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23.1.10

देखो ऋतुराज बसंत है आया








देखो ऋतुराज बसंत है आया
तन मन जन का है हर्षाया.
खेतों में निकली है सरसों पीली-पीली
शबनम की बूंदों से धरती की होंठ है गीली-गीली.
कलियों ने नैन-कपाट हैं खोले
भवरों ने मीठे-मीठे बैन हैं बोले.
कवियों का हृदय हुआ आह्लादित
विविध शब्द-रस हुआ उदघाटित.

















चारों दिशाएं झूम के गाएं
आंगन मोरे ऋतुराज हैं आएं.
हवा चली आज बसंती
महक रहे जन आज बसंती.
खोल पुराने छोड़-छाड़कर
पीत वस्त्र पहन निकला है दिवाकर.
नदियां,साहिल और समुन्दर मारे पींगे
बसंती धार से सत, रज, तम सब गुन भींगे.



















बरस भर के सूखे फूल खिले
बयार बसंती में मुरझे हृदय-कमल खिले.
'प्रबल' बसंती 'प्रणवीर' बसंती
हुए पाकर 'धुन', 'शुभ्र', 'वत्सल' बसंती.
(प्रणवीर- अग्रज भाई, धुन- बड़ी भांजी, शुभ्र- बड़ी भतीजी, वत्सल- छोटी भतीजी.)


प्रबल प्रताप सिंह

लो क सं घ र्ष !: जीवन सफल बनाना है तो, सत्य पथ अपनाना होगा

हार जाना काल चक्र से, जीत को शीश झुकाना होगा
जीवन सफल बनाना है तो, सत्य पथ अपनाना होगा

द्विधा की घनघोर घटा जब, मन मानस पर घिरती जाए
मोह, भ्रान्ति के अवरोधों से, प्रेम की धारा रूकती जाए।।

ज्ञान, विवेक, सुमति, साहस से, संशय तुम्हे मिटाना होगा
जीवन सफल बनाना है तो, सत्यपथ अपनाना होगा

संसार-सिन्धु की लहरों से, जीवन नौका टकराएगी
प्रचंड काल की भंवरों में, यह कभी उलझ जायेगी

निर्भय निर्द्वंद दृढ़ता से, तुमको पतवार चलाना होगा
जीवन सफल बनाना है तो, सत्य पथ अपनाना होगा

दुर्दिन में मित्रों का विछोह , ह्रदय को कभी व्यथित कर देगा
मित्रता, विश्वास, प्रेम का, छद्म रूप विचलित कर देगा

निर्विकार, निष्काम भाव से, स्वकर्तव्य निभाना होगा
जीवन सफल बनाना है तो, सत्यपथ अपनाना होगा

सत्य, अहिंसा, दया, प्रेम का, बीज धरा पर बोना होगा
हिंसा, स्वार्थ, इर्ष्या, घृणा से कल्पित मन धोना होगा

काम, क्रोध, मद, लोभ, मोह को, जग से दूर भागना होगा
जीवन सफल बनाना है तो, सत्यपथ अपनाना होगा



मोहम्मद जमील शास्त्री

शिक्षा प्रणाली की खामियां - बेक़सूर मासूम बच्चे देते कुर्बानियां !

शिक्षा प्रणाली की खामियां - बेक़सूर मासूम बच्चे देते कुर्बानियां !
हाल ही मैं देश के कई हिस्सों से बच्चों द्वारा आत्महत्या जैसे अप्रिय और दुखद कदम उठाने की खबर आती रही है । इस तरह की घटनाओं मैं समय दर समय इजाफा होते जा रहा है । पढ़ाई मैं स्वयं की अथवा माता पिताओं की आशा अनुरूप परिणाम न आने अथवा थोपी गई शिक्षा या अधिक नंबर की होड़ वाली शिक्षा के बोझ से तनाव ग्रस्त होने के परिणाम स्वरुप बच्चों द्वारा खुद को नुक्सान पहुचाने वाले आत्महत्या जैसे अप्रिय और दुखद कदम उठाने हेतु बाध्य होना पद रहा है । ऐसी परिसथितियां देश मैं वर्तमान मैं लागू दोषपूर्ण शिक्षा प्रणाली की खामियां और असफलता की कहानी खुद ही बयां करती है ।
1). नैसर्गिक गुणों को अवरुद्ध करती थोपी हुई शिक्षा : - मातापिता अपने बच्चों पर अपनी सामाजिक प्रतिष्ठा के मद्देनजर आशा एवं इक्च्छा को थोपकर अपने बच्चे का बचपन क्षीण कर छोटी उम्र मैं ही नम्बरों की होड़ वाली प्रतिस्पर्धा की अंधी दौड़ मैं उतार देते हैं और उनकी स्वाभाविक अभिरुचि एवं मौलिक गुण अथवा कौशल एवं हुनर की अनदेखी कर नैसर्गिक गुणों के विकास को अवरुद्ध करते हैं ।
२)। शिक्षा का व्यवसाई करण :- दोषपूर्ण शिक्षा प्रणाली का ही परिणाम है की शिक्षा प्रदान करने वाली संस्था एवं शिक्षकों का एकमात्र उद्देश्य व्यावसाईक हितों के अनुरूप शिक्षा बाजारीकरण करना हो गया है वन्ही शिक्षा को ग्रहण करने वाले शिक्षार्थी का एकमात्र लक्ष्य शिक्षा को ग्रहण कर अधिक अधिक से नंबर लाकर अधिक से अधिक ऊँचे वेतन वाले ऊँचे पदों को प्राप्त करना मात्र रह गया है । फलस्वरूप व्यावसाईक एवं स्वार्थपरक व्यक्तित्व युक्ता युवा पीढ़ी का निर्माण हो रहा है । जो अधिक से अधिक भौतिक सुखों और सुविधाओं को प्राप्त करने हेतु भ्रष्ट्राचार , अनैतिक एवं अवैधानिक तरीकों और रास्तों को अपनी जीवन शैली तरजीह दे रहे हैं ।
३)। देश की प्राकृतिक , भौगोलिक और सांस्कृतिक आवश्यकताओं के प्रतिकूल शिक्षा : - देश की प्राकृतिक , भौगोलिक और सांस्कृतिक आवश्यकताओं एवं व्यावसाईक व तकनीकी ज्ञान की उपेक्षा कर बनायी गयी शिक्षा प्रणाली का ही परिणाम है की शिक्षा ग्रहण करने के बाद आज के युवा अपनी संस्कृति और परम्परागत व्यवसाय से दूर होते जा रहें हैं । वन्ही किताबी ज्ञान आधारित शिक्षा के अनुरूप पर्याप्त रोजगार के अभाव के चलते बेरोजगारी का दंश झेलने हेतु मजबूर है ।
४)। प्राचीन ज्ञान की उपेक्षा करती शिक्षा प्रणाली : - शिक्षा पाठ्यक्रमो मैं न तो देश के पूर्वजों के ज्ञान और अनुभव को स्थान दिया गया है और न ही पुरातन शिक्षा ग्रंथों को शामिल किया गया है । प्राचीन खगोलशास्त्र , ज्योतिष विज्ञानं , आयुर्वेद ज्ञान , योग एवं अध्यात्म एवं अनेक ऐसे कई विषयों की उपेक्षा की गयी है जिससे की भारत को विश्वगुरु होने का दर्जा प्राप्त था । ऐसे विषयों के ज्ञान को परिष्कृत और परिमार्जित कर देश के सामने लाने का गंभीर प्रयास ही नहीं किया जा रहा है । जबकि विदेशी ज्ञान का अन्धानुकरण कर थोपने का प्रयास किया जा रहा है जो की देश की परिस्थिति के पूरी तरह अनुकूल नहीं है ।
५) । शिक्षा एवं ज्ञान के मूल्यांकन की दोषपूर्ण पद्धति : - आज की शिक्षा प्रणाली मैं ग्रहण किया गया ज्ञान का मूल्यांकन न तो व्यक्ति विशेष के कौशल और हुनर का प्रायोगिक परिक्षण से और न ही जीवन शैली और व्यक्तित्व व्यवहार मैं हुए सकारात्मक और रचनात्मक परिवर्तन के आकलन से होता है और न ही समाज और देश के प्रति अपने दायित्वों और कर्तव्यों की समझ और उनके के प्रति संवेदनशीलता से होता है । नंबरों होड़ युक्ता शिक्षा प्रणाली मैं तो बस ग्रहण किये गया ज्ञान के आंकलन हेतु , रटे गए ज्ञान का लिखित परीक्षायों के माध्यम से मूल्याङ्कन से होता है । और इस तरह की मूल्यांकन और परीक्षा प्रणाली बच्चों को तनावग्रस्त करती है और वांछित सफलता न मिलने पर खुद को नुक्सान पहुचाने वाले अप्रिय कदम उठाने हेतु बाध्य करती है ।
अतः आवश्यकता है देश मैं प्राचीन सम्रद्ध ज्ञान के साथ युक्तिसंगत आधुनिक ज्ञान आधारित शिक्षा व्यवस्था की जो देश की प्राकृतिक , भौगोलिक और सांस्कृतिक आवश्यकताओं के अनुरूप हो , जो बच्चों के मौलिक और नैसर्गिक गुणों को परिष्कृत और परिमार्जित करे एवं स्वावलंबी और आत्मनिर्भर बनाए , साथ ही सकारात्मक और रचनात्मक कार्यों के साथ के साथ सामाज और देश के प्रति दायित्वों से जोड़े ।
इस प्रकार हम शिक्षा प्रणाली की खामियां को दूर कर बेकसूर और मासूम बच्चों की कुर्बानियों को रोक पाएंगे ।

22.1.10

लो क सं घ र्ष !: डी.आई.जी पुलिस की जवाँमर्दगी

राजधानी लखनऊ में प्रदेश के राज्य कर्मचारी शिक्षक अपनी मांगो के लिए प्रदर्शन कर रहे थे जिसपर लखनऊ पुलिस ने बर्बरतापूर्वक लाठियां गोलियां चलायीं, सरकारी कार्यालयों में घुसकर लोगों को पीटा गयाडी.आई.जी लखनऊ को जवाँमर्दगी दिखाने के लिए नहीं मिला तो वह निहत्थी महिलाओं के ऊपर लाठियां चलाने लगे पुलिस ने अनावश्यक रूप से राज्य कर्मचारियों शिक्षकों पर लाठीचार्ज किया आंसू गैस के गोले छोड़े हवाई फायरिंग कीजवाहर भवन इंदिरा भवन सहित दर्जनों सरकारी कार्यालयों में घुसकर लाठी चार्ज किया
शांतिपूर्ण कर्मचारी शिक्षकों के ऊपर प्रशासन द्वारा लाठीचार्ज उनके बब्बर चरित्र को दर्शाता हैराजधानी में निहत्थी महिलाओं के ऊपर बेशर्मी के साथ लाठीचार्ज करना यह बताता है कि पुलिस का माननीय उच्चतम न्यालय के दिशानिर्देश कानून संविधान में कोई यकीन नहीं हैयह सब ब्रिटिश युग के गुलाम मानसिकता वाले सरकारी तंत्र हैंऊँचे ओहदों पर बैठे हुए लोग अपने को सर्वशक्तिमान समझते हैं वह यह समझते हैं कि उनका कोई कुछ नहीं कर सकता है इसीलिए डी.आई.जी पुलिस लखनऊ को जब पीटने के लिए कोई नहीं दिखा तो वह औरतों पर अपने हाथ में लाठी लेकर मार पीट करने लगेप्रशासन ने समझदारी से कार्य लिया होता तो राज्य कर्मचारियों शिक्षकों के ऊपर लाठी चार्ज करने की कोई आवश्यकता नहीं थीआज जरूरत इस बात की है कि प्रशासन के ऊपर ऊँचे ओहदे पर नियुक्त बीमार मानसिकता वाले लोगो की छँटनी की जाए

सुमन
loksangharsha.blogspot.com

लो क सं घ र्ष !: सत्ता के लिए ललायित कांग्रेस के खेल

महराष्ट्र के मुख्यमंत्री अशोक चाहवाण की कैबिनेट द्वारा लिए गये एक फैसले ने महाराष्ट्र में नफरत अलगाववाद की राजनीत करने वालों के पक्ष को शक्ति प्रदान की है। कैबिनेट में लिए गये निर्णय के मुताबिक महाराष्ट्र में उन्हीं टैक्सी चालकों को टैक्सी चलाने का परमिट दिया जायेगा जो मराठी भाषा ठीक से बोल, लिख पढ़ लेते हो। इस पर राष्ट्र स्तर पर आती तीखी प्रतिक्रियाओं से घबराकर कांग्रेस के केन्द्रीय नेतृत्व के दबाव में अशोक चाहवाण को निर्णय पर अपना स्पष्टीकरण देकर यू टर्न लेना पड़ा।
कांग्रेस का यह खेल बहुत पुराना है। सत्ता पाने के लिए वह अक्सर ऐसे खेल खेला करती है। कहने को तो यह जमात अपने को धर्म निरपेक्ष जातिवाद के विरूद्ध कहती है परन्तु इस तरह के शिगूफे वह बराबर छोड़ती रहती है और सम्प्रदायिक अलगाववादी शक्तियों को ताकत देती रहती है। बाबरी मस्जिद का सोया शेर कांग्रेसियों ने जगाया। फिर शिलान्यास करवाकर हिन्दूवादी शक्तियों के अंदर धार्मिक उबाल पैदा कर राजनीतिक लाभ लेने के उद्देश्य से हिन्दू कार्ड खेला, परन्तु दाव उलटा पड़ गया लाभ भाजपा के हिस्से में चला गया। बाबरी मस्जिद विंध्वस के समय तत्कालीन कांग्रेसी प्रधानमंत्री नरसिंहाराव ने मस्जिद बचाने के वह सार्थक प्रयास यह सोच कर वही किये कि भाजपा के हाथ से मुद्दा ही समाप्त कर दिया जाये और केन्द्रीय सुरक्षा बलों को विवादित स्थल में तब भेजा जब कारसेवक मालने को साथ करने के पश्चात अस्थायी मंदिर बनाकर रामजानकी की मूर्ति वहां स्थापित कर गये।
फिर गुजरात में नरेन्द्र मोदी के विरूद्ध कांग्रेस ने हिन्दुत्व का फार्मूला यह सोचकर आजमाया कि नरेन्द्र मोदी के उग्र हिन्दुत्व का विकल्प जनता के सामने रखा जाये मगर राम ही मिला ना रहीम। हिन्दू वोट तो नरेन्द्र मोदी के गर्मा गर्म ताजा हिन्दुत्व के कारण कांग्रेस द्वारा पर से गये ठण्डे बासी नरम हिन्दुत्व की थाली के पास तक आया उल्टे मुस्लिम वोट भी कांग्रेस से दूर छिटक गया।
इसी तरह कश्मीर में 1973 में शेख अब्दुल्ला के नेतृत्व में चुनी गई सरकार में फूट डालकर उनके सगे बहनोई गुल मोहम्मद शाह की पीठ पर हाथ रखकर लोकतंात्रिक सरकार को ध्वस्त कर वहां राष्ट्रपति शासन तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने लगवाया और जगमोहन को गर्वनर बना कर कश्मीरियों पर ऐसा जुल्म ढाया कि पाकिस्तान की आरे नर्मगोशा उनका पैदा शुरू हो गया जिसका लाभ कश्मीर के अलगाव वादी संगठनों ने भरपूर तौर पर लिया और जिसका परिणाम यह है कि कश्मीर अभी तक सुलग रहा है लाखों इंसान मार डाले जा चुके हैं पर्यटन उद्योग से लेकर फल मेवा उद्योग सभी प्रभावित हुए हैं।
उधर पश्चिम बंगाल में वामपंथी सरकार की हटाने के प्रयास में ममता बनर्जी का साथ देकर नक्सलियों पर चोरी छुपे हाथ रखने का काम भी कांग्रेस के द्वारा ही किया जा रहा है। इससे पूर्व पंजाब में अकालियांे को ठिकाने लगाने के उद्देश्य से भिंडरा वाला नाम के जनूनी व्यक्ति को भी खड़ा करने का दुष्कर्म कांग्रेस की ही रणनीति का हिस्सा था जिसका परिणाम पूरा पंजाब को और बाद में स्वयं इंदिरा गांधी को अपने प्राणों की आहूति देकर भुगतना पड़ा।
एक बार फिर कांग्रेस वही गलती दोहरा रही है और महाराष्ट्र जैसे औद्योगिक प्रान्त की सुख शांति जो पहले रही शिवसेना महराष्ट्र निर्माण पार्टी के कारण छिन्न भिन्न हो चुकी है उसमें और शोले भड़काने का काम कांग्रेस कर रही है। स्वाभाविक प्रश्न उठता है कि बार-बार मुंह की खाने के बाद कांग्रेस ऐसी गलती करती क्यों है तो इसका जवाब यह है कि कांग्रेस के भीतर विभिन्न करती क्यों है तो इसका जवाब यह है कि कांग्रेस के भीतर विभिन्न विचार धाराओं के व्यक्तियों का संग्रह है जो कांग्रेस की सत्ता पाने की लालच में यह गलतियां कराने पर मजबूर करते हैं।

मोहम्मद तारिक खान

फलित ज्योतिष आखिर क्‍या है .. एक सांकेतिक विज्ञान या मात्र अंधविश्वास

आसमान के विभिन्‍न भागों में विभिन्‍न ग्रहों की स्थिति के कारण पृथ्‍वी पर या पृथ्‍वी के जड चेतन पर पडनेवाले प्रभाव का अध्‍ययन फलित ज्‍योतिष कहलाता है। यह विज्ञान है या अंधविश्वास , इस प्रश्न का उत्तर दे पाना समाज के किसी भी वर्ग के लिए आसान नहीं है। परंपरावादी और अंधविश्वासी विचारधारा के लोग ,जो कई स्थानों पर ज्योतिष पर विश्वास करने के कारण धोखा खा चुकें हैं , भी इस शास्त्र पर संदेह नहीं करते। वे ज्‍योतिष को मानते हुए सारा दोषारोपण ज्योतिषी पर कर देते  है। दूसरी ओर वैज्ञानिकता से संयुक्त विचारधारा से ओत-प्रोत ज्‍योतिष को जीवनभर न मानने वाले व्यक्ति भी किसी मुसीबत में फंसते ही समाज से छुपकर ज्योतिषियों की शरण में जाते देखे जाते हैं।

ज्योतिष की इस विवादास्पद स्थिति के लिए मै सरकार ,शैक्षणिक संस्थानों एवं पत्रकारिता विभाग को दोषी मानती हूं। इन्होने आजतक ज्योतिष को न तो अंधविश्वास ही सिद्ध किया और न ही विज्ञान ? सरकार यदि ज्योतिष को अंधविश्वास समझती तो जन्मकुंडली बनवाने या जन्मपत्री मिलवाने के काम में लगे ज्योतिषियों पर कानूनी अड़चनें आ सकती थी। यज्ञ हवन करवाने या तंत्र-मंत्र का प्रयोग करनेवाले ज्योतिषियों के कार्य में बाधाएं आ सकती थी। सभी पत्रिकाओं में राशि-फल के प्रकाशन पर रोक लगाया जा सकता था। आखिर हर प्रकार की कुरीतियों और अंधविश्वासों जैसे जुआ , मद्यपान , बाल-विवाह, सती-प्रथा आदि को समाप्त करनें में सरकार ने कोई कसर नहीं छोड़ी है ,परंतु ज्योतिष पर विश्वास करनेवालों के लिए ऐसी कोई कड़ाई नहीं हुई। मैं पूछती हूं , आखिर क्यों ??

क्या सरकार ज्योतिष को विज्ञान समझती है ? नहीं, अगर वह इस विज्ञान समझती तो इस क्षेत्र में कार्य करनेवालों के लिए कभी-कभी किसी प्रतियोगिता, सेमिनार आदि का आयोजन होता तथा विद्वानों को पुरस्कारों से सम्मानित कर प्रोत्साहित किया जाता। परंतु आजतक ऐसा कुछ भी नहीं किया गया। पत्रकारिता के क्षेत्र में देखा जाए तो लगभग सभी पत्रिकाएं यदा-कदा ज्योतिष से संबंधित लेख, इंटरव्यू , भविष्यवाणियॉ आदि निकालती रहती है पर जब आजतक इसकी वैज्ञानिकता के बारे में निष्कर्ष ही नहीं निकाला जा सका, जनता को कोई संदेश ही नहीं मिल पाया तो फिर ऐसे लेखों या समाचारों का क्या औचित्य ? पत्रिकाओं के विभिन्न लेखों हेतु किया जानेवाला ज्योतिषियों कें चयन का तरीका ही गलत है । उनकी व्यावसायिक सफलता को उनके ज्ञान का मापदंड समझा जाता है , लेकिन वास्तव में किसी की व्यावसायिक सफलता उसकी व्यावसायिक योग्यता का परिणाम होती है ,न कि विषय-विशेष की गहरी जानकारी। इन सफल ज्योतिषियों का ध्यान फलित ज्योतिष के विकास में न होकर अपने व्यावसायिक विकास पर होता है। ऐसे व्यक्तियों द्वारा ज्योतिष विज्ञान का प्रतिनिधित्व करवाना पाठकों को कोई संदेश नहीं दें पाता है, आगे बढें ।

21.1.10

लो क सं घ र्ष !: जीवन सफल बनाना है तो, सत्यपथ को अपनाना होगा

जीवन सफल बनाना है तो, सत्यपथ को अपनाना होगा
घनतम दूर भागना है तो, ज्ञान-प्रदीप जलना होगा

खिलता है कांटो में गुलाब जग में सौरभ फैलाता है
शीत, ताप, झंझा झकोर से, कब पंकज मुरझाता है

जीवन सुरभित करना है तो, आदर्श इन्हें बनाना होगा
जीवन सफल बनाना है तो, सत्यपथ को अपनाना होगा

संघर्षनाम है जीवन का, जीवन संघर्ष के बिना कहाँ?
है वहीँ सफलता का निवास, कर्तव्य बोध संघर्ष जहाँ

पथ पर बिखरे पषाणों से , पग-पग पर टकराना होगा
जीवन सफल बना है तो, सत्यपथ को अपनाना होगा

कर्तव्यों से विमुख होना है तो, भाग्य भरोसे बैठे रहना
यदि गंतव्य को पाना है तो, पथिक निरंतर बढ़ते रहना

थककर बैठ जाना प्यारे! आजीवन पछताना होगा
जीवन सफल बना है तो, सत्यपथ को अपनाना होगा

जीवन हो विष का प्याला, पर इसे सुधा सम पीना होगा
युग के झंझावातों में भी, हँस-हँस कर के जीना होगा

कितना ही कंटकमय पथ हो, आगे बढ़ते जाना होगा
जीवन सफल बनाना है तो, सत्यपथ अपनाना होगा

मन को विचलित करने वाले, कुछ ऐसे भी क्षण आयेंगे
संकट की काली छाया से, माथे पर बल जायेंगे


- मोहम्मद जमील शास्त्री