31.7.09
कसूर होता किसका है?
व्यूज़ : जिंदगी को सुलभ बनाने के लिए वैज्ञानिक आविष्कार किए जाते हैं, नए-नए साधन अविष्कृत होते हैं, परन्तु कईं बार इनका प्रयोग करते हुए इन्सान का जीवन सुलभ होने की बजाय दुर्लभ हो जाता है बल्कि कईं बार तो जीवन-लीला ही समाप्त हो जाती है। विचारणीय विषय यह है कि आखिर क़ुसूर होता किसका है; ख़ुद का अथवा उस साधन का ?
यादें !
पीछे मुड़ के हमने जब देखा, गुज़रा वो ज़माना याद आया।
बीती एक कहानी याद आई, बीता एक फ़साना याद आया।.....पीछे.
सितारों को छूने की चाहत में, हम शम्मे मुहब्बत भूल गये।(2)
जब शम्मा जली एक कोने में, हम को परवाना याद आया।.....पीछे.
शीशे के महल में रहकर हम, तो हँसना-हँसाना भूल गये।(2)
पीपल की ठंडी छाँव तले वो हॅसना-हॅसाना याद आया।.....पीछे.
दौलत ही नहीं जीने के लिये, रिश्ते भी ज़रूरी होते हैं।(2)
दौलत ना रही जब हाथों में, रिश्तों का खज़ाना याद आया।.....पीछे.
शहरों की जगमग-जगमग में, हम गीत वफ़ा के भूल गये।(2)
सागर की लहरॉ पे हमने, गाया था तराना याद आया।.....पीछे.
चलते ही रहे चलते ही रहे, मंज़िल का पता मालूम न था।(2)
वतन की वो भीगी मिट्टी का अपना वो ठिकाना याद आया।.....पीछे.
अपनों ने हमें कमज़ोर किया, बाबुल वो हमारे याद आये।(2)
कमज़ोर वो आंखों से उनको वो अपना रुलाना याद आया।.....पीछे.
अय “राज़” कलम तूं रोक यहीं, वरना हम भी रो देंगे।(2)
तेरी ये ग़ज़ल में हमको भी कोई वक़्त पुराना याद आया।.....पीछे.
कवि राजविन्दर से रुबरू
इस संगीतमय महफिल के बाद स्थानीय कवियों द्वारा कवि दरबार सजाया गया। जिसमे श्री देवेन्द्र शर्मा प्रधान अक्षर चेतना मंच ने राजनीति पर कटाक्ष करती नज़्म `लोक तन्त्र` श्री बलबीर सैणी ने गज़ल `मैथों हस्या नी जाणा ते रोया वी नी जाणा,हन्जू पलकाँ ते आया ते लुकोया वी नी जाणा। स. अमरजीत बेदाग ने हास्य कविता`` आई०पी०सी० 377 ने पनाह दी. मोहन ने सोहन से शादी बना ली`` अजय शर्मा ने ``पीडाँ दा वोगनविलिया ,श्रीमति सविता शर्मा ने``कालख गोरे रंग दी``सुनाई । अक्षर् चेतना मंच के सचिव श्री राकेश वर्मा ने वियना की घटना के बाद पंजाब मे हुये प्रतिक्रम पर केन्द्रित नज़म ``हालात सुखन साज़ करां तां किन्झ करां``सुना कर श्रोताओं को सोचने पर मजबूर कर दिया। इसके बाद अशोक राही,ने चन्द शेर एवं संजीव कुरालिया ने ``मैं पंजाब बोलदां``सुना कर तालियाँ बटोरी। निर्मला कपिला जी ने गला खराब होने के कारण अपनी असमर्थता प्रकट की।
मंच संचालक श्री गुरप्रीत गरेवाल {पत्रकार अजीत समाचार} ने कपूरथला से पधारे स.हरफूल सिंह जी को राज कवि श्री राजविन्दर जी का परिचय करवाने के लिये आमंत्रित किया। स.हरफूल सिंह जी ने राजविन्दर जी की संक्षिप्त जानकारी देने के साथ-साथ नंगल शहर के बारे मे लिखी अपनी कविता``रोशनियाँ दे शहर् ``सुना कर नंगल से जुडी यादें ताज़ा की।
इसके बाद तीनों संस्थाओं के पदाधिकारियों द्वारा श्री राजविन्दर को दोशाला एवं समृ्ति चिन्ह भेंट कर सम्मानित किया गया।
श्री राजविन्दर जी ने आत्मकथन करते हुये बताया कि वे वार्तालाप के कवि है । उनकी पहली पुस्तक 19 वर्ष की आयु मे छपी थी।वो अब जर्मन भाषा मे लिखते हैं। बर्लिन युनिवर्सिटी मे पढाने के बाद 1991 मे वो स्वतंत्र कवि बने।1997 मे उन्हें प्रथम बार पोइट लोरीयट का खिताब मिला। वे प्रथम अनिवासी भारतीय हैं, जिन्हें इस खिताब के फलस्वरूप किंग फेड्रिक्स के महल मे ठहरने का सम्मान मिला। उनके 10 काव्य संग्रह व एक लघु कथा संग्रह जर्मन भाषा मे छप चुके है।वे 2004 मे वर्लिन के, 2006 मे वेस्ट्फेलिया,एवं 2007 मे त्रियर के पोइट् लोरीयल {राज कवि} बने।उनकी नज़्मों को स्कूल की पाठ्य पुस्तकों मे शामिल किया गया एवं कुछ नज़्मे पत्थरों पर उकेर कर त्रियर शहर मे लगाया गया है. पंजाबी मे उनकी एक पुस्तक मे से तरन्नुम मे अपनी चंद गज़लें गाकर सुनाई। जिनके बोल थे--
1 ऐंवें कदे जे शौक विच सागर नूँ तर गये
अज्ज रेत दे सुक्के होये दरिया तों डर गये
2 मैं झुण्ड दरख्ताँ दा बण जावाँ
तू बण के पवन मुड मुड आवीं
3 अक्स तेरा लीकणा सी अखियाँ `च अज़ल तक
गज़ल ताहियों ना पिया ऐ बेबसी विच हिरन दा
इस अवसर पर बी०बी०एम०बी० के पूर्व मुख्य अभियंता श्री के के खोसला जी चित्रकार श्री देशरंजन शर्मा इंज.संजय सनन.सुरजीत गग्ग .श्रीमति निर्मला कपिला.राजी खन्ना.राकेश शर्मा पिंकी.फुलवन्त मनोचा. डाक्टर पी पी सिन्ह ..डाक्टर चट्ठा ,प्रभात भट्टी,अमर पोसवाल,अमृत सैणी, अमृत पाल धीमान, कंवर पोसवाल विजय कुमार,भोला नाथ कश्यप {स्म्पादक समाज धर्म पत्रिका },अम्बिका दत्त प्रोफेसर योगेश सूद ,इँज दर्शन कुमार,इँज.राजेश वासुदेव इंज गुलशन नैयर व श्रीमति नैयर ,आदि गणमान्य लोग उपस्थित थे. 200 से उपर श्रोताओं ने इस कार्यक्रम मे भाग लिया।। देर रात 11-30 बजे तक चला ये साहित्यक समारोह शहर की संस्कृ्तिक गतिविधिओं का एक मील पत्थर साबित हुआ।
30.7.09
सट्टा लगवाते धरे गए.
व्यूज़ => जब कानूनी तौर पर जायज़ तरीकों द्वारा धन कमाया जा सकता है एवं मनोरंजन भी किया जा सकता है तोफिर गैर कानूनी तरीके क्यों अपनाए जाते हैं?
29.7.09
तलाश एक कारवाँ की...
मेरे पंख मुझसे न छीनलो,
मुझे आसमॉ की तलाश है।
मैं हवा हूँ मुझको न बॉधलो ,
मुझे ये समॉ की तलाश है।
मुझे मालोज़र की ज़रूरत क्या?
मुझे तख़्तो-ताज न चाहिये !
जो जगह पे मुझको सुक़ुं मिले,
मुझे वो जहाँ की तलाश है।
मैं तो फूल हूं एक बाग़ का।
मुझे शाख़ पे बस छोड दो।
में खिला अभी-अभी तो हूं।
मुझे ग़ुलसीतॉ की तलाश है।
न हो भेद भाषा या धर्म के।
न हो ऊंच-नीच या करम के।
जो समझ सके मेरे शब्द को।
वही हम-ज़बॉ की तलाश है।
जो अमन का हो, जो हो चैन का।
जहॉ राग_द्वेष,द्रुणा न हो।
पैगाम दे हमें प्यार का ।
वही कारवॉ की तलाश है।