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13.2.10

"ब्रेकिंग न्यूज़"

पुणे में आतंकी हमलाधमाके में दस की मौत। करीब चालीस ज़ख़मी। पुणे की जर्मन बेकरी में हुआ धमाका। बेकरी के पास एक लावारिस बैग मिला।दिल को दहला देनेवाली रोंगटे ख़डे कर देनेवाली ऐसी बडी ख़बर,,,! हमारे जीवन के साथ-साथ हमारे आस-पास के जीवों को भी हिला कर रख देती है। यहाँ आतंकवाद के सामने एक ज़ुट होकर मुकाबला करने की ज़रूरत है ।आपस में उंच-नीच, धर्म-मज़हब,या फ़िर...नस्लवाद या राज्यवाद और...

विधि व्यवस्था में अधिवक्ता की भूमिका खत्म कर दो

भारतीय विधि व्यवस्था में प्रत्येक व्यक्ति को न्याय पाने का अधिकार है और अपने मन पसंद अधिवक्ता से अपने वाद में अपना पक्ष प्रस्तुत करने का भी अधिकार। आए दिन अधिवक्ताओं के ऊपर हमले नियोजित तरीके से हो रहे हैं और उनसे कहा जा रहा है अमुक मुकदमा करो और अमुक मुकदमा न करो। देश भर में आतंकवाद से सम्बंधित मुकदमों का विचारण हो रहा है भारतीय विधि व्यवस्था में उन वादों का विचारण तभी संभव है जब उनकी तरफ से कोई अधिवक्ता उनका पक्ष प्रस्तुत करे अन्यथा अधिवक्ता न मिलने की दशा में वाद का विचारण संभव नहीं है तब एक ही रास्ता होता है कि न्यायलय उस अभियुक्त की इच्छा...

12.2.10

खाद्य सुरक्षा, किसान और गणतंत्र

पिछले दो वर्षों से अंतर्राष्ट्रीय और राष्ट्रीय मंचों पर खाद्य सुरक्षा का मुद्दा गरमाया हुआ है। दुनिया के तमाम बुद्धिजीवी से लेकर संयुक्त राष्ट्र संघ तक दुनिया की बढ़ती हुई आबादी और खाद्य संकट पर गहरी चिन्ता व्यक्त कर रहे हैं। आंकड़ों का जमघट लगा हुआ हैं। विकासशील देश हों या विकसित देश, संयुक्त राष्ट्र संघ हो या यूरोपियन यूनियन, सबकी चिंता है खाद्य संकट। इस बात की गहरी और सही चिंता व्यक्त की जा रही है कि आने वाले दिनों में विकसित देश अपनी राष्ट्रीय हितों की पूर्ति के लिए खाद्य पदार्थों को दुनिया भर में हथियार की तरह प्रयोग न करने लग जायें। हमारा गणतंत्र...

11.2.10

"बहुमत का जुल्म"

प्रजातंत्र भी आग के समान है जो अत्यंत उपयोगी है और अत्याधिक खतरनाक भी। लोकतंत्र हो, भीडतंत्र हो, सर्वसम्मति हो, या बहुमत हो, ये सभी उस समय व्यक्ति या समाज के लिये घातक बनते हैं जब इस अस्त्र का इस्तेमाल करने वाले मन में खोट होती है या स्वार्थ भावना के अन्तर्गत फैसले किये जाते हैं। आप देखते ही है कि सुरक्षा परिषद में बेटों और आम राय के बहाने पांच स्थायी सदस्य कैसे कैसे खेल खेलते हैं तथा जनरल असेम्बली मूक दर्शक ही बनी रहती है।दिल्ली की संसद हो या यू0पी0 की विधायिका इनमें भी पहले भी स्वार्थवश फैसले लिये गये और अब भी यही हो रहा है जो जनता को कभी पंसद...

10.2.10

महंगाई पर केन्द्र व राज्य सरकारों की तू-तू, मैं-मैं,

मंहगाई के मुददे पर केन्द्र व राज्य सरकारों के बीच वाकयुद्व चल रहा है। एक दूसरे पर मंहगाई को नियंत्रित न करने का आरोप लगाया जा रहा है। राज्यों की गेर कांग्रेसी सरकारों केन्द्र में स्थापित मनमोहन सरकार की आर्थिक नीतियों को बढ़ती महंगाई का दोषी बतला रही है तो मनमोहन सरकार की सहयोगी एन0सी0पी0 के मुखिया व भारत सरकार के कृषि मंत्री शरद पवार की बयानबाजी आग में घी का काम कर रही है। महंगाई की चक्की में पिस केवल गरीब रहा है और उसके लिए हालात बद से बदतर होते चले जा रहे हैं।कहते हैं कि किसी भी काम की सफलता के पीछे उद्देश्य व नीयत का बहुत योगदान होता है महंगाई...

9.2.10

सब ख़ता वालिद की है, बेटे को पैदा क्यों किया

ऑस्ट्रेलिया में नस्लवाद युवा वेश तो विदेशी आचार-विचार स्टाइल फैशन का क्रेजी होता ही है, हमारे बुजुर्ग जो कभी अंग्रेजी माहौल में पले बढ़े थे अब भी उसी पाश्चात्य संस्कृति के दीवाने नजर आते है, लेकिन हम आखिर कब तक उस खोखली संस्कृति के गुन गाते रहेंगे, हमारे कुछ युवक बड़े अरमान से आस्ट्रेलिया गये थे, शिक्षित होने के लिए तथा अमीर बनने के लिये परन्तु दुखद है कि उन्हे गरीब बनने की घुट्टी पिलाई जा रही है।भारतीय छात्रों पर वहां जो नस्ली हमले काफी समय से हो रहे है, उसमें लगता है कि वहाँ की सरकार, अधिकारी तथा वहाँ की जनता का एक वर्ग पूरे तौर पर शामिल है,...

स्वयं को समय दे पाना भी दूभर I

आज की तेज़ रफ़्तार ज़िंदगी में इंसान इस कद्र लिप्त हो चुका है कि अपने-आपको समय दे पाना भी दूभर हो गया है. ऐसे में वह कह उठता है :-ज़रा देर में आना ऐ होश I अभी कहीं मै गया हुआ हूँ...