आप अपने क्षेत्र की हलचल को चित्रों और विजुअल समेत नेटप्रेस पर छपवा सकते हैं I सम्पर्क कीजिये सेल नम्बर 0 94165 57786 पर I ई-मेल akbar.khan.rana@gmail.com दि नेटप्रेस डॉट कॉम आपका अपना मंच है, इसे और बेहतर बनाने के लिए Cell.No.09416557786 तथा E-Mail: akbar.khan.rana@gmail.com पर आपके सुझाव, आलेख और काव्य आदि सादर आमंत्रित हैं I

29.7.09

तलाश एक कारवाँ की...


मेरे पंख मुझसे न छीनलो,

मुझे आसमॉ की तलाश है।


मैं हवा हूँ मुझको न बॉधलो ,

मुझे ये समॉ की तलाश है।


मुझे मालोज़र की ज़रूरक्या?

मुझे तख़्तो-ताज चाहिये !


जो जगह पे मुझको सुक़ुं मिले,

मुझे वो जहाँ की तलाश है।


मैं तो फूल हूं एक बाग़ का।

मुझे शाख़ पे बस छोड दो।


में खिला अभी-अभी तो हूं।

मुझे ग़ुलसीतॉ की तलाश है।


हो भेद भाषा या धर्म के।

हो ऊंच-नीच या करम के।


जो समझ सके मेरे शब्द को।

वही हम-ज़बॉ की तलाश है।


जो अमन का हो, जो हो चैन का।

जहॉ राग_द्वेष,द्रुणा हो।


पैगाम दे हमें प्यार का

वही कारवॉ की तलाश है।

फिर भड़की आरक्षण की आग.....

राजस्थान में पिछली सरकार यानि बीजेपी के शासनकाल के दौरान आरक्षण की ऐसी आग लगी थी कि सुप्रीम कोर्ट को इस मसले पर हुई हिंसा को शर्मनाक करार देना पड़ा था। लेकिन उस वक्त कानून व्यवस्था के चलते सब कुछ ठीक हो गया। पर किसी ने ये सोचा था कि आग बुझी नहीं सुलग रही है और अगर उस पर पानी डाला गया तो वो फिर भड़क सकती है। राजस्थान में फिर से आरक्षण की मांग ने ज़ोर पकड़ा है। पिछड़ों को मजबूत करने के लिए शुरु हुए इस सिलसिले को आज लोगों ने हथियार बना लिया है। राजस्थान में आज गुर्जरों को आरक्षण चाहिए, तो मुसलमानों को तथाकथित अल्पसंख्यक होने का आरक्षण, यही नहीं, अब तो राजस्थान में जब सरकार ने ये तय कर दिया कि आरक्षण ज़रूर मिलेगा और वो भी पांच फीसदी तो ब्राह्मणों ने भी अपने लिए आरक्षण की आवाज़ उठा दी, लेकिन जाति के आधार पर नहीं और ही पिछड़े होने के आधार और ही अल्पसंख्यक होने का तमगा पहनकर, इन्होने मांगा है गरीब होने के नाम पर। शेष merajawab.blogspot.com पर पढ़ें......

28.7.09

शराब पीते तीन कर्मचारी गिरफ्तार .

हरियाणा के जीन्द में शहर थाना पुलिस ने थाने के निकट ही सहकारी बैंक में शराब पीते तीन लिपिकों सहित चार लोगों को गिरफ्तार किया हैपकड़े गए लोगों का सामान्य अस्पताल मे मेडिकल परीक्षण करवाया गया, जिसमे शराब पीने की पुष्टि हुई है । पुलिस ने चारों लोगों के खिलाफ मामला दर्ज कर छानबीन शुरू कर दी है
उपायुक्त मोहम्मद शाईन को शिकायत मिली थी कि बैंक मे कुछ लोग छुट्टी होने के बाद प्रतिदिन शराब पीते हैंशिकायत पर कार्रवाई करते हुए तहसीलदार सतीश भारद्वाज के नेतृत्व मे छापामार दल का गठन कर शाम को शराब पीते चार लोगों को पकड़ लिया गया। जिनकी पहचान गाँव बीबीपुर निवासी महासिंह लिपिक, गाँव अशरफगढ़ निवासी लिपिक हरद्वारी, गाँव मुधाल निवासी लिपिक ओमप्रकाश और गाँव बुआना निवासी रघबीर सिंह के रूप मे हुईपुलिस ने चारों के खिलाफ मामला दर्ज कर छानबीन शुरू कर दी है

एक सबक़ ईमानदारी का !!

अम्मी को “केंसर’ होने की वजह से अम्मी को लेकर मुझे बारबार
रेडीएशन के लिये बडौदा ओंकोलोजी डिपार्टमेंन्ट में जाना होता था। शरीर के
अलग अलग हिस्सों के “केन्सर” से जूझते लोग और उनकी मृत्यु को थोडा दूर
ले जाने कि कोशिश करते उनके रिश्तेदारों से मिलना लगा रहता था। हांलाकि
मैं भी तो अस्पताल का ही हिस्सा हुं।
पर ये तो “केन्सर”!!!! ओह!
मरीज़ से ज़्यादा मरीज़ के रिश्तेदारों को देखकर दिल में दर्द होता था। एक
तरफ “केन्सरग्रस्त” का दयाजनक चहेरा, दुसरी तरफ अपने की ज़िंदगी की एक
उम्मीद लिये आये उनके रिश्तेदार। बड़ा दर्द होता था। कोइ पेट के “केन्सर’
से जूझ रहा था , तो कोई गले के। कोई ज़बान के तो कोई गर्भाशय के! बडे बडे
लेबल लगे हुए थे “केन्सर” से बचने के या उसको रोकने के।
बडौदा जिले का ये बड़ा सरकारी अस्पताल है। यहाँ रेडीएशन
और् किमोथेरेपी मुफ़त में दी जाती है। देशभर से आये मरीज़ों का यहाँ इलाज
होता है। दूर दूर से आनेवाले मरीजों और उनके रिश्तेदारों के रहने के
लिये अस्पताल के नज़दीक ही एक ट्र्स्ट “श्रीमती इन्दुमति ट्र्स्ट”
ने व्यवस्था कर रखी है, जिसमें मरीज़ों तथा उनके एक रिश्तेदार को दो वक़्त
का नाश्ता और ख़ाना दिया जाता है।
रहीम चाचा और आएशा चाची भी वहीं ठहरे हुए थे।
आयशा चाची को गले का केन्सर था। हररोज़ के आने-जाने से मुझे उनके साथ बात
करना बड़ा अच्छा लगता था। कहते हैं ना कि दर्द बांटने से कम होता है मैं
भी शायद उनका दर्द बाँटने की कोशिश कर रही थी। घर से दूर रहीमचाचा
आयशाचाची अपने दो बच्चों को अपनी बहन के पास छोडकर आए थे। उनका आज
तैइसवाँ “शेक”(रेडीएशन) था।
“कल और परसों बस बेटी अब दो ही शेक बाक़ी
हैं ,परसों दोपहर, हम अपने वतन को इन्दोर चले जायेंगे।“ रहीमचाचा ने कहा।
तो अपने बच्चों के लिये आप यहां से क्या ले जायेंगे? मैने पूछा। ”बेटी
मेरे पास एक हज़ार रुपए है। सोचता हुं आमिर के लिये बैट-बाल और रुख़सार के
लिये गुडिया ख़रीदुंगा। बेटी अब तो काफ़ी दिन हो गये है। अल्लाह भला करे इस
अस्पताल का जिसने हमारा मुफ़्त ईलाज किया। भला करे इस ट्र्स्ट का जिसने
हमें ठहराया, ख़िलाया,पिलाया। और भला करे इस रेलवे का जो हमें इस बिमारी
की वज़ह से मुफ़्त ले जायेगी। अब जो पाँच सौं रुपये है देख़ें जो भी
ख़िलौने ,कपडे मिलेंगे ले चलेंगे।
उस रात को घर आनेपर मैने सोचा कि कल इन लोगों का आख़री दिन है मैं
भी इनके हाथों में कुछ पैसे रख़ दुंगी। दुसरे दिन जब मैं वहाँ पहुंची चाचा
चाची बैठे हुए थे। मैने सलाम कहकर कहा “चाची क्या ख़रीदा आपने? हमें भी
दिख़ाइये।“आज तो आप बडी ख़ुश हैं। “
चाची मुस्कुराई और रहीमचाचा के सामने शरारत भरी निगाह
से देख़ा। मैंने चाचा के सामने जवाब के इंतेज़ार में देख़ा। चाचा बोले” अरे
बेटी ये अल्लाह की नेक बंदी से ही पूछ।
क्यों क्या हुआ? मैने पूछा!
रहीमचाचा बोले” कहती है’ हमने मुफ़त ख़ाया पीया तो क्या हमारा
फ़र्ज़ नहीं कि हम भी कुछ तो ये ट्र्स्ट को दे जायें? अल्लाह भी माफ़ नहीं
करेगा हमें” बच्चों के लिये तो इन्दोर से भी ख़रीद सकते हैं। बताओ बेटी
अब मेरे पास बोलने के लिये कुछ बचा है?”
रहीम चाचा की बात सुनकर मैं चाची को देख़ती रही। अपने आप से शर्म आने
लगी मुझे।
हज़ारों की पगारदार, कमानेवाली मैं!! एक ग़रीब को कुछ पैसे देकर अपनी
महानता बताने चली थी। पर इस गरीब की दिलदारी के आगे मेरा सर झुक गया।
वाह!!!आयशा चाची वाह!!!
सलाम करता है मेरा सर तुम्हें जो तुम मुझे ईमानदारी का सबक़ दे गई।

27.7.09

शोभना ने पाया स्टेट में दूसरा स्थान.

जींद(हरियाणा) के हिंदू कन्या कॉलेज की स्टुडेंट शोभना ने कुरुक्षेत्र यूनिवर्सिटी की B.A प्रथम वर्ष की वार्षिक परीक्षा में प्रदेश में द्वितीय स्थान पाया है। उसकी इस उपलब्धि पर कॉलेज प्रसाशन व परिजनों ने खुशी जाहिर की है। शोभना ने 400 में से 344 अंक प्राप्त किए। इससे पहले भी शोभना ने 10+2 की परीक्षा में जिले में प्रथम स्थान पाया था। वह भविष्य में इंग्लिश प्राध्यापिका बनना चाहती है। उसकी इस उपलब्धि पर कॉलेज स्टाफ के अलावा माता संतोष मित्तल, भाई हर्ष मित्तल, अजय मित्तल व भाभी सुमन मित्तल बेहद प्रसन्न हैं।

संतुष्टि किस बला का नाम है ?

कुछ दिनों पहले मुझे एक केस के सिलसिले मे चंडीगढ़ जाना पड़ गया। मेरे साथ कुछ और लोग भी थे. रास्ते में हम में से एक आदमी को करनाल के नजदीक मधुबन पुलिस लाईन में किसी काम से जाना था. हम दोपहर तक पुलिस लाईन के मुख्य गेट के बाहर पंहुच गए थे. जिस आदमी को वहां काम जाना था वह कार से उतरकर हमे यह कहकर अंदर चला गया कि तुम सभी यही रुको मै दस मिनिट मे काम निपटाकर आता हूँ। वह आदमी तो अपने काम से पुलिस लाइन मे चला गया और हम भी कार से उतरकर उसकी इंतजार करने लगे लेकिन गर्मी के कारण हमारी जान पर बन आई। कुछ ही मिनिटो मे हम पसीने से तरबतर हो गए. अधिक गर्मी को देखते हुए हमने फैंसला किया कि ए.सी. चलाकर कार मे बैठा जाए और पुलिस लाईन में गए साथी का इंतजार किया जाए . हम सभी कार मे ठंडक का आनंद लेने बैठे ही थे कि मेरी नजर पुलिस लाईन के मुख्य गेट के बाहर की दीवार पर चली गई। मैंने देखा कि उस दीवार पर एक आदमी बड़े आराम से सो रहा था। शायद वह कोई मजदूर होगा जो दोपहर मे आराम कर रहा होगा। लेकिन मै यह सोच सोचकर हैरान था कि वह आदमी इतनी गर्मी मे किस तरह से सो रहा है. मै सोच रहा था कि लोग बगैर पंखे, कूलर और ए.सी. के सोना तो क्या बैठ भी नहीं सकते. यह आदमी किस तरह से आराम से सो रहा है और वह भी खाली दीवार पर. लोगों को तो मोटे मोटे गद्दों पर भी नींद नहीं आती तो वह आदमी किस तरह से विपरीत परिस्थतियों में आराम फरमा रहा है . यह पूरा दृश्य देखकर मेरे दिमाग में सिर्फ़ एक ही सवाल उभरा कि संतुष्टि कहते किसे हैं और यह मिलती किन्हें है? एक व्यक्ति तो काँटों की सेज़ पर भी संतुष्ट है, जबकि दूसरा फूलों की सैय्या पर भी नही सो सकता। कोई तो बताये कि आख़िर संतुष्टि किस बला का नाम है?

26.7.09

खुद को तन्हा पाती हूँ ,,,(कविता)

-- दुनिया की इस भीड़ में,
खुद को तन्हा पाती हूँ ,,,
ना गम मेरा कम होता ,,,,,,
ना आंसू बहने रुकते है,,,,
हर उम्मीद छिन्न हो जाती है,
न कोई अपना लगता है,
सूरज की हर एक किरण,,,,
अब और अँधेरा फैला जाती ,,,,
बादल की हर एक चींख,
बस मेरी ही करुणा गाती ...
मीठे स्वर नहीं है भाते,,,
मुझको,
मातम का रंग ही भाता है,
बेबसी हसी उडाती है ,,,,
और खामोशी रुला जाती,,,,,
अब हर एक मौसम,
खोया-खोया सा लगता है,
चारो तरफ कुहासा है ...
सब सोया सोया सा लगता है
जाने क्यूँ उनसे रंजिश होती ,,
जिनको सब मिल जाता है ,,,
हमने तो बस खोया है ,,
और खोना ही भाता है,,
हम जिन्हें याद करते है हरपल,
क्या उनके ख्वावो में भी हम होते है
क्या कभी नमी होती है उन आँखों में ,,
जिनकी यादो में हम रोते है

क्या कभी नमीं होती है उन आंखों में ,,
जिनकी यादों में हम रोते हैं ???

इसी सवाल के साथ ,
अनु अग्रवाल