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17.10.09

उम्र की दहलीज पार करने के बाद स्त्री

हर नारी के जीवन में एक बसंत ऋतु आती है, पतझड़ का संदेश लेकर। तब नारी का जननी रूप तिरोहित होने लगता है। और उसके भीतर दवि उभरती है। एक प्रौढवंय माता की विज्ञान की भाषा में इसे रजोनिवृति कहते है। उम्र की इस दहलीज को पार करने के बाद नारी गर्भ धारण करने में असमर्थ हो जाती है। इसे लगता है कि जैसे प्रकृति ने उसका समस्त आकर्षण एक बारगी छीन लिया हो। रजोनिवृति की दशा में अंडाशय में अंणाणु का निर्माण बंद हो जाता है और महिलाएं चाह कर भी गर्भ धारण नहीं कर सकती। कुछ वैज्ञानिकों का कहना है कि राजनेनिवृति के लिए जिम्मेवार है एस्ट्रोजेन नामक हार्मोन के स्राव में होने वाली कमी पिछले दशक तक यह माना जाता था कि एस्ट्रोजेन केवल एक मादा जनन हार्मोन है, जो यौन उतकों, मुख्य रूप से हाइपोथैमेलेस, बाहरी प्रमस्तिष्क, स्तन ग्रंथियों, गभ्राश्य, यौन आदि को हि नियप्त्रित करता है। पर नवीनतम शोध निष्कर्षों से पता चलता है कि एस्ट्रोजेन भले ही मुख्य रूप से एक जनन हार्मोन हो, पर उसके कार्यक्षेत्र में बहुतेरी गतिविधियां आती है, उदाहरण के लिए मूत्र-विसर्जन, पोषक तत्व का अवशोषण एवं उपापचय अस्थि एवं खनिज उपापचय, रक्तचाप एवं हृदय की कार्यप्रणाली याद्दाशत एवं सज्ञानता, जीवन में एक अंतनिहित एक खाय लय एवं लत आदि एस्टोजेन के ही प्रभाव क्षेत्र में होने वाली कमी ने केवल मादा जननतन्त्र के समाथर्य का अपहरण कर लेते है, बल्कि शरीर क्रिया प्रणाली की व्यापक रूप से प्रभावित भी करती है। रजोनिवृति के उपरांत न तो अंडाशय में अंडाणु बनते है, न ही एस्टहायल या प्रोजेस्टरॉन का संशेषण ही होता है। इनिहिबिन ग्लाईको प्रोटीन भी रक्त से गायब होने लगता है। शरीर में होने वाले परिवर्तन को भापॅकर बाह्य प्रमस्तिष्क ग्रंथियां हरकत में आती है तथा फॉलिकिल स्टिमुलेटिंग हार्मोन एवं ल्युटिनाईजिंग हार्मोन का भरपूर स्राव होने लगता है। यही कारण है कि 40-50 के की उम्र में, जब मासिक स्राव जारी रहता है, फॉलिकिल स्टिमुलेटिंग हार्मोन का स्राव बढ़ जाता है, ल्युटिनाईजिंग हार्मोन का चिकित्सा जगत में यह धारण प्रचलित रही है कि रजोनिवृति अंडाशय के अंडाणु के अंडाणु उत्पादन क्षमता के चुक जाने का परिणाम पात्र है। पर अब वैज्ञानिकों के बीच यह विवाद का विषय है कि रजोनिवृति को आमंत्रण देने में अंडाशय एवं हाइपोथेनेमस पीयूष ग्रंथियों की जिम्मेवारी कितनी है। चिकित्सा विज्ञानियों का एक वर्ग कहता है कि रजानिवृति उसके बाद होने वाले मानसिक उतार-चढ़ाव अंडाशय में होने वाले परिवर्तन के परिणाम मात्र है। पर वैज्ञानिकों का दूसरा वर्ग मानता है कि रजोनिवृति केन्द्रीय सा्रयुतंत्र में होने वाले परिवर्तन का परिणाम है। यही परिवर्तन नारी के गर्भ धारण करने की क्षमता को भी प्रभावित करता है। चाहे जो भी हो, रजोनिवृति नारी के जीवन में एक नया मोड़ लेकर आती है। उसके शरीर में परिवर्तन का एक चक्र शुरू हो जाता है। इस समय वह भावना के एक झनावत में फंसी होती है। कभी उसे अपनी स्वरूप दिव्य एवं उज्जाला नजर आता है तो कभी अपने को लुष्ठिता से अधिक आंकती इस अवस्था में महिलाएं चिड़चिड़ी हो जाती है, ईष्यार्लु हो जाती है। आमतौर से महिलाओं में से परिवर्तन रजोनिवृति की शुरूआती दौर में ही परिलक्षित होते है, पर कुछेक ऋषियों की तो यह जीवन पद्धति ही बन जाती है। रजोनिवृति को टालने के अनेक प्रयास किए गए है। कभी एस्ट्रोजेन को सेवन कराकर तो कभी विटामिन की गोलियां पकड़ा कर। पर अभी तक इसमें कोई कामयाबी नहीं मिली है। -मनमोहित ग्रोवर (प्रैसवार्ता)


नारी शक्ति के भविष्य पर लगा प्रश्र चिन्ह?

वह देश कदापि अपनी प्रगति नहीं कर सकता जहां पर नारी को केवल भोग व मनोरंजन की वस्तु मानकर उसको उसके वास्तविक अधिकारों सम्मानों से दर किनार कर दिया गया हो। नारी की इस विशेष महत्वता को ध्यान में रखते हुए महापुरूषों ने अपने जीवन के अंतिम चरण तक नारी शक्ति को उसका वास्तविक सम्मान और अधिकार दिलाने कठोर संघर्ष किया। परिणामत: जहां नारी को पर्दे में लपेट या फिर सती का नाम देकर आग में झोक दिया जाता था वहीं वह आज देश का नहीं, बल्कि संपूर्ण विश्व का भाग्य लिख रही है। बावजूद इसके गत वर्षों में मातृ शक्ति (नारी शक्ति) पर अत्चाचार बढ़े हैं। कारण साफ है, कि आज भी यह सोच विद्यमान है जहां नारी को विषय भोग या मनोरंजन की वस्तु मानकर उसके साथ ढोर गंवार, शूद्र, पशु, नारी वाली कहावत चरितार्थ कर व्यवहार किया जाता रहा है। विश्व को अपनी साधारण कोख से जन्म देने वाली यह असाधारण शक्ति से परिपूर्ण अर्धागिनी कही जाने वाली इस नारी ने ही सामान्य रसोई घर से अपनी यात्रा आरंभ कर हर क्षेत्र में हर पल चाहे बात शीत युद्ध की हो या शांति की धर्म की हो या राजनीति की, समाज की हो या आर्थिक स्तर की हर स्तर पर अपनी सफलता व विजय का परचम फहराते हुए इतिहास के पन्नों पर अपना स्थान सुरक्षित रख है। यह बात अवश्य स्वीकारने योग्य है, कि विगत वर्षों में महिलाओं पर अचानक बढ़े अत्याचार इस बात की पुष्टि करते हैं, कि नारी अपने अधिकारों, कर्तव्यों और सम्मान के प्रति ज्यादा जागरूक व सतर्क हुई है। वहीं पूर्व में नारी या महिलायें निरक्षरता लोकलाज व समाज के भय से अपने साथ हो रहे अत्याचार को मजबूर होकर मूकदर्शक बने सहती रही, किन्तु उसके विपरीत अगर देखा जाए जो बड़े ही दुर्भाग्य का विषय है, कि सरकार महिलाओं को आरक्षण का लॉलीपाप दिखाकर उनके विकास और पुरूषों के बराबर हक की बातें करतें नहीं थकती। वहीं आज स्वयं ही नारी पर तीन वर्षों से लगातार बढ़ते अत्चारों के कारण संदेह के कटघरे में आकर स्वयं की नीयत पर प्रश्र चिन्ह? अंकित किये खड़ी है। जिसका परिणाम निकट भविष्य में कितना खतरनाक होगा यह कहना मुश्किल है। बहरहाल जो भी हो इतिहास इस बात का साक्षी है कि नारी ही शक्ति स्वरूपा दुर्गा है वही जगत को पालनें वाली लक्ष्मी है। वही संहार करने वाली काली है। सत, रज और तक का रूप नारी समय-समय पर अपना स्वरूप बदलती रहती है। वही घर को स्वर्ग और नर्क बनाती है। आवश्यकता इस बात की है, कि हम उसकी शक्ति व महत्वता को पहचान कर उस पर हो रहे अत्याचार के प्रति प्रतिरोध का शंखनाद करें। -वंश जैन (न्यूज़प्लॅस)

इंसान को हैवान बनाती है दहेज प्रथा

दहेज के कीड़े समाज में बढ़तें जा रहे हैं। दहेज इंसानियत के नाम पर कलंक हैं। कोई भी चीज इंसान को हैवान बना दे उसे कलंक की वस्तु ही कहा जाना चाहिए। दहेज लेने का नशा ही आज इंसान को हैवान बना रहा हैं। दहेज के खातिर मार-पीट करने की, तंग करने की घटनाएं आज आम सुनने को मिलती हैं। कई हैवान किस्म के लोग दहेज के खातिर लड़की को जान से मारने से भी नहीं चुकते। दहेज की बलि देवी पर जान कुर्बान करने वाली लड़कियां सही मायने में अपना प्रतिरोध नहीं कर पाती। दहेज के खातिर लड़कियों को तंग करना, उन्हे जान से मार देना सरासर कायरता हैं। हर मां-बाप अपनी बेटी को लाड़-प्यार से पालते हैं। उसे उच्च से उच्च शिक्षा दिलाते है। उसकी हर ख्वाहिश को पूरी करते है। उसकी शादी के सुनहरे सपने देखते हैं, लेकिन शादी उपरांत दहेज के दानव उनकी सारी उम्मीदों पर पानी फेर देते हैं। लड़की के मां-बाप लड़के वालो की हर इच्छा पर बड़ी कुशलता से पालन करते हैं। पर इसके बावजूद दहेज के दानव इनकी भावनाओं को चकनाचूर कर देते हैं। दहेज के दानव लड़की से इतना दुव्र्यवहार करते है कि वह सूखकर कांटा हो जाती हैं। वे इतना भी नही सोचते कि बेटे की शादी में दहेज की मांग करने वालो को भी कभी अपनी बेटी की शादी करनी होगी। उन्हे सिर्फ इतना याद रहता है कि वे लडके वाले हैं और उन्हे ज्यादा से ज्यादा दहेज लेना हैं। आज की युवा पीढ़ी को दहेज प्रथा का कड़ा विरोध करना होगा। उन्हे दहेज के कीड़ों को खत्म करने कि लिए आगे आना होगा। इन दहेज के कीड़ों पर इस प्रकार की दवा छिड़कनी होगी कि वे समूल ही नष्ट हो जाए। युवाओं को दहेज न लेने का दृढ़ संकल्प करना होगा। ज्यादातर देखने को आता है कि लड़की के मां-बाप अपनी बेटी को अधिक से अधिक दहेज देकर खुश देखना चाहते हैं, परन्तु उन्हे नहीं मालूम की वह दहेज देकर उन्हे दहेज लोभी बना रहे हैं। जिसके कारण लड़के वालो की इच्छाएं बढ़ती जाती हैं। जिसके फ लस्वरूप लड़की के माता-पिता को कई मुश्किलों का सामना करना पड़ता हैं। आजकल के लोग शादियों में लाखों का धन उड़ा देते है, जिसका कोई लाभ नहीं होता। वे जितने रूपये एक लड़की की शादी में खर्च करते हैं उतने रूपयों में कम से कम 25-30 लड़कियों का घर बस सकता हैं। आज समाज के सभी लोग कैंसर रूपी दहेज को भारत की सरजमीन से नेस्ताबूत या उखाड़ फें कने का दृढ़ संकल्प ले और प्रण करें कि न दहेज लेंगे और न दहेज देंगे। दहेज को लेकर मासूम लड़कियों की हत्या करने वाले दहेज लोभियों को कड़ी से कड़ी सजा मिलनी चाहिए। इसके प्रति रहम नाम की कोई चीज नहीं होनी चाहिए। जब हमारी सरकार और समाज दोनो मिलकर दहेज लोभियों के खिलाफ कड़ी कार्यवाही करेंगे तो निश्चित ही दहेज हत्याओं का दौर थमेगा। -मनोज अरोड़ा (न्यूजप्लॅस)

देलवाड़ा जैन मन्दिर (वास्तुशिल्प का नायाब नमुना)

माउंट आबू को राजस्थान का स्वर्ग कहा जाता है। आबू रोड से करीब 15 कि.मी. की दूरी पर पर्वत पर स्थित माउंट आबू नाम से विख्यात नगर का इतिहास बहुत पुराना है। यह पर्वत न केवल भव्य मंदिरों के लिए विख्यात है, बल्कि यह पर्वत ऋषियों की साधना की भूमि भी रही है। पहाड़ पर स्थित अनेक गुफाओं से इस बात की पुष्टि होती है कि यहां अनेक ऋषियों ने तपस्या की थी। इस जगह का विकास इस तरह हुआ कि आज यह जगह अध्यात्म और संस्कृति का एक बेमिसाल संगम है। एक ओर यहां के महनुमा होटल देशी व विदेशी ट्रस्टियों को आकर्षित करते हैं। वहीं दूसरी ओर विभिन्न संप्रदाय के मठ-मंदिर व ब्रह्माकुमारीज विश्वविद्यालय का साधना स्थल एक अलग ही छटा बिखेरते हैं। प्रकृति का खूबसूरत उपहार कहलाने वाली यह जगह वास्तु शिल्प का बेजोड़ उदाहण है। मुख्य रूप से माउंट आबू देलवाड़ा में स्थित जैन मंदिरों के कारण विश्व विख्यात है। पर्वत पर स्थित देववाड़ा गांव में धवल संगमरमर से बनाए गए देलवाड़ा जैन मंदिर अपनी शिल्पकला, वास्तुकला एवं स्थापत्य कला के कारण आकर्षण का केंद्र है। हिंदु संस्कृति के यह मंदिर जैन वैभव कला को अपने आप में समेटे हुए हैं। मंदिर में देवी-देवता, नृत्य करतीं पत्थरों पर उकेरी गई मूर्तियां, पशु-पक्ष, फल-फूल आदि सभी सजीव दिखाई पड़ते हैं। संगमरमर पर ऐसी सूक्ष्म कला विश्व में शायद ही कहीं और देखने को मिले। 5 मंदिरों का देलवाड़ा मंदिर गुंबजों की छतों पर स्फटिक बिंदुओं की भांति झूमते मंदिरों में 22 तीर्थकरों की मूर्तियां हैं। बताया जाता है, कि इन मंदिरों का निर्माण राजा भीमदेव के मंत्री विमल वसाही ने किया था। इन मंदिरों का निर्माण 11 वीं सदी से प्रारंभ होकर 13 वीं सदी में पूर्ण हुआ था। विमल मंदिर: इस मदिर के निर्माण के बारे में कहा जाता है, कि विमल शाह ने अनेक युद्ध किए जिसमें अनेक लोगों की हत्या का कारण स्वयं को समझकर प्रयाश्चित हेतु आबू पर्वत पर जैन मंदिर के निर्माण की योजना बनाई। कुछ लोगों के द्वारा विरोध करने पर उनहं संतुष्ट करके विमल शाह ने 14 वर्षों में 1500 कारीगरों और 1200 मजदूरों के द्वारा इस मंदिर का निर्माण करवाया, जिसमें 8 करोड़ 35 लाख रुपयों की लागत लगी। इस मंदिर में प्रथम तीर्थकर ऋषभदेव की मूलनायक की प्रतिमा से प्रतिष्ठा जैनाचार्य वर्धमान सूरीजी द्वारा संपन्न हुई। मंदिर में कुल 21 स्तंभों में से 30 अलंकृत हैं। विद्यादेवी-महारोहिणी की 14 हाथों वाली मूर्ति, गुंबज में गुजलक्ष्मी और दूसरे गुंबज में शंखेश्वरी देवी की सूक्ष्मकृति, कमल के फूल में 16 नर्तकियों युक्त गुंबज और बीस खंडों का एक शिल्पपट्ट भी देखने लायक है। लूण मंदिर: यह मंदिर विमल मंदिर के बाद बनवाया गया। यह मंदिर छोटा है, लेकिन शिल्पकला में उससे भी अधिक है, जिसमें संगमरमर पर हथौड़ी-छैनी की मदद से कारीगरों ने बेल-बूटे, फूल-पत्ती, हाथी, घोड़ा, ऊंट, बाघ, सिंह, मछली, पछी, देवी-देवता और मानव जाति की अनेक कलात्मक मूर्तियां उकेरी गयी हैं। गुजरात के राजा वीरध्वन के मंत्री वास्तुपाल और तेजपाल दोनों भाइयों ने अपने स्वर्गीय भाई के नाम पर लूण मंदिर बनवाया। -अमित जैन (न्यूजप्लॅस), सिरसाJustify Full

लो क सं घ र्ष !: शुभ लाभ हमारा दर्शन नही


शुभ लाभ हमारा दर्शन नही है, लेकिन ज्योति पर्व दीपावली पर शुभ लाभ का महत्त्व सबसे ज्यादा है इसी कारण हमारी समाज व्यवस्था में महत्वपूर्ण परिवर्तन हुए है जिसके कारण मानव ही खतरे में पड़ गया है। इस त्यौहार को मनाने के लिए लाभ को ही शुभ मानने वाले लोगो ने नकली खोया, मिठाइयाँ, घी, खाद्य तेल सहित तमाम सारी उपभोक्ता वस्तु बाजार में लाभ के लिए बेच रहे है। बिजनौर जनपद में 95 कुंतल सिंटेथिक खोया उससे बनी मिठाइयाँ बरामद हुई है बस्ती जनपद में 4 कुंतल मिठाई, 5 कुंतल खोया रोडवेज की बस में लोग छोड़ कर भाग गए इस तरह से पूरे उत्तर प्रदेश में लाभ के चक्कर में लाखों कुंतल खोया, मीठा, नमकीन, खाद्य पदार्थ को बेचा जा रहा है जिसका दुष्परिणाम यह है कि लोगों को मधुमेह, दिल, गुर्दा, पथरी, कैंसर जैसी लाइलाज बीमारियाँ हो रही है और लोग अकाल मृत्यु मर रहे है

भारतीय समाज का दर्शन मानव कल्याण का दर्शन था इसके साथ हमारी प्रकृति के साथ चलने की प्रवित्ति थी किंतु, पूँजीवाद के संकट ने हमारे सारे मूल्य बदल दिए है लाभ ही शुभ है और शुभ ही लाभ है समय रहते ही अगर हमने पूँजीवाद से निपटा तो मानवीय मूल्य समाप्त हो जायेंगे
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लोकसंघर्ष परिवार की ओर से सभी को दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं ।।

सुमन
loksangharsha.blogspot.com

मंदिरों में क्यों लगाए जाते हैं- घंटे

वैसे तो मंदिरों में घंटा लगा होने के अनेक कारण हैं-तो सर्वप्रथम घंटे की ध्वनि सुनकर लोग जान जाते हैं, कि मंदिर में प्रतिष्ठित देवी या देवता की आरती आरंभ हो चुकी है, अत: जो भी आरती में सम्मिलित होने के इच्छुक हैं, वे शीघ्रता से पहुंचे और जो नहीं पहुंच सकते, वे जहां पर हैं, वहीं खड़े होकर ध्यान कर लें। घंटा लगाने का दूसरा कारण यह है कि मंदिर में प्राण प्रतिष्ठित देवता भी जागृत हो जाएं, अन्यथा जब आप उनके दर्शन के लिए जाते हैं, तो हो सकता है कि वे उस समय समाधि में डूबे हों और आपकी पूजा-प्रार्थना व्यर्थ चली जायें। घंटे की ध्वनि, यदि लयबद्धता से की जाये, तो करण प्रिय लगती है। घंटे की ध्वनि से अनिस्टों का निवारण होता है। पुरानों और धार्मिक ग्रंथों के अनुसार जब प्रलय काल के बाद सृष्टि हुई, उस समय घंटे की ध्वनि के समान ही नाद (आवाज) हुआ था। इस तरह मंदिर में घंटा लगाए जाने के कई कारण हैं -वंश जैन(न्यूजप्लॅस)

लो क सं घ र्ष !: दीपावली के अवसर पर :

सांप्रदायिक शक्तियों का नाश करो

देश की एकता और अखंडता की हिफाजत के लिए दीपावली के अवसर पर हमें यह संकल्प लेना चाहिए कि सांप्रदायिक शक्तियों का नाश किया जाएइन शक्तियों ने अपने स्वार्थ के लिए जाति-धर्म, भाषा , प्रान्त का शोर मचा कर हिन्दुवत्व की आड लेकर साम्प्रदायिकता और प्रांतीयता जगा कर अपने स्वार्थ सिद्ध करते हैइन्ही स्वार्थी तत्वों के कारण देश का विकास रुकता है बाधित होता है, जबकी देश की समस्याओं का निराकरण मिल बाँट कर करने की बात नही होती है तबतक देश का विकास बाधित रहता हैसांप्रदायिक शक्तियों के कारण भाषा, जाति, प्रान्त जैसे मुद्दे बने रहते है और मुख्य मुद्दे गौड हो जाते हैजैसे बेरोजगारी महंगाई, शोषण, अत्याचार, उत्पीडन का खत्म तथा रोटी, आवास, स्वास्थ, शिक्षा जो हमारी मुख्य आवश्यकताएं है सब गौड हो गई है इसलिए आवश्यक हो गया है की एक बेहतर समाज बनाने के लिए हमको महासागर की भूमिका में को अपनाना होगा । महासागर में विभिन्न नदियों का पानी आकर उसका निर्माण करती है. उसी तरह भारत का निर्माण विभिन्न धर्मो, जातियों, भाषाओ रुपी नदियों से होता है हमारा देश भी एक महासागर है और विश्व का अद्भुद देश भी है क्षुद्र स्वार्थी तत्व इसके स्वरूप को नष्ट कर देना चाहते है । उन तत्वों से देश को बचाना होगा।
दीपावली इस देश के नायक मर्यादा पुरषोत्तम राम के रावण को मार कर वापस आने के अवसर पर देशवासियों द्वारा दीपक जलाकर मनाने से प्रारम्भ हुआ था। यह हमारी वैभव सम्पन्नता के प्रतीक का त्यौहार है किंतु सांप्रदायिक तत्वों ने समय-समय पर मर्यादा पुरषोत्तम राम के आचरण के विपरीत सांप्रदायिक झगडे खड़े कर इस देश को कमजोर किया है । राम को वनवास दिया है । कुछ वर्षो पूर्व बाबरी मस्जिद का ध्वंस करके देश की एकता और अखंडता को कमजोर किया है। सुप्रसिद्ध शायर कैफी आजमी ने लिखा है :-


राम बनवास से जब लौट के घर में आए
याद जंगल बहुत आया, जो नगर में आये
रक्से दीवानगी आँगन में जो देखा होगा
6 दिसम्बर को श्री राम ने सोचा होगा
इतने दीवाने कहाँ से मेरे घर में आए

जगमगाते थे जहाँ राम के कदमो के निशान
प्यार की कहकशां लेती थी अंगडाई जहाँ
मोड़ नफरत के उसी राहगुजर में आये

धर्म क्या उनका था, क्या जात थी, यह जानता कौन
घर जलता तो उन्हें रात में पहचानता कौन
घर जलाने को मेरा, लोग जो घर में आये

शाकाहारी है मेरे दोस्त तुम्हारे खंजर
तुमने बाबर की तरफ़ फेंके थे सारे पत्थर
है मेरे सर की खता, जख्म जो सर में आये


पाओ सरजू में अभी राम ने धोये भी थे
के नजर आए वहां खून के गहरे धब्बे
पाओ धोये बिना सरजू के किनारे से उठे
राम यह कहते हुए अपने द्वारे से उठे
राजधानी की फिजा आई नही रास मुझे
6 दिसम्बर को मिला दूसरा बनवास मुझे

आइये हम आप मिलकर सांप्रदायिक शक्तियों का नाश करने के युद्घ में आगे आयें और जिन लोगो ने हमारे नायक को फिर बनवास दिया है उनका नाश करें ।

दीपावली हमारा महापर्व है । हम आप सबकी सुख और सम्रद्धि की कामना करते है

सुमन
loksangharsha.blogspot.com