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23.8.09

रुपये लौटाकर दिया ईमानदारी का परिचय

एलआईसी कार्यालय जींद के एक कोषाध्यक्ष ने ईमानदारी का परिचय देते हुए एक पालिसी धारक के ज्यादा आए दस हजार रुपये वापस लौटा दिए। पालिसी धारक ने इस ईमानदारी के कार्य के लिए पूरी एलआईसी टीम का धन्यवाद किया है। पालिसी धारक कविता शर्मा के पति सत्यवीर सिंह ने बताया कि वह शुक्रवार को सुबह उनकी पत्ि की किस्त भरने के लिए एलआईसी कार्यालय में गया था। वहां पर गलती से उसने दस हजार रुपये का टोटल ज्यादा कर दिया। किस्त भरकर वह वापस घर गया। घर आकर भी उसने ध्यान नहीं दिया। सत्यवीर ने बताया कि कुछ ही समय बाद उनके घर एलआईसी से टेलीफोन पर सूचना आई कि उन्होंने दस हजार रुपये ज्यादा दे दिए। ऐसा सुनकर वह तुरंत वहां आया। उसे दस हजार रुपये वापस दे दिए गए। उसने बताया कि वह इसके लिए कोषाध्यक्ष संजीव सैनी, गन मेन चंद्रपाल तथा मुख्य प्रबंधक आर.के मोहला का धन्यवाद करते हैं। उसने कहा कि ईमानदारी आज भी जिंदा है।

मेरी विदाई

घर में कुछ चहल पहल हो रही है। तैयारी की जा रही है किसी कार्यक्रम की।

देखुं , आज कौन-कौन मेरे घर पर आया है? एक कोने में दादा दादी और नाना नानी बैठे है।

अंकल आंटी भी आये हुए हैं। मामा मामी के साथ चिंकु, बंटी, भी आये हैं। सूरत वाले अंकल ने तो मेसेज भेजा है कि उन्हें कहीं ओफ़िस के काम से जाना हुआ है, इसीलिये नहीं आ सकते।

आज कोई फ़ंकशन है। मेरे प्रिंसिपल और कुछ टिचर्स भी आये हैं। पर......अभी तक मेरी सहेलियां क्यों नहीं आई? परेशान हुं मैं!!!!

मेरी मौसी-मौसा भी नहीं आये। अंकल आंटी दूर क्यों बैठे हैं मुझसे?

हरबार प्यार से मेरे साथ खेलनेवाले चिंकु बंटी आज मेरे पास क्यों नहीं बैठते?

क्यों सब मुझसे दूर दूर भाग रहे हैं ?

कहीं से घी की तो कहीं से आ रही अगरबत्ती के धुएं की बदबू मुझे बेचैन कर रही है।

ये कैसा कार्यक्रम है जिसमें सन्नाटा छाया हुआ है?

मैं ये नहीं समझ पा रही कि मुझे कोई प्यार से पुचकारता क्यों नहीं है?

साथ में खेलनेवाली सहेलियां भी आज गायब हैं। घर के बाहर लगी भीड़ में कानाफुसी चल रही है।

लो अब मेरी विदाई का वक़्त आ गया।

मेरे चहेरे से कपड़ा हटाया गया ताक़ि कोई मुझसे मिलना चाहे तो मिल ले।

पर सब लोग मुंह पर कपड़ा डालकर रोने लगे। कोई आगे नहीं आया।

मुझे विदा करने भी नहीं

हाँ....... मेरी मम्मी दौड़ती चिल्लाती मेरे करीब आई। मेरे चहेरे को चूमने लगी। रिश्तेदार लोग उसे मुझसे दूर हटाने की कोशिश कर रहे थे पर वो थी कि मुझे छोड़ ही नहीं रही थी।

छोड़ती भी कैसे....?

उसने मुझे अपने उदर में नौ महिने जो रखा था। मुझे अपना अमृत जो पिलाया था।

वो अच्छी तरह जानती थी कि उसकी बेटी का आख़री दिन है। फिर मैं कभी वापस आनेवाली नहीं हुं।

क्योंकि आज मेरी मृत्यु हुई है।

लोग कह रहे थे कि मेरी मृत्यु “स्वाइन फ़्ल्यु” से हुई है।

अब मैं समझी कि सब कोई दूर दूर क्यों भाग रहे थे मुझसे।
वाह री दुनिया ! क्या रिश्ते निभाते है लोग!!!! जब जान पर बनती है, अपने भी पराये हो जाते हैं।

बस की चपेट मे आने से भाई-बहन की मौत

मनोहरपुर बस अड्डे के पास रोडवेज बस की चपेट में आने से भाई-बहन की मौत हो गई। बस चालक का आरोप है कि छात्रों द्वारा हाथापाई करने के कारण वह बस से नियंत्रण खो बैठा और बस मोटरसाइकिल में जा भिड़ी। वहीं मारपीट की घटना से क्षुब्ध रोडवेज चालकों ने जींद बस अड्डे के गेट के बाहर बसें रोककर जाम लगा दिया, जिससे लोगों को परेशानी का सामना करना पड़ा। महाप्रबंधक के आश्वासन के बाद ही चालकों ने जाम खोला।
अर्बन इस्टेट निवासी शकुंतला अपने भाई सतपाल के साथ मोटरसाइकिल पर सवार होकर ढाठरथ गांव से शनिवार दोपहर जींद आ रही थी। मनोहरपुर गांव के बस अड्डे के पास सामने से आ रही रोडवेज बस ने मोटरसाइकिल को चपेट में ले लिया, जिससे शकुंतला की मौके पर ही मौत हो गई। सतपाल ने अस्पताल में उपचार के दौरान दम तोड़ दिया। समाचार लिखे जाने तक शवों के पोस्टमार्टम नहीं हो सके थे। वहीं रोडवेज बस के ड्राइवर सत्यवान ने बताया कि बस में उसके साथ कुछ छात्रों ने हाथापाई की, जिस कारण वह बस को संभाल न सका और बस मोटरसाइकिल में भिड़ गई। छात्रों द्वारा चालक से हाथापाई व दो लोगों की मौत की सूचना मिलने पर जींद बस अड्डे पर चालकों ने बसों को अड़ाकर जाम लगा दिया। रोडवेज कर्मचारियों ने जमकर नारेबाजी की तथा आरोपी छात्रों के खिलाफ कार्रवाई की मांग की। डिपो महाप्रबंधक एसएम खर्ब के आश्वासन के बाद ही कर्मचारियों ने जाम खोला।

22.8.09

सफाई या खाना पूर्ति?

नोएडा के सेक्टर 12 में आजकल बारिश के मौस में फाई का काम पूरे जोशो ख़रोस के साथ चल रहा है।उत्तर प्रदेश के इस इलैक्ट्रॉनिक सिटी में बाकायदा जैसे कोई अभियान चल रहा हो, लेकिन नवीन ओखला औद्योगिक प्राधिकरण इस कार्य में सिर्फ खानापूर्ति के सिवाय कुछ नहीं कर रहा है। इसकी बानगी तब देखने को मिली जब जेड ब्लाक के मंदिर के पास के नाले की सफाई तो कर दी गयी, लेकिन हर बार की तरह उसकी गंदगी को वहीं पर छोड़कर चले गये सफाईकर्मी। ये इस तरह की अकेली घटना नहीं है। ऐसे हालात सेक्टर्स के हैं। हर साल इस तरह के सफाई अभियान चलते हैं, लेकिन इसमें काम कितना होता है इसके गवाह है सेक्टर 12 के ज़ेड ब्लाक निवासी सुरेश जो कहते है "हर साल इस तरह सफाई के नाम पर गंदगी को उठाकर सड़को पर डाल दिया जाता हैफिर वो बारिश के पानी में बहकर दोबारा नालों में चली आती है" जी हाँ, बारिश का मौसम होने के कारण वो गंदगी दोबारा उसी नाले में समा जाती है, जहां से उसे निकाला गया था। इसे सफाई के नाम पर लगने वाले सरकारी पैसे की बर्बादी नहीं कहेंगे तो क्या कहेंगे? क्योंकि हर साल नालों की सफाई के नाम पर लाखों रुपये का बजट पास होता है और उन पैसों का इस्तेमाल सफाई पर कम खानापूर्ति पर ज्यादा होता है। क्योंकि गंदगी वहीं रहती है और उन पैसों से प्राधिकरण की जेब गर्म होती रहती है।

21.8.09

विदेश भेजने के नाम पर पाँच लाख ठगे

हरियाणा की अलेवा थाना पुलिस ने अदालत के आदेश पर विदेश भेजने के नाम पर पाँच लाख रुपये ठगने के मामले में दो लोगों के खिलाफ धोखाधडी का मामला दर्ज किया हैपुलिस मामले की छानबीन कर रही हैजीन्द के अर्बन इस्टेट निवासी संजीव ने अदालत में याचिका दायर कर कहा था कि वह विदेश जाना चाहता था। इसी दौरान उसकी मुलाकात दिल्ली के जीवन नगर, महारानी बाग़ निवासी जी.एस कपूर तथा .के जैन से हुई। दोनों ने बताया कि वें बिजली निगम में काम करते हैं और विदेश मंत्रालय में उनकी जान पहचान हैउन्होंने कई लोगों को विदेश भेजकर उन्हें नौकरी पर लगवाया हैदोनों ने उसे विश्वास दिलाया कि वह उसका पासपोर्ट बनवाकर मनचाहे देश का वीज़ा लगवाकर वहां उसकी नौकरी का प्रबंध कर देंगे। विदेश भेजने के नाम पर उसने 8 दिसम्बर 2008 को अलेवा बस अड्डे पर दोनों को पाँच लाख रुपये दे दिए। दोनों उसे जल्दी भेजने का आश्वासन देकर काफी दिनों तक टरकाते रहे। जून 2009 तक वह उनका इंतजार करता रहा। कुछ हासिल होने पर जब उसने रकम वापस करने की मांग की तो उसे मारने बुरा अंजाम भुगतने की धमकी दी जाने लगी। अदालत के आदेश पर अलेवा थाना पुलिस ने जी.एस कपूर तथा .के जैन के खिलाफ धोखाधडी का मामला दर्ज कर छानबीन शुरू कर दी है

पानी में पड़ा मिला अज्ञात का शव

हरियाणा के जीन्द जिले के जुलाना कस्बे में बी.एस.एन.एल कार्यालय के पास पानी में एक अज्ञात आदमी का शव पड़ा हुआ है। फिलहाल उसकी पहचान नही हो सकी। इसकी सूचना पुलिस को भी दी गई थी, लेकिन लापरवाही के चलते काफी समय बाद भी पुलिस मौके पर नही पहुँच सकी थी। शव पड़ा होने की सूचना से ही लोगों मे सनसनी फ़ैल गई। समाचार लिखे जाने तक शव की शिनाख्त नही हो सकी थी और ही पुलिस मौके पर पहुँच सकी थी।

20.8.09

अतीतजीवी राजनीति की बंधक एक पार्टी

जिन्ना पर जसवंत सिंह के उन्मुक्तविचार भाजपा को रास नहीं आए। पड़ोसी देश के मृत राष्ट्रपिता पर ऐसी क्या नीति है, जिसका उल्लंघन उन्होंने किया है? जिन्ना भारत के विभाजन के लिए जिम्मेदार ठहराए जाते रहे हैं, पर मरने के बाद वह भारतीय जनता पार्टी के विभाजन के लिए जिम्मेदार हो सकते हैं, यह सोचकर उन्हें कब्र में भी आश्चर्य हो रहा होगा। पहली बार जब लालकृष्ण आडवाणी ने जिन्ना के बारे में दो मीठे शब्द कहे थे तो उनके रहनुमा से लेकर अनुयाइयों तक में फूट पड़ गई। अब वरिष्ठ नेता जसवंत सिंह को भाजपा से निष्कासित कर दिया गया, क्योंकि उन्होंने पाकिस्तान के जनक मुहम्मद अली जिन्ना पर एक पुस्तक लिखी है जो जिन्ना के सकारात्मक पहलुओं को उजागर करती है। एक दिन पहले ही पार्टी ने इस पुस्तक से अपने को अलग करते हुए कहा था कि जसवंत सिंह के व्यक्तिगत विचारों का पार्टी की नीतियों से कोई लेना-देना नही, पर जसवंत के उन्मुक्त विचार पार्टी नेताओं को रास नहीं आए। यह सिर्फ अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का सवाल नहीं है। बड़ा सवाल यह है कि देश की दूसरी सबसे बड़ी पार्टी की एक पड़ोसी देश के मृत राष्ट्रपिता को लेकर ऐसी क्या नीति है, जिसका उल्लंघन जसवंत सिंह ने किया है? इसका उत्तर स्पष्ट मगर चिंताजनक है। भाजपा अभी भी भूतकाल के परदे में आराम महसूस करती है। पीछे देखने की आदत इतनी गंभीर है कि पार्टी का भविष्य दिख रहा है और ही भविष्य की राजनीति की चिंता है। मंदिर वहीं बनाओ जहां भूत में मंदिर था, भारत सोने की चिड़िया था, कभी पूरा एशिया हिंदू था और हमारी ऐतिहासिक धरोहर में कुछ काला नहीं, ऐसे विचारों को जेहन में भरकर राजनीति करने से एक व्यावहारिक कट्टरपंथ पार्टी में घर कर गया है। तभी तो वरुणगांधी के विषैले शब्दों पर आपत्ति नहीं हुई, जो चुनाव में भारी पड़ा। प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस ने युवा नेताओं की एक कतार खड़ी कर रखी है वहीं भाजपा आडवाणी का विकल्प ढूंढ़ने में विफल रही और उन्हें फिर से विपक्ष के नेता का पद थमा दिया। इस्तीफा देने के बाद उन्हें भी पद वापस स्वीकारना पड़ा, क्योंकि नकारने का मतलब था पार्टी को अंतर्कलह के अंधड़ में अकेला छोड़ना। भाजपा के अंदर की उठापटक के बीच हो रही चिंतन बैठक से भारतीय राजनीति में रुचि रखने वालों को इस पार्टी के भविष्य को लेकर ही चिंता हो रही होगी। दरअसल पिछले चुनाव में हारने से पहले ही पार्टी के अस्तित्व पर प्रश्नचिह्न् लग चुका था। जनता इस ऊहापोह को भांप चुकी थी, तभी उसने केंद्र की सत्ता में आने का मौका नहीं दिया। अब सवाल यह है कि भाजपा अगला चुनाव लड़ने के लिए बचेगी और बचेगी तो किस रूप में ?