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7.12.09

गौधन सेवा समिति लेगी न्यायालय की शरण

सिरसा: आगे दौड़ पीछे छोड़ की कहावत दूरसंचार विभाग की करतूतों पर आजकल खरी उतर रही है। विभाग स्वयं को हाईटैक दर्शाने की खातिर गत वर्ष से शहर में भूमिगत लाईनें बिछाने में लगा हुआ है। इस कार्यवाही के चलते विभाग ने नगर में 200-200 मीटर की दूरी पर शहर में सैंकड़ों गड्ढे खोद रखे हैं। ये गड्ढे बेसहारा बेजुबान र्जन भर गौधन की बलि ले चुके हैं तथा दो दर्जन से अधिक गौधन इसमें गिरकर घायल हो चुके हैं। इसी कड़ी में रविवार रात्रि को यह घटना फिर से दोहराई गई जब जिला पुस्तकालय के सामने लगभग 8 फुट गहरे गड्ढे में एक गाय गिर गई जिसकी सूचना सुबह जीव-जन्तु कल्याण अधिकारी एवं मारूति गौधन सेवा समिति के अध्यक्ष रमेश मेहता को मिली जिस पर उन्होंने तुरन्त मौके पर जाकर समिति के सदस्यों एवं अन्य गौभक्तों की सहायता से बुरी तरह से घायल उक्त गाय को गड्ढे में से बाहर निकाला। इस घटना के बाद शहर के गौभक्तों में भारी रोष व्याप्त है तथा गौभक्त कभी भी इसके विरोध में समिति के सदस्य आंदोलन का रूख अख्तियार कर सकते हैं। श्री मेहता ने कहा कि दूरसंचार विभाग उक्त जानलेवा गड्ढों को तुरन्त प्रभाव से ढकने की व्यवस्था करे अन्यथा इस विभागीय लापरवाही के खिलाफ समिति न्यायालय की शरण में जाने को मजबूर होगी। श्री मेहता ने जानकारी दी कि इससे पूर्व भी अनेकों बार विभाग को इस बारे में सचेत किया जा चुका है तथा पूर्व में हुई दुर्घटनाओं की खबरें भी विभिन्न समाचार-पत्रों में प्रकाशित हो चुकी हैं। इसके अतिरिक्त राह चलते लोग भी अनेकों बार इन गड्ढों की चपेट में चुके हैं।

बुजुर्गों का कर्जा उतारने के लिए शहीदी स्मारक का निर्माण अति आवश्यक:स्वामी धर्मदेव

पटौदी: भारतीय पंचनद स्मारक समिति के तत्वाधान में आश्रम हरिमन्दिर पटौदी में आयोजित दो दिवसीय चिन्तन शिविर को सम्बोधित करते हुए आश्रम हरिमन्दिर संस्थाओं के संचालक स्वामी धर्मदेव ने समाज की चिंताओं को दूर करने के लिए चिन्तन शिविर को बहुत जरूरी बताया ताकि समाज के माध्यम से राष्ट्र के लिए कार्य किए जा सकें उन्होंने कहा कि भारत के विभाजन के समय देश तथा धर्म की रक्षा के लिए कुर्बानियां देने वाले 10 लाख लोगों की याद में शहीदी स्मारक अवश्य बनकर रहेगा। यदि मुख्यमंत्री ने स्मारक के लिए कुरूक्षेत्र में भूमि दी तो समिति का एक शिष्ट मण्डल प्रधानमंत्री से मिलेगा। फिर भी यदि बात बनी तो भूख हड़ताल एवं बड़ा आंदोलन किया जाएगा। इस शिविर में संत समिति हरिद्वार के महामंत्री स्वामी हंसदास जी महाराज ने कहा कि बुजुर्गों का कर्जा उतारने के लिए स्मारक का निर्माण अति आवश्यक है। स्मारक के निर्माण से ही नई पीढ़ी को पुरखों की कुर्बानियां तथा संस्कृति की याद आएगी। इस अवसर पर राष्ट्रीय अध्यक्ष अश्विनी कुमार ने कहा कि यदि स्मारक के लिए सरकार ने भूमि दी तो वे आंदोलन कर धरना देने वाले पहले शख्स होंगे। उन्होंने समाज की एकजुटता पर भी बल दिया तथा कहा कि पंजाबी सामाजिक तौर पर एकजुट हों। यदि पंजाबी एकजुट हुए तो उन्हें सत्ता से कोई नहीं रोक सकता। इस अवसर पर राष्ट्रीय उपाध्यक्ष एवं कार्यकारी अध्यक्ष डा० राम आहुजा, उपाध्यक्ष डा० सर्वानन्द आर्य, राष्ट्रीय महासचिव शाम बजाज, डा० मार्केण्डेय आहुजा, हरियाणा प्रदेश महिला अध्यक्ष संगीता नरूला, धर्मपाल मेहता, राजेश मेहता, ओमप्रकाश वधवा, विजय बठला, दर्शन नागपाल, विजय मेहता सहित प्रदेश भर से आए लगभग 200 कार्यकर्ता इस चिंतन शिविर में मौजूद थे।

शिविर का आयोजन

सिरसा: मुल्तानी कालोनी स्थित भगवान शिव मन्दिर ट्रस्ट द्वारा आगामी 13 दिसम्बर को प्रात: 10 बजे से दोपहर 1 बजे तक मधुमेह जांच शिविर का आयोजन किया जा रहा है जिसमें मात्र 10 रूपये में जरूरतमंद मरीजों की मधुमेह जांच की जाएगी व मधुमेह से पीडि़त मरीजों की जांच डबवाली रोड स्थित लाईफकेयर हस्पताल के प्रसिद्ध चिकित्सक डा० दिनेश गिजवानी द्वारा की जाएगी। यह जानकारी देते हुए शिविर के संयोजक राजेश मेहता ने बताया कि जांच के उपरान्त जरूरतमंद मरीजों को यथासम्भव दवाईयां नि:शुल्क दी जाएंगी। इसके अतिरिक्त हृदय रोग व पेट की बीमारियों से सम्बन्धित मरीजों की भी जांच की जाएगी। उन्होंने कहा कि इस शिविर में केवल पंजीकृत मरीजों की जांच की जाएगी।

थेहड़ की ईंटों से बना था आधुनिक सिरसा

शायद बहुत कम लोगों को ही यह जानकारी हो कि आधुनिक सिरसा शहर के बसने की बुनियाद में नगर में वर्तमान में स्थित थेहड़ की ईंटें व मलबा लगा हुआ हैं । आज से बहुत सदियों पहले नगर के उत्तरी दिशा की और स्थित थेहड़ की ईंटों व मलबे आदि से शहर में बड़ी-बड़ी हवेलियों व मकानों का निर्माण किया गया और आधुनिक शहर सिरसा की नींव डाली गई । इससे पहले मिट्टी के टीले के रूप में विद्यमान यह थेहड आज से सदियों बरस पहले एक विशाल दुर्ग था । दरअसल सिरसा शहर के उजड़ जाने के बाद 1836-37 में शहर को दोबारा बसाने की प्रक्रिया शुरू की गई । जोधपुर के अधिक्षक मेजर जनरल थोरस्वी ने जयपुर के नक्शे के आधार पर ही आधुनिक शहर सिरसा का नक्शा तैयार किया था । उस समय मलबे, मिट्टी व ईंटों की कमी थी, इसलिए उन्होनें यहा बसने वाले लोगो को थेहड़ का मलबा व ईंटें उठाने की अनुमति दी । कुछ ही समय में बहुत से लोगों ने थेहड़ की ईंटों से बडी-बडी हवेलियों व मकानों का निर्माण किया । बताया जाता हैं कि उस समय शहर में सबसे पहले गनेरीवाला परिवार आकर बसा । उन्हें भी मेंजर थोरस्वी राजस्थान के गंदेड़ी गांव से यहां लेकर आए । शहर को जयपुर के नक्शे पर बनाया गया, जिसमें आठ बाजार और चार चैराहे बनाए गए । उस समय शहर की कोई भी गली बंद नहीं थी । वर्तमान में शहर के उत्तरी दिशा में मिट्टी के टीले के रूप में थेहड़ विद्यमान हैं, वह टिला गयारवीं शताब्दी तक लाहे का एक दुर्ग था । इतिहासवेता रमेश चंद्र शालिहास के अनुसार 10वीं ईसवी से पहले किसी राजा ने दिल्ली की तरफ से आक्रमण रोकने के लिए हनुमानगढ़, सिरसा, बठिंड़ा व हांसी में विशाल किलों का निर्माण करवाया था । सिरसा में किले की उचांई 130 फीट से अधिक और क्षेत्रफल 5 वर्ग किलोमीटर से अधिक था । कहा जाता हैं कि सिरसा शहर सरस्वती नदी के किनारे बसा था और नदी के स्थान बदलनें व कोई बड़ा तुफान आने से यह किला 1173 ईसवी में जीर्ण-शीर्ण हो गया था । मिट्टी का एक विशाल टीला हैं, जिस पर शहर की आज भी कुछ लोग अपना जीवन व्यतीत कर रहे हैं । धरातल से टीले के उत्तरी भाग की उंचाई करीब 120 फीट हैं, जबकि पश्चिमी भाग की उंचाई करीब 50 से 80 फीट हैं । इस इलाके में हजारों घर हैं और विशेष बात हैं कि 100 फीट से अधिक उंचाई वाली इस जगह पर अनेक मंदिर व पीर की मजर भी हैं । बाबा सैयद पीर की यहां बहुत मान्यता हैं । पीर मजार के सेवक लीलूराम ने बताया कि वे बहुत वर्षों से यहां सेवक के रूप में काम कर रहें हैं और इस मजार की बहुत मान्यता हैं । करीब 25 हजार से अधिक लोग इस इलाके में निवास करते हैं और यह थेहड़ का क्षेत्र शहर के पांच वार्डो में आता हैं । हालांकि इस ऐतिहासिक धरोहर पर लोगो ने हजारों की संख्या में अवैध रूप से मकान बना रखे हैं। विशेष बात हैं कि बरसात के समय इस इलाके से अनेक प्रकार के अवशेष निकलते हैं। थेहड़ पर रहने वाले ही एक व्यक्ति के मुताबिक तो कुछ समय पहले उनके एक जानने वाले को एक छोटे मटके में अशर्फियां मिली थी । इतिहासवेता रमेश चन्द्र शालिहास भी ऐसी बातों को मानते हैं । उनके अनुसार चूंकि इस थेहड़ का अस्तित्व सदियों पुराना हैं, इसलिए यहां मुगलकालीन के अलावा बोद्धकालीन वस्तुएं भी मिलती हैं । उनके अनुसार प्रसिद्ध पुरातत्ववेता लीलाधर दु:खी को यहां बुद्ध की छोटी प्रतिमाएं व मुगलकालीन विशाल मटका सहित अनेक चीजें मिली थी । शालिहास ने बताया कि यहां एक मर्तबा पुरातत्व विभाग ने यहां निर्माण न करने संबधी बोडर भी लगाया, लेकिन यह अधिक कारगर नहीं हुआ । लोग थेहड़ के नीचले हिस्से को खोद खोदकर निरंतर मकान बनाते रहते हैं, इस वजह से अनेक बार थेहड़ का उपरी हिस्सा कभी गिर भी जाता हैं, लेकिन यहां के लोग अब इस प्रकार का जोखिमपूर्ण जीवन जीने के अभ्यस्त हो चुके हैं । थेहड़ के बहुत से इलाके में तो सिवरेज लाइन भी हैं और गलियां भी बनी हुई हैं । खैर यहां वर्षों से रह रहे लोगों को उजाडऩा तो कतई उचित नहीं हैं, लेकिन एक पुरातात्विक धरोहर के महत्व की उपेक्षा करना भी उचित नहीं हैं । फिलहाल थेहड़ पर शहर की बसे लोग अलग ही तरह का जीवन व्यतीत कर रहे हैं ।

धन्य हैं हमारी खुफिया एजेंसियां

हमारी खुफिया एजेंसियां 26 जनवरी , 15 अगस्त, 6 दिसम्बर जैसे मौकों पर व आतंकी मामलों में मीडिया के माध्यम से मालूम होता है की वो काफ़ी सक्रिय हैं और देश चलाने का सारा भार उन्ही के ऊपर हैखुफिया एजेंसियों की बातें और उनकी खुफिया सूचनाएं बराबर अखबार में पढने इलेक्ट्रोनिक माध्यम से सुनने को मिलती हैंछुटभैया नेता रोज प्रेस विज्ञप्ति जारी करता है और छपने पर अखबार खरीद कर जगह-जगह किसी किसी बहाने लोगो को पढवाता रहता है और उसी तरह खुफिया एजेंसियां मीडिया में अपने समाचार प्रकाशित करवाती रहती हैं। खुफिया सूचनाओं का अखबारों में प्रकाशित होना क्या इस बात का धोतक नही है कि जान बूझ कर वह प्रकाशित करवाई जाती हैं और उन सूचनाओ में कोई गोपनीयता नही हैअक्सर विशिष्ट अवसरों से पहले तमाम तरह की कार्यवाहियां मीडिया के माध्यम से मालूम होती हैं जो समाज में सनसनी भय फैलाने का कार्य करती हैं अंत में वो सारी की सारी सूचनाएं ग़लत साबित होती हैंनागरिक उस विशिष्ट अवसर से पहले इन सूचनाओ से भयभीत रहते हैं जबकि खुफिया जानकारियों का गोपनीय रहना आवश्यक होता है और किसी घटना होने के पूर्व उन अपराधियों को पकड़ कर घटना को रोकने का कार्य होना चाहिए लेकिन हमारी खुफिया तंत्र का कार्य घटना हो जाने के पश्चात् शुरू होता हैभारतीय कानूनों के तहत सबूतों को बयानों को अंतर्गत धारा 161 सी आर पी सी के तहत केस ड़ायरी में दर्ज किया जाता हैउस केस ड़ायरी को विपक्षी अधिवक्ता देख सकता है पढ़ सकता हैछोटी से लेकर बड़ी घटनाओं तक सारे सबूतों बयानों को प्रिंट इलेक्ट्रोनिक मीडिया के माध्यम से जनता को बताया जाता हैइस तरह का कृत्य भी अपराध है जिसको हमारा खुफिया तंत्र पुलिस तंत्र रोज करता हैखुफिया सूचनाओ का कोई महत्त्व नही रह जाता हैइन दोनों विभागों की समीक्षा ईमानदारी से करने की जरूरत है अन्यथा इन दोनों विभागों का कोई मतलब नही रह जाएगाअगर खुफिया तंत्र इतनी छोटी सी बात को समझ पाने में असमर्थ है तो धन्य है हमारे देश की खुफिया एजेंसियां

6.12.09

कलंक दिवस है आज

6 दिसम्बर 1992 को नियोजित तरीके से अयोध्या में बाबरी मस्जिद को तोड़ डाला गया थाभारतीय संविधान के अनुसार देश धर्म निरपेक्ष है और सभी को अपना धर्म मानने उपासना करने का संवैधानिक अधिकार हैदेश के अन्दर एक छोटा सा तबका जो पहले ब्रिटिश साम्राज्यवाद से संचालित होता था और अब अमेरिकन साम्राज्यवाद से संचालित होता है। साम्राज्यवादियों के इशारे पर देश कि एकता और अखंडता को कमजोर करने की नियत से यह प्रलाप करता है कि वह देश का यह स्वरूप बदल कर एक ऐसे धार्मिक राष्ट्र के रूप में तब्दील कर देना चाहता है कि जिससे वर्तमान देश का स्वरूप ही बचा रहेऐसे तत्वों ने देश के अन्दर गृहयुद्ध करवाने के लिए बाबरी मस्जिद विवाद खड़ा किया था। देश धार्मिक विवाद में फंसा रहे और उसकी प्रगति रुकी रहे जिससे देश साम्राज्यवादी ताकतों के सामने खड़ा न हो सके । इस विवाद से आज तक मुक्ति नही मिल पायी है और हम आर्थिक रूप से भी कमजोर हुए है और हमारी प्रगति बाधित हुई है ।
देश का वर्तमान स्वरूप 15 अगस्त 1947 को अस्तित्व में आया था जो चीजें जिस स्तिथि में थी उसको संविधान और कानून के दायरे में ही रखकर ही हल किया जा सकता है किंतु, 6 दिसम्बर की घटना ने देश में एक मजबूत सरकार होने का जो भ्रम था उसको तोड़ दियायदि उन्मादियों और दंगाइयों को राज्य द्वारा कहीं कहीं से संरक्षण प्राप्त होता तो यह घटना नही घटतीराज्य का धर्मनिरपेक्ष स्वरूप है जब उसकी उदारता या संलिप्प्ता के कारण इस तरह की घटनाएं होती हैं तो संविधान, न्यायव्यवस्था, पुरानी विरासत सब कुछ टूटता है मिलती सिर्फ़ बर्बादी हैराजनीतिक दलों ने क्षणिक फायदे के लिए दोनों तरफ़ से आग में घी डालने का कार्य किया है ताकि उनका वोट बैंक सुरक्षित हो सके6 दिसम्बर को इस देश में रहने वाले अधिकांश लोगो का विश्वाश टूटा था इसलिए यह दिन देश के लिए कलंक दिवस है और जो लोग शौर्य दिवस की बात करते हैं, वह लोग मुखौटाधारी हैंमुखौटाधारी इसलिए हैं कि जब जहाँ जैसा स्वार्थ आता है उसी के अनुसार वो बोलने लगते हैकभी वह कहते हैं कि बाबरी मस्जिद थी, कभी वह कहते हैं राम मन्दिरशौर्य दिवस के नाम पर जो जहर बोया गया है उसका विष कितने समय में समाप्त होगा यह कहना मुश्किल है। हजारो नीलकंठ हार जायेंगे उस जहर को समाप्त करने में। उस दिन देश हारा था, अराजक ,उन्मादी और देशद्रोही जीते थे । उन्ही का शौर्य दिवस है , हम हारे थे इसलिए कलंक दिवस है ।

गज़ल्

गज़ल
दीपावली के शुभ अवसर पर गज़ल गुरू पंकज सुबीर जी ने एक तरही मुशायरे का आयोजन अपने ब्लाग पर किया। जिसमे देश विदेश के उस्ताद शायरों और उनके शिश्यों ने भाग लिया। कहते हैं न कि तू कौन ,मैं खामखाह। वही काम मैने किया। अपनी भी एक गज़ल ठेल दी।जिसे गज़ल उस्ताद श्री प्राण  शर्मा जी ने संवारा । मगर सुबीर जी की दरियादिली थी कि उन्हों ने मुझे इस मे भाग लेने का सम्मान दिया।तरही का मिसरा था------ दीप जलते रहे झिलमिलाते रहे

शोखियाँ नाज़ नखरे उठाते रहे
वो हमे देख कर मुस्कुराते रहे

हम फकीरों से पूछो न हाले जहाँ
जो मिले भी हमे छोड जाते रहे

याद उसकी हमे यूँ परेशाँ करे
पाँव मेरे सदा डगमगाते रहे

हाथ से टूटती ही लकीरें रही
ये नसीबे हमे यूँ रुलाते रहे

वो वफा का सिला दे सके क्यों नहीं
बेवफा से वफा हम निभाते रहे

शाख से टूट कर हम जमीं पर गिरे
लोग आते रहे रोंद  जाते रहे

जब चली तोप सीना तना ही रहा
लाज हम देश की यूँ बचाते रहे
[ये शेर मेजर गौतम राज रिशी जी के लिये लिखा था
निमला कपिला