10:08 pm
Randhir Singh Suman
पाकिस्तान के अन्दर काफ़ी दिनों से आतंकी घटनाएँ बढ़ रही है । आतंकवादियों
ने सेना मुख्यालय से लेकर पूर्व प्रधानमंत्री बेजनीर भुट्टो तक की हत्या कर दी है ।
अब वजीरिस्तान प्रान्त पर पाकिस्तानी सेना के 40 हजार जवान युद्घ के लिए भेजे गए है ।
मुख्य बात यह है कि तालिबान को अमेरिकी मदद से तैयार किया गया था और उनको तैयार करने में पकिस्तान की सरकार व आई एस आई के दिशा निर्देश थे ।
इस समय तालिबान के पास 2 लाख अमेरिकी हथियार है ।
जिसमें ए के सीरीज़ की राईफलें ,
रॉकेट लॉचर ,
ग्रेनेड ,
ई एल सी लाइट मशीन गन है ।
साम्राज्यवादी शक्तियों ने पहले धार्मिक कट्टरपंथियों को हथियारों से लैश किया और फ़िर ग्रह युद्घ की स्तिथि पैदा कर पूरे पकिस्तान के विकास को रोक दिया है ।
हमारे देश के अन्दर अमेरिकन साम्राज्यवाद और उसके पिट्ठू इजराइल का हस्तक्षेप बढ़ा है ।
माले गाँव से लेकर मुंबई आतंकी घटना तक साम्राज्यवादी शक्तियों का ही हाथ रहा है । एक तरफ़ धार्मिक कट्टर समूहों को पनपाने में मद्दद देने का कार्य साम्राज्यवादी शक्तियां शुरू से कर रही है । अभी दीपावली के अवसर पर गोवा में दक्षिण पंथी हिंदू संगठन सनातन' के सदस्य स्कूटर से बम ले जा रहे थे, विस्फोट हो गया और मारे गए । 4 सदस्य गिरफ्तार किए गए है उक्त कट्टर हिंदू संगठन का सम्बन्ध माले गाँव आरोपी साध्वी प्रज्ञा सिंह से है । इन लोगो कि मंशा यह थी कि दीपावली के अवसर पर भीड़ वाले इलाके में विस्फोट करा कर आतंक का माहौल कायम किया जाए । साम्राज्यवादी शक्तियों की कोशिश है कि देश के अन्दर विभिन्न धार्मिक समूहो के कट्टरवादियों को उकसा कर प्रशिक्षण देकर लैश कर ग्रहयुद्ध जैसी स्तिथि कर दी जाए । साम्राज्यवादी शक्तियों का सरकार के ऊपर प्रभाव पड़ा है जैसे पकिस्तान के ऊपर शुरू से साम्राज्यवादी शक्तियों का प्रभाव रहा है और उसकी दुर्दशा हो रही है । हमारा देश ब्रिटिश, फ्रांसीसी , पुर्तगाली आदि साम्राज्यवादी शक्तियों द्वारा शासित रहा है । इन्ही शक्तियों ने देश की प्राकृतिक सम्पदा से लेकर प्रत्येक चीज का शोषण किया है । सम्रज्वादियो की समृद्धि उपनिवेशिक लूट ही होती है । आज की स्तिथियों में अमेरिकन साम्राज्यवादी शक्तियां हमारे देश को कमजोर करके अप्रत्यक्ष रूप से शासित करना चाहती है। जिस में उग्र हिंदू वादी संगठन उनके लिए मददगार साबित हो रहे है इसलिए आवश्यक है की अमेरिकन साम्राज्यवाद का मिलजुलकर मुकाबला किया जाए तभी देश की आर्थिक प्रगति, विकास सम्भव है । साम्राज्यवादी शक्तियों को बगैर परास्त किए देश का विकास सम्भव नही है।सुमनloksangharsha.blogspot.com
6:53 pm
बेनामी
जीन्द(हरियाणा) : जिले भर में विश्वकर्मा दिवस रविवार को हर्षेल्लास के साथ मनाया गया। इस मौकें पर विभिन्न स्थानों पर शोभा यात्रा तथा भंडारों का आयोजन किया गया। नरवाना स्थित श्री विश्वकर्मा मंदिर में प्रबंधक कमेटी के तत्वावधान में आयोजित कार्यक्रम में मुख्य अतिथि राज्यसभा सांसद डॉ. रामप्रकाश तथा संस्था उप प्रधान दलीप सिंह हुए।
राज्यसभा सांसद डॉ. रामप्रकाश ने कहा कि जो लोग भवनों का निर्माण करते हैं, उन्हें स्वच्छ समाज के निर्माण के लिए भी आगे आना चाहिए। जिस समाज के बच्चे शिक्षित होंगे वही समाज तरकी करेगा। उन्होंने विश्वकर्मा के दिखाए रास्ते पर चलने का आह्वान करते हुए कहा कि विश्वकर्मा को केवल हिंदू ही नहीं मुस्लमान और सिख भी अच्छी तरह मानते हैं। विश्वकर्मा ने सभी लोगों को हाथ से काम करने का हुनर दिया है। उन्होंने श्री विश्वकर्मा समाज के लोगों से सामाजिक बुराइयों से दूर रहने का आह्वान करते हुए कहा कि उन्हें कन्या भ्रूण हत्या को लेकर भी जागरूक होना चाहिए।
उप प्रधान दलीप सिंह ने कहा कि इंसान कर्मों से छोटाबड़ा बनता है। जो लोग विश्वकर्मा के जीवन से प्ररेणा लेकर काम करते हैं ऐसे लोगों के जीवन में कभी निराशा नहीं होती। उन्होंने समाज के प्रतिभावान छात्रों को पुरस्कृत किया। इससे पूर्व सुबह प्रभात फेरी निकाली गई और यज्ञ कराया गया । दिन भर चले अटूट भंडारे में हजारों श्रद्धालुओं ने प्रसाद चखा। इस मौके पर छात्रों ने रंगारंग कार्यक्रम भी प्रस्तुत किए। उधर, वैष्णवी धाम, मिस्त्री मार्केट, रोहतक रोड स्थित विश्वकर्मा धर्मशाला, नरवाना रोड स्थित विश्वकर्मा धर्मशाला, अपोलो रोड, रोडवेज वर्कशॉप में भंडारे का आयोजन किया गया। सफीदों संवाददाता के अनुसार विश्वकर्मा मंदिर में विश्वकर्मा जयंती पर भंडारे का आयोजन किया गया।
9:27 pm
manmohit grover
हर नारी के जीवन में एक बसंत ऋतु आती है, पतझड़ का संदेश लेकर। तब नारी का जननी रूप तिरोहित होने लगता है। और उसके भीतर दवि उभरती है। एक प्रौढवंय माता की विज्ञान की भाषा में इसे रजोनिवृति कहते है। उम्र की इस दहलीज को पार करने के बाद नारी गर्भ धारण करने में असमर्थ हो जाती है। इसे लगता है कि जैसे प्रकृति ने उसका समस्त आकर्षण एक बारगी छीन लिया हो। रजोनिवृति की दशा में अंडाशय में अंणाणु का निर्माण बंद हो जाता है और महिलाएं चाह कर भी गर्भ धारण नहीं कर सकती। कुछ वैज्ञानिकों का कहना है कि राजनेनिवृति के लिए जिम्मेवार है एस्ट्रोजेन नामक हार्मोन के स्राव में होने वाली कमी पिछले दशक तक यह माना जाता था कि एस्ट्रोजेन केवल एक मादा जनन हार्मोन है, जो यौन उतकों, मुख्य रूप से हाइपोथैमेलेस, बाहरी प्रमस्तिष्क, स्तन ग्रंथियों, गभ्राश्य, यौन आदि को हि नियप्त्रित करता है। पर नवीनतम शोध निष्कर्षों से पता चलता है कि एस्ट्रोजेन भले ही मुख्य रूप से एक जनन हार्मोन हो, पर उसके कार्यक्षेत्र में बहुतेरी गतिविधियां आती है, उदाहरण के लिए मूत्र-विसर्जन, पोषक तत्व का अवशोषण एवं उपापचय अस्थि एवं खनिज उपापचय, रक्तचाप एवं हृदय की कार्यप्रणाली याद्दाशत एवं सज्ञानता, जीवन में एक अंतनिहित एक खाय लय एवं लत आदि एस्टोजेन के ही प्रभाव क्षेत्र में होने वाली कमी ने केवल मादा जननतन्त्र के समाथर्य का अपहरण कर लेते है, बल्कि शरीर क्रिया प्रणाली की व्यापक रूप से प्रभावित भी करती है। रजोनिवृति के उपरांत न तो अंडाशय में अंडाणु बनते है, न ही एस्टहायल या प्रोजेस्टरॉन का संशेषण ही होता है। इनिहिबिन ग्लाईको प्रोटीन भी रक्त से गायब होने लगता है। शरीर में होने वाले परिवर्तन को भापॅकर बाह्य प्रमस्तिष्क ग्रंथियां हरकत में आती है तथा फॉलिकिल स्टिमुलेटिंग हार्मोन एवं ल्युटिनाईजिंग हार्मोन का भरपूर स्राव होने लगता है। यही कारण है कि 40-50 के की उम्र में, जब मासिक स्राव जारी रहता है, फॉलिकिल स्टिमुलेटिंग हार्मोन का स्राव बढ़ जाता है, ल्युटिनाईजिंग हार्मोन का चिकित्सा जगत में यह धारण प्रचलित रही है कि रजोनिवृति अंडाशय के अंडाणु के अंडाणु उत्पादन क्षमता के चुक जाने का परिणाम पात्र है। पर अब वैज्ञानिकों के बीच यह विवाद का विषय है कि रजोनिवृति को आमंत्रण देने में अंडाशय एवं हाइपोथेनेमस पीयूष ग्रंथियों की जिम्मेवारी कितनी है। चिकित्सा विज्ञानियों का एक वर्ग कहता है कि रजानिवृति उसके बाद होने वाले मानसिक उतार-चढ़ाव अंडाशय में होने वाले परिवर्तन के परिणाम मात्र है। पर वैज्ञानिकों का दूसरा वर्ग मानता है कि रजोनिवृति केन्द्रीय सा्रयुतंत्र में होने वाले परिवर्तन का परिणाम है। यही परिवर्तन नारी के गर्भ धारण करने की क्षमता को भी प्रभावित करता है। चाहे जो भी हो, रजोनिवृति नारी के जीवन में एक नया मोड़ लेकर आती है। उसके शरीर में परिवर्तन का एक चक्र शुरू हो जाता है। इस समय वह भावना के एक झनावत में फंसी होती है। कभी उसे अपनी स्वरूप दिव्य एवं उज्जाला नजर आता है तो कभी अपने को लुष्ठिता से अधिक आंकती इस अवस्था में महिलाएं चिड़चिड़ी हो जाती है, ईष्यार्लु हो जाती है। आमतौर से महिलाओं में से परिवर्तन रजोनिवृति की शुरूआती दौर में ही परिलक्षित होते है, पर कुछेक ऋषियों की तो यह जीवन पद्धति ही बन जाती है। रजोनिवृति को टालने के अनेक प्रयास किए गए है। कभी एस्ट्रोजेन को सेवन कराकर तो कभी विटामिन की गोलियां पकड़ा कर। पर अभी तक इसमें कोई कामयाबी नहीं मिली है। -मनमोहित ग्रोवर (प्रैसवार्ता)
9:25 pm
manmohit grover
वह देश कदापि अपनी प्रगति नहीं कर सकता जहां पर नारी को केवल भोग व मनोरंजन की वस्तु मानकर उसको उसके वास्तविक अधिकारों सम्मानों से दर किनार कर दिया गया हो। नारी की इस विशेष महत्वता को ध्यान में रखते हुए महापुरूषों ने अपने जीवन के अंतिम चरण तक नारी शक्ति को उसका वास्तविक सम्मान और अधिकार दिलाने कठोर संघर्ष किया। परिणामत: जहां नारी को पर्दे में लपेट या फिर सती का नाम देकर आग में झोक दिया जाता था वहीं वह आज देश का नहीं, बल्कि संपूर्ण विश्व का भाग्य लिख रही है। बावजूद इसके गत वर्षों में मातृ शक्ति (नारी शक्ति) पर अत्चाचार बढ़े हैं। कारण साफ है, कि आज भी यह सोच विद्यमान है जहां नारी को विषय भोग या मनोरंजन की वस्तु मानकर उसके साथ ढोर गंवार, शूद्र, पशु, नारी वाली कहावत चरितार्थ कर व्यवहार किया जाता रहा है। विश्व को अपनी साधारण कोख से जन्म देने वाली यह असाधारण शक्ति से परिपूर्ण अर्धागिनी कही जाने वाली इस नारी ने ही सामान्य रसोई घर से अपनी यात्रा आरंभ कर हर क्षेत्र में हर पल चाहे बात शीत युद्ध की हो या शांति की धर्म की हो या राजनीति की, समाज की हो या आर्थिक स्तर की हर स्तर पर अपनी सफलता व विजय का परचम फहराते हुए इतिहास के पन्नों पर अपना स्थान सुरक्षित रख है। यह बात अवश्य स्वीकारने योग्य है, कि विगत वर्षों में महिलाओं पर अचानक बढ़े अत्याचार इस बात की पुष्टि करते हैं, कि नारी अपने अधिकारों, कर्तव्यों और सम्मान के प्रति ज्यादा जागरूक व सतर्क हुई है। वहीं पूर्व में नारी या महिलायें निरक्षरता लोकलाज व समाज के भय से अपने साथ हो रहे अत्याचार को मजबूर होकर मूकदर्शक बने सहती रही, किन्तु उसके विपरीत अगर देखा जाए जो बड़े ही दुर्भाग्य का विषय है, कि सरकार महिलाओं को आरक्षण का लॉलीपाप दिखाकर उनके विकास और पुरूषों के बराबर हक की बातें करतें नहीं थकती। वहीं आज स्वयं ही नारी पर तीन वर्षों से लगातार बढ़ते अत्चारों के कारण संदेह के कटघरे में आकर स्वयं की नीयत पर प्रश्र चिन्ह? अंकित किये खड़ी है। जिसका परिणाम निकट भविष्य में कितना खतरनाक होगा यह कहना मुश्किल है। बहरहाल जो भी हो इतिहास इस बात का साक्षी है कि नारी ही शक्ति स्वरूपा दुर्गा है वही जगत को पालनें वाली लक्ष्मी है। वही संहार करने वाली काली है। सत, रज और तक का रूप नारी समय-समय पर अपना स्वरूप बदलती रहती है। वही घर को स्वर्ग और नर्क बनाती है। आवश्यकता इस बात की है, कि हम उसकी शक्ति व महत्वता को पहचान कर उस पर हो रहे अत्याचार के प्रति प्रतिरोध का शंखनाद करें। -वंश जैन (न्यूज़प्लॅस)
9:24 pm
manmohit grover
दहेज के कीड़े समाज में बढ़तें जा रहे हैं। दहेज इंसानियत के नाम पर कलंक हैं। कोई भी चीज इंसान को हैवान बना दे उसे कलंक की वस्तु ही कहा जाना चाहिए। दहेज लेने का नशा ही आज इंसान को हैवान बना रहा हैं। दहेज के खातिर मार-पीट करने की, तंग करने की घटनाएं आज आम सुनने को मिलती हैं। कई हैवान किस्म के लोग दहेज के खातिर लड़की को जान से मारने से भी नहीं चुकते। दहेज की बलि देवी पर जान कुर्बान करने वाली लड़कियां सही मायने में अपना प्रतिरोध नहीं कर पाती। दहेज के खातिर लड़कियों को तंग करना, उन्हे जान से मार देना सरासर कायरता हैं। हर मां-बाप अपनी बेटी को लाड़-प्यार से पालते हैं। उसे उच्च से उच्च शिक्षा दिलाते है। उसकी हर ख्वाहिश को पूरी करते है। उसकी शादी के सुनहरे सपने देखते हैं, लेकिन शादी उपरांत दहेज के दानव उनकी सारी उम्मीदों पर पानी फेर देते हैं। लड़की के मां-बाप लड़के वालो की हर इच्छा पर बड़ी कुशलता से पालन करते हैं। पर इसके बावजूद दहेज के दानव इनकी भावनाओं को चकनाचूर कर देते हैं। दहेज के दानव लड़की से इतना दुव्र्यवहार करते है कि वह सूखकर कांटा हो जाती हैं। वे इतना भी नही सोचते कि बेटे की शादी में दहेज की मांग करने वालो को भी कभी अपनी बेटी की शादी करनी होगी। उन्हे सिर्फ इतना याद रहता है कि वे लडके वाले हैं और उन्हे ज्यादा से ज्यादा दहेज लेना हैं। आज की युवा पीढ़ी को दहेज प्रथा का कड़ा विरोध करना होगा। उन्हे दहेज के कीड़ों को खत्म करने कि लिए आगे आना होगा। इन दहेज के कीड़ों पर इस प्रकार की दवा छिड़कनी होगी कि वे समूल ही नष्ट हो जाए। युवाओं को दहेज न लेने का दृढ़ संकल्प करना होगा। ज्यादातर देखने को आता है कि लड़की के मां-बाप अपनी बेटी को अधिक से अधिक दहेज देकर खुश देखना चाहते हैं, परन्तु उन्हे नहीं मालूम की वह दहेज देकर उन्हे दहेज लोभी बना रहे हैं। जिसके कारण लड़के वालो की इच्छाएं बढ़ती जाती हैं। जिसके फ लस्वरूप लड़की के माता-पिता को कई मुश्किलों का सामना करना पड़ता हैं। आजकल के लोग शादियों में लाखों का धन उड़ा देते है, जिसका कोई लाभ नहीं होता। वे जितने रूपये एक लड़की की शादी में खर्च करते हैं उतने रूपयों में कम से कम 25-30 लड़कियों का घर बस सकता हैं। आज समाज के सभी लोग कैंसर रूपी दहेज को भारत की सरजमीन से नेस्ताबूत या उखाड़ फें कने का दृढ़ संकल्प ले और प्रण करें कि न दहेज लेंगे और न दहेज देंगे। दहेज को लेकर मासूम लड़कियों की हत्या करने वाले दहेज लोभियों को कड़ी से कड़ी सजा मिलनी चाहिए। इसके प्रति रहम नाम की कोई चीज नहीं होनी चाहिए। जब हमारी सरकार और समाज दोनो मिलकर दहेज लोभियों के खिलाफ कड़ी कार्यवाही करेंगे तो निश्चित ही दहेज हत्याओं का दौर थमेगा। -मनोज अरोड़ा (न्यूजप्लॅस)
9:21 pm
manmohit grover
माउंट आबू को राजस्थान का स्वर्ग कहा जाता है। आबू रोड से करीब 15 कि.मी. की दूरी पर पर्वत पर स्थित माउंट आबू नाम से विख्यात नगर का इतिहास बहुत पुराना है। यह पर्वत न केवल भव्य मंदिरों के लिए विख्यात है, बल्कि यह पर्वत ऋषियों की साधना की भूमि भी रही है। पहाड़ पर स्थित अनेक गुफाओं से इस बात की पुष्टि होती है कि यहां अनेक ऋषियों ने तपस्या की थी। इस जगह का विकास इस तरह हुआ कि आज यह जगह अध्यात्म और संस्कृति का एक बेमिसाल संगम है। एक ओर यहां के महनुमा होटल देशी व विदेशी ट्रस्टियों को आकर्षित करते हैं। वहीं दूसरी ओर विभिन्न संप्रदाय के मठ-मंदिर व ब्रह्माकुमारीज विश्वविद्यालय का साधना स्थल एक अलग ही छटा बिखेरते हैं। प्रकृति का खूबसूरत उपहार कहलाने वाली यह जगह वास्तु शिल्प का बेजोड़ उदाहण है। मुख्य रूप से माउंट आबू देलवाड़ा में स्थित जैन मंदिरों के कारण विश्व विख्यात है। पर्वत पर स्थित देववाड़ा गांव में धवल संगमरमर से बनाए गए देलवाड़ा जैन मंदिर अपनी शिल्पकला, वास्तुकला एवं स्थापत्य कला के कारण आकर्षण का केंद्र है। हिंदु संस्कृति के यह मंदिर जैन वैभव कला को अपने आप में समेटे हुए हैं। मंदिर में देवी-देवता, नृत्य करतीं पत्थरों पर उकेरी गई मूर्तियां, पशु-पक्ष, फल-फूल आदि सभी सजीव दिखाई पड़ते हैं। संगमरमर पर ऐसी सूक्ष्म कला विश्व में शायद ही कहीं और देखने को मिले। 5 मंदिरों का देलवाड़ा मंदिर गुंबजों की छतों पर स्फटिक बिंदुओं की भांति झूमते मंदिरों में 22 तीर्थकरों की मूर्तियां हैं। बताया जाता है, कि इन मंदिरों का निर्माण राजा भीमदेव के मंत्री विमल वसाही ने किया था। इन मंदिरों का निर्माण 11 वीं सदी से प्रारंभ होकर 13 वीं सदी में पूर्ण हुआ था। विमल मंदिर: इस मदिर के निर्माण के बारे में कहा जाता है, कि विमल शाह ने अनेक युद्ध किए जिसमें अनेक लोगों की हत्या का कारण स्वयं को समझकर प्रयाश्चित हेतु आबू पर्वत पर जैन मंदिर के निर्माण की योजना बनाई। कुछ लोगों के द्वारा विरोध करने पर उनहं संतुष्ट करके विमल शाह ने 14 वर्षों में 1500 कारीगरों और 1200 मजदूरों के द्वारा इस मंदिर का निर्माण करवाया, जिसमें 8 करोड़ 35 लाख रुपयों की लागत लगी। इस मंदिर में प्रथम तीर्थकर ऋषभदेव की मूलनायक की प्रतिमा से प्रतिष्ठा जैनाचार्य वर्धमान सूरीजी द्वारा संपन्न हुई। मंदिर में कुल 21 स्तंभों में से 30 अलंकृत हैं। विद्यादेवी-महारोहिणी की 14 हाथों वाली मूर्ति, गुंबज में गुजलक्ष्मी और दूसरे गुंबज में शंखेश्वरी देवी की सूक्ष्मकृति, कमल के फूल में 16 नर्तकियों युक्त गुंबज और बीस खंडों का एक शिल्पपट्ट भी देखने लायक है। लूण मंदिर: यह मंदिर विमल मंदिर के बाद बनवाया गया। यह मंदिर छोटा है, लेकिन शिल्पकला में उससे भी अधिक है, जिसमें संगमरमर पर हथौड़ी-छैनी की मदद से कारीगरों ने बेल-बूटे, फूल-पत्ती, हाथी, घोड़ा, ऊंट, बाघ, सिंह, मछली, पछी, देवी-देवता और मानव जाति की अनेक कलात्मक मूर्तियां उकेरी गयी हैं। गुजरात के राजा वीरध्वन के मंत्री वास्तुपाल और तेजपाल दोनों भाइयों ने अपने स्वर्गीय भाई के नाम पर लूण मंदिर बनवाया। -अमित जैन (न्यूजप्लॅस), सिरसा
4:23 pm
Randhir Singh Suman
शुभ लाभ हमारा दर्शन नही है,
लेकिन ज्योति पर्व दीपावली पर शुभ लाभ का महत्त्व सबसे ज्यादा है इसी कारण हमारी समाज व्यवस्था में महत्वपूर्ण परिवर्तन हुए है। जिसके कारण मानव ही खतरे में पड़ गया है। इस त्यौहार को मनाने के लिए लाभ को ही शुभ मानने वाले लोगो ने नकली खोया,
मिठाइयाँ,
घी,
खाद्य तेल सहित तमाम सारी उपभोक्ता वस्तु बाजार में लाभ के लिए बेच रहे है। बिजनौर जनपद में 95 कुंतल सिंटेथिक खोया व उससे बनी मिठाइयाँ बरामद हुई है । बस्ती जनपद में 4 कुंतल मिठाई,
5 कुंतल खोया रोडवेज की बस में लोग छोड़ कर भाग गए। इस तरह से पूरे उत्तर प्रदेश में लाभ के चक्कर में लाखों कुंतल खोया,
मीठा,
नमकीन,
खाद्य पदार्थ को बेचा जा रहा है जिसका दुष्परिणाम यह है कि लोगों को मधुमेह,
दिल,
गुर्दा,
पथरी,
कैंसर जैसी लाइलाज बीमारियाँ हो रही है और लोग अकाल मृत्यु मर रहे है । भारतीय समाज का दर्शन मानव कल्याण का दर्शन था । इसके साथ हमारी प्रकृति के साथ चलने की प्रवित्ति थी किंतु, पूँजीवाद के संकट ने हमारे सारे मूल्य बदल दिए है । लाभ ही शुभ है और शुभ ही लाभ है । समय रहते ही अगर हमने पूँजीवाद से न निपटा तो मानवीय मूल्य समाप्त हो जायेंगे ।लोकसंघर्ष परिवार की ओर से सभी को दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं ।। सुमन
loksangharsha.blogspot.com