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19.12.09

रक्तदान शिविर में हुए 62 यूनिट एकत्रित

सिरसा: शिव शक्ति ब्लड बैंक सिरसा तथा नेहरू युवा केन्द्र सिरसा के संयुक्त तत्वाधान में तथा डॉ. सहारण के नेतृत्व में गत दिवस जिले के गांव झिड़ी में रक्तदान शिविर का आयोजन किया गया जिसकी अध्यक्षता ग्राम पंचायत झिड़ी के सरपंच गुरचरण सिंह, पटवारी पवन कुमार तथा बाबा दीप सिंह युवा क्लब झिड़ी के प्रधान लखविन्द्र सिंह ने की। इस रक्तदान शिविर में कुल 62 यूनिट रक्त एकत्र किया गया। इस अवसर पर सरपंच गुरचरण सिंह ने अपने सम्बोधन में कहा कि यह बड़ी खुशी की बात है कि शिव शक्ति ब्लड बैंक की ओर से विभिन्न प्रकार के शिविर गांवों में लगाए जा रहे हैं जिससे आम लोगों में जागरूकता आ रही है तथा लोग रक्त दान को लेकर प्रोत्साहित हो रहे हैं। इस अवसर पर उपायुक्त कार्यालय के प्रवक्ता अमित कौशिक ने सभी लोगों को जानकारी दी कि प्रत्येक रक्तदाता उनकी नई वेबसाईट पर अपना नाम व पूरा रिकार्ड देख सकता है। इस शिविर को सफल बनाने में में बलवीर सिंह नम्बरदार, सुरेन्द्र सिंह नम्बरदार, भागीरथ सिंह पटवारी, मालसिंह पटवारी का विशेष योगदान रहा। उक्त जानकारी शिव शक्ति ब्लड बैंक के कार्यकारी अधिकारी व प्रेस प्रवक्ता प्रेम कटारिया ने दी।

ग़ज़ल

लबादा पैसों का जबसे ओढ़ा है
हर भावों को पैसों से तोला है.

ये भी सच है एक हद तक
इसी पैसे ने हमको तुमसे जोड़ा है.

लेकिन ये भी सच है, पैसे ने
तुम तक पहुंचने में डाला रोड़ा है.

कितना बचेगा तू पैसों के कफ़स' से
बड़े - बड़ों का ईमान इससे डोला है.

न भरने वाला है ये जख्म
अमीरी ग़रीबी के तन में फोड़ा'' है.

सच्चाई की जुबां भी बदली है
गवाही का मुंह इसने मोड़ा है.

न रखना जेब में अधिक जगह "प्रताप"
रिश्तों को भरी जेबों ने तोडा है.

'-- कैद.
''-- घाव.


 प्रबल प्रताप सिंह

लो क सं घ र्ष !: देश के साथ विश्वासघात

केंद्र सरकार के पूर्व रेल मंत्री श्री लालू प्रसाद यादव ने 2004 से 2008 तक भारतीय रेल को हजारों करोड़ रुपये के मुनाफे में दिखाया थातब प्रिंट और इलेक्ट्रोनिक मीडिया ने बड़े जोर-शोर से लालू प्रसाद के अर्थ शास्त्र के प्रशंसा के गीत गए थे । रेल मंत्री लालू प्रसाद यादव के समय प्रधानमंत्री डॉक्टर मनमोहन सिंह थे और आज भी प्रधानमंत्री वह हैं और रेल मंत्री सुश्री ममता बनर्जी ने संसद में श्वेत पत्र पेश कर पूर्व कार्यकाल प्रधानमंत्री के समय के घोटाले को संसद के अन्दर बेनकाब कर रही हैंयह भी हो सकता है कि भविष्य में आने वाला रेल मंत्री सुश्री ममता बनर्जी की पोल खोलने के लिए श्वेत पत्र लायेकबिनेट के फैसले सामूहिक होते हैंयदि यह सब बाजीगरी हुई है तो प्रधानमंत्री के ऊपर कोई भी जिम्मेदारी नियत है की नहींकांग्रेस पार्टी कि सरकार के प्रधानमंत्री रहे पी वी नरसिम्हाराव, बाबरी मस्जिद का ध्वंस होता रहा और वह मूकदर्शक बने रहेवही स्तिथि वर्तमान प्रधानमंत्री की है कि घोटाले दर घोटाले होते रहे उनको मौन ही रहना हैऐसे बेबस प्रधानमंत्रियों से क्या देश प्रगति कर सकता हैइस तरह से देश के साथ विश्वासघात हो रहा हैश्री लालू प्रसाद यादव कुछ को कुछ संसद जीता लाये होते तो क्या ममता बनर्जी रेलवे का श्वेत पत्र जारी करती क्योंकि वह भी कबिनेट मंत्री होतेइन वर्तमान राज़नीतज्ञों का दोहरा चरित्र है जब तक कुर्सी नहीं मिलती है तब तक इनसे बड़ा देश प्रेमी कोई नहीं हैकुर्सी आयी की बजट तक में हेरा-फेरी करने लगते हैं

सुमन
loksangharsha.blogspot.com

अशोक तंवर ने किया कालांवाली का तूफानी दौरा

सिरसा: युवा सदस्यता अभियान का मुख्य उद्देश्य नए नेतृत्व को सामने लाना और युवाओं की संगठन में भूमिका को बढ़ावा देना है ताकि युवा सशक्त होकर देश के विकास में पनी भूमिका को अदा कर सके। ये उद्गार सिरसा के सांसद एवं अखिल भारतीय युवा कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष अशोक तंवर ने आज कालांवाली हलके के एक दर्जन गांवों के दौरे के दौरान ग्रामीणों को संबोधित करते हुए कहे। सांसद अशोक तंवर ने कहा कि ऐलनाबाद क्षेत्र विकास की दृष्टि से काफी पिछड़ा रहा है यहां से प्रतिनिधित्व करने वाले लोगों ने इस क्षेत्र के बारे में कभी सोचा ही नहीं। सांसद ने कहा कि कांग्रेस का प्रतिनिधि चुनकर विधानसभा में जाएगा तो हलके का समुचित विकास होगा। सांसद अशोक तंवर ने कहा कि फतेहाबाद जिला के गांव कुम्हारिया में लगने वाले परमाणु बिजली संयंत्र से प्रदेश में बिजली की समस्या हल होगी और सिरसा संसदीय क्षेत्र के लोगों को भी पर्याप्त मात्रा में बिजली उपलब्ध होगी। श्री तंवर ने लोगों को आश्वस्त किया शहरों की तर्ज पर गांवों का विकास करवाया जाएगा। उन्होंने कहा कि केंद्र हरियाणा में पुन: कांग्रेस की सरकार बनी है और अधूरे विकास कार्यों को सरकार जल्द पूरा करवाएगी। उन्होंने कहा कि यूपीए अध्यक्षा सोनिया गांधी के मार्गदर्शन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के नेतृत्व में और राहुल गांधी की युवाओं के प्रति आदर्श सोच के चलते देश में बड़ी परियोजनाएं चलाई जा रही हैं। सांसद अशोक तंवर ने कहा कि पूरे प्रदेश में यूथ कांग्रेस का सदस्यता अभियान चल रहा है और उन्होंने युवाओं से अपील करते हुए कहा कि युवा कंधे से कंधा मिलाकर कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी के साथ संवाद कायम कर अपनी पहचान बनाएं। उन्होंने कहा कि सदस्यता अभियान के बाद युवाओं को योग्यता क्षमता के आधार पर चुनाव लड़वाए जाएंगे। उन्होंने कहा कि कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव राहुल गांधी की सोच है कि इस सदस्यता अभियान से युवा नेतृत्व उभरकर आएगा जो देश के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। श्री तंवर ने कहा कि हरियाणा देश का 11वां राज्य है जहां युवा कांग्रेस का सदस्यता अभियान चलाया जा रहा है। इससे पहले तमिलनाडू, राजस्थान, पंजाब आदि राज्यों में सदस्यता अभियान चलाया गया था जिसके सार्थक परिणाम सामने आए हैं। इसी अभियान के तहत युवाओं का उत्साह बढ़ाने राहुल गांधी दो दिवसीय दौरे पर हरियाणा में रहे हैं। इस अवसर पर उनके साथ पूर्व विधायक डॉ. सुशील इंदौरा, कांग्रेस पार्टी के जिलाध्यक्ष होशियारी लाल शर्मा, सिरसा शहरी ब्लॉक प्रधान भूपेश मेहता, हरियाणा प्रदेश व्यापार मंडल के जिलाध्यक्ष हीरालाल शर्मा, कांग्रेस संगठन सचिव महेंद्र शर्मा, नवीन केडिय़ा, सूबे सिंह चाहरवाला, सुशील झूंथरा, लालचंद कंबोज, जयपाल लाली, भवानी सिंह, हंसराज अरोड़ा, तेजभान पनिहारी, गोपीचंद कंबोज, कंबोज सभा के प्रधान लाभचंद, विजय कंडारा सहित अनेक पार्टी कार्यकर्ता उपस्थित थे।

बार एसोसिएशन के चुनाव 16 जनवरी को

सिरसा: जिला बार एसोसिएशन सिरसा के पदाधिकारियों के चुनाव के लिए बार एसोसिएशन के प्रधान सुरेश मेहता एडवोकेट द्वारा चुनाव अधिसूचना जारी कर दी गई है। ये चुनाव 16 जनवरी 2010 को प्रात: 10 बजे से सायं 5 तक सम्पन्न होंगे। श्री मेहता ने जानकारी दी कि प्रधान, उप-प्रधान, सचिव, सह-सचिव के पदों के लिए नामांकन-पत्र दाखिल करने की अंतिम तिथि क्रमश: 21 एवं 22 दिसम्बर को प्रात: 10 बजे से दोपहर 3 बजे तक निश्चित की गई है जबकि 23 दिसम्बर को प्रात: 10 बजे से 12 बजे तक आपत्तियां, वापसी व जांच-पड़ताल की जाएगी। उम्मीदवारों की अंतिम सूची 23 दिसम्बर को सायं 4.15 बजे नोटिस बोर्ड पर लगा दी जाएगी। श्री मेहता ने कहा कि जो भी नए अधिवक्ता 10 जनवरी 2010 तक बार एसोसिएशन की सदस्यता ग्रहण करेंगे वे ही मतदान में भाग ले सकेंगे।

पत्रकारिता कैसी होनी चाहिए

वरिष्ठ पत्रकार चन्द्र मोहन ग्रोवर के अनुसार भारतवर्ष की पत्रकारिता तो राष्ट्रीय आंदोलनों के माध्यम से संघर्ष करके तपकर निखरी है। पत्रकारों पर ही भारतवासियों को गर्व है-जिन्होंने देश की स्वतंत्रता के लिए अहम् योगदान दिया। पत्रकार, जहां विदेशी शक्ति से मुक्त करवाने वाली आजादी के दीवाने थे, वहीं देश के नव निर्माण, संस्कृति, आदर्श और देश के प्रति समर्पण भी थे। पत्रकारों के ही अपराध थे-राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जैसे राष्ट्र सेवक, पंडित जवाहर लाल नेहरू जैसे कर्मठ देश भक्त, नेता जी सुभाष चन्द्र बोस जैसे वीर सेनानी। पत्रकारिता इन्हीं के प्रेरक विचारों को जन-जन तक पहुंचाती हुई स्वतंत्रता संग्राम में अपना योगदान दे रही थी। आजादी के बाद देश में बहुत कुछ बदलाव आया और इसी बदलाव के चलते पत्रकारिता ने भी अपना चोला बदला। उसके संजोये हुए आदर्श, मानक सिद्धांत व्यावसायिकता की झोली में समा गये। पूंजीपतियों की चंगुल में फंसकर पत्रकारिता विचार-वाहक हो गई। राष्ट्रीय चेतना का महान आलम्बन, एक सजग क्रियाशील प्रहरी अपनी अस्मिता के लिए चिंतित हो उठा। पत्रकारिता कर्तव्यों, आदर्शों और अपने जनसेवी उद्देश्यों के प्रति सच्ची निष्ठा का प्रतीक है। पत्रकारिता निस्पृह समाज सेवा है, एक तटस्थ विचारक की विचारणा और सूझबूझ का खुला गुलदस्ता है। सामाजिक चेतना की धूरी है, आस्था, तपस्या और सृजना की त्रिवेणी है, एक मिशन है, निष्काम और निस्वार्थ भाव से किये गये कार्यों का दस्तावेज है, लग्र कर्मठता तथा ईमानदारी इन तीन कर्म सूत्रों पर आधारित जीवन दर्शन है, नीर-क्षीर विवेक का प्रतिफल है, मगर वर्तमान पत्रकारिता क्षेत्र में स्वस्थ पत्रकारिता की अनदेखी हो रही है। स्वस्थ पत्रकारिता ही समाचार पत्र की लोकप्रियता और पत्रकारों की अहम् भूमिका, उसकी निस्पक्षता और पैनेपन का प्रतीक तथा जीवंतता है। कलम के सिपाही पत्रकार को बुद्धिजीवी कहा गया है। उसका अपना निर्णय दृष्टिकोण होता है और यही निर्णय, दृष्टिकोण की पत्रकारिता का अलंकार है। यदि यह निर्माणात्मक, जनहितकारी, जन जागरण और जन चेतना की मशाल साबित हुआ तो पत्रकारिता में स्वयं ही चार चांद लग जाते हैं। स्वार्थी और पीत पत्रकारिता से सफलता नहीं मिल सकती। वर्तमान में विश्व भर में विश्व कल्याण, विश्व शांति के प्रयास होने लगे हैं, ऐसी स्थिति में पत्रकारिता को अहम् भूमिका निभानी होगी, क्योंकि उसका दायरा सम्पूर्ण विश्व में सर्व सुलभ साध्य साधना समाचार पत्र है। इस वृहद दायरे का निर्वाह पत्रकार की परिधी में आ चुका है। विश्व स्तरीय पत्रकारिता किसी भी प्रकार की गहन निरीक्षण शक्ति, सूक्ष्म अवलोकन, तात्कालिक जागरूकता और राजनैतिक चेतना द्वारा ही संभव है। पत्रकारिता का ध्येय कोरी आलोचना नहीं है, वह ''ब्लैकमेल'' तो हो ही नहीं सकता, क्योंकि उसके संकीर्णता, प्रलोभन न होना, सत्य को कड़वाहट तक न ले जाने, व्यर्थ के मसाले लगाकर ''सूर्खी'' न बनाने की क्षमता हो। एक स्वच्छ मार्ग निर्मित किया जाये, स्वस्थ जनमत जागरूक करने का प्रयास ही जन प्रशंसा का पात्र बना सकती है और पत्रकारिता का उज्जवल पृष्ठ जन-मन को मोह सकेगा, इसलिए पत्रकारिता का स्वरूप सर्वजन सुखाये हो, सत्यता और वास्तिविकता के प्रतिमानो को वर्तमान के तराजू पर तोल कर प्रकाशित किया जाये, अर्नगल को अर्गल न बनाया जाये और न ही अर्गल को अतिक्रमण कर उसे रौंदा जाये। जरूरत पडऩे पर विचार-विमर्श उपरांत जनोपयोगिता के संदर्भ में निर्णय लिया जाये, अन्यथा जनमानस की मानसिकता बिगड़ते देर नहीं लगती और पत्रकारिता पर कुठाराघात भी हो सकता है।

पत्रकारिता के मान दंड

वरिष्ठ पत्रकार चन्द्र मोहन ग्रोवर के अनुसार पत्रकारिता की सबसे बड़ी शर्त है-अपने पाठकों को पहचानना। पाठक कैसी सामग्री चाहते हैं, यदि इसका ज्ञान हो जाये, तो समाचार पत्र सफल हो जाता है। प्रमाणिकता, संतुलन, स्पष्टता, मानवीय दिलचस्पी और जिम्मेवारी के साथ प्रस्तुत प्रकाशन सामग्री पाठकों के दिलों दिमाग पर एक छाप छोड़ते हैं। जाने-माने अंतर्राष्ट्रीय पत्रकार पुलिजर ने ठीक ही कहा था, कि ऊंचे आचार सिद्धांतों के बिना अखबार और उनके पत्रकार सरकारी तंत्र की तरह न सिर्फ असफल होंगे, अपितु समाज के लिए खतरनाक भी हो जायेंगे। इस दृष्टि से पत्रकारिता की चकाचौंध से प्रकाशित होकर इस पेशे में आने वाले लोगों को अपने कर्तव्यों से बारीकी से परिचित होना जरूरी है। पत्रकार चन्द्र मोहन ग्रोवर का कहना है कि इसमें कोई संदेह की गुंजाईश नहीं, कि स्वस्थ पत्रकारिता के लिए मौके पर लिखना-पढऩा, काम के प्रति लगाव, अपने निजीपूर्वाग्रह छोड़कर सत्य की खोज, हर प्रकार के तथ्यों की पुष्टि, चौबीस घंटों की प्रतिबद्धता, पुर्न लेखन तथा निसंकोच शब्दकोष की सहायता लेने जैसे गुणों की जरूरत है। एक पत्रकार को अधिक से अधिक जानने की उत्कंठा और रचनात्मक अभिरूची होना स्वाभाविक है। वहीं छोटी सी घटना की भी गहराई से पड़ताल कर दिचस्प ढंग से पेश करने की योग्यता होनी चाहिए। पत्रकार को निस्पक्ष रहते हुए ईमानदारी से काम करना चाहिए। पत्रकार कितना ही जानकार या प्रभावशाली क्यों न हो, जब तक वह अखबार की सीमा का पालन नहीं करता, वह समाचार पत्र के लिए लाभकारी सिद्ध नहीं हो सकता। समय पर समाचार देना यानि डैडलाईन को समझना पत्रकार के लिए अनिवार्य नियम है। आकस्मिक घटनाओं से अखबार घिसा पिटा लगने से ऊभ जाता है, लेकिन कई बार गर्म खबरें ही नहीं मिलती। ऐसी स्थिति में पत्रकार की रचनात्मकता और क्षमता का पता चलता है। अच्छा पत्रकार वही है, जो स्वयं निर्णय लेने में सक्षम हो। उसे इस बात की प्रतीक्षा नहीं करनी होगी कि मुख्य संवाददाता, समाचार संपादपन या संपादक क्या विषय देंगे। काम पर आते समय भी उसे किसी खबर की गांध मिल गई, तो वह खबर खोजने में लग जायेगा। खबरें खोजना तो ठीक है, परन्तु खबरों के लिए शब्दों से खेलना अवश्य गलत है। लेखक तो शब्दों से खेलते हैं, मगर पत्रकारों को अंकुश रखना होता है। सनसनी पैदा करने के लिए शब्दों से खेलना या तथ्यों को तरोडऩा-मरोडऩा समाचार पत्र के लिए ही नहीं, बल्कि पत्रकार के लिए भी खतरे की घंटी के समान व भारत वर्ष में सरकारी तंत्र से ''गोपनीयÓÓ बनी किसी भी फाईल का विवरण प्राप्त करने के लिए भ्रष्टाचार का सहारा लेना पड़ता है-जबकि कभी-कभी यह सिलसिला टकराव तक भी पहुंच जाता है। यदि कोई पत्रकार किसी व्यक्ति की निजी कम्पनी या संस्थान की जानकारी लेनी चाहे, तो उसे संयम से काम लेना होग, अन्यथा परिस्थिति में बदलाव आ सकता है। सत्ता का वश चले, तो सरकारी विज्ञप्तियों और भाषाओं के अतिरिक्त सब कुछ गोपनीय रहेगा। राष्ट्र हित के गोपनीयता की सीमाएं तय होनी चाहिए, ताकि सरकार और समाज की हर बात खुली और स्पष्ट हो सके। गोपनीय कार्यवाही से गलत सूचनाएं और अफवाहों में वृद्धि होगी और सत्ता का निरंतर दवाब बढ़ेगा, लेकिन नैतिक और सामाजिक मूल्यों के लिए प्रतिबद्धता रहने पर पत्रकार इस स्वतंत्रता का प्रयोग कर सके। मीडिया का सत्ता से प्रेम संबंध अवश्य उसकी विश्वसनीयता को घेरे में ला सकता है। राजनेताओं को समस्याओं की जानकारी देने के लिए मीडिया पर निर्भर रहना पड़ता है, विशेषकर विपक्षी दल वाले मीडिया का सहारा लेकर ही अपनी छवि बनाते हैं, मगर इसे दुर्भाग्य ही माना जायेगा कि मीडिया के माध्यम से छवि सुधारने वाले सत्ता में आते ही मीडिया आलोचना बर्दाश्त नहीं कर पाते। इसी तरह भारत में पुलिसिया तंत्र आज भी विदेशी ब्रिटिश राज के पद चिन्हों पर चल रहा है। पुलिस हर क्षेत्र की अनियमितताओं और ज्यादतियों साथ जुड़ी हुई है, क्योंकि उसके पास कानून और जुल्म का डंडा-बंदूक है। जब भी मीडिया में पुलिस ज्यादतियों के समाचार आते हैं, तो बौखलाई पुलिस में हड़कम्प मच जाता है और मीडिया के साथ कटुता बढ़ जाती है। मधुरता बढ़ाने के लिए मीडिया को अपने ढंग से अपराध समाचारों की खोजकी का सूत्र मजबूत करना चाहिये। मीडिया का काम सरकार की गलतियों की ओर ध्यान का ध्यान आकर्षित करना है, लेकिन राष्ट्र की संप्रभुता उसकी सीमा होनी चाहिए। ओलोचना करते हुए भी राष्ट्रहित में संयम रखते हुए मीडिया को विदेशी ताकतों की इच्छा या जाने-अनजाने उनके हितों की पूर्ति के लिए सरकार और उनकी नीतियों की आलोचना से बचना चाहिए।