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5.8.09

एक मजदूर की मौत

हरियाणा में जिला जीन्द के अलेवा गाँव में एक बिहारी मजदूर की कुए में गिरने से मौत हो गई। मृतक की पहचान बिहार प्रान्त के खुदीना गाँव के रणजीत शाह के रूप में बताई गई है रणजीत के साथ काम करने वाले मजदूर ने बताया कि रणजीत की तबियत आज सुबह से ही खराब थी। खेत में ही बने आवासीय कमरे से बाहर निकलते समय पैर फिसल जाने के कारण वह कुए में जा गिरा। अस्पताल लाते वक्त रणजीत ने रास्ते में ही दम तोड़ दिया था। मृतक के शव को अस्पताल के ही शव-गृह में रखवा दिया गया है।

4.8.09

“आज मेरी दादीमाँ का श्राद्ध है

आज मेरी दादीमाँ का श्राद्ध है, आज तो मेरी मम्मी ने अच्छे अच्छे पकवान
बनाये होंगे। ख़ीर पूरी, लड्डू। मज़ा आयेगा घर जाकरपिन्टु बोला। शाम को
तूँ मेरे घर आयेगा?
अच्छा आउंगा,”कल शबेबारत है ? मेरे दादा का भी कल फ़ातिहा है कल मुज़े
भी हलवा पुरी ख़ाने को मिलेगा। तूँ भी मेरे घर आना।राजा ने कहा।
शाम को राजा पिन्टु के घर पहोंचा। पिन्टु कि मम्मी ने राजा को खीर पूरी,
लड्डू, दिये। पिन्टु ने राजा से कहाचल छत पर खेलेंपिन्टु और राजा छत
पर खेलने लगे। खेलते खेलते बॉल राजा के हाथ से छुट गइ।, और सीढी से नीचे
की और लुढकने लगी। भागता हुआ राजा नीचे की तरफ उतरने लगा। बॉल सीढी से
सटे कमरे में चली गइ। राजा कमरे की और बढा, दरवाज़ा थोडा ख़ुला सा था।
आतुरता वश राजा ने दरवाज़े को धीरे से खोला। कमरे में अँधेरा था। कुछ बदबु
सी रही थी। राजा ने अपने हाथों से टटोलकर बॉल को ढुंढ लिया और जल्दी से
बाहर कि तरफ भागने लगा। भागते भागते उसके पैर से कोइ चीज़ टकरा गइ।कौन
है वहां”? किसी बिमार कि आवाज कानों में लगी। और कमरे में लाइट जलने लगी।
राजा ने देखा कि एक बूढा आदमी पलंग पर लेटा हुआ था। पलंग के नजदीक छोटा
सी एक टिपोइ रखी थी। एल्युमिनीयम की प्लेट में एक लड्डु आधा खाया हुआ। एक
कटोरी में ख़ीर थोडी प्लेट में ढुली हुई थी। बूढा आदमी कमज़ोर, बिमार लग
रहा था। कमरे की बदबू ही बता देती थी कि कमरे में बहोत दिनों से सफ़ाइ
नहिं हुई।
राजा भागता हुआ कमरे से बाहर निकल आया। इतने में पिन्टु भी वहां आगया।
क्या बॉल मिली? चल खेलें कहकर पिंन्टु राजा को फ़िर से छत पर ले गया। पर
राजा का अब मूड नहिं रहा था। उसने पिंन्टु से पूछा तेरे घर में कौन कौन
हैं?
पिन्टु बोला मैं मम्मी पापा और दादाजी।‘ “पर मैने तेरे दादा को तो नहिं
देखा कहां हैं वो?
वो बिमार हैं, एक बात बताउं राजा! मेरे दादा पहले बिमार नहिं थे। मेरी
दादी के मर जाने के बाद वो बिमार रहने लगे। तूं किसी से कहना मत पर मेरी
मम्मी उन्हें बहोत परेशान करती है। दादी के साथ भी यही होता रहा
था।पिन्टु ने गंभीर स्वर में कहा।तेरे पापा को ये सब पता था?” राजा
बोला।नहिं ! पापा पहले ज़्यादातर बाहर टुर पर ही रहते थे। उनके आने पर
भी दादा दादी कुछ नहिं कहते थे।पता है जब दादी मर गइ तब मेरे दादा बहोत
रोये थे। अभी भी अकेले अकेले रोते है। मुज़े बड़ा तरस आता है अपने दादा
पर, क्या करुं मैं भी मम्मी से डरता हुं। किसी किसी बहाने मुज़े वो पापा
कि डाँट ख़िलाती रहती है।पिन्टु की आंखें भर आईं। ये मम्मी पापा कैसे होते
हैं राजा? पहले तो हमारे बुज़ुर्गों से पराये सा व्यवहार करते हैं फ़िर
उनके मरने के बादश्राद्ध”, औरफ़ातिहाका नाटक करते है।“ ”मगर मेरी
अम्मी अब्बू ने तो मेरे दादा दादी के साथ ऐसा नहिं किया।?” एक मान भरे
स्वर में राजा ने कहा।‘ ”तूं नसीबदार है राजा! मुज़े तो अब मेरी मम्मी पर
भी तरस रहा है कि वो भी जब किसी की सास बनेगी तो क्या उसकी बहु भी
मम्मी के साथ ऐसा ही करेगी?”पिन्टु नम्र स्वर में बोला।पता नहिंचल
बहोत देर हो गई है। अब्बू गुस्सा हो जायेंगे राजा बोलाकल तूं भी मेरे
घर ज़रूर आना। हलवा खाएंगे साथ मिलकर रातभर राजा करवटें बदलता रहा। उसे
पिन्टु की हर बात याद रही थी। छोटा सा दिमाग बडी बडी बातों में उलज़ रहा
था। अचानक उसे कुछ डरावना ख़याल आया। तन पर ओढी हुइ चादर दूर हटाकर एकदम
दौडा अपनी दादी के कमरे की और.. दादी अम्मा एनक़ लगाये क़ुरानशरीफ़ कि
तिलावत कर रही थी। शायद दादाअब्बा की रुह के सवाब के लिये। उसने एक रुख़
अपने अम्मी अब्बू के कमरे कि तरफ़ किया।
दोनों बेख़बर सो रहे थे।

3.8.09

सोशल नेटवर्किंग साइट्स से कैंसर का खतरा

लंदन। अगर आप फेसबुक या माय स्पेस जैसी ऑनलाइन कम्युनिटीज साइट्स का लगातार इस्तेमाल करते हैं तोहो सकता है कि भविष् में आपको कुछ समस्याओं का सामना करना पड़े। एक रिपोर्ट के मुताबिक इन साइट्स काज्यादा इस्तेमाल करने से कैंसर होने का खतरा बढ़ सकता है।एक साइंस मैग्जीन में छपी रिपोर्ट में दावा कियागया है कि इन वेबसाइट्स पर लगातार जाने से कैंसर, लकवा और मेमोरी लॉस होने का खतरा बढ़ सकताहै।मनोचिकित्सक एरिक सिगमैन ने एक रिपोर्ट में कहा कि दोस्तों से मुलाकात करने के बजाय उन्हें ईमेल करनेका व्यापक बायो-साइंटिफिक असर हो सकता है। इससे रोग प्रतिरोधक क्षमता, हार्मोन के लेवल और धमनियों केकामकाज पर असर पड़ता है। इतना ही नहीं मानसिक क्षमता भी प्रभावित हो सकती है, जिससे कैंसर, लकवा औरमेमोरी लॉस जैसी गंभीर बीमारियां होने का खतरा बढ़ जाता है।सिगमैन ने कहा कि ये वेबसाइट्स लोगों के बीचआपसी संपर्क बढ़ाने के उद्देश्य से बनाई गई हैं, लेकिन ये लोगों में अकेलापन बढ़ा रही हैं। शोध बताते हैं कि 1987 से लोगों के आमने-सामने बात करने के घंटों में काफी कमी आई है क्योंकि इलेक्ट्रॉनिक माध्यम का इस्तेमाल बढ़गया है। ‍‍ ‍‍

मर चुकी मानवीय संवेदनाएं

हमारे समाज मे आज लगता है मानवीय संवेदना मर चुकी है, जिसका सीधा-सीधा उद्धरण आज उस समय देखने कोमिला जब जीन्द में जोगिन्दर नगर के पास से जाने वाली रेलवे लाइन के पास एक १६ साल की युवती का गलाघोटकर नगन अवस्था मे फेंक रखा था। युवती के हाथ पर मिस पूजा लिख रखा है। जिस हालत मे युवती
की लाश मिली है, उससे ऐसा लगता है कि युवति के साथ दुष्कर्म करने के बाद उसकी गला घोट कर हत्या कर रखीहै। आस-पास के लोग भी बोलने को कुछ तैयार नही है। आज दिन निकलने के बाद किसी ने हिम्मत करके रेलवेपुलिस को इसकी सूचना दी। माना जा रहा है कि हत्या रात के अंधेरे में हुई होगी। रेलवे पुलिस मृतका के परिजनों कीतलाश मे लगी है। फोरेंसिक टीम ने भी मौके का निरीक्षण कर लिया है। अब देखना है कि यह कांड किसी प्रेम प्रसंगके चलते हुआ है यह फिर कोई और ही बात है।

2.8.09

कलम


है बड़ा उसमें जो दम।

चल पडे उसके कदम।

देखो क्या करती कलम।

कभी होती है नरम।

कभी होती है गरम।

देखो क्या करती कलम।

छोड देती है शरम।

खोल देती है भरम।

देखो क्या करती कलम।

कभी देती है ज़ख़म।

कभी देती है मरहम।

देखो क्या करती कलम।

कभी लाती है वहम।

कभी लाती है रहम।

देखो क्या करती कलम।

कभी बनती है नज़म।

कभी बनती है कसम।

देखो क्या करती कलम।

लिख्नना है उसका धरम।

चलना है उसका करम।

देखो क्या करती कलम।

आओ युद्ध की गरिमा सुनावही ,,,,,,,,(कविता)


आओ युद्ध की गरिमा सुनावही,,

रुण्ड मुण्ड सब मिल गावही,,,

छावही मरू भूमि रुण्ड ते ,,,,,

मुण्ड मुण्ड उडावही,,,,,,

गावही मरू गीत कोई ……

।मरू द्वंद कोई बजावही,,,,,

कोई छावही कोई जावही …

कोई जोर जोर चिल्लावही,,,,,

कोई हाथ बिनु मारही …॥

कोई मुख बिनु चिल्लावाही …

कोई पैर बिनु आबही ,,

कोई ,कोई पैरबिनु जावाही ,,,,,

जुंड जुंड आवही ,,,

मरू नीद सोवही॥

स्वान गीत गावही ,,,

काग गीत गावही…

गिद्ध नोच नोच के,

आतडी खावही,,,

झुंड के झुंड चील नर मुण्ड खावही…।

खावही विखरावही गीत भोज गावही ,,,,

स्वान नोचे पांव तो आंख काग खावही,,

ले जावही नभ में ,,,,

कोई नभ ते गिरावही,,,

झपटी झपटी धावही

झपटी लै जावही ,,,

मरे मरे खावही अधमरे नुचावही,,,,,,

हाय हाय चिल्लावही कोई ना सुनावही…

रोवही चिल्लावही हाथ ना हिलावही,,,

खुलत झपट आंख काग लै जावही…।

चीख चीख के अधमरे,

जियति मांस स्वान खावही …॥

मनो रंक भिखारी आजु राज भोज पावही …

आओ युद्ध की गरिमा सुनावही ,,,,,,,,

1.8.09

प्रहर





अंधेरे हैं भागे प्रहर हो चली है।

परिंदों को उसकी ख़बर हो चली है।


सुहाना समाँ है हँसी है ये मंज़र।

ये मीठी सुहानी सहर हो चली है।


कटी रात के कुछ ख़यालों में अब ये।

जो इठलाती कैसी लहर हो चली है।


जो नदिया से मिलने की चाहत है उसकी।

उछलती मचलती नहर हो चली है।


सुहानी-सी रंगत को अपनों में बाँधे।

ये तितली जो खोले हुए पर चली है।


है क़ुदरत के पहलू में जन्नत की खुशबू।

बिख़र के जगत में असर हो चली है।


मेरे बस में हो तो पकडलुं नज़ारे।

चलो राज़ अब तो उमर हो चली है।