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17.10.09

महानायक का पेट कब भरेगा

diwali lamps


फ़िल्म जगत के महानायक अमिताभ बच्चन का नाम देश के महानायकों में से आता है और दुनिया में लाखों लोग उनके प्रशंसक है किंतु इस महानायक का नाम हमेशा आर्थिक घोटालो में भी आता रहता है । नई पीढी इस तरह के दो अर्थी चरित्र से क्या प्रेरणा ले और क्या विश्वाश करे मुख्य बात यह है कि महानायक के परम मित्र अमर सिंह के साथ उनके ख़िलाफ़ जनपद कानपुर के बाबूपुरवा थाने में अपराध संख्या 458/09 अर्न्तगत धारा 420, 467 , 468, 471, 120 बी, आई पी सी, 3/7 मनीलॉण्ड़िरिंग एक्ट व 7/8/9/10/13 भ्रष्टाचार निरोधक कानून कि प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज हुई है । इस मामले में लगभग 300 करोड़ रुपये का घोटाला है । इसके पूर्व भी महानायक अमिताभ बच्चन ने बाराबंकी जनपद के दौलतपुर गाँव में अपने नाम रिकॉर्ड रूम के कर्मचारियों से मिलकर अपने नाम ग्राम समाज कि जमीन फर्जी तरीके से अंकित करा ली थी । महानायक को इस भूमि घोटाले में भी काफ़ी विवाद का सामना करना पड़ा था। यदि वह महानायक न होते साधारण व्यक्ति होते तो कई महीने उनको कई महीने कारागार में रहकर जमानत का इन्तजार करना पड़ता ।

इस तरह कि घटनाएँ देख कर लगता है कि महानायक जैसे लोग शुद्ध रूप से आर्थिक अपराधी है। आर्थिक अपराधियों को सजा देने के लिए सक्षम कानूनों का आभाव है जिसका लाभ उठा कर आर्थिक अपराधी तरह-तरह के अपराध कर देश कि अर्थ व्यवस्था को खोखला करते है । दुखद बात यह है कि इस देश के नवनिर्माण के लिए जो लोग प्रेरणा श्रोत्र हो सकते है । उनकी व्यक्तिगत ज़िन्दगी में इस तरह का आचरण दुखदाई है । अमिताभ बच्चन हालावाद के पर्वतक डॉ॰ हरिवंश राय बच्चन के पुत्र भी है और जब ऐसे लोग इस तरह के कृत्य करते है, तो समाज पर और विशेष कर नई पीढी पर इसका अच्छा प्रभाव नही पड़ता है । गंभीरता से सोचने पर यह सवाल आता है कि इस महानायक का पेट कब भरेगा ?

सुमन
loksangharsha.blogspot.com

दीवाली हम सबको शुभ हो


आओ दीपावली मनायें, हर मुण्डेर पर दीप जलायें
द्वेष, दम्भ, पाखंड, सरिखे मन के दुर्गुण दूर भगायें
संयम का हो दीप,स्नेह वर्तिका धैर्य का तेल भरा हो
अंधकार को दूर भगाता, हर आंगन में दीप धरा हो
हर चेहरे पर चमक खुशी की,अंतर्मन में स्नेह खरा हो
खुशियां खील, मिठाई बांटे,सबको बढ़कर गले लगायें
सम्बोधन सम्मान युक्त हों, आ दीपावली मनायें
त्यौहारों की परम्परागत, अपनापन वाणी में छलके
नई नवल आशाओं के संग,प्रीति-रीति प्राणी में झलके
धरती लगे ज्योति का सागर, उगे चन्द्रमा दिनकर ढलके
आओ सा इसे सजायें। आओ दीपावली मनायें
सबसे मन के अंधकार का, दीवाली के दीप हरें तम
सबका मालिक एक भला फिर, आपस में क्यों बैठ करे हम
सबकी झोली भरे खुशी से, रहे कही भी जरा नही गम
हर मन की इच्छा पूरी हो, हर आंगन लक्ष्मी जी आयें
भरे रहें भण्डार सभी के। आओ दीपावली मनायें
लक्ष्मीमैया दूर भगा दें, आपद् और विपत सब ही के
हर घर आंगन जियारा हो, रहें नहीं चौबारे फीके
धरती का श्रृंगार देख कर, चांद, सितारे भी शरमायें
दीवाली से दीवाली तक, आओ दीपावली मनायें
तुम को शुभ हो मुझको शुभ हो, दीवाली हम सबको शुभ हो
आने वाला समय सुखद हो, कुछ भी कही मित्र अशुभ हो
मां लक्ष्मी इस दीवाली पर, हर घर आंगन सुख ही सुख हो
सबको दीवाली की शुभकामनायें। आओ दीपावली मनायें
-हितेश कुमार शर्मा, बिजनौर

16.10.09

दिवाली पर मिलावट खोरी , कालाबाजारी और मंहगाई की धूम !

जी हाँ इस दिवाली पर आप कुछ खरीदने जा रहें है । आकर्षक पैकिंग मैं मिलावटी मिठाई और खाद्य सामग्रियां , विशेष छूट के साथ महेंगे कपड़े और इलेक्ट्रॉनिक समान और कालाबाजारी के कारण महेंगे होते अनाज और डाले सभी की धूम मची हुई है । व्यापारी कपडों और भोग विलास की चीज़ों के दाम बढाकर और उसी पर छूट का लालच देकर उपभोक्ताओं को लूटने का प्रयास कर रहें है । मिलावट खोर मिठाई और खाद्य सामग्रियों मैं हानिकारक सामग्री और रसायन मिलकर आम जनता के स्वस्थ्य के साथ खिलवाड़ कर रहें हैं । कालाबाजारी और जमाखोरी कर कृत्रिम अभाव पैदा कर मंहगे दामों मैं अनाज और दैनिक उपयोग की सामग्रियों मनमाने दामों मैं बेच रहे हैं । न तो कीमत मैं नियंत्रण की कोई नीति और न ही मिलावट अवं कालाबाजारी और जमाखोरी को रोकने की कारगर पहल । और न ही खतरनाक मिलावट के काले कारनामे को रोकने हेतु पर्याप्त प्रशसनिक अमला और न ही पर्याप इंतज़ाम हैं ।ऐसे मैं आम जनता कान्हा जाएँ और क्या करें ? जब भी बड़े त्यौहार और उत्सव का माहोल देश मैं होता है यह सब बड़े पैमाने पर धड़ल्ले से चलता है । और यह सब हर बार की तरह मातृ सनसनी खेज़ ख़बर बनकर रह जाती है । न तो सरका चेतती है और न ही जनता । इस दिवाली मैं भी ऐसे ही हो रहा है ।अतः इस हेतु एक स्पश्ष्ट और कारगर नीति बनाकर उसके प्रभावी क्रियान्वयन करने की , इस हेतु कुछ सुझाव इस प्रकार हैं -१। अभी तक ऐसी कोई नीति बनायी गई है की जिससे बाजार मैं सामग्रियों की कीमतें निर्धारित और नियंत्रित किया जा सके । उत्पादक कंपनी और व्यापारी अपनी सहूलियत से कीमतें तय करते रहते हैं । अतः जरूरी है की सरकार को उपभोक्ता सामग्रियां की गुणवत्ता और परिमाण के आधार पर एक मानक तय किया जाकर अधिकतम दाम तय किए जाना चाहिए । २। चुकी देश और बाज़ार की आकार के हिसाब से उपभोक्ता सामग्री और खाद्य सामग्रियों की गुणवत्ता जाँच हेतु पर्याप्त मात्रा मैं मैदानी अमला की कमी है । अतः इस हेतु एक शसक्त और प्रभावी विभाग के गठन की आवश्यकता है जो प्रत्येक पंचायत स्तर तक कार्य करे ।३। हो सके तो खाद्य और औषधि प्रशासन विभाग को पुलिस विभाग अथवा सीधे जिला कलेक्टर के अधीन रखा जाना चाहिए । जिससे शीग्रहता पूर्वक सख्ती से कार्यवाही कर कानूनी कार्याही की जा सके ।४। सभी जिला स्तर एवं ब्लाक स्तर पर खाद्य सामग्रियों की मिलावट की जांच हेतु परिक्षण लैब की स्थापना की जानी चाहिए । जिससे शीग्रह और समय पर जांच परिणाम मिल सके और दोषियों के ख़िलाफ़ कानूनी कार्यवाही की जा सके ।५। मिलावटी सामग्रियों की जांच और परिक्षण को आम उपभोक्ता आसानी से कर सके , इस हेतु फर्स्ट एड बॉक्स की अवधारणा अपनाकर फर्स्ट टेस्ट कित का विकास किया जाना चाहिए । जो सभी उपभोक्ता को आसानी से उपलब्ध हो सके , और मिलावट की जांच की जा सके । साथ इस बाबत प्रचार प्रसार कर आम उपभोक्ता को जागरूक करने की आवश्यकता है ।६। कालाबाजारी और जमाखोरी को रोकने हेतु सभी व्यापारी को लाईसेन्स लिया जाना अनिवार्य किया जाना चाहिए । यह भी अनिवार्य किया जाना चाहिए की व्यापारी अपनी दूकान के सामने सूचना पटल पर प्रतिदिन भण्डारण किए जाने वाले अनाज और सामग्रियों की जानकारी प्रर्दशित करें । उनके द्वारा प्रर्दशित सूचना सही है या ग़लत इसकी आकस्मिक जांच आम उपभोक्ता को शामिल कर की जानी चाहिए ।७। मिलावट खोरी और कालाबाजारी एवं जमाखोरी पर दोषी पाये जाने पर कड़ी से कड़ी सजा का प्रावधान किया जाना चाहिए एवं ऐसे मामलों के निराकरण हेतु स्पेशल कोर्ट की स्थापना की जाकर दोषियों को कड़ी सजा दिलवाई जानी चाहिए ।ऐसी मंगल कामना है की दिवाली के पावन पर्व सभी के लिए मंगल may और सुखमय हो । प्रज्जवलित होने वाले दीपो के पवित्र और अलोकिक प्रकाश की रौशनी से जीवन खुशियों मैं अन्धकार फैलाने वाली मिलावात्खोरी , कालाबाजारी , जमाखोरी और मंहगाई जैसी विकृतियों का नाश होगा और देश मैं शान्ति और सुख माय वातावरण का निर्माण होगा । ऐसी मंगल कामना के साथ सभी को दीपावली पर्व की कोटि कोटि बधाईयाँ और सुभ कामनाएं ।

शुभकामनाएं !


दि नेटप्रेस परिवार की ओर से  आप सबको दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं !



दिवाली के प्रत्येक दीये की हर किरण आप और आपके अपनों के जीवन में नई उमंग, खुशियाँ एवं समृद्धि लाये !


ड्यूटी स्लिप दिखाकर ले सकते है अवकाश

सिरसा(प्रैसवार्ता) कालांवाली (आरक्षित) विधानसभा क्षेत्र के रिट्रनिंग अधिकारी एवं उपमंडल अधिकारी नागरिक (सिरसा) श्री एस.के सेतिया ने बताया कि कालांवाली हल्के में 13 अक्तूबर को संपन्न हुए विधानसभा चुनाव के दौरान जिन कर्मचारियों ने अवकाश के दिन चुनाव कार्य में अपनी उपस्थिति दर्ज करवाई थी, वे कर्मचारी अपने विभागाध्यक्ष को अपनी ड्यूटी स्लिप दिखाकर उस दिन का प्रतिपूरक अवकाश ले सकते है। इसके अतिरिक्त यदि अधिकारी द्वारा कर्मचारी को अवकाश देने में किसी तरह की बाधा आती है तो वह कर्मचारी रिट्रनिंग अधिकारी एवं उपमंडल अधिकारी सिरसा से स्वीकृति व ड्यूटी प्रमाणपत्र लेकर अवकाश ले सकते है।

प्रतिदिन प्रदेश में हो रही हैं सैंकड़ों भ्रूण हत्याएं

हिसार (प्रैसवार्ता) ''देसां में देस हरियाणा, जहां दूध दही का खाना'' की कहावत देने वाले हरियाणा प्रदेश में, जहां नशे का चलन बढ़ रहा है वहीं भ्रूण हत्या में निरंतर बढ़ रही संख्या के चलते भविष्य में युवकों के विवाह को लेकर होने वाली गंभीर समस्या को प्रदेशवासी व सरकार चिंतित तो है, मगर सक्रियता से इस ओर ध्यान न देने के कारण भ्रूण हत्याएं धडल्ले से हो रही है। हरियाणा सरकार ने भू्रण हत्या को रोकने के लिए एक कानून बनाकर अपना कत्र्तव्य निभा दिया है। मगर प्रदेश में ज्यादातर चिकित्सक सरकार के इस कानून की उल्लंघना करते प्रतिदिन सैंकड़ों भू्रण हत्याएं कर रहे है, और यदि यही सिलसिला एक दशक तक चलता रहा, तो दूसरे दशक तक पहुंचते पहुंचते एक तिमाही प्रदेश के युवक अविवाहत रह जाएंगे। अविवाहित युवकों का रूझान अपराधों की ओर बढेगा तथा प्रदेश में बलात्कार, दुष्कर्म आदि की घटनाओं में भी वृद्धि होगी। प्रैसवार्ता द्वारा दिए गए सर्वेक्षण से पता चलता है कि भू्रण हत्या के मामले में ग्रामीण क्षेत्र शहरों को पीछे छोड़ गए है और मुस्लिम, सिक्ख व अन्य वर्गों के लोग भी भू्रण हत्या की तरफ ज्यादा आकर्षित हो रहे है। हरियाणा सरकार ने भू्रण हत्या रोकने के लिए एक कानून बनाया है लेकिन उसकी पालना नहीं हो रही है। सरकार ने कई योजनाएं चलाकर भी भू्रण हत्या को रोकने के लिए भी कई प्रयास किए है, परन्तु यह प्रयास भी कारगर सिद्ध हो रहे है। पिछले पांच वर्षों में हरियाणा में 100 पुरूषों के पीछे 78 महिलाओं की दर निरंतर कम होकर 72 प्रतिशत पहुंच गई है और यदि यही रफ्तार चलती रही, तो यह आंकड़ा 60 प्रतिशत तक भी पहुंच सकता है। हरियाणा में मृत्यु दर के संबंध में भी पुरूषों की मृत्यु दर यदि 100 है तो महिलाओं की यह दर 63 प्रतिशत के करीब ही है। प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्र में अंध विश्वास की सोच के चलते भू्रण हत्या तेजी पकड़ रही है। जबकि प्रैसवार्ता को ज्यादातर लोगों ने इसके लिए कन्याओं की समाज द्वारा उपेक्षा को जिम्मेवार ठहराते हुए सरकार को कटघरे में खड़ा किया है, क्योंकि कानून बनाकर उसे लागू करवाना उसकी जिम्मेवारी है। कुछ महिलाओं ने प्रैसवार्ता को यह भी बताया कि स्वास्थ्य विभाग की ही महिला कर्मचारी उन्हें भू्रण हत्या के लिए न केवल प्रेरित करती है, बल्कि मददगार भी बनती है। प्रदेश में लड़कियों की कम हो रही संख्या का एक दुखद पहलू यह भी है कि बीमार होने पर 80 प्रतिशत लड़कियों को अस्पताल नसीब नहीं होता, जबकि शेष लड़कियां अस्पताल तक पहुंच तो जाती है, मगर तब जब मौत करीब पहुंच चुकी होती है। दो दशक पूर्व 1981 की जनगणना के अनुसार एक हजार पुरूषों के मुकाबले लड़कियों की संख्या 972 थी, जो आज कम होते होते 742 तक पहुंच गई है, और यदि भू्रण हत्या को रोकने के कारगर कदम न उठाए गए तो आने वाले दशक में यह आंकड़ा 600 तक पहुंच सकता है। वर्तमान की जन्म दर को देखने से पता लगता है कि भारतवर्ष में प्रति मिन्ट 400 के करीब महिलाएं गर्भवती होती है। 190 अनचाहे गर्भ को लेती है, 110 गर्भ से संबंधित बीमारियों का शिकार है, 40 प्रतिशत गर्भपात करवाती है और करीब एक प्रतिशत जन्म देते समय बच्चे को खो बैठती है या स्वयं मृत्यु का शिकार बन जाती है। निरंतर कम हो रही लड़कियों की संख्या के लिए भारतीय संस्कृति के पुराने रिवाज व मान्यताओं को ही दोषी माना जा सकता है। हमारे समाज में औरतों की भूमिका की अनदेखी की जा रही है जन्म लेने से पूर्व मृत्यु द्वार दिखा दिया जाता है और फिर भी यदि वह बचती बचाती दुनिया में आ ही जाए, तो वह समाज में फैली कुरीतियों का शिकार हो जाती है। कम हो रही संख्या में पुरूषों का हाथ नहीं है - बल्कि महिलाएं स्वयं ही अपनी नस्ल को समाप्त करने का मुख्य कारण बन रही है। कई बार सास भी पुत्ररत्न प्राप्ति के चक्कर में पुत्रवधु को गर्भपात के लिए विवश भी कर देती है। इस प्रकार गर्भपात से, जहां भू्रण हत्या होती है, वहीं कई बार गर्भपात करवाने वाली महिला की मृत्यु भी हो जाती है। भारतीय समाज में लड़कों के लालन-पालन, शिक्षा पर विशेष ध्यान दिया जाता है - जबकि लड़कियों की तरफ कम। लड़के के बीमार होने पर हर तरह का उपचार करवाया जाता है, जबकि लड़की के बीमार होने पर उपचार की अनदेखी की जाती है। सरकार कानून बनाकर या महिलाओं को आकर्षित करने के लिए योजनाएं बनाकर अपनी जिम्मेवारी से नहीं बच सकती, बल्कि उसे कानून का पालन करवाने के लिए तथा भ्रूण हत्या के लिए प्रेरित करने वाली सरकारी तंत्र पर कानूनी शिकंजा कसते हुए धार्मिक व सामाजिक संस्थाओं के सहयोग से जागरूकता लाने के लिए प्रयास करने चाहिए, ताकि भू्रण हत्या पर अंकुश लगाया जा सके, अन्यथा आने वाले समय में अविवाहितों के लिए लड़की ढूंढना टेढ़ी खीर साबित होगा। 

मानवता के मान-सम्मान का प्रतीक लंगर प्रथा

श्री अमृतसर साहिब(प्रैसवार्ता) लंगर प्रथा लगभग 15 वीं सदी में शुरू हुई थी। श्री गुरू नानक देव जी के उपदेशों से वाणी में, जो एकता और भाईचारे का संदेश मिलता है, उससे स्पष्ट है कि लंगर प्रथा श्री गुरू नानक देव जी के समय शुरू हुई थी। बाला-मरदाना के साथ रहकर वह जहां भी गये, भूमि पर बैठकर ही भोजन करते थे। ऊंच-नीच, जात-पात से उपर उठकर ही श्री गुरू नानक देव जी ने अपनी कर्मशीलता को प्राथमिकता दी। भाई लालो की उदाहरण, जिसमें साधारण रोटी में दूध के उदाहरण दी गई, भाव कि ईमानदारी की साधारण रोटी दूध की तरह पवित्र होती है, जिसमें ईमानदारी की बरकत होती है। श्री गुरु नानक देव जी के प्रवचन, यात्राएं, सम्पर्क सूत्रों से स्पष्ट होता है, कि वह भूमि पर बैठकर साथियों, श्रद्धालुओं के साथ भोजन करते थे, परन्तु हालात ही नाजुकता और बढ़ रहे अंधविश्वास, रूढिवाद, जातपात, उंच-नीच को समाप्त करने के लिए तीसरे गुरू अमरदास जी ने अमली रूप में लंगर प्रथा को शुरू किया। लंगर प्रथा से विभिन्न जातियों के लोग, छोटे बड़े सब लोग एक ही स्थान पर बैठकर लंगर खाते हैं। इससे मोहभाव, ऐकता भाव, शक्ति बल से सांझी कद्र वाली कीमतों को चार चांद लगते हैं। पूर्ण विश्व में पंजाब ही एक ऐसा राज्य है, जहां सिख संगत में लंगर प्रथा की मर्यादा चली आ रही है। सिख कौम के लोग, जहां भी, देश या विदेश में, लंगर प्रथा सुरजीत है। इसकी मिसाल कहीं ओर नहीं मिलती। लंगर तैयार करने की विधि बहुत ही सरल और शुद्ध पवित्र ढंग की है। जिस स्थान पर भी लंगर लगाना हो, विशेष रूप से औरतों की इसमें अह्म भूमिका होती है। अस्थाई चुल्हा बनाना और उसका आधार जरूरत अनुसार बनाने उपरांत उसके इर्द-गिर्द मिट्टी का लेप कर दिया जाता है-ताकि सेक और अग्रि का प्रयोग सही ढंग से हो सके। आटा काफी मात्रा में गूंथ लिया जाता है। जिसे मिलजुल कर औरतें करती हैं। जलाने के लिए गोबर, पाथी, लक्कड़ चूरा का प्रयोग किया जाता है। लंगर पकाने की सारी विधि और खर्च सामूहिक रूप से साधारण होता है-जो किसी बड़े खर्च से रहित होता है। सिख जगत में लंगर मर्यादा खुशी, गम के अतिरिकत त्यौहार मेले व शुभ अवसरों पर लाभकारी होता है और लोग खुशी-खुशी से इसमें अपना योगदान देते हैं। वर्तमान में लंगर तैयार करने के लिए आधुनिक तकनीक का भी प्रयोग होने लगा है-जिसमें रोटी बेलना, आटा गूंथना और बर्तन साफ करने वाली मशीने विशेष रोल अदा करती है। लंगर प्रथा सिख धर्म में एकता, सांझे भाई-चारे की मजबूत नींव का आधार है।