आसुज लागदै की ग्यास नै चाँद निडाना के आसमान में सारी रात खेस तान कर सुता पड़ा था। सुबह-सवेरे कृषि विकास अधिकारीयों के स्वागत वास्ते इसने ठान की किसमे हिम्मत! इसीलिए पाठशाला के चौदहवें सत्र की प्रभात वेला में निडाना--चाबरी के अड्डे पर पाठशाला के केवल छ: किसान ही अपने हथजोडे(praying-mentis) का स्वागती बैनर उठाए इस उधेड़--बुन में खड़े थे कि HAMETI जींद से चौदहवीं के चाँद आयेंगे या आफताफ? खोटा इंतज़ार क्षणिक ही हुआ। ठीक आठ बज कर आठ मिनट पर हमेटी की मिनी--बस अड्डे पर आकर रुकती है। आठ मिनट लेट इसलिए होगे अक सारे रास्ते ड्राइवर कै माथे सूरज लागै
था। इस बस में से ना तो कोई चाँद उतरा अर् ना कोई आफताफ। इसमे से उतरे गिन कर उन्नतीस कृषि विकास अधिकारी जो हरियाणा कै दस जिलों की नुमाईंदगी कर रहे थे तथा अब हमेटी, जींद में चल रही TOF के शिक्षार्थी। डा.हरभगवान लेट होग्या। उसने ल्याण कै चक्कर में डा.लाठर लेट
होग्या। डा.नेहरा कै ताप चढ़ग्या। डा.जैन के बोझ तै मिनी--बस दबै थी। ख़ैर डा.मांगे, डा.सुभाष व् डा.राजेश की अगुवाई में इन कृषि अधिकारियों का स्वागत करते हुए भू.पु.सरपंच रत्तन सिंह व् उसके साथी किसानों की टीम इन्हें गावं की तरफ़ लेकर चली। अभी आधा फर्लांग भी नही चले थे कि रणबीर व् साथी किसान अपने बुगडों वाले स्वागती बैनर के साथ शिक्षार्थियों के स्वागत में पलकें बिछाएं खड़े
थे। इसके बाद मनबीर की टीम फेर राममेहर की, फेर संदीप की टीम मकडियों, लेडी बिटलों व् मक्खियों के स्वागती बैनरों सम्मेत खड़ी थी तथा अंत में राजेन्द्र की टीम कपास सेदक कीटों वाला बायकाटी बैनर उठाए खड़ी थी।
यहीं कृषि विकास अधिकारी का कार्यालय
है। चौदाह बाई चौदह का कमरा। अंदर पधारने पर "
चक्चुन्दर कै आए मेहमान--आ भै! लटक " वाली स्थिति थी। दफ्तर में खड़े--खड़े ही हालवे अर् बाक्लियाँ का ब्रेकफास्ट। हलवा गजब का स्वाद अर् बाकलियाँ का भी तोड़ होरया था। खड़े--खड़े ही गावं के सरपंच रामभगत सेठ नै मेहमानों का स्वागत किया अर् पैन व् पैड सप्रेम भेंट किए। खड़े--खड़े ही कृषि अधिकारियों व् किसानों की छ: टिम्में बनी। हर टीम में छ: किसान अर् छ: अधिकारी थे। ये टीम गावं के खेतों में अलग--अलग लोकेशंज पर गई। ये सभी टिम्मे अपना अवलोकन,निरिक्षण व् संवाद कायमी का काम निपटा व् खाना खाकर ठीक बारह से साढ़े बारह के बीच ब्राहमणों वाली चौपाल में पहुँची और यहीं शुरू हुआ किसानों व् कृषि अधिकारियों के मध्य संवाद कायमी का
सिलसिला। सूत्रधार बने डा.सुभाष। सत्र की शुरुआत में ही डा.साहिब ने किसानों की दिल खोल कर तारीफ करते हुए गावं में पधारने पर अधिकारीयों की आभगत व् किसानों के कीट ज्ञान के लिए भूरी--भूरी प्रशंसा के बड़े--बड़े भरोट्टे बाँध दिए। सराहना की अभावग्रसता से सत्या हारे किसानों पर इस पीठ थप--थपाई का गजब का असर हुआ। ठीक इसी समय हमेटी, जींद के प्राचार्य डा.बी.एस.नैन इस चौपाल में पधारे। कृषि उपनिदेशक, डा.रोहताश सिंह, कृषि विज्ञानं केन्द्र, पिंडारा के मुख्य विज्ञानी डा.आर.डी.कौशिक भी इस पंचायत के मार्गदर्शन हेतु निडाना पहुंचे। वर्तमान सरपंच रामभगत व् भू.पु.सरपंच रत्तन सिंह ने गावं व् विभाग की तरफ़ से मुख्य मेहमानों का पगड़ी पहना कर आदरमान किया। किसानों ने उनका फुलमालाओं से स्वागत किया। अधिकारीयों एवं किसानों की इस कृषि --पंचायत में रणबीर ने बेहीचक एवं निसंकोच निडाना की धरती पर कपास की फसल में पाए गए 24 हानिकारक व् 32 हितकारी कीटों के बारे में
पंचायत को अवगत कराया। सूत्रधारी डा.सुभाष ने अपना तफसरा रखा कि हे! पाठशाला के किसानों आपके इस कीट--ज्ञान के तो हम कायल
हैं। अब तो आप निडाना क्षेत्र में सिरसा--फतेहाबाद के मुकाबले कपास की कम पैदावार के कारणों पर बहस करो। मनबीर ने कृषि--पंचायत को बताया कि हमारे यहाँ घाट पैदावार के मुख्य कारणों में से एक है--प्रति एकड़ पौधों कि संख्या कम होना. हमने इस सीजन में साठ से ज्यादा किलों में कपास के पौधों कि गिनती की है। 504 से लेकर 3227 पौधे प्रति एकड़ पाए गये। अब आप बताइये! पौधों की इतनी कम संख्या से अच्छी--खासी पैदावार कहाँ से आएगी?
दूसरा कारण-- खरपतवारों का ठीक से नियंत्रण ना होना। बेहतर अंकुरण के लिए डा.कमल ने अपने अनुभव विस्तार से किसानों के साथ साझे किए तथा डा.राजपाल सुरा ने पंचायत को नलाई--
गुडाई के नये यंत्र व् इस पर उपलब्ध सब्सिडी बारे अवगत कराया। बहस के दायरे को विस्तार देते हुए, कृषि विज्ञानं केन्द्र के मुख्य वैज्ञानिक डा.आर.डी.कौशिक ने बेहतर पोषण प्रबंधन वास्ते किसानों से अपने खेत की मिटटी जाँच करवाने की अपील कर डाली। अचानक मिटटी जांच की प्रमाणिकता को लेकर इस पंचायत में अनावश्यक तीखी बहस चल निकली। गैरप्रमाणिकता से मिटटी जांच की आवश्यकता को नकारा नही जा सकता--डा.रोहताश सिंह ने हस्तक्षेप करते हुए किसानों से निराशा से बचने की अपील की और भविष्य में मिटटी नमूनों की सही जाँच का भरोसा दिलाया। अब भू.पु.सरपंच रत्तन सिंह ने पादक-पोषण व् कीट--नियंत्रण के लिए 5.5% जिंक--यूरिया--डी.ऐ.पी.घोल (0.5%जिंक: 2.5%यूरिया:व् 2.5%डी.ऐ.पी.) के स्प्रे परिणाम पंचायत में बहस के लिए रखे। उन्होंने बताया कि इस घोल का छिडकाव करने से कपास की फसल में छोटे--छोटे कीट (तेला, मक्खी, चुरडा, माईट व् चेपा आदि) मरते हुए पाए गए तथा स्लेटी भुंड
जैसे कीट सुस्त अवस्था में पाए गये. इस तथ्य को 15-20 किसानों ने तीन--चार बार अजमा कर देखा है। डा.हरभगवान ने इस प्रस्तुति की दार्शनिक अंदाज में व्याख्या देने की भरपूर कौशिक की। उन्होंने किसानों को बताया कि सभी अण्डों से बच्चे नहीं निकलते। सभी बच्चे प्रौढ़ नही बन पाते और सभी प्रौढ़ अंडे देने तक जिन्दा नही रह पाते। नवजात कीट तो फौके पानी से भी मर जाते हैंलेकिन पंचायत को यह उत्तर हजम नही हुआ। किसानों ने दो टूक उत्तर माँगा कि हमें यह बताओ अक पौषक तत्वों का 5% का यह घोल कीटों के लिए टाक्षिक होगा या नहीं? इस पर डा.कौशिक ने आगे बात बढाई कि कृषि विश्वविद्यालय तो इस घोल की शिफारिस नही करता। इस घोल से तो पौधों पर घातक परिणाम आने चाहियें।
अब चंद्रपाल ने उसके खेत में देसी माल का छत्ता होने के बावजूद शहद की मक्खियों का बी.टी.कपास के फूलों पर न आने का मुद्दा उठाया। इस बात की पुष्टि आज इस खेत पर गए कृषि विकास अधिकारीयों की टीम ने भी की। इस मुद्दे का भी आज की इस पंचायत में कोई सर्वमान्य व् संतोषजनक जवाब नही मिल पाया।
डा.नविन यादव ने कपास के बी.टी.बीजों में पौधों की जड़ों की कम लम्बाई के तथ्य को रेखांकित करना चाहा। उन्होंने आशंका प्रकट की कि कही ये बी.टी.बीजों की विशेषता ही ना हो। इस पर डा.दलाल ने हस्तक्षेप करते हुए फ़रमाया की यह सिंचाई सुविधावों व् भारी मशीनरी के निरंतर इस्तेमाल से पथराई भूमि भी एक कारण हो सकता है।
बी.टी.की खाम्मियों का जिक्र चलते ही गावं के भू.पु.सरपंच बसाऊ का जोश बुढ़ापे में जोर मारने लगा। कहने लगे कि यु नया कीड़ा मिलीबग भी इन बी.टी.बीजों के साथ भारत में आया सै।
पाण्डु-पिंडारा के कृषि विज्ञानं केन्द्र से आए डा.जगत सिंह ने बसाऊ कि इस जानकारी को दुरस्त करने की नियत से फ़रमाया कि यह मिलीबग तो हिन्दुस्तान में 1995 यानि की बाढ़ वाली साल से पहले भी देखा गया है और इसकी रिपोर्ट विभिन्न रसालों की हुई है।
खुली पंचायत और खुल कर बात कहने की सब को छुट। इसी मौके का फायदा उठाते हुए डा.दलाल ने भी फिन्नोकोक्स सोलेनोपसिस नामक मिलीबग की रिपोर्टिंग की मांग डा.जगत सिंह से कर डाली। डा.दलाल तो यहाँ तक भी कह गये कि 1995 की छोडो अगर भारत में किसी ने यह फिनोकोक्स सोलेनोप्सिस नाम का मिलीबग किसी ने 2002 से पहले हमारे देश में देखा हो तो वह कुँए में पड़ने को तैयार?
आज के इस प्रोग्राम में मज़ा आ गया। समय का किसी को भी ध्यान नही रहा। ठीक साढ़े तीन बजे डा.सुनील दलाल ने रसगुल्लों से सभी प्रतिभागियों का मुहं मिट्ठा करवाना शुरू किया। इसी समय कृषि उपनिदेशक डा.रोहताश सिंह ने जिले में चल रही कृषि विभाग की विभिन्न स्किम्मों की जानकारी दी। उन्होंने आज के इस प्रोग्राम में उभरे बहस के मुख्य बिन्दुओं को वर्कशाप में उठाने की भी बात कही। प्रोग्राम की भूरी-भूरी प्रशंसा करते हुए हमेटी के प्राचार्य डा.बी.एस.नैन ने निडाना के इन किसानों को एक दिन हमेटी में आने का निमंत्रण दिया। आज के इस कार्यकर्म के अंत में सभी प्रतिभागियों का धन्यवाद करते हुए डा.सुरेन्द्र दलाल ने डा.नार्मन बोरलाग की मृत्यु पर शोक प्रस्ताव रखा जिस पर सभी ने दो मिनट का मौन धारण कर इस महान कृषि वैज्ञानिक को श्रधांजलि भेंट की।