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16.1.10

सम्मानित कीजिये उत्तर प्रदेश पुलिस को

त्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में एक अधिवक्ता के ऊपर अपहरण व हत्या का वाद दर्ज होता है ।पुलिस ने जांच की और कहा कि अधिवक्ता ने अपना जुर्म इकबाल कर लिया है। लाश का पंचायतनामा और उसके बाद पोस्मार्टम हुआ । अभियुक्त को कारागार में निरुद्ध कर दिया गया। न्यायलय में आरोप पत्र दाखिल हो गया बाद में जिस व्यक्ति की अपहरण व हत्या अधिवक्ता को 55 दिन जेल में रहना पड़ा हो, वह व्यक्ति जिन्दा है ।
कारागार में हजारो व्यक्ति बेगुनाह निरुद्ध हैं। उन्होंने कोई अपराध नहीं किया है । जिस अपराध में निरुद्ध हैं , उस अपराध के घटनास्थल को भी उन्होंने नहीं देखा है। विवेचना में पुलिस ने उनके ऊपर लगाये गए आरोप मय साक्ष्य के सही पाए गए हैं । कुछ अपराधो में विवेचना अधिकारी पुलिस उपाधीक्षक होते हैं उन अपराधो में विवेचना का स्तर और भी घटिया है । कथित दहेज़ हत्या के मामलो में हजारो बेगुनाह स्त्रियाँ व पुरुष कारागार में निरुद्ध हैं। विवेचना अधिकारी ने कार्यालय के अन्दर ही बैठ कर विवेचनाएं कर डाली हैं। उनके लिए गुनाहगार व बेगुनाह व्यक्ति में कोई अंतर नहीं है जब उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में एक अधिवक्ता के साथ ऐसा हो सकता है तो पूरे प्रदेश का हाल क्या होगा ? इसलिए ऐसी पुलिस को सलाम करने की जरूरत है, सम्मान करने की जरूरत है अन्यथा हमारा और आपका भी नंबर आ सकता है ।

संजय दत्त व सुनील शेट्टी अभय चौटाला के पक्ष में करेंगे रोड़ शो

ऐलनाबादमुन्नाभाई के नाम से चर्चित फिल्म अभिनेता संजय दत्त सुप्रसिद्ध फिल्मी हीरो सुनील शेट्टी रविवार 17 जनवरी को ऐलनाबाद विधानसभा क्षेत्र से इनेलो प्रत्याशी अभय सिंह चौटाला के पक्ष मे चुनाव प्रचार करने के लिए पूरे विधानसभा क्षेत्र में रोड शो करेंगे। दोनों अभिनेताओं के रोड शो कार्यक्र को लेकर क्षेत्र की जनता विशेषकर युवाओं सहित हर वर्ग में भारी उत्साह पाया जा रहा है। लोगों के उत्साह को देखते हुए इनेलो ने इस रोड शो की कामयाबी के लिए सभी तैयारियां मुकम्म्ल कर ली हैं। रोड शो के अतिरिक्त दोनों फिल्म अभिनेता संजय दत्त सुनील शेट्टी सोमवार 18 जनवरी को चुना प्रचार के अंतिम दिन नाथूसरी चौपटा में इनेलो की ओर से आयोजित की जाने वाली विशाल चुनावी रैली में भी शिरकत करेंगे। इस रैली को इनेलो प्रमुख ओमप्रकाश चौटाला पंजाब के उपमुख्यमंत्री सरदा सुखबीर बादल सहित अनेक प्रमुख नेता संबोधित करेंगे। प्राप्त जानकारी के अनुसार फिल्म अभिनेता संजय दत्त सुनील शेट्टी इनेलो प्रत्याशी अभय सिंह चौटाला के करीबी दोस्तों में से हैं और उनके हर चुनाव में बालीवुड के सितारे अकसर पहुंचते रहे हैं। अभय सिंह चौटाला के साथ संजय दत्त सुनील शेट्टी रविवार 17 जनवरी को सुबह साढ़े 9 बजे दड़बा गांव से रोड शो शुरू करेंगे और माखासरानी, तरकांवाली, शाहपुरिया, चाहरवाला, रामपुरिया बगडिय़ा, कागदाना, गिगोरानी से होते हुए नाथूसरी पहुंचेंगे। नाथूसरी से यह रोड शो लुदेसर, रूपावास, जमाल, ढूकड़ा, गुडिय़ाखेड़ा, बकरियांवाली, माधोसिंघाना और मल्लेकां से होते हुए मेहनाखेड़ा, भुरटवाला पोहड़का जाएगा। इनेलो द्वारा तैयार किए गए रोड शो के रूट अनुसार अभय सिंह, संजय दत्त सुनील शेट्टी ढाई बजे पोहड़का से सुरेरां, खारी सुरेरां, किशनपुरा, काशी का वास, नीमलां, धोलपालिया, बेहरवाला, तलवाड़ा से होते हुए ऐलनाबाद शहर में करीब शाम पांच बजे पहुंचेंगे और शहर की जनता से रूबरू होंगे। मुन्ना भाई एमबीबीएस लगे रहो मुन्ना भाई जैसी सुपरहिट फिल्मों के नायक संजय दत्त की गांधीगिरी आज हरके की जुबान पर है और संजयदत्त दर्जनों सफल फिल्मों के अभिनेता सुनील शेट्टी का जादू लोगों के सिर चढ़ कर बोलता है। इन फिल्म अभिनेताओं के रोड शो सहित दो दिन तक इनकी ऐलनाबाद में मौजूदगी इनेलो के प्रचार को ओर ज्यादा मजबूती प्रदान करने के साथ चार चांद लगा देगी।

15.1.10

ठाकरे का नया फ़तवा

शिवसेना के बाल ठाकरे ने घोषणा की है कि महाराष्ट्र की धरती पर ऑस्ट्रेलिया की क्रिकेट की टीम को खेलने नहीं देंगे। पाकिस्तान के बाद ऑस्ट्रेलिया दूसरा देश होगा जिसको शिवसेना ने क्रिकेट खेलने से मना किया है । बाल ठाकरे का तर्क है कि ऑस्ट्रेलिया में भारतीयों के ऊपर नस्लवादी हमले हो रहे हैं उसका जवाब हम दे रहे हैं। इससे पूर्व में मुंबई में रहने वाले उत्तर भारतीयों के ऊपर शिवसेना कुनबे ने हमले किये थे। बाल ठाकरे समझते हैं कि उनकी हिटलरी सनक से महाराष्ट्र चलता है। आज जरूरत इस बात की है कि बाल ठाकरे जैसे प्रान्तीयतावादी, नस्लवादी नेताओं के खिलाफ कठोर कदम उठाया जाए क्योंकि उनकी समझ कुछ मुट्ठी भर लोगो को लेकर गुंडा गर्दी के अतिरिक्त कुछ नहीं है। भारतीय लोकतान्त्रिक समाज में इस तरह के घृणापद विचार और हरकतों से देश का कतई भला नहीं होने वाला है बल्कि छोटी मानसिकता वाले लोगो से नुकसान ही होता है । ऑस्ट्रेलिया में अगर बाल ठाकरे जैसी मानसिकता वाले लोग अगर भारतीय लोगों पर हमले कर रहे हैं तो वहां का कानून अपना कार्य करेगा प्रत्येक व्यक्ति को कानून लागू करने व दण्डित करने का अधिकार किसी भी सभी समाज में नहीं होता है एक निश्चित प्रक्रिया के तहत कानून तोड़ने वाले लोगो को दण्डित किया जाता है समाज प्रगति पर है। बाल ठाकरे जैसे लोग आदिम अवस्था में जीते हैं और फतवे जारी करते हैं ।
बाल ठाकरे कि अगर सरकारी सुरक्षा व्यवस्था हटा ली जाए तो वह सियार कि तरह से मांद में पड़े नजर आयेंगे तब उनको लोकतंत्र, न्याय, कानून अपने आप समझ में आ जाएगा।

70 वर्ष की उम्र से अधिक के वृद्ध की बातें

क बच्‍चे का हंसता खिलखिलाता मुस्‍कराता चेहरा जहां हमें खुशियों से सराबोर करता है , उसके साथ खेलते हम खुद अपने भूले हुए बचपन को जी लेते हैं, कुछ क्षणों के लिए सारे गम को भूल जाते हैं , वहीं अतिवृद्धावस्‍था को झेल रहे लोगों का जीवन हमारे सामने एक भयावह सच उपस्थित करता है, जिसे देखकर हम कांप से जाते हैं। इतना ही नहीं , उनकी तनावग्रस्‍त बातों को सुनकर चिडचिडाहट उपस्थित पाते हैं । समय और परिस्थिति के अनुसार इन सभी जगहों पर थोडा बहुत परिवर्तन भले ही मिल जाए , पर यह सत्‍य है कि सभी मनुष्‍य बचपन से लेकर बुढापे तक के इस यथार्थ के जीवन को झेलने को मजबूर है।
अपनी अपनी परिस्थिति में उम्र के साथ सभी व्‍यक्ति के जीवन के अनुभव क्रमश: बढते ही जाते हैं , आगे चलकर खास खास क्षेत्रों में भी उम्र में बडे लोगों के अनुभव हमारे लिए बहुत सीख देने वाला होता है। 50 से 70 वर्ष की उम्र तक अपने से बडों की सीख के महत्‍वपूर्ण होने से इंकार नहीं किया जा सकता। इसलिए इस उम्र के लोगों के अनुभव से लाभ उठाते हुए उनकी हर बात में से कुछ न कुछ सीखने की प्रवृत्ति व्‍यक्ति को विकसित करनी चाहिए । पर जब वे स्‍वयं 50 वर्ष के हो जाते हैं , तो बडों के समान उनके विचारों का भी पूरा महत्‍व हो जाता है , हां 60 वर्ष की उम्र तक के व्‍यक्ति से उन्‍हें कुछ सीख अवश्‍य लेनी चाहिए। पर 60 वर्ष की उम्र के बाद धर्म , न्‍याय आदि गुणों की प्रधानता उनमें दिख सकती है , पर सांसारिक मामलों की सलाह लेने लायक वे नहीं होते हैं, इस आलेख को पूरा पढे ।

14.1.10

अभी कुछ और करिश्मे ग़ज़ल के देखते हैं



जन्म दिन  पर...!!
                   (1)

अभी कुछ और करिश्मे ग़ज़ल के देखते हैं
फ़राज़ अब ज़रा लहजा बदल के देखते हैं.

जुदाइयां तो मुकद्दर हैं फिर भी जाने-सफ़र
कुछ और दूर ज़रा साथ चल के देखते हैं.

                    (2)
अब के हम बिछुड़े तो शायद कभी ख़्वाबों में मिलें
जिस तरह सूखे हुए फूल किताबों में मिलें.


ढूंढ उजड़े हुए लोगों में वफ़ा के मोती
ये खजाने तुझे मुमकिन है ख़राबों१ में मिलें.

गमे-दुनिया भी गमे-यार में शामिल कर लो
नश्शा बढ़ता  है शराबें जो शराबों से मिलें.

तू ख़ुदा है न मेरा इश्क़ फ़रिश्तों जैसा
दोनों इन्सां हैं तो क्यों इतने हिजाबों में मिलें.

आज हमदार२ पे खींचे गए जिन बातों पर
क्या अजब कल वो ज़माने को निसाबों३ में मिलें.

अब न वो हैं न वो तू है न वो माज़ी है फ़राज़
जैसे दो शख्स तमन्ना के सराबों४ में मिलें.
 
                    (3)
रंजिश ही सही, दिल ही दुखाने के लिए आ
आ फिर से मुझे, छोड़ जाने के लिए आ.

कुछ तो मेरे पिन्दारे-मुहब्बत५ का अरमान
तू तो कभी मुझको मनाने के लिए आ.

पहले से मरासिम६ न सही, फिर भी कभी तो
रस्मे-रहे-दुनिया७ ही निभाने के लिए आ.

इक उम्र से हूं, लज्जते-गिरिया८ से भी महरूम
ऐ राहते-जां मुझको रुलाने के लिए आ.

अब तक दिले-खुशफ़हम को तुझसे हैं उम्मीदें
ये आखिरी शम्मएं भी भुजाने के लिए आ.

१. खंडहर, निर्जन स्थल.

२. फ़ांसी का तख्ता.

३. पाठ्यक्रम, आधार.

४. मृगमरीचिका.

५. प्रेम के अभिमान.

६. संबंध

७. दुनिया के रास्ते की रस्म.

८. रोने का आनंद.

                   (स्रोत: फ़राज़ संकलन)
प्रबल प्रताप सिंह 

साहित्य के अमृत...!




आज साहित्य की दुनिया के एक अमृत शिक्षाशास्त्री, प्रशासक, चिन्तक-विचारक, साहित्यकार, भाषाविद, सम्पादक आचार्य पंडित विद्यानिवास मिश्र जी का जन्म दिवस है.साहित्य के इस अमृत पुत्र के बारे में संभवतः सभी लोग जानते होंगे. मिश्रजी के बारे में उनके वरिष्ठ, कनिष्ठ और सहोदर क्या सोचते थे. उन्हीं कुछ लोगों की स्मृतियों को यहाँ प्रस्तुत कर उनके जन्मदिवस पर उनको अपनी श्रद्धा सुमन अर्पित करता हूं.
विद्या ने जिसमें किया निवास
वरदपुत्र वह वरदा का था.
पंडित प्रवर विद्यानिवास,
अर्जक विद्वत जन-विश्वास.
वाणी के हे वरद पुत्र तुम!
दिव्य लोक में हुए मगन.
तेरी सेवा में अर्पित,
ये श्रद्धा के मेरे पुनीत सुमन.( कन्हैयालाल पाण्डेय " रमेश ")

पंडित विद्यानिवास मिश्र जी का जीवन-वृत्त 
 पूरा नाम-  विद्यानिवास मिश्र
माता का नाम-  श्रीमती गौरी देवी
पिता का नाम-  पंडित प्रसिद्ध नारायण मिश्र
जन्म-   १४ जनवरी, १९२६
जन्म स्थान-  पकड़डीहा, गोरखपुर ( उ. प्र.)
प्राथमिक शिक्षा-   बिसुनपूरा प्राथमिक विद्यालय, गोरखपुर
माध्यमिक शिक्षा-  गोरखपुर
उच्च शिक्षा-   इलाहाबाद, वाराणसी


सेवा की शुरुआत 
१. १९४६ से १९४८ तक- साहित्य सम्मलेन प्रयाग और आकाशवाणी  इलाहाबाद.

२. १९४८ से १९५० तक- महापंडित राहुल सांकृत्यायन के साथ हिन्दी-अंग्रेजी शब्दकोश के लिए कार्य.

३. १९५१ से १९५२ तक- सूचना अधिकारी, विन्ध्य प्रदेश.

४.१९५४ से १९५६ तक- उत्तर प्रदेश सरकार में सूचना निदेशक.

५. १९५७ से १९६७ तक- संस्कृत विभाग, गोरखपुर विश्वविद्यालय में सहायक प्रोफ़ेसर एवं रीडर.

६. १९६० से १९६१ एवं १९६७ से १९६८ तक- कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय में अथिति प्रोफ़ेसर.

७. १९६८ से १९७६ तक- सम्पूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय में आधुनिक भाषा एवं भाषा विभाग में प्रोफ़ेसर एवं अध्यक्ष.

८. १९७७ से १९८५ तक- कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी संस्थान, आगरा में निदेशक.

९. १९८५ से १९८६ तक- बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में अतिथि प्रवक्ता.

१०. १९८६ से १९८९ तक- काशी विद्यापीठ के कुलपति.

११. १९९० से १९९२ तक- संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति.

१२. १९९२ से १९९४ तक- प्रधान सम्पादक, ' नव भारत टाइम्स '

१३. अगस्त १९९५ से फरवरी २००५ तक- प्रधान सम्पादक, ' साहित्य अमृत '.

१४. १९९९ से २००३ तक- प्रसार भारती बोर्ड के सदस्य.

१५. २००१ से २००४ तक- इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के न्यासी.

१६. २८ अगस्त २००३- भारत के राष्ट्रपति द्वारा राज्यसभा में मनोनीत.
१७. आजन्म न्यासी- भारतीय ज्ञानपीठ एवं वत्सल निधि.

१८. कुलाधिपति- हिन्दी विद्यापीठ, देवघर ( झारखण्ड ).


अलंकरण-सम्मान-पुरस्कार
१. १९८७- मूर्ति देवी पुरस्कार.

२. १९८८- पदम् श्री.

३. १९९६- विश्व भारती सम्मान.

४. १९९६- साहित्य अकादमी महत्तर सदस्यता.

५. १९९७- शंकर सम्मान.

६. १९९७-भारत भारती.

७. १९९८- पद्म भूषण.

८. २००१- मंगला प्रसाद पारितोषिक.

प्रयाण- १४ फरवरी, २००५.

यादों के झरोखों से
" प्रत्येक मार्ग के किनारों पर वृक्ष हैं और हर मार्ग में पथिक उनका आश्रय लेते हैं, किन्तु ऐसा वृक्ष बिरला ही होता है जिसका स्मरण घर पहुंचकर भी पथिक कृतज्ञता से करता है. मेरे मित्र और गुरु भाई विद्यानिवास मिश्र ऐसे ही लाखों में एक वृक्ष थे जिनको साहित्य का संसार और समुदाय कई पीढ़ियों तक स्मरण करेगा. ' छान्दोग्योपनिषद ' में एक सार्थक मन्त्र-वाक्य है- ' स्मरोववकाशाद्ध भूयः '. अर्थात स्मरण आकाश से भी उत्कृष्ट है. ' साहित्य अमृत ' के प्रत्येक अंक और पृष्ठ पर उनकी स्मृति अंकित रहेगी."...लक्ष्मीमल्ल सिंघवी.
"बहुत कम लोगों का नाम इतना सार्थक होता है जितना सार्थक पं. विद्यानिवास मिश्र का था. विद्या सचमुच उनमें निवास करती थी. आश्चर्यचकित रह जाना पड़ता था उनके ज्ञान को देखकर. वह जितना विस्तृत था उतना ही गहरा भी था. वेदों से प्रारंभ कर आधुनिक कविता तक, पाणिनीय व्याकरण से लेकर पश्चिमी भाषा विज्ञान तक, लोकजीवन की मार्मिक अंतर्दृष्टि-सम्पन्नता से लेकर गहन शास्त्र-विचारणा तक उनकी सहज गति थी. जिस त्वरित गति से उनकी लेखनी चलती थी, उसी वेग से उनकी वाणी भी अमृत बरसाती थी."...विष्णुकांत शास्त्री.
" एक दिन बातों-ही-बैटन में भारती जी को याद करके मैं काफी बिलबिला कर रो पड़ी. पहले तो प्यार से समझाते रहे पर रोना रुक नहीं पा रहा था तो ज़रा कड़े स्वर में डांटते हुए बोले, " अब बस एकदम चुप हो जाओ और सुनो, तुम्हें एक कथा सुनाते हैं, ध्यान से सुनो. और उन्होंने बताया कि एक बार राधा के मन में आया कि मथुरा जाकर कान्हा को देख आएं. संदेशा भेज दिया. अब महाराज कृष्ण की तो सिट्टी-पिट्टी गुम! कहीं कुछ ऐसा ना हो जाए कि राधा किसी बात से आहत हो जाएं, यहां कृष्ण उन्हें मना भी तो नहीं सकेंगे, बहुत सोच-समझकर उन्होंने स्वयं रुक्मिणी को पूरा जिम्मा दे दिया और कहा, आप स्वयं अपनी देखरेख में राधा के सम्मान और सुविधा का ख्याल रखिएगा, कहीं कोई कोर-कसर न रहने पाए. राधा आईं. रुक्मिणी ने सोचा, ग्वालन हैं, दूध-दही से ही उनका स्वागत होना चाहिए, सो उन्होंने स्वयं अपनी देखरेख में दूध को खूब औखवाया और लाल-लाल सोंधा-सोंधा खूब मलाईदार गरम-गरम दूध स्वयं उनको देने गईं. राधा ने भी उनका मान रखा और एकदम तत्ता गरम दूध एक सांस में पी गईं. सारे दिन खूब गहमागहमी रही. रात को राधा लौट गईं तब थके-मांदे कृष्ण अपने शयन कक्ष में गए. हमेशा की तरह रुक्मिणी उनके पाँव दबाने लगीं. पाँव दबाते जब वह तलवों के पास आईं तो कृष्ण ने अपने पाँव खींच लिए. रुक्मिणी ने सोचा, आखिर ऐसा मैंने क्या कर दिया ये यों नाराजगी दिखा रहे हैं. पूछने पर पता चला कि नाराजगी की बात नहीं है, बात यह है कि कृष्ण के पैरों में तलवों में चाले पड़े हैं, दबाने पर दर्द होगा. चाले कैसे पद गए ? पूछने पर पता चला कि राधा के हृदय में इन पैरों का अहर्निश निवास रहता है, दूध इतना गरम था कि एक सांस में पीने पर राधा की छाती जलने लगी और उन तलवों पर चाले पद गए.......कथा सुनाकर पंडित जी बोले "हम क्या जानते नहीं हैं कि कितनी प्राणप्रिया रही हो तुम भारती की. तुम रोओगी तो तुम्हारे इन आंसुओं में डूबकर उसकी आत्मा कितनी छटपटाएगी, इसका कुछ अंदाज़ है तुम्हें! खबरदार यों रो-रोकर भारती को कष्ट पहुंचाने का कोई हक़ नहीं है तुम्हें! " फिर बड़े दुलार से सर पर हाथ फेरकर बोले, " पगली! जनता हूं कि गीली लकड़ी की तरह धुंधुआती हुई नहीं जल रही हो. तुम तो दीए की बत्ती की तरह जल रही हो, जिसकी उजास में भारती की कीर्ति और उजली होकर चमक रही है. भारती की स्मृति संवर्धन के जिस काम में तुमने खुद को खपा दिया है, रोना-धोना छोड़कर उसी काम में लगी रहो. काम में ही अवसाद और विषाद, दोनों बिसरते हैं."...पुष्पा भारती.
" जब " साहित्य अमृत " पत्रिका निकलनी शुरू हुई तो विद्यानिवास जी रचना के लिए स्वयं फोन करते थे. उनकी बात को न मानना मेरे लिए मुश्किल था. इसलिए हमेशा मेरी रचनाएं विशेषांक में मौजूद होतीं. उनके स्वर्गवासी हो जाने का जहां मलाल था वहीं यह अहसास भी कि अब कोई फोन पर नहीं कहेगा-' नासिरा अपनी कहानी भेजो...अंक रुका हुआ है. "...नासिरा शर्मा.
 "भोजपुरी संस्कार गीतों में बेटी की विदाई के कुछ गीत जितने मर्मस्पर्शी हैं उतने ही अर्थवान भी. उन्हें ठीक से परखा और संजोया जाए तो वे विश्व-साहित्य की अनमोल निधि बनने का सामर्थ्य रखते है.
पंडित जी का अत्यंत प्रिय विदाई गीत था-----
बाबा, निमिया के डाल  जनि काटहू
बाबा, निमिया चिरइया बसेर
डाल  जनि काटहू...!
आगे की पंक्तियाँ उन्हें बिसर गईं थीं, पास बैठी अम्मा ने उस गीत को पूरा किया था-----
बाबा, सबेरे चिरइया उड़ी जइहैं,
रहि जइहैं निमिया अकेलि
डाल जनि काटहू
बाबा, बिटिया दुःख जनि देहू 
बाबा, सबेरे बिटिया जइहैं सासुर 
रहि जइहैं माई अकेलि 
बिटिया दुःख जनि देहू.
मेरे बाबा, नीम की डाल मत काटना. उस पर चिड़ियों का बसेरा है. डाल कटेगी, चिड़िया उड़ जाएंगी, नीम अकेली रह जाएगी.
मेरे बाबा, बिटिया को कभी दुःख मत देना. बेटी ससुराल जायेगी, माई अकेली रह जाएगी.
पंडित जी का वह रूप मेरी आत्मा में भोजपुरिया पिता के नेह-छोह की अमिट निशानी बनकर सुरक्षित है."...रीता शुक्ल 

मानिक मोर हेरइलें
" भोजपुरी में लिखे के मन बहुते बनवलीं त एकाध कविता लिखलीं, एसे अधिक ना लिखी पवलीं. कारन सोचीलें त लागेला जे का लिखीं, लिखले में कुछ रखलो बा! आ फेरो कइसे लिखीं ? मन से न लिखल जाला ! आ मन-मानिक होखो चाहे ना होखो- हेरइले रहेला, बेमन से लिखले में कवनों रस नइखे. घरउवां चइता के बोल: " जमुना के मटिया; मानिक मोर हेरइलें हो रामा...! हमार घूंघुची अइसन मन बेमन से पहिरावल फूलन के माला में हेरात रहेला. जवन ना चाहि लें तवन करे के परेला लोगन के मन राखे खातिर. जवन कइल चाहि लें तवना खातिर एक्को पल केहू छोड़े देबे के तइयार नाहीं. लोक के चिंता जीव मारत रहेला. मनई जेतने लोक क होखल चाहेला, लोक ओतने ओके लिलले जाला. चल  चारा पवलीं नाहीं; बड़ा नरम चारा बा. एह लोक के कोसे चलीलें त एक मन बादा ताना मारेला--ए बाबू ! तुहीं त एके सहकवल, अब काहें झंखत हव ! बतिया ओहू सही बा--सहकावल त हमरे ह, लोक-लोक हमहीं अनसाइल कईलीं. देखीलें लोक केहू क होला नाहीं, जेतना ले ला ओकर टुकड़ो नाहीं देला. निराला जी के गीत बा ' व देती थी. सबके दांव बंधु', हाम्रो जिनगी सबके दानवे दिहले में सेरा अ गइलि, हमार दांव केहू देई, ई एह जनम में त होखे वाला नाहीं बा !"...( 'गिर रहा है आज पानी' से )
                                   ( साभार: स्मृति अंक, साहित्य अमृत, मार्च-अप्रैल,२००५ )
प्रबल प्रताप सिंह

गुजरात का मुख्य आतंकी कौन था ?

22 दिसम्बर 2005 को गुजरात में सहाबुद्दीन और उनकी पत्नी कौशर बी तथा एक अन्य व्यक्ति तुलसी राम प्रजापति को गुजरात और आन्ध्र पुलिस के एक संयुक्त ऑपरेशन में पकड़ा गया था बाद में गुजरात के आतंकवाद निरोधी दस्ते ने फर्जी मुठभेड़ के नाम पर हत्या कर दी थी । पुलिस अधिकारियो ने सबूत मिटाने के लिए तुलसी राम प्रजापति तथा कौसर बी की भी हत्या कर दी थी। यह सब कार्य गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के विश्वास पात्र अधिकारीयों ने किया था पीड़ित पक्ष माननीय उच्चतम न्यायलय में रिट दाखिल कर सी.बी.आई जांच कराने की मांग कर रहा था। माननीय उच्चतम न्यायलय ने विगत दिनों सी.बी.आई जांच करने के आदेश दे दिए हैं । इस मामले में महानिरीक्षक डी.डी बंजारा, आर.के पाण्डेय आई.पी.एस, दिनेश एमएन (राजस्थान कैडर के आई.पी एस) व पुलिस उपाधीक्षक एन.के अमीन सहित अन्य नौ पुलिस कर्मी जेल में हैं सी.बी.आई को यह जांच करनी है कि क्या नरेंद्र मोदी के साथ-साथ कौन-कौन से अधिकारी इन तीनो की हत्या के षड्यंत्र में शामिल थे ? माननीय डी.डी बंजारा जब से जेल में हैं तबसे गुजरात का आतंकवाद पूर्णतया समाप्त हो गया है । इस तरह से यह बात सोचने की है कि गुजरात का मुख्य आतंकी कौन था ?
माननीय उच्चतम न्यायलय के इस आदेश के बाद राजनीतिक नेतृत्व व नौकरशाही अपने हितों के लिए लोगो की हत्या करने में जो संकोच नहीं करती है उसकी गति में जरूर ठहराव आएगा । राज्य का कार्य अपने नागरिको की हत्या करना नहीं होता है बल्कि नागरिको द्वारा किसी भी अपराध किये जाने पर समुचित न्यायिक प्रक्रिया द्वारा दण्डित किये जाने की व्यवस्था है लेकिन हमारे देश में भाषा, धर्म, जाति , राज्य, लिंग के आधार पर तमाम सारे अपराध राज्य को चलाने वाले अपराधी करते रहते हैं जिसको रोका जाना समाज के हित में होगा ।