साम्राज्यवाद के घड़ियाली आँसू
उत्तरी कोरिया ने 25 मई 2009 को परमाणु विस्फोट करके ये ऐलान कर दिया था कि उसने परमाणु हथियार बनाने की तकनीक व आवष्यक सामग्री हासिल कर ली है। उत्तरी कोरिया ने अपने संदेष में कहा कि उसने ऐसा करके अपने देष की संप्रभुता की सुरक्षा को बढ़ाया है जिस पर लगातार खतरा बढ़ता जा रहा है। साथ ही यह भी कि अमेरिका ने जिस तरह उत्तरी कोरिया पर परमाणु हमले के खतरे को बढ़ाया है, उसकी वजह से उसे ये कदम उठाना पड़ा है। उत्तरी कोरिया के प्रवक्ता ने अपने बयान में कहा कि उत्तरी कोरिया द्वारा किया गया यह परमाणु परीक्षण धरती पर अब तक किये जा चुके परमाणु परीक्षणों में 2054वाँ है। इसके पूर्व तक किये गये 2053 परमाणु परीक्षणों में से 99.99 प्रतिषत उन पाँच देषों ने ही किये हैं जो परमाणु अप्रसार संधि के आधार पर परमाणु हथियार रखने की पात्रता लिए हुए हैं और यही पाँचों देष- अमेरिका, रूस, चीन, यूनाइटेड किंगडम और फ्रांस, संयुक्त राष्ट्र संघ की सुरक्षा परिषद् के स्थायी सदस्य भी हैं। अगर परमाणु परीक्षण विष्व शांति के लिए खतरा हैं तो पृथ्वी को सबसे बड़ा खतरा इन देषों से है। बयान में आगे साफ़ कहा गया है कि अमेरिका ने ही क्षेत्रीय शांति की संभावनाओं के रास्ते पर बड़ा पत्थर रखा है और उत्तरी कोरिया को अपने देष व लोगों की सुरक्षा के लिए ये कदम उठाने पर मजबूर होना पड़ा है। अंत में यह भी कि संयुक्त राष्ट्र संघ की सुरक्षा परिषद् द्वारा दबाव बढ़ाये जाने की स्थिति में उत्तरी कोरिया अपने सुरक्षा उपायों को और मजबूत करेगा।
अमेरिका रिंग मास्टर, लेकिन उत्तरी कोरिया सर्कस का जानवर नहीं
उत्तरी कोरिया परमाणु शक्ति संपन्न बनने को अपनी सुरक्षा का उपाय मान रहा है और अमेरिका हरगिज़ नहीं चाहता कि उसकी मर्जी के बग़ैर कोई देष अपने आपको सुरक्षित कर लेे। अमेरिका, योरप व जापान जैसे समृद्ध देषों का दिखावे का तर्क यह है कि परमाणु हथियार सर्वनाषी किस्म के हथियार हैं इसलिए उन्हें ही इनके रखने की इजाज़त हो सकती है जो जिम्मेदार व समझदार हों। ये दोनों ही योग्यताएँ पाँच ऐसे देषों ने अपने भीतर पायी हैं जो न केवल संयुक्त राष्ट्र संघ की सुरक्षा परिषद् के स्थायी सदस्य हैं बल्कि अन्यथा भी काफी ताक़तवर हैं। ये पाँचों देष-अमेरिका, रूस, चीन, यूनाइटेड किंगडम और फ्रांस, परमाणु अप्रसार संधि (एनपीटी) के ज़रिये दुनिया के बाकी 189 देषों को यह मनवाने में सक्षम रहे हैं कि चूँकि वे समझदार और ज़िम्मेदार हैं अतः वे ही परमाणु हथियार रखेंगे और कोई अन्य देष अगर परमाणु शक्ति संपन्न बनने की कोषिष करेगा तो उसे हिमाकत माना जाएगा और ऐसी हिमाकत के लिए तरह-तरह के प्रतिबंध व अन्य सबक सिखाने के प्रावधान एनपीटी में किये गये हैं।
1985 में उत्तरी कोरिया ने परमाणु अप्रसार संधि (एनपीटी) पर हस्ताक्षर किये। उसके मुताबिक ऐसा करने के पीछे उसे उम्मीद थी कि अमेरिका, योरप व परमाणु तकनीक संपन्न अन्य देष उनकी उर्जा ज़रूरतों को पूरा करने में उसकी मदद करेंगे। सोवियत संघ के विघटन से कुछ ही पहले बुष सीनियर ने घोषणा की कि अमेरिका बिना शर्त अपने 100 से ज़्यादा परमाणु हथियार, जो उत्तरी कोरिया को निषाना साधकर दक्षिण कोरिया की ज़मीन व समुद्र में तैनात थे, उन्हें हटा लिया जाएगा। उत्तरी कोरिया और दक्षिण कोरिया ने भी कुछ सकारात्मक कदम उठाते हुए परमाणु हथियार न बनाने, न रखने और न इस्तेमाल करने की संधि पर हस्ताक्षर किये। अगले वर्ष 1992 में उत्तरी कोरिया ने सेफगार्ड एग्रीमेंट पर भी हस्ताक्षर कर दिये जिससे अंतरराष्ट्रीय परमाणु उर्जा एजेंसी (आईएईए) को उत्तरी कोरिया की ज़मीन पर निरीक्षण का रास्ता साफ़ हो गया। लेकिन अगले दो वर्षों में आईएईए व उत्तरी कोरिया के बीच निरीक्षणों को लेकर लगातार विवाद चलते रहे। आईएईए का आरोप था कि उत्तरी कोरिया अपने परमाणु परीक्षण स्थलों का ठीक तरह से निरीक्षण करने में बाधाएँ खड़ी कर रहा है और दूसरी तरफ़ उत्तरी कोरिया का कहना था कि आईएईए परीक्षण के बहाने से उसकी गोपनीय सामरिक जानकारियों को हासिल करने की कोषिष कर रहा है जो कि उसकी संप्रभुता से छेड़छाड़ है। इस बीच सीआईए की उत्तरी कोरिया विरोधी रिपोर्टों ने इस संवाद प्रक्रिया को और भी पीछे धकेल दिया। दो-तीन कोषिषों के बाद उत्तरी कोरिया ने आईएईए के लिए अपने दरवाजे बंद कर दिये। इस बीच सोवियत संघ का बिखराव हो गया था सो वहाँ से भी उसे मदद मिल नहीं पा रही थी। पानी और ताप तथा अन्य माध्यमों से बिजली बनाने के काफी उपाय करने के बावजूद उत्तरी कोरिया उर्जा संबंधी हालातों के सबसे खराब दौर से गुजर रहा था। एनपीटी का सदस्य बनने के पीछे उसने मूल मंषा ही ये ज़ाहिर की थी कि उसे परमाणु उर्जा के निर्माण की तकनीक और अन्य ज़रूरी मदद हासिल हो सके, लेकिन 1985 से 1994 तक उसे कुछ भी हासिल नहीं हुआ था।
विनीत तिवारी