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22.7.09

कहो कैसी रही!!!!


क्यों कैसी रही?आज?
बड़ा ग़ुरूर था अपने आप पर!!
आज नर्म हो गये ना? वक़्त कब और कैसे अपना रुख़ बदलेगा किसी को पता नहिं है।
और फ़िर अहंकार तो सबसे बूरी बात है।
सब कोइ कहता था कि आप से ही मैं हुं। आप के बिना मेरा कोइ वज़ुद नहिं।
मैं हमेशाँ ख़ामोश रहा।
या कहो कि मेने भी स्वीकार कर लिया था कि आप के आगे मैं कुछ भी नहिं।
लोग कहते थे कि मेरा मिज़ाज ठंडा है और आप का गर्म।
ख़ेर मैं चुपचाप सुन लिया करता था क्योंकि आप की गर्मी से मैं भी तो डरता था।
भाइ में छोटा हुं ना!
पर आज मैं तुम पर हावी हो गया सिर्फ दो घंटों के लिये ही सही।
सारी दुनिया ने देख़ा कि आज तुम नर्म थे छुप गये थे एक गुनाहगार कि तरहाँ।
थोडी देर के लिये तो मुज़े बड़ा होने दो भैया!
पर एक बात कहुं मुज़े आप पर तरस रहा था जब लोग तमाशा देख रहे थे तब!
मैं आप पर हावी होना नहिं चाहता था।
पर मैं क्या करता क़ुदरत के आगे किसी का ना चला है ना चलेगा।
बूरा मत लगाना।
देख़ो आज आप पर आइ इस आपत्ति के लिये सभी दुआ प्रार्थना करते है।
लो मैने अपनी परछाई को आप पर से हटा लिया।
आपको छोटा दिखाना मुज़े अच्छा नहिं लगा।

क्योंकि मैं चंदा हुं और तुमसुरज

20.7.09

शब्द नित्य है या अनित्य??

आज मैं जो ये लेख डाल रहा हूँ ये परम आदरणीय माननीय अन्योनास्ती जी के अथक प्रयाश और मेहनत के कारण ही सम्भब हो सका (तेरा तुझे समर्पित क्या लागत है मोर )मैं ये लेख माननीय अन्योनास्ती जी के चरणों में समर्पित कर रहा हूँ
''शब्द नित्य है या अनित्य '' यह एक लम्बी और संभवता कभी न ख़त्म होने वाली चर्चा का विषय भी हो सकता है अपने अध्ययन में जो कुछ समझ और ग्रहण कर पाया उसके आधार पर मैं यहाँ पर कुछ कहने का प्रयास कर रहा हूँ
'' अनेक दार्शनिको का मत है क्यूँ कि शब्द प्रयास के फल स्वरूप उत्पन्न होता है अतः वह नित्य हो ही नहीं सकता और क्यूँ कि शब्द कि उत्पत्ति होती है ,,,,,,अतः ये विचार कि शब्द नित्य है गलत है' ''
.............शब्द इसलिए भी नित्य नहीं है क्यूँ कि एक निश्चित समय के बाद उसकी अनुभूति रुक जाती है ,,, उसका आभास ख़त्म हो जाता है ,,,,,, शब्द के वेग को घटाया और बढाया जा सकता है ........ यदि यह नित्य है तो ये नहीं होना चाहिए था ,,,,,,,,,,, इससे भी इसकी अनित्यता ही प्रमाणित होती है इस मत के दार्शनिको का कथन है कि हजारो प्राकट्य- कर्ता मिल कर भी '' किसी नित्य वस्तु ' को घटा या बढा नहीं सकते हैं ...... अब शब्द को नित्य स्वीकारने वाले दार्शनिको का मत भी जन लिया जाये
उनका मानना है उपरोक्त विचार कि शब्द नित्य नहीं अनित्य है स्वीकारना गलत है ,,,,,,,उनका मानना है कि शब्दों की उत्पत्ति नहीं होती केवल प्रकटीकरण होता है
क्यूँ कि शब्दों का प्रकटी - करण मात्र होता है , उत्पत्ति नहीं ------ इससे पता चलता है कि शब्द पहले से उपलब्ध थे अतः शब्द की नित्यता सिद्ध होती है,,,, इसे हम इस प्रकार समझ सकते है ,,, जब हम चकमक पत्थर के दो टुकडो को आपस में रगड़ कर अग्नि प्राप्त करते हैं तो अग्नि की उत्पत्ति नहीं होती बल्कि उसका प्रकटी - करण मात्र होता है
,,,, ,शब्द उर्जा है और उर्जा का विनाश नहीं होता उसकी अवस्था परिवर्तित होती रहती है
,,,, जिस प्रकार चकमक पत्थर में अग्नि, प्रकटी करण से पहले वह अग्नि उसमे उर्जा के रूप में स्थित थी ठीक इसी प्रकार उच्चारण - कर्ता के आभाव में शब्द अदृश्य रूप में विद्यमान था किसी समय विशेष पर जब शब्द की अनुभूति नहीं होती है तो यह नहीं समझना चाहिए की शब्द अनित्य है बल्कि उसका एक ही कारण है ,,, कि शब्द का उच्चारण करने वाली वस्तु का विषय (शब्द ) से संपर्क नहीं हो सका था ,,,,,,जिस प्रकार, ' क 'शब्द नित्य है इसे आने बाली पीढियां उसी रूप में जानेगी और पिछली पीढियां भी उसी रूप में जानती रही हैं -------- चाहे उसके स्थूल (भौतिक ) रूप में कितना ही परिवर्तन क्यूँ न हो जाये (क, k),,,,, शब्द का वेग कभी घटता या बढ़ता नहीं है बल्कि शब्द की पुनरावर्ती उसके वेग की तीव्रता या मंदता का अनुभव कराती है अतः शब्द नित्य है और हमारे पास कोई कारण नहीं की हम कह सके की शब्द अनित्य है ,,,,,,,अब दूसरे पक्ष द्वारा ये जोर देकर कहा जा सकता है,, कि शब्द वायु का परिवर्तित रूप है वायु के ही संग्रह - विग्रह से ही इसकी उत्पत्ति होती है ----- अतः हम मान सकते है कि वायु का अभिर्भाव ही शब्द के लिए हुआ है अब क्यूँ कि शब्द वायु से उत्पन्न होता है इस लिए ये नित्य नहीं हो सकता है (एक दार्शनिक ),,,,, मेरे विचार से उपरोक्त विचार ही सारहीन है क्यूँ कि अगर शब्द केवल वायु का परिवर्तन मात्र होता तो उसे व्यक्त करने के लिए किसी माध्यम की आबश्यकता नहीं पड़ती वह स्वतंत्र रूप से वायु से निर्मित हो सकता था परन्तु ऐसा नहीं होता है ; वायु स्वतंत्र रूप से कोई शब्द उत्पन्न नहीं करती है बल्कि

हम कह सकते है वायु एवं शब्द में सहअस्तित्व है जिस प्रकार ' दूध में माखन ' घुला होता है ठीक इसी प्रकार शब्द वायु में मिला होता है
--------दूध को विलोकर मक्खन प्राप्त किया जा सकता है ठीक इसी प्रकार मुख से जब शब्द का उच्चारण होता है तो वायु विक्षोभित होती है और हमें शब्द का आभास हो जाता है ,,परन्तु इसका ये मतलब भी नहीं है की वायु रहित क्षेत्र मेंशब्द नहीं होता बल्कि शब्द तो हर जगह विद्यमान रहता है, बस हमारी कर्नेंद्रियाँ ( श्रवणेन्द्रियाँ ) उसे ग्रहण नहीं करती है जब हम आंख बंद करके मनन करते है तब क्या वो अवस्था शब्द रहित होती है -------नहीं ऐसा नहीं होता ; परन्तु वायु से शब्द की उत्पत्ति की विचारकता समाप्त हो जाती है ------मनन करने से मन में अनेक तरह के विचार उत्पन्न होते है और वे शब्द का ही सम्मिश्रण है , अब चूंकि मन स्थूल शरीर का भाग नहीं होता अतः वहां वायु के होने का सवाल ही नहीं है
,,,,, चूंकि मन आत्मा का भाग है और आत्मा पञ्च तत्व से निर्मित नहीं होती अतः शब्द पञ्च तत्व से निर्मित नहीं होते है...... अब नयी व्याख्या के अनुसार हम कह सकते है की शब्द एक तरह का आकर्षण है या चुम्बकीय क्षेत्र है ,,,,जो समय अनुसार स्थान परिवर्तन करके नित्य रहता है -------अब ये सिद्धांत कि वायु के संग्रह- विग्रह से शब्द की उत्पत्ति होती है कितना भ्रामक है ,,,,,, हम वंशी बजाते है गिटार वजाते है और भी कितने तरीके के वाद्य यंत्र है उन सब में शब्द का प्रकटी करण ही होता है निर्माण नहीं वंशी में प्रवाहित वायु हमारे शरीर से उर्जा ग्रहण करके वेग प्राप्त करती है और छिद्रों से विक्षुद्रित होती है और शब्द का प्रकटीकरण होता है ///// शब्द पुनः विश्रित होकर वायु में घुल जाताहै यह शब्द का उर्जा रूप है .... इसी प्रकार अन्य वाद्य यंत्रो का भी यही गुण है
,,,,,,अब वेदांग का यह कथन पूर्णता सत्य प्रतीत होताहै '' वायु का निर्माण ही शब्द के लिए हुआ है '' क्यूँ कि बिना वायु के हमारी कर्ण- इन्द्रियां शब्द का आभास नहीं कर सकती है .... अतः ये आबश्यक है की शब्द के आभास के लिए वायु हो
इन उदाहरणों से स्पस्ट है कि शब्द अनादि , अनन्त और नित्य हैं इसी लिए वेदों को भी नित्य कहा गया है क्यूँ कि वेद न तो कभी उत्पन्न किये गए है और न ही उत्पन्न किये जा सकते है और न किसी व्यक्ति द्वारा किसी भी स्थिति में उनकी रचना ही की जा सकती है
. इसीलिए भगवान् श्री कृष्ण ने गीता में कहा है ''अक्षरम ब्रह्म स्वभावो अध्यात्म मुच्यते ''
शब्द को ही ब्रह्म बताया है अतः वेद की अपौरुषेयता पर संदेह करना ...... कठिन ही नहीं असंभव है ..... और ये विचार करना की वेद की रचना किसी ईश्वर या ब्रह्मा द्वारा हुई है गलत है यूँ कि वेद नित्य शव्दों संग्रह है किताब का नाम नहीं है ,
,,,,

19.7.09

भाई हमने प्रगति की है\ क्या बुराई है कंक्रीट के जंगलो में?


17.7.09

देश व जनता के विरूद्व हुए, अपराधिक मामलों की जाँच रिपोर्ट सार्वजनिक हो !

देश में आए दिन समाचारपत्रों और न्यूज़ चैनलों के माध्यम से देश और जनता के अहित से जुड़े अपराधिक मामलों की ख़बरों को जोर शोर से प्रस्तुत किया जाता है और धीरे धीरे दिन बीतने पर ये मामले ओझल होने लगतेहैं और उनकी जगह कोई नई ब्रेकिंग न्यूज़ स्थान बना लेती है किंतु समाचार पत्रों और न्यूज़ चैनलों द्वारा बहुत कम इस बात की जहमत उठायी जाती होगी कि उन मामलों पर क्या कार्यवाही चल रही है और चल रही है तो किस गति से और किस स्तर पर क्या उन मामलों को ठंडे बस्ते में डालकर शासन प्रशासन अथवा सत्तासीन पार्टी राजनीतिक लाभों के लिए, अपराधियों को बचाने की कोशिश कर रही है या फिर पर मामलों को उलझाने की कोशिश की जा रही है या फिर जबरन दोषी साबित करने की कोशिश कर रही है
अभी तक की बात करें तो यह देखने में आया है कि देश और जनता के हितों से जुड़े बड़े बड़े मामले राजनीतिक खीचातानी के चलते या तो उलझ कर रह गए है या फिर उन्हें ठंडे बस्ते मैं डाल दिया गया है चाहे वह चारा घोटाला की बात हो , बोफोर्स तोप खरीद प्रकरण की बात हो , ताज कोरिडोर मामला हो , नकली और मिलाबती खाद्य पदार्थों का बड़े पैमाने पर धंधा हो या फिर अन्य कोई देश और जनता के हितों के सरोकारों के मामले हो कई मामलों मेंदेश और जनता को इन सब बातों से अनजान और अनभिज्ञ रखकर उस पर लीपा पोती करने की कोशिश की जाती है अतः सुस्त और टाल मटोल रवैया के कारण अपराधिक मामलों के किसी अंजाम तक पहुचने के फलस्वरूप देश में ऐसे मामलों में उत्तरोत्तर वृद्धि हो रही है और देश और जनता पीड़ित और छले जाने हेतु मजबूर है
अतः जरूरी है कि देश और जनता के हितों से जुड़े इस तरह मामलों पर हो रही कार्यवाही की प्रगति रिपोर्ट प्रतिमाह रखी जानी चाहिए और इसे जनता के सूचना के अधिकार में शामिल करते हुए शासन द्वारा स्वतः ही जनता को दिया जाना चाहिए इससे देश और जनता यह जान सकेगी कि अपने हितों से जुड़े अपराधिक मामलों पर कितनी और क्या कार्यवाही हो रही है इससे ऐसे मामलों में जनता की निगरानी स्वतः ही बढ़ जायेगी और वह समीक्षा कर पाएगी और आवश्यक एवं समुचित कार्यवाही होने पर उचित कार्यवाही हेतु दवाब भी बना सकेगी ताकिअपराधियों को उनके अंजाम तक पहुचाया जा सके प्रशासन को भी इस अनिवार्यता के चलते इन मामलों मेंतत्परता से उचित और ईमानदार कार्यवाही करने हेतु बाध्य होना पड़ेगा
ऐसा कदम जरूर ही देश में होने वाली अपराधिक गतिविधियों में रोक लगाने , शासन प्रशासन को अपराधिक मामलों में त्वरित गति से और पूर्णतः जवावदेही से कार्यवाही करने और जनता का न्याय और क़ानून व्यवस्था मेंविश्वास बढ़ाने हेतु मील का पत्थर साबित होगा

मैं जब पैदा हुई तो कितनी मजबूर थी ,,(कविता)


मित्रो आज की रचना मेरी नहीं मेरी एक मित्र अनु अग्रवाल ने ये मुझे भेजी है. वो बहुत ही संवेदनशील व्यक्तित्व की धनी है और उनकी कविताओं में भावना एवं एकरसता रहती है. माँ और पिता के ऊपर लिखी गयी रचना है. माँ के ऊपर बहुत सी रचनाये लिखी गयी परन्तु माँ शब्द ही येसा है, जिस पर जितना लिखा जाए वो अधुरा ही है. उसकी महानता को हम व्यक्त ही नहीं कर सकते. निर्मला जी के शब्दों में,,

माँ की ममता ब्रह्मण्ड से विशाल है॥
माँ की ममता की नहीं कोई मिसाल है,,

माँ पर लिखी गयी इस अमूल्य रचना पर अपनी प्रतिक्रिया देकर हमें अनुग्रहीत करें

मैं जब पैदा हुई तो कितनी मजबूर थी ,,
इस जहान की सोच से मैं दूर थी,,,,
हाथ पैर तब मेरे अपने थे ,,
मेरी आँखों में दुनिया के सपने थे ,,
कद मेरा बहुत छोटा था ,,
मुझको आता सिर्फ रोना था ,,
दूध पीकर काम मेरा सोना था ,,
मुझको चलना सिखाया था माँ ने मेरी,,
मुझको दिल में बसाया था पापा ने मेरे ,,,
माँ पापा के होने से हर एक सपना मेरा अपना था ,,,
दूकान का हर एक खिलौना मेरा अपना था ,,
माँ पापा के साये में दुलार परवान चढ़ने लगा ,,
वक़्त के साये में कद मेरा बढ़ने लगा ,,,
एक दिन एक लड़का मुझे भा गया ,,
बनके दूल्हा वो मुझे ले गया ,,,
माँ पापा की जिम्मेदारी से अब मैं दूर होने लगी ,,
फिर माँ पापा को मैं भूलने लगी ,,,
सांसो का रिश्ता अब मेरा था ,,,
माँ पापा का साया अब पराया था ,,
ऐसे माँ पापा की क्या मिशाल दूँ ,,
अपने हाथों से हर पल मुझे दुलारा था ,,,
हर गलती पर सर मेरा पुचकारा था ,,
चाहती हूँ उनके सजदे में रख दूँ अपनी तकदीर ,,
दिखती है उनके कदमो में जन्नत की तस्वीर,,,

अनु अग्रवाल

तुम भी बोलो हम भी बोलें देखें कौन बड़ा नेता है......

कमाल की उठापटक चल रही है आज कल उत्तर प्रदेश की राजनीति में....मायावती बलात्कार पीड़ितों को मुआवज़ा देकर तथाकथित भला काम कर रही थीं। उनके सचिव गांव गांव जाकर हैलीकॉप्टर से लड़कियों औऱ महिलाओं को 25 हज़ार से लेकर 75 हज़ार तक की कीमत अदा माफ करियेगा मुआवज़ा दे रहे थे। इस शुभ काम या कहें कि ज़बान बंद करने की कीमत या ये भी कह सकते है कि बलात्कार पीड़ित महिलाओं के जले पर नमक छिड़कने का भला कर रही थीं। एक तो पहले ही उनके आत्मविश्वास को तोड़ दिया गया औऱ बजाए आरोपियों को मृत्युदंड दिये महिलाओं को पैसे थमा रही हैं। भाई मैं तो इस तरह के मामले पर तालिबान का समर्थन करता हूं कि जब भी उनके राज में कोई पुरुष किसी महिला के साथ छेड़छाड़ करता या बलात्कार करता तो उसको ऐसा दंड दिया जाता था कि फिर कभी वो ये करने के हालत में ही न रहे। मतलब आप समझ गये होंगे। लेकिन भईया ये भारत है हम है सबसे बड़े लोकतंत्र। यहां पर सबको जीने का हक है चाहे वो बलात्कारी हो या बलात्कार पीड़ित। यहां पर किसी भी कत्ल में शामिल मुजरिम को सिवाय कुछ दिन की सज़ा के अलावा कुछ नहीं मिलता। तभी तो आजकल फैशन हो गया है कि पांच पांच सौ में लोगों का मर्डर हो जाता है। क्योंकि कानून कड़ा नहीं है। और अगर कोई ये कहता है कि कानून कड़ा है तो मै बता दूं तो वे दलाल भी तो कानूनविद् है जो ऐसे अपराधियों को छुड़ा लेते है प्रोफेशनल बनकर। खैर मुद्दे से भटक गया था मुद्दा है मायावती के बलात्कार पीड़ित महिलाओं को उनकी कीमत अदा अरे फिर गलती हो गई माफ करियेगा मुआवज़ा देने औऱ इसी मुद्दे पर कांग्रेस की रीता बहुगुणा जोशी के बयान के बाद भड़की आग में झुलसे उनके घर औऱ उत्तर प्रदेश की राजनीति की। रीता के बयान को सही नहीं ठहरा रहा हूं ये दोनों एक ही थाली के चट्टे बट्टे हैं। कार्यकर्ता कह रहे है कि मायावती पर की गई टिप्पणी अशोभनीय थी और बीएसपी कार्यकर्ताओं द्वारा रीता का घर प्रतिशोध की ज्वाला में जल गया तो एक बात मै ऐसे कार्यकर्ताओं को याद दिला दूं कि.......आगे की बात पढ़ने के लिए केसरिया...पधारो म्हारे ब्लाग

16.7.09

ज़िन्दगी में एक बार