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26.10.09

डॉ. 'पाठक' को 'सरस्वती साहित्य सम्मान' मिला

जींद(प्रैसवार्ता) न्यूजपेपर्स एसोसियेशन ऑफ इंडिया के हरियाणा प्रदेश अध्यक्ष, स्थानीय लब्ध प्रतिष्ठ, साहित्यकार, पत्रकार एवं कवि कुलाचार्य, हिन्दी साहित्य प्रेरक संस्था के पूर्व प्रधान एवं 'रवीन्द्र ज्योति' मासिक पत्रिका के सम्पादक डॉ. केवल कृष्ण पाठक को उनके सामाजिक, साहित्यिक, सांस्कृतिक एवं कला के क्षेत्र में किए गए सृजनात्मक कार्यों तथा अपने व्यक्तित्व कृतित्व से देश व समाज को गौरवान्वित करने की भावना से प्रभावित होकर सरस्वती साहित्य वाटिका श्रीराम मार्ग (खजनी) गोरखपुर (उ.प्र.) द्वारा प्रेमचंद जयंती के अवसर पर 'सरस्वती साहित्य सम्मान-2008Ó से सम्मानित किया गया। श्री रामकृपाल गुप्त 'संस्था के अध्यक्ष ने डॉ. पाठक की दीर्घायु, सबलता तथा सदासयता की कामना करते हुए उनके जीवन पर्यन्त अपने व्यक्तित्व के माध्यम से देश व समाज में समता एवं सामजस्य स्थापित करने में समर्पित रहने की कामना की। इससे पहले हिन्दी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग द्वारा सम्मेलन के स्वर्ण जयंती के अवसर पर आयोजित अयोध्या नगरी में सम्पत्यस्यमान अनुष्ठान एवं अखिल भारतीय विद्धत सम्मेलन में अन्न्तश्री विभूषित शंकराचार्य, ज्योतिष्पीठाधीश्वर स्वामी वासुदेवानंद सरस्वती जी महाराज के कर कमलों द्वारा 'सारस्वत सम्मान' प्रदान किया गया। इस आयोजन में जींद के त्रिलोक चपल संपादक त्रिवाहिनी के साथ भरत भर से आए अन्य विद्वान साहित्यकार कवियों को भी सम्मानित किया गया। आगामी 31 अक्तूबर 2009 को पंजाब कला साहित्य अकादमी (रजि.) जालन्धर (पंजाब) के वार्षिक अधिवेशन में डॉ. पाठक को 'प्रतिष्ठाजनक विशेष अकादमी सम्मान' देने का निर्णय लिया गया है। साहित्य के प्रति आपका असीम उत्साह एवं असीम श्रद्धा का ही यह प्रतिफल है कि आपको देश के राजस्थान, बंगलोदश, छत्तीसगढ़, दिल्ली आदि भिन्न-भिन्न स्थानों से 78 अलंकारों से सम्मानित किया जा चुका है। आपको साहित्य रत्न, साहित्य मनीषी, राजभाषा मनीषी, हरियाणा रत्न, साहित्य सौरभ आदि मानद उपाधियों से सम्मानित किया गया है। आपके सम्मानित होने का रथ यहीं पर नहीं रूका, अपितु अभी तक अविरल गति से चलायमान है। साहित्य सेवी संस्था उचाना में आपको 'सजग प्रहरी', श्री अंगिरा शोध संस्थान जींद ने 'संवाद रत्न' एवं साहित्य मण्डल श्रीनाथद्वारा (राज.) ने सम्पादक शिरोमणी तथ सिरमौर कला संगम (हिमाचल प्रदेश) ने आपको डॉ. परमार पुरस्कार तथा कर्मवीर नामक उपाधियों से विभूषित किया है। सम्मान प्राप्ति पर शहर के प्रबुद्ध गणमान्य व्यक्ति दैनिक जगत क्रान्ति के महाप्रबंधक अजेय भाटिया, गंगापुत्रा टाइम्स (सांध्य दैनिक) के संपादक राजेन्द्र गुप्त, मासिक पत्रिका अंगिरापुत्र के संपादक श्री रामशरण युयुत्सु, त्रिवाहिनी त्रैमासिक के संपादक त्रिलोक चपल, हरबंस रल्हन निर्मोही, पवन कुमार उप्पल, रमेश रल्हन, राजेन्द्र मानव, बाल मुकुन्द भोला, ओ.पी. चौहान, नरेन्द्र अन्नी, बी.एन. तिवारी ने प्रसन्नता व्यक्त करते हुए डॉ. पाठक को बधाई दी।



पद पर रहते हुए भी पार्षद, सरपंच व पंच नहीं कहला रही महिलाएं

सिरसा(प्रैसवार्ता) राज्य के जिला सिरसा की अधिकांश निर्वाचित महिला पार्षद, सरपंच व पंच विजयी होने उपरांत भी स्वयं को पार्षद, सरपंच या पंच कहलाने का गौरव प्राप्त नहीं कर सकीं, क्योंकि इनके पति, ससुर, जेठ व देवर आदि ही सरपंच, पंच व पार्षद कहलाते हैं। एकत्रित किये गये विवरण अनुसार सरकारी तथा गैर-सरकारी, राजनीतिक, सामाजिक व धार्मिक संस्थाओं के समारोह इत्यादि में महिलाएं पंच, सरपंच व पार्षद होने पर भी भाग नहीं लेती, बल्कि उनके परिवारजन ही भागीदारी करते हैं। महिलाएं खेतों-खलिहानों, कारखानों, अस्पताल, स्कूल-कॉलेज, सरकारी कार्यालयों में मजदूर, नर्स, शिक्षक, क्लर्क व अधिकारी के रूप में महत्वपूर्ण योगदान दे रही है, परंतु ज्यादातर ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं को राजनीतिक रूप से ऊपर उठना स्वीकार नहीं किया गया है। वर्तमान में ग्रामीण समाज का परम्परावादी समाज तथा रूढि़वादी दृष्टिकोण यह मानकर चल रहा है कि नारी जीवन की सार्थकता ममतामयी मां, आज्ञाकारी बहू, गुणवती पुत्री तथा पतिनारायण पत्नी होने में है। नारी भोजन बनाने, घर को सजाने-संवारने से लेकर बच्चों के कपड़े सिलाई करने इत्यादि सहित हर काम में निपुण हों। महिलाओं और उनके कार्यों को पुरुषों की नजर से ही देखने का परिणाम है कि पार्षद, सरपंच या पंच निर्वाचित होने उपरांत भी महिलाओं की चेतना में कोई बदलाव नहीं आया है। जिला सिरसा के शहरों, कस्बों तथा ग्रामों में चुनावी पद्धति अनुसार अनुसूचित पिछड़ी तथा जनजाति की, जो महिलाएं चुनी गई हैं, उनमें दिहाड़ी मजदूर से लेकर संपन्न परिवारों से हैं, मगर बिड़म्बना देखिये कि न तो दिहाड़ी मजदूर को पार्षद, सरपंच व पंच कहलवाने का अवसर मिला है और न ही कोई चौधराइन, पार्षद सरपंच या पंच कहलाने का गौरव प्राप्त कर पाई है। अधिकांश पार्षद, सरपंच व पंच निर्वाचित महिलाएं पूर्ववत: घर, गृहस्थी, कृषि व रोजमर्रा के अन्य कार्य जारी रखे हुए हैं तथा ज्यादातर को अपने अधिकारों तथा पंचायतीराज के नियमों बारे कोई जानकारी नहीं है। कुछ महिलाएं तो जन-प्रतिनिधि चुने जाने उपरांत भी घूंघट में रहती हैं तथा अगूंठा टेक हैं, जबकि कुछ के हस्ताक्षर या अंगूठा उसके पति, ससुर, देवर-जेठ या अन्य परिवारजन लगा देते हैं। कई बार ऐसी स्थिति उत्पन्न हो जाती है कि जब कोई सरकारी गैर-सरकारी या सामान्य व्यक्ति किसी महिला पार्षद, सरपंच या पंच से मिलना चाहे तो परिवारजन मिलने नहीं देते। कुछ जन-प्रतिनिधि महिलाएं जरूर सक्रिय हैं। महिला प्रतिनिधियों की इस दशा का कारण समाज में व्याप्त पुरुष प्रधान मानसिकता तो हैं, परंतु उनका निरक्षर होना भी एक मुख्य कारण है। महिला प्रतिनिधियों के इस आरोप में भी सत्यता है कि उनके परिवारजन उन्हें आगे नहीं आने देते और न ही बैठकों में जाने देते हैं। यही कारण है कि वे निरंतर पिछड़ रही हैं। उनका मानना है, कि जब तक महिला जन-प्रतिनिधि स्वयं जागृत नहीं होंगी, उनके बूते दूसरी महिलाओं में भी चेतना की आशा नहीं की जा सकती। कुछ जन-प्रतिनिधि महिलाएं पुन: चुनाव के पक्ष में नहीं है, क्योंकि विजयी होकर भी उन्हें घर की चारदीवारी तक सीमित रहना पड़ता है। पुराने विचारों के लोग विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं के आगे आने के पक्षधर नहीं है। इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि महिलाओं का राजनीति में दखल युगों से सत्ता में स्थापित पुरुष वर्ग को हजम नहीं होता। समाज महिलाओं को एक स्वतंत्र इकाई के रूप में नहीं, बल्कि उस समाज के बीच रखकर देखता है, जो पुरुषों द्वारा निर्मित है। पुरुषप्रधान समाज में नारी की भूमिका घर-परिवार तक ही सीमित है और यह माना जाता है कि नारी घर की चारदीवारी में ही शोभा देती है। महिलाएं भले ही कुछ करना चाहती हों, मगर उनके भी विवशता होती है, क्योंकि पुरुष प्रधान समाज है। इसी प्रकार से निर्वाचित होकर भी महिलाएं उन प्रतिनिधि मात्र नाक की होकर रह गई हैं।

ब्यूटी पार्लर बनते जा रहे हैं देह व्यपार के अड्डे

चंडीगढ़/दिल्ली(प्रैसवार्ता) देश की राजधानी दिल्ली, हरियाणा-पंजाब तथा चंडीगढ़ की राजधानी चंडीगढ़ में देह व्यापार माफिया ने सिर्फ दस्तक दे दी है, बल्कि अपने ठिकाने बनाने में सफल हो रहे हैं। चंडीगढ़ से दिल्ली बजरिया करनाल, पानीपत तथा दिल्ली से चंडीगढ़ इसी मार्ग से देह व्यापारियों की सप्लाई हो रही है। ''प्रैसवार्ता'' को मिली जानकारी अनुसार देह व्यापार माफिया ने पानीपत को मुख्य केन्द्र चुना है और ज्यादातर ब्यूटी पार्लरों से संपर्क स्थापित कर लिया है। कुछ ब्यूटी पार्लरों ने इस धंधे में बढ़ौत्तरी के लिए इन्फार्मर भी रखे हैं, जो घूम फिर कर ऐसी महिलाओं, लड़कियों को बहला-फुसलाकर गिरोह के लिए काम करने को तैयार करते हैं। विधवाएं, तलाकशुदा महिलाएं, गरीब परिवारों से संबंधित महिलाएं व लड़कियां देह व्यापार की तरफ रूझान करने लगी हैं-जिनमें कुछ तो मजबूर हैं, जबकि कुछ अपनी देहित भूख मिटाने के लिए इस गिरोह में शामिल हो रही हैं और ब्यूटी पार्लर उनकी पहली पसंद है। ब्यूटी पार्लर की आड़ में सैक्स रैकेट के कई मामले उजागर भी हो चुके हैं, मगर फिर भी देह व्यापार का धंधा थमने का नाम नहीं ले रहा, क्योंकि ज्यादातर ब्यूटी पार्लरों को रंगीन मिजाज राजनेताओं तथा सरकारी तंत्र का संरक्षण प्राप्त है। आश्चर्यजनक तथ्य यह भी है कि दिल्ली तथा चंडीगढ़ में संपन्न घराने की महिलाएं भी क्षणिक यौन संतुष्टि के लिए न सिर्फ अपने जीवन साथी के विश्वास का हनन हैं, बल्कि देह व्यापार माफिया को आगे बढ़ाने में मददगार साबित हो रही हैं। सीता, मदालसा, सावित्री, अनुसूईया जैसी चरित्रवान नारियों के देश में जन्म लेने वाली आज की नारी में चरित्र का निरंतर हास होता चला जा रहा है और वर्तमान की नारी सैक्स भूख को एक आवश्यक भूख मानते हुए तथा जायका बदलने के लिए किसी भी लछमण रेखा को लांघने के लिए तैयार दिखाई देती नजर आने लगी है।

हुड्डा सरकार के सामने कई चुनौतियां

चंडीगढ़(प्रैसवार्ता) भले ही प्रदेश की चौधर फिर से रोहतक में रहने का गर्व जाट लैंड को मिल गया है, लेकिन मुख्यमंत्री के सामने कई नई चुनौतियां होंगी। कांग्रेस के बाहर मौजूद विपक्ष ही नहीं, बल्कि कांग्रेस के भीतर विरोधी भी उन पर विकास के लिहाज से केवल रोहतक पर ध्यान देने का आरोप लगाते रहे हैं। इस छवि को सुधारने और विपक्ष और विरोधियों को खामोश करने के लिए एक बड़ी चुनौती उनके सामने प्रदेश में समान और सर्वतत्र विकास की मिसाल पेश करना रहेगी। मुख्यमंत्री भूपेन्द्र सिंह हुड्डा और उनकी बीते साल की सरकार अपने बीते साढ़े चार साल के कार्यकाल में निरंतर ये दावा करती रही है कि आने वाले डेढ़ साल में प्रदेश की जनता को न केवल 24 घंटे भरपूर बिजली मिलेगी, बल्कि हरियाणा इतनी बिजली पैदा करेगा, के सरप्लस हो जाएंगे। अब इम्तिहान की घड़ी आ पहुंची है। हुड्डा सरकार पर डेढ़ साल के भीतर भरपूर बिजली पैदा करने की क्षमता हासिल करने के साथ ही सरप्लस के दावे को हकीकत में बदले का दबाव रहेगा। ये बड़ी चुनौती हुड्डा सरकार के समक्ष मुह बाए खड़ी है। महंगाई को मुद्दा बनने के चलते ही कांग्रेस को 40 पर सिमटना पड़ा। ये फौरी चुनौती भी सरकार के लिए रहेगी। राज्य में अलग गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के गठन का ऐलान हरियाणा दिवस पर करने का वायदा प्रदेश की जनता से किया था, इस पर भी उन्हें अग्रि परीक्षा से गुजरना होगा। हरियाणा के एडवोकेट जनरल की अध्यक्षता में गठित कमेटी की रिपोर्ट पक्ष में आने के बाद हुड्डा ने इसकी घोषणा की बात कही थी। लिहाजा एक नवंबर आने में चंद दिन शेष हैं। कमेटी के गठन की घोषणा एक नवंबर को हरियाणा दिवस पर हुड्डा करते हैं या नहीं ये देखने वाली बात रहेगी। इस निर्णय का उन पर लंबे अर्से से दबाव है। हांसी बुटाना नहर में पानी लाने की चुनौती भी है। इसके अलावा बेरोजगारों की फौज नौकरियों के लिए सरकार और प्राइवेट संस्थानों की तरफ आंखें लगाए बैठी है।

किस प्रत्याशी को कहां से मिली बढ़त

निर्दलीय गोपाल कांडा विजयी- आजाद उम्मीदवार चुनाव लड़ रहे गोपाल कांडा को ग्राम केलनियां (बूथ 1 व 2), सिरसा टाऊन के बूथ नं. 4, 7, 8, 12, 13, 16, 19, 19ऐ, 21, 22, 23, 25, 26, 28, 29, 30, 31, 33, 34, 35, 39, 40, 41, 44, 46, 49, 52, 53, 54, 54ऐ, 55, 56, 57, 37ऐ, 58, 59, 62, 63, 64, 65, 66, 67, 68, 69, 70, 70ऐ, 71, 71ऐ, 73, 73ऐ, कंगनपुर (75ऐ), खाजा खेड़ा (76), रामनगरिया (77), मोहम्मदपुर (78), नटार (79 तथा 80), शाहपुर बेगू (82-83), बाजेकां (85), कुसम्बी (90), जोधकां (92), डिंग (96), शेरपुरा (101-2), ताजिया खेड़ा (103)पर मतदाताओं ने बढ़त दी है- जबकि भाजपा प्रत्याशी रोहताश जांगड़ा को किसी भी बूथ पर 60 का आंकड़ा मतदाताओं ने पार करने से रोक दिया।
इनैलो प्रत्याशी पदम जैन: को सिरसा टाऊन के बूथ नं. 9, 11, 12, 13ऐ, 14, 17, 17ऐ, 18, 18ऐ, 20ऐ, 24, 27, 32, 36, 37, 38, 50ऐ, 74, 74ऐ, शमशाबाद (3), बाजेकां (85-86), फूलकां (85-88), कंवरपुरा (89-89ऐ), शाहपुर बेगू (81, 81ऐ, 82ऐ), जोधकां (91), मोची वाली (94-95), डिंग (96, 97, 98, 99), नेजिया खेड़ा (105), मोडिया खेड़ा (108), धिंगतानियां (110), साहूवाला-2 (112), नारायण खेड़ा (114), कैरांवाली (115-115ऐ), नहराना (116-117) से बढ़त मिली-जबकि हजकां प्रत्याशी मेहता वीरभान सिरसा टाऊन के बूथ 47, 50, 61 पर दूसरे तथा 51 पर पहले स्थान पर रहे।
कांग्रेस प्रत्याशी लछमण दास अरोड़ा को सिरसा के बूथ नं. 5, 6, 10, 15, 16, 19ऐ, 20, 21, 24ऐ, 28, 28ऐ, 30, 39, 42, 43, 45, 46, 47, 48, 50, 60, 60ऐ, 61, 63, 69ऐ, शाहपुर बेगू (81, 81ऐ, 82, 82ऐ, 83), कुकड़थाना (100), अली मोहम्मद (104), रंगड़ी खेड़ा (106), शहीदावाली (107), चौबुर्जा (109) तथा चाडीवल (111) से बढ़त मिली। (कृप्या सरकारी नोटिफिकेशन से मिलान कर लें, क्योंकि हो सकता है, इसमें कोई त्रुटि रह गई हो- संपादक)

असुरक्षित नॉर्थ ईस्ट की लडकियां

आज राजधानी दिल्ली के मुनिरका इलाके में एक लड़की जिसका नाम" हैती" बताया जाता हैं उसकी जली हुई लाश मिली,लडकी नॉर्थ ईस्ट की रहने वाली थी और अपनी बहन से मिलने दिल्ली आई हुई थी|यह ख़बर महज एक ख़बर के रूप में देखी जा सकती हैं पर ज़रा इस हादसे के पीछे देखे तो क्या ऐसा नही लगता की इस तरह के हादसे (बलात्कार व हत्याए)ज्यादातर नॉर्थ ईस्ट की लड़कियों के साथ या फ़िर अल्प संख्यक लोगो के साथ ही क्यों होते हैं |

भारतवर्ष वैसे तो धर्मनिरपेक्ष राज्य हैं परन्तु फ़िर भी इसमे कुछ जाति व धर्म को लेकर कुछ लोग अपने पूर्वाग्रह से ग्रसित हैं जो की इस तरह की घटनाओ को न सिर्फ़ अंजाम देते हैं बल्कि इन्हे दबाने का प्रयास भी करते हैं |हैती के घर वालो को भी रिपोर्ट लिखवाने के लिए अपने समुदाय के लोगो को इकठ्ठा करना पड़ा क्यूंकि पुलिस रिपोर्ट नही लिख रही थी| जो कोई भी इस तरह की घटनाओ को अंजाम देता हैं वह अच्छी तरह जानता हैं की इस तरह की घटनाओ की रिपोर्ट पुलिस लिखेंगी नही क्यूंकि यहाँ पीड़ित या तो अल्पसंख्यक हैं या तो फ़िर नॉर्थ ईस्ट का ऐसे में ज्यादा से ज्यादा क्या होगा पहले तो केश ही नही बनेगा अगर किसी कारणवश बन भी गया तो क्या होगा जब तक केश चलेगा अपराधी को ज़मानत मिल ही जायेगी जिससे वह आजाद हो ही जाएगा और फ़िर कोई गुनाह करेगा |

पिछले एक महीने में इस तरह के कई वाकये हो चुके हैं (महिपालपुर,जामिया,मौडल टाऊन,जनपथ) जिनमे अधिकतर पीड़ित नॉर्थ ईस्ट की लड़किया ही थी कारण यह भी हैं की उन्हें आसानी से उपलब्ध यानी "ईसिली अवेलेबल"समझा जाता हैं इसका जीता जागता उदाहरण बहुचर्चित फ़िल्म "चक दे"में दिखाया गया हैं |सरकार को चाहिए की इस विषय में गंभीरता से सोचविचार कर कोई शख्त कानून बनाये जिससे यह अल्पसंख्यक व नॉर्थ ईस्ट के लोग भारत को अपना घर ही समझे अन्यथा यह लोग अपने देश में ही कही परायेपन को महसूस करने लगेगे जिसके गंभीर परिणाम हमें बाद में भुगतने पड़ेंगे|

25.10.09

लोकसंघर्ष :पाकिस्तानी कहानी

भगवान दास -4

रात आँखों में कटी। सूरज निकला। धूप पहाड़ों की चोटियों से फैलती हुई नीचे उतरने लगी। सुबह हो गयी। वे कमर कसकर बक्कल के स्थान पर पहुँच गये। वे निहायत जोशो-ख़रोश से नारे लगा रहे थे। ढोल बजा रहे थे। पगड़ियाँ उछाल रहे थे। हाथों में दबे हुए हथियारों को सरों से ऊपर उठाकर लहरा रहे थे। तरह-तरह से खून को गरमा रहे थे। अपने हौसले बुलन्द से बुलन्दतर कर रहे थे। बलूचों की युद्ध संहिता में यह मुगदर मारना था।
वे कुछ देर तक आमने-सामने खडे़ रहे। मुगदर खींचकर अपनी ताक़त और दुस्साहस का प्रदर्शन करते रहे; फिर तलवारें सूँतकर और कुल्हाड़ियाँ और दूसरे हथियार सँभालकर वे आगे बढे़ और दाढ़ियाँ दाँतों तले दबाकर भयानक गुस्से के आलम में एक-दूसरे पर टूट पडे़। तलवार तलवार से और कुल्हाडी़ कुल्हाडी़ से टकरायी। गर्द के बादल उठे। फ़िजा़ धुआँ-धुआँ हो गयी। नारे बुलन्द से बुलन्दतर होते गये। शोर बढता गया। हर तरफ़ ख़ून के छींटे उड़ने लगे।
ग़ज़ब का रन पडा़। मगर बहुत ज़्यादा ख़ून-ख़राबे की नौबत न आयी। हुआ यह कि लडा़ई शुरू होते ही एक हिन्दू चीख़ता-चिल्लाता, दुहाई देता एक ओर से प्रकट हुआ और तेजी़ से दौड़ता हुआ क़रीब पहुँच गया। उसका नाम भगवानदास था। अधेड़-उम्र था। सिर और दाढी़ के बाल खिचडी़ थे, मगर जिस्म मज़बूत था। क़द ऊँचा था। पेशे के एतबार से वह दरखान था, यानी बढ़ई होने के साथ-साथ राजगीर का काम भी करता था और पड़ोस की बस्ती कोटला शेख़ में रहता था। उसके इलावा कोटला शेख़ में हिन्दुओं के चन्द और खा़नदान भी आबाद थे जो खेती-बाडी़ करते थे, भेड़ चरवाही करते थे या भगवानदास दरखान की तरह मेहनत-मज़दूरी करते थे।
भगवानदास दरखान भाग-दौड़ करने के बाद बुरी तरह हाँफ रहा था। उसका चेहरा पसीने से सराबोर था। उसकी पगडी़ खुलकर गले में आ गयी थी। सिर के लम्बे-लम्बे बाल बिखरे हुए थे। हक्कल की इत्तिला सूरज निकलने से पहले ही उसे मिल गयी थी। इत्तिला मिलते ही वह तारों की छाँव में घर से निकल खड़ा हुआ। उसने हक्कल के मुकाम पर जल्द से जल्द पहुँचने की कोशिश की और गिरते-पड़ते समय से पहुँचने में कामयाब भी हो गया। उसने निहायत दुस्साहस और बेबाक़ी का प्रदर्शन किया। अपनी जान की बाज़ी लगाकर वह बेधड़क लड़नेवालों की पंक्तियों में घुस गया। मेढ़ करने के लिए चीख़-चीख़कर दुहाई देता रहा और उनके दरमियान चट्टान की तरह तनकर खड़ा हो गया। उसने दोनों हाथ बुलन्द किये। तलवारों और कुल्हाड़ियों के वार हाथों पर रोके। वह ज़ख़्मी हुआ और ज़ख़्मों से निढाल होकर गिर पड़ा।
उसने मार-धाड़ बन्द कराने के लिए यह हथियार आज़माया था, जिसे बलूची में मेढ़ कहा जाता है। भगवानदास दरखान हिन्दू था और चूँकि हिन्दू अल्पसंख्यक हैं, लिहाज़ा मुसलमान बलूच अपनी श्रेष्ठ क़बाइली परम्परा के मुताबिक उनकी जानो-माल का इस हद तक ख़याल रखते हैं कि उनको ऐसा समझा जाता है कि किसी को म्यार बनाने के बाद उसका खून बहाना या किसी तरह की तकलीफ़ पहुँचाना बलूचों की क़बाइली आचार संहिता की दृष्टि से अत्यन्त घृणित और जवाबी कार्रवाई जैसा माना जाता है। इसलिए भगवानदास दरखान की कोशिश और दुस्साहस सनकियों-सा साबित हुआ। हंगामा करने वाले ठण्डे पड़ गये। उठे हुए हाथ रुक गये। जो जहाँ था, वहीं रुक गया। लड़ाई फ़ौरन बन्द हो गयी। वैसे ही मेढ़ के लिए उस हिन्दू दरखान के अलावा अगर कोई सैयदज़ादा क़ुरान शरीफ़ उठाये साक्षात् फ़रीकै़न के दरमियान आ जाता या क़बीलों की चन्द बूढ़ियाँ सिर खोले, बाल बिखराये, गले में चादर डाले ठीक लड़ाई के दौरान रणभूमि में पहुँच जातीं, तो उनके सम्मान में भी लड़ाई बन्द करने का ऐलान कर दिया जाता।
मेढ़ की दृष्टि से तात्कालिक ढंग पर जं़ग बन्द हो गयी। भगवानदास दरखान की फ़ौरी तौर पर मरहम पट्टी की गयी और उसे कोटला शेख़ पहुँचा दिया गया। रस्तमानी और मस्दानी शूरवीर भी अपने-अपने ज़ख़्म लिए चले गये। मगर उनके चेहरों पर अभी तक भयानक क्रोध छाया हुआ था। आँखें शिकार पर झपटनेवाले बाज़ की तरह चमक रही थीं। ख़ून खौल रहा था। शूरवीरों का जोश सवा नैजे़ पर था। दोनों तरफ़ खींचातानी और ग़मो-गुस्सा का वातावरण था। उस वक़्त सूरते हाल निहायत संगीन हो गयी, जब तीसरे रोज़ सूरज डूबने से कुछ देर पहले मस्दानी क़बीले का एक ज़ख़्मी चल बसा। मृतक के घर में कुहराम मच गया। उसके भाइयों और क़बीले के दूसरे लोगों के सीनों में बदले की आग शिद्दत से भड़क उठी और मस्सत करने यानी ख़ून के बदले ख़ून की तैयारियाँ जा़ोर-शोर से होने लगीं। बदले की ऐसी कार्रवाई को लस्टदबीर कहा जाता है।
रस्तमानियों को जब उस लस्टदबीर का पता चला, तो उधर भी लोहा गरम हुआ। मरने-मारने की तैयारियाँ शुरू कर दी गईं। फ़ौरन डाह का बन्दोबस्त किया गया। इसके लिए यह तरीक़ा अपनाया गया कि एक ऐसे शख़्स को डाहडोक मुकर्रर किया गया, जिसका ताल्लुक़ एक तटस्थ क़बीले से था। डाहडोक क़द्दावर जवान था और मँझा हुआ ढोलकिया था। दिन चढ़े वह गले में ढोल डालकर निकला और ढोल बजाकर हर तरफ़ मुनादी करने लगा। वह पहले तड़ातड़ कई बार ढोल पर तमची से चोट लगाता और फिर बायाँ हाथ झटककर ख़ास अन्दाज़ में इस तरह थाप देता, जिसका स्पष्ट भाव यह था कि लड़ाई का ख़तरा सरों पर मँडरा रहा है। रणभेरी बजने वाली है। वह दिन ढले तक इसी तरह फ़रीकै़न को ख़बरदार करता रहा।



-शौकत सिद्दीक़ी


सुमन
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जारी