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7.12.09

थेहड़ की ईंटों से बना था आधुनिक सिरसा

शायद बहुत कम लोगों को ही यह जानकारी हो कि आधुनिक सिरसा शहर के बसने की बुनियाद में नगर में वर्तमान में स्थित थेहड़ की ईंटें व मलबा लगा हुआ हैं । आज से बहुत सदियों पहले नगर के उत्तरी दिशा की और स्थित थेहड़ की ईंटों व मलबे आदि से शहर में बड़ी-बड़ी हवेलियों व मकानों का निर्माण किया गया और आधुनिक शहर सिरसा की नींव डाली गई । इससे पहले मिट्टी के टीले के रूप में विद्यमान यह थेहड आज से सदियों बरस पहले एक विशाल दुर्ग था । दरअसल सिरसा शहर के उजड़ जाने के बाद 1836-37 में शहर को दोबारा बसाने की प्रक्रिया शुरू की गई । जोधपुर के अधिक्षक मेजर जनरल थोरस्वी ने जयपुर के नक्शे के आधार पर ही आधुनिक शहर सिरसा का नक्शा तैयार किया था । उस समय मलबे, मिट्टी व ईंटों की कमी थी, इसलिए उन्होनें यहा बसने वाले लोगो को थेहड़ का मलबा व ईंटें उठाने की अनुमति दी । कुछ ही समय में बहुत से लोगों ने थेहड़ की ईंटों से बडी-बडी हवेलियों व मकानों का निर्माण किया । बताया जाता हैं कि उस समय शहर में सबसे पहले गनेरीवाला परिवार आकर बसा । उन्हें भी मेंजर थोरस्वी राजस्थान के गंदेड़ी गांव से यहां लेकर आए । शहर को जयपुर के नक्शे पर बनाया गया, जिसमें आठ बाजार और चार चैराहे बनाए गए । उस समय शहर की कोई भी गली बंद नहीं थी । वर्तमान में शहर के उत्तरी दिशा में मिट्टी के टीले के रूप में थेहड़ विद्यमान हैं, वह टिला गयारवीं शताब्दी तक लाहे का एक दुर्ग था । इतिहासवेता रमेश चंद्र शालिहास के अनुसार 10वीं ईसवी से पहले किसी राजा ने दिल्ली की तरफ से आक्रमण रोकने के लिए हनुमानगढ़, सिरसा, बठिंड़ा व हांसी में विशाल किलों का निर्माण करवाया था । सिरसा में किले की उचांई 130 फीट से अधिक और क्षेत्रफल 5 वर्ग किलोमीटर से अधिक था । कहा जाता हैं कि सिरसा शहर सरस्वती नदी के किनारे बसा था और नदी के स्थान बदलनें व कोई बड़ा तुफान आने से यह किला 1173 ईसवी में जीर्ण-शीर्ण हो गया था । मिट्टी का एक विशाल टीला हैं, जिस पर शहर की आज भी कुछ लोग अपना जीवन व्यतीत कर रहे हैं । धरातल से टीले के उत्तरी भाग की उंचाई करीब 120 फीट हैं, जबकि पश्चिमी भाग की उंचाई करीब 50 से 80 फीट हैं । इस इलाके में हजारों घर हैं और विशेष बात हैं कि 100 फीट से अधिक उंचाई वाली इस जगह पर अनेक मंदिर व पीर की मजर भी हैं । बाबा सैयद पीर की यहां बहुत मान्यता हैं । पीर मजार के सेवक लीलूराम ने बताया कि वे बहुत वर्षों से यहां सेवक के रूप में काम कर रहें हैं और इस मजार की बहुत मान्यता हैं । करीब 25 हजार से अधिक लोग इस इलाके में निवास करते हैं और यह थेहड़ का क्षेत्र शहर के पांच वार्डो में आता हैं । हालांकि इस ऐतिहासिक धरोहर पर लोगो ने हजारों की संख्या में अवैध रूप से मकान बना रखे हैं। विशेष बात हैं कि बरसात के समय इस इलाके से अनेक प्रकार के अवशेष निकलते हैं। थेहड़ पर रहने वाले ही एक व्यक्ति के मुताबिक तो कुछ समय पहले उनके एक जानने वाले को एक छोटे मटके में अशर्फियां मिली थी । इतिहासवेता रमेश चन्द्र शालिहास भी ऐसी बातों को मानते हैं । उनके अनुसार चूंकि इस थेहड़ का अस्तित्व सदियों पुराना हैं, इसलिए यहां मुगलकालीन के अलावा बोद्धकालीन वस्तुएं भी मिलती हैं । उनके अनुसार प्रसिद्ध पुरातत्ववेता लीलाधर दु:खी को यहां बुद्ध की छोटी प्रतिमाएं व मुगलकालीन विशाल मटका सहित अनेक चीजें मिली थी । शालिहास ने बताया कि यहां एक मर्तबा पुरातत्व विभाग ने यहां निर्माण न करने संबधी बोडर भी लगाया, लेकिन यह अधिक कारगर नहीं हुआ । लोग थेहड़ के नीचले हिस्से को खोद खोदकर निरंतर मकान बनाते रहते हैं, इस वजह से अनेक बार थेहड़ का उपरी हिस्सा कभी गिर भी जाता हैं, लेकिन यहां के लोग अब इस प्रकार का जोखिमपूर्ण जीवन जीने के अभ्यस्त हो चुके हैं । थेहड़ के बहुत से इलाके में तो सिवरेज लाइन भी हैं और गलियां भी बनी हुई हैं । खैर यहां वर्षों से रह रहे लोगों को उजाडऩा तो कतई उचित नहीं हैं, लेकिन एक पुरातात्विक धरोहर के महत्व की उपेक्षा करना भी उचित नहीं हैं । फिलहाल थेहड़ पर शहर की बसे लोग अलग ही तरह का जीवन व्यतीत कर रहे हैं ।

धन्य हैं हमारी खुफिया एजेंसियां

हमारी खुफिया एजेंसियां 26 जनवरी , 15 अगस्त, 6 दिसम्बर जैसे मौकों पर व आतंकी मामलों में मीडिया के माध्यम से मालूम होता है की वो काफ़ी सक्रिय हैं और देश चलाने का सारा भार उन्ही के ऊपर हैखुफिया एजेंसियों की बातें और उनकी खुफिया सूचनाएं बराबर अखबार में पढने इलेक्ट्रोनिक माध्यम से सुनने को मिलती हैंछुटभैया नेता रोज प्रेस विज्ञप्ति जारी करता है और छपने पर अखबार खरीद कर जगह-जगह किसी किसी बहाने लोगो को पढवाता रहता है और उसी तरह खुफिया एजेंसियां मीडिया में अपने समाचार प्रकाशित करवाती रहती हैं। खुफिया सूचनाओं का अखबारों में प्रकाशित होना क्या इस बात का धोतक नही है कि जान बूझ कर वह प्रकाशित करवाई जाती हैं और उन सूचनाओ में कोई गोपनीयता नही हैअक्सर विशिष्ट अवसरों से पहले तमाम तरह की कार्यवाहियां मीडिया के माध्यम से मालूम होती हैं जो समाज में सनसनी भय फैलाने का कार्य करती हैं अंत में वो सारी की सारी सूचनाएं ग़लत साबित होती हैंनागरिक उस विशिष्ट अवसर से पहले इन सूचनाओ से भयभीत रहते हैं जबकि खुफिया जानकारियों का गोपनीय रहना आवश्यक होता है और किसी घटना होने के पूर्व उन अपराधियों को पकड़ कर घटना को रोकने का कार्य होना चाहिए लेकिन हमारी खुफिया तंत्र का कार्य घटना हो जाने के पश्चात् शुरू होता हैभारतीय कानूनों के तहत सबूतों को बयानों को अंतर्गत धारा 161 सी आर पी सी के तहत केस ड़ायरी में दर्ज किया जाता हैउस केस ड़ायरी को विपक्षी अधिवक्ता देख सकता है पढ़ सकता हैछोटी से लेकर बड़ी घटनाओं तक सारे सबूतों बयानों को प्रिंट इलेक्ट्रोनिक मीडिया के माध्यम से जनता को बताया जाता हैइस तरह का कृत्य भी अपराध है जिसको हमारा खुफिया तंत्र पुलिस तंत्र रोज करता हैखुफिया सूचनाओ का कोई महत्त्व नही रह जाता हैइन दोनों विभागों की समीक्षा ईमानदारी से करने की जरूरत है अन्यथा इन दोनों विभागों का कोई मतलब नही रह जाएगाअगर खुफिया तंत्र इतनी छोटी सी बात को समझ पाने में असमर्थ है तो धन्य है हमारे देश की खुफिया एजेंसियां

6.12.09

कलंक दिवस है आज

6 दिसम्बर 1992 को नियोजित तरीके से अयोध्या में बाबरी मस्जिद को तोड़ डाला गया थाभारतीय संविधान के अनुसार देश धर्म निरपेक्ष है और सभी को अपना धर्म मानने उपासना करने का संवैधानिक अधिकार हैदेश के अन्दर एक छोटा सा तबका जो पहले ब्रिटिश साम्राज्यवाद से संचालित होता था और अब अमेरिकन साम्राज्यवाद से संचालित होता है। साम्राज्यवादियों के इशारे पर देश कि एकता और अखंडता को कमजोर करने की नियत से यह प्रलाप करता है कि वह देश का यह स्वरूप बदल कर एक ऐसे धार्मिक राष्ट्र के रूप में तब्दील कर देना चाहता है कि जिससे वर्तमान देश का स्वरूप ही बचा रहेऐसे तत्वों ने देश के अन्दर गृहयुद्ध करवाने के लिए बाबरी मस्जिद विवाद खड़ा किया था। देश धार्मिक विवाद में फंसा रहे और उसकी प्रगति रुकी रहे जिससे देश साम्राज्यवादी ताकतों के सामने खड़ा न हो सके । इस विवाद से आज तक मुक्ति नही मिल पायी है और हम आर्थिक रूप से भी कमजोर हुए है और हमारी प्रगति बाधित हुई है ।
देश का वर्तमान स्वरूप 15 अगस्त 1947 को अस्तित्व में आया था जो चीजें जिस स्तिथि में थी उसको संविधान और कानून के दायरे में ही रखकर ही हल किया जा सकता है किंतु, 6 दिसम्बर की घटना ने देश में एक मजबूत सरकार होने का जो भ्रम था उसको तोड़ दियायदि उन्मादियों और दंगाइयों को राज्य द्वारा कहीं कहीं से संरक्षण प्राप्त होता तो यह घटना नही घटतीराज्य का धर्मनिरपेक्ष स्वरूप है जब उसकी उदारता या संलिप्प्ता के कारण इस तरह की घटनाएं होती हैं तो संविधान, न्यायव्यवस्था, पुरानी विरासत सब कुछ टूटता है मिलती सिर्फ़ बर्बादी हैराजनीतिक दलों ने क्षणिक फायदे के लिए दोनों तरफ़ से आग में घी डालने का कार्य किया है ताकि उनका वोट बैंक सुरक्षित हो सके6 दिसम्बर को इस देश में रहने वाले अधिकांश लोगो का विश्वाश टूटा था इसलिए यह दिन देश के लिए कलंक दिवस है और जो लोग शौर्य दिवस की बात करते हैं, वह लोग मुखौटाधारी हैंमुखौटाधारी इसलिए हैं कि जब जहाँ जैसा स्वार्थ आता है उसी के अनुसार वो बोलने लगते हैकभी वह कहते हैं कि बाबरी मस्जिद थी, कभी वह कहते हैं राम मन्दिरशौर्य दिवस के नाम पर जो जहर बोया गया है उसका विष कितने समय में समाप्त होगा यह कहना मुश्किल है। हजारो नीलकंठ हार जायेंगे उस जहर को समाप्त करने में। उस दिन देश हारा था, अराजक ,उन्मादी और देशद्रोही जीते थे । उन्ही का शौर्य दिवस है , हम हारे थे इसलिए कलंक दिवस है ।

गज़ल्

गज़ल
दीपावली के शुभ अवसर पर गज़ल गुरू पंकज सुबीर जी ने एक तरही मुशायरे का आयोजन अपने ब्लाग पर किया। जिसमे देश विदेश के उस्ताद शायरों और उनके शिश्यों ने भाग लिया। कहते हैं न कि तू कौन ,मैं खामखाह। वही काम मैने किया। अपनी भी एक गज़ल ठेल दी।जिसे गज़ल उस्ताद श्री प्राण  शर्मा जी ने संवारा । मगर सुबीर जी की दरियादिली थी कि उन्हों ने मुझे इस मे भाग लेने का सम्मान दिया।तरही का मिसरा था------ दीप जलते रहे झिलमिलाते रहे

शोखियाँ नाज़ नखरे उठाते रहे
वो हमे देख कर मुस्कुराते रहे

हम फकीरों से पूछो न हाले जहाँ
जो मिले भी हमे छोड जाते रहे

याद उसकी हमे यूँ परेशाँ करे
पाँव मेरे सदा डगमगाते रहे

हाथ से टूटती ही लकीरें रही
ये नसीबे हमे यूँ रुलाते रहे

वो वफा का सिला दे सके क्यों नहीं
बेवफा से वफा हम निभाते रहे

शाख से टूट कर हम जमीं पर गिरे
लोग आते रहे रोंद  जाते रहे

जब चली तोप सीना तना ही रहा
लाज हम देश की यूँ बचाते रहे
[ये शेर मेजर गौतम राज रिशी जी के लिये लिखा था
निमला कपिला

5.12.09

पुलिस पर कब्ज़ा करने की नई रणनीति

टेलिकॉम कंपनियों ने अपने मुनाफे के लिए आबादी क्षेत्र में नियमो-उपनियमों का उल्लंघन मोबाइल टावर लगा कर रखा हैजिससे अधिकांश जनता का जीना दूभर हो गया हैटेलिकॉम कंपनियों ने लोगो की छतों पर मोबाइल टावर लगा रखे हैंमोबाइल टावर को संचालित करने के लिए बड़े-बड़े जनरेटर छत पर रखे हैंजनरेटर चलने से उत्पन्न कंपन से पड़ोसियों के मकान चिटक रहे हैंशोर से आबादी क्षेत्र में रहने वाले लोगो को काफ़ी असुविधा होती हैमोबाइल टावर क्षेत्र में तरंगो से लगातार बन रहे बादल से मानव जीवन के ऊपर क्या प्रभाव पड़ेगा यह आने वाला समय ही बताएगामोबाइल टावर के कारण जगह-जगह विवाद उत्पन्न हो रहे हैं जिनसे निपटने के लिए टेलिकॉम कंपनियों ने पुलिस विभाग को अपने कब्जे में करने के लिए उत्तर प्रदेश शासन को प्रस्ताव दिया है कि प्रदेश के 15 सौ थानों में पुलिस लाइन्स में मोबाइल टावर लगाने के लिए किराए पर दे दिए जाएँयह उनकी सोची समझी रणनीति का हिस्सा हैनागरिको से विवाद होने पर पुलिस टेलिकॉम कंपनियों की तरफ़ ही होती है और यदि वह पुलिस विभाग के किरायेदार हो जाएँ तो मालिक और किरायेदार मिलकर नागरिको का जीना दूभर कर देंगेटेलिकॉम कंपनियों ने बहुत सोच समझ कर पुलिस विभाग पर कब्ज़ा करने की रणनीति अपनाई हैटेलिकॉम कंपनियां जनता से तरह तरह के लोक लुभावन वादे करती हैं जो वास्तव में अप्रत्यक्ष रूप से ठगी के कोटि अपराध होता हैएक छोटा सा बिन्दु लगा कर बहुत ही महीन शब्दों में लिखा होता है कि कुछ शर्तें लागू हैं जिनको उपभोक्ता ध्यान नही दे पाता है और ठगा जाता हैइस तरह से टेलिकॉम कंपनियां अपने अपराधों में पुलिस के नजदीक रहकर छिपाना चाहती हैं

4.12.09

लोकतंत्र जिसका गुन अमेरिका गाता है

अमेरिका ने अफगानिस्तान के राष्ट्रपति हामिद करजई को चेताविनी दी है कि भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ अच्छे काम- काज के नतीजे जाहिर करो अन्यथा उनकी जगह कोई और लेगाअमेरिका जिसके पास पूरी दुनिया में लोकतंत्र कायम करने का ठेका है वह अब लोकतांत्रिक ढंग से चुनी हुई सरकारों के नेताओं को यह बताएगा कि तुम्हारा काम काज ठीक नही हैतुम्हारी जगह पर हम दूसरे व्यक्ति को नेता नियुक्त करेंगेजनता द्वारा किसी भी चुनी गई सरकार को हटाने का हक़ जनता को ही होता है लेकिन साम्राज्यवादियों के अगुआ अमेरिका ने पूरी दुनिया के अधिकांश राष्ट्राध्यक्षों को अपना नौकर समझ रखा है और धीरे-धीरे वह जनता को भी गुलाम समझने लगा हैअमेरिकां साम्राज्यवादी दुनिया में लोगों को लोकतंत्र का सपना दिखाते हैं और उसके बहाने वह उस देश को गुलाम बनने कि रणनीति बनाते हैंअफगानिस्तान में हामिद करजई कि सरकार उनकी पिट्ठू सरकार है ही और अब जब अफगान समस्या का समाधान नही कर पा रहे हैं तो हामिद करजई को चेतावनी दे रहे हैंअमेरिकी लोकतंत्र का मतलब यह है कि उस देश को येन-प्रकारेण किसी भी तरह से गुलाम बनाओ और उसकी प्राकृतिक सम्पदा को लूटोजब उनका पिट्ठू गुलाम अमेरिकी गुलामी को और आगे बढ़ा पाने में असमर्थ हो जाता है तब प्रयोग करो और फेंको की नीति अपनाते हैंयही अमेरिकां का लोकतंत्र है, जिसका गुन वह गाता हैं

3.12.09

हिन्दी राष्ट्रीय भाषा नही है ?

महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के प्रमुख राज ठाकरे ने हिन्दी को राष्ट्रीय भाषा मानने से इनकार कर दिया है और उन्होंने कहा है की हिन्दी राष्ट्रीय भाषा नही है अपितु सरकारी भाषा हैयह बात शिव सेना, मनसे के अतिरिक्त किसी अन्य ने कही होती तो राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ , भाजपा सहित उनके तनखैया पत्रकारों का हिन्दी प्रेम जाग्रत होकर एक उन्माद पैदा करने का कार्य कर रहे होते चूँकि, मामला उन्ही लोगों से सम्बंधित है , इसलिए उनका हिन्दी प्रेम नदारद हैहमारा पहले से ही सुस्पष्ट विचार है की ऐसे तत्व विघटनकारी तत्व हैं जो देश की एकता और अखंडता को कभी धर्म के नाम पर, कभी जाति के नाम पर, कभी भाषा के नाम पर, कभी प्रान्त के नाम पर नष्ट करना चाहते हैंआज जरूरत इस बात की है कि ऐसे तत्वों को चिन्हित किया जाना आवश्यक है