक मजदूर की वार्षिक आय मात्र 559 डॉलर था, जबकि जीव-निर्वाह व्यय उन दिनों 735 डॉलर था। पूंजीपतियों के विशाल मुनाफे के सामने मजदूरों की यह दर्दनाक स्तिथि थी।
इस प्रकार अमेरिका को विशाल भूखंड और अपार अतिरिक्त पूँजी प्राप्त हुई। इस अतिरिक्त पूँजी और उन्नत तकनीक ने साम्राज्यवादी मंसूबे को जन्म दिया। थियोडोर रूजवेल्ट ने कहा: "हम अपनी सीमाओं के अंतर्गत एक बड़ी भीड़ के रूप में बैठे नहीं रह सकते और अपने को केवल धनी कबाडियों की भीड़ नहीं बना सकते, जो इस बात की परवाह नहीं करते कि बहार क्या हो रहा है ?"(शिकागो हैमिल्टन क्लब में १० अप्रैल १८९९ को दिया गया भाषण )
यह अतिरिक्त पूँजी के निर्यात का उछाल का समाये था। इसके साथ ही समुद्री शक्ति (SEA POWER) का सिधांत का चला। नौसेना + मालवाहक जहाज + सैनिक अड्डा=समुद्र्शक्ति (N+MM+NB=SP) Navy+Merchant Marine+ Naval Bases= Sea Power
-सत्य नारायण ठाकुर

20.2.10

दुनिया के बादशाह को मुर्गा लडाने का शौक

पहले जमाने नवाबो व राजा महाराजाओं व बादशाहों को मुर्गों तीतर व बटेरें लडाने का शोक था और इन्हें बडी ही खातिर दारी के साथ पाल पास कर तैयार किया जाता था। आजकाल यही काम संसार में एक छत्र राज करने वाले अमरीका के द्वारा किया जा रहा है और अपने आर्थिक उद्देश्यो के लिए वह बराबर दो राष्ट्रों को पहले पाल पास कर सैन्य साजो सामानों से लैस कर के बाद में व्हाइट हाउस में बैठ कर कम्प्यूटर पर सैटेलाइट के माध्यम से अपने मुर्गो की भिडन्त का नजारा लेकर लुप्त अंदाज होता है।
सोवियत यूनियन के विद्यालय के पश्चात अन्तराष्ट्रीय स्तर पर एक छत्र वर्चस्व स्थापित करने वाले राष्ट्र अमरीका का किरदार इस समय एक शौकीन मिजाज नवाबे राजा या बादशाह सलामत की तरह हैं। पुराने जमाने के बादशाह व नवाब अपने मनोरंजन के लिए मुर्गे तीतर व बटेरें लडाया करते थे और बाकायदा बडे बडे मुकाबले आयोजित किए जाते थे कुछ राजा महाराजा पहलवान पालते थे उनकी खुराक का पूरा खर्चा वह उठाते थो फिर उन्हे लडा कर आनन्द मय होते थे चाहे रूस्तम व सोहराब हों या गामा पहलवान सभी राजा महाराजाओं व बादशाहों के पाले पास थे।
आजकल यही काम विश्व का राजा अमरीका करता दिखलायी दे रहा है। परन्तु यह काम वह अपने मनोरंजन के लिए नहीं बल्कि अपनी आर्थिक आवश्यकताओं के लिए कर रहा है। कारण यह कि विश्व के सैन्य बाजार में उसकी तूती बोलती है। शस्त्रों के मामले में वह अब विश्व में नम्बर वन है पहले उसको कडा मुकाबला सोवियत यूनियन से करना पडता था परन्तू अस्सी के दशक के अन्त में सोवियत चुनौती देने वाला कोई नही बचा। फ्रांस चीन ब्रिटेन और कुछ हद तक उसका दस्तक पत्र इजराइल सैन्य बाजार में अपनी उपस्थित बनाए तो हुए है। परन्तु अमरीका का वर्चस्व पूरी तरह से इस क्षेत्र में कायम है।
स्पष्ट है कि अपने ग्राहक बनाए रखने के लिए उसे युद्ध का वातावरण को तैयार करना रहता है जो वह खूबी के साथ विगत दो इहाइयों से सफलता पूर्वक करता चला आ रहा है। इससे पूर्व द्वितीय विश्व युद्ध की समाप्ति के बाद जब अपने प्रतिद्वन्दी जापान व जर्मनी को ठंडा कर देने के बाद अमरीका ने पहले कोरिया में अपने नापाक इरादों का ठिकाना बनाया और लम्बे अर्शे तक कोरिया में उसने अशांति का वातावरण पैदा कर अपने सैन्य कौशल का प्रदर्शन कर शस्त्र बाजार में अपनी धाक जमाई। फिर वियतनाम में उसने अपना दूसरा ठिकाना बनाया और यहां की नए नए शस्त्रों का प्रदर्शन कर उसने अपनी अर्थ व्यवस्था को चमकाया उसे यह कारोबार तब बन्द करना पडता है। जब जनहानि से त्रस्त अमरीकी नागरिक आक्रोशित होकर सडको पर निकल पडते हैं।

-मोहम्मद तारिक खान

फेसबुक पर पकड़ी 'बेवफाई', प्रेमिका को चाकू घोंपा

लंदन। भारतीय मूल की एक अकाउंटेंट को यहां उसके एक्स-बॉयफ्रेंड ने 20 बार चाकू घोंपकर मार डाला। इस एक्स बॉयफ्रेंड को सोशल नेटवर्किंग साइट फेसबुक पर लड़की और उसके नए बॉयफ्रेंड के बारे में पता चला था। ओल्ड बेली कोर्ट के जज को बताया गया कि 27 वर्षीय कैमिली मथुरासिंह का उनके घर के किचन में कत्ल कर दिया गया था। कैमिली एक वक्त त्रिनिदाद में काम करती थी, जहां उनकी पॉल ब्रिस्टल (24 वर्ष) के साथ मुलाकात हुई थी। वे एक-दूसरे के काफी करीब आ गए थे। 2008 में कैमिली ब्रिटेन आ गईं। ई-मेल देखकर पता चलता है कि 2009 की शुरुआत तक दोस्ती कायम रही।
अनुमान है कि लड़की को संदेह हुआ कि दूरी के कारण रिश्ता ज्यादा समय तक नहीं चलेगा, सो उसने रिश्ता खत्म करने का फैसला किया। उसने यहीं एक शख्स ढूंढ लिया, लेकिन इस बारे में पुराने बॉयफ्रेंड को नहीं बताया। एक्स-बॉयफ्रेंड ने फेसबुक पर कैमिली और उसके नए बॉयफ्रेंड की तस्वीरें साथ देख लीं। वह 'बेवफाई' बर्दाश्त नहीं कर पाया। वह त्रिनिडाड से हवाई यात्रा कर आया और सीधे कैमिली के घर पहुंचा। वह कैमिली का दिल दोबारा जीतना चाहता था। लेकिन वहां पॉल ब्रिस्टल ने चाकू से हमला कर दिया।

19.2.10

दीन-बंधु सम होय

किसी गांव में नदी के किनारे एक ज्योतिषी जी लोगों का भाग्य बताने के लिये बैठते थे, सहसा दो लोग (बाप-बेटे) वहाँ पहुंचे, नदी पर पुल नही था न ही नाव थी, उन्हें उस पार के गांव जाना था, यह पता नहीं था कि नदी कितनी गहरी है, ज्योतिषी जी ने उनकी सहायता करने के लिये दोनों का कद़ नापा, बाप पांच फीट तथा बेटा 3 फिट लम्बा था, नदी की गहराई जाकर नापी जो साढ़े तीन फिट थी, दोनों का औसत चार फिट ठहरा, निश्चित भाव से दोनों से कहा बेखौफ उतर जाओ, डूबने का प्रश्न ही नहीं उठता, जब वे गहराई में पहुंचे तो बेटा डूबने लगा। आप ने देखा इस चुटकुले में आंकड़े का दुरूपयोग हुआ है। गणित एवं तथ्य अलग-अलग रास्तों पर हैं।
मानव जीवन आंकड़े के बगैर आगे नहीं बढ़ सकता, जमीन से लेकर आसमान तक ज्ञान के प्रत्येक क्षेत्र में इसकी आवश्यकता सर्वविदित है परन्तु इसका दुरूपयोग भी अनेक कारणों से खूब किया गया है, इस दुरूपयोग को हम आंकड़ेबाजी कहते हैं, सरकारें इस बाज़ीगरी में माहिर है, इसीं के सहारे वह बातों को उलटती पलटती रहती है और जनता के दिमाग में वही बाते भरती है जो वह अपनी स्वार्थपूर्ति के लिये चाहती है।
कुछ वर्षों पहले इण्डिया शाइनिंग के नक्शे आप ने देखे ही थे। प्रति व्यक्ति औसत आय जो आंकड़ों के द्वारा पेश की जाती है वह हजारों में है और प्रतिवर्ष सरकारी आंकड़ों में वह बढ़ जाती है परन्तु धरातल पर जब हम देखते हैं कि आधे से अधिक आबादी को दो जून की रोटी भी नहीं मिल पाती। उधर पूंजीपतियों की पूंजी बढ़ती जाती है, इधर गरीब की गरीबी में बढ़ोत्तरी हो रही है और महंगाई कोेढ़ में खाज का काम कर रही हैं भारत बढ़ रहा है और औसत आमदनी भी बढ़ रही है। फील गुड के लिये क्या यह काफी नहीं है? इण्डिया शाइनिंग का काम अब भी जारी है।
आदिकाल से समाज शोषक और शोषित में विभाजित रहा है, सामन्तवाद अपने चेहरे और वेश को समयानुसार बदलता है और शोषण के नये तरीके अपनाता है, जब भारत आजाद हुआ और ज़मीदारी उन्मूलन हुआ तो आम जनता को ऐसा लगा कि बन्धनों से मुक्ति मिली, ज़मीनों के मालिकाना हक़ मिलने से विकास के रास्ते खुल गये।
आज आज़ादी के छःह दशक पूरे हो चुके हैं। ज़मीदार, राजा, तालुके़दार, महाजन साहूकार से मुक्ति मिली परन्तु नये सामन्तवाद ने जनम लिया नेता, अफ़सर और बाहुबलियों के काकस ने समाज को जकड़ लिया, मंत्री, सांसद विधायक, चेयरमैन, मेयर, प्रमुख, सभापति, सदस्य, सभासद और प्रधानों आदि के एक बड़े वर्ग ने जनता की गाढ़ी कमाई पर हाथ साफ़ करना शुरू कर दिया, ग़रीब लुटता रहा वह बेचारा नंगा-भूखा ही रहा, मेड़िया में खबर आती रही कि देश तरक्क़ी कर रहा है।
कभी ग़रीबों, दलितों, महिलाओं व अल्पसंख्यकों के सरोकारों को लेकर एक हो जाने वाली संसद ने अपना सुरबदल दिया है। अब वहाँ पूँजीवाद, जात-पात और भाई-भतीजावाद हावी हो गया है। केन्द्रीय योजना आयोग के सदस्य प्रो0 अर्जुन सेनगुप्ता समिति की एक रिपोर्ट के हवालेसे यह तथ्य पेश किया है कि भारत की 74 करोड़ आबादी रोज़ाना प्रति व्यक्ति केवल 20 रूपये में जीवनयापन करती है।
एक तरफ यह तथ्य हैं, दूसरी तरफ सरकारें अपनी तरकीबों से विकास के आंकड़े बड़े-बड़े विज्ञापनों में दर्शाकर जनता को दिवा स्वप्न दिखाती हैं, इन हालत में बेचारा ग़रीब अपनी व्यथा किससे कहे-
दीन सबन को लखत है, दीनहि लखै न कोय,
जो रहीम दीनहिं लखै, दीन-बंधु सम होय।

-डॉक्टर एस.एम हैदर
-फ़ोन: 05248-220866