11:17 am
रज़िया "राज़"
मैं तो आऊंगी तेरी गली। चाहे कोई कहे पग़ली।
तू लेजा ना लेजा मुझे(2)
वादिओं में बसेरा मेरा, तुझसे हो सवेरा मेरा।(2)
मैं बनके उडू तितली…
तू लेजा ना लेजा मुझे।
तुझसे हो उजाला मेरा,तू ही है सहारा मेरा।(2)
तुझसे मैं बनी बिजली…
तू लेजा ना लेजा मुझे। मै तो आऊंगी…
ये बहारें तुम्हीं से ही हैं ,ये नज़ारे तुम्ही से ही हैं(2)
चाहे फूल हो चाहे कलि…
तू लेजा ना लेजा मुझे।
झरमर-झर जो सावन मिले,सौंधी-सौंधी ख़ुशबू खिले।(2)
मैं बरसुं बनके बिजली…
तू लेजा ना लेजा मुझे।
12:12 am
प्रवीण शुक्ल (प्रार्थी)
कितनी बार कमला से कहता हूँ -----कि मेरी किताबें मत छेडा करे पता नहीं उसे सफाई का क्या भूत सवार रहता है सब कुछ इधर उधर रख देती है-------कब से बैँक की पास बुक देख रहा हूँ मिल ही नहीं रही-------- अब बुढापे मे नज़र भी कम्ज़ोर हो गयी है-------
शायद पुरानी डायरी मे होगी--------हाँ-- यहीं है-- जैसे ही मैं डायरी उठाता हूँ एक पुराना सा पत्र मेरे हाथ मे आ जाता है एक दम सिहर जाता हूँ-------जितनी बार ये हाथ आता है पढे बिना नहीं रहा जाता-------फिर खोल लेता हूँ--------
प्रिय अजय
सादर नमस्कार
व्याकुल तो बहुत हूँ मगर फिर भी गौर्वन्वित महसूस कर रहा हूँ-------वो इस लिये कि मैं अपने देश के काम तो आया दुख इस बात का है किमैँ अपनी पूजनीय मातृभूमी की और सेवा ना कर सका -----अज ये पत्र भी एक कैदी मित्र के सहयोग से लिखना संभव हुआ है------15 तारीख को मुझे फाँसी होनी तय हुई है-------तुम जानते ही हो कि मेरे माता पिता मेरे जन्म लेते ही भगवान को प्यारे हो गये थे----- और गाँव के हरीराम चाचा ने पाला पोसा और देश प्रेम का पाठ पढाया आज मैं इस काबिल हुअ कि माँ के लिये बलिदान दे सकूँ-------
बस मेरी एक अँतिम इच्छा मेर दोस्त होने के नाते पूरी कर देना------- मुझे अभी भी ये मलाल है कि मैं जीते जी भारत को आज़ाद होते नहीं देख सका माँ के पैरों की बेडियाँ नहीं काट सका पता नहीं हमारा बलिदान काम आयेगा भी कि नहीं------ये मेरी अवाम खुली हवा मे साँस ले पायेगी भी कि नहीं------- जने इन जालिमआअँग्रेजों ने कितनी मासूम लील लिये-------कितनों को फाँसी चढा दिया--मगर इन्की प्यास बुझती नज़र नहीं आ रही------फिर भी एक विश्वास लिये जा रहा हूँ कि मेरा देश जरूर आज़ाद होगा---शहीदों का खून व्यर्थ नहीं जायेगा-------बस मेरी एक अँतिम इच्छा जरूर पूरी कर देना--------मैं तुम्हारा सदैव ऋणी रहूँगा मेरी अस्थियोँ को मेरे गाँव के खेतों मे छिडक देना ताकि इसी माँ की कोख से फिर जन्म लूँ----- जै हिन्द बन्देमातरम-
तुम्हारा निरँकार
पत्र् पढते ही अनायास आँखें बह चली------- धन्य थे तुम ---अच्छा हुअ तुम चले गये नहीं तो अगर आज़ाद भारत के आज के नेताऔ काआचरण देख कर दुखी होते------शायद एक और आज़ादी का बिगुल बजा देते भ्रश्टाचार से आज़ादी का ------- मैं तुम्हारा दोस्त हो कर भी तुम से कुछ ना सीख सका-------तेरे अवतार का फिर से इस देश को इन्तज़र है तू धन्य है--------
और मैं वहीं बैठ जाता हूँ -------- अतीत का एक एक पल आँखों के आगे घूमने लगता है------ अतीत के गर्त में दबे पन्ने खुलने लगे-------- सत्तर साल पहले की घटना कल की ही लगने लगी आँखों से अश्रु झर झर वहने लगे--------- कितना प्यारा था ये निरंकार -------, अपने माँ बाप का इकलौता बेटा था -------- बचपन में ही उसके पिता का स्वर्ग वाश हो गया ----------माँ भी दो साल का छोड़ कर स्वर्ग सिधार गयी --------मीहान पुर गाव के पुजारी हरिराम ने ने इसका पालन पोषण किया वा नाम रख्खा निरंक्न्कार सिंह---------- जैसा नाम वैसा गुण निरंकार निरंकार ही निकला------- बचपन से गाव बालो की हर तरह से मदद करना ही उसका काम बन गया------ चाहे बूढे राम अवतार को नहलाना धुलना हो या मुनिया दादी के घावो में पट्टी करना------ किसी के बैल को नाथना हो या या बैल गाड़ी के पहिये की चिक निकालना ----- किसी को बैल गाडी से शहर पहुचाना हो याया फिर किसी का छप्पर बनबाना --------सब निरंकार का मानो अपना ही काम हो --------पूरा गाव बस्ती मानो उसका अपना ही घर हो और गावं के हर व्यक्ति मानो उसके परिवारी--------- जन जेष्ठ की तपती धूप हो या पौष की हाड काँप ठंड --------उसका उसपे कोई प्रभाव नहीं पड़ता ------गावं बाले उसकी तरह तरह से बडाई करते ---------हरिराम भी जव गावं में निकलते तो फूले नहीं समाते कहते यह सब भगबान नारायण की महिमा है जो मुझे शादी ना करके भी पुत्र सुख प्राप्त ह्युआ है-------- निरंकार भी अपने पिता सामन गुरु की हर आज्ञा का पालन करता था -----------पर ये स्नेह बंधन जयादा दिन ना टिक सका ---------ये प्रेम बंधन एक दिन में ही विखर गया --------सावन मॉस की शाम की बात हरिराम भगवान् नारायण की पूजा में तल्लीन जाप कर रहे थे पास ही निरंकार बैठा भोग का इंतजाम कर रहा थ \------------- आसमान बादलो से मढा था हलकी फुहार भी पड़ रही थी ----तेज तेज सनसनाती हवा के झोके आते और चले जाते ---बीच बीच में बिजली की कड़कएक नया संगीत पैदा कर रही थी और मंदिर की निश्चलता को भंग कर रही थी -----शाम का झुक झुका बढ़ता जा रहा था----- तभी कुछ घुड़सवार मंदीर के सामने आकर रुके ------उनमे से एक गोरा अफसर और तीन चार गोरे और देशी सिपाही मंदिर मर्यादा का उलंघन करते हुए तेजी के साथ मंदिर में प्रविष्ट हुए -------उनका अफसर हरिराम की ओर मुखातिब होते हुए बोला “तुम्हें क्रांत्कारियो की मदद करने के आरोप में गिरफ्तार किया जाता है” –“क्रांत्कारियो की मदद करके तुमने अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ बगावत की है इसकी तुम्हें सजा मिलेगी” उसकी ये बाते सुनकर निरंकार सिंह हत्प्र्व्ह रह गया ---पर हरिराम के चेहरे पर कोई भय का भावः या सिकन नहीं आई बल्कि उनके चेहरे का तेज चमकने लगा और आंखे गुस्से से लाल हो गयी और माथे पर आत्म सम्मान और आत्म गौरव का भावः झलकने लगा------------ उन्होंने कहा “महोदय अपनी मात्र भूमि की सेवा से बढ़ कर दुनिया में कोई पुन्य का काम नहीं मुझे गर्व है की मैंने अपनी माँ के लिए जान निछावर करने बाले वीरो की मदद की है”---------- अफसर ये सुनते ही आग बबूला हो गया-------- उसने तुंरत हरिराम को गिरफ्तार कर लिया और अपने साथ थाने ले गया निरंकार उनके सामने गिर कर रोया --------हरिराम नाराज होते हुए----- “बोला निरंकार ये मेरा अपमान है तू मेरा अपमान कर रहा है मैंने तुझे साद स्वाभिमानी बन्ने की शिक्षा दी और तू आज इन गोरो के आगे गिडगिडा रहा है आज मैं तुम्हें अंतिम उपदेश देता हूँ कभी भी इन अंग्रेजो के सामने मत झुकना ये हमारी माँ के अपराधी है विनाश करना इनका और प्रतिशोध लेना इनसे”---------------- उनकी बात सच हुई ------लगता था जैसे भगवान् ही बोल रहे हो उनके मुख से ---------सुबह हरिराम की लाश मंदिर में पंहुचा दी गयी ---------वो अंग्रेजी पुलिस की बर्बरता की गाथा कह रही थी-------- उनकी थाने में इतनी पिटाई की गयी की उनकी म्रत्यु हो गयी--------- सारे गावं में मातम का माहौल हो गया ------सब दवी जवान से अंग्रेजी हुकूमत के अत्याचार की बात करते पर कोई भी प्रतिशोध के लिए तैयार नहीं था ---- निरंकार का अंतिम आसरा जीवन का स्तम्भन भी छिन्न छिन्न हो गया --------उसके दिमाग में अपने गुरु के कहे हुए वाक्य गूजने लगे --------उसने अपने गुरु की समाधी के पास ही अंग्रेजी हुकूमत की एक एक ईट उखाड़ फेकने का प्रण किया------ और अब निरंकार सिंह बन गया वैरागी से जुनूनी क्रांतकारी ---------सबसे पहले उसने थाने में घुस कर उस अंग्रेज अफसर की हत्या कर अपने गुरु की हत्या का बदला लिया---------- फिर बन गया वो अंग्रेजी हुकूमत का मोस्ट वांटेड और निकल पड़ा अपनी भारत माँ को आजाद कराने वो वीर भारती पुत्र--------- अब उसका बस एक ही लक्ष अंतिम इच्छा या अरमान था -------- माँ भारती को आजाद कराना पर--------- दुर्भाग्य से वो पड़ा गया और परिणिति फाँसी ---------उसका पत्र मिलते ही मैं उससे मिलने जेल गया था ------मरने से कुछ ही समय पहले उसके चेहरे पर जो तेज कान्ति और चमक थी--------- वो अलौकिक थी वह निश्चिंत भावः से जेल के अन्दर गीता का पाठ कर रहा था -------उसे देख कर मेरे आंशु निकलने लगे मुझे रोते देख कर वह हस कर बोला “अरे अज्जे तू रो रहा है क्या तुझे अपने मित्र को अपनी माँ के काम आते देख सुख नहीं मिलता शांति नहीं मिलती ? क्या तू चाहता है की मेरी माँ गुलाम रहे ?और हम चैन से सोये नहीं मित्र एक जन्म कया यैसे हजार जन्म मैं इस धरती माँ पर निछावर कर सकता हूँ-------- एक फाँसी क्या सैकडो बार फाँसी पर चढ़ सकता हूँ------ हम गीता पढने बाले हिन्दू है हमारा पुनर्जन्म पर विस्वाश है -------मैं दुबारा जाम लूँगा फिर पैदा होऊंगा वा अपनी माँ का कर्ज उतारूंगा------ मैं फिर क्रांतिकारी बनूगा ,----- उस समय उसकी ऐसी तेज पूर्ण बाते सुनकर मुझे अपने आप से घर्णा होने लगी -------मुझे लगा मैंने अपना जीवन निर्थक व्यर्थ कर दिया और तभी घंटी बजी और उसे फाँसी के लिए ले जाया जाने लगा------- , इन्कलाब के साथ उसने फाँसी के फंदे को चूम कर अपने आप अपने गले में डाल लिया -------- सभी अंग्रेज अफसर जो वहा थे यैसे देश भक्त पे आश्चर्य चकित रह गए------ देशी सिपाहियों के सर शर्म से झुक गए ------उस दिन गावं का हर बच्चा रोया मानो गाव पे पहाड़ टूट पड़ा हो------- जाने कितने बे सुध हो गए कितनो ने अन्न ग्रहण नहीं किया --------कितनी माये बिलखती रही अपने प्यारे लाल के लिए फिर ऐसी क्रांति आई --------उस गावं का बच्चा खडा हो गया अंग्रेजी हुकूमत के विरूद्व --------पूरा देश खडा हो गया और पैर हिलने लगे अंग्रेजी हुकूमत के--------- , “ अजी क्या कर रहे हो क्या अभी तक किताब नहीं मिली मैं सेवक से निकलबाती हूँ चाय तैयार है चाय लेलो “पत्नी के इन शब्दों ने मुझे अतीत से वर्तमान में ला पटका --------मैंने अपने आंशु अगौंछे से पोछे और चस्मा ठीक करकेबहार आ गया------- आज अंग्रेजी हुकूमत नहीं है तो क्या हमारी माँ स्वतंत्र है ------क्या आज हमारे नेता हमारी माँ को बेच नहीं रहे है ??क्या यही स्वतंत्रता है? तभी मेरे कानो में निरंकार के बचन गूंज पड़े मैं पुना पैदा होऊंगा पुना जन्म लूँगा अपने कर्तव्य धर्म के निर्वाह के लिए माटी का कर्ज को चुकाने के लिए ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
6:36 pm
बेनामी
हरियाणा की जींद जिला पुलिस ने पत्नी की पिटाई करने पर सास तथा पति के खिलाफ मामला दर्ज किया है। इस मामले में अभी तक कोई गिरफ्तारी नही हो सकी है। गाँव घोघडिया की एक महिला ने पुलिस को दी शिकायत में बताया था कि ११ अगस्त की रात वह घर में अकेली थी। उसका पति सुभाष नशे में धुत होकर घर आया और उसके साथ मारपीट करने लगा। इस काम में उसकी सास कमला ने भी अपने बेटे का साथ दिया। उसके द्वारा बचाव में शोर मचाये जाने पर पड़ोसी मौके पर आ गए और पति तथा सास के चंगुल से छुड़ाकर अस्पताल पंहुचाया। पुलिस ने महिला की शिकायत पर पति सुभाष और सास कमला के खिलाफ मामला दर्ज कर छानबीन शुरू कर दी है।
8:34 pm
रज़िया "राज़"
देख़ो भारतवालो देख़ो, फ़िर आज़ तिरंगा छाया है।
है पर्व देश का आज यहाँ, ये याद दिलाने आया है।
रंग है केसरीया क्रांति का, और सफ़ेद है जो शांति का।
हरियाला रंग है हराभरा, पैग़ाम देश की उन्नति का।
अशोकचक्र ने भारत को प्रगति करना जो सिखाया है।
देख़ो भारतवालो देख़ो ।
वो वीर सिपाही होते हैं,सरहद पे शहीदी पाते है।
वो भारत के शुरवीर शहीद सम्मान राष्ट्र का पाते है।
वो बडे नसीबों वाले हैं, मरने पर जिन्हें उढाया है।
देख़ो भारतवालो देख़ो।
हम वादा करते है हरदम, सम्मान करेंगे इसका हम।
चाहे जो जान चली जाये, पीछे ना हटेंगे अपने क़दम।
जन-गण-मन गीत सभी ने फ़िर एक ऊंचे सुर में गाया है।
देख़ो भारतवालो देख़ो।
कश्मीर से कन्याकुमारी तक, बंगाल से कच्छ की ख़ाडी तक।
उत्तर से दक्षिण, पश्चिम से पूरब की हर हरियाली तक।
हर और तिरंगा छाया है, और भारत में लहराया है।
देख़ो भारतवालो देख़ो।
7:37 pm
शशांक शुक्ला
प्रिय मां
तुम चिंता मत करना मै ठीक हूं। यहां भारत में मेरे भाई लोग मेरा अच्छे से ख्याल रख रहे हैं। मेरी अच्छी ख़ातिरदारीहो रही है। कोई मुझे कुछ नहीं कहता है, सब मुझसे अच्छा व्यवहार करते हैं। मां एक दिन तो मैंने ख़ातिरदारी करवानेकी हद तोड़ दी मैने....मैने जेल के अधिकारियों से जेल का खाना नहीं, मटन बिरयानी मांगी पर जज नहीं माना, नहींतो मुझे वो मिल जाती...लेकिन चलो कोई बात नहीं बाकी सब चीज़े तो ठीक है..मुझे किताब मिलती है, पढ़ने के लिए। मेरा टाइम पास नहीं होता जेल में... मेरे रहने की व्यवस्था तो ठीक है लेकिन बाहर नहीं जाने देते। यही ग़लत है यहांभारत में...लेकिन यहां मेरे कई दोस्त हो गये हैं जो अलग अलग जुर्म में यहां सज़ा काट रहे हैं..कोई अपनी बीवी केकत्ल में सज़ा काट रहा है तो कोई बलात्कार के जुर्म में। लेकिन मज़ा है.. सब मेरे ही भाई है। हर कोई यहां मुझे बडे़भाई की तरह मानता है। क्योंकि मैने बड़ा काम किया था न इसलिये...मां तेरे बेटे ने तेरा और अपने देश का नामरोशन किया है। लेकिन एक बात गलत है, मेरे देश का नाम रोशन नहीं हो रहा है। क्योंकि यहां पर तो हर कोई मानरहा है कि मै पाकिस्तानी हूं। लेकिन मेरा अपना देश ही ये नहीं मान रहा है कि मै वहां का हूं। ये बात रह-रह कर मुझेखलती है। वहां का क्या हाल है, मां। मुझे पता चला है कि आईएसआई ने तुम्हें कहीं छुपा कर रखा है। चलो कोई बातनहीं। ये तुम्हारी और मेरी सुरक्षा के लिये है मां। थोड़ा कोऑपरेट करना उनसे...क्योंकि वो नहीं चाहते कि पाकिस्तानफंस जाये औऱ तुम्हे या मुझे कोई परेशानी न हो। मां तुम तो मुझे कुछ ज्यादा न खिला पाई। लेकिन यहां भारत मेंमेरा वेट पांच किलो बढ़ गया है। मां तुझे तो पता था कि मुझे हार्निया है। लेकिन परेशान मत होना पाकिस्तान में तोमेरा इलाज नहीं हो पाता, लेकिन यहां भारत में मेरा ठीक से इलाज चल रहा है और मेरी हालत में सुधार है। मां यहांसाफ सुथरा खाना मिलता है..मेरे लिये अलग से खाना बनाने वाला आता है और वो यहीं रहता है..यहां मुझे खतरा हैकि कहीं कोई मुझे ज़हर न दे दे खाने में...लेकिन तुम घबराओ मत यहां मैं हाईसिक्योरिटी में हूं। मुझे कुछ नहीं होगा।मेरे ऊपर केस चल रहा है। लेकिन परेशान मत होना। मैं कभी न कभी छूट जाउंगा। यहां का कानून बहुत मददगार है। हम जैसों को माफ कर देता है..तुम याद करो। merajawab.blogspot.com पर पढ़े शेष
12:02 pm
रज़िया "राज़"
ये बंधन टूटेना। (2)
चाहे कोई बाधा आये, चाहे आये तूफ़ान।
ये बंधन टूटेना। (2)
साथ कभी छूटेना…ये बंधन टूटेना
ये बंधन टूटेना। (2)
मेरी चाहत इतनी ग़हरी, जितना सागर ग़हेरा।
मेरी चाहत इतनी ऊंची, जितना नभ ये ऊँचा।
हाथ कभी छूटेना…ये बंधन टूटेना
तूँ मेरी साँसों में समाया, तू मेरी आहों में।
दिल की धड़कन नाम पुकारें, तेरा दिन-रातों में।
सांस मेरी छूटेना…ये बंधन टूटेना
तुझको चाहा, तुझको पूजा बनके मीरा मैने।
ढूंढा तुझको हर एक मोड़ पे बनके राधा मैने।
प्यार मेरा छूटेना… ये बंधन टूटेना।
7:18 pm
बेनामी
उपभोक्ता फॉर्म ने एक किसान को घटिया कीटनाशक देने पर २५ हजार रुपए हर्जाने के तौर पर देने के आदेश दिए हैं।
हरियाणा के जिला जीन्द के गाँव रजाना निवासी बलबीर ने ३ मार्च २००८ को फॉर्म में की शिकायत की थी कि उसने अपनी गेहूं की फसल के लिये एक ट्रेडिंग कंपनी से १५०० रुपये का कीटनाशक खरीदा था। दुकानदार द्वारा बताये गए सुझावों के अनुसार उसने फसल पर कीटनाशक का प्रयोग किया तो उसकी ९० प्रतेशत फसल खराब हो गई। कृषि विभाग की टीम ने भी अपनी रिपोर्ट में फसल खराब होने का कारण घटिया कीटनाशक बताया। उपभोक्ता फॉरम ने बलबीर को घटिया कीटनाशक देने पर ट्रेडिंग कम्पनी द्वारा शिकायतकर्ता को २५ हजार रुपए हर्जाने के तौर पर देने के आदेश दिए हैं।