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16.12.09

विजय दिवस के उपलक्ष्य में शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित

सिरसा: सन् 1971 में भारत और बंगलादेश के बीच हुए युद्ध में अपने प्राणों की आहुति देने वाले वीर शहीदों को नम्न करते हुए आज स्थानीय लघु सचिवालय परिसर में स्थापित शहीद स्मारक पर विजय दिवस के उपलक्ष्य में आयोजित एक समारोह में श्रद्धांजलि अर्पित की गई। इस अवसर पर उपायुक्त श्री युद्धवीर सिंह ख्यालिया ने शहीदों को श्रद्धांजलि देते हुए पुष्प अर्पित किए तथा पुलिस टुकड़ी द्वारा बिगुल पर शोक धुन बजाई और शस्त्र झुकाकर शहीदों को याद किया। इस अवसर पर उपायुक्त श्री ख्यालिया ने कहा कि इस दिन देश भर में शहीदों के सम्मान में कार्यक्रम आयोजित करके उनकी शहादत को याद करते हुए उन्हें नम्न किया जाता है। आज सभी ज्ञात-अज्ञात शहीदों द्वारा दिखाए गए मार्ग पर चलने का संकल्प लेने का दिन है। उन्होंने कहा कि हरियाणा का इतिहास शौर्य गाथाओं से भरा रहा है और हरियाणा की भूमि जांबाज शूरवीरों, योद्धाओं और रणबांकूरों की भूमि रही है। प्रदेश की माटी का कण-कण वीरत्व से जगमगाता है यहां प्राचीन काल से ही राष्ट्र प्रेम,बलिदान और वीरता की परम्पराएं चिरस्थायी है। उन्होंने कहा कि हमें शहीदों के सपनों व उनके परिवारों के सम्मान को सर्वाेपरि रखना चाहिए। शहीदों की शहादत की वजह से ही आज भारतवर्ष का प्रत्येक नागरिक खुली हवा में सांस ले रहा है। उन्होंने कहा कि प्रथम स्वतंत्रता संग्राम व स्वाधीनता संग्राम के वीर शहीदों ने अपनी मातृभूमि की रक्षा करते हुए अपनी प्राणों की आहुति देते हुए अपना नाम स्वर्ण अक्षरों में अंकित करवाया। ऐसे सभी देशभक्त शहीदों की गौरवगाथा का व्याख्यान जितना भी किया जाए उतना ही कम होगा। इस अवसर पर अतिरिक्त उपायुक्त जे.गणेशन, अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक सज्जन सिंह, कर्नल सुदर्शन मारवा, कर्नल चौधरी, विंग कमांडर संधू, जिला सैनिक बोर्ड के सैके्रटरी गु्रप कैप्टन ओमप्रकाश, सदस्य राज्य सैनिक बोर्ड के नायब सुबेदार रघुवीर सिंह, लीग सैके्रटरी हरचंद सैनी, नोडल अधिकारी कैप्टन अनूप सिंह सहित जिला के अधिकारियों व कर्मचारियों ने पुष्प अर्पित करके शहीदों को नमन किया।

कुलदीप बिश्रोई करेंगे बैठक को संबोधित

सिरसा: हरियाणा जनहित कांग्रेस (बीएल) के सुप्रीमों चौ. कुलदीप बिश्नोई आगामी 19 दिसम्बर शनिवार को प्रात: दस बजे स्थानीय कुम्हार धर्मशाला में कार्यकताओं की बैठक को संबोधित करेंगे। यह जानकारी देते हुए हजकां के जिलाध्यक्ष वीरभान मेहता ने बताया कि चौ. कुलदीप बिश्रोई के यहां पहुंचाने पर कार्यकर्ताओं द्वारा उनका भव्य स्वागत किया जाएगा। उन्होंने बताया हजकां सुप्रीमों पार्टी को संगठानात्मक रूप से मजबूत करने के लिए विशेष दिशा निर्देश देंगे। श्री मेहता ने सभी हजकां कार्यकर्ताओं को इस बैठक में अधिक से अधिक संख्या में पहुंचने का आह्वान किया है।

15.12.09

डेरा सच्चा सौदा फ्री आई कैंप का तीसरा दिन

सिरसा: डेरा सच्चा सौदा में आयोजित 18वें याद-ए-मुर्शिद परम पिता शाह सतनाम जी महाराज फ्री आई कैंप के तीसरे दिन समचार लिखे जाने तक 1121 लोगों के आपे्रशन हो चुके थे। मंगलवार तक 7431 लोगों का रजिस्ट्रैशन हुआ तथा 1598 लोगों को ऑप्रेशन के लिए चयनित किया गया । संत गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां ने भी सचखण्ड हॉल में पहुंचकर मरीजों की कुशलक्षेम जानी व उन्हें अपना पावन आशीर्वाद दिया। शाह सतनाम सिंह जी महाराज की याद में हर वर्ष डेरा सच्चा सौदा में 13 से 15 दिसम्बर तक आयोजित होने वाले तीन दिवसीय आंखों के विशाल शिविर की कड़ी में आयोजित हो रहे 18वें शिविर में आए मरीज व चिकित्सीय सेवाएं देने पहुंचे नेत्र रोग विशेषज्ञ शिविर में किए गए प्रबंधों की तारीफ करते नहीं थक रहे हैं। महिला व पुरूष मरीजों के लिए अलग-अलग वार्ड बनाए गए हैं तथा सैंकड़ों की संख्या में शाह सतनाम जी ग्रीन एस वैल्फेयर फोर्स विंग के सेवादार भाई-बहन भी देखभाल में जूटे हुए हैं। उन्हें दवाईयां देने, लंगर भोजन करवाने व शौच इत्यादि करवाने तक की सेवा सेवादार निभा रहें हैं। कैंप में पहुंचे मरीजों का कहना है कि ऐसी सुविधाएं उन्होंने पहले कहीं नहीं देखी तथा अगर वे अपने घर में रहकर भी आंखों के आपे्रशन करवाते तो शायद उनके बच्चे भी उनकी इतनी सेवा नहीं कर पाते। वहीं इस चिकित्सीय शिविर में सेवाएं देने पहुंचे देश के प्रख्यात नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉक्टरों का कहना है कि आम तौर पर आयोजित होने वाले आंखो के शिविरों में 100-200 लोगों के ही आपे्रशन किए जाते हैं लेकिन डेरा सच्चा सौदा में रोजाना 500 ऑप्रेशन हो रहे हैं जोकि अपने आप में एक रिकॉर्ड है। उन्होंने कहा कि उन्होंने ऐसी सेवा भावना अन्यत्र किसी समाजसेवी संस्था के सेवादारों में नही देखी। कैंप के बारे में जानकारी देते हुए प्रवक्ता डॉ। पवन इन्सां ने बताया कि तीसरे दिन मंगलवार को दोपहर तक 7231 लोगों का रजिस्ट्रेशन किया गया। जिनमें 3490 पुरूष, 3941 महिलाएं थी। उन्होंने बताया कि इनमें से 1597 मरीजों का ऑप्रेशन के लिए चयन किया गया है जिनमें 790 पुरूष व 809 महिलाएं हैं। श्री इन्सां ने बताया कि दोपहर बाद तक 1121 लोगों के ऑप्रेशन हो चुके थे। जिनमें 482 पुरूष व 639 महिलाएं शामिल है। प्रवक्ता ने बताया कि मरीजों के ऑप्रेशन के बाद उनकी दवाईयां, भोजन तथा रहने इत्यादि के इंतजाम डेरा सच्चा सौदा द्वारा किए गए हैं।

लो क सं घ र्ष !: गंगा ही नहीं हमारा जीवन ही प्रदूषित कर दिया गया है

मानव सभ्यता नदियों के किनारे जन्मी है, पली है और बढ़ी है पानी के बगैर हम रह नहीं सकते हैंविश्व में बड़े-बड़े शहर और आबादी समुद्र के किनारे है या नदियों के किनारे पर स्तिथ है । कभी भी जल के श्रोत्रों को कोई गन्दा नहीं करता था लेकिन जब पूँजीवाद ने अपने विचारों के तहत मुनाफा को जीवन दर्शन बना दिया है, तब से हर चीज बिकाऊ हो गयी है जल श्रोत्रों को भी गन्दा करने का काम उद्योगपतियों, इजारेदार पूंजीपतियों ने मुनाफे में अत्यधिक वृद्धि के लिए गन्दा कर दिया हैहमारा जनपद बाराबंकी जमुरिया नदी के किनारे पर था और अब जमुरिया नाले के किनारे हैजनपद मुख्यालय के पास एक शुगर मिल स्थापित होती है जिसका सारा गन्दा पानी जमुरिया में गिरना शुरू होता है और फिर तीन और कारखाने लगते हैं जिनका सारा कूड़ा-कचरा जमुरिया में गिरकर नाले में तब्दील कर दिया हैनगर नियोजकों ने जो पूंजीवादी मानसिकता से ग्रसित हैंउन लोगो ने शहर के सम्पूर्ण गंदे पानी को जमुरिया नदी में डाल कर उसको मरणासन्न कर डाला हैनहरों, बड़ी सड़कों, रेलवे लाइनों ने जमुरिया नदी में आने वाले पानी को भी रोककर उसके प्रवाह को समाप्त कर दिया है
ब्रिटिश साम्राज्यवाद ने अँधाधुंध तरीके से जंगलो की कटाई कर जमुरिया नदी को उथली कर दिया थावन विभाग ने कागज पर इतने पेड़ लगा दिए हैं की जनपद में कोई भी जगह पेड़ लगने से अछूती नहीं रह गयी हैजमुरिया में मछली से लेकर विभिन्न जीव जंतुओं का विनाश भी मुनाफे के चक्कर में हुआ हैजहर डाल कर पानी को विषाक्त कर मछलियां मारी गयी जिससे पानी कि सफाई का कार्य भी स्वत: बंद हो गया
गंगा गौमुख से निकल कर बंगाल कि खाड़ी तक जाती है जिसमें हजारों नदियाँ , उपनदियाँ मिलती हैंजमुरिया नदी के साथ जो कार्य हुआ वही गंगा के साथ हुआ हैजमुरिया नदी भी से गंगा बनती हैजब हमारी मां या बाप या प्राणरक्षक गंगा हो या जमुरिया उसको पहले साम्राज्यवाद ने बर्बाद किया और अब हमारे उद्योगपति, पूंजीपति और नगर नियोजक हमारी नदियों को समाप्त करने पर तुले हैंयह लोग यह चाहते हैं की पानी के ऊपर उनका सम्पूर्ण अधिपत्य हो जाए और कम से कम 20 रुपये लीटर पानी हम बेचेंआज जरूरत इस बात की है कि इन पूंजीवादी, साम्राज्यवादी शक्तियों उनके द्वारा उत्पन्न नगर नियोजकों के खिलाफ जन आन्दोलन नहीं चलाया जाता है तो हमारी गंगा बचेगी हमारी जमुरिया

सुमन
loksangharsha.blogspot.com

अभिव्यक्ति और प्रस्तुति का अनूठा हस्ताक्षर डा.विष्णु सक्सैना


सिकन्द्राराऊ(पवन पंडि़त) साहित्य की बहुत कोमल विधा है। इसलिये समय-समय पर इसकी कोमलता के साथ छेडछाड होती रही है। एक वह समय था कि कवि सम्मेलन के मंच पर गीत हस्ताक्षरों का प्रादुर्भाव हुआ करता था और एक दो हास्य कवियों को चटनी के बतौर आमंत्रित कर लिया जाता था। धीरे-धीरे ये चटनी गीत जैसे ज़ायकेदार सुपाच्य भोजन को ही चट करने लगी और गीत की स्थिति बडी दयनीय होती चली गयी। उस काल के गीत विधा के शीर्षस्थ रचनाकारों में कुछ तो इस लडाई को लड ही न सके, कुछ ने कमज़ोरी छुपाते हुये अपने को गज़ल की ओर मोड लिया, कुछ ने लडाई लडी भी तो अकेले पड जाने के कारण समाप्त हो गये। परिणामत: हास्य का झंडा बुलंद होता चला गया। बलबीर सिंह रंग, रमानाथ अवस्थी, वीरेन्द्र मिश्र, नीरज, भारत भूषण और डा. कुँवर बेचेन के बाद एक बहुत बडा अंतराल आया... एक बार को तो एसा लगने लगा कि गीत कहीं मंच से समाप्त न हो जाये। तब 80 और 90 के दशक में गीत की चिंगारी लेकर एक ऐसा युवा गीतकार मंच पर आया जिसे सुन कर सभी हतप्रभ रह गये, धीरे-धीरे इस चिंगारी ने मशाल का रूप ले लिया। प्रकृति परिवर्तन माँगती है और यह परिवर्तन ही आज हिन्दी कवि सम्मेलनों की आवश्यकता बन गया है। इस कवि के स्वर में जितनी कशिश है उतने ही अंतस तक स्पर्श करने वाले शब्द----
हमने देखें हैं पत्थर पिघलते हुये,
शीत जल में से शोले निकलते हुये,
तुम न बदलोगी ये कैसे विश्वास हो
हमने देखे हैं मौसम बदलते हुये,
इस बदले हुये मौसम में अपने इंद्रधनुषी गीतों की छटा बिखेरने वाले इस गीतकार का नाम है डा. विष्णु सक्सैना । जो हाथरस जिले की सिकन्दराराऊ तहसील के निवासी हैं। प्रायमरी से लेकर इंटर तक की शिक्षा यहीं से लेने के बाद स्नातकीय शिक्षा के लिये राजस्थान जाना पडा। उदयपुर से चिकित्सा शास्त्र में प्रथम श्रेणी की डिग्री ले यह अपने ही नगर में आकर निजी क्लीनिक में रोगियों का उपचार कर रहे हैं। इतनी व्यस्तताओं में से जो भी खाली समय बचता है उसे कविता के रस से भर लेते हैं।
पेशे से चिकित्सक डा. विष्णु सक्सैना अपने अन्दर एक नाज़ुक सा, कोमल सा दिल भी रखते हैं इसलिये इनकी कविता में दर्द भी है और उसका इलाज भी। डा. सक्सैना को कविता विरासत में मिली है। इनके दादा श्री चन्द्रभान शशिरवि तो जिकडी भजनों के सिद्ध कवि थे, उन्होंने न जाने कितनी गज़लें और लोकगीत लिखे। ग्रामीण परिवेश में जीवन यापन होने के कारण उनकी समस्त रचनाओं में गाँव की मिट्टी की सोंधी-सोंधी गंध भी समाहित थी। पिता श्री नारायण प्रकाश और माँ श्रीमती सरला सक्सैना के सुसंस्कारित प्रयासों के प्रतीक डा. विष्णु के कविता के मंच पर आने से गीत को पुनर्जीवन तो मिला ही है साथ ही श्रोता जिस मानसिकता से हास्य व ओज की कविताओं को सुनता था, आज उतने ही मनोयोग से उनके गीतों को सुनने के लिये लालायित होता है। दिनों दिन बढती लोकप्रियता का ही परिणाम है कि अपनी छोटी सी उम्र में लगातार ऊँचाइयाँ छू रहे हैं। इसलिये आज उन्हें आकाशवाणी, टीवी, तथा स्तरीय पत्र पत्रिकाओं में यथोचित सम्मान मिल रहा है।
मुस्कुराहट के पन्ने पलट दो ज़रा
बाँच लूँगा सभी प्यार की पोथियाँ,
नेह की बात होगी निबन्धों में जब
कसमसायेंगीं आपस की अनुभूतियाँ,
कविता तो एक तपस्या की तरह है, जिसमें सब कुछ भूल कर ही मोक्ष की प्राप्ति होती है। खुद को डुबोना पडता है तभी जीवन का वास्तविक आनन्द आता है। विष्णु जी की रचनाओं में भी कुछ ऐसी ही अनुभूतियाँ हैं, प्रेम की सूक्ष्म संवेदनाओं की विवेचना है---
क्यूँ बिछाकर दुपट्टा हरी घास पर
मेरे सपनों को उसमें समेटा बता?
एक चटका हुआ आँसुओं का कलश
काँपते हाथ से क्यूँ समेटा बता?
मन करता है कि बस विष्णु सक्सैना पढते रहें और हम सुनते रहें। इनके प्रेम गीतों में विशेष बात ये है कि चाहे वह संयोग पक्ष हो या वियोग पक्ष, कहीं भी मर्यादा का उल्लंघन नहीं होता।
थाल पूजा का लेकर चले आइये
मंदिरों की बनावट सा घर है मेरा।
* * * *
लाँघना ना कभी देहरी प्यार में
चाहे मीरा को मोहन मिले न मिले।
साहित्य साधना के लिये दृढता, धेर्य और त्याग की भी ज़रूरत होती है। ये सब इनकी कविताओं में पढने और सुनने से दिखाई देता है। यही कारण है कि इनके शब्द आत्मा की गहराई से निकल कर सशक्त प्रस्तुति के माध्यम से जब श्रोताओं के सामने आते हैं तो बरबस ही मुँह से आह और अन्दर से वाह निकलने लगते है---
वंदनवारें तो बांध नहीं पाया पर
चौखट पर दोनों आँखें बंधी हुयी हैं,
तुम आओगे तो एक फूल तोडोगे
सारी कलियाँ खिलने से रुकी हुयी हैं,
इनकी कविताओं में मात्र नायक नायिकाओं के प्रेम प्रसंग ही नहीं अपितु उनके माध्यम से देश की समस्याओं को भी हल करने की कोशिश की गयी है।
मस्ज़िद हैं आप तो मुझे मन्दिर ही मान लो,
हो आयतों में तुम मुझे श्लोक जान लो,
कब तक सहेंगे और रहेंगे अलग-अलग
मैं पूजूँ तुम्हें तुम मेरे दिल में अज़ान दो,
ये कहते हैं कि कवि और श्रोताओं के बीच की दूरी को कम करने के लिये हमें अपने तमाम पूर्वाग्रहों को छोड कर आम बोल चाल की भाषा का ही प्रयोग करना चाहिये जिससे श्रोता आसानी से आपकी बात आत्मसात कर लेगा, तभी कला को पूर्ण सम्मान मिलेगा।
इस व्यावासायिकता के युग में सभी गुटबन्दियों से अलग डा. सक्सैना ने हमें बताया कि उनके 'मधुवन मिले न मिले' 'स्वर अहसासों के 'खुश्बू लुटाता हूं' नामक गीत संग्रह तथा 'प्रेम कविता' 'तुम्हारे लिये' नामक सीडी बाज़ार में उपलब्ध हैं। कवि सम्मेलनों की घटती लोकप्रियता के बारे में वे कहते हैं कि इलेक्ट्रानिक मीडिया तथा अश्लील फूहड हास्य ने अच्छे श्रोता कवि सम्मेलनो से दूर कर दिये हैं।
गत दिनों अनेक सम्मानों से सम्मानित विष्णु जी ओमान, अमेरिका, इसराइल, थायलेंड, दुबई, हांगकांग, नेपाल में भी अपने रसीले गीतों की फुहार छोड कर आये हैं। साँवला सलोना, हरदम मुस्कराता, सुदर्शन तथा विलक्षण प्रतिभा का ये युवा कवि डा. विष्णु सक्सैना आज हिन्दी कविता की धडकन बन गया है। उसके प्रशंसकों की असीम शुभ कामनायें यदि फलीभूत हो गयीं तो भविष्य का ये इकलोता गीतकार होगा जिसे देख कर आंखें तृप्ति का और मन अतृप्ति का आभास करेगा--
आओ मेंहन्दी महावर की शादी करें,
उम्रभर साथ रहने का आदी करें,
फूल से पंखुरी अब न होगी अलग,
सारे उद्यान में ये मुनादी करें,
हमको जितना दिखा- सिर्फ तुमको लिखा
अब ये पन्ना यहीं मोड दें---------------

रमेश मेहता की अध्यक्षता में शोक सभा आयोजित

सिरसा: आज जिला इनेलो कार्यालय में इनेलो के कानूनी प्रकोष्ठ के जिला अध्यक्ष रमेश मेहता एडवोकेट की अध्यक्षता में एक शोक सभा हुई। इस शोक सभा में इनेलो के वरिष्ठ नेता व इनेलो कानूनी प्रकोष्ठ के पूर्व जिला अध्यक्ष श्री नेम चंद मोदी एडवोकेट एवं उनकी बहन के आकस्मिक निधन पर इनेलो के सभी पदाधिकारियों व कार्यकर्ताओं ने दो मिनट का मौन रखकर दिवंगत आत्माओं को श्रद्धासुमन अर्पित किए और ईश्वर से प्रार्थना की कि ईश्वर दिवंगत आत्माओं को अपने चरणों में स्थान दें और परिवारिक सदस्यों को यह दुख सहने की शक्ति प्रदान करे। श्री मेहता ने श्री नेम चंद मोदी को पार्टी का एक निष्ठावान कार्यकर्ता व समाज सेवी बताते हुए कहा कि पार्टी व समाज उनके द्वारा किए गए कार्यों को हमेशा याद करेंगी। इस शोक सभा में पूर्व चेयरमैन अमीर चावला, प्रदीप मेहता, लीलाधर सैनी, हरी प्रकाश बतरा, महावीर बागड़ी, मनोहर मेहता, हरदयाल मोंगा, कृष्णा फोगाट, प्रोमिला शर्मा, अशोक वर्मा, बंसी सचदेवा, डा. राधेश्याम शर्मा, डा. हरि ङ्क्षसह भारी, बलवंत सिंह यादव, औम प्रकाश सिहाग, मक्खन स्वामी, विजय बांसल, नरेंद्र मेहता, दिनेश बांसल, चंद्र जैन, गंगा राम बजाज, गजानंद सोनी, सीता राम बटनवाला, कृष्ण गुम्बर, विनोद दड़बी, सुभाष कम्बोज, डिंपल कम्बोज, आत्म रोहिल्ला, संदीप कम्बोज, अशोक गांधी, गणेश सेठी, महावीर शर्मा, रणधीर सिंह विर्क, अजीत जैन, धर्मपाल कायत, सुरेश कुक्कू, श्याम इंदौरा, औम प्रकाश कपड़ेवाला, अरविंद इंदौरा, कृष्ण टांटिया, आत्मा राम सरपंच, कृष्ण ढाका, हरपाल कासनियां, नरेंद्र सैन, ब्रहमानंद सुथार, अमित गनेरीवाला, पुखराज चौहान, रमेश बिश्रोई आदि इनेलो नेता उपस्थित थे।

‘‘आस्तीन के सांप और दूध पिलाने वाले’’

अब हैं हमारे जनप्रतिनिधि महान
जो करते हैं राजनीति जाति, धर्म और क्षेत्रवाद की।
पर लागू नहीं होता कोई कानून,
न लगता है NSA, न लगता है मकोका।
आखिर जनता और रियाया है इन्ही के खिलवाड़ की चीज।
क्यूं नही लगवाते रोक, जाति, धर्म और क्षेत्रवाद की राजनीति पर?
न्हीं लगवायेंगे! क्योंकि हमाम में सब हैं नंगे।
क्या राष्ट्रीय! क्या क्षेत्रीय!
इन्होंने ही तो पाला था भस्मासुर पंजाब का,
जिसने मरवाये, बच्चे, बूढ़े, महिलाएं अनेक,
जिनकी तादात हजारों में नहीं लाखों में थी।
यही हाल कश्मीर, आसाम, मणिपुर का अभी भी है।
मरे जा रहे हैं रोज अनेक, कभी गोलियों से, कभी बारूद के धमाकों से,
उड़ते हैं चीथड़े, खून के लोथड़े, इंसानी अंगों के और इंसानियत के भी।
मरते हैं रोज वर्दी वाले या बिना वर्दी के,
हैं तो सब ही भारत मां के सपूत।
फिर ऐसा क्यूं होता है?
वर्दी वाला मरा तो इंसान मरा, बिना वर्दी के मरा तो कुत्ता मरा।
आखिर क्यूं चलवाते हैं,
प्रदर्शनकारी भीड़ पर गोली?
आखिर क्यों करवाते हैं,
फर्जी एन्काउन्टरों में सतत् हत्यायें?
आखिर क्यूं छीनते हैं,
जीवित रहने का नैसर्गिक संवैधानिक अधिकार?
कानून व्यवस्था के बहाने, फर्जी क्राइम रिकार्ड के नाम
सिर्फ और सिर्फ फर्जी आंकड़ेबाजी के लिए,
जनता को ही बेवकूफ बना झूठी वाहवाही के लिए।
जनता का ध्यान मूल मुद्दों से हटाने के लिए,
छोड़ते रहते हैं शिगूफों पर शिगूफे, ताकि आये ही न ध्यान,
रोटी, कपड़ा, मकान, स्वास्थ्य, शिक्षा और महंगाई का।
हमारे ही प्रतिनिधि, मुखिया सरकार के,
चलवाते हैं बाकायदा अभियान,
भरते हैं जेलें गरीब गुरबा जनता से,
फर्जी मुकदमें तो है बपौती, पुलिस और प्रशासन की।
क्या इस अमानवीयता के बिना कानून व्यवस्था रह जाएगी अधूरी।
खड़ा है इस भ्रष्टाचार की नींव पर,
घूस के रूपयों का बहुत बड़ा साम्राज्य।
दबी जा रही है अदालतें ढाई करोड़ मुकदमों के बोझ से,
बेगुनाह साबित होने में लग जाते हैं चार-छः साल।
फिर भी छीना ही जाता रहता है जनता का,
सामान्य जीवन जीने का संवैधानिक अधिकार
होती रहेंगी सतत् हत्यायें मानवता की फर्जी एन्काउन्टरों में।
क्यूं बढ़ावा देते रहते हैं झूठी बहादुरी को?
तमगे और आउट आॅफ टर्न प्रमोशन देकर।
आखिर क्यूं करवाते रहते हैं सतत्,
संविधान की हत्या?
जबकि संविधान से ही पाते हैं,
ताकत और शासन का अधिकार।
फिर क्यूं रख देते हैं संविधान को,
सजाकर सिर्फ अलमारी में?
जहन से निकाल ही क्यूं देते हैं,
संविधान और जनता को?
फिर भी देते फिरते हैं संविधान की दुहाई।
जनता को सिर्फ बेवकूफ बनाने की खातिर।
जबकि खुद ही नहीं करते संविधान का पालन,
करते हैं राजनीति - जाति, धर्म, क्षेत्रवाद और हत्या की।
आखिर ऐसा क्यूं है?
वर्दी वाला मरा तो इंसान मरा, बिना वर्दी के मरा तो कुत्ता मरा।
बागी भी तो हैं इंसान और भारत मां के ही सपूत।
पर उनके मन में है एक आग,
उस आग को ही क्यूं ठंडा नहीं करते?
पानी क्यूं नहीं डालते उस पर?
इंसान क्यूं मारते हैं?
क्यूं बनाते हैं, नीति दमनकारी?
आखिर जानबूझकर क्यूं करते हैं नीतिगत गलती?
वह आग पैदा तो आप ही करते हैं,
आकण्ठ व्याप्त भ्रष्टाचार की विष बेल पर।
आखिर क्यूं पिला रहे हैं दूध आस्तीन के सांपों को?
क्या राज्य की कुर्सी राष्ट्र से ज्यादा जरूरी है?
एक राज्य में कुर्सी न मिले तो क्या कम रह जाता रूतबा राष्ट्र में?
इंदिरा का बलिदान क्या कम है समझने के लिए?
क्यूं नहीं करते स्वच्छ पारदर्शी राजनीति?
क्या तब पेट न भरेगा या रोटी पड़ जाएगी कम?
जिन्ना ने मरवाया था बीस लाख, ठाकरे और राज मरवायेंगे करोड़ों।
जिन्ना ने करवाया था देश के दो टुकड़े, प्रान्त में छिपे जिन्ना करवायेंगे अनेक।
फिर क्यूं नहीं लगवाते रोक, जाति, धर्म और क्षेत्रवाद की राजनीति पर?
नजर बन्द करें इन भस्मासुरों को या डालें काल कोठरियों में।
इन्हें पूरी तरह काट दें समाज और देश दुनिया से।
संेसर काटें इनकी जहरीली वाणी का,
नहीं घुलेगा जहर समाज में नहीं लगेगी आग।
अभियान7 चलाना है तो चलाएं इनके ही खिलाफ,
और शासन तन्त्र में आकण्ठ व्याप्त भ्रष्टाचार के ही खिलाफ।
जो है राष्ट्रद्रोह से भी बढ़कर राष्ट्र के जन-जन के प्रति अपराध,
यही है असली अपराधी समाज के।
ताज में कसाब से निपटाया ब्लैक कैट
बार्डर के दुश्मनों से तो निपट सकते हैं तोप और बुलेट से पर,
आस्तीन के सापों से निपटेंगे कैसे?
माहिर पुलिस रोज करती है फर्जी मुठभेड़ मरते हैं अनेक
क्या है कोई व्यवस्था देश में?
जो इन भस्मासुरों से करे वास्तविक मुठभेड़।
क्यूं बढ़ने और पकने ही दें ऐसे फोड़ों को?
जो बन जाएं नासूर रिसने लगे मवाद और खून।
शुरू में ही क्यूं नहीं नश्तर से देते चीर,
ऐसे गम्भीरतम मामलों में?
कहां खो गयी है विशेषता राष्ट्र की?
कुछ बताएंगे विधि-विशेषज्ञ,
कुछ करेंगे, हमारे विद्वान न्यायाधीश।
इतने बड़े देश में एक अरब की आबादी में।
जूझ रहा है निहत्था सिर्फ एक खिलाड़ी महान।
क्या है कोई ‘‘जांबाज मानुस’’ जो करे मुठभेड़,
अन्त करे इन भस्मासुरों का आस्तीन के सांपों का।।

- महेन्द्र द्विवेदी