कुछ दिनों पहले मुझे एक केस के सिलसिले मे चंडीगढ़ जाना पड़ गया। मेरे साथ कुछ और लोग भी थे. रास्ते में हम में से एक आदमी को करनाल के नजदीक मधुबन पुलिस लाईन में किसी काम से जाना था. हम दोपहर तक पुलिस लाईन के मुख्य गेट के बाहर पंहुच गए थे. जिस आदमी को वहां काम जाना था वह कार से उतरकर हमे यह कहकर अंदर चला गया कि तुम सभी यही रुको मै दस मिनिट मे काम निपटाकर आता हूँ। वह आदमी तो अपने काम से पुलिस लाइन मे चला गया और हम भी कार से उतरकर उसकी इंतजार करने लगे लेकिन गर्मी के कारण हमारी जान पर बन आई। कुछ ही मिनिटो मे हम पसीने से तरबतर हो गए. अधिक गर्मी को देखते हुए हमने फैंसला किया कि ए.सी. चलाकर कार मे बैठा जाए और पुलिस लाईन में गए साथी का इंतजार किया जाए . हम सभी कार मे ठंडक का आनंद लेने बैठे ही थे कि मेरी नजर पुलिस लाईन के मुख्य गेट के बाहर की दीवार पर चली गई। मैंने देखा कि उस दीवार पर एक आदमी बड़े आराम से सो रहा था। शायद वह कोई मजदूर होगा जो दोपहर मे आराम कर रहा होगा। लेकिन मै यह सोच सोचकर हैरान था कि वह आदमी इतनी गर्मी मे किस तरह से सो रहा है. मै सोच रहा था कि लोग बगैर पंखे, कूलर और ए.सी. के सोना तो क्या बैठ भी नहीं सकते. यह आदमी किस तरह से आराम से सो रहा है और वह भी खाली दीवार पर. लोगों को तो मोटे मोटे गद्दों पर भी नींद नहीं आती तो वह आदमी किस तरह से विपरीत परिस्थतियों में आराम फरमा रहा है . यह पूरा दृश्य देखकर मेरे दिमाग में सिर्फ़ एक ही सवाल उभरा कि संतुष्टि कहते किसे हैं और यह मिलती किन्हें है? एक व्यक्ति तो काँटों की सेज़ पर भी संतुष्ट है, जबकि दूसरा फूलों की सैय्या पर भी नही सो सकता। कोई तो बताये कि आख़िर संतुष्टि किस बला का नाम है?