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25.10.09

बलात्कार : आखिर दोषी कौन....?

बलात्कार पीड़िता को टार्चर करने की बजाए हौंसला बढाए
पिछले काफी दिनों से आए दिन कोई न कोई घटना समाचार पत्रों के माध्यम से यह पढने को मिलती है कि 'नाबालिग लड़की से बलात्कार!' लोकलाज की धज्जियां उड़ाते हुए हर रिश्ते को तार तार कर हवस के भूखे भेड़िये बलात्कार की घटना को अंजाम देते हैं। पहले सुनने को मिलता था कि युवक ने नाबालिग लड़की से बलात्कार किया। लेकिन धीरव्धीरव् हर रिश्ते तार तार होते गए और धर्मभाई, सगे भाई, ज्येठ, ससुर द्वारा और यहां तक की अब सुनने को यह भी मिल रहा है कि チाुद लड़की के पिता ने अपनी क्ख् वर्ष् की बेटी के साथ ही इस बुरव् कार्य को अंजाम दे डाला। इन बदलती परिस्थितियों के लिए आखिर जिमेवार कौन है॥? इस तरह की घटनाएं आज आम बात होती जा रही है। इन तरह बलात्कार की शिकार पीड़िता को यदि समाज ताने देने लगे तो वह पीड़िता या कर सकती है। या वह पिछली बातों को भुलाकर एक नई जिंदगी की शुरुआत करव्गी.....? वास्तविकता में देखा गया है कि जब कोई भी बलात्कारी पीड़ित महिला अपनी इस सच्चाई को जब अपने सगे सबंधियों या अपने पति के समक्ष बयान करती है तो यह सच्चाई उसके लिए एक अभिषप बन जाती है, योंकि समाज में जहां सच्चाई को आगे लाने की बात करने वाले समाज के लोग ही जब इस सच्चाई को जान लेते हैं तो वह उस पीड़ित महिला से घृणा करने लगते हैं एवं उसे ही दोष्ी मानने लगते हैं, जबकि ऐसी घटनाओं को अंजाम देने वाले हवस के भेड़िये खुले आम घुमते रहते हैं और न ही उन्हें समाज एवं कानून का डर होता है। या बलात्कार पीड़ित महिलाएं अपने पर बीती घटना को समाज एवं सगे सबंधियों के सामने रख पाएगी। अगर रख पाएगी तो समाज एवं सगे सबंधी उसे सांत्वना देंगे या अब तक की चली आ रही टार्चरप्रथा के अनुसार टार्चर करते रहेंगे। समाज के लोगों को समाज में बड़ी बड़ी बाते करने के साथ साथ उन्हें अमल में भी लाना जरुरी होता है योंकि समाज के ठेकेदार समारोह में बड़ी बड़ी बाते करने से पीछे नही हटते और जब सामना करने की बात आती है तो वे उतने ही पीछे हट जाते हैं।
समाज के इन ठेकेदारों की वजह से ही बलात्कार पीड़ित महिलाएं अपने साथ घटी घटना को समाज के समक्ष बयान कर पाती है जिससे दोष्ी खुले आम घुमते रहते हैं। काश! वह ऐसा कर पाए लेकिन कुछ पीड़िता ऐसा करने की बजाय अपने आप को मौत के हवाले कर देती है। यदि किसी लड़की के साथ बलात्कार होता है तो या वह लड़की チाुद इस घटना के लिए जिमेदार होती है? लेकिन आजकल के समाज में लोग पढेलिखे होने के बावजूद इस बात को भूलकर उल्टा पीड़िता पर ही कटाक्ष करते हैं व आत्महत्या के लिए मजबूर करते हैं। बीते दिनों एक बात सुनने को मिली थी कि एक लड़की के साथ उसके धर्मभाई ने रिश्ते की आड़ में बलात्कार किया। बलात्कार की घटना के बाद लोकलाज के भय से उसने किसी को बताना उचित नही समझा लेकिन इसी का फायदा उठाते हुए उक्त युवक ने दोबारा उसके साथ बलात्कार करने की कोशिश की लेकिन उसका प्रयास असफल हो गया।
कुछ दिनों के बाद उक्त युवती की शादी कर दी गई। शादी के बाद युवती ने अपने पति से बात को छुपाना उचित नही समझा और उसने सच्चे दिल से अपनी आपबीती की पूरी व्यथा अपने पति को कह सुनाई। पत्नी ने सोचा कि उसका पति उसे माफ कर देगा लेकिन मामला कुछ उलट ही हुआ। पति ने पत्नी के साथ दुर्व्यवहार करना शुरु कर दिया और बात बात पर उसकी पिछली घटना के लिए कटाक्ष करने लगा। बातबात पर तानें देने लगा जिस पर विवाहिता काफी दुखी रहने लगी। युवती ने जिस बात को अपने लिए भूल जाना बेहतर समझा था उसी बात को बारबार उसे याद दिलाए जाने लगा तथा उसे टार्चर किए जाने लगा। आखिरकार युवती को कुछ कदम उठाने के लिए मजबूर होना पड़ा। या वो समाज के तानों से लड़ पाएगी या फिर मजबूर होकर अपने आप को मौत के हवाले कर देगी। यदि वह समाज से लड़ने की ठान लेती है तो उसे सहारा देने के लिए आगे कौन आएगा, योंकि स्वयं उसका पति ही उसे ताने देने लगता है। और यदि वह आत्महत्या कर लेती है तो उसका जिमेदार कौन होगा? या वह आरोपी जिसने उसकी जिंदगी को तबाह किया.... या फिर उसका पति जिसने अपनी पत्नी का हौंसला बढाने की बजाय उसे टार्चर किया जिसलिए वह आत्महत्या को मजबूर है। इसी तरह न जाने ऐसी कितनी युवतियां है जिनकी जिंदगी तो तबाह हो जाती है लेकिन उसकी जिंदगी तबाह करने वाले भेड़िये खुलेआम घुमते हैं। या आखिर उन्हें ताने देने वाला कोई नही है या किसी की हिमत नही है। इस तरह की घटनाओं में समाज के लोगों को चाहिए कि पीड़िता की हिमत बढानी चाहिए न कि उसे ताने देने चाहिए जिससे वह किसी प्रकार का गलत कदम उठाने पर मजबूर हो।
इस तरह की यह घटना ही नही प्रदेश में अनेकों घटनाएं होती है। इसका सबंध किसी व्यक्ति विशेष् से नही है।
प्रस्तुति : प्रदीप धानियां
Mob. 92559-59074

हरियाणा के अबतक के मुख्यमंत्री

चंडीगढ(प्रैसवार्ता) हरियाणा गठन उपरांत अबतक बने राज्य के मुख्यमंत्रियों और उनका कार्यकाल विवरण निम्र प्रकार से है:-
(1) पं. भगवत दयाल 01-11-66 से 10-03-67
(2) पं. भगवत दयाल 10-03-67 से 23-03-67
(3) राव वीरेन्द्र सिंह 24-03-67 से 15-07-67
(4) राव वीरेन्द्र सिंह 15-07-67 से 24-11-67
(5) राष्ट्रपति शासन 21-11-67 से 21-05-68
(6) बंसी लाल 21-05-68 से 14-03-72
(7) बंसी लाल 14-03-72 से 01-12-75
(8) बनारसी दास गुप्ता 01-12-75 से 29-04-77
(9) राष्ट्रपति शासन 30-04-77 से 21-06-77,
(10) देवीलाल 21-06-77 से 28-06-79
(11) भजनलाल 28-06-79 से 23-05-82
(12) भजन लाल 23-05-82 से 04-06-86
(13) बंसी लाल 05-06-86 से 20-06-87
(14) देवीलाल 20-06-87 से 02-12-89
(15) ओम प्रकाश चौटाला 02-12-89 से 23-05-90
(16) बनारसी दास गुप्ता 23-05-90 से 11-07-90
(17) ओम प्रकाश चौटाला 11-07-90 से 17-07-90
(18) मा. हुक्म सिंह 17-07-90 से 22-03-91
(19) ओम प्रकाश चौटाला 22-03-91 से 05-04-91
(20) राष्ट्रपति शासन 06-04-91 से 22-06-91
(21) भजन लाल 23-06-91 से 10-05-96
(22) बंसीलाल 11-05-96 से 22-07-99
(23) ओम प्रकाश चौटाला 24-07-99 से 01-03-2000
(24) ओम प्रकाश चौटाला 02-03-2000 से 05-03-2005
(25) भुपेंद्र सिंह हुड्डा 05-03-2005 से 25-03-2009
(26) भुपेंद्र सिंह हुड्डा 25-03-2009 से .................

लो क सं घ र्ष !: आशीष खंडेलवाल जी की ताजा पोस्ट के लिए

गूगल, यूं हिंदुस्तानियों के साथ खिलवाड़ न करो


शान्ति साम्राज्यवाद की मौत हैयुद्घ उसका जीवन है, विश्व में दो विश्व युद्घ लड़े गए है और दोनों ही साम्राज्यवादियों की धरती पर ही लड़े गए है दूसरे विश्व युद्घ के बाद साम्राज्यवादियों ने तय यह किया था कि अपनी धरती पर युद्घ नही लड़ना हैविश्व आर्थिक मंदी से निपटने के लिए साम्राज्यवादियों को युद्घ चाहिए इसके लिए एशिया में बड़े-बड़े प्रयोग किए जा रहे है और उनकी सारी ताकत एशिया की प्राकृतिक सम्पदा को लूट घसोट करने में लगी हैउनकी मुख्य विरोधी शक्तियां ईरान, उत्तर कोरिया, वियतनाम है और मुख्य प्रतिद्वंदी चीन हैईरान के रेवोलुशनरी गार्ड्स मुख्यालय पर आत्मघाती हमला हो चुका हैचीन भारत का युद्घ वह चाहते है । इसके लिए तरह-तरह की गोटियाँ चली जा रही हैउनके तनखैया इलेक्ट्रॉनिक मीडिया और प्रिंट मीडिया के लोग तरह-तरह की अफवाहबाजी उडा, भ्रम फैला कर युद्घ का माहौल तैयार कर रहे हैउसी का यह एक हिस्सा हैईराक में परमाणु हथियारों के सवाल को लेकर ईराक को तबाह किया गयाआज इराक़ में लाखो औरतें विधवा है . जिनके खाने और कमाने का कोई जरिया नही है , शिक्षा और स्वास्थ्य नाम की कोई चीज नही बची हैसाम्राज्यवादी ताकतें ईराक की प्राकृतिक सम्पदा को लूट रही है वही स्तिथि चीन और भारत का युद्घ करा कर यह ताकतें यहाँ की प्राकृतिक सम्पदा का दोहन करना चाहती हैयह जो कुछ हो रहा है वह सोची समझी रणनीति का हिस्सा हैहमारे अरुणांचल , जम्मू और कश्मीर को चीन का हिस्सा दिखा कर लोगों में भ्रम पैदा किया जा रहा है ताकि युद्घ का उन्माद पैदा होजो ताकतें यह हरकत कर रही है वह उनकी रणनीति का हिस्सा हैपूंजीवादी व्यवस्था में कोई चीज दान की नही होती हैमुनाफा और लाभ ही उनका धर्म हैये अपने अविष्कारों में हिस्सा देकर लाभ कमाते है । हमको अपनी मेहनत और श्रम का हिस्सा क्या उनके लाभ से हमको नही मिलता है ? हो सकता है उनकी योजना सफल हो तो भारतीय नक्शे में बीजिंग और इस्लामाबाद को दर्शाना शुरू कर दें

सादर
सुमन
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24.10.09

लो क सं घ र्ष !: दोस्त-दोस्त न रहा

साम्राज्यवादी लूट शोषण करने में अमेरिका और इजराइल की जोड़ी प्रसिद्ध है और इन दोनों देशों की खुफिया एजेन्सी सी आई और मोसाद विकास शील देशों के ख़िलाफ़ एकजुट होकर काम करती रहती है लेकिन समय आने पर वे एक दूसरे के विरूद्व जाकर अपना अधिपत्य कायम करना चाहती हैअभी कुछ दिन पूर्व अमेरिकी वैज्ञानिक को गिरफ्तार किया गया है जिसके ऊपर आरोप है की उसने इजराइल को ताजा खुफिया जानकारियाँ दी हैअमेरिकी वैज्ञानिक स्टीवर्ट डेविड नोजेट को एक स्टिंग ऑपरेशन में एफ.बी.आई एजेंट ने पकड़ा हैइजराइल हमेशा से अपने हितों की पूर्ति के लिए अमेरिका के ऊपर तमाम तरह के प्रयोग करता रहता हैइससे पूर्व ग्यारह सितम्बर की घटना वर्ल्ड ट्रेड सेंटर में एक भी इजराइली कर्मचारी नही मारा गया था क्योंकि उस दिन सभी हजारो इजराइली करमचारियों ने एक साथ छुट्टी ले रखी थी और अमेरिकन साम्राज्यवाद ने उस दिशा में घटना की जांच करने की हिम्मत भी नही की और एशियाई मुल्कों के ऊपर तोहमत मड़कर अपना आतंक का साम्राज्य फैलाना शुरू कर दियासाम्राज्यवादी लूट में दोस्त-दोस्त रहा, बल्कि मुख्य चीज यह है कि किस तरीके से एक दूसरे के ऊपर दबाव बनाकर ज्यादा से ज्यादा लाभ लिया जा सके

सुमन
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सिरसा जिला ने रचा रक्तदान के क्षेत्र में नया इतिहास

सिरसा(प्रैसवार्ता) रक्तदान के क्षेत्र में सिरसा जिला ने नया इतिहास रचा है। 1 जनवरी 2010 से सिरसा जिला देश के विभिन्न क्षेत्रों में रक्त की पूर्ति करने में सक्षम होगा। जिला ने स्वैच्छिक रक्तदान में शत् प्रतिशत लक्ष्य पूरा कर लिया है। यह बात इंडियन रैडक्रॉस सोसाइटी जिला सिरसा ब्रांच के प्रैजीडेंट एवं जिला उपायुक्त श्री युद्धवीर सिंह ख्यालिया ने स्थानीय सी एम के नैशनल गल्र्ज कॉलेज में हरियाणा स्टेट ब्लड ट्रांसफूजन कौंसिल और इण्डियन रैडक्रास सोसाइटी द्वारा आयोजित नया साल नया सवेरा कार्यक्रम में संबोधित करते हुए कही। उन्होंने कहा कि इस दो दिवसीय कार्यशाला में रक्तदान के क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिए एक्शन प्लान तैयार की जाएगी जिसके पश्चात जरुरत पडऩे पर मरीज रक्त का नहीं बल्कि रक्त मरीज का इंतजार करेगा और खून की कमी के कारण किसी का जीवन खतरे में नहीं आएगा। उन्होंने कहा कि आज सिरसावासियों के लिए सबसे पवित्र दिन है जहां रक्तदान की प्रेरणा को लेकर सेमिनार किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि रक्तदान की प्रेरणा के लिए चल रही कार्यशाला व हेमकॉन 09 कार्यक्रम से मानवता और इंसानियत की तरंग निकलकर दुनिया के कोने-कोने में अपना संदेश पहुंचाएगी। श्री ख्यालिया ने अपने वक्तव्य के आरंभ में जय रक्तदाता के नारे का उद्घोष किया और कहा कि सिरसा से 'जय रक्तदाताÓ के नारे की गूंज न केवल हरियाणा में बल्कि पूरे देश में पहुंचेगी। उन्होंने कहा कि रक्तदान के मामले में सिरसा दूसरों के लिए न केवल एक उदाहरण बन गया है बल्कि जिस तरह से रक्तदान के लिए लोग आगे आ रहे है वह दिन भी दूर नहीं जब सिरसा अन्य जिलों की रक्तपूर्ति भी करने में सक्षम होगा। उन्होंने कहा कि एक्शन प्लान को दिमाग से तैयार करेंगे और लागू दिल से करेंगे। इस प्लान को सफल बनाने के लिए पूरी कार्यक्षमता का इस्तेमाल होगा और रक्तदान के क्षेत्र में कार्य कर रही विभिन्न समाजसेवी संस्थाएं व समाजसेवियों की भागेदारी भी सुनिश्चित की जाएगी। उपायुक्त ने अपने संबोधन में रक्तदान के लिए लोगों को प्रेरित करने के मूलमंत्र पर प्रकाश डालते हुए कहा कि एक रक्तदानी प्रेरित करके एक रक्तदानी ओर बनाएं और एक रक्तप्रेरक अपना दायित्व समझकर एक ओर रक्तप्रेरक बनाएं तथा एक वर्ष में चार बार रक्तदान करने का लक्ष्य निर्धारित करें तो यह मिशन सफल हो जाएगा। उन्होंने कहा कि अपना और अपने बच्चों का जन्मदिन भी रक्तदान करके मनाना चाहिए ताकि रक्तदान की अलख जगाई जा सके। इस अवसर पर उप-निदेशक ब्लड सेफ्टी हरियाणा एवं इंटरस्टेट ब्लड ट्रंासफूजन की चेयरपर्सन डा. जसजीत कौर ने कहा कि रक्तदान को लेकर लोगों में खासकर युवाओं में जुनून पैदा करने की जरुरत है। उन्होंने जिला प्रशासन और रक्तदान के क्षेत्र से जुड़ी समाजसेवी स्ंास्थाओं की प्रशंसा करते हुए कहा कि रक्तदान के लिए प्रेरित करने के मामले में सिरसा से बेहतर जगह नहीं हो सकती। उन्होंने कहा कि रक्त की जरुरत पूरी करने के साथ-साथ इस बात का भी ध्यान रखा जाए कि सुरक्षित खून को प्राथमिकता दी जाए। उन्होंने कहा कि अगर कुल जनसंख्या का एक प्रतिशत लोग भी रक्तदान के लिए आगे आए तो पूरे सालभर के लिए जरुरत पूरी हो जाती है। इस मौके पर डा. वेद बैनीवाल ने रक्तदान को पूजा सामान बताया और कहा कि रक्त का विकल्प नहीं हो सकता इसलिए रक्त से बढ़कर दान नहीं है। हमारे द्वारा किया गया रक्त किसी जरुरतमंद की जिंदगी बचाने में कारगर साबित होता है। उन्होंने कहा कि रक्त के क्षेत्र में गांव स्तर पर आत्मनिर्भर होना चाहिए। समारोह में जिला रैडक्रॉस सोसाइटी के चेयरपर्सन श्रीमती किरण ख्यालिया, उपमंडल अधिकारी नागरिक एस.के सेतिया, समाजसेवी प्रवीण बागला, सी.एम.ओ प्रताप धवन सहित विभ्रिन्न विभागों के अधिकारी व सामाजिक संस्थाओं के रक्तदान प्रेरक मौजूद थे।

लो क सं घ र्ष !: पाकिस्तानी कहानी

भगवान दास दरखान - 3

यह बरसाती पानी आन की आन में उफान और सैलाब की सूरत इख़्तियार कर लेता है। तेज़ और तीखे रेले में मुसाफ़िरों से भरी हुई बसें बह जाती हैं। फ़सलें बरबाद हो जाती हैं। इन्सान और मवेशी बह जाते हैं। पत्थर, मिट्टी और घास-फूस के बने हुए मकान ढह जाते हैं। हर तरफ़ जल थल हो जाता है। तबाही और बरबादी का बाज़ार गर्म हो जाता है। यही पानी, जो पहाड़ों और उसके दामन में बसने वालों के लिए रहमत का पानी बन सकता है, ज़हमत और मुसीबत बन जाता है।
लेकिन वे जगहें जहाँ रूदकोहियाँ मौजूद हैं, इस तबाही से महफूज़ रहती हैं। उन जगहों पर पानी के तेज़ बहाव का रुख़ मोड़ने के लिए ढलवान पर जगह-जगह मिट्टी और पत्थरों के मजबूत और ऊँचे-ऊँचे पुश्ते बनाये गये हैं। इस तरह बारिश का पानी छोटी-बड़ी नालियों से बहकर उस ज़मीन को जलमग्न करता है, जिस पर खेती-बाड़ी होती है। मगर ऐसी बारानी ज़मीन पर आमतौर पर सिर्फ़ एक फ़सल होती है, जिसमें मक्की के इलावा ज्वार और बाज़रा पैदा होते हैं।
ऐसी रूदकोहियाँ (जल संग्रह का एक तरीक़ा) पहाड़ियों की तलहटी में जगह-जगह देखने में आती हैं। लेकिन झगड़ेवाली रूदकोही इस से भिन्न थी, ज्यादा उपयोगी और देर तक काम आने वाली। अपनी नौइयत और उपयोगिता के ऐतबार से वह एक छोटे से बाँध की तरह थी। उसका निर्माण इस तरह किया गया था कि बारिश के पानी की तेज़ धारा पुश्तों से टकराकर जब अपना रास्ता बदलती, तो नालियों से गुज़रती हुई ढलान के उस तरफ़ बहकर जाती, जहाँ ज़मीन खोदकर पानी का ज़ख़ीरा करने का निहायत मुनासिब इन्तज़ाम था। पानी का यह ज़ख़ीरा ज़मीन की सतह से कुछ बुलन्दी पर था और उसका हिस्सा एक विस्तृत गुफा के अन्दर दूर-दूर तक फैला हुआ था।
पानी का यह ज़ख़ीरा, जिसे स्थानीय बोली में खड्ड कहा जाता है, पहाड़ी चट्टानों के सख़्त और बड़े-बड़े पत्थर तोड़-फोड़कर निहायत जी तोड़ मेहनत से बनाया गया था, ताकि गर्मी के मौसम में पानी सुरक्षित रहे। खड्ड का पानी आम घरेलू इस्तेमाल के भी काम आता था। खड्ड से खेतों की सिंचाई करने के लिए जो नहरें और नालियाँ बनायी गयी थीं, वे ख़रीफ के इलावा कभी-कभी रबी की फ़सल की काश्त के वास्ते भी पानी मुहैया कराती थीं।
फ़रीकै़न (वादी-प्रतिवादी) का ताल्लुक़ तमन मज़ारी के रस्तमानी और मस्दानी क़बीलों से था। वे सुलेमान पहाड़ की दक्षिणी तलहटी में खेती-बाड़ी के साथ-साथ भेड़ चरवाही भी करते थे। साँझी रूदकोही से अपने खेतों को पानी देते थे। यह इलाका बलूचिस्तान के बुक्ती क़बीलों के निवास स्थान, डेरा बुक्ती से लगा हुआ है, जो शहज़ोर ख़ाँ मज़ारी की एक बलूच बीबी को बाप की तरफ़ से विरासत में मिला था। इसलिए अब वह उस जागीर में शामिल था।
पानी के बँटवारे का झगड़ा बढ़कर धीरे-धीरे रस्तमानियों और मस्दानियों के दरमियान पुरानी क़बाइली दुश्मनी की शक्ल अख्ति़यार करता गया। बदले की कार्रवाई के तौर पर मवेशी उठा लिये जाते, फ़सलों को नुक़सान पहुँचाने की कोशिश की जाती, रात केे अँधेरे में चोरी-छिपे पानी के बहाव का रुख़ मोड़ दिया जाता, ज़ख़ीरा यानी खड्ड के मुँह से रुकावटें हटा दी जातीं और अपने खेतों को ज़्यादा से ज़्यादा जलमग्न करने की गऱज़ से पानी की चोरी की जाती।
कई बार लड़ाई-झगड़े हुए, मगर पिछले हफ़्ते ज़बरदस्त हथियारबन्द मुठभेड़़ हुए। मुठभेड़ से पहले बाकायदा विरोधी फ़रीक़ को ललकारकर ख़बरदार किया गया था कि वह पूरी तैयारी के साथ मुक़ाबले पर आयें। इसलिए फ़रीकैन ने अपने-अपने क़बीले से जं़ग-आज़माओं और सूरमाओं को इकट्ठा किया, रात भर जागते रहे। सलाह-मशवरा करते रहे। अपनी और दुश्मन की ताक़त और असलहों का अन्दाज़ लगाते रहे और उसकी रौशनी में प्रभावशाली जं़गी कार्रवाई करने के मंसूबे बनाते रहे।
-शौकत सिद्दीक़ी

सुमन
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लोकसंघर्ष पत्रिका में शीघ्र प्रकाशित

.....जारी ......*

अजब अनोखी वसीयते

वसीयत करना प्रत्येक व्यक्ति का अधिकार है। इसके द्वारा वह अपनी मृत्यु के पश्चात जिसे चाहे उसे अपनी संपति का वारिस घोषित कर सकता है अथवा अपनी संपति वितरण कर सकता है। आम तौर पर व्यक्ति संतान, सगे संबंधियों या अनाथालयों को अथवा धार्मिक संस्थाओं को अपनी संपति देता है। संसार में कुद ऐसे लोग भी हुए हैं, जिन्होंने अजब अनोखी वसीयतें कर सबको अचरज में डाल दिया है। ऐसी व्यक्ति उसकी मृत्यु के समय सबसे ज्यादा हंसे, उसे संपति का चेयरमैन नियुक्त किया जाये, और जो रोए उसे कुछ न दिया जाए। टेक्सास के विल्सन ने अपनी वसीयत के प्रति संदेह दूर करने के लिए उसे अपनी पीठ पर ही गुदवा लिया था। दाढी मूंछों से घृणा करने वाले लंदन के एक फर्नीचर व्यापारी ने अपनी वसीयत में सारी संपति उन कारीगरों के नाम लिख दी, जिनकी दाढी मूंछे सफाचट हो। अमरीका के एंडरसन को बिल्लियां बड़ी प्रिय थी। उनके पास 17 बिल्लियां एवं 3 बिल्ले थे। जब उनकी मृत्यु के बाद 12 दिसंबर 1990 को उनकी वसीयत पढ़ी गई तो तीनों बिल्लों को 11-11 लाख डालर तथा 17 बिल्लियों को 6-6 लाख डालर मिलें। कुल संपति थी, 135 लाख डालर। जब वसीयत पढ़ी गई तो एंडरसन के सभी रिश्तेदार मौजूद थे। पुत्र एलिस की तो इस सदमे से मौत हो गई कि उसके पिता ने उसके लिए फूटी कौड़ी तक नहीं छोड़ी थी। फ्रांस की मदाम क्लरा ने अपनी वसीयत में अपनी सारी जायदाद उस व्यक्ति के नाम कर दी, जो मंगल ग्रह से आने वाला पहला आदमी हो। देखना यह है कि क्या कोई दावेदार कभी मंगल ग्रह से पृथ्वी पर आएगा? फिनलेण्डके फैडरिक रिचर्ड ने अपनी सारी संपति शैतान यानि भूत के नाम कर दी। जब काफी अर्से तक किसी भूत ने दावा पेश नहीं किया, तो सरकार ने सारी जायदाद अपने कब्जे में ले ली। फ्रांस के एक सौंदर्य प्रेम ने अपनी सारी संपति उन महिलाओं के नाम लिख दी, जिनकी आंखों, नाक, होठ और बाल सुंदर हों। स्कॉटलैंड के एक उद्योगपति ने अपनी संपति अपनी संपति के वजन के मुताबिक संपति का बटवारा किया गया अधिक वजन, अधिक संपति। कम वजन, कम संपति। इससे मोटो की किस्मत खुल गई और दुबला का बेडा गर्ग हो गया। इटली के विख्यात पशु चिकित्सक बारोमोलिया को भेड़ों से बड़ा लगाव था। वे उन्हें अपने बंगले में बड़े ही ठाठ में रखते थे। उनके पास 135 भेड़ें थी। उन्होंने अपनी कुल संपति का आधा हिस्सा यानी 14 लाख लीरा इन भेड़ों को समर्पित कर दिया था, ताकि उनके बाद उनकी भेड़ों को किसी प्रकार का अभाव न हो। डेनमार्क की राजधानी कोपेनहेगन में वल्डेकर नामक एक फोटाग्राफर थे, जिन्हें गायों से विशेष प्रेम था असहाय बीमार गायों को देख उनका मन बहुत दुखी होता था। वे ऐसी गायों की प्रभावी मुद्रा में फोटो खींचते और उनकी बिक्री से प्राप्त राशि को अलग रखते थे। 18 नवम्बर 1983 को जब उनकी मृत्यु हुई और उसके बाद उनकी वसीयत पढ़ी गई, तो उसमें लिखा था कि गायों के चित्रों से प्राप्त राशि, जो कोपनहेगन के एक बैंक में जमा है, ऐ एक गौ शाला बनाई जाए, जहां बीमार वृद्ध एवं बेसहारा गायों की परवरिश की जाए। उनकी यह राशि 19 लाख क्रोन (डेनमार्क की मुद्रा) थी। आस्ट्रेलिया के जैम्स मूर एक बड़ी दूध डेरी के मालिक थे। उनकी मृत्यु 23जुलाई 1988 को हुई। 24 जुलाई को उसकी वसीयत पढ़ी गई। उनकी कुल पूंजी कंगारूओं के कल्याण पर खर्च करने की वसीयत की थी। लंदन के एक कारीगर केवेन्टर की मोटर साइकिल से एक गिलहरी मर गई। उसे इसका बेहद अफसोस हुआ उसने अपनी वसीयत में लिखा कि उसकी सारी संपति गिलहरियों के लिए है और उससे उनके दाना-पानी की व्यवस्था की जाए। अंधेरे से नफरत और उजाले से प्यार करने वाले जर्मनी के एक डॉक्टर ने मृत्यु के बाद उसके ताबूत में बारीक जालियां लगाई गई तथा कुछ जलती हुई मोमबत्तियां भी रखी गई। युगोस्लाविया के एक पियक्कड़ व्यापारी ने अपनी वसीयत में लिखा कि वह जो संपति छोड़े जा रहा है, उससे प्रतिदिन उसकी कब्र को शराब से धोया जाए और वर्ष में एक दिन (उसके मरने की तिथि) शहर भर में सभी शराबियों को कब्र के पास बैठकर मनचाही शराब पिलाई जाए। स्विट्जरलैंड के एक इंजीनियर जैकीस चिकार्ड ने काफी धन कमाया। उसकी वसीयत कुल संपति 17 लाख फ्रेंस थी। उसने अपनी वसीयत में कहा था कि इनसे पशु अस्पताल खोला जाए, जहां घायल पशुओं की नि:शुल्क चिकित्सा व्यवस्था हो। मध्यप्रदेश के इंदौर शहर में एक कपड़ा व्यवसायी थे, रामनिवास चौधरी। फरवरी 1982 में उनकी मृत्यु हुई। उन्होंने अपनी सारी जायदाद बंदरों के नाम कर दी थी। उनकी संपति थी 3 लाख 17 हजार रुपए। हेनलिन, जर्मनी के विख्यात करोड़पति आर्थर एवमैन ने अपनी सारी धन दौलत उन लोगों के नाम कर दी, उसकी शवयात्रा (अंतिम संसकार) में शामिल होंगे। साहित्यकार की सनक के तो क्या कहने! वोरिया के विख्यात साहित्यकार कांग जुफूसोल ने काफी दौलत अर्जित की थी। उसने अपनी वसीयत में लिखा कि जो कोई उसकी याद में राजधानी में 1500 मीटर टावर बनाएगा, उसी को सारी संपति मिलेगी, लेकिन साहित्यकार की वसीयत धरी रह गई, क्योंकि कोई भी इतना ऊंचा टावन बनाने के लिए तैयार नहीं हुआ। अंत में सरकार ने उसकी संपति अपने कब्जे में ले ली। भिखारी भी भला वसीयत करते है? क्यों नहीं, उनके पास अथाह धन हो, तो अवश्य कर सकते है। इग्लैंड के कैनन हैरी ने भीख मांग काफी धन इक_ा किया और सारी संपति भिखारियों के मनोरंजन के लिए कर दी। निक एकाडे के पास डोली नामक कुत्ता था, जो हर समय उसके साथ रहता था। जब 18 जून 1991 में उसकी मृत्यु हो गई उसकी वसीयत पढ़ी तो, घर वालों के पैरों तले से जमीन खिसक गई। 35 लाख डालर की सारी संपति वे अपने प्रिय कुत्ते के नाम कर गए थे। यही नही वे यह भी लिख गये थे कि उनकी मृत्यु के बाद उनकी बीवी व बच्चों को उनके मान से बेदखल कर दिया जाए तथा उस भवन में कुत्तों के लिए अनाथालय बनाया जाए, जिसमें अवारा कुत्तों की परवरिश की जाए। वरमोट अमरीका की श्रीमती जीन कोर हजो एक डिपार्टमैंटल स्टोर की संचालिका थी। 8 दिसंबर 1987 को स्वर्ग सिधार गई। उसकी मृत्यु के बाद उसकी वसीयत पढ़ी गई, तो संपति का बंटवारा कुछ इस तरह था। 15 लाख डालर पूसी, रूबू और खोसी नामक तीन बिल्लियों के लिए, 7 लाख डालर कबूतरों के लिए तथा 3 लाख चिडिय़ों के लिए। -मनमोहित ग्रोवर, प्रैसवार्ता