2.9.09
स्वास्थ्य सुविधाओं से नाराज ग्रामीणों ने जड़ा डिलीवरी हट पर ताला
1.9.09
....दर्पण....
जाने कैसा ये बंधन है?
उजला तन और मैला मन है।
एक हाथ से दान वो देता।
दूजे से क्यों जाने लेता।
रहता बन के दोस्त सभी का।
पर ये तो उनका दुश्मन है।
इन्सानो के भेष में रहता।
शैतानों से काम वो करता।
बन के रहता देव सभी का।
पर ना ये दानव से कम है।
चाहे कितने भेष बनाये।
चाहे कितने भेद छुपाये।
”राज़” उसके चेहरे में क्या है?
देखो सच कहता दर्पण है।
प्रेमी युगल ने जहर खाकर जान दी
31.8.09
सरकारी टीम से हाथापाई, पांच नामजद
घर का "दीपक"
“ सुनती हो? अभी
अपने हाथों को रुमाल से पोंछती हुई निर्मला गभराई सी रसोई से
“ क्या है? चिल्लाते क्यों हो? आ जायेगा। कहकर तो गया है कि दोस्तों के साथ घूमने जा रहा हूं”।
“आज चौथा दिन है।
एक मेरी कमाई पे सारा घर चलाना है। बेटी की शादी कोई छोटी-मोटी बात थोडी है? प्रो.अनिल ने कहा”।
“शांत हो जाओ। इस बार उसे ठीक से समझाउंगी। आप परेशान न हो। बी०पी० बढ़ जायेगा। “निर्मला वातावरण को नोर्मल बनाने का
तभी राजुल की सहेली कल्पना घर
“क्या
”सुना!! ये दीपक ही हमारे घर में अँधेरा कर देगा,
“वे सब
.....कि
दीपक अपने बेडरूम की ओर चला गया। हाथों में वही सूटकेस थी, जो हर बार घूमने जाता तो ले जाया करता।
“ लो अब तो
कमाए और
शाम होने लगी थी। पर अभी
कनखियों से झाँकते हुए प्रोफ़ेसर अनिल ने माँ बेटी का संकेत देख लिया और
टी वी पर लोकल न्युज़ थी। “ लाली वाला किडनी
एक अन्जान
मुझे
आपने मुझे जन्म दिया है। मेरा इतना तो फ़र्ज़ है कि मैं आपके कुछ
प्रोफेसर अनिल बेड का
उन्हें लगा वो जल्दी बूढे होने चले हैं...............
युवक-युवति परिचय सम्मलेन एक अनुकरणीय पहल
30.8.09
क्या महिलाओं की नेतृत्व क्षमता - स्थानीय निकायों के चुनाव तक सीमित है !
जहाँ आधी आबादी महिलाओं की हो, किंतु सत्ता में भागीदारी उनकी आबादी के अनुपात में न हो तो कैसे कहेंगे देश की सरकार पूर्णतः लोकतान्त्रिक है? जो देश की आधी आबादी का प्रतिनिधितव करती है, उनकी समान भागीदारीके अभाव में क्या उनके हितों और हकों के अनुरूप नीतियां और योजनायें बन पाती होगी? - अभी तक महिलाआरक्षण का बिल का संसद में पास न होना इस बात का द्योतक है। संसद में महिलायें संख्या के मामले में पुरुषोंसे कमजोर पड़ रही है । जब महिला आरक्षण बिल का वर्षों से यह हाल है तो महिला के कल्याण और हितों केअनुरूप बनने वाले कानून अथवा योजनाये पूर्वाग्रहों से कितने मुक्त होते होंगे, इस बात अंदाज़ लगाना मुश्किल नहीहोगा । आजादी के ६२ वर्षों बाद भी महिलायें अपनी आबादी के अनुपात में संसद में अपनी हिस्सेदारी नही बनापायी ।
यदि सरकार और संसद वास्तव में महिलाओं की समान भागीदारी सुनिश्चित करने हेतु कृत संकल्प है तो उसे कुछऐसे कदम उठाने चाहिए । जैसे हो सके तो महिलाओं को पंचायत से लेकर संसद तक के चुनाव में प्रत्याशी के रूपमें खड़े होने हेतु प्रेरित करने के उद्देश्य से नामांकन फार्म भरने से लेकर चुनाव लड़ने तक का आर्थिक खर्च का वहन सरकार द्वारा किया जाना चाहिए । दूसरा यह कि सत्ता खिसकने एवं संसदीय सीट छिन जाने के डर से कोई नकोई अड़ंगा लगाकर महिला बिल को पास होने से रोका जाता है । अतः इसे अब नेताओं के हाथ से निकालकर सीधेजनता के बीच ले जाकर जनता द्वारा वोटिंग के माध्यम से इस पर फ़ैसला कराया जाना चाहिए । फ़िर देखें कैसे न पास होगा महिला आरक्षण का बिल । क्योंकि आधी आबादी और उससे अधिक का समर्थन मिलना तो निश्चित हीहै ।
आशा है कि इस तरह के गंभीर प्रयास यदि किए जायेंगे तो महिलाओं की सभी क्षेत्रों में उनकी आबादी के हिसाब सेसमान भागीदारी और हिस्सेदारी निश्चित रूप से सुनिश्चित हो पाएगी ।