8:17 pm
मेरी आवाज सुनो
नव वर्ष मुबारक....!
चटकती कलियों को
किलकती गलियों को
नव वर्ष मुबारक....!
नील गगन के बादल को
ममता के आँचल को
नव वर्ष मुबारक....!
पूरब की पुरवाई को
सागर की गहराई को
नव वर्ष मुबारक....!
अनेकता के साथों को
एकता के हाथों को
नव वर्ष मुबारक....!
पतझर की बहार को
माटी के कुम्हार को
नव वर्ष मुबारक....!
बचपन की बातों को
बिछुड़े हुए नातों को
नव वर्ष मुबारक....!
झुकती हुई आँखों को
सूखी हुई शाखों को
नव वर्ष मुबारक....!
पूर्वजों की थाती को
शहीदों की छाती को
नव वर्ष मुबारक....!
छप्पर की बाती को
चींटी-बाराती को
नव वर्ष मुबारक....!
उठती डोली को
पपिहा की बोली को
नव वर्ष मुबारक....!
शहर की अंगड़ाई को
गाँव की बिवाई को
नव वर्ष मुबारक....!
बुजुर्गों के सानिध्य को
भारत के भविष्य को
नव वर्ष मुबारक....!
अलाव की रातों को
बसंत की यादों को
नव वर्ष मुबारक....!
गुजरती राहों को
बिचुद्ती बाँहों को
नव वर्ष मुबारक....!
गाँव की पगडण्डी को
सब्जी की मंडी को
नव वर्ष मुबारक....!
खेतों की फसलों को
चिड़ियों के घोसलों को
नव वर्ष मुबारक....!
रोते नादानों को
उड़ते अरमानों को
नव वर्ष मुबारक....!
निकलते दिनकर को
स्थिर समंदर को
नव वर्ष मुबारक....!
कोयले की खानों को
मुर्गे की बांगो को
नव वर्ष मुबारक....!
नदिया की कल कल को
गोरी की छम छम को
नव वर्ष मुबारक....!
सरहद के जवानों को
खेत खलिहानों को
नव वर्ष मुबारक....!
जीवन दाता को
जग के विधाता को
नव वर्ष मुबारक....!
प्रबल प्रताप सिंह
5:27 pm
Randhir Singh Suman
नव वर्ष के शुभारम्भ पर आज यह सोचने की आवश्यकता है कि लाखो-करोडो गरीब व्यक्तियों को रोटी कैसे मिले ? केंद्र सरकार द्वारा सस्ते दामों पर खाद्यान सार्वजानिक वितरण प्रणाली के तहत उपलब्ध कराया जाता है खाद्यान्न सरकारी एजेंसी से उठने के बाद सीधे सार्वजानिक वितरण प्रणाली की दुकान पर बिक्री हेतु जाना चाहिए लेकिन वस्तुस्तिथि यह है कि आपूर्ति विभाग के अधिकारियों, विपणन वाली सरकारी एजेंसी, पुलिस, प्रशासनिक अफसर, व्यापारी जिसमें फ्लोर मिल्स व राईस मिल्स के मालिकों का एक गठजोड़ बन गया है जिसके कारण विपणन एजेंसी से गेंहू या चावल फ्लोर मिल या राईस मिल को वापस हो जाता है और वह महंगे दामो पर बाजार में बिकने के लिए आ जाता है । आम आदमी को सरकार द्वारा प्रदत्त सस्ते खाद्यान्न उपलब्ध नहीं हो पाते हैं . गाँवों व शहरों में बहुत सारे परिवार भूखे पेट सो जाते हैं इस गठजोड़ के लोग लाखो और करोडो रुपये कमा रहे हैं। इस गठजोड़ ने स्थानीय स्तर पर पत्रकारों को भी मिला रखा होता है ताकि पब्लिसिटी न होने पाए । आज नव वर्ष के शुभारम्भ पर हम आप से आशा करते हैं कि कोई ऐसा कदम उठाया जाए की जिससे यह गठजोड़ टूटे और आर्थिक अपराधी जिनकी जगह कारागार होनी चाहिए वहां पहुंचे। वैसे आर्थिक अपराधियों ने देश में समान्तर अर्थव्यवस्था कायम कर रखी है जिससे लाखो करोडो व्यक्तियों के मुंह का निवाला भी यह लोग छीन कर स्वयं खा ले रहे हैं । नए वर्ष यह संकल्प होना चाहिए कि आर्थिक अपराधियों के खिलाफ कठोर कार्यवाही करवाने में मेली मदद्गार बने अन्यथा नया वर्ष आया, समाप्त हुआ -यह प्रक्रिया चलती रहेगी।
7:22 pm
मेरी आवाज सुनो
२१वीं सदी के आखिरी दशक की आखिरी शाम. ये साल बहुतों के लिए बहुत अच्छा रहा होगा तो बहुतों के लिए बहुत बुरा. कुछ लोगों के लिए ये साल मिलाजुला रहा होगा. सभी अपने - अपने तरीके से बीत रहे साल २००९ का मूल्यांकन कर रहे हैं. भारत का आम आदमी इस साल जिससे सबसे ज्यादा प्रभावित हुआ है उनमें क्रमशः महंगाई, मंदी, महामारी, बेरोज़गारी, अव्यवस्था आदि.
आज मैंने भी इस गुजर रहे साल का अपने तरीके से मूल्यांकन करने बैठा तो विचार गद्द की जगह पद्द के रूप में निकल पड़े. इन्हीं विचारों को आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूँ........
साल २००९ जा रहा है......!!
अमीरों को और अमीरी देकर
गरीबों को और ग़रीबी देकर
जन्मों से जलती जनता को
महंगाई की ज्वाला देकर
साल २००९ जा रहा है.....
अपनों से दूरी बढ़ाकर
नाते, रिश्तेदारी छुड़ाकर
मोबाइल, इन्टरनेट का
जुआरी बनाकर
अतिमहत्वकान्क्षाओं का
व्यापारी बनाकर
ईर्ष्या, द्वेष, घृणा में
अपनों की सुपारी दिलाकर
निर्दोषों, मासूमों, बेवाओं की
चित्कार देकर
साल २००९ जा रहा.....
नेताओं की
मनमानी देकर
झूठे-मूठे
दानी देकर
अभिनेताओं की
नादानी देकर
पुलिस प्रशासन की
नाकामी देकर
साल २००९ जा रहा.....
अंधियारा ताल ठोंककर
उजियारा सिकुड़ सिकुड़कर
भ्रष्टाचार सीना चौड़ाकर
ईमानदार चिमुड़ चिमुड़कर
अर्थहीन सच्चाई देकर
बेमतलब हिनाई देकर
झूठी गवाही देकर
साल २००९ जा रहा.....
धरती के बाशिंदों को
जीवन के साजिंदों को
ईश्वर के कारिंदों को
गगन के परिंदों को
प्रकृति के दरिंदों को
सूखा, भूखा और तबाही देकर
साल २००९ जा रहा.....
कुछ सवाल पैदाकर
कुछ बवाल पैदाकर
हल नए ढूंढने को
पल नए ढूंढने को
कल नए गढ़ने को
पथ नए चढ़ने को
एक अनसुलझा सा काम देकर
साल २००९ जा रहा.....
6:31 pm
Randhir Singh Suman
दि नेटप्रेस के माध्यम से
नव वर्ष की पूर्व संध्या पर चिट्ठाजगत के सभी चिट्ठाकारों को
लोकसंघर्ष परिवार की तरफ से हार्दिक शुभकामनाएं
-सुमन
4:13 pm
संगीता पुरी
इस दुनिया में आने के बाद हमारी इच्छा हो या न हो , हम अपने काल , स्थान और परिस्थिति के अनुसार स्वयमेव काम करने को बाध्य होते हैं। सिर्फ इतना ही नहीं , अपने काल , स्थान और परिस्थिति के अनुरूप ही हमें फल प्राप्त करने की लालसा भी होती है। पर हमेशा अपने मन के अनुरूप ही प्राप्ति नहीं हो पाती , जीवन का कोई पक्ष बहुत मनोनुकूल होता है , तो कोई पक्ष हमें समझौता करने को मजबूर भी करता रहता है। पर यही जीवन है , इसे मानते हुए , जीवन के लंबे अंतराल में कभी थोडा अधिक , तो कभी थोडा कम पाकर भी हम अपने जीवन से लगभग संतुष्ट ही रहते हैं। यदि संतुष्ट न भी हों , तो आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु इतनी भागदौड करनी पडती है और हमारे पास समय की इतनी कमी होती है कि तनाव झेलने का प्रश्न ही नहीं उपस्थित होता। पूरा आलेख पढने के लिए
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6:29 pm
Randhir Singh Suman
हमारे समाज में बेरोजगारी अत्याधिक है दूसरी तरफ शिक्षण संस्थाओ में शिक्षा देने के लिए शिक्षकों का भी अभाव है। सरकार ने अध्यापकों के सेवानिवृत्ति की उम्र 65 वर्ष तक करने का प्रस्ताव रखा और विश्वविद्यालयों में 70 साल तक की उम्र के अध्यापक अध्यापन कार्य कर सकेंगे । सरकार नयी पीढ़ी को तैयार करने की जिम्मेदारी से हट रही है और इस तरह के प्रयोगों से शिक्षा का स्तर गिरेगा और आने वाली पीढ़ी का भी भविष्य अच्छा नहीं होगा । उत्तर प्रदेश में बेसिक शिक्षा के क्षेत्र में नए-नए प्रयोगों के कारण कक्षा पांच का छात्र अंगूठा लगा कर छात्रवृत्ति प्राप्त करता है उसका मुख्य कारण यह है कि बेसिक विद्यालयों में अध्यापक की नियुक्त ही नहीं है। शिक्षा मित्रों का प्रयोग भाजपा सरकार ने किया उसके पीछे मंशा यह थी कि 2000 रुपये में हम अध्यापक रखेंगे और सम्पूर्ण शिक्षा व्यवस्था को नष्ट करेंगे अब सरकार शिक्षा मित्रों को ही कुछ प्रशिक्षण देकर स्थाई नियुक्ति करने की मंशा व्यक्त कर चुकी है । उसी तरह केंद्र सरकार अपनी जिम्मेदारी से बचने के लिए सेवानिवृत्ति की आयु बढ़ा रही है । जिससे शिक्षा व्यवस्था और पतन की तरफ बढ़ेगी । निजी क्षेत्र के शिक्षा संस्थान चाहे वह मेडिकल हों या टेक्निकल कोई भी संस्थान मानक के अनुसार काम नहीं कर रहा है उनसे निकलने वाले छात्र ज्ञान में अधकचरे होते हैं हद तो यहाँ तक हो गयी है कि उत्तर प्रदेश के अन्दर कोई भी राजकीय होम्योपैथिक मेडिकल कॉलेज मानक के अनुसार शिक्षण कार्य नहीं कर रहा है । वहां भी अध्यापकों की कमी है अच्छा यह होगा की नयी पीढ़ी के निर्माण के लिए योग्य अध्यापकों की भर्ती की जाए तथा मानक के अनुसार प्रशिक्षित अध्यापक तैयार किए जाएँ । यदि यह काम प्राथमिकता के आधार पर नहीं किया गया तो शिक्षा व्यवस्था और अधिक अस्त-व्यस्त हो जाएगी ।
- सुमन
5:18 pm
संगीता पुरी
इसकी पहली कडी को लिखने के बाद दूसरे कार्यों में व्यस्तता ऐसी बढी कि आगे लिखना संभव ही न पाया। 2012 दिसंबर को दुनिया के समाप्त होने के पक्ष में जो सबसे बडी दलील दी जा रही है , वो इस वक्त माया कैलेण्डर का समाप्त होना है। माया सभ्यता 300 से 900 ई. के बीच मेक्सिको, पश्चिमी होंडूरास और अल सल्वाडोर आदि इलाकों में फल फूल रही थी , इस सभ्यता के कुछ अवशेष खोजकर्ताओं ने भी ढूंढे हैं। माना जाता है कि माया सभ्यता के लोगों को गणित, ज्योतिष और लेखन के क्षेत्र में विशेषज्ञता हासिल थी। माया सभ्यता के लोग मानते थे कि जब इस कैलिंडर की तारीखें खत्म होती हैं, तो धरती पर प्रलय आता है और नए युग की शुरुआत होती है। इसका कैलिंडर ई. पू. 3114 से शुरू हो रहा है, जो बक्तूनों में बंटा है। इस कैलिंडर के हिसाब से 394 साल का एक बक्तून होता है और पूरा कैलिंडर 13 बक्तूनों में बंटा है, जो 21 दिसंबर 2012 को खत्म हो रहा है। इस आलेख को पूरा पढने के लिए यहां क्लिक करें !!