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5.2.10

भारत साउथ अफ्रीका सिरीज का आंकलन

कल से आरम्भ होने वाली भारत अफ्रीका क्रिकेट सिरीज का परिणाम देखने जानने की इच्छा हर खेल प्रेमी को हैं जिसके लिए हमारे पास सवेरे से कई फोन भी चुके हैं समय अभाव के चलते अभी तक हम कुछ ज्यादा आंकलन नहीं कर सके हैं पर फिर भी अगर अंको की दृष्टी से देखे तो कल यानी तारीख का दिन भारत हेतु शुभ रहेगा यदि भारत टॉस जीतता हैं तो उसे पहले बल्लेबाजी करनी चाहिए,कल गौतम गंभीर सचिन के सितारे बहुत ही बढ़िया स्थिति दर्शा रहे हैं हो सकता है इन दोनों में से कोई एक कल बड़ा स्कोर बना ले,अगर गेंदबाजों की बात करे तो कल इशांत शर्मा कुछ विशेष कर सकते हैं ऐसा उनके सितारे दर्शा रहे हैं |वैसे सम्पूर्ण आंकलन अभी नहीं हो पाया हैं इसलिए ज्यादा जानकारी नहीं दी जा सकती हैं कुल मिलकर कल का दिन भारत हेतु बढ़िया रहेगा |

साहित्य अकादमी: सगुण विरोध् ही कारगर होगा

दक्षिण कोरिया की बहुराष्ट्रीय कंपनी समसुंग इंडिया और भारत की केंद्रीय साहित्य अकादमी के संयुक्त तत्वावधन में भारतीय भाषाओं के लेखकों को ‘टैगोर साहित्य पुरस्कार’ देने के पफैसले का हिंदी के कई लेखकों ने विरोध् किया। विरोध् का सिलसिला इस योजना का पता लगने के साथ ही शुरू हो गया था। विरोध् में ज्यादातर हिंदी के लेखक सामने आए। कापफी बाद में इक्का-दुक्का दूसरी भाषाओं के कुछ लेखकों के नाम विरोध् करने वालों में सुनने को मिले। पुरस्कार वितरण वाले दिन कुछ लेखकों ने साहित्य अकादमी के बाहर मानव श्रृंखला बना कर सक्रिय विरोध् दर्ज किया। लेकिन कंपनी और अकादमी पर लेखकों के विरोध् का कोई असर नहीं हुआ। अकादमी की तरपफ से कोई स्पष्टीकरण भी नहीं आया। कंपनी पहले ही यह घोषणा कर चुकी है कि वह ये पुरस्कार सामाजिक दायित्व निभाने के उद्देश्य से देने जा रही है। पहली खेप में 25 जनवरी को हिंदी समेत आठ भाषाओं के लेखकों को पुरस्कृत किया गया। 61वें गणतंत्रा दिवस पर मुख्य मेहमान के रूप में भारत आए दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति की पत्नी ने ये पुरस्कार लेखकों को प्रदान किए। पिछले कई सालों से उड़ीसा के आदिवासियों के अस्तित्व का संकट बनी पोस्को कंपनी दक्षिण कोरिया की है। इसी वजह से वहां के राष्ट्राध््यक्ष को मुख्य मेहमान बनाया गया। यह भारत सरकार की आदिवासियों को दुत्कार और पोस्को को चुमकार है।
कहने की जरूरत नहीं कि पुरस्कार की योजना और कार्यक्रम लेखकों के सहयोग से सपफल हुए। अकेले अकादमी अध््यक्ष, उपाध््यक्ष और विभिन्न भाषाओं की समितियों के सदस्य चयन-प्रव्रिफया को अंजाम नहीं दे सकते थे। उसमें पुरस्कृत भाषाओं के बहुत-से लेखकों का सहयोग हुआ है। पुरस्कृत लेखकों का तो हुआ ही है। यानी भारतीय भाषाओं के लेखकों की सहमति से ही कंपनी और अकादमी का यह गठजोड़ संभव हुआ है और आगे भी बना रह सकता है। भविष्य में समर्थक लेखकों की संख्या और ज्यादा बढ़ सकती है। साहित्य अकादमी के पुरस्कारों का सबसे ज्यादा महत्व है। जिन्हें वह नहीं मिल पाता वे कंपनी की स्टैंप वाला पुरस्कार पाकर ही संतोष कर सकते हैं। जाहिर है, उसके लिए उन्हें अपना सहयोग और समर्थन कंपनी-अकादमी गठजोड़ को देना होगा। बाजार की कीच में पिफसलने वाले ही नहीं, गंभीर लेखक भी उनमें शामिल होंगे।
विरोध् करने वाले लेखकों के मत में इस तरह के गठजोड़ से साहित्य अकादमी की स्वायत्ता खंडित होती है। कुछ ने इसे स्वयत्तता का अंत माना है। यह बिल्कुल सही है कि साहित्य अकादमी की स्वायत्तता बरकरार रहनी चाहिए। अतीत में वह कापफी हद तक रही है। साहित्य अकादमी में सरकारों और नेताओं की दखलंदाजी उस तरह से कभी नहीं रही जैसी राज्य-स्तर की अकादमियों में होती है। हालांकि इसका यह अर्थ नहीं है कि सरकारें और पार्टियां लेखकों को आगे करके साहित्य अकादमी सहित अन्य केंद्रीय अकादमियों में अपना हस्तक्षेप नहीं करती रही हैं। उस तरह से नामित हुए लेखक कई बार सुविधओं व पुरस्कारों का बांट-बखरा भी करते हैं। अपने शासनकाल में भाजपा के नेताओं ने उर्दू के लेखक प्रोपफेसर गोपीचंद नारंग को आगे करके अकादमी के अध््यक्ष पद के चुनाव में दखलंदाजी की थी। वह चुनाव कापफी विवादास्पद बन गया था। महाश्वेता देवी से चुनाव जीतने के बाद प्रोपफेसर नारंग ने अकादमी में कापफी मनमानी की। प्रोपफेसर नामवर सिंह ने उनके जीतने पर अकादमी में जाना बंद कर दिया था। उन्हें यह आशा रही होगी कि उनके एहसानमंद लेखक अकादमी न जाने में उनका साथ देंगे। लेकिन प्रोपफेसर नारंग को लेखकों के सहयोग की कमी नहीं रही। कहने का आशय है कि अकादमी तभी स्वायत्त बनी रह सकती है जब लेखक अपनी स्वायत्तता बना कर रख सकें।
नवउदारवादी दौर में पिछले करीब 20 सालों से देश की संप्रभुता पर गहरा संकट है। नवसाम्राज्यवादी गुलामी की चर्चा अक्सर होती है। इस दौर में भारत सरकारों ने ऐसे सौदे और समझौते किए हैं जिनके चलते संवैधनिक और आजादी की विरासत के मूल्यों को गहरी ठेस पहुंची है। देश की लगभग समूची मुख्यधरा राजनीति इस ध्त्कर्म में शामिल है। लेखक गहरी नजर रखने वाले लोग होते हैं। उनसे यह सब व्यापार छिपा नहीं है। लेखकों से यह भी नहीं छिपा है कि विश्व बैंक, अंतरर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष, विश्व व्यापार संगठन और अनेक बहुराष्ट्रीय कंपनियों के डिक्टेट पर जो ‘नया भारत’ बनाया जा रहा है, वह पूंजीवादी-उपभोक्तावादी भारत है। वहां हर मनुष्य और मानवीय उद्यम की कसौटी बाजार है। सरोकारध्र्मी लेखक यह भी जानते हैं कि ‘नए भारत’ में देश की विशाल वंचित आबादी के लिए कोई जगह नहीं है। समानता, स्वतंत्राता या सम्मान की बात तो जाने ही दीजिए।
ऐसे परिदृश्य में साहित्य एवं कला की अकादमियां स्वायत्त नहीं बनी रह सकतीं, यह भी लेखकगण जानते हैं। जानते वे यह भी हैं कि अकादमी की स्वायत्तता का अंत करना या बचाना उसके मौजूदा लेखक पदाध्किारियों के वश का काम नहीं है। पुरस्कार वितरण समारोह में अध््यक्ष सुनील गंगोपाध््याय ने बताया है कि कंपनी और अकादमी के बीच का यह समझौता भारत और कोरिया सरकारों के बीच हुआ है। तो साहित्य अकादमी की स्वयत्ता का अपहरण सीध्े केंद्र सरकार ने किया है। केंद्र सरकार कोई निर्गुण सत्ता नहीं है। न ही संस्कृति मंत्रालय जिसके अंतर्गत साहित्य अकादमी आती है। संस्कृति मंत्रालय प्रधनमंत्राी के पास है। यानी साहित्य को साहित्य अकादमी के स्वायत्त क्षेत्रा से निकाल कर पूंजी;वादद्ध के क्षेत्रा में ले आने का काम खुद प्रधनमंत्राी ने किया है। उसी प्रधनमंत्राी ने जिसने पिछली संसद में अमेरिकी ध्न-बल से पूरी निर्लज्जता के साथ परमाणु करार पास कराया था। प्रधनमंत्राी भी कोई निर्गुण सत्ता नहीं है। मनमोहन सिंह देश के दूसरी बार प्रधनमंत्राी हैं। हमने ऊपर जो नवउदारवादी यथार्थ बताया है, वह वाया कांग्रेस और सोनिया गांध्ी मनमोहन सिंह के नेतृत्व का नतीजा है। जिनके लिए देश की संसद की कोई कीमत नहीं रही, उनके लिए साहित्य अकादमी की स्वयत्तता क्या मायने रखती है!
लिहाजा, निर्गुण विरोध् का कोई अर्थ नहीं है। विरोध् सगुण होना वाहिए। अगर आज ही देश के ज्यादातर लेखक अपने पुरस्कार अकादमी को राशि-सहित वापस पफेर देंऋ जो समितियों में नामित हैं, अपने नाम वापस ले लेंऋ और एक कड़ा पत्रा सोनिया गांध्ी, मनमोहन सिंह व उनकी मंडली को लिखें, तो कल ही कंपनी और अकादमी के बीच कायम किया गया यह गठजोड़ निरस्त हो सकता है। बस अपने नाम सहित इतना लिखना है कि ‘आप महानुभावों ने देश लगभग बेच डाला है, कला और साहित्य को हम बाजार में नहीं बेचने देंगे। हमें वैसे पुरस्कार नहीं चाहिए। हम देश और नतीजतन कला व साहित्य बेचने वाले आप लोगों का संपूर्ण विरोध् करते हैं।’ सभी भाषाओं के लेखकों को विरोध् में शामिल करना चाहिए। दूसरे विषयों के बु(िजीवी और नागरिक समाज के लोग भी उसमें आ सकते हैं। अपने अस्तित्व के लिए जूझने वाली मेहनतकश जनता भी उसमें आएगी। अगर ऐसा नहीं होता है, तो माना जाएगा कि यह विरोध् भी हिंदी अकादमी के विरोध् जैसा हो कर रह जाना है।
-प्रेम सिंह

4.2.10

तुझसे नाराज़ नहीं ज़िन्दगी हैरान हूं मैं...??




















घटना - एक
थ्रूआउट फर्स्टक्लास और गोल्ड मेडलिस्ट अनन्य बाजपेई (26) मुंबई में भाई के साथ रहकर सीए की पढ़ाई कर रहा था. इस बार उसका अंतिम साल था. परीक्षा की तैयारी ठीक से न होने के कारन डिप्रेशन में आ गया. परीक्षा की तारीख नजदीक आने से उसका डिप्रेशन बढ़ता जा रहा था. मुंबई से वह कानपुर अपने घर आ गया. घर पर ही रहकर परीक्षा की तैयारी करने लगा. अपने कमरे के बाहर 'डोंट डिस्टर्ब' का बोर्ड लगाकर घंटों पढ़ता. डिप्रेशन इतना ज्यादा बढ़ा गया की एक दिन अनन्य बाजपेई ने कमरे में फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली. फांसी पर लटकाने से पहले अनन्य ने अपनी मां के नाम ख़त भी लिखा. उसने लिखा- 'मां आई लव यू! मैं आपसे बहत प्यार करता हूं, पढ़ाई के कारन थोड़ी उलझन है इसलिए हमें माफ़ कर देना...!!!'


















घटना - दो
छत्रपति साहूजीमाहराज विश्वविद्यालय, कानपुर से बीबीए द्वितीय वर्ष का सनी (20) ने पढ़ाई के दबाव के कारन तनाव में आकर घर में चादर से फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली.












घटना - तीन
११ साल की नेहा काफी अच्छा नाचती थी. वह बूगी-वूगी सहित तीन टीवी रियलिटी शो में अपनी इस कला का लोहा मनवा चुकी थी. नेहा डांस के बजाय पढ़ाई पर ध्यान देने की माता-पिता की जिद की वज़ह से तनाव में आकर आत्महत्या कर लिया.


















घटना - चार
कक्षा सात में पढ़ने वाले सुशांत पाटिल सोमवार की सुबह सात बजे स्कूल आए लेकिन क्लास में नहीं दिखे. हाज़िरी के व़क्त उनकी ग़ैरमौजूदगी देख उन्हें खोजा जाने लगा तो टॉयलेट में उनकी लाश झूलती पाई गई. कुछ विषयों में फेल हो जाने की वज़ह से तनाव में आकर सुशांत ने शौचालय में लटककर प्राण दे दिए.


















घटना - पांच
मेडिकल की पढ़ाई करने वाली १८ साल की भजनप्रीत भुल्लर ने पवई स्थित अपने घर पर ख़ुदकुशी कर ली. वह सायकोथेरेपी की छात्रा थी और फेल हो चुकी थी.


















घटना - छह
'नजफगढ़' के नंदा एंक्लेव में १९ साल की रीना ने फांसी लगाकर ख़ुदकुशी कर ली. उसके पास से एक नोट मिला है जिसमें उसने अपनी मर्ज़ी से ख़ुदकुशी करने की बात लिखी है. वह कैर गाँव स्थित भगिनी निवेदिता कॉलेज में पढ़ती थी. उसके पिता श्री ओम फौज से रिटायर हैं. पुलिस को जांच में पता चला कि वह कुछ समय से तनाव में रहती थी.









घटना - सात
दक्षिणपुरी की रहने वाली हिमांशी के प्री-बोर्ड परीक्षा में कम अंक आए थे और वह तीन विषय में फेल हो गई थी. छात्रा की एक नोटबुक पुलिस को मिली है जिसमें उसने गत २५ दिसंबर को आए दिन मां द्वारा डांटने फटकारने की बात लिखी है. उसके परिजनों का आरोप है कि कम अंक लाने पर छात्रा के साथ स्कूल में गलत व्यवहार किया जाता था जिस कारण से उसने ख़ुदकुशी कर ली.
हम बचपन से सुनते और पढ़ते आए हैं कि शिक्षा व्यक्ति को स्वावलंबित बनाती है. अज्ञानता की ग्रंथियों को खोलकर उसमें ज्ञान का प्रकाश प्रवाहित करती है. पढ़-लिखकर व्यक्ति अपने साथ-साथ परिवार और देश का नाम रोशन करता है. किन्तु उपरोक्त घटनाएं यह दर्शाती हैं कि वर्तमान समय में शिक्षा स्वावलंबन का कारक न बनकर आत्महत्या का कारण बनती जा रही है. ऐसी शिक्षा किस काम की...?? जो आत्महत्या करने को मज़बूर कर दे. निःसंदेह यह आज एक चिंतन का विषय बन गया है कि अतिआधुनिकता, अतिमहत्वाकांक्षा और अतिभौतिकता के दो पाटों के बीच पिस रहे अपने बच्चों का हमने कहीं उनका बचपन तो नहीं छीन लिया है...???
आंकड़ों की दृष्टि से देखें तो ये आंकड़े निश्चित रूप से डराने वाले हैं. आए दिन बच्चों की आत्म्हाया करने की प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है. अभिभावकों की असीमित अपेक्षाओं के दबाव से बच्चे उदासीनता में जीने को मज़बूर होने लगें हैं. इन घटनाओं के पीछे माता-पिता की आपसी अनबन और पढ़ाई का बढ़ता दबाव प्रमुख कारण रहा है. जिसके चलते बच्चे आत्महत्या करने को उत्प्रेरित होने लगे हैं. मनोचिकित्सकों का कहना है कि वर्तमान प्रतिस्पर्धात्मक समय में माता-पिता "आइडियल चाइल्ड सिंड्रोम" से ग्रस्त होने के कारण अपने बच्चे को स्पेशल किड से स्मार्ट किड और स्मार्ट किड से सुपर किड बनाने की भावना बलवती हुई है. अतिमहत्वाकांक्षी हो चुके माता-पिता के सज़ा बच्चे भुगतने को अभिशप्त है.
बच्चों में आत्महत्या के लिए उकसाने वाला एक महत्वपूर्ण कारक है उनकी ज़िन्दगी में बढ़ता एकाकीपन. पहले यह एकाकीपन अतिसमृद्ध और संपन्न लोगों की ज़िन्दगी का हिस्सा था. वैश्वीकरण के फलस्वरूप कुछ सालों से शहरी जीवन जितना जटिल और महंगा हो गया है उसके चलते सामान्य माध्यमवर्गीय घरों की महिलाओं का नौकरी करना भी अनिवार्य हो गया है. पहले माता-पिता के बीच भी अनबन होती थी किन्तु बच्चों की ज़िंदगी में उनकी दूरी नहीं थी. पहले दादा-दादी का प्यार था. गर्मियों की छुट्टियों में ननिहाल जाने की उत्सुकता रहती थी. इन सबकी जगह अब टीवी, कम्प्यूटर, इंटरनेट और मोबाइल ने लिया है. आत्महत्या का दूसरा प्रमुख कारण शिक्षा का वर्तमान ढांचा है. शिक्षा के सरौते ने बच्चों से बचपना काटकर उन्हें रोबोट में तब्दील कर दिया है.
अभिभावकों को अपना मूल्यांकन करना होगा. अपने सपनों का लबादा बच्चों के बचपन पर लादने से काम नहीं चलेगा. यदि हम चाहतीं/चाहते हैं कि " मेरा नाम करेगा रोशन जग में राज दुलारा/दुलारी", तो बच्चों के बचपन पर अपनी अपेक्षाओं की आग न सुलगाएं. कहीं उस आग में हमारे बच्चे गोल्ड मेडल और नंबर की दौड़ में अपनी जीवनलीला समाप्त न कर लें. अभिभावक पहले स्वयं को अनुशासित करें. क्योंकि बच्चों के प्रथम शिक्षक माता-पिता ही होते हैं. यदि माता-पिता का व्यवहार अनुशासित रहेगा तो बच्चों का बचपन शायद बच जाए.

















फिलहाल ज़िन्दगी से जुड़ी कुछ पंक्तियाँ याद आ रहीं हैं गौर फरमाएं....
"तुझसे नाराज़ नहीं ज़िंदगी
हैरान हूं मैं
तेरे मासूम सवालों से
परेशान हूं मैं
जीने के सोचा ही नहीं
दर्द संभालने होंगे
मुस्कुराए तो मुस्कुराने के
क़र्ज़ उतारने होंगे...!!"

प्रबल प्रताप सिंह

गोविन्द नगर वासियों को पागल सांड द्वारा फैलाए आतंक से गौधन सेवा समिति से दिलाई मुक्ति

सिरसा स्थानीय हिसार रोड क्षेत्र तथा गोविन्द नगर में पिछले कुछ समय से पागल सांड द्वारा फैलाए जा रहे आतंक से श्री मारूति गौधन सेवा समिति के सदस्यों ने गत दिवस मुक्ति दिलाई है। इस सम्बन्ध में आज श्री मारूति गौधन सेवा समिति के अध्यक्ष एवं जीव-जन्तु कल्याण अधिकारी रमेश मेहता ने प्रैसवार्ता को बताया कि गत दिवस पूर्व नगर पार्षद एवं समाज सेवक राजेन्द्र मकानी ने पागल सांड द्वारा फैलाए जा रहे आतंक के बारे में उन्हें जानकारी दी कि उक्त सांड पिछले दो माह से दर्जनों महिलाओं, पुरूषों व बच्चों का गभीर रूप से घायल कर चुका है। इसी क्रम में गत दिवस इसी सांड ने दो व्यक्तियों को बुरी तरह घायल कर दिया जिन्हें ईलाज के लिए हस्पताल भेजा गया। श्री मेहता ने बताया कि इसकी सूचना मिलने पर वे अपनी समिति के सदस्यों के साथ मौके पर पहुंचे व खैरपुर पशु चिकित्सालय के इंचार्ज डॉ० विद्याधर बांसल को मौके पर बुलाया तथा इसके बाद डा० बांसल ने अपनी टीम के सदस्यों के सहयोग से उक्त पागल सांड को इंजैक्शन के माध्यम से बेहोश करके उसे नगर परिषद के अधिकारी विद्याधर के सहयोग तथा पुलिस विभाग की क्रेन की मदद से कड़ी मशक्कत के बाद चौ० देवीलाल गौशाला में भेजा। इस घटनाक्रम के पश्चात उक्त सांड से भयभीत सभी क्षेत्रवासियों ने राहत की सांस ली तथा समिति के प्रधान रमेश मेहता तथा पूर्व नगर पार्षद राजेन्द्र मकानी की आभार जताया।

3.2.10

अब पशु भी हिन्दू मुसलमान होने लगे

अब कातिलों को भी जाति और धर्म के नाम पर पहचान की जा रही है वास्तव में कातिल कातिल है न उसकी कोई जाति है न उसका कोई धर्म है, लेकिन समाज में नियोजित तरीके से जो देश की एकता और अखंडता को नहीं बनाये रखने में विश्वास करते हैं वह लोग कातिलों को हिन्दू, मुसलमान व सिख, ईसाई में बांटने लगे हैं। क्या महात्मा गाँधी की हत्या, श्रीमती इंदिरा गाँधी की हत्या, राजीव गाँधी की हत्या क्या हिन्दुवों ने की है ? मैं कहूँगा नहीं संविधान व न्याय कहेगा नहीं, कातिल कातिल है, दंगाई दंगाई है , लुटेरा लुटेरा है, आतंकी आतंकी है। जब कुछ इनकी पैरवी करने वाले लोग जाति और धर्म के नाम पर पैरवी करने लगते हैं और गलत तथ्यों के आधार पर झूंठे आंकड़े पेश करने लगते हैं तो वह किसी कातिल की पैरवी कर रहे होते हैं उसके गुनाह को छोटा करके धर्म के आधार पर दूसरे का गुनाह बड़ा करके बताते हैं। जोश में होश खोकर वह संविधान व देश विरोधी हरकतें करने लगते हैं। विष वृक्षों की नई-नई नर्सरियां पुराने इतिहास के गलत तथ्यों पर तैयार करते हैं उनका राष्ट्रवाद सिर्फ इतना है कि जाति और धर्म, क्षेत्र और भाषा के नाम पर हमारे समाज में युद्ध होता रहे और साम्राज्यवादी शक्तियों के मंसूबे पूरे होते रहे।
अब लोग हिन्दू टाईगर्स भी होने लगे हैं उनकी जानकारी के लिए लिख रहा हूँ कि हिन्दू मैथोलॉज़ी के मानने वाले काफी लोग शाकाहारी हैं और टाईगर्स शुद्ध मांसाहारी है। यह टाईगर किसका मांस खाना चाहता है। अपने देश के किसी नागरिक का ? कल को धर्म के आधार पर टाईगर पैदा होने लगेंगे तब इंसान और इंसानियत क्या रहेगी ? अच्छा यही है कि टाईगर मत बनो, लुप्तप्राय वन्य जीव है। चिड़ियाघर में जगह खाली है रहने का शौक है तो आराम से वहां रहो। हिन्दू टाईगर नहीं होता है वह सौम्य, दयालु करुणामय तथा सर्वे भवन्ति सुखना में विश्वास रखने वाला है

2.2.10

संघ व शिवसेना की नूराकुस्ती


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महाराष्ट्र में शिवसेना मनसे अपने राजनीतिक आधार को बनाये रखने के लिए अपनी विघटनकारी विचारधारा का प्रयोग कर रही है। इस खेल में अप्रत्यक्ष रूप से कांग्रेसी सरकार का भी नैतिक समर्थन मनसे शिवसेना को प्राप्त है अन्यथा मनसे व शिवसेना की कोई हैसियत नहीं है कि वह भारतीय संघ से युद्ध करके रह सके। महाराष्ट्र का आम आदमी भी इन विवादों से दूर है लेकिन कांग्रेस सरकार इन विघटनकारी तत्वों के खिलाफ कोई विधिक कार्यवाही न करके इन तत्वों को बढ़ावा दे रही है। संघ परिवार ने हमेशा दोहरा चरित्र अपनाया है। एक तरफ शिव सेना के हिंदुत्ववादी रुख को समर्थन देती रहती है दूसरी तरफ नए मुखौटे के साथ उत्तर भारतियों को संरक्षण देनी की बात कर रही है। यह क्या संरक्षण देंगे ? भारतीय संघ अगर संरक्षण नहीं दे सकता है तो विघटनकारी तत्वों के संरक्षण संघ परिवार आम आदमी को कैसे संरक्षण दे सकते हैं। संघ के बयान का उद्देश्य सिर्फ इतना है कि उत्तर भारत में उनके जनाधार को धक्का न लगे।इससे पहले मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री शिव राज सिंह चौहान ने घोषणा की थी कि मध्य प्रदेश में दूसरे प्रान्तों के लोग कल कारखानों में कार्य नहीं कर सकते हैं जिस पर व्यापक प्रतिक्रिया हुई और अंत में उनको अपना बयान वापस लेना पड़ा। भाषाई विवाद, प्रांतीयता का विवाद हिन्दू मुसलमान, सिख ईसाई का विवाद खड़ा करके संघ परिवार इस देश की एकता और अखंडता को तार-तार कर देना चाहता है।
ऑस्ट्रेलिया, फिनलैंड व इंग्लैंड सहित कई मुल्कों में वहां के नस्लवादी व विघटनकारी विचारधारा के लोग भारतीयों का विरोध कर रहे हैं वहीँ महाराष्ट्र में उन्ही कि विचारधारा से ओतप्रोत लोग उत्तर भारतीयों का विरोधी कर रहे हैं। यह संकट साम्राज्यवाद का संकट है। उत्तर भारतीय विवाद में संघ परिवार न तो शिवसेना से अपने सम्बन्ध ख़त्म करने जा रहा है। अघोषित रूप से उनके सम्बन्ध आज भी बरकरार हैं और आने वाले दिनों के चुनाव में उनके गठजोड़ होने हैं । यह नूराकुस्ती मात्र दिखावा है और कुछ नहीं।

1.2.10

मौका मिला तो कफ़न नोच लेंगे


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साम्राज्यवादी मुल्कों ने दुनिया के काफी देशों को लूटा है खसोटा है। छोटे से देश हैती को इस कदर साम्राज्यवादियों ने वहां की प्राकृतिक सम्पदा का दोहन किया है कि पर्यावरण व पारिस्थितकी की व्यवस्था ही डगमगा गयी और भयंकर भूकंप आया लाखों लोग मारे गए। अनाथ बच्चों की तादाद कई हजारों में हो गयी अब साम्राज्यवादियों के एक गिरोह को हैती पुलिस ने पकड़ा है जिसके पास से 33 बच्चे बरामद हुए हैं। इन बच्चों को डामिनिकन रिपब्लिक ले जाया जा रहा था।मानव तस्कर हैती में जगह जगह राहत और बचाव के बहाने कैम्प लगाये हुए हैं। जो मानव संसाधन की तस्करी भी कर रहे हैं।
ब्रिटिश साम्राज्यवाद का जब सूरज अस्त नहीं होता था तो वह गुलाम देशों से आदमियों को ले जा कर कमर के नीचे गरम लोहे से नंबर डाल कर छोटे-छोटे मुल्कों में खेती करवाते थे। यूरोप की समृद्धि का राज भी यह है कि मानव को गुलाम बना कर उनकी श्रम शक्ति से अपने वहां कार्य करना ही था उसके एवज में कोई भुगतान नहीं था। आज जब दुनिया हैती के भूकंप पीड़ितों की मदद कर रही है तो साम्राज्यवादी देशों के एजेंट मदद के बहाने अनाथ बच्चों की तस्करी में लगे हुए हैं साम्राज्यवाद जिसका मुख्य उद्देश्य मुनाफा है । मुनाफे के लिए वह हमेशा कफ़न तक नोच लेते हैं ।